सात भाई और एक बहन : असमिया लोक-कथा
Saat Bhai Aur Ek Behan : Lok-Katha (Assam)
पुराने जमाने की बात है। एक गाँव में परिवार रहा करता था। उसमें सात लड़के और एक लड़की थी। माता-पिता जल्दी ही गुजर गए तो बच्चों ने भी जल्दी ही व्यावहारिक काम सीख लिया। शुरू में सबको गुजारा चलाने में काफी परेशानी आई लेकिन समय के चलते सब कुछ आसान होने लगा। उस समय समाज के पुरुषों का काम जंगली जानवरों का शिकार करना और औरतों का काम सिर्फ घर के कामकाज करना और बच्चों को सम्भालना होता था।
सात भाई और एक बहन बड़े प्रेम से मिल-जुलकर रहते थे। दिन निकलते ही सातों शिकार के लिए निकल जाते और बहन सबके लिए खाना पकाती थी और घर के कामकाज करती थी। भाई जब जंगल से वापस आते तो साथ में बड़े-बड़े जानवर, पक्षी आदि को मारकर लाते। बहन उसके मांस को बड़े चाव से पकाती और सब भोजन करके तृप्ति का अनुभव करते।
ऐसे ही दिन गुजरने लगे। एक दिन की बात है। सात भाई जंगल को गए थे। शाम होने चली थी। बहन सबके लिए खाना बना रही थी। जब वह सब्जी के लिए हरी साग काट रही थी, चाकू की तेज धार से उसकी एक ऊँगली कट गई। कटी ऊँगली से खून की धार बहने लगी। उसने सोचा यदि भाइयों ने देखा तो वे बड़े दुखी हो जाएँगे। मुझे उन्हें यह बात नहीं बतानी चाहिए। उसने बहते खून को अपने अपनी ओढ़नी से पोंछना चाहा, किंतु लगा कि उसके भाई देख लेंगे। फिर उसने दीवार पर पोंछना चाहा, फिर लगा यहाँ तो और अच्छी तरह से दिखाई देगा। वह बेचैन होकर इधर-उधर घूमने लगी। कोई ऐसी जगह नहीं मिली जहाँ उसका बहता खून भाइयों की दृष्टि से बच सके। अंत में कोई उपाय न देखकर उसने उसी साग से पोंछ लिया जिसकी वह सब्जी बनाने जा रही थी।
शाम को भाई जंगल से वापस आए। बहन ने खाना परोसा। आज सातों को साग बहुत स्वादिष्ट लगा। सातों अपनी ऊँगलियाँ चाटते रह गए। बहन की पाककला की तारीफ की। अपनी तारीफ सुनकर बहन भी खुशी से फूली नहीं समाई। दिन भर के थके होने के कारण सातों भाई जल्दी हो सो गए।
अगली सुबह रोज की तरह खा-पीकर सातों भाई जंगल की ओर निकल पड़े। जब शिकार तलाशते-तलाशते थक गए, सभी एक पेड़ की छाँव में बैठकर आराम करने लगे। बातों-बातों में रात के भोजन में बहन के द्वारा बनाई गई साग की चर्चा होने लगी। सब कह रहे थे कि इतनी स्वादिष्ट साग की सब्जी आज तक नहीं खाई थी। सबने तय किया कि आज इसके बारे में बहन से जरूर पूछेगे और जान लेंगे कि साग में उसने क्या-क्या मिलाया था?
शाम को सातों भाइयों ने दुबारा बहन की पाक कुशलता की तारीफ करते हुए पूछा- “प्यारी बहन कल रात के साग में तुमने क्या-क्या मिलाया था?” बहन बताना नहीं चाहती थी। वह सोच रही थी कि अगर उन्हें पता चला कि उसकी ऊँगली कट गई है, तो सभी बहुत दुखी हो जाएँगे। इसलिए उसने जवाब में कहा- “कुछ नहीं!”
