शाही गड़रिया : एस्टोनिया लोक-कथा
Royal Herd-Boy : Lok-Katha (Estonia)
एक बार की बात है कि एक राजा था जो अपनी प्रजा पर इतना दयालु और नम्र था कि उसके राज्य में कोई ऐसा नहीं था जो उसको दुआ न देता हो। उसकी लम्बी ज़िन्दगी के लिये भगवान से प्रार्थना न करता हो।
राजा अपनी पत्नी के साथ हँसी खुशी कई साल तक रहा पर अभी तक उसके कोई बच्चा नहीं था। पर आखिर जब रानी ने एक बच्चे को जन्म दिया तो राज्य भर में बहुत खुशियाँ मनायी गयीं। पर उनकी यह खुशी बहुत ही कम समय तक रही। राजकुमार के जन्म के तीन दिन बाद ही रानी अपने पति और बेटे को इस तरह अकेला छोड़ कर चल बसी।
राजा के दुख का कोई अन्त नहीं था। वह अपनी पत्नी के दुख में बहुत दुखी था। सारा राज्य उसके दुख में दुखी था। कहीं कोई भी खुश चेहरा दिखायी नहीं देता था।
तीन साल बाद राजा ने अपनी प्रजा के कहने पर दूसरी शादी कर ली। पर उसक यह दूसरा चुनाव भी उसके लिये कुछ बहुत अच्छा नहीं रहा। ऐसा था जैसे उसने एक फाख्ता को दफ़ना कर एक बाज से शादी कर ली हो।
बदकिस्मती से ऐसा बहुत लोगों के साथ होता है जो दूसरी शादी करते हैं। उसकी यह दूसरी पत्नी बहुत ही नीच किस्म की स्त्री थी। उसने राजा या प्रजा दोनों के साथ कभी कोई अच्छा व्यवहार नहीं किया।
वह पहली रानी के बच्चे को फूटी आँख नहीं देख सकती थी। उसको लगता था कि राजकुमार की उन्नति उसको नीचे गिरा देगी। उधर सब उस राजकुमार को बहुत प्यार करते थे क्योंकि वही एक राजा का वारिस था और उसकी माँ भी नहीं थी।
एक बार उसने बड़ी नीच योजना बनायी जिससे वह राजकुमार को वहाँ भेज दे जहाँ उसे राजा कभी ढूँढ न सके। क्योंकि उसके अन्दर इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह उसको मार सके।
इसके लिये उसने एक दूसरी नीच स्त्री को बुलाया और उसको बहुत सारे पैसे दे कर यह काम सौंपा। उस नीच स्त्री ने रात को उसे बुलाया और बच्चे को उसे सौंप दिया और वह उस बच्चे को उन रास्तों से ले गयी जिन पर शायद ही कभी कोई आता जाता हो। बहुत दूर जा कर उसने उसे एक गरीब परिवार को पालने पोसने के लिये दे दिया।
जब वह उसको ले कर जा रही थी तो रास्ते में ही उसने उसके अच्छे कपड़े निकाल लिये और उसको फटे कपड़ों में लपेट दिया ताकि कोई उसके धोखे को न जान सके। रानी ने उस स्त्री को कसम दे रखी थी कि वह यह बात किसी से नहीं कहेगी कि वह बच्चे को कहाँ छोड़ कर आयी थी।
बच्चे को चुराने वाली यह काम दिन में नहीं कर सकती थी क्योंकि लोग उसका पीछा कर सकते थे इसलिये यह काम करने के लिये उस काफी दिन लग गये। उसने उस किसान परिवार को बच्चे को पालने के लिये सौ रूबल33 भी दिये।
यह राजकुमार की खुशकिस्मती थी कि वह एक अच्छे परिवार में पहुँच गया था। वे लोग उसकी इतनी अच्छी देखभाल करते थे जैसे वे अपने बच्चे की देखभाल कर रहे हों।
राजकुमार अपनी बातों से उनको बहुत हँसाता खास कर के जब वह यह कहता कि वह एक राजकुमार है। उनको बच्चे के पालने के लिये इतना पैसा मिल रहा था कि उनको जल्दी ही यह पता चल गया कि वह बच्चा किसी सामान्य आदमी का नहीं है। वह अपने माता या पिता के परिवार की तरफ से किसी कुलीन परिवार का होना चाहिये। पर इतना ऊँचा विचार उनके दिमाग में कभी नहीं आया कि बच्चा सच कह रहा था।
इस बात को तो केवल सोचा ही जा सकता है कि महल में क्या हल्ला गुल्ला हुआ हागा जब राजकुमार के गायब होने की बात लोगों को पता चली होगी। और वह भी कुछ इस तरह कि किसी को कुछ पता ही न चले। और चोर ने भी अपनी चोरी का कोई छोटे से छोटा सुराग न छोड़ा हो।
राजा कई दिनों तक अपने बेटे के लिये बहुत रोता रहा। वह उसको उसकी माँ की याद में बहुत प्यार करता था। इसके अलावा वह अपनी नयी पत्नी से भी बहुत नाखुश था। हर जगह उसकी खोज की गयी पर उसका कहीं नामोनिशान भी नहीं मिला। जो उसको ढूँढ कर लायेगा उसको भारी इनाम की भी घोषणा की गयी पर सारी कोशिशें बेकार गयीं। ऐसा लग रहा था जैसे बच्चा कहीं हवा में उड़ गया हो। कोई जंगल की उस अकेली झोंपड़ी तक नहीं पहुँच सका जिसमें राजकुमार पल रहा था। जब कोई भी इस भेद को नहीं खोल सका तो लोग सोचने लगे कि राजकुमार को या तो कोई बुरी आत्मा उठा कर ले गयी है या फिर किसी ने उस पर कोई जादू कर दिया है।
