सादे लोग (रूसी कहानी) : मैक्सिम गोर्की

Saade Log (Russian Story) : Maxim Gorky

मैं मकई के खेत के साथ-साथ नरम, भूरी सड़क पर सावधानी से चल रहा था। मकई के पौधे मेरी छाती तक पहुँच रहे थे। सड़क इतनी सँकरी थी कि चक्रमार्ग पर तारकोल से पुती, टूटी और कुचली हुई बालें पड़ी थीं।

भारी बालें इधर-उधर झूम रही थीं। चूहे शोर मचाते मकई के खेत में दौड़ रहे थे। ऊपर आकाश में भारद्वाज पक्षी और अबाबीलें देखी जा सकती थीं, जो इस बात का प्रतीक थीं कि पास ही नदी और आबादी है। सोने के समुद्र पर घूमती हुई मेरी आँखें गिरजे की मीनार को ढूँढ़ रही थीं— मीनार, जो जहाज के मस्तूल की तरह आकाश में खड़ी थी। वृक्षों को ढूँढ़ता हुआ, जो दूर बादबानों की तरह दिखाई देते थे, परंतु रूक्ष, बिना बोए मैदान के अतिरिक्त कुछ भी नजर नहीं आया। मैदान दक्षिण-पश्चिम की ओर नरम ढलानों में बदल गया था और आसमान की तरह निर्जन एवं शांत था।

मैदान में तुम अपने आपको प्लेट पर बैठी हुई मक्खी के समान नजर आओगे। जब तुम इसके बिलकुल मध्य में पहुँचोगे तो ऐसा महसूस करोगे कि सूर्य से आलिंगन करती हुई, तारों से घिरी और उनकी सुंदरता से चौंधियाई हुई पृथ्वी ही विश्व का केंद्र है।

वह लंबा-चौड़ा, लाल रंग से लिपटा, बर्फ जैसे सफेद बादलों के साथ, परंतु नीले क्षितिज में गिरता हुआ मैदान था। सूर्यास्त की सुनहरी धूल मकई की बालों पर छिटकी हुई थी । मकई के फूल गहरे रंग के हो चुके थे और सायंकाल की शीघ्र होनेवाली शांति में पृथ्वी का गाना स्पष्ट रूप से सुना जा सकता था।

आकाश में गुलाबी पंखों के आकार के बादल छाए हुए थे। उनमें से एक ने मेरी छाती को छुआ और मोजिज की छड़ी की तरह शांतिमय विचारों के समुदाय को जन्म दिया। मैं सायंकाल की पृथ्वी का आलिंगन करना चाहता था और उसके कानों में प्रेम के शब्द कहना चाहता था- - ऐसे शब्द, जो पहले कभी नहीं कहे गए थे।

आकाश पर तारे छिटके हुए थे और पृथ्वी एक तारा थी । पृथ्वी पर मनुष्य छिटके गए थे और मैं एक मनुष्य था —निडरता से हर रास्ते पर घूमता हुआ, जीवन के समस्त सुखों-दुःखों को देखता हुआ, बाकी मानव जाति की तरह कड़वा और मीठा घूँट पीता हुआ ।

मुझे भूख लगी थी और प्रातः काल से मेरे थैले में रोटी का एक टुकड़ा भी नहीं था । इसने मेरे विचारों में रुकावट डाली और मुझे दुःखी किया । पृथ्वी इतनी धनी है और मनुष्य ने अपना इतना परिश्रम खर्च किया है, फिर भी मनुष्य भूखा !

सड़क एकाएक दाईं ओर मुड़ गई। मकई की कतारें अलग झूम रही थीं, जिनमें से वह घाटी नजर आ रही थी जिसके अधोभाग में एक नदी बह रही थी । शलजम की तरह पीला, नया पुल इसपर बनाया गया था, जिसका प्रतिबिंब नदी के पानी में पड़ता था। पुल के आगे, ढलान की विपरीत दिशा में सात झोंपड़ियाँ खड़ी थीं और कुछ पोपलर के लंबे, घने वृक्ष अपनी घनी छाया उनपर फेंक रहे थे। छोटे बालोंवाला घोड़ा उनके श्वेत-भूरे तनों के बीच अपनी दुम हिलाता हुआ घूम रहा था । धुएँ, तारकोल और भाँग के तर पौधों की तेज गंध आ रही थी। चूजे कर्कश आवाज में बोल रहे थे, बच्चा थकावट के कारण रो रहा था - वह शीघ्र ही सो जाएगा। इन आवाजों के कारण क्या कोई यह नहीं सोच सकता था कि यह सारा दृश्य किसी चालाक कलाकार की जल्दी में की गई उपज थी? नरम, कोमल रंग, जिनका उपयोग उसने किया था, वे धूप से पहले ही फीके पड़ चुके थे।

अर्धचंद्राकार में झोंपड़ी थी, एक वृक्ष था और उसके साथ ही एक छोटा लाल गिरजा था – ऊँचा और तंग, एक आँखवाले पहरेदार की तरह । एक सारस भूमि की ओर झुके हुए लंबी चीख मार रहा था। सफेद कपड़े पहने एक किसान औरत अपने आपको फैलाती हुई और नंगी बाँहें ऊपर उठाती हुई पानी खींच रही थी। ऐसा लगता था, मानो वह किसी भी समय बादलों की तरह तैरने लग जाएगी। कुएँ के चारों ओर चमकीला - काला कीचड़ था, जो पिसा हुआ मखमल-सा नजर आता था और लगभग तीन और पाँच वर्ष की आयु के दो लड़के, कमर तक नंगे, कीचड़ को अपने पीले पाँव से गूंध रहे थे; मानो सूर्य की लाल किरणें इसमें मिलाना चाहते हों। इस अच्छे काम ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। मैंने सहानुभूतिपूर्वक लड़कों को देखा । हाँ, विशेष रुचि के साथ देखा । कीचड़ में सूर्य अपने ही घर की भाँति स्वतंत्र था । वह भूमि में जितना भी गहराई में जाता, उतना ही भूमि और आदमी — दोनों के लिए उत्तम था।

