रेत का आदमी (डैनिश कहानी) : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन

Ret Ka Aadmi (Danish Story in Hindi) : Hans Christian Andersen

रेत के आदमी के बराबर कहानियाँ सारी दुनिया में कोई भी नहीं जानता। वह उन्हें सुनाना भी जानता है।

शाम के वक्त जब बच्चे मेज़ के चारों तरफ या किसी कोने में स्ट्रल पर बैठे होते हैं, तब वह चुपके से सीढ़ियों से आता है, पैरों में मोज़े पहने हुए होते हैं। इसलिए कोई आवाज़ नहीं होती। वह धीरे से दरवाज़ा खोलकर कमरे में आता है और बच्चों की आँखों में रेत फेंक देता है जिससे वे आँखें खुली नहीं रख पाते। वह उनके पीछे खड़ा होकर उनकी गरदन पर धीरे-से फूंक मारता है; इससे उनका सिर भारी हो जाता है, पर दुखता नहीं है, क्योंकि रेत का आदमी बच्चों को प्यार करता है। वह सिर्फ यह चाहता है कि वे बिस्तर में चुपचाप लेट जाएँ, जिससे वह उन्हें कहानियाँ सुना सके।

जब बच्चे सो जाते हैं, तब वह उनके पलंग पर बैठ जाता है। वह बड़े अजीब कपड़े पहनता है, उसका सूट रेशमी होता है पर उसका रंग बताना बहुत मुश्किल है, क्योंकि वह रंग बदलता रहता है। एक पल वह हरा दिखता है, तो दूसरे में लाल, और फिर नीला हो जाता है। वह अपनी दोनों बाँहों के नीचे छाता दबाए रखता है; एक तसवीरों से भरा है, उसे वह अच्छे बच्चों के पलंग के सिरहाने रख देता है, जिससे वे पूरी रात अच्छे सपने देख सकें। दूसरे छाते पर कोई तसवीर नहीं है, वह बुरे बच्चों को मिलता है। वे सारी रात करवटें बदलते रहते हैं; और सुबह जब वे उठते हैं, उन्होंने कोई सपना नहीं देखा होता।

हफ्ते में सात दिन होते हैं।

सोमवार

उस शाम जालमर को बिस्तर पर लिटाने के बाद रेत का आदमी बोला, 'देखो, मैं ज़रा तुम्हारा कमरा ठीक करूँगा।'

फौरन गमलों के पौधे बड़े-बड़े पेड़ बन गए जो छत तक पहुँचने लगे। उन्होंने अपने अंगों को फैलाया और फिर दीवार के नीचे आ गए, फिर ऊपर चले गए। कमरा बहुत प्यारा हरा-भरा कुंज बन गया। हर डाल पर फूल खिले हुए थे; हर फूल गुलाब से ज्यादा सुंदर और खुशबूदार था; अगर तुम उन्हें खाते तो वे जैम से ज्यादा मीठे लगते। पेड़ों पर सुनहरी रंग के फल और किशमिश से भरे 'बन' लगे हुए थे। यह सब कुछ बहुत बढ़िया था! पर इस सारी खूबसूरती के बीच कोई दुखी था। जालमर अपने स्कूल की किताबें जिस मेज़ की दराज़ में रखता था वहाँ से ठंडी साँसें भरने और रोने कराहने की आवाजें आ रही थीं।

रेत के आदमी ने दराज़ खोलते हुए कहा, 'क्या बात है?'

स्लेट साँसें भर रही थीं; जालमर ने उस पर सवाल किए थे, और सब कुछ गलत जोड़ा था। स्लेट के कोने पर डोरी से बँधी पेंसिल, ऐसे उछल रही थी जैसे रस्सी से बँधा छोटा-सा कुत्ता हो। वह मदद करना चाहती थी पर कर नहीं पा रही थी। जालमर की कापी भी सिसक रही थी; सुनने से भी दुःख हो रहा था। हर पन्ने पर बहुत सुंदर अक्षरों में जो छपा था, वह बच्चों को दुबारा लिखना था। जालमर ने कोशिश की थी पर उसके अक्षर छपे हुए अक्षरों से नहीं मिल रहे थे; वे सीधे खड़े होने की जगह लाइन पर घिसट से रहे थे; ऐसा लग रह था कि वे बेहोश होने वाले हैं, या उन्हें दौरे पड़ रहे हैं।

छपे हुए अक्षरों ने चिल्लाकर कहा, 'सीधे खड़े होओ। हमें देखो।'

जालमर के अक्षर बोले. 'हम यही चाहते हैं, पर ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि हमारी तबीयत ठीक नहीं है।'

रेत का आदमी बोला, 'तुम्हें मछली का तेल पीना चाहिए।'