महल में तो यह सोचा जा रहा था कि राजकुमार मर गया था जबकि राजकुमार तो जंगल में पल रहा था और आराम से रह रहा था। समय बीतता गया तो अब वह इतना बड़ा हो गया था कि कुछ काम कर सकता।
इस बीच लड़का अक्लमन्द भी बहुत हो गया था। इतना कि उसके किसान माता पिता यह सोचने लगे था कि अंडा मुर्गी से ज़्यादा होशियार था।
इस तरह राजकुमार को वहाँ रहते रहते दस साल से भी ज़्यादा हो गये। अब उसकी यह इच्छा होने लगी कि वह किसी और के साथ भी बैठे उठे। सो एक दिन उसने अपने किसान माता पिता से विनती की कि वे उसको अपने आप रोटी कमाने दें।
उसने कहा कि “अब मैं खूब ताकतवर हूँ और बिना आपकी सहायता के रह सकता हूँ। मुझे यहाँ अकेले रहने में समय बहुत लम्बा लम्बा लगता है। पहले तो किसान और उसकी पत्नी ने इस बात को नहीं माना मगर फिर आखिर उनको हाँ कहनी ही पड़ी।
उसकी नौकरी ढूँढने में सहायता करने के लिये किसान खुद भी उसके साथ गया। उसको गाँव में एक अमीर किसान मिल गया जिसको एक लड़का चाहिये था जो उसके जानवर चरा लाता। उधर उसके बेटे को कोई भी काम चाहिये था सो दोनों राजी हो गये।
यह सौदा एक साल के लिये हो गया। पर साथ में तय यह भी हुआ कि लड़का जब चाहे नौकरी छोड़ सकता है और अपने किसान माता पिता के पास आ सकता है। साथ में यह भी तय हुआ कि अगर किसान उसके काम से सन्तुष्ट नहीं होगा तो वह भी कभी भी उसको काम से निकाल देगा। पर उसके किसान माता पिता को बता कर ही।
अब यह लड़का जहाँ काम करता था वहाँ से राजमार्ग पास ही था। उस पर से हजारों लोग रोज आते जाते थे – बड़े लोग भी और छोटे लोग भी।
अब यह शाही गड़रिया अक्सर सड़क के पास बैठ जाता और आते जाते लोगों से बात करता। उन लोगों से उसने बहुत कुछ सीखा जिसके बिना वह उन चीज़ों से अनजान रह जाता।
एक दिन क्या हुआ कि एक सफेद बाल और सफेद दाढ़ी वाला बूढ़ा उधर से गुजरा। राजकुमार उस समय एक पत्थर पर बैठा हुआ था और बाँसुरी बजा रहा था। उसके जानवर उसके आस पास चर रहे थे। अगर कोई जानवर दूर चला जाता तो लड़के का कुत्ता उसको फिर वापस ले आता।
वह बूढ़ा पहले तो लड़के और उसके जानवरों की तरफ देखता रहा फिर कुछ कदम उसकी तरफ बढ़ कर उससे बोला — “तुम जन्म से गड़रिया तो नहीं लगते।”
लड़का बोला — “हो सकता है। मैं तो बस इतना जानता हूँ कि मैं राज करने के लिये पैदा हुआ हूँ और पहले मैंने राज करने के नियम सीखे थे। पर अभी अगर में ये चार पैर वाले चराता हूँ तो यही ठीक है। बाद में मैं अपनी किस्मत दो पैर वालों के साथ आजमाऊँगा।”
बूढ़े ने आश्चर्य से अपना सिर ना में हिलाया और अपने रास्ते चला गया।
एक दूसरे दिन एक बहुत ही सुन्दर गाड़ी आयी जिसमें एक स्त्री और दो बच्चे बैठे हुए थे। उसका कोचमैन आगे बैठा था और नौकर पीछे खड़ा था।
उस दिन राजकुमार के पास ताजा तोड़ी हुई स्ट्रौबैरी से भरी हुई एक टोकरी रखी थी। उसको देख कर उस गाड़ी में बैठी स्त्री का मन ललचा गया।
उसने कोचमैन को रुकने के लिये कहा और गाड़ी की खिड़की में से बोली — “ए गँवार लड़के इधर आ। और यह स्ट्रौबैरीज़ मेरे पास ले कर आ। मैं तुझे इनके लिये कुछ कोपैक्स दूँगी जिससे तू गेंहू की रोटी खरीद सकता है।”
शाही गड़रिये ने ऐसा दिखाया जैसे उसने सुना ही न हो। उसको यह अन्दाजा भी नहीं हुआ कि वह हुक्म उसी के लिये था। उस स्त्री ने उसे दोबारा बुलाया तिबारा बुलाया पर ऐसा लग रहा था जैसे वह हवा से बात कर रही थी।
तब उसने अपने पीछे खड़े हुए नौकर को बुलाया और उससे उस लड़के को उसके गाल पर एक चाँटा मार कर यह सिखाने के लिये कहा कि कैसे सुना जाता है।
नौकर तुरन्त ही गाड़ी से कूद कर उसका हुक्म पालन करने के लिये गया। पर उसके वहाँ पहुँचने से पहले ही गड़रिया कूद कर खड़ा हो गया।
उसने पास में पड़ी एक मोटी सी डंडी उठा ली और नौकर से बोला — “अगर तुम अपना सिर तुड़वाना नहीं चाहते तो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाना नहीं तो मैं तुम्हारा मुँह कुचल कर रख दूँगा।”
नौकर यह सुन कर वापस चला गया और यह बात उस स्त्री को बतायी। यह सुन कर स्त्री को गुस्सा आ गया वह चिल्लायी — “क्या ओ गधे। तुम इस छोटे से बच्चे से डर गये। जाओ जा कर उसकी टोकरी छीन लो। मैं उसे बताती हूँ कि मैं कौन हूँ। और मैं उसके माता पिता को भी सजा दूँगी जिन्होंने उसे ठीक से बड़ा नहीं किया।”