ऊपर से मैं अपनी हथेली की तरह सबकुछ साफ देख सकता था । मैदान में सात झोंपड़ियाँ थीं। वहाँ मुझे कुछ काम नहीं करना था, फिर भी सायंकाल वहाँ के विनम्र लोगों से बात करना सुखकर लगेगा। अतः उन लोगों को आनंदकर और अद्भुत कहानियाँ सुनाने की तीव्र इच्छा लेकर पुल पार कर गया; क्योंकि तुम जानते हो, यह भी मनुष्य के लिए उतना ही जरूरी है, जितना रोटी खाना ।

पुल के नीचे से एक शक्तिशाली, कुरूप व्यक्ति, बिना दाढ़ी बनाए, थैले जैसा पाजामा और मिट्टी से सनी लट्ठे की कमीज पहने मेरी तरफ इस तरह आया मानो मिट्टी का एक बड़ा ढेर जीवित हो गया हो।

"शुभ प्रभात!"

"तुम्हें भी, कहाँ जा रहे हो तुम? "

"यह कौन सी नदी है? "

"यह ? सागेडक।"

उसके बड़े सिर पर सफेद बाल लहरा रहे थे। उसकी हलकी कटी मूँछें चीनी आदमी की तरह किनारों पर लटक रही थीं। उसकी छोटी आँखें तेज दृष्टि और शंका से मुझे घूर रही थीं; स्पष्टतया इसलिए कि मेरे कपड़ों में कई छिद्र थे और टुकड़े जुड़े थे। गहरी साँस लेते हुए उसने तंबाकू पीनेवाली मिट्टी की नली जेब से निकाली और आँखों को मरोड़ते हुए ध्यान से काले कटोरे को देखकर पूछा—

" तुम्हारे पास दियासलाई है क्या ? "

"हाँ, है ।"

"कुछ तंबाकू?”

"थोड़ा सा ।"

वह थोड़ी देर उदास खड़ा रहा और बादलों में डूबते सूर्य को देखता रहा । फिर उसने पूछा—

"यह मॉस्को का तंबाकू है क्या?"

"नहीं, यह रोमंस्क-रीमोरिको का है । "

"ओह!" उसने अपनी झुर्रीदार नाक को ठोकते हुए कहा, "यह अच्छा तंबाकू है । '

मैं बिना मेजबान के झोंपड़ी में नहीं जा सका। इसलिए एक तरफ खड़ा हो गया, जब तक उसके धीमे से पूछे गए प्रश्न समाप्त नहीं हो गए कि मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, कहाँ जा रहा हूँ और किस काम के लिए। मैं किसी तरह उससे बात करने की चिंता से असंतुष्ट होता जा रहा था।

"काम?" वह अपनी मूँछों में से भनभनाया – “यहाँ किसी प्रकार का काम नहीं है । यहाँ अब किस प्रकार का काम रह गया है?"

वह नदी में थूककर और मुँह मोड़कर चला गया।

दूसरे किनारे से पानी में तैरती गंभीर बतख आई । उसके पीछे उसके बच्चे थे। दो छोटी लड़कियाँ उनके पीछे आईं। एक, जिसने लाल रूमाल बाँधा हुआ था तथा जिसके हाथ में छड़ी थी, बतख से थोड़ी बड़ी थी; दूसरी सफेद, मोटी, ऐंठे हुए घुटनोंवाली पक्षी की तरह शांत ।

“यूफिम!” एक अनदेखी चुभती हुई आवाज ने पुकारा। आदमी ने अपना सिर घुमाया और अनुमोदन करते हुए कहा, “क्या गला पाया है!"

फिर उसने अपने पाँव की गंदी अंगुलियों को मलना शुरू कर दिया, जिनका मांस फट गया था। फिर उसने अपने टूटे नाखूनों को देखा और अंत में कहा, "संभवत: तुम लिख-पढ़ सकते हो?"

"तुम किस काम के लिए पूछते हो? "

“यदि तुम पढ़ सकते हो तो मृतक के लिए पुस्तक पढ़ दो। "

इस विचार से वह प्रसन्न प्रतीत होता था । एक खुशी की लहर उसके चौड़े चेहरे पर फैल गई।

"क्या तुम इसको काम नहीं मानते?" उसने अपनी आँखों की झपकी छिपाते हुए पूछा, "मैं तुम्हें दस कोपे दूँगा और मृतक की एक कमीज भी । "

"और भोजन ?" मैंने मजा लेते हुए पूछा।

" स्वाभाविक रूप से।"

"मृतक कहाँ है?'

"झोंपड़ी में, अंदर आओगे क्या ?"

हम बगीचे के पीछे की ओर गए, जहाँ से चीखें आ रही |

“यूफिम, यूफिम!”

नदी से साथ-साथ झाड़ियों के पीछे नरम सड़क पर साए हमारी ओर बढ़ रहे थे। मैं बच्चों की आवाजें और पानी के छींटों को सुन रहा था। कोई तख्त की योजना बना रहा था । सिसकियों की आवाज हवा में तैर रही थी । बूढ़े आदमी ने सावधानी से कहा, "यहाँ एक औरत थी, जो पढ़ा करती थी; अचंभा थी वह! वे उसे शहर ले गए और वह अपनी टाँगों का प्रयोग खो बैठी - वह दया की मूर्ति थी । उसके जबान नहीं थी । वह बहुत परोपकारी थी, केवल झगड़ालू थी।"

उसी समय मेढक से जरा बड़ा एक कुत्ते का पिल्ला भागता हुआ मेरी ओर आया; उसने अपनी टाँगें और दुम उठाई तथा अपनी लाल घमंडी नाक से हवा को सूँघते एवं डराते हुए भौंका ।

"नीचे!”