बड़े भाई ने कहा- “प्यारी बहना, तुम्हें बताना ही पड़ेगा। मैं जानना चाहता हूँ कि हमारी बहन ने इतना स्वादिष्ट साग कैसे बनाया? तुम्हे मेरी सौगंध है।”
बड़े भाई का सब सम्मान करते थे। बहन को सच बोलना ही पड़ा। उसने धीरे-धीरे सारी बात बताते हुए कहा- “बस इतना ही, अपना खून मिला दिया था और ज्यादा कुछ नहीं।”
यह सुनकर छः भाइयों के मन में एक कुटिल खयाल आने लगा। वे सोचने लगे इसके खून की चंद बूंदे इतनी स्वादिष्ट हैं, तो इसका मांस कितना स्वादिष्ट होगा! रात के खाने के बाद सातों सोने के लिए गए। सातों में फिर उसी बात की चर्चा छिड़ गई। बड़ा भाई कहने लगा- “अरे, खून की कुछ बूंदे इतनी स्वादिष्ट हैं, तो शरीर का मांस कितना स्वादिष्ट होगा!” सब ने बड़े भाई की बात में हाँ में हाँ मिलाया।
अगले दिन शिकार के लिए जाते समय सातों ने यह योजना बनाई कि बहन को मारकर उसका मांस बनाएँगे। खूब स्वादिष्ट होगा! सातवें भाई को अपने बड़े भाइयों की युक्ति बिल्कुल भी उचित नहीं लगी। वह अपनी प्यारी बहन को बचाने के लिए बेचैन हो गया। वह खुलकर इसका विरोध नहीं कर सकता था क्योंकि छः भाई एक तरफ थे। शिकार करने के बाद सभी भाई ने मिलकर एक टीले पर बाँस के एक चांग” (बाँस के फट्टों से बना चबूतरा) का निर्माण किया। उनकी योजना यह थी कि बहन को फुसलाकर यहाँ लाएँगे, तीर मारकर उसकी हत्या करेंगे और उसका स्वादिष्ट मांस खाएँगे।
अगले दिन बड़े भाई ने बहन से कहा- “प्यारी बहन, तुम बड़ी हो गई हो और शादी के लायक हो गई हो। मैंने तम्हारे लिए एक संदर से वर की तलाश की है। आज हम उसका घर देखने जाएंगे। तुम्हें भी सज-सँवरकर हमारे साथ चलना होगा।” बहन शादी की बात से बहुत खुश हुई। तुरंत तैयार होकर भाइयों के साथ चलने लगी। चलते-चलते वह थक गई। वह बड़े भाई से पूछने लगी- “मेरा ससुराल अब कितना दूर है?”
बड़ा भाई बोला- “बस अभी पहुँचने वाले हैं।”
दूर से दिखाई दे रहे टीले पर बने चांग को दिखाते हुए भाई बोला”वह देखो तुम्हारा ससुराल, जहाँ तुम राज करोगी।”- यह सुनकर बहन आनंदित हो उठी।
चांग पर पहुँचते ही बड़े भाई ने अन्य भाइयों को बहन को चांग पर खड़ी करके रस्सी से बाँस के खंभे के सहारे बाँधने का आदेश दिया। सभी मिलकर फूर्ती से बहन को बाँधने लगे। बहन असहाय थी। अपने सभी भाइयों को हत्यारे के रूप में देखकर बहन का हृदय हाहाकार करने लगा। वह ईश्वर को याद करते हुए कहने लगी- “हे ईश्वर अब तुम ही मेरा सहारा हो। मेरे सातों भाई मेरी हत्या करना चाहते हैं। इनमें से एक भी ऐसा नहीं है जिसके दिल में मेरे लिए दया और प्रेम है।”- अपनी बहन की बातों से सातवाँ भाई द्रविभूत हो उठा। बहन की पुकार पर वह तड़पकर रह गया पर छः भाइयों का प्रतिवाद करने का साहस नहीं जुटा पाया। बहन को निर्ममता से बाँधने के बाद बड़े भाई ने सबको बारी-बारी से उस पर वाण से प्रहार करने का आदेश दिया।
बड़ा भाई हाथों में धनुष-वाण लेकर जब प्रहार करने को तैयार हुआ तब बहन भाई के सामने हाथ जोड़कर करुण स्वर में गाने लगी-
मारो मारो भैया
छाती में लक्ष्य करके भैया छाती में लक्ष्य करके
तुम्हारा तीर तुम्हारा धनुष जंगल को जाएगा भैया
मारो मारो भैया छाती में लक्ष्य करके
छाती में लक्ष्य करके भैया छाती में लक्ष्य करके।