गड़रिया जिसने स्त्री का यह हुक्म सुन लिया था बोला — “ओहो। जब तक मेरे शरीर में जान है तब तक कोई भी मेरी किसी भी चीज़ को जबरदस्ती हाथ नहीं लगा सकता। जो कोई मेरी स्ट्रौबैरीज़ को हाथ भी लगायेगा मैं उसी को मारूँगा।”
यह कह कर उसने अपने हाथ पर थूका और उसको अपने सिर के चारों तरफ घुमाया जब तक उसमें से सीटी की सी आवाज नहीं निकलने लगी।
नौकर ने जब यह देखा तो उसकी यह बिल्कुल भी इच्छा नहीं हुई कि वह उससे स्ट्राबैरीज़ छीने पर वह स्त्री गुस्से के मारे उसको बार बार लड़के की तरफ धकेलती रही। वह कहती रही कि वह अपनी यह बेइज़्ज़ती को बिल्कुल सहन नहीं करेगी और उसको सजा जरूर देगी।
दूसरे बच्चे गड़रिये जो दूर से ही यह तमाशा देख रहे थे शाम को यह किस्सा उन्होंने अपने साथियों को बताया। यह सुन कर सारे लोग डर गये। उनको लगा कि इसका बुरा असर उनको भी भुगतना पड़ेगा। इसके अलावा उस स्त्री ने अगर कहीं लड़के की शिकायत सरकार से कर दी तो...
राजकुमार के मालिक ने उसको डाँटा और कहा कि वह इस मामले में उसकी तरफ से हुछ नहीं बोल पायेगा। जो उसने किया वह उसी को भरना पड़ेगा।”
लड़का बोला — “आप चिन्ता न करें मैं कोई दोषी साबित नहीं होऊँगा। यह मेरा मामला है। भगवान ने एक मुँह मेरे सिर में रखा है और उस मुँह में जबान रखी है। जरूरत पड़ने पर मैं अपने लिये बोल भी सकता हूँ। मैं आपसे अपना वकील बनने के लिये भी नहीं कहूँगा। अगर उस स्त्री ने तरीके से ठीक से स्ट्रौबैरीज़ माँगी होतीं तो मैंने उसको वे दे दीं होतीं। पर उसने मुझे गँवार कैसे कहा। मेरी नाक भी उतनी ही साफ है जितनी उसकी।”
इस बीच वह स्त्री शाही शहर चली गयी। वहाँ जा कर सबसे पहला काम तो उसने यह किया कि उस बच्चे गड़रिये की शिकायत की। तुरन्त ही जाँच का हुक्म दिया गया। लड़के और उसके मालिक दोनों को राजा के सामने आने का हुक्म दिया गया। जब दूत अपना हुक्म बजाने के लिये गाँव में दाखिल हुआ तो लड़के ने कहा — “मेरे मालिक ने इसमें कुछ नहीं किया है सो जो कुछ मैंने उस दिन किया उसका जिम्मेदार मैं खुद हूँ।”
वे उसके हाथ उसकी पीठ पीछे बाँध देना चाहते थे और अदालत में उसको एक कैदी की तरह से ले जाना चाहते थे। इस पर उसने अपनी जेब से एक तेज़ चाकू निकाल लिया और कुछ कदम पीछे हट कर चाकू की नोक अपनी छाती पर रख कर बोला — “जब तक मैं ज़िन्दा हूँ कोई मुझे नहीं बाँध सकता जब तक मैं तुम्हें खुद अपने आपको बाँधने न दूँ। वरना मैं यह चाकू अपनी छाती में भोंक लूँगा। तब तुम लोग मेरी लाश को बाँध लेना। या फिर जो कुछ भी तुम चाहो उसके साथ कर लेना। पर जब तक मैं ज़िन्दा हूँ तब तक कोई मेरे शरीर पर रस्सी नहीं डालेगा।
मैं अदालत में जाने के लिये और गवाही देने के लिये बिल्कुल तैयार हूँ पर मैं वहाँ किसी कैदी की हैसियत की तरह से नहीं जाऊँगा।”
उसकी बहादुरी देख कर दूत डर गये। अब तो वे उसके पास जाने तक में डर रहे थे। क्योंकि उन्हें डर था कि अगर कुछ हो गया यानी लड़के ने अपनी धमकी पूरी कर दी तो उसका इलजाम उन्हीं पर लगाया जायेगा। और क्योंकि वह खुद ही उनके साथ जाने के लिये तैयार था सो उन लोगों को उसे वैसे ही ले जाना पड़ा।
रास्ते में जाते समय दूत सोचते जा रहे थे कि यह लड़का तो बहुत होशियार है। वह तो वह सब भी जानता था जो वह नहीं जानते थे। पर जजों को यह देख कर बहुत आश्चर्य हुआ जब उन्होंने लड़के के मुँह से सारी घटना का हाल सुना।
वह इतने अच्छे तरीके से बोल रहा था कि उनको अपना फैसला उसी के हक में सुनाना पड़ा। उन्होंने उसको सारे इलजामों से आजाद कर दिया और छोड़ दिया।
अब वह स्त्री राजा के पास गयी तो राजा ने कहा कि इस मामले की जाँच वह खुद करेगा। पर वह भी लड़के की बात सुनने के बाद लड़के के हक में फैसला सुनाने पर मजबूर था। उसने भी कह दिया कि लड़का बिल्कुल बेकुसूर है।
अब तो वह स्त्री गुस्से से पागल हो गयी कि राजा ने भी उसकी बजाय एक सड़क के लड़के को जिता दिया।
यह देख कर वह रानी जी के पास गयी क्योंकि वह जानती थी
कि रानी राजा से ज़्यादा सख्त थी। उसकी बात सुन कर वह बोली
— “मेरा पति तो एक बहुत पुराना बेवकूफ है उसके जज भी सारे
के सारे बेवकूफ हैं। यह तुम्हारे लिये बहुत बुरा हुआ कि तुम्हारा
मुकदमा बजाय मेरे पास लाने के अदालत में ले जाया गया क्योंकि मैं
इस मामले को किसी और तरह से देखती और तुम्हारे साथ न्याय
करती।
