सब से बड़ा धनी (प्रेरक कथा) : यशपाल जैन

Sabse Bada Dhani (Prerak Katha) : Yashpal Jain

एक आदमी था । बहुत ही दीन और फटेहाल । चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं । उसे हैरान देखकर किसी दूसरे आदमी ने पूछा, "क्यों भाई, क्या बात है ? इतने परेशान क्यों दिखाई दे रहे हो ?"

वह बोला, "बात यह है कि मैं बहुत ही गरीब हूं । मेरे पास कुछ भी नहीं है । "

"कुछ भी नहीं है !" दूसरे ने अचरज से कहा, "तुम सच नहीं बोल रहे हो ।"

पहले की बेबसी और गहरी हो गई। बोला, "मैं आपसे सच कहता हूं। बिना बात किसको हैरान होना अच्छा लगता है ?"

"ठीक, तो तुम एक काम करो। तुम्हारे पास दो कान हैं। एक कान काटकर मुझे दे दो। मैं तुम्हें एक हजार रुपया दे दूंगा । बोलो, तैयार हो ?"

"नहीं, मैं अपना कान नहीं दे सकता ।"

"अच्छा, तो अपनी दो आंखों में से एक आंख दे दो और यह लो पांच हजार रुपये।”

"जी, नहीं। मैं आंख भी नहीं दे सकता ।"

"तो लाओ एक हाथ दे दो और यह लो दस हजार रुपये ।"

"जी, नहीं, यह भी नहीं होने का ।"

"इसके मानी यह हुए कि तुम्हारे पास एक दूने दो, अर्थात् दो हजार से ज्यादा के कान हैं, पांच दूने दस, दस हजार से ज्यादा की आंखें हैं और दस दूने बीस, बीस हजार से ज्यादा के हाथ हैं । मैं और चीजों को छोड़े देता हूं। सिर्फ कान, आंख और हाथ ही तुम्हारे दो, दस और बीस यानी बत्तीस हजार से ज्यादा के हो गये तो बताओ, पूरा शरीर कितने का होगा ।"

पहला चुप ।

दूसरे ने कहा, "भैया, तुम नहीं जानते कि तुम्हारे पास कितनी बड़ी दौलत है । जिसके पास अच्छी-अच्छी बातें सुनने के लिए दो कान हों, अच्छी-अच्छी चीजें देखने के लिए दो आंखें हों और अच्छे-अच्छे 'काम करने के लिए दो हाथ हों, उससे बढ़कर धनी और कौन हो सकता है !"

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