पीछे कहीं से नंगे पाँव एक स्त्री प्रकट हुई और गुस्से से ताली बजाते हुए चिल्लाई-

"यूफिम, मैं बुलाती हूँ; और तुम्हें बुलाती हूँ ।"

"जैसे मैंने सुना ही न हो!"

"तुम कहाँ चली गई हो?"

मेरे साथी ने उसे चुपके से पीली नाशपाती दिखाई और मुझे साथवाली झोंपड़ी के सेहन में ले गया । नंगे पाँववाली स्त्री हमें गालियाँ देती हुई पीछे रह गई ।

दो बूढ़ी औरतें झोंपड़ी के दरवाजे के साथ ही बैठी थीं— एक गोल और मैली-कुचैली, बुरी तरह प्रयोग की गई चमड़े की गेंद की तरह; दूसरी हड्डियों से भरी, झुकी कमर और काले चिड़चिड़े चेहरेवाली । उसके पैरों के पास भेड़ जैसा बड़ा कुत्ता लेटा हुआ था, जिसके उलझे बाल, भीगी लाल आँखें थीं और वह अपनी खुरदरी जीभ को बाहर निकाले हुए था। यूफिम ने हमारे मिलने का सारा विवरण दे दिया और बताया कि मैं किस काम आ सकता हूँ। दो जोड़ी आँखों ने चुपके से मेरी ओर ध्यान दिया । बूढ़ी औरतों में से एक ने अपनी गंदी गरदन झुकाई और दूसरी ने अंत तक मेरी बातों को सुनकर कहा, "बैठ जाओ, मैं तुम्हारे लिए खाना लाती हूँ।"

छोटे सेहन में काफी झाड़-झंखाड़ उग आए थे। मध्य में बिना पहियों की काली गाड़ी खड़ी थी। पशु घर में लाए जा रहे थे और खेत के पास घेरे से मंद-मंद आवाज करती नदी बह रही थी । सेहन के हर कोने से घास पर साए दीख पड़ रहे थे।

"किसी दिन हम सब मर जाएँगे!" यूफिम ने अपनी नली को दीवार के साथ झाड़ते हुए शांति एवं विश्वास के साथ कहा। नंगे पाँव और लाल गालोंवाली स्त्री दरवाजे के पास खड़ी थी । उसने हलकी आवाज में पूछा, “तुम आ रहे हो या नहीं?"

"पहले यह समाप्त कर लूँ, बाद में...।"

मुझे कंजूसी से रोटी और बचा खुचा दूध दिया गया । कुत्ता उठा और अपने टपकते जबड़े को मेरे घुटनों पर रखते हुए अपनी चमकदार आँखों से मेरे चेहरे की ओर देखा, मानो मुझसे पूछ रहा हो—

"क्या यह स्वादिष्ट है ?"

झुकी कमरवाली औरत की आवाज सेहन में सुनाई दे रही थी; जैसे सायंकालीन मंद वायु के साथ मिलकर सूखी घास को हिला रही हो ।

“दुःख से बचाने के लिए तुम परमात्मा से याचना एवं प्रार्थना करो, वह तुम्हें दोगुना फल देगा...।''

दुर्भाग्य की तरह काली स्त्री ने अपनी लंबी गरदन झुकाई और अनियमित रीति से अभिन्न स्वर में कुछ बड़बड़ाती, नपे-तुले कदमों से लड़खड़ाती हुई धीरे से मेरे पैरों के पास भूमि पर गिर पड़ी—

“कुछ ऐसे लोग हैं जो जब चाहते हैं, तब काम करते हैं और दूसरे ऐसे हैं जो कभी नहीं चाहते तो कभी काम नहीं करते, परंतु हमारे आदमी तब तक काम करते रहते हैं, जब तक उनमें काम करने की शक्ति रहती है— फिर भी उन्हें कोई इनाम नहीं मिलता! "

बूढ़ी औरत का बड़बड़ाना सेहन में बराबर सुनाई दे रहा था।

"परमात्मा की माँ हर किसी को इनाम देती है ... सबको...।"

एक क्षण के लिए गहरा मौन ।

गहरा और भारी मौन! अर्थ को गर्भ में धारण किए हुए जैसे महान् विचारों और महत्त्वपूर्ण शब्दों का जन्म होनेवाला हो!

“मैं तुम्हें बताऊँगी," बुढिया ने कमर सीधी करने का प्रयास करते हुए कहा, "उसके शत्रुओं में से मेरे बूढ़े का एक मित्र था — उसका नाम ऐंडरे था । जब हम डोरिटसा में अपने दादा के साथ नहीं रह सके और लोगों ने उसे गालियों से तंग कर दिया, तब वह एक भी शब्द नहीं कह पाया और आँसू उसकी आँखों से बह निकले। उस समय ऐंडरे उसके पास आया और कहने लगा- "याकोव, क्या तुम्हें चले जाना नहीं चाहिए था? तुम्हारे पास हाथ हैं और पृथ्वी कितनी बड़ी है; एक पुरुष कहीं भी रह सकता है। यदि यहाँ के लोग तुमसे ईर्ष्या करते हैं तो यह इसलिए कि ये पशुओं की तरह मूर्ख हैं । इनका अनुकरण मत करो, परंतु सादगी से रहो। इनको अपना काम करने दो और तुम अपना करो। इनको इनकी अपनी रोशनी में जीने दो और तुम जियो अपनी रोशनी में । शांति से रहो और किसी के आगे मत झुको; तब तुम सबपर विजयी हो जाओगे ।" इस प्रकार मेरा वासिल प्राय: कहा करता था—'वे वे हैं और हम हम हैं!' एक अच्छा शब्द, तुम जानो, कभी नहीं मरता – यह यहाँ भी पैदा होता है और अबाबील की तरह सारे संसार पर उड़ता है।

"यह सच है ! " यूफिम ने स्वीकार किया - " यह वस्तुतः सच है । हम कहते भी तो हैं एक अच्छा शब्द ईसा मसीह का और बुरा पुजारी का । "

“पुजारी का नहीं बल्कि तुम्हारा, यूफिम । यूफिम, तुम्हारे बाल सफेद हो गए हैं, फिर भी तुम बिना सोचे-समझे बातें करते हो...।''

इसी क्षण यूफिम की पत्नी हाथ हिलाती और गालियों की बौछार करती हुई प्रकट हुई।

"या मेरे परमात्मा, कैसा आदमी है यह? उत्तर नहीं देता, कोई बात नहीं सुनता; केवल कुत्ते की तरह चाँद पर भौंक रहा है । "

"तुम कहाँ जा रही हो...?"