पर अब क्योंकि तुम्हारा मामला अदालत में से गुजर चुका है और राजा ने उसके फैसले को ठीक कहा है मैं अब इसको कोई बहुत ज़्यादा अच्छा रूप नहीं दे सकती पर फिर भी मैं देखती हूँ कि तुमको इसमें न्याय कैसे दिलवाया जा सकता है।
स्त्री को याद आया कि उसके राज्य में एक बहुत ही बुरे स्वभाव वाली स्त्री रहती थी जिसके साथ कोई नौकर रहना नहीं चाहता था। उसके पति ने भी यह कह रखा था कि इस स्त्री के साथ तो उसकी ज़िन्दगी इतनी दूभर थी कि शायद नरक भी इससे अच्छी जगह होती।
सो उसने सोचा कि अगर इस लड़के को उस स्त्री के घर में गड़रिये की नौकरी दिलवा दी जाये तो यह सजा उस लड़के के लिये सबसे अच्छी रहेगी जो सजा दूसरे जज उसे देते।
रानी ने कहा ठीक है मैं इस मामले को तुम्हारी इच्छा के अनुसार ही निपटाती हूँ। सो रानी ने एक अपने भरोसे का आदमी बुलाया और उसको समझ दिया कि उसे क्या करना है।
अगर रानी को इस बात का ज़रा सा भी अन्दाज़ होता कि यह लड़का निकाला हुआ राजकुमार है तो वह उसे तुरन्त ही मरवा देती। वह जजों और राजा किसी के फैसले की परवाह नहीं करती। पर यह बात उसके दिमाग में ही नहीं आयी।
जैसे ही राजकुमार के किसान मालिक को इस बात का पता चला कि उसने लड़के को अपने यहाँ से निकाल दिया। उसने अपने सितारों को धन्यवाद दिया कि वह इस मामले से इतनी आसानी से बाहर आ गया।
रानी का दूत लड़के को उस स्त्री के खेत पर ले गया जहाँ रानी ने उसको ले जाने के लिये कहा था। अब यह काम तो लड़के की बिना मर्जी के ही था।
जब उस नीच स्त्री को पता चला कि रानी जी ने उसके पास काम करने के लिये एक गड़रिया भेज दिया है और साथ में यह भी कि वह उसके साथ कैसा भी सुलूक कर सकती है तो वह तो खुशी से चिल्ला पड़ी। उसने कहा कि क्योंकि यह लड़का बहुत ही अजीब तरह से व्यवहार करता है और कोई काम ठीक से नहीं कर सकता तो तुम इसको कैसे भी रख सकती हो।
उसको यह नहीं मालूम था कि वह कितना मुश्किल आदमी था सो उसने सोचा कि उस लड़के को जैसे वह चाहेगी रखेगी। पर जल्दी ही उसको पता चल गया कि वह तो इतनी ऊँची बाड़ थी कि उसको पार करना बहुत मुश्किल था। और वह लड़का अपने अधिकारों को बाल भर भी छोड़ना नहीं चाहता था। अगर वह उससे बिना किसी वजह के एक बुरा शब्द भी कहती तो वह उसको दस शब्द पलट कर सुनाता। और अगर वह उस पर हाथ उठाने की कोशिश करती तो वह भी उसके सामने कोई पत्थर या लकड़ी का लठ्ठा उठा लेता। या फिर कुछ और जो कुछ भी उसके हाथ में आ जाता।
वह चिल्ला कर कहता — “मेरी तरफ एक कदम भी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं करना वरना मैं तुम्हारी खोपड़ी तोड़ दूँगा और तुम्हें मसल कर तुम्हारा सूप बना दूँगा।”
उस स्त्री ने ऐसी भाषा पहले कभी किसी से नहीं सुनी थी। और कम से कम अपने नौकरों से तो कभी नहीं सुनी थी। यह सब झगड़ा देख सुन कर उसका पति मन ही मन बहुत खुश होता था। वह अपनी पत्नी के साथ बिल्कुल खड़े होना नहीं चाहता था क्योंकि लड़का अपने सारे काम ईमानदारी से करता था।
स्त्री ने उस बच्चे के उत्साह को भूख से मारना चाहा। उसने उसको खाना नहीं दिया पर बच्चे ने खुद ही जो कुछ उसे घर में खाना मिला उसे खा लिया। दूध उसने गायों से निकाल कर पी लिया। इस तरह से वह कभी भूखा नहीं रहा।
जितना ज़्यादा वह बच्चे को अपने काबू में नहीं रख पाती थी उतना ही ज़्यादा वह अपन गुस्सा अपने पति और अपने आस पास के लोगों पर निकालती थी।
लड़के ने जब इस तरह की ज़िन्दगी कुछ हफ्ते तक निकाल ली और उसको लगा कि हर दिन पहले दिन जैसा ही था तो उसने उस नीच स्त्री की नीचता के लिये कुछ इस तरह से बदला देना चाहा कि दुनियाँ ऐसी राक्षसी से बच जाये।
अपन प्लान कामयाब करने के लिये उसने बारह भेड़िये पकड़े और उन्हें एक गुफा में बन्द कर दिया। अपने जानवरों में से एक जानवर वह उनको रोज फेंक देता था ताकि वे भूखे न रहें।
अब उस स्त्री के गुस्से को कौन बखान कर सकता है जब उसने देखा कि उसके जानवरों का झुंड धीरे धीरे कम हो रहा है। रोज रोज लड़का उसके जानवर जितने वह सुबह ले कर जाता था उससे कम ले कर आता था। पूछने पर लड़के ने कहा कि उन्हें भेड़िया खा गया।
वह उस पर पागलों की तरह से चिल्लाती और उसको धमकी देती कि वह उसको जंगली जानवरों के सामने उसको खाने के लिये फेंक देगी। तो वह हँस कर जवाब देता — “क्या तुम्हारा अपना जंगली माँस उनके लिये ज़्यादा स्वादिष्ट नहीं होगा?”
