Saahi Aur Kabootar : Arabian Nights

साही और कबूतर -अलिफ़ लैला

एक बार एक साही एक खजूर के पेड़ के नीचे रहने के लिये आया। उसी पेड़ के ऊपर एक कबूतर अपनी पत्नी के साथ रहता था।

साही ने सोचा कि यह कबूतर का जोड़ा तो इस पेड़ के फल खाता है पर मुझे इस पेड़ के फल खाने का कोई मौका नहीं है सो मुझे उन फलों को खाने के लिये कोई चाल खेलनी चाहिये। उसने उस पेड़ के पास ही एक गड्ढा खोद लिया और उसी में अपनी पत्नी के साथ रहने लगा।

उसने अपनी पूजा और प्रार्थना करने के लिये एक और जगह चुन ली और वह वहाँ प्रार्थना करने के लिये यह दिखाने के लिये जाने लगा जैसे कि वह अल्लाह का बहुत बड़ा पुजारी है। उन कबूतरों में से नर कबूतर ने उसको प्रार्थना करते देखा तो वह उससे बहुत प्रभावित हुआ और उसके मन में साही के लिये दया और प्रेम पैदा हो गया।

कबूतर ने उससे पूछा — “तुम कितने सालों से ऐसा कर रहे हो साही?”

साही बोला — “हो गये होंगे करीब 30 साल।”

कबूतर ने फिर पूछा — “और तुम खाते क्या हो?”

साही ने जवाब दिया — “जो कुछ भी खजूर के पेड़ से गिर जाता है वही खा लेता हूँ।”

कबूतर ने फिर पूछा — “और तुम पहनते क्या हो?”

साही बोला — “में काँटे पहनता हूँ और वही मेरे लिये ठीक भी हैं।”

कबूतर ने फिर पूछा — “और तुमने रहने के लिये किसी और जगह की बजाय यही जगह क्यों चुनी है?”

साही ने बड़े भोलेपन से जवाब दिया — “जो अनजान हैं उनको सिखाने के लिये और जो गलती करते हैं उनको ठीक करने के लिये।”

कबूतर बोला — “मुझे तुम्हारा यह किस्सा सुन कर अच्छा लगा पर अब तुम मुझे अपनी पत्नी के बारे में कुछ बताओ।”

साही बोला — “मुझे डर है कि कहीं ऐसा न हो कि तुम जो कुछ कह रह हो वह न करो और तुम एक ऐसे चरवाहे की तरह से हो जाओ जिसने मौसम में बीज बोने से यह कहते हुए मना कर दिया कि “मुझे डर है कि मेरे बीज मेरी उम्मीदों के मुताबिक फसल नहीं उगायेंगे, और जल्दी में बीज बोने से तो मेरी मेहनत बेकार ही जायेगी।”

पर जब फसल काटने का समय आया और सारे लोग अपनी अपनी फसल काट कर ले जाने लगे तो वह अपने उस फैसले के लिये इतना पछताया कि बेचारा मर ही गया।”

कबूतर बोला — “तो फिर मैं क्या करूँ जिससे कि मैं इस दुनियाँ के बन्धन से छूट जाऊँ?”

साही उसको समझाते हुए बोला — “अपने आपको दूसरी दुनियाँ के लिये तैयार करो। थोड़े से खाने में ही सन्तुष्ट रहो।”

कबूतर ने पूछा — “ऐसा मैं कैसे कर सकता हूँ? मैं तो चिड़िया हूँ। मैं तो इस खजूर के पेड़ से ज़्यादा आगे अपनी रोज की रोटी के लिये जा ही नहीं सकता। और अगर मैं ऐसा करता भी हूँ तो मुझे किसी दूसरी जगह का पता ही नहीं है कि मैं जाऊँ कहाँ।”

साही बोला — “तुम यह पेड़ हिला सकते हो ताकि बहुत सारे फल नीचे गिर जायें। वे फल तुम और तुम्हारी पत्नी के लिये काफी होंगे। और फिर तुम और तुम्हारी पत्नी किसी पेड़ के नीचे घोंसला बना कर उसमें रहो ताकि वहाँ तुम शान्ति से रह सको। पेड़ से गिरे हुए सारे फल अपने घोंसले में ले जाओ, उनको उस समय के खाने के लिये अपने घर में इकट्ठा करके रखो जब फल नहीं गिरते। और ब्र

मचय18 का पालन करो।”