"ओह, प्यारी!” यूफिम फुसफुसाया- पश्चिम में नीले धुएँ और आग की तरह बादल उमड़ने शुरू हो गए; मानो सारा मैदान अभी-अभी आग में जल उठेगा। पूरब में अभी भी अँधेरा था और काली रात रेंगती आ रही थी। मृतक की गरम गंध मेरे सिर के ऊपर झोंपड़ी की खिड़की से आ रही थी । कुत्ते की नाक और भूरे कान काँप रहे थे; आँखें टिमटिमा रही थीं और खिड़की की ओर देखती प्रतीत होती थीं । यूफिम बादलों की ओर देखकर अपने आपको आश्वस्त करना चाहता था-

"वर्षा नहीं होगी... नहीं...।"

"तुम्हारे पास स्तोत्र संग्रह है क्या ? " मैंने पूछा ।

"क्या?"

“ भजनों की एक पुस्तक ।"

सभी चुप थे।

दक्षिणी रात तेजी से आई और पृथ्वी से रोशनी को साफ कर गई; मानो वह रोशनी नहीं, धूल हो । सूर्योदय तक सुगंधित सूखी घास पर सोना कितना आनंददायक होता है।

“संभवतः पंका के पास है!" यूफिम ने व्याकुल होकर कहा, "उसके बच्चों के पास...।" कानाफूसी करते हुए वे झोंपड़ी में गए और गोल औरत ने आह भरते हुए मुझसे कहा—

"अंदर जाओ, यदि तुम चाहते हो तो उसे देखो। "

उसका प्यारा छोटा सिर नम्रता से झुक गया। अपनी छाती के ऊपर हाथ पर हाथ रखकर उसने मेरे कान में कहा, ‘“ अत्यंत पवित्र माँ...पवित्रतम माँ।"

मृतक निष्ठुर दिखाई देता था । उसकी घनी सफेद दाढ़ी बीच में से दो भागों में बँटी थी । उसकी नाक घनी मूँछों से दबी हुई थी। उसकी बाहर निकली हुई आँखें खुली थीं और मुँह खुला हुआ ऐसे लग रहा था, मानो गहरी नींद में सो रहा हो, क्रोधी विचारों से घिरा हुआ हो और शीघ्र ही महत्त्वपूर्ण अंतिम इच्छा कहने वाला हो । उसके सिर की ओर मोमबत्ती जल रही थी, जिसका नीला धुआँ बलपूर्वक ऊपर उठ रहा था और मद्धिम - सी रोशनी हो रही थी, जो केवल आँखों के नीचे गड्ढों को और मृतक के गाल की झुर्रियों को बढ़ा रही थी । उसकी भूरी कमीज पर दो ढेरों की तरह उसके दो काले और हड्डीदार हाथ पड़े थे; मृत्युके कारण अंगुलियाँ मुड़ चुकी थीं। खिड़की से हवा का झोंका दरवाजे की तरफ आता था और अपने साथ गंदी घास के सड़ने की अप्रिय दुर्गंध लाता था। बूढ़ी औरत जब सूखे ढंग से सिसकियाँ लेती थी तो उसका बड़बड़ाना अधिक स्पष्ट लगता था । खिड़की में से नजर आनेवाले आकाश के छोटे चतुर्भुज से आती हुई सूर्यास्त के बाद की लाली धमकाती हुई अस्पष्ट दिखाई देती थी और कफन की तरह सिकुड़ी सायंकाल की नीली रोशनी जब खिड़की से होकर कमरे में आती तो मोमबत्ती की पीली रोशनी उड़ती हुई जान पड़ती थी। मृतक के सफेद बाल मछली की परतों की तरह चमक रहे थे और चेहरा कठिनता से व्यग्र प्रतीत होता था। बूढ़ी औरत बड़बड़ा रही थी । उसका दिल ठंडा था । उसकी पीड़ा को शांत किए बिना उसके मन में पुराने शब्द कडुवाहट से उमड़े-

"मुझे कफन में देखकर, माँ, तुम शोक मत करना। मैं उठूँगा... जब .... I”

वह नहीं उठेगा।

पतली औरत अंदर गई और उसने बताया कि खलिहान में स्तोत्र संग्रह नहीं है, परंतु एक और पुस्तक है, यदि उससे काम चल जाए।

दूसरी पुस्तक चर्च की स्लाव भाषा की व्याकरण निकली। शुरू के कुछ पृष्ठ नहीं थे और वह इन शब्दों से आरंभ होती थी—

"मित्र, मित्रगण, मित्र के...।"

"अब क्या किया जाए? " विनीत छोटी औरत ने कहा । जब मैंने उसे बताया कि व्याकरण की पुस्तक मृतक के किसी काम की नहीं; तब बच्चे जैसा उसका चेहरा काँप गया और सूजी हुई आँखें पुनः डबडबा आईं।

" एक मनुष्य प्रसन्न जीवन जीता है!” उसने सिसकियाँ भरते हुए कहा, "और अंत में उसे सम्मानजनक अंत्येष्टि भी नहीं मिल पाती! "

