सातवीं देवरानी : कोंकणी/गोवा की लोक-कथा
Saatvin Devrani : Lok-Katha (Goa/Konkani)
किसी एक गाँव में सात भाई रहते थे। उनकी एक बहन थी। सातों भाइयों की शादी हो गई थी, बहन की शादी नहीं हुई थी। घर में सातों भाइयों के बूढ़े पिता, बूढ़ी माँ और वह बहन भी रहती थी।
तो क्या हुआ कि उन सातों भाइयों में सातवें भाई की पत्नी बहुत सुंदर थी। इस कारणवश छह भाइयों की पत्नियों के मन में उसके प्रति ईर्ष्या थी। बड़े छह भाई खेती-बाड़ी का काम करते थे, इसलिए उनकी पत्नियों को भी खेत पर जाना पड़ता था, किंतु सातवाँ साहूकार के यहाँ नौकरी करता था, इस कारण उसकी पत्नी खेत में नहीं जाती थी। वह घर पर ही रहती थी और खाना पकाने का काम करती थी। बड़ी छह देवरानियाँ इस वजह से भी उससे जलती थीं। उन्हें लगता था कि वह सुख से जी रही है और उनके नसीब में कष्ट-ही-कष्ट हैं। इसलिए वे सब मिलकर अलग-अलग तरीके से उसे सताती थीं।
एक दिन होता क्या है कि हमेशा की तरह दिन ढलते ही छोटा भाई काम पर से घर लौट आता है। बाकी के छह भाई भी खेत से घर लौटते हैं। नहा-धोकर सभी भाई साथ में खाना खाते हैं। उनके मातापिता और बहन भी खाना खाते हैं। बाद में उनकी पत्नियाँ भी खाना खाने बैठती हैं। तो क्या होता है कि बड़े छह भाइयों की पत्नियाँ जल्दी-जल्दी हाथ-मुँह पोछकर रसोईघर से बाहर निकलती हैं और रसोई की साफ-सफाई, बरतन माँजना सब काम छोटी के लिए छोड़ देती हैं। छोटी चुपचाप सब काम निपटाती है और वह ऊपर की मंजिल पर अपने कमरे में सोने चली जाती है। वहाँ उसका पति उसकी राह देख रहा था। तो दोनों कुछ देर तक गपशप करते हैं और सो जाते हैं।
इधर नीचे क्या होता है कि छोटी सब काम निपटाकर जब ऊपर अपने कमरे में चली जाती है तो सब छह देवरानियाँ रसोईघर में इकट्ठी होती हैं और उसे सताने के लिए दिमाग लड़ाती हैं। वे बाहर पिछवाड़े में जाकर एक साँप पकड़कर लाती हैं और उसे पानी के घड़े में छोड़कर ऊपर से ढक्कन लगाकर चुपके से अपने कमरे में जाकर सो जाती हैं।
दूसरे दिन हमेशा की तरह पौ फटने से पहले छोटी देवरानी जाग जाती है और अपना सब दैनिक कार्य पूरा करके खाना पकाने के लिए रसोई में चली जाती है। जाकर वह पानी के घड़े में से पानी निकालने के लिए उसका ढक्कन ऊपर उठाती और हाथ अंदर डालती है तो उसके हाथ में साँप काट लेता है। वह सातों भाइयों के पिता, यानी अपने ससुर को आवाज देती है-
घर में सोए ससुर मेरे
मुझे साँप ने डस लिया है
मुझे विष से भर दिया है।
ससुर जवाब देता है-
घर-मकान है चिरेबंदी
दहलीज बनाई है पाषाणी
कहाँ से लक्ष्मी
कौन आया है री?
ससुर का जवाब सुनकर वह सास को मदद के लिए पुकारती है-
घर में सोए सासू मेरे
मुझे साँप ने डस लिया है
मुझे विष से भर दिया है।
सास जवाब देती है-
घर-मकान है चिरेबंदी
दहलीज बनाई है पाषाणी
कहाँ से लक्ष्मी
कौन आया है री?