उसके बाद उसने भेड़ियों को गुफा में तीन दिन तक खाने के लिये कुछ नहीं दिया। अगले दिन रात को जब सब सोये हुए थे तो उसने मालकिन के जानवर उसके बाड़े में से निकाल लिये और उसमें वे बारह भूखे भेड़िये रख दिये। बाड़े का दरवाजा कस कर बन्द कर दिया ताकि वे जंगली जानवर वहाँ से निकल कर न भाग सकें।
यह करने के बाद उसने खेत की तरफ से मुँह मोड़ लिया क्योंकि बहुत दिनों से वह गड़रिये का काम करते करते थक गया था। अब वह कोई बड़ा काम करना चाहता था।
पर अगले दिन क्या ही डरावना दृश्य था। जब वह स्त्री अपने जानवरों के बाड़े में गयी और उसमें से गायों को दुहने के लिये जानवर निकालने लगी तो बजाय जानवरों के उसमें से गुस्से से भरे भूखे भेड़िये उसके ऊपर गिर पड़े और पलों में उसको उसके कपड़े खाल आदि खा कर खत्म कर दिया।
केवल उसकी जबान और दिल बचा जो उन जंगली जानवरों के खाने के लिये भी इतने जहर भरे थे कि उन्होंने भी उनको छोड़ दिये। न तो उसके पति को और न ही उसके किसी और नौकर को उसके मर जाने का दुख हुआ। बल्कि उसके मरने की हर एक को खुशी हुई।
अब राजकुमार कुछ सालों तक ऐसे ही घूमता रहा। कभी वह यह काम करता कभी कोई दूसरा काम करता पर वह एक जगह कहीं टिक कर नहीं बैठा। क्योंकि उसके बचपन के दिन उसके सामने बहुत ही साफ सपने की तरह दिखायी देते और वे हमेशा उसको यह याद दिलाते रहते कि वह किसी बड़ा काम करने के लिये पैदा हुआ है।
कुछ कुछ समय बाद वह बूढ़ा उससे मिलता रहा जिसने जब वह नया नया गड़रिया बना था तभी से उसकी आँखों में पढ़ लिया था। जब राजकुमार अठारह साल का हुआ तो बागबानी सीखने के लिये उसने एक माली का काम शुरू कर दिया। इसी समय एक ऐसी घटना घटी जिसने उसकी ज़िन्दगी पलट दी।
वह नीच स्त्री जो रानी के हुक्म से राजकुमार को रात में बाहर ले जा कर छोड़ कर आयी थी और जिसने उसे जंगल में गरीब किसान को पालने के लिये दिया था मरने वाली हो रही थी। क्योंकि इस पाप को करने से उसके दिल दिमाग पर एक बोझ लदा हुआ था इसलिये उसने मरते समय उसने पादरी के सामने यह स्वीकार किया कि उसने ऐसा नीच काम किया था। इस बात को पादरी के सामने कहने से ही उसके दर्द को थोड़ा आराम मिल पाया।
उसने यह तो बता दिया कि उसने लड़का वहाँ छोड़ा था पर वह यह नहीं बता सकी कि बच्चा अभी ज़िन्दा है या मर गया। यह सुन कर पादरी तुरन्त ही राजा साहब के पास भागा गया और राजा को जा कर यह खुशी की खबर सुनायी कि उसका खोया हुआ बेटा मिल गया है।
राजा ने यह बात किसी को नहीं बतायी और तुरन्त ही अपना घोड़ा तैयार करवाया। अपने तीन भरोसे के नौकर लिये और जंगल के उस खेत की तरफ चल दिया जहाँ उस स्त्री ने उसके बच्चे को रखा था।
वहाँ पहुँच कर किसान और उसकी पत्नी ने बताया कि हाँ फलाँ फलाँ समय एक स्त्री वहाँ आ कर एक बच्चा दे गयी थी और उसी समय वह उनको बच्चे के पालने के लिये सौ रूबल भी दे गयी थी। जिस तरह से वह बच्चा उनको दिया गया उससे उनको लगा कि वह बच्चा किसी कुलीन परिवार का है पर वे यहाँ तक नहीं सोच सके कि वह शाही परिवार का होगा। जब वह बच्चा यह कहता था कि वह शाही परिवार का है तो वे उसे मजाक समझते थे।
उसके बाद किसान राजा को खुद उस गाँव तक ले गया जिस गाँव में वह उसको गड़रिये का काम दिलवा कर आया था। उसने उसको वह काम उसी की इच्छा पर दिलवाया था न कि अपनी इच्छा से। क्योंकि उसने कहा था कि वह अब यहाँ अकेले रहना नहीं चाहता था।
पर जब किसान राजा को उस अमीर किसान के घर ले कर पहुँचा जहाँ उसने उसको नौकरी दिलवायी थी तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और उससे ज़्यादा आश्चर्य राजा को हुआ जब वह लड़का उनको वहाँ नहीं मिला। उसको तो एक नौजवान हो जाना चाहिये था पर वह तो गाँव भर में नहीं था न उसकी कोई खबर थी। सारे लोग उसके बारे में उनको बस यही बता सके कि उस लड़के को राजा की अदालत में बुलाया गया था क्योंकि किसी कुलीन स्त्री ने उस पर मुकदमा लगा दिया था। मुकदमे में वह बेकुसूर साबित हुआ था सो छोड़ दिया गया था।