इससे मदद मिली; जालमर ने जो अक्षर लिखे थे, वे डरकर सीधे हो गए।

रेत के आदमी ने सख्ती से बेचारे अक्षरों को देखते हुए कहा, 'आज रात कहानियों के लिए वक्त नहीं होगा, मैं इनसे कवायद कराऊँगा।' वे शरमा गए, सारे अ के अक्षर शरमाए हुए दिख रहे थे।

'बाएँ दाएँ-बाएँ दाएँ,' उसने हुक्म दिया और अक्षर उसे ऐसे मान रहे थे जैसे सैनिक हों। जल्दी ही वे ऐसे सीधे और सुंदर खड़े हो गए जैसे उनके छपे हुए भाई थे। पर अगली सुबह जब जालमर ने देखा तो वे पिछले दिन की तरह भद्दे दीख रहे थे।

मंगलवार

जैसे ही जालमर बिस्तर में गया, रेत के आदमी ने अपनी जादुई छड़ी से कमरे के सारे फर्नीचर को छुआ; और वे बोलने लगे। वे सब अपने बारे में बातें कर रहे थे, सिवाय उगालदान के; वह चुपचाप अपने कोने में खड़ा था, वह दूसरों के अहंकार और स्वार्थ से तंग आ चुका था। वे सिर्फ अपने बारे में सोचते थे और कभी-एक पल के लिए भी-उस जैसे गरीब के बारे में नहीं, जो एक कोने में खड़ा रहता था और सब उसमें थूकते थे।

आलमारी के ऊपर की दीवार पर एक सोने के फ्रेम में जड़ी बहुत सुंदर तसवीर टँगी थी जिसमें पेड़, फूल, नदी के पास घास के मैदान का दृश्य था। उनके पीछे बहुत-से महल थे। रेत के आदमी ने उसे भी छुआ और उस तसवीर की हर चीज़ में जान पड़ गई। पेड़ की डालें हवा में हिलने लगीं, चिड़िया गाने लगी। आसमान में बादल उड़ने लगे, उनकी छाया नीचे घाटी की घास पर पड़ने लगी।

रेत का आदमी झुका, उसने सोते हुए जालमर को बिस्तर से उठाया और उसे तसवीर तक ऊँचा किया। लड़के ने एक कदम उठाया और तसवीर में चला गया। पेड़ों के पत्तों में से सूरज चमक रहा था। वह नदी तक भागा; वहाँ किनारे से बँधा लाल और सफेद रंग का एक छोटा-सा जहाज़ खड़ा था। उसकी पाल चाँदी की तरह चमक रही थी, और सिर पर सोने के मुकुट पहने छ: बत्तख उसे पानी में खींच रहे थे। जालमर जंगल से निकला, पेड़ों ने उसे डाकुओं, चुडैलों और फूलों में रहते बौनों की कहानी सुनानी शुरू की जो उन्होंने तितलियों से सुनी थीं।

चाँदी और सोने की खाल वाली बहुत सुंदर मछलियाँ नाव के चारों तरफ तैर रही थीं; वे पानी से ऊपर हवा में कूदतीं और फिर झपाक से नदी में वापस छलाँग लगा देतीं। हर रंग और नाप की चिड़ियाँ ऊपर उड़ रही थीं। सारे जानवर, यहाँ तक कि मच्छर और उड़ने वाले कीड़े जालमर के पास पहुँचना चाहते थे; हर कोई उसे एक कहानी सुनाना चाहता था।

यह एक सच्ची यात्रा थी। एक पल जालमर घने अँधेरे जंगल में से निकल रहा था और दूसरे ही पल धूप और फूलों से भरे सुंदर बगीचे में था। वह संगमरमर के महलों के पास से निकला। उन महलों के छज्जों पर खूबसूरत राजकुमारियाँ खड़ी थीं; सबसे ज्यादा अचरज की बात यह थी कि वे उन लड़कियों जैसी दिख रही थीं जिनके साथ वह रोज़ खेला करता था। राजकुमारियों के हाथों में चीनी के सुअर थे जो बाजार में मिलने वालों से ज्यादा अच्छे थे। लड़कियाँ जालमर के साथ उन्हें बाँटना चाहती थीं। जब उसने सुअर का एक सिरा पकड़ा वह टूट गया। ऐसा बार-बार हुआ और उसे हमेशा बड़ा टुकड़ा मिलता, जबकि राजकुमारियों को छोटा टुकड़ा मिलता। हर महल के सामने एक राजकुमार सोने की तलवार लिए पहरा दे रहा था; जब जालमर वहाँ से निकला तब उन्होंने हुक्म दिया कि टीन के सिपाही और किशमिश बरसाए जाएँ-क्योंकि वे सच्चे राजकुमार थे।

