सच्चाई की जीत (बाल कहानी) : डॉ. मुल्ला आदम अली
Sachai Ki Jeet (Hindi Children's Story) : Dr. Mulla Adam Ali
हरिपुर गाँव में एक छोटा-सा स्कूल था, जहाँ गाँव के सभी बच्चे पढ़ने आते थे। इसी स्कूल में चौथी कक्षा का एक होशियार, विनम्र और ईमानदार बच्चा था — राहुल। वह अपने अच्छे व्यवहार और सच्चाई के लिए पूरे स्कूल में जाना जाता था। पढ़ाई में अच्छा होने के साथ-साथ वह कला और खेलों में भी आगे रहता था।
प्रतियोगिता की घोषणा
एक दिन सुबह की प्रार्थना सभा में प्रधानाचार्य जी मंच पर आए और माइक पर बोले:
प्रधानाचार्य: “बच्चों, कल हम विद्यालय में एक विशेष चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित कर रहे हैं। विषय होगा — ‘प्रकृति का सौंदर्य’। जो बच्चा सबसे सुंदर और रचनात्मक चित्र बनाएगा, उसे सम्मानित किया जाएगा।”
बच्चे तालियाँ बजाने लगे। सभी बच्चे उत्साह से भर गए।
राहुल (मन में): “मैं पेड़, नदी, पहाड़ और सूरज का सुंदर चित्र बनाऊँगा।”
मनीष, राहुल का सहपाठी और अच्छा दोस्त, भी बहुत खुश था, लेकिन उसे चित्र बनाना ज़्यादा नहीं आता था।
मनीष (सोचते हुए): “काश मैं भी राहुल जैसा चित्र बना पाता… पर चलो, कुछ सोचता हूँ।”
तैयारी और दिन का आरंभ
राहुल घर आकर तुरंत चित्र बनाने बैठ गया। उसने पेड़ की छांव, बहती नदी, उड़ते पक्षी, और नीले आकाश में चमकते सूरज का अद्भुत चित्र बनाया। उसकी माँ मुस्कराते हुए बोलीं:
माँ: “वाह बेटे! कितना सुंदर चित्र बनाया है तुमने।”
राहुल: “माँ, मैं मेहनत से जीतना चाहता हूँ, झूठ या चालाकी से नहीं।”
अगले दिन सभी बच्चे अपने चित्र लेकर स्कूल पहुँचे। सबके चेहरे उत्साह से चमक रहे थे। प्रतियोगिता कक्षा में ही आयोजित की गई। सभी चित्र जमा किए जाने लगे।
मनीष डर के मारे चुपचाप बैठा था। वह चित्र बनाना भूल गया था। तभी उसे सामने रखे एक सुंदर चित्र पर नज़र पड़ी — वह राहुल का था। और उसके मन में एक बुरी सोच आई।
मनीष (धीरे से): “अगर मैं इस पर अपना नाम लिख दूँ तो? कोई देखेगा भी नहीं...”
उसने चुपके से राहुल का चित्र उठाया और उस पर अपना नाम लिख दिया।
सच्चाई का सामना
राहुल जब अपना चित्र जमा करने गया, तो उसका चित्र गायब था। वह घबरा गया।
राहुल (चिंतित होकर): “मेरा चित्र कहाँ गया? मैंने तो इसे बैग में रखा था!”
उसी समय उसकी नज़र एक चित्र पर पड़ी, जो हूबहू वैसा ही था, लेकिन नाम मनीष का लिखा था।
वह हैरान रह गया, और उसे बहुत दुख हुआ।
राहुल (मन में): “क्या मनीष ने… नहीं! वह मेरा दोस्त है। लेकिन अगर मैं चुप रहूँ तो यह गलत होगा।”
वह कला शिक्षिका मिस शर्मा के पास गया।
राहुल: “मैम, मुझे लगता है मनीष ने मेरा चित्र लेकर उस पर अपना नाम लिख दिया है।”
मिस शर्मा: “तुम्हें पूरा यक़ीन है, राहुल?”
राहुल: “जी मैम। आप मेरे चित्र की पहचान कर सकती हैं। उसमें नीचे मैंने अपने साइन भी किए थे — R.K.”
शिक्षिका ने चित्र देखा, और वाकई नीचे हल्के अक्षरों में 'R.K.' लिखा था। उन्होंने तुरंत मनीष को बुलाया।
मिस शर्मा (गंभीर स्वर में): “मनीष, क्या तुम सच बता सकते हो कि यह चित्र तुमने खुद बनाया है?”
मनीष की आँखें नीचे झुक गईं। वह बहुत शर्मिंदा था।
मनीष (धीरे से): “माफ कीजिए मैम… मैंने झूठ बोला। यह चित्र राहुल का था। मुझे डर था कि मैं हार जाऊँगा, इसलिए मैंने यह किया। मैं बहुत शर्मिंदा हूँ।”
सच्चाई की जीत
पूरा कक्षा मौन थी। कुछ बच्चों को मनीष पर गुस्सा आया, लेकिन राहुल ने कुछ ऐसा किया जिसने सबका दिल जीत लिया।
राहुल: “मैम, मनीष ने अपनी गलती मान ली है। हम सब गलती कर सकते हैं, लेकिन जो गलती मान ले, उसे दूसरा मौका मिलना चाहिए।”
मिस शर्मा: “राहुल, तुम्हारी सोच और सच्चाई वाकई अनुकरणीय है। मनीष, तुम्हें अपनी गलती से सीख लेकर आगे बढ़ना चाहिए।”
प्रतियोगिता का परिणाम घोषित हुआ। राहुल को पहला पुरस्कार मिला, और एक विशेष प्रमाण पत्र भी — "ईमानदारी और नैतिकता का प्रतीक"।
प्रधानाचार्य जी: “बच्चों, आज राहुल ने जो किया वह केवल एक चित्र प्रतियोगिता की जीत नहीं है, बल्कि यह नैतिकता की जीत है। ऐसे ही बनो — सच्चे, ईमानदार और दयालु।”
मनीष ने मंच पर आकर राहुल को गले लगाया।
मनीष: “धन्यवाद, राहुल। आज तुमने मुझे इंसान बनने की असली सीख दी।”
शिक्षा:
हमेशा सच बोलें, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। सच्चाई और ईमानदारी ही वह बीज हैं, जो चरित्र रूपी वृक्ष को मजबूती से खड़ा रखते हैं।