सच्चाई की जीत : मणिपुरी लोक-कथा

Sachai Ki Jeet : Manipuri Lok-Katha

एक व्यक्ति की दो पत्नियाँ थी।दोनो से एक-एक पुत्री पैदा हुई।पहली पत्नी की बेटी सुदंर एवं सुशील थी। जबकि दूसरी पत्नी की बेटी चायशरा कुरूप व ईष्यालु थी।

दोनो के बड़े होते पिता का देहांत हो गया।अतः घर को चलाने का भार उनकी माताओं पर आ पडा।लेकिन चायशरा की माता शंद्रेंबी की माता से सौतिया ढाह रखती थी।

एक दिन दोनो मछली पकडने झील में गई।शंद्रेंबी की माँ को बहुत सारी मछलियां मिली।पर चायशरा की माता को केकड़े और जहरीले सांप ही मिले।वापस आते समय उन्हें अंजीर का पेड़ मिला।चायशरा की माँ उस पर चढ़ मीठे फल गिराने लगी।फिर उसने धोखे से तुडोल में बंद जहरीले सांप को शंद्रेंबी की माँ के मुँह में गिरा दिया।जिससे वो तडप-तड़प कर मर गयी।

शव को झील की जलकुम्भी में दबा वो वापस घर आ गयी।शंद्रेंबी माँ की घर वापसी की प्रतिक्षा करती रही।रात में माँ स्वप्न में आयी।और शंद्रेंबी को सारी बात बतायी।तथा शिलम नदी में मिलने की बात कही।जिसे सात दिनों तक छुपा कर रखने से वो पुनः मनुष्य रूप में आ जाती।

सुबह शंद्रेंबी झील पर गयी और कछुआ निकाल लायी पर ऐसा करते चायशरा ने उसे देख लिया।

चायशरा कछुए को पका कर खाने की जिद करने लगी।सौतेली माँ के कहने व प्रताड़ित करने पर विवश हो शंद्रेंबी ने उसे आग पर चढा दिया।धीरे-धीरे शंद्रेंबी की कछुए रूपी माँ मर गयी।वह दहाड़ मार कर रोने लगी।

एक दिन जब शंद्रेंबी और चायशरा तालाब से पानी लेने गयी तब उस देश के राजा ने शंद्रेंबी को उठा लिया और अपने रानी बना लिया।चायशरा और उसकी माँ मन मसोस कर रह गये।

शंद्रेंबी के दिन खुशी से बीतने लगे।उसके एक पुत्र भी हुआ।तब सौतेली माँ ने उसे खाने पर बुलाया।शंद्रेंबी खुब गहने-कपड़े पहन कर आयी जिससे चायशरा को ईष्या हुई।उसने उसके गहने पहन लिये।वापस माँगने पर उसे चारपाई के नीचे फेंक दिया।शंद्रेंबी जैसे ही गहने उठाने नीचे झुकी दोनो ने मिल कर उस पर खौलता पानी डाल दिया।बेचारी शंद्रेंबी वही मर गयी।

अब चायशरा शंद्रेंबी के कपड़ें पहन राजमहल गयी।राजा के शंका करने पर बहाना बना दिया।उधर शंद्रेंबी कबुतर के रुप में घसियारे के सामने प्रकट हुई।तथा उससे सारा रहस्य राजा के सामने प्रकट करने को कहा।राजा को जब ये मालूम हुआ तो उसने कबुतर को पकड़ पिजड़े में बंद कर लिया।रात में सपने में शंद्रेंबी ने प्रकट हो कहा ,"सात दिन मुझे बुरी नजर से बचा कर रखिये।आठवें दिन मैं प्रकट हो जाऊँगी।छठें दिन राजा किसी जरूरी काम से बाहर गया।तभी दुष्ट चायशरा ने कबुतर को मार उसकी सब्जी बना दी।राजा को यह जान बहुत पछतावा हुआ।उसने सब्जी फिकवा दी।उस जगह एक नीबू का पेड़ उग आया।उसमे एक फल लगा।

एक दिन फल खाने की इच्छा से घसियारे ने जैसे ही फल तोड़ा उसी समय राजा का बुलावा आ गया।उसने नींबू को चावल के बरतन में रख दिया।सात दिन होने पर शंद्रेंबी मानव रूप में प्रकट हुई।घसियारा ये देख हैरान रह गया उसने राजा को सुचना दी।

राजा ने दरबार लगा शंद्रेंबी और चायशरा को बुलाया।तब चायशरा ने शंद्रेंबी पर तलवार से वार किया।जिसमें शंद्रेंबी बच गई।पर शंद्रेंबी के तलवार के वार से चायशरा न बच पाई।और उसका सर धड़ से अलग हो गया।

इस तरह सच्चाई की जीत हुई।

(अंजू निगम)

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