कभी लगता कि वह बड़ी इमारतों के हॉलों में से निकल रहा है और कभी लगता कि बढ़िया शहरों में से। वह वहाँ गया जहाँ बचपन में उसकी देखभाल करने वाली धाय रहती थी। जालमर उसे बहुत प्यार करता था। वह एक बड़े से आँगन में खड़ी उसकी तरफ हाथ हिलाती हुई, अपने आप लिखा एक गीत सुनाने लगी :

ओह, मेरे छोटे बच्चे, मैं कितना
तुम्हारे प्यारे चेहरे को देखना चाहती हूँ,
वह छोटा-सा मुँह जिसे मैंने चूमा था,
तुम्हारी विश्वास-पूर्ण, भोली नज़र
मैंने तुम्हारी हँसी, तुम्हारी खुशी बाँटी थी;
फिर भी हमें जुदा होना पड़ा था।
भगवान इस ज़मीन पर तुम्हें खुश रखें,
और तुम्हारे प्यारे दिल को पवित्र रखें।

सारी चिड़ियाँ उसके साथ गाने लगीं। फूल नाचने लगे और पेड़ ऐसे सिर हिला रहे थे जैसे रेत के आदमी ने उन्हें भी कहानी सुनाई हो।

बुधवार

बाहर बारिश हो रही थी। जालमर को सोते हुए भी छत पर पड़ती बारिश की आवाज़ आ रही थी। रेत के आदमी ने खिड़की खोली, गली झील बन गई थी और जालमर की खिड़की के नीचे एक बड़ा जहाज़ खड़ा था।

रेत का आदमी बोला, 'जालमर, सैर के लिए आओगे? जहाज़ तुम्हें दूर ले जाएगा; और फिर भी, कल जब तुम उठोगे, तो तुम वापस बिस्तर में होगे।'

जालमर खड़ा हुआ, और अपनी अच्छी पोशाक पहनी। जब वह जहाज़ पर पहुँचा, तब बारिश नहीं हो रही थी, सूरज चमक रहा था। हवा से पाल खुल गए थे। जहाज चर्च के चारों तरफ घूमकर, गलियों से होता हुआ, जल्दी ही समुद्र तक पहुंच गया। जहाँ तक नज़र जाती थी समुद्र फैला हुआ था। जालमर ने देखा, सारसों का एक झुंड उड़ता हुआ गरम देश की तरफ जा रहा था। उनमें से एक सबसे पीछे और नीचे था। ये बहुत दिनों से उड़ रहे थे, और यह बेचारा बहुत थक गया था। उसके बड़े पंख अब धीरे-धीरे चल रहे थे। वह समुद्र की सतह के पास आता जा रहा था। उसने फिर ऊपर उठने की कोशिश की पर नहीं उठ पाया, फिर वह जहाज़ के मस्तूल से टकराया और ऊँची आवाज़ के साथ डेक पर गिर गया।

जहाज़ पर काम करने वाले लड़के ने उसे उठाया और जहाज़ पर जो छोटा-सा मुर्गियों का दड़बा था उसमें डाल दिया। मुर्गियों और बत्तखों के बीच खड़ा वह बड़ा उदास और थका हुआ लग रहा था।

सारी मुर्गियों ने कहा, 'क्या जीव है!'

मुर्गे ने अपने पंख फैलाकर दुगना आकार बनाया फिर सारस से पूछा, तुम कौन हो? कहाँ से आये हो?

बत्तखों ने एक दूसरे को धकेलते हुए 'क्वैक क्वैक' कहा। सारस ने उन्हें पिरामिडों वाले गरम देश मिस्र और रेगिस्तान के रेत के घोड़े से भी तेज़ दौड़ने वाले शुतुरमुर्ग के बारे में बताया।

बत्तखों की समझ में उसकी एक भी बात नहीं आई। इसलिए उन्होंने एक दूसरे से कहा, 'हम मान लेते हैं कि यह बेवकूफ है।'

तुर्की मुर्ग ने भी कहा, 'यह निश्चित रूप से बेवकूफ है।' वह इतनी आवाज़ कर रहा था कि सारस ने बोलना बंद कर दिया। वह दड़बे के एक कोने में खड़ा अफ्रीका के बारे में सोच रहा था।

'कितनी सुंदर पतली लंबी टाँगें हैं।' मुर्गा बोला। 'एक गज की क्या कीमत है?'