मैंने उसे बताया कि मैं उसके पति के लिए वे सारे भजन और प्रार्थनाएँ पढ़ दूँगा जो मुझे याद हैं, केवल उसे झोंपड़ी के बाहर जाना होगा । मैं इस तरह का काम करने में अभ्यस्त नहीं था और मुझे पूर्ण प्रार्थनाएँ याद भी नहीं थीं। इसलिए जब कोई मुझे बोलता हुआ सुनता तो मैं भूल जाता था । उसने या तो मुझे समझा नहीं था या फिर मुझपर विश्वास नहीं किया था, क्योंकि देर तक सूँघती और अपनी कमीज की बाँहों से अपना थका चेहरा पोंछती हुई यह दरवाजे के पास खड़ी रही। कुछ समय के बाद वह बाहर चली गई।

काले आकाश में सूर्यास्त की लालिमा क्षितिज पर चमकी, जहाँ मैदान समुद्र से मिला हुआ प्रतीत होता था । झोंपड़ी पर नीला कुहरा छा गया और अपने साथ रात का कष्टकारक अँधेरा भी ले आया । मोमबत्ती लज्जापूर्वक जल रही थी। लेटा हुआ आदमी अधखुली आँखों से छाती पर पड़ते हुए कड़कड़ाते साए देख रहा था। मैंने अपनी आँख के कोने से उसे ध्यानपूर्वक देखा । कोई नहीं कह सकता था कि मृतक क्या कर बैठे ! मैंने शुद्ध अंत:करण से धीमी आवाज में गाना आरंभ किया-

"हमारे पापों को क्षमा करो, भले ही हम जंगली पशुओं से भी बुरे हैं...।"

परंतु साथ-ही-साथ उन्हें नकारने के भी विचार जाग्रत हुए-

"जो कठिन और कड़वा है, वह पाप नहीं है, परंतु वह सचाई है; हमारे चेत एवं अचेत पाप, हमारी जवानी और बुरी शिक्षा के पाप और हमारी चंचलता और निराशा...!"

"ये तुमपर लागू नहीं होते, भाई।" मैंने विचार किया।

परंतु आकाश के अनंत अँधेरे में नीले तारे टिमटिमाते रहे। मेरे अतिरिक्त उन्हें उस समय और कौन निहार रहा था?

दूर से गरजने की आवाज आई और सायंकाल की लाली में हर चीज काँप उठी।

पिटपट...पिटपट करता हुआ कुत्ता मिट्टी के फर्श पर चला। वह मेरी टाँगों को सूँघता, नरमी से गुर्राता इधर-उधर घूमता रहा और फिर चला गया। संभवतः अपने मालिक का गुर्राकर, जैसा कुत्ते प्राय: करते हैं— शोक मना रहा था। जब वह गया तो साए इसका पीछा करते प्रतीत होते थे; वे दरवाजे तक उड़े और मेरे चेहरे पर ठंडी पवन का पंखा किया। मोमबत्ती की ज्वाला अपने आपको मोमबत्ती से जुदा करके, छोटी और दयापूर्ण बनकर, मानो तारों की ओर उड़ जाना चाहती हो। मैं नहीं चाहता था कि वह लोप हो जाए। अतः उसके फड़फड़ाने को ध्यान से देखता रहा जिससे मेरी आँखें दुखने लगीं। पीड़ायुक्त झोंपड़ी में मेरा दम घुटने लगा। मैं मृतक के सिर की ओर निश्चलता और मौन को ध्यान से सुनता हुआ खड़ा हो गया। नींद की तीव्र इच्छा, जिसको जीतना कठिन था, मुझपर हावी हो गई। भरसक प्रयत्न के बाद मुझे मकारी, महान् जिटाउस और डेमस्किन के भजन याद आ गए और मेरे सिर में मक्खियों की तरह भिनभिनाने लगे।

"यदि तुम्हें नरम तकिया मिलता है तो उसे छोड़ दो और वहाँ ईसा मसीह के लिए पत्थर रखो । यदि तुम सर्दियों में सोते हो...।"

जागते रहने के लिए मैंने प्रशंसा का गीत गुनगुनाया—

“मेरे प्रभु, मेरी आत्मा को बचाओ, जिसको पापों ने बुरी तरह से दुर्बल बना दिया है।"

दरवाजे के पीछे से मैंने मंद बड़बड़ाहट सुनी।

"परमात्मा की दयालु माँ...मेरी आत्मा ले लो... I"

उसकी आत्मा मुझे सफेद कबूतर की तरह लगी और उसी तरह लज्जावान । जब यह उड़कर परमात्मा की माँ के सिंहासन की ओर जाएगी और माँ अपने सफेद हाथ आगे बढ़ाएगी तो यह छोटी आत्मा अपने छोटे पर फड़फड़ाना शुरू कर देगी और भययुक्त प्रसन्नता से मर जाएगी।

फिर परमात्मा की माँ अपने बेटे से कहेगी-

“देखो, पृथ्वी पर तुम्हारे लोग कितने भयभीत हैं। वे प्रसन्नता के आदी नहीं हैं। क्या यह ठीक है, मेरे बेटा ?"

और वह उत्तर देगा।

"मैं नहीं जानता ।"

उसके स्थान पर मैं गड़बड़ा जाता ।

गहरे मौन में से एक उत्तर मिलता प्रतीत हुआ, वह भी गीत में । मौन इतना गहरा था कि दूर की आवाज इसमें डूबती हुई अप्राकृतिक प्रतीत होती थी— मेरी अपनी आवाज की मनमौजी प्रतिध्वनि । मैं रुक गया और सुनने लगा। आवाज स्पष्ट थी और निकट से ही आ रही थी । कोई अपने भारी पैरों को घसीटता और बड़बड़ाता हुआ आ रहा था-

"न... नहीं, वर्षा नहीं होगी।'

"कुत्ते क्यों नहीं भौंक रहे हैं?" मैंने अपनी आँखें पोंछते हुए पूछा।

मुझे ऐसा लगा कि मृतक की भौंहों ने मरोड़ा खाया और मुसकराहट उसके होंठों पर काँप गई।