भाई ने कठोरता दिखाते हुए तीर चलाया पर उसका निशाना विफल हो गया। इसके बाद दूसरा भाई तीर मारने को तैयार हुआ। बहन ने उसके आगे भी हाथ जोड़कर वही करुण गीत दोहराया। उसका भी निशाना चूक गया।
इसी तरह सभी भाइयों ने बारी-बारी बहन की छाती को लक्ष्य करके तीर मारने की कोशिश की। बहन हर बार यही गीत दोहराती रही। छः भाई लक्ष्य-भेद करने में असफल रहे। अब सातवें की बारी थी। छः भाई उसे कहने लगे”पूरी ताकत से तीर चलाना। बहन को एक ही बार में ढेर करना। यदि तुम्हारा निशाना चूक गया, तो तुम जिंदा नहीं बचोगे। हम सब मिलकर तुम्हें मार देंगे।”
बहन ने छोटे भाई की जान खतरे में पड़ते देखा। उसने अपनी जान न्योछावर करके उसे बचाने का निश्चय किया। वह ईश्वर से प्रार्थना करने लगी-“हे ईश्वर, मेरे भाई का तीर मेरी छाती भेदने में सफल हो जाए।” वह करुण गीत गाने लगी-
मारो मारो भैया
छाती में लक्ष्य करके भैया छाती में लक्ष्य करके
तेरा तीर मेरी छाती भेद जाए
मारो मारो भैया
छाती में लक्ष्य करके भैया छाती में लक्ष्य करके।
छोटे भाई ने तीर चलाया। उसका तीर बहन के मर्म पर जा लगा। वह दर्द से तड़प उठी। कुछ देर छटपटाने के बाद उसके प्राण पखेरू उड़ गए। वह निस्पंद हो गई। अपनी कुटिल योजना सफल होने पर छः भाइयों की बाँछे खिल गई।
सातों ने मिलकर मृत बहन का शरीर चांग से नीचे उतारा। छः भाइयों ने मिलकर बहन के शरीर की बोटी-बोटी काट डाली। बड़े भाई ने सातवें को जंगल से लकड़ी और पानी लाने का आदेश दिया। छोटा भाई पानी और लकड़ियों के साथ-साथ कुछ मछली और केकड़े ले आया। वह अंदर-अंदर बहुत व्यथित था। उसके भाई बहन का मांस बड़े चाव से पका रहे थे। वह अपनी प्यारी बहन का मांस नहीं खा पाएगा। अगर नहीं खाएगा, तो अन्य भाई उसे गाली देंगे। उसने मांस बनाते समय चुपके से अपने साथ लाई मछलियाँ और केकड़े को आग में दे दिया और अपना खाना जुगाड़ किया।
चावल और मांस तैयार हो गया। जमीन पर केले के पत्ते बिछाकर उसमें सबके लिए खाना परोसा गया। छोटे भाई ने पहले ही अपने बैठने के स्थान पर एक छोटा गड्ढा खोद रखा था। उसने अपनी पत्तल में परोसे गए नरमांस को चुपके से गड्ढे में डाल दिया और मछली-भात खाने लगा। अन्य भाई बहन की हड्डियाँ चबाने लगे, वह केकड़ा चबाने लगा। जब सबने बहन के शरीर के स्वादिष्ट मांस से अपना पेट भर लिया, तो बड़े ने सातवें भाई को जूठा साफ करने को कहा। उसने बहन की बची-खुची हड्डियाँ और शरीर के अन्य भाग जैसे सिर, नाखून, पंजे आदि सभी इकट्ठा करके उसी गड्ढे में डाल दिया और मिट्टी से ढंक दिया।
कुछ समय बाद उस स्थान पर बाँस का एक पौधा उग आया। ध रे-धीरे वहाँ बाँसों का झुरमुट बन गया। एक बार कहीं से एक संत आए और उसी बाँस की झुरमुट तले छुपकर मल त्याग करने लगे। उसी समय आकाशवाणी हुई- “संत दुर्गध आ रही है! संत दुर्गंध आ रही है!” बार-बार यह आकाशवाणी सुनाई देने लगी तो संत ने झटपट उस स्थान को साफ किया। उन्होंने झुरमुट में से एक बाँस काटा और अपने साथ ले गए। उस बाँस से उन्होंने एक केन्द्रा (एक पुराना वाद्य यंत्र) बनाया। वे उसे बजा-बजाकर दिनभर लोगों के घर जाकर भिक्षा माँगते थे और बदले में खूब सारा उपदेश देते थे।
एक दिन संत भिक्षा के लिए बड़े भाई के द्वार पर गए। तब तक छः भाइयों का विवाह हो चुका था। केवल सातवाँ कुँवारा था। ज्यों-ही संत ने बड़े भाई के आँगन में कदम रखा, त्यों-ही संत का केन्द्रा स्वयं बोल उठा-