सास का जवाब सुनकर वह एक-एक करके सब देवरों, जेठ-जेठानी और देवरानियों को मदद के लिए पुकारती है। ननंद को भी पुकारती है। लेकिन हर एक से वह वही जवाब पाती है। आखिर में वह अपने पति को पुकारती है-
पलंग पर सोए पति मेरे
मुझे साँप ने डस लिया है
मुझे विष से भर दिया है।
पत्नी की पुकार कानों में पड़ते ही पति हड़बड़ाकर जाग जाता है और दौड़कर रसोई में घुसता है। रसोई में वह देखता है कि वहाँ उसकी पत्नी मरी पड़ी है और विष से उसका शव काला पड़ गया है।
पत्नी को मरी देखकर पति को बेहद दुःख होता है। वह उसका शव कंधे पर उठाकर बाहर ले आता है और उसे घर की दहलीज पर रखता है।
उधर सातवीं देवरानी के मायके में एक अनहोनी हो जाती है। वहाँ के आँगन के तुलसीवृंदावन में, जो तुलसी का बिरवा था, वह एकदम सूखकर मर जाता है। उसे देखकर उसके भाई के मन में आशंका उत्पन्न होती है कि कहीं उसकी बहन पर कोई संकट तो नहीं आया? क्योंकि उसने अपनी डोली उठते वक्त अपने भाई से कहा था कि कभी मेरे ऊपर कोई संकट आ गया तो यह तुलसी का बिरवा मर जाएगा।
भाई एक पल का भी समय गँवाए, जो कपड़े पहने थे, उन्हीं कपड़ों में दौड़कर बहन की ससुराल पहुँचता है। वहाँ सबसे पहले उसके ससुर से पूछता है-
ससुरजी, ओ ससुरजी
मेरी बहन है कहाँ गई?
ससुर कहता है-
तुम्हारी बहन बंधो,
हमने देखी ही नहीं।
ससुर का जवाब सुनकर भाई उसकी सास से पूछता है, उससे भी उसे वही जवाब मिलता है। बाद में वह बहन के जेठ, जेठानी, देवर-देवरानी और ननद से पूछता है, सभी से उसे एक ही जवाब मिलता है। आखिर में वह बहनोई के पास जाकर पूछता है-
बहनोई ओ बहनोई!
मेरी बहन है कहाँ गई?
सुनते ही बहनोई जोर-जोर से रोने लगता है और सारी बात साले को बताता है। साला भी अपनी बहन की मृत्यु की खबर सुनकर सिसक-सिसककर रोने लगता है। कुछ देर तक वह रोता रहा, उसके बाद बहन को जीवित करने के लिए भगवान् की आराधना करने की सोचकर, वह वहाँ से उठकर मंदिर की ओर चला जाता है।
अब सातवाँ भाई सोचता है कि पत्नी का शव ज्यादा देर तक घर पर रखना उचित नहीं है, उसे अग्नि देनी चाहिए। तब वह जाकर अपनी माँ से कहता है-
माँ ओ मेरी माँ!
बहू की तुम्हारी गोद भरना,
उसे काजल, कुमकुम लगाना
तो माँ तुरंत कहती है-
मरी हुई तुम्हारी पत्नी को
तुम ही काजल-कुमकुम लगाना,
मरी हुई तुम्हारी पत्नी की
तुम ही गोद भरना।
मरी हुई अपनी पत्नी की गोद भराई करने के लिए माँ तैयार नहीं है, यह देखकर वह बड़ी भाभी से कहता है कि वह उस रस्म को पूरी करे। लेकिन वह भी सास की तरह ही जवाब देती है। उसके बाद वह दूसरी भाभी से कहता है, उसने भी वैसा ही जवाब मिलता है...एक-एक करके वह सब भाभियों से विनती करता है, लेकिन कोई तैयार नहीं होती। अब घर में गोद भरने की रस्म पूरी करने के लिए और कोई सुहागन नहीं थी, इसलिए वह सोचता है कि स्वयं ही उस रस्म को पूरा करेगा।
वहाँ से उठकर वह मंडी जाता है और साड़ियों की दुकान पर जाकर दुकानदार से कहता है-
दुकानदार भाई, ओ दुकानदार भाई!
मुझे देना एक जड़ी की साड़ी और चोली
दुकानदार पूछता है-
इतनी रात गए
साज-शृंगार की
क्या हुई तुम्हें जरूरत?
वह कहता है-
जरूरत को लगे आग
मेरी प्रीत की बगिया
हुई तो यहाँ नष्ट।
दुकानकार समझ जाता है कि कुछ अनर्थ जरूर हुआ है। वह एक साड़ी-चोली उसे दे देता है। उसे लेकर वो फूलवाली के पास आता है और कहता है-
फूलवाली माँ, ओ फूलवाली माँ !
मुझे फूल-वूल दे दो।
फूलवाली पूछती है-
इतनी रात गए
साज-श्रृंगार की
क्या हुई तुम्हें जरूरत?