बाहर मैंने एक भारी आवाज सुनी।

“क्या? आह, बूढ़ी औरत... मैं जानती थी कि यह मर जाएगा । ठीक है, चुप रहो। जब तक इनका अंतिम समय नहीं आता, इस जैसे लोग खड़े हो जाते हैं और फिर हमेशा के लिए पुनः लेट जाते हैं, फिर कभी न उठने के लिए...कौन? ... अजनबी ? ... ..ऊहूँ।”

किसी बड़ी और अँधेरे जैसी निराकार चीज ने दरवाजा खटखटाया और कमरे को अजीब वातावरण से भर दिया। अपने हाथों को फैलाए एक आदमी आगे की तरफ लड़खड़ाया और मृतक के पैरों को अपने माथे से लगभग नरमी से छूता हुआ धीरे से बोला, "ठीक है, वोसिल । " फिर वह सिसकियाँ भरने लगा।

बोदका की तेज गंध आई । बूढ़ी औरत दरवाजे में खड़ी उससे प्रार्थना करने लगी-

"फादर डेमिड, इसे पुस्तक दे दो ।"

"इसे क्यों दूँ, मैं स्वयं पढूँगा।"

उसका भारी हाथ मेरे कंधों पर था और बालोंवाला उसका बड़ा चेहरा मेरी ओर झुका था।

"तुम अभी युवा हो, क्या तुम चर्च में हो?"

उसका सिर पीपे की तरह बड़ा था और उसके लंबे घने बाल मोमबत्ती की फड़फड़ाती ज्वाला से सोने की तरह चमक रहे थे। उसने लड़खड़ाकर मुझे इधर-उधर हिलाया । उसके मुँह से बोदका की गंध आ रही थी।

"फादर डेमिड!” आँखों में आँसू भरकर हठ से बूढ़ी औरत ने कहा ।

उसने उसको धमकाते हुए टोका ।

"मैं तुम्हें कितनी बार बता चुका हूँ कि छोटे पादरी को फादर नहीं कहते; चलो, जाओ । बिस्तर पर जाओ। यह मेरा काम है। चली जाओ तुम... दूसरी मोमबत्ती जलाओ, मुझे कुछ भी नजर नहीं आ रहा है।" बेंच पर बैठते हुए और पुस्तक को अपने घुटनों पर रखते हुए उसने पूछा—

"क्या तुम ड्रिंक लोगे?"

"यहाँ कुछ नहीं है।"

"यह क्या है?" उसने कठोरता से पूछा, "मेरे पास बोतल है, यह देखो । "

"यहाँ पीना उचित नहीं लगता । "

"तुम ठीक कहते हो," वह बड़बड़ाया- "मुझे बाहर जाना होगा।"

" तुम क्या करने जा रहे हो ? बैठ जाओ और पढ़ो। "

“मैं? मैं पढ़ना नहीं चाहता। तुम पढ़ो। मैं अपने आपको...मेरे शत्रुओं ने मुझे पीसकर रख दिया है जैसे वे आसमान से लड़ने आए हों और इस सौदे में मैं अपने होश खो बैठा हूँ ।"

उसने पुस्तक मेरी ओर फेंक दी और अपना सिर जोर से हिलाया—

“लोग मर रहे हैं, इसके बावजूद पृथ्वी पर अभी भी भारी भीड़ बची है... बिना कोई अच्छी चीज देखे लोग मर जाते हैं...।''

“यह धार्मिक भजन नहीं है । " पुस्तक का परीक्षण करके मैंने कहा।

"तुम झूठ कहते हो । "

"यहाँ देखो।”

उसने पृष्ठ बदला और मोमबत्ती को उसके ऊपर लाते हुए गहरे लाल रंग के शब्द पढ़े—' ओकट्योच...।' वह हैरान हो गया।

"ओकट्योच? यह यहाँ कैसे आई? इसका परिणाम भी तो भिन्न है... स्तोत्र संग्रह तो छोटी और मोटी पुस्तक है और यह...यह सब मेरी जल्दबाजी के कारण हुआ है।"

यह गलती उसे होश में ले आई। वह खड़ा हो गया और बूढ़े आदमी की दाढ़ी को छूते हुए उसके ऊपर झुक गया।

"वासिल, मुझे क्षमा करना... मैं क्या कर सकता हूँ? "

अपने आपको सीधा करते हुए उसने अपने घने बालों को हिलाया और जेब से बोतल निकालकर उसके सिरे को अपने होंठों से लगाया, फिर काफी देर तक साँस लेता हुआ उसे चूमता रहा।

"यह थोड़ी सी चाहते हो?"

"मुझे नींद आ रही है, पीऊँगा तो सो जाऊँगा ।"

"ठीक है, तो सो जाओ ।"

"और प्रार्थना ? "

"यहाँ शब्दों को बड़बड़ाने से क्या लाभ, जबकि कोई समझता नहीं है ! "

वह बेंच पर बैठ गया और झुकते हुए हाथों पर सिर रखकर चुप हो गया।

जुलाई की रात एकाएक पिघल रही थी । अँधेरा चुपचाप कोनों में खड़ा था । खिड़की में से प्रभात की ओस भ ताजगी की महक आई। दो मोमबत्तियों की रोशनी पीली होती जा रही थी और उन दोनों की ज्वाला बीमार बच्चे की आँखों की तरह डरा रही थी ।

“वासिल, यदि तुम जीवित होते, " छोटा पादरी बड़बड़ाया- " तो मेरे पास आने-जाने के लिए कोई स्थान होता, परंतु अब मेरा अति उत्तम मित्र मर चुका है और कहीं भी जाने के लिए कोई स्थान नहीं है— प्रभु, तेरी न्यायपरायणता कहाँ है?"

मैं खिड़की के पास बैठा, सिर बाहर निकाले सिगरेट पी रहा था तथा झपकियाँ लेते हुए भारी विलाप को सुन रहा था-

“वे मेरी पत्नी को मार चुके हैं और मुझे भी चीर देंगे, जैसे सूअर बंदगोभी को चीर देता है! क्या यह ठीक है, वासिल?"

