रिचर्ड और उसके ताश के पत्ते : कैनेडा की लोक-कथा
Richard Aur Uske Taash Ke Patte : Lok-Katha (Canada)
एक दिन रिचर्ड नाम का एक आदमी एक चर्च के पास से गुजर रहा था। चर्च में होली मास की पूजा हो रही थी सो वह चर्च में अन्दर चला गया और दीवार के पास वाली एक खाली सीट पर जा कर बैठ गया।
वहाँ उसने चर्च की किताब निकालने की बजाय अपनी जेब से अपने ताश के पत्ते निकाल लिये और उनको उलटने पलटने लगा। उसके पास ही एक सिपाही बैठा हुआ था। उसने इशारों से रिचर्ड को कई बार समझाने की कोशिश की कि या तो वह अपने ताश के पत्ते छोड़ कर चर्च की किताब हाथ में उठा ले और या फिर चर्च छोड़ कर चला जाये क्योंकि चर्च में बैठ कर ताश के पत्ते हाथ में लेना अच्छा नहीं लगता।
पर रिचर्ड ने उसके इशारों पर कोई ध्यान नहीं दिया। मास पूजा खत्म होने के बाद चर्च का पादरी और सिपाही दोनों ही रिचर्ड को समझाने के खयाल से रिचर्ड के पास आये तो रिचर्ड बोला — “फादर, आप अगर मुझे कुछ बोलने की इजाज़त दें तो मैं कुछ कहूँ।”
पादरी बोला — “हाँ हाँ क्यों नहीं। ठीक है रिचर्ड, कहो।”
रिचर्ड ने ताश के पत्तों में से एक दुग्गी निकाली और बोला — “यह दुग्गी मेरे लिये बाइबिल के दो टैस्टामैन्ट जैसी है।”
फिर उसने एक तिग्गी निकाली और बोला — “यह तिग्गी मेरे लिये होली ट्रिनिटी के तीन लोगों जैसी है।”
फिर उसने एक चौग्गी निकाली और कहा — “यह चौग्गी मेरे लिये चार इवान्जलिस्ट के जैसी है, और यह पंजा मेरे लिये मोसेस की पाँच किताबों जैसा है।
और यह छक्का भगवान के बनाये वे छह दिन हैं जिनमें उसने आसमान और धरती बनाये। और यह सत्ता उस सातवें दिन को बताता है जिसमें उसने आराम किया। यह अट्ठा उन आठ लोगों को बताता है जो बाढ़ में बच गये थे।
यह नहला नौ बेवफा कोढ़ियों को दिखाता है और यह दहला भगवान के मोसेस को दिये हुए टैन कमान्डमेन्ट्स हैं। यह रानी स्वर्ग की रानी है, और यह राजा वह राजा है जिसकी मैं सेवा करता हूँ। और यह इक्का वह एक भगवान है जिसकी मैं पूजा करता हूँ।”
पादरी बोला — “पर रिचर्ड तुम गुलाम को तो भूल ही गये।”
रिचर्ड बोला — “नहीं फादर, मैं गुलाम को भूला नहीं हूँ। उसको तो मैं भूल ही नहीं सकता। असल में उसको तो सबसे बाद में ही आना था। वह गुलाम मुझ जैसा बेवकूफ है और साथ में इस सिपाही जैसा भी।”
इतना कह कर रिचर्ड चर्च के बाहर चला गया और पादरी उसको देखता ही रह गया।
(अनुवाद : सुषमा गुप्ता)