सच्चा गायक : लोक-कथा (बंगाल)

Saccha Gayak : Lok-Katha (Bangla/Bengal)

एक गाँव में गौरांग नामक एक गरीब लड़का रहता था। वह बहुत अच्छा गाता एवं डफली बजाता था। अपनी डफली लेकर वह रोज नदी किनारे चौराहे पर गीत गाता एवं डफली बजाता। लोग आते-जाते, पर ठहरकर न कोई उसका गाना सुनता, न प्रशंसा करता। वह बहुत दुःखी हो जाता। जब वह घर लौटता, बहुत उदास रहता। उसकी माँ उसे उदास देखती, तो उसे उस पर बहुत दया आती। उसे ढाढ़स बँधाती। प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरकर कहती, "बेटा निराश मत होना। अपना काम करते रहो। ईश्वर एक दिन जरूर तुम्हें सफलता देगा।"

गौरांग झुंझलाकर कहता, “माँ! मैं इतना अच्छा गाता-बजाता हूँ, फिर भी लोग मेरे गीत की कद्र नहीं करते ! आखिर मुझमें क्या कमी है माँ ?"

माँ कहती, "बेटा! यह सब भाग्य का खेल है। किसी मनुष्य का भाग्य पत्ते के पीछे होता है तो किसी का पत्थर के नीचे। पत्ता तो हवा के झोंके से उड़ जाता है, पर पत्थर को उड़ाने के लिए तो तूफान की जरूरत पड़ती है। तुम विश्वासपूर्वक अपना काम करते रहो। ईश्वर तुम्हारा भला करेगा।"

माँ के वचन गौरांग में उत्साह ला देता और वह दोगुने जोश के साथ गीत गाता एवं डफली बजाता। गौरांग की माँ अपने बेटे को बहुत प्यार करती थी। उसके प्रति उसके हृदय में ममता का अथाह सागर हिलोरें मारता रहता था। वह एक जमींदार के बगीचे की देखभाल करती थी। बदले में उसे अनाज, सब्जी, आम आदि मिल जाते थे। उन्हीं चीजों से उनका संसार चलता था।

एक दिन गौरांग जंगल में घूम रहा था, तभी उसकी नजर एक घायल शिशु हिरणी पर पड़ी। वह दौड़कर हिरणी के निकट गया। देखा, उसकी एक टाँग टूटी हुई है और उसके शरीर में कुछ जख्म भी हैं। उसे देखकर उसे दया आ गई। उसे उठाकर वह घर ले आया और अपनी माँ से कहा, "लगता है, किसी जंगली जानवर ने इसे घायल किया है। इस हालत में यह जंगल में मर जाती, इसीलिए मैं इसे उठाकर ले आया।"

माँ ने कहा, “बहुत अच्छा किया बेटा।" गौरांग उस शिशु हिरणी की मन लगाकर सेवा करता। सुबह उठकर वह उसके घावों को फिटकरी के जल से धोता, फिर वैद्यजी की जड़ी-बूटी लगाता, पाँव में पट्टी बाँधता, उसका खूब खयाल रखता। वह उस हिरणी से काफी घुल-मिल गया था। उसकी सेवा से हिरणी ठीक होने लगी। उसके घाव तो भर गए, पर पाँव ठीक नहीं हुए। वह लँगड़ाकर चलती थी।

हिरणी से गौरांग को इतना अधिक लगाव हो गया कि वह दीन-दुनिया से बेखबर हो गया। अपनी माँ को भी गौण समझने लगा। इससे उसकी माँ को बहुत चिंता हुई। एक दिन जब गौरांग घर में नहीं था तो उसकी माँ हिरणी को जंगल में एक सुरक्षित स्थान में छोड़ आई। घर आने पर गौरांग ने अपनी माँ से जब हिरणी के बारे में पूछा तो उसने बताया कि वह इसके बारे में कुछ भी नहीं जानती है। गौरांग द्वारा बार-बार पूछने पर भी उसने अनभिज्ञता प्रकट की।

गौरांग अत्यंत दु:खी हो गया। उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसने डबडबाई आँखों से अपनी माँ से कहा, "पता नहीं उस बेचारी के साथ क्या हुआ होगा? अभी तो उसकी टाँग भी ठीक नहीं हुई थी। वह तो ठीक से भाग भी नहीं सकेगी। जंगली जानवरों से वह अपनी रक्षा कैसे कर पाएगी?"

उसकी माँ अपने बेटे के दुःख को देख दुःखी हुई, पर उसे सच्चाई बता नहीं पाई। उधर गौरांग खाट पर बैठा केवल आँसू बहाता रहा। उसने खाना भी नहीं खाया। रोते-रोते रात बीत गईं। सुबह पीड़ा से व्यथित हो उसने अपनी डफली उठाई, चौराहे पर गया और अत्यंत तल्लीन होकर गाना गाते हुए डफली बजाने लगा। डफली बजाने में वह इतना तन्मय हो गया कि उसे समय का ध्यान ही न रहा। जब उसने गाना समाप्त किया, तो देखा कि आस-पास भारी भीड़ इकट्ठी हो गई है और उसके सामने सिक्कों का ढेर लगा हुआ है और लोग 'वाह ! वाह !' करते हुए तालियाँ बजा रहे हैं। उसे लगा कि वह सपना देख रहा है! वह अवाक् चारों ओर देखता रहा। धीरे-धीरे भीड़ छंट गई, तब उसकी मदहोशी टूटी। सामने पड़े सिक्कों को समेटकर वह अत्यंत प्रसन्नतापूर्वक घर पहुँचा। खुशी से झूमते हुए उसने अपनी माँ से कहा, "माँ! माँ ! देखो आज मुझे कितने पैसे मिले! आज तो सब लोग मेरे गाने पर तालियाँ बजा रहे हैं। कुछ तो रो भी रहे थे।"

माँ ने उसे अपने हृदय से लगा लिया। फिर बोली, “बेटा जब भी मैं तुम्हारा गाना सुनती थी, तो मुझे है। आज से तुम एक सच्चे गायक हो।"

गौरांग अपनी माँ से लिपटकर रोने लगा।

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