इसके बाद रानी का एक नौकर आ कर उसको यहाँ से ले गया और उसको किसी दूसरे किसान के घर पर काम के लिये रखवा दिया था। अब राजा जल्दी से उधर ही की तरफ चल दिया। वहाँ जा कर पता चला कि उसका बेटा वहाँ कुछ हफ्ते के लिये वहाँ था पर वह वहाँ से भी भाग गया।
उसके बाद उसके बारे में फिर कुछ नहीं सुना गया। अब वे उसके बारे में किससे पूछें। ऐसा कौन था जो उनको अब उसके पास ले जाता।
राजा जब इस बड़ी मुश्किल में था कि उसके बेटे की खोज के सारे दरवाजे बन्द हो गये थे तब वह बूढ़ा दिखायी दिया जो लड़के से पहले भी कई बार मिल चुका था।
उसने कहा कि वह उस लड़के को जानता है जिसको वे खोज रहे हैं। जो पहले गड़रिये का काम करता था और फिर बाद में जिसने कई और काम भी किये। उसने उनको आशा दिलायी कि शायद वह उस बच्चे को ढूँढने में उनकी मदद कर सके।
राजा ने उसे बहुत कीमती इनाम देने का वायदा किया अगर वह उस लड़के को ढूँढने में उनकी मदद कर सका। उसने अपने एक नौकर को घोड़े पर से उतरने के लिये कहा और उस बूढ़े को उस घोड़े पर चढ़ने के लिये कहा ताकि वे लोग जल्दी जल्दी चल सकें।
पर बूढ़ा मुस्कुराया और बोला — “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि घोड़ा कितनी तेज़ दौड़ता है। मेरी टाँगें भी उतनी ही तेज़ी से दौड़ सकती हैं क्योंकि इन्होंने दुनियाँ की यात्रा किसी भी घोड़े से ज़्यादा की है।”
एक हफ्ते में वे लोग उस जगह आ गये जहाँ वह लड़का था और उन्होंने उसे एक बहुत ही शानदार हवेली के मैदान में काम करते देख लिया जहाँ वह माली का काम कर रहा था।
जैसे ही राजा ने अपने बेटे को देखा तो वह तो खुशी के मारे पागल सा हो गया। उसके लिये तो वह कितने साल रोया था। उसको तो उसने मरा हुआ ही समझ लिया था। उसको अपने सीने से लगाते हुए उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी। उसने जब अपने बेटे के मुँह से उसका हाल सुना तो उसकी खुशी थोड़ी कम हो गयी और एक नयी परेशानी खड़ी हो गयी।
माली की एक बहुत ही सुन्दर बेटी थी। इतनी सुन्दर कि उसको सामने बागीचे के सारे फूल फीके थे। इतनी साफ जैसे देवदूत। राजकुमार इस लड़की को दिल दे बैठा था। उसने अपने पिता से साफ साफ कह दिया कि किसी भी ऊँचे परिवार की लड़की से शादी नहीं करेगा बल्कि इसी माली की बेटी से ही शादी करेगा चाहे राजा उसे अपने राज्य से ही क्यों न निकाल दे।
राजा बोला — “बेटा पहले घर तो चलो। हम लोग वहीं चल कर बात करेंगे।”
फिर राजकुमार ने राजा से एक कीमती अँगूठी माँगी और सबके सामने माली की बेटी की उँगली में पहना दी। और बोला — “इस अँगूठी से मैं तुमसे अपनी शादी पक्की करता हूँ। और जल्दी या देर में मैं तुमको अपनी दुलहिन बना कर ले जाने के लिये जरूर लौटूँगा।”
राजा बोला — “नहीं नहीं। ऐसे नहीं। हम बाद में यह मामला तय करेंगे।” उसने तुरन्त ही लड़की की उँगली से अँगूठी निकाली और अपनी तलवार से उसके दो टुकड़े किये। एक टुकड़ा उसने अपने बेटे को दे दिया और दूसरा टुकड़ा उसने माली की बेटी को दे दिया।
अँगूठी बाँट कर वह बोला — “भगवान ने अगर तुम लोगों को एक दूसरे के लिये बनाया है तो इस अँगूठी के दोनों हिस्से समय के साथ साथ बढ़ते रहेंगे ताकि वह जगह जहाँ से अँगूठी के दो हिस्से किये गये हैं वह जगह दिखायी नहीं देगी। तुम दोनों इन्हें उस समय तक रखो जब तक समय आता है।”
रानी ने जैसे ही अपने सौतेले बेटे को देखा तो वह गुस्से से लाल हो गयी। उसने तो यह सोच लिया था कि वह हमेशा के लिये मर गया। अब तो वह अचानक ही राज्य का वारिस हो कर लौट आया है। क्योंकि नयी पत्नी से राजा के केवल दो बेटियाँ ही थीं।
कुछ साल बाद राजा की आँखें बन्द हो गयीं। और उसका बेटा राजा हो गया। अपनी सौतेली माँ से खराब व्यवहार मिलते हुए भी राजकुमार उसके बुरे व्यवहार का बदला उसको बुरे व्यवहार से नहीं दे रहा था। उसका फैसला उसने भगवान पर छोड़ रखा था।
हालाँकि उसको यह आशा तो नहीं थी कि वह अपनी किसी बेटी को राजगद्दी पर बैठा देखती पर वह यह सपना देख रही थी कि वह उसकी शादी अपने घर की किसी अच्छी लड़की से कर देगी।
