सात भाई चंपा : लोक-कथा (बंगाल)

Saat Bhai Champa : Lok-Katha (Bangla/Bengal)

एक राजा की सात रानियाँ थीं। प्रथम छह रानियाँ अत्यंत अहंकारी थीं। छोटी रानी शांत स्वभाव की थी, इसीलिए राजा छोटी रानी को सबसे अधिक चाहते थे।

बहुत दिनों तक राजा की कोई संतान नहीं हुई। उनके बाद इतने बड़े राज्य को कौन सँभालेगा, यह सोच-सोचकर राजा अत्यंत दुःखी रहते थे। कुछ दिनों के बाद छोटी रानी ने गर्भ धारण किया। राजा के हर्ष का ठिकाना न रहा। राजा ने सारे राज्य में मुनादी करवा दी कि राज भंडार खोल दिया गया है, मणिमाणिक्य, मिठाई, जिसे जो चाहिए, जितना चाहे, ले जा सकता है।

बड़ी रानियाँ ईर्ष्या से जल-भुन गईं। राजा ने अपनी एवं छोटी रानी की कमर में सोने की जंजीर बाँध दी और कहा, “जब बच्चा होगा, तब इस जंजीर को हिला देना, मैं आकर बच्चे का मुँह देखंगा।" यह कहकर वे राजदरबार में चले गए।

छोटी रानी को बच्चा होगा, तो उसके घर में कौन रहेगा? यह प्रश्न उठा तो बड़ी रानियों ने कहा कि इस कार्य हेतु दासियों की सेवा क्यों ली जाए? यह काम हम लोग ही करेंगे।

बड़ी रानियों ने छोटी रानी के कमरे में जाकर जंजीर को हिलाया। राजा दरबार का काम-काज छोड़कर ढाक-ढोल, मणि-माणिक्य, पंडित-पुरोहित को साथ लेकर उपस्थित हुए। पर कुछ भी हुआ न देखकर निराश लौट गए। पुनः राजसभा में उनके बैठते-न-बैठते फिर जंजीर को हिलाया गया। राजा पुनः दौड़कर गए। इस बार भी कुछ नहीं हुआ। गुस्से में राजा ने कहा, “जब कुछ हुआ ही नहीं, तो जंजीर क्यों हिलाई? मैं सब रानियों को काटकर फेंक दूंगा," यह कहकर वे चले गए।

छोटी रानी ने एक-एक कर सात पुत्रों एवं एक पुत्री को जन्म दिया। सारे बच्चे चाँद के टुकड़े, फूल की कली जैसे लग रहे थे। उनके जन्म लेते ही कमरा प्रकाशित हो उठा। छोटी रानी ने धीरे से पूछा, "दीदी, कौन सी संतान हुई है ?"

बड़ी रानियों ने छोटी रानी के सामने मुँह बिचकाकर, हाथ नचाकर कहा, "संतान न हाथी। हूँह ! तुमने तो कुछ चूहों और मेढ़कों को जन्म दिया है।" यह सुनते ही छोटी रानी बेहोश हो गई।

निष्ठुर बड़ी रानियों ने जंजीर को नहीं हिलाया और वे चुपचाप षड्यंत्र करने में जुट गईं। उन लोगों ने एक गमले में आठों नवजात शिशुओं को डाला और पिछवाड़े के बगीचे में एक गड्ढा खोदकर उसमें दफन कर दिया। लौटते समय कुछ चूहे एवं मेढ़क के बच्चे एक टोकरी में लेकर आईं और उसे छोटी रानी के समीप रखकर जंजीर को हिला दिया। राजा फिर ढाक-ढोल, गाजा-बाजा, मणि-माणिक्य, नौकर-चाकर, पंडित-पुरोहित को लेकर पहुंचे। बड़ी रानियों ने गमगीन होकर अपने आँसू पोंछने का अभिनय कर चूहों और मेढक के बच्चों की टोकरी को राजा के सामने कर दिया। उसे देखते ही राजा क्रोध से आग-बबूला हो गए। उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि इन चूहों और मेढकों को जमीन में गाढ़ दो और इसके साथ ही छोटी रानी को उन्होंने राजमहल से बाहर निकालने का हुक्म दे दिया।

बड़ी रानियों की तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उनकी आँखों का काँटा सर्वदा के लिए दूर हो चुका था। छोटी रानी को तो उन लोगों ने राजा से मिलने भी नहीं दिया और उनका राजसी वस्त्र उतरवाकर उसे दासी की तरह भटकने को मजबूर कर दिया।