छोटे पादरी ने फिर अपनी बोतल निकाली; उसे चूमा, अपनी दाढ़ी साफ की और मृतक के ऊपर झुककर उसका माथा चूमा-

"अलविदा, मेरे मित्र!"

वह मेरी ओर मुड़ा और आकस्मिक शक्ति एवं स्पष्टता से बोला, "वह एक सादा मनुष्य था; औरों की अपेक्षा उसमें कोई विशेषता नहीं थी । वह कपटियों में कपटी प्रतीत होता था, परंतु वह कपटी नहीं था । वह सफेद कबूतर था और मेरे अतिरिक्त और कोई नहीं जानता था ... सच कह रहा हूँ। और अब वह केरओ के कष्टप्रद काम से निवृत्त हो चुका है; मैं अभी जीवित हूँ और मेरे शत्रु बाकी बचे हैं। "

"क्या तुम्हें बहुत दुःख हुआ है? "

उसने तुरंत उत्तर नहीं दिया, फिर उत्सुकता से बोला-

“हर एक को जरूरत से अधिक शोक है – मुझे भी इतना ही है... यदि तुम सो जाते हो... तो तुम्हारा दुःख तुम्हारे स्वप्नों में पीछा करता है ।"

यह कहता हुआ वह ठोकर खाकर मेरे ऊपर गिर गया।

‘“मैं गाना चाहता हूँ, परंतु अभी नहीं। लोग जाग जाएँगे और बुरा मानेंगे... परंतु मैं गाना चाहता हूँ ।"

धीरे से उसने उसके कान में गुनगुनाया—

विलाप अपना सुनाऊँ तो किसको
किसके लिए करे मेरा दिल विलाप
किसका ह...हा...थ...

उसकी दाढ़ी ने मेरी गरदन पर गुदगुदी की और मैं वहाँ से हट गया।

“तुम्हें अच्छा नहीं लगा ? ठीक है, तुम्हें शैतान समझे! जाओ, अब सो जाओ।"

"तुम्हारी दाढ़ी से गुदगुदी होती है। "

"क्या तुम्हारे लिए अपनी दाढ़ी मुँडवा दूँ, मेरे प्यारे?"

वह थोड़ी देर के लिए चिंताग्रस्त हो फर्श पर बैठ गया।

"अच्छा तुम पढ़ो, मैं सोने जाता हूँ; पुस्तक लेकर भाग न जाना, यह चर्च की है। मुझे पहले भटकने का अनुभव हो चुका है। तुम जगह-जगह क्यों भागते फिरते हो? तुम इधर-उधर क्यों भटकते हो? अंततः तुम जा किधर रहे हो? कौन सी वस्तु तुम्हें खींचती है? अपने रास्ते पर चलो। कहो कि एक छोटे पादरी का विनाश हो गया है। किसी व्यक्ति से कहो, जो मुझपर दया करे । डवोमिड कुवेसोव, एक छोटा पादरी, जो मैं हूँ... मुक्ति से परे...।"

वह सो गया। पुस्तक को खोलते हुए मैंने पढ़ना शुरू कर दिया।

" बिना बोई भूमि, जो सबको पालनेवाली बन गई है, जो अपने हाथ खोलती है और अपने परोपकार से सभी प्राणियों को खिलाती है ... । "

“सबको पालनेवाली!” मेरे सामने सूखी सुगंधित घास से ढकी पड़ी थी। मैंने निद्रालु आँखों से उसके अँधेरे चेहरे को यह सोचते हुए देखा कि एक आदमी, जो उसके रास्तों में कई बार चल चुका था, उसे केवल एक ही चिंता थी कि मृतक एक बार जीवित हो जाए। मेरे दिमाग में अजीब-अजीब खयाल उभरे। मैंने खाली, निर्जन मैदान में एक आदमी को ऐंठकर चलते देखा। उसने हजारों हाथों से पृथ्वी का आलिंगन किया था । उसके रास्ते में मरे हुए मैदान जीवित हो उठे और फल, गाँव और नगर उसमें पैदा हो गए। वह फिर भी निरंतर मानव जीवन बोता हुआ चलता रहा। पृथ्वी ने सब मनुष्यों से दया से व्यवहार किया, उनकी समस्त गुप्त शक्ति पृथ्वी को पराजित करने के लिए जुटाई गई—– मृतक को सदा के लिए जीवनदान देने के लिए सभी लोग प्राणघातक रास्तों से अमरता की ओर चले; मनुष्य ने मृत्यु का बीज खाया, परंतु वह मरा नहीं !

कई विचार भटकते हुए दिल में आए। उनके परों की खड़खड़ाहट ने एक प्रसन्न बोध उत्पन्न कर दिया। मैं उससे कई प्रश्न पूछना चाहता था, जो उनका उत्तर सादगी, निडरता और ईमानदारी से दे सकता।

मेरे सामने मृतक और सोया हुआ व्यक्ति पड़े थे; बाहर गोदामों में जीवन के चिह्न थे, परंतु इसका कोई अर्थ नहीं था। संसार में बहुत लोग हैं जिनमें से चिर- इच्छित व्यक्ति को देर-सवेरे ढूँढ़ ही लूँगा ।

मैं खुले मैदान में बनी झोंपड़ी से बाहर आ गया था और पीछे मुड़कर देखने से वह पृथ्वी का मात्र चिह्न प्रतीत होती थी। झोंपड़ियाँ पास-पास थीं, सिवाय इस झोंपड़ी की खिड़कियों के बाकी सबकी खिड़कियों में अँधेरा था और इसमें कैद की गई मंद रोशनी मृतक के सिर पर झिलमिला रही थी।

यह वह दिल था जिसने धड़कना बंद कर दिया था। मैंने यथार्थ में देखा कि सामान्य विनीत व्यक्ति मरा हुआ था, परंतु जब उसके काम के बारे में विचार किया तो वह वस्तुतः बड़ा था — मैदान के खलिहानों में पड़ी कच्ची, कुचली हुई मकई को, सुनहरे अनाज के ऊपर नीले गगन में उड़ती अबाबीलों को और भूमि पर बिखरे स्वयं मैदानों को मैंने याद किया।

