Sacche Janeu Ki Khoj

सच्चे जनेऊ की खोज

गुरु नानकजी जब कुछ बड़े हुए तो पिता कालू मेहता ने सोचा अब इनका यज्ञोपवीत संस्कार कर देना चाहिए। हिन्दुओं में जनेऊ पहनने का अधिकार केवल ऊंची जाति के हो लोगों को है । उपनयन या जनेऊ पहनने के संस्कार को व्यक्ति का दूसरा जन्म कहते हैं।
परन्तु गुरु नानक जी तो बचपन से ही ऊंच-नीच और जाति-पांत को नहीं मानते थे। उनके पिता ने अपने कुल-पुरोहित पंडित हरदयाल से पूछकर उनका जनेऊ संस्कार करने की तिथि निश्चित कर दी।

इस अवसर पर उनके बहुत से सगे-सम्बन्धी और मित्र इकट्ठे हुए। घर में खूब चहल-पहल थी। शुभ महूर्त में पण्डितजी ने नानक जी को बुलाया-"नानक जी, आकर मण्डप में बैठो।"
नानकजी इस चहल-पहल से पूरी तरह अलिप्त थे। वे भगवान के ध्यान में सदा डूबे रहते थे । जब पण्डितजी ने उन्हें बुलाया तो उन्होंने बड़े भोलेपन से पूछा-"पंडितजी, आप मुझे मण्डप में क्यों बुला रहे हैं?"
"बेटा, आज तुम्हारा उपनयन संस्कार है।" पंडितजी ने कहा-'आज तुम्हें जनेऊ पहनाया जाएगा। यह देखो।" कहकर पण्डितजी ने उन्हें जनेऊ दिखाया।
नानकजी ने जनेऊ को अपने हाथ में लेकर देखा और बोले-"पंडितजी, यह जनेऊ तो सूत का बना हुआ है।"
"जनेऊ सूत का ही बनता है।" पंडितजी ने कहा।
"यह तो गंदा हो जाएगा।" नानकजी ने कहा । "हाँ नानकजी, सूत का जनेऊ तो गंदा हो ही जाता है।" पंडितजी ने कहा।
"पंडितजी ।" नानकजी बोले-" यह तो टूट भी जाएगा।"
"तो क्या हुआ ?" पंडितजी ने कहा-"तब दूसरा जनेऊ पहन लेना।"
नानकजी की उत्सुकता भरी आंखें पंडितजी के चेहरे पर जम गयीं-"पंडितजी, जब व्यक्ति मर जाता है और उसकी देह को जला दिया जाता है। उस समय उसके साथ यह जनेऊ भी जल जाता होगा।"
मंडप के चारों ओर उनके परिवार और सगे-सम्बन्धियों की भीड़ लगी हुई थी। सभी लोग बड़े आश्चर्य से नानकजी की बातें सुन रहे थे।
पंडितजी भी उनकी बातें बड़ी हैरानी से सुन रहे थे । वे बोले- "हां नानक जी, यह जनेऊ तो आग में जल जाता है।"
"पंडितजी ।" नानकजी के चेहरे पर आभा चमक उठी-"मैं ऐसा जनेऊ नहीं पहनूंगा।"
सभी लोग उनकी बात सुनकर सन्नाटे में आ गये । पंडितजी ने पूछा"नानकजी, आप कैसा जनेऊ पहनेंगे?
नानकजी का मुख मण्डल एकदम गंभीर हो गया-"पंडितजी, आप मुझे ऐसा जनेऊ पहनाइए जो न गंदा हो, न टूटे, न जले । आपके पास ऐसा जनेऊ है ?"
"ऐसा जनेऊ तो आज तक बना नहीं।" पंडितजी ने कहा ।
"पर मेरे लिए आप ऐसा ही जनेऊ बनाइए।"
नानकजी बोले-"जिसमें दया की कपास हो, संतोष का सूत हो, संयम की गांठ हो और सच्चाई की पूरन हो। यदि आपके पास ऐसा जनेऊ है तो मुझे पहना दीजिए। इस प्रकार का जनेऊ न टूटता है, न गंदा होता है, न जलता है, न नष्ट होता है।"
नानकजी को ये बातें सुनकर पंडितजी सोच में पड़ गये । उन्हें लगा नानक जी ने उन्हें जनेऊ का ऐसा अर्थ समझा दिया है जो इतना कुछ पढ़ने-लिखने के बाद भी उन्हें नहीं मालूम था।
सभी को लगा जैसे उन्हें आज ज्ञान का नया प्रकाश प्राप्त हुआ है।

(डॉ. महीप सिंह)

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