पर राजकुमार ने कहा कि वह यह शादी नहीं करेगा क्योंकि उसने अपने लिये बहुत पहले से ही एक लड़की ढूँढ रखी है। जब सौतेली माँ को यह पता चला कि राजकुमार ने किसी नीचे घराने की लड़की देख रखी है उसने राज्य के सलाहकारों की सलाह से उस शादी को न करवाने का फैसला किया।
पर राजकुमार अपने इरादे का पक्का था। उसने अपनी सौतेली माँ की बात नहीं मानी। इस मामले पर काफी समय तक बहस होती रही। तब राजा ने अपना आखिरी फैसला सुना दिया — “हम एक बड़ी दावत का इन्तजाम कर रहे हैं। इसमें सब राजकुमारियों को ऊँचे खानदान की सारी कुँआरी कन्याओं को बुलाया जाये।
अगर इनमें से कोई भी मेरी चुनी हुई लड़की से अच्छी लड़की होगी तो मैं उससे शादी कर लूँगा। पर अगर ऐसा नहीं हुआ तो जिससे मेरी शादी पक्की हो चुकी है वही मेरी पत्नी बनेगी।”
सो शाही महल में एक बहुत बड़ी दावत का इन्तजाम हुआ जो पन्द्रह दिन तक चली। इसमें सब स्त्रियों को मौका मिल गया कि वह माली की लड़की से ज़्यादा सुन्दर और अच्छी साबित हों। और क्योंकि इस दावत का उद्देश्य सबको मालूम था तो सब एक दूसरे से होड़ में थीं।
दिन जल्दी ही बीत गये। जब दावत खत्म होने पर आयी तो बड़े बड़े सलाहकार राजा के सामने एक बार फिर इकठ्ठा हुए। उन्होंने राजा से वही कहा जो रानी ने उनसे कहने के लिये कहा था कि “अगर राजा ने आज शाम तक अपना चुनाव नहीं किया तो झगड़ा खड़ा हो जायेगा क्योंकि हर कोई चाहता था कि राजा की शादी हो जाये।
राजा ने कहा — “मुझे अपनी प्रजा का फैसला मंजूर है। मैं शाम तक अपना फैसला सुना दूँगा।”
शाम को सबसे छिपा कर उसने अपना एक भरोसे का आदमी माली के घर भेजा और माली की बेटी को यह सन्देश भेजा कि वह शाम तक छिप कर रहे।
शाम को महल रोशनी से चमक उठा। और जब सारी स्त्रियाँ अपने सबसे अच्छे कपड़े पहन कर वहाँ आयीं और अपनी खुशकिस्मती या बदकिस्मती का इन्तजार करने लगीं।
पर राजा कमरे में एक नौजवान लड़की की तरफ बढ़ा जो सफेद कपड़ों में इतनी ज़्यादा लिपटी हुई थी कि उसकी नाक का अगला हिस्सा भी नहीं दिखायी दे रहा था। सब उसकी सादी सी पोशाक देख कर चौंक गये।
वह सादी सफेद लिनन में लिपटी हुई थी। उसने न तो सिल्क पहनी थी न साटिन और न सोना। जबकि दूसरी सब स्त्रियाँ ऊपर से ले कर नीचे तक सिल्क और साटिन की पोशाकें पहने थीं। किसी के होठ टेढ़े थे तो किसी की नाक ऊपर उठी हुई थी।
पर राजा ने किसी की तरफ ध्यान नहीं दिया। उसने उस लड़की के सिर पर बँधा रूमाल खोल दिया और उसे रानी की जगह ले गया और बोला — “यह मेरी चुनी हुई दुलहिन है जिसे मैं अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ। मैं अपनी शादी में आप सबको बुलाना चाहता हूँ।”
रानी माँ गुस्से से चिल्लायी — “एक ऐसे लड़के से जो किसी गड़रिये की तरह पला हो उससे इससे ज़्यादा और क्या आशा की जा सकती है।
अगर तुम अपने धन्धे में वापस जाना चाहते हो तो इस लड़की को भी साथ ले जाओ जो शायद सूअर पालना ज़्यादा पसन्द करे। पर यह लड़की राजगद्दी के लायक नहीं है। ऐसी किसान की लड़की तो राजगद्दी को और बदनाम ही करेगी।”
ये शब्द राजा के कानों को तीर जैसे चुभे। उसने कहा — “मैं राजा हूँ और जो चाहूँ कर सकता हूँ पर वह तुम्हीं हो जिसने मुझे अपनी पुरानी ज़िन्दगी याद दिलायी है। तुम्हीं ने मुझे याद दिलाया ही कि मेरी यह हालत किसने की है।
खैर कोई भी तरीके वाला आदमी थैले में बन्द बिल्ली नहीं खरीदेगा। मैं हम लोगों के अलग होने से पहले आप सबको एक चीज़ दिखाना चाहूँगा कि मैं इस लड़की से जो स्वर्ग से आयी देवदूत की तरह से है अच्छी और कोई दूसरी लड़की पा नहीं सकता था।”
यह कहते हुए वह कमरे से बाहर निकल गया। पर तुरन्त ही वापस भी आ गया। उसके साथ वह बूढ़ा था जिसको वह जबसे जानता था जबसे वह गड़रिये का काम करता था। इसी बूढ़े ने राजा को इसका पता बताया था। यह फिनलैंड का एक जाना माना जादूगर था जिसको बहुत सारी विद्याऐं आती थीं।