कबूतर ने उसको यह सब बताने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद दिया और फिर वहाँ से चला गया। उसने और उसकी पत्नी दोनों ने बड़ी मेहनत से उस पेड़ को हिला कर उसके सारे फल नीचे गिरा लिये।

जब वह कबूतर और उसकी पत्नी ऊपर से पेड़ हिला कर फल गिरा रहे थे तो साही उनको बीन बीन कर अपने घर में इकट्ठा कर रहा था। साही ने यह सोचते हुए उन फलों से अपना घर भर लिया कि जब कबूतर को फलों की जरूरत होगी तब वह उन्हें मुझसे माँग लेगा।

इस तरह अब इन कबूतर पति पत्नी को अपने खाने के लिये मेरे आसरे रहना पड़ेगा। तब मैं उनको किसी समय मार लूँगा और खा जाऊँगा। और उसके बाद तो फिर सारे खजूर मेरे ही होंगे। उधर जब कबूतरों ने खजूर का पेड़ हिला कर उसके सारे फल नीचे गिरा लिये तो वे उन फलों को इकट्ठा करने के लिये नीचे आये तो उन्होंने देखा कि साही तो सारे फल वहाँ से उठा कर अपने घर ले गया है और वहाँ तो एक भी खजूर नहीं है।

वह साही से बोला — “हमको यहाँ जमीन पर तो कोई फल दिखायी नहीं दे रहा और अब तो हम यह भी नहीं जानते कि अब हम क्या खायें।”

साही बोला — “हो सकता है कि उन फलों को हवा उड़ा कर ले गयी हो पर अब तुम फलों से अपना ध्यान हटा कर भगवान में अपना ध्यान लगाओ। यही मोक्ष का तरीका है।”

वह उनको तब तक उपदेश देता रहा जब तक कि उन लोगों का उसमें विश्वास पैदा नहीं हो गया। उसके बाद वह अपने घर में कूद गया।

उसको इस तरह करते देख कर कबूतर बोला — “आज की रात का कल की रात से क्या रिश्ता? साही, तुमको मालूम होना चाहिये कि दुखियों का भी कोई सहारा है।

चालाकियों और अत्याचारों से जरूर बचना चाहये कहीं ऐसा न हो कि उनका फल तुमको खुद को ही न भोगना पड़े जैसे कि उन लोगों को भोगना पड़ा जिन्होंने सौदागर को तंग किया था।”

“वे लोग कौन थे और उन्होंने क्या फल भोगा था? किन लोगों ने सौदागर को कैसे तंग किया था?”

कबूतर आगे बोला — “एक बार सिन्ध नाम का एक शहर था। वहाँ एक बहुत ही अमीर सौदागर रहता था। एक बार उसने अपने ऊँटों पर अपना सामान लादा और उसे बेचने के लिये चल दिया।

दो धोखा देने वाले यह सब देख रहे थे सो वे दोनों भी सौदागर का वेश रख कर उसके पीछे पीछे चल दिये। पहली बार जहाँ वह अमीर सौदागर रुका वे दोनों भी वहीं रुक गये।

वहाँ उन्होंने उसको धोखा देने का और उसका सब कुछ ले लेने का प्लान बनाया। पर इसी समय उन दोनों ने आपस में भी एक दूसरे को भी धोखा देने का प्लान बनाया।

इससे अगर वे एक दूसरे को धोखा देने में कामयाब हो गये तो एक अकेला आदमी ही उस अमीर सौदागर के सारा सामान का मालिक बन जायेगा।

यह सब सोच कर उन दोनों में से एक ने खाना लिया, उसमें जहर मिलाया और अपने साथी की तरफ चला। उधर दूसरे साथी ने भी यही किया। उसने भी अपना खाना लिया उसमे जहर मिलाया और अपने साथी की तरफ चल दिया।

और दोनों ने एक दूसरे का वह जहरीला खाना खाया। खाना खा कर वे बहुत देर तक उस अमीर सौदागर के पास बैठे रहे थे फिर वहाँ से चले गये पर जब वे बहुत देर तक वापस नहीं आये तो उस अमीर सौदागर ने उनको इधर उधर ढूँढा तो उन दोनों को मरा हुआ पाया।

वह जान गया कि वे धोखा करने वाले थे और उसके साथ धोखा करने आये थे पर वे अपने ही जाल में फँस कर मर गये।

 
 
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