मैंने पंखों को फड़फड़ाते सुना । ओस से चाँदी-सी दिखाई देनेवाली छोटी घास के ऊपर पक्षियों के साए गुजर रहे थे।

मुर्गे बोल रहे थे – पाँच मुर्गे । बतखें जाग गई थीं । गायों ने रंभाना आरंभ कर दिया था और वहीं पर बबूल की बाड़ चिरचिरा रही थी। मैंने बाहर मैदान में जाना चाहा, ताकि वहाँ की खुश्क, गरम भूमि पर सो सकूँ। छोटा पादरी मेरे पाँव के पास सो रहा था । वह अपनी चौड़ी छाती को खोले पीठ के बल लेटा हुआ था। उसके अग्निमय बाल प्रभामंडल की तरह चमक रहे थे। उसका लाल चेहरा गुस्से से फूला हुआ था, मुँह खुला था और उसकी मूँछें धीरे- धीरे हिल रही थीं। उसके हाथ लंबे और अंगुलियाँ बगीचे के काँटों की तरह निकली हुई थीं।

अनिच्छा से मैंने सोचा कि यह आदमी किसी औरत का आलिंगन किए हुए था । उसका चेहरा इसकी दाढ़ी से ढक गया था और उसने हँसकर अपना सिर पीछे कर लिया था, क्योंकि उसे गुदगुदी हुई होगी। मैंने हैरानी से विचार किया कि उसके कितने बच्चे होंगे !

यह सोचना अप्रिय था कि उसके मन में शोक है, जबकि आनंद होना चाहिए था।

बूढ़ी औरत का दयालु चेहरा दरवाजे से झाँका और खिड़की में से आते सूर्योदय की पहली किरण को मैंने देखा। हलकी, सिल्की, पारदर्शी धुंध नदी के ऊपर झूम रही थी और वृक्षों में अद्भुत निश्चलता थी, जो यह सोचने पर विवश करती थी कि वे गीत गाने के लिए अभी फूट पड़ेंगे और फिर समझदार आत्मा के लिए प्रकृति का महान् रहस्योद्घाटन करेंगे!

“इतना अच्छा आदमी!” बूढ़ी औरत ने छोटे पादरी के बड़े शरीर को शोकपूर्ण देखते हुए धीमे से कहा।

जैसाकि मैं पुस्तक पढ़ते समय सुन नहीं सका, उसने सादे शब्दों में उसकी पत्नी की कहानी सुनाई।

उसने किसी आदमी के साथ पाप किया था। लोगों को इसका पता चल गया तो उसके पति को बताया । जब उसने उसे क्षमा कर दिया तो वह लोगों पर हँसा । उस दिन से शर्म के मारे वह घर से बाहर नहीं निकली और यह शराब पीने लग गया—इस बात को अब दो वर्ष बीत गए थे और संभवतः अब उसे जल्दी ही पदच्युत होना पड़े। बूढ़ी औरत ने आगे बताया कि उसका पति कभी भी शराब नहीं पीता था, बल्कि वह छोटे पादरी को पीने से रोकने का प्रयत्न करता था।

" आह, बुरा हो, लोगों को अपने ऊपर हावी न होने दो, सादगी से रहो, उनको अपना काम करने दो और तुम अपना काम करो। "

उसकी छोटी आँखों से आँसू गिरे और सूजे हुए गालों की झुर्रियों में गुम हो गए। उसका सिर सर्दियों के सूखे पत्ते की तरह हिला; दुःख से मुरझाए हुए उसके दयालु चेहरे को देखने से दया आती थी। मैंने अपने अंत:करण में सांत्वना के कुछ शब्द ढूँढ़े; परंतु उनके न मिलने पर मुझे कष्ट हुआ।

बहुत समय पहले कहीं पढ़े हुए शब्द मुझे याद आए-

'परमात्मा के सेवकों को हँसना चाहिए, रोना नहीं; रोना मनुष्य और परमात्मा के लिए अपमानकारी है । '

"मुझे चलना चाहिए।" मैंने व्याकुल होकर कहा।

"आह। "

यह जल्दबाजी की पुकार थी, मानो मेरे शब्दों ने उसे चौंका दिया हो। उसके काँपते हाथों ने कमीज की जेब में कुछ ढूँढ़ने का प्रयास किया । इतने में उसके होंठ चुपचाप हिल रहे थे।

"मुझे पैसे नहीं चाहिए, श्रीमती, मुझे खाने के लिए रोटी दो, यदि है तो।"

"तुम्हें पैसे नहीं चाहिए?" उसने शंका से पूछा।

“मेरे किस काम आएँगे?"

" जैसी तुम्हारी इच्छा ।" वह उदासी से मान गई - "तुम्हारी इच्छा, जाओ । अच्छा, धन्यवाद ।"

मेरे सामने नीले आकाश में सूर्य मोर के पंखों की तरह गर्व से पृथ्वी पर अपनी किरणों का प्रदर्शन कर रहा था। मैंने इसपर आँखें झपकाई । मैं जानता था कि एक या दो घंटे के बाद यह मुसकराहट आग में बदल जाएगी; फिर भी क्षण भर के लिए हम एक-दूसरे से प्रसन्न थे। मैं मकई के खेतों में उसकी और जीवन के मालिक की प्रशंसा का गीत गाता चला जा रहा था-

ओ, अगम्य प्रकृति,
आने दो अपने पास मुझे,
जगा दो मेरी आत्मा को,
अपने अंदर स्नान करने दो मुझे,
ले चलो मुझे अपने साथ,
अच्छाई और बुराई से दूर - बहुत दूर, बहुत दूर!
हम सादगी से रहते हैं,
उन्हें अपना काम करने दो,
और हमें अपना!

(अनुवाद : भद्रसैन पुरी)

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