राजा बोला — “ओ ताकतवर जादूगर। तुम अपनी कला से हमें इस लड़की के अन्दरूनी चरित्र के बारे में बताओ ताकि ये सब जान सकें कि यह लड़की मेरी पत्नी बनने के लायक है या नहीं।”
जादूगर ने वाइन जैसी किसी चीज़ से भरी हुई एक बोतल ली उसके ऊपर जादू डाला और सब लड़कियों को कमरे में आने के लिये कहा। फिर उसने बोतल में से कुछ बूँदें लीं और हर एक लड़की के सिर पर छिड़कीं तो वे सब खड़े खड़े ही सो गयीं।
अब तो क्या ही आश्चर्यजनक घटना घटी। कुछ पलों में ही वे अपने आदमी की शक्ल में नहीं रहीं बल्कि वे बदल गयीं – कोई साँप में कोई भालू में कोई भेड़िये में कोई मेंढक में आदि आदि। कुछ शिकारी चिड़ियों में बदल गयीं।
पर इन सब में एक गुलाब की झाड़ी खड़ी थी, फूलों से लदी हुई और उसकी एक डाली पर दो फाख्ताऐं बैठी थीं। यह माली की लड़की थी जिसे राजा ने अपनी पत्नी के रूप में चुना था।
राजा बोला — “अब तुम सब लोगों ने इन लड़कियों का अन्दरूनी हिस्सा देख लिया है। मैं इन लोगों के बाहरी रूप पर नहीं जाने वाला।”
रानी माँ यह देख कर गुस्से से भर उठी पर फिर भी वह कुछ कर नहीं सकी। उसके बाद जादूगर ने सबको अपने अपने पुराने रूप में ला दिया। राजा ने गुलाब की झाड़ी से अपनी पत्नी को चुन लिया और उससे आधी अँगूठी माँगी तो उसने आधी अँगूठी निकाल कर उसको दे दी।
राजा ने अपनी वाली आधी अँगूठी निकाली और दोनों को साथ साथ अपनी हथेली पर रख लिया। दोनों आधे हिस्से तुरन्त ही आपस में जुड़ गये और कोई भी उस जगह को नहीं देख सका जहाँ से वे तलवार से काट कर अलग किये गये थे। नौजवान बोला — “आप सब देखें कि मेरे पिता का सपना पूरा होने जा रहा है।”
उसी शाम राजा की शादी माली की लड़की से हो गयी। जितने लोग भी वहाँ उस समय मौजूद थे राजा ने सबको अपनी शादी में बुलाया।
जब दूसरी लड़कियों को पता चला कि उनकी नींद में उनका क्या हुआ था तो वे तो शर्म से पानी पानी हो गयीं। पर राज्य की जनता बहुत खुश थी कि उनकी रानी शक्ल सूरत और चरित्र दोनों में सबसे अच्छी थी।
शादी का उत्सव खत्म हो जाने के बाद राजा ने राज्य के सारे जजों को बुलवाया और उनसे पूछा कि ऐसे मुजरिम को क्या सजा देनी चाहिये जिसने छिपा कर राजा का बेटा चोरी किया हो और उसको एक किसान के घर में गड़रिये के रूप में पलने के लिये छोड़ दिया हो। इसके अलावा जब उसने अपनी पुरानी जगह ले ली हो तब भी उसके साथ ऐसा अपमानजनक व्यवहार किया हो। सबने एक आवाज में जवाब दिया ऐसे आदमी को तो फाँसी लगा देनी चाहिये। राजा बोला “ठीक है। रानी माँ को यहाँ अदालत में ले कर आओ।”
रानी माँ को बुलवाया गया और उसकी सज़ा उसको सुना दी गयी। अपनी सज़ा सुनते ही रानी तो दीवार की तरह सफेद पड़ गयी और राजा के सामने घुटने टेक कर बैठ कर अपनी करनी की माफी माँगने लगी।
राजा बोला — “मैं आपको आपकी ज़िन्दगी देता हूँ। मुझे आपको अदालत में कभी नहीं लाना चाहिये था अगर आपने अपना अपराध करने के बाद में मुझे अदालत में मेरा अपमान करने के लिये न बुलाया होता तो। पर आज के बाद आप मेरे राज्य में नहीं रह सकतीं।
आप आज ही अपना सामान बाँध लें और शाम होने से पहले पहले मेरा राज्य छोड़ कर चली जायें। एक आदमी आपको राज्य की सीमा तक छोड़ आयेगा।
ध्यान रखियेगा अब अगर आपने मेरे राज्य में कदम रखा इस राज्य के नीच से नीच आदमी को यह अधिकार है कि वह आपको पागल कुत्ते की तरह मार दे।
आपकी बेटियाँ मेरे पिता की भी बेटियाँ हैं इसलिये वे यहाँ रह सकती हैं क्योंकि इस सब में उनका कोई दोष नहीं है। दोष तो इसमें केवल आपकी आत्मा का है।”
अब क्योंकि रानी माँ को राज्य निकाल दे दिया गया था सो राजा ने शहर के पास दो बड़े मकान बनवाये। उनमें से एक तो उसने अपनी पत्नी के माता पिता को दे दिया और दूसरा उसने अपने उस किसान पिता को दे दिया जिसने उसको उसकी मजबूरी के दिनों में पाला पोसा था।
राजकुमार जो गड़रिये का काम कर के बड़ा हुआ था अपनी नीचे घराने की पत्नी के साथ हमेशा खुश खुश रहा और अपनी जनता को अपने बच्चों की तरह से प्यार करता रहा।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)