दिन बीतने लगे। बड़ी रानियों के तो मजे हो गए, पर राजा उदास रहने लगे। उनके मन की शांति छिन गई। उन्हें किसी काम में मन नहीं लगता था। राजा के बगीचे में फूल नहीं खिलते थे। राजा ने पूजा-पाठ भी करना छोड़ दिया था।

एक दिन एक अद्भुत बात हुई। राजा के माली ने देखा कि बगीचे में चंपा के सात और चमेली का एक फूल खिला है। उसने राजा को यह बात बताई। राजा ने उसे आदेश दिया, "वे फूल तोड़कर लाओ। आज उन्हीं फूलों से मैं पूजा करूँगा।"

माली फूल तोड़ने बगीचे में गया। उसे देखते ही चमेली के फूल ने चंपा के फूलों से कहा, "सात भाई चंपा, जागो रे जागो।" तभी सातों चंपा के फूलों ने एक साथ कहा, "क्यों बहन चमेली, हमें क्यों बुला रही हो?"

चमेली बोली, "राजा का माली आया है, उसे फूल तोड़ने दोगे या नहीं?"
देखते-ही-देखते चंपा के सातों फूल ऊपर उठ गए और उन्होंने एक स्वर में कहा"

नहीं देंगे, नहीं देंगे फूल
और ऊपर उठेंगे
पहले आए राजा
फिर देंगे फूल।"

यह देख माली अवाक् ! उसने ऐसा चमत्कार अपने जीवन में कभी नहीं देखा था। फूल की डलिया फेंककर वह दौड़ा-दौड़ा राजा के पास गया और उन्हें सारी बातें बताईं। सुनकर राजा आश्चर्यचकित रह गए। तुरंत सभी सभासदों के साथ वहाँ उपस्थित हुए।
फूल तोड़ने राजा जैसे ही आगे बढ़े, चमेली फूल ने चंपे के फूलों से कहा, “ 'सात भाई चंपा' जागो रे जागो।"
चंपा के फूलों ने पूछा, "क्यों बहन, किसलिए बुला रही हो?"

चमेली बोली, "राजा स्वयं आए हैं। उन्हें फूल तोड़ने दोगे या नहीं?" चंपा के फूल और ऊपर उठ गए और एक स्वर में बोले,
"नहीं दूंगा, नहीं दूँगा फूल
उठूँगा और ऊपर
पहले राजा की बड़ी रानी आएगी,
तब दूँगा फूल।"

यह कहकर चंपा के फूल और ऊपर उठ गए। राजा ने बड़ी रानी को बुलवाया। बड़ी रानी शंख बजाती हुई फूल तोड़ने के लिए आगे बढ़ी। उन्हें देख चंपा के फूलों ने कहा-

"नहीं दूंगा, नहीं दूँगा फूल,
उठूँगा और ऊपर
पहले आए मँझली रानी,
फिर दूँगा फूल।"
राजा ने मझली रानी को बुलवाया। फिर एक-एक कर सारी रानियाँ आईं, परंतु फूल ऊपर उठते गए।

राजा हताश होकर जमीन पर बैठ गए। तब फूलों ने कहा-

"नहीं दूंगा, नहीं दूँगा फूल,
उठूँगा और ऊपर
पहले राजा की छोटी रानी आएगी,
तब दूँगा फूल।"

लेकिन छोटी रानी है कहाँ? राजा ने उसकी खोज में नौकरों, रक्षकों, सिपाहियों को राज्य के चारों ओर भेजा। सभी ने उसे ढूँढ़ना आरंभ किया। अंत में वह मिल ही गईं। उसके कपड़े फटे हुए थे। हाथ-पैर काफी गंदे थे। उसकी हालत अत्यंत दयनीय थी। उसी हालत में वह फूल तोड़ने के लिए आगे बढ़ी। चमत्कार हो गया। सारे फूल एकाएक नीचे आ गए। चमेली फूल भी उसके साथ नीचे आ गया। चंपा के सातों फूलों से एक-एक खूबसूरत राजकुमार और चमेली के फूल से एक अपूर्व सुंदरी राजकुमारी प्रकट हुई। सभी 'माँ-माँ' कहकर छोटी रानी से लिपट गए।

राजा सब माजरा समझ गए। खुशी से उनकी आँखों से आँसू निकल पड़े। उन्होंने तुरंत सभी बड़ी रानियों को काँटे के ऊपर लिटाकर जमीन में गाड़ देने का आदेश दिया एवं छोटी रानी, सातों राजकुमार और राजकुमारी के साथ राजभवन में आए। राजभवन में आनंद एवं उल्लास छा गया।

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