रूपा की चतुराई : मणिपुरी लोक-कथा
Roopa Ki Chaturai : Manipuri Lok-Katha
चेगलेई जनजाति में एक गरीब परिवार रहता था। उनके घर में दो छोटे-छोटे
बच्चे थे। पत्नी का नाम रूपा था। पति का नाम था कलियौंग। कलियौंग जी-तोड़
मेहनत करता ताकि परिवार का पेट पाल सके। मजदूरी के चक्कर में उसे कई बार घर से
बाहर भी रहना पड़ता था। ऐसे समय में पत्नी रूपा बहुत होशियारी से घर का ध्यान रखती।
उन दिनों शांगबी डायन ने गाँव भर में आतंक मचा रखा था। गाँव के जिस
घर में पुरुष नहीं होते थे, वह वहाँ घुसकर स्त्रियों और बच्चों को खा जाती। उसके
दोनों हाथ बहुत लंबे थे। दरवाजे बंद होने पर भी वह दीवारों की दरारों से बच्चे उठा ले
जाती।
कलियौंग को तीन-चार दिन के लिए घर से बाहर जाना पड़ा। रूपा ने
आश्वासन दिया- 'आप बेफिक्र होकर जाएँ। मैं घर और बच्चों का पूरा ध्यान रखूँगी।
मुझे शांगबी से डर नहीं लगता।'
कलियौंग ने सूरज निकलते ही गठरी उठाई और चल दिया। रूपा मन ही
मन भयभीत थी किंतु उसने बच्चों पर अपना भय प्रकट नहीं होने दिया। सूरज
ढलते ही गाँववाले, शांगबी के कारण अपने-अपने घरों में घुस गए। रूपा ने भी बच्चों
को खिलाया-पिलाया और सुला दिया। वह स्वयं लेटने ही लगी थी कि किसी ने
दरवाजा खटखटाया, 'क्या कलियौंग घर पर है?'
रूपा ने शांगबी की आवाज पहचान ली। उसका सारा शरीर थर-थर काँप रहा
था। किंतु उसने हिम्मत न हारी। कड़ककर बोली, 'कलियौंग, तुमसे कोई मिलने
आया है। दरवाजा खोल दूँ।'
अगली रात शांगबी डायन फिर आ पहुंची। रूपा ने वही झूठा जवाब-दिया।
चार दिन तक इस तरह रहा। पाँचवीं रात कलियौंग लौटा तो रूपा ने शांगबी
की सारी घटना कह सुनाई।
कलियौंग ने रूपा के कान में फुसफुसाकर एक तरकीब बताई। पाँचवीं रात
जब शांगबी ने फ़िर आकर पूछा; 'कलियौंग घर में है?'
रूपा तो पहले से ही तैयार थी आवाज को रआँसा बनाकर कांपते स्वर में
बोली।
'वे तो बाहर गए हैं। तुम कौन ... हो?'
शांगबी ने उत्तर सुनकर होंठों पर जीभ फिराई बहुत दिनों बाद इंसान का
खून और मांस मिलेगा। उसने दरवाजे की दरार से लंबा हाथ भीतर डाला ताकि बच्चे
पकड़ सके। रूपा पहले ही बच्चों के साथ चारपाई के नीचे दुबक गई थी। कलियौंग ने
तेज तलवार के एक ही प्रहार से शांगबी का हाथ काट डाला।
डायन जोर से चीखी। सारा गाँव उसकी चीख सुनकर जाग गया और उस पर
पत्थरों की बरसात होने लगी। शांगबी जान बचाकर भागी। उसने फिर कभी
गाँव में न घुसने का वादा किया।
गाँववालों ने कलियौंग के साहस की भूरि-भूरि प्रशंसा की। रूपा की तत्काल
बुद्धि का लोहा सबने स्वीकार किया।
(भोला यामिनी)