नहीं बजो रे केंद्रा, यही है दुश्मन सबसे बड़ा
बड़े भाई के घर, नहीं बजो रे केंद्रा
दया प्रेम सब छोड़कर
रिश्ते में यही दाग लगाया
नहीं बजो रे केंद्रा, यही है दुश्मन सबसे बड़ा
बड़े भाई के घर, नहीं बजो रे केंद्रा।
योगी के बाजे से बार-बार निकल रही इस रूदन से बड़े भाई के पसीने छूटने लगे। उसने अपनी पत्नी से योगी को तुरंत भिक्षा देकर विदा करने को कहा।
इसी तरह योगी बारी-बारी से छः भाइयों के द्वार पर उपस्थित हुए। उनके आँगन पर कदम रखते ही केन्द्रा से स्वयं यही गीत बजने लगता। उन्होंने भी अपनी पत्नी को तुरंत ही कुछ भिक्षा देकर विदा करने को कहा। उनके मन में यह डर समा गया कि यदि इसी तरह योगी का केन्द्रा बजता रहा तो उनकी यह पोल खुल जाएगी कि वे अपनी बहन के हत्यारे हैं। अंत में संत सातवें भाई के घर पहुँचे जो अभी तक कुवाँरा था। वह अकेले रहता था। जब योगी उसके द्वार पर उपस्थित हुए केंद्रा बोल उठा-
बजो रे बजो केंद्रा, मेरे सबसे छोटे भाई के घर
मन की बात मन में छुपाकर
युग-युग से रख रहा है अंतर में
बजो रे बजो केंद्रा यही है मेरे सबसे प्यारे भाई का घर।
योगी के केंद्रा से प्यारा और दिलचस्प गीत बजते सुनकर छोटे भाई ने उन्हें सम्मान के साथ अपने घर में बैठने के लिए आसन दिया। ताम्बूल-पान और जलपान से उनका सत्कार किया। इसके बाद केंद्रा के विषय में चर्चा हुई। योगी ने केंद्रा की जन्म कहानी सविस्तार सुनाई। छोटे भाई ने उस केंद्रा को उसे देने की प्रार्थना की तो योगी ने उसे छोटे भाई को सौंप दिया।
योगी के चले जाने के बाद छोटे भाई ने केन्द्रा को अपने बिस्तर के सिरहाने की तरफ एक साफ-सुथरे स्थान पर धूप-दीप जलाकर सम्मान के साथ रखा। कुछ दिनों के बाद छोटे भाई के घर में कुछ परिवर्तन दिखाई देने लगे। जब भी वह काम से लौटकर घर आता, सारा घर साफ-सुथरा पाता। जब रोज-रोज यही बात दोहराने लगी तो छोटे भाई ने अपनी भाभियों के घर जाकर पूछा- “मेरी गैर-हाजिरी में आप लोग मेरा घर साफ करते हैं क्या?”
सभी ने जवाब दिया- “हमें अपने घर के काम-काज से फुर्सत नहीं है, तुम्हारा घर कैसे साफ करती?”
छोटे भाई ने निश्चय किया कि आज वह छुपकर देखेगा कि उसका घर कौन साफ करता है। वह घर के कोने में छुप गया। घर सूनसान होते ही स्थापित केंद्रा से उसकी बहन की शक्ल की एक लड़की निकली। घर का सारा काम किया और फिर उस केंद्रा में समा गई।
छोटे भाई ने यह बात अपनी बडी भाभी को बताई। बडी भाभी ने उसे समझाया- “ज्यों-ही लड़की केंद्रा से बाहर निकलेगी तुम केंद्रा को आग के हवाले कर देना। फिर उस पर तुलसी-जल छिड़क देना। फिर देखना क्या होता है?”
छोटे भाई ने बड़ी भाभी के कहे मुताबिक काम किया। उसने लड़की के निकलते ही केंद्रा को आग में डाल दिया और लड़की पर पवित्र तुलसी-जल का छिड़काव किया। तुलसी-जल के स्पर्श से वह मानव रूप में आई। भाई ने देखा यह तो उसकी प्यारी बहन है। उसने अपनी बहन को गले से लगा लिया। उसके बाद दोनों भाई-बहन बड़े प्रेम से जीवन बिताने लगे।
(सीख– निस्वार्थ प्रेम ही रिश्तों को बनाए रखता है। रिश्तों को कलंकित करने वाले कभी छुप नहीं सकते।)
(साभार : डॉ. गोमा देवी शर्मा)