वह कहता है-
जरूरत को लगे आग
मेरी प्रीत की बगिया
हुई तो यहाँ नष्ट।
फूलवाली समझ जाती है कि कुछ अनर्थ जरूर हुआ है। वह एक फूल की वेणी उस को दे देती है। उसे लेकर वह पड़ोसन के पास आता है। उससे कहता है-
पड़ोसन भाभी, ओ पड़ोसन भाभी!
मुझे काजल-कुमकुम देना।
पड़ोसन पूछती है-
इतनी रात गए
साज-शृंगार की
क्या हुई तुम्हें जरूरत?
वह कहता है-
जरूरत को लगे आग
मेरी प्रीत की बगिया
हुई तो यहाँ नष्ट।
पड़ोसन उसे काजल-कुमकुम दे देती है, तो सारी सामग्री लेकर वह घर पहुँचता है। पत्नी के शव को नई साड़ी-चोली पहनाता है, बालों पर फूल की वेणी लगाता है। काजल-कुमकुम लगाता है और अपने पिता से कहता है-
पिताजी, ओ मेरे पिताजी
तुम्हारी बहू की चिता रचना
तो पिताजी कहते हैं-
मरी हुई तुम्हारी पत्नी की
तुम ही अरथी सजाना।
पिताजी के न कहने पर वह अपने बड़े भाई से कहता है, तो वह भी वैसा ही जवाब देता है। बाद में वह एक-एक करके अपने सब भाइयों से कहता है, वे भी वैसा ही जवाब देते हैं। आखिर में वह रोताबिलखता पड़ोसियों के घर जाता है और उनसे कहता है-
पड़ोसियों भाइयों,
मेरी पत्नी की अरथी सजाना
पड़ोसी उसकी पत्नी की अरथी सजाने के लिए तैयार हो जाते हैं, तब वह चिता कहाँ रचाए, यह पिताजी से पूछता है-
पिताजी, ओ पिताजी!
उसे कहाँ अग्नि दूँ?
उसे किस रास्ते से बाहर निकालूँ ?
पिता कहते हैं-
उसे बाहर का रास्ता दिखाना
मरी हुई उस स्त्री को
पिछले दरवाजे से ले जाना,
मरी हुई उस स्त्री को
सीमा के बाहर जला देना।
पिताजी की बात सुनकर उसे बहुत दुःख होता है। वह अपनी माँ से पूछता है। वह भी वैसा ही जवाब देती है। एक-एक करके सब भाइयों से पूछता है, वे भी वैसा ही जवाब देते हैं। आखिर वह अपनी बहन से पूछता है-
बहना ओ मेरी बहना,
उसे कहाँ अग्नि दूँ?
उसे किस रास्ते बाहर निकालूँ?
बहन कहती है-
बंधवा ओ मेरे बंधवा,
उसे पिछवाड़े का दरवाजा मत दिखाना,
उसे मुख्य द्वार से लेकर
तुलसी वृंदावन के पास अग्नि देना।
बहन की बात सुनकर वह पत्नी का शव उठाता है और मुख्य द्वार से बाहर निकालकर पड़ोसियों की सहायता से तुलसी वृंदावन के पास उसकी चिता रचाता है। तब उसका साला वहाँ आ पहुँचता है। वह भगवान् को प्रसन्न करके अपनी बहन को जीवित करने का वरदान प्राप्त कर चुका था। भगवान् ने उसे बेतकांठी (बेंत की छड़ी) दी थी। वह छड़ी अपनी बहन के मस्तिष्क के ऊपर घुमाता है तो तुरंत उसकी बहन, यानी सातवीं देवरानी जीवित हो जाती है। उसके शरीर पर एक भी घाव या जख्म नहीं रहता, वह बिल्कुल पहले जैसी स्वस्थ दिखाई देती है। बहन को जीवित हुई देखकर भाई को बेहद खुशी होती है और पति भी बहुत खुश होता है।
बाद में सातवीं देवरानी का भाई क्या करता है कि अपने बहनोई से कहता है कि तुम दोनों अब यहाँ नहीं रहोगे, तुम मेरे घर चलोगे।
वह तुरंत एक पालकी ले आता है। उसमें बहन और बहनोई को बिठाता है तथा बैंड-बाजे के साथ उन्हें अपने घर ले जाता है। वहाँ उसकी बहन बड़े सुख से अपना जीवन बिताती है।