सारी बत्तखें हँसने लगीं 'क्वैक क्वैक क्वैक!' सारस ने ऐसा दिखाया जैसे उसे इस बेइज्जती के बारे में कछ सनाई न दिया हो।

मुर्ग ने कहा, 'तुम्हें इस हँसी के खेल में शामिल होना चाहिए क्योंकि ये मज़ाक था। क्या तुम्हें ये मज़ाक बहुत गंदा लगा? मेरा मतलब तुम्हारे जैसे किसी को जिसकी इतनी लंबी टाँगें हैं' फिर वह हँसा। 'तुम मज़ाक भी नहीं समझते। हम सब हँसी-मज़ाक करना जानते हैं और बुद्धिमान् हैं; हम मज़ेदार हैं।'

मुर्ग और बत्तख अपने आपको बहुत मज़ाकिया समझकर खुश होते रहे।

जालमर दड़बे तक गया, दरवाज़ा खोला और सारस को बाहर निकाल लिया। आराम करने के बाद अब वह फिर उड़ने के लिए तैयार था। उसने जालमर की तरफ देखकर गरदन हिलाई जैसे शुक्रिया कर रहा हो; फिर अपने बड़े पंख फैलाए और दक्षिण में मिस्र की तरफ उड़ गया। मुर्गियाँ कटकट करने लगीं, बत्तखें क्वैक क्वैक करने लगी और मर्ग का चेहरा लाल हो गया।

कल तुम सबका सूप बनाया जाएगा।' जालमर बोला और तभी उसकी आँख खुल गई। वह वापस अपने छोटे-से बिस्तर पर था। रेत का आदमी सचमुच उसे एक अजीब यात्रा पर ले गया था।

बृहस्पतिवार

'अब!' रेत के आदमी ने शुरू किया। 'डरो नहीं, यहाँ एक छोटा-सा चूहा है।' और उसने जालमर की तरफ एक छोटा-सा प्यारा सा रोयेंदार जानवर बढ़ाया। यह तुम्हें एक शादी के लिए बुलाने आया है; तुम्हारी माँ की रसोई में फर्श के नीचे रहने वाले दो छोटे चूहों ने शादी करने का निश्चय किया है। वहाँ उनका एक सुंदर घर है।'

‘पर मैं नीचे चूहे के बिल में कैसे जा सकता हूँ?' जालमर ने पूछा।

रेत के आदमी ने सोचते हुए कहा, 'देखता हूँ। मुझे तुम्हें छोटा बनाना पड़ेगा।' उसने जालमर को अपनी जादुई छड़ी से छुआ। फौरन लड़का छोटा होने लगा, फिर वह तर्जनी जितना रह गया। 'अब तुम टीन के सैनिक की पोशाक उधार माँग लो; जब कहीं बुलाया जाए तो वर्दी पहनना अच्छा लगता है।'

जालमर ने कहा, 'मैं यही करूँगा,' और उसने पल-भर में वर्दी पहन ली और एक अच्छा टीन का सैनिक लगने लगा।

एक छोटी-सी चुहिया ने कहा, 'श्रीमान, क्या आप अपनी माँ की उँगली की टोपी (सिलाई के समय उँगली में पहनने वाली) में बैठने की कृपा करेंगे? वह आपकी गाड़ी होगी और मैं आपका घोड़ा।'

'क्या एक लड़की मुझे खींचेगी? उसे मुश्किल नहीं होगी?' जालमर ने नम्रता से पूछा; पर वह चूहे की शादी के लिए चल दिया। वे एक लंबे गलियारे में से जा रहे थे जो सिर्फ इतना चौड़ा था कि उसमें से चूहा और उसकी सवारी निकल सके । वहाँ बिल्कुल अँधेरा नहीं था। छोटे-छोटे सूखे लकड़ी के टुकड़ों से रास्ता चमक रहा था।

चूहे ने पूछा, 'यहाँ प्यारी-सी खुशबू नहीं आ रही? पूरे हॉल में सुअर के गोश्त की वह भी बहुत अच्छी वाली चिकनाई लगाई गई थी।'

अब वे उस कमरे में पहुँचे जहाँ शादी होनी थी, दाईं तरफ सारी चुहियाँ खड़ी थीं; वे आपस में फुसफुसा रही थीं और मुँह बना रही थीं। बाईं तरफ चूहे खड़े थे; वे अपनी मूंछों पर ताव दे रहे थे पर ज्यादा बोल नहीं रहे थे। कमरे के बीच में शादी वाला जोड़ा था; वे पूरा समय पनीर की पपड़ी पर एक-दूसरे को चूमे जा रहे थे। उन्हें सबके बीच ऐसा करने की आज्ञा थी क्योंकि उनकी सगाई पहले हो चुकी थी और जल्दी ही शादी होने वाली थी।

और मेहमान आते गए। कमरा इतना भर गया कि छोटे चूहों को कोने में ही रहना पड़ा नहीं तो वे कुचल कर मर जाते। शादी वाला जोड़ा अब दरवाजे में खड़ा था जिससे रास्ता और बंद हो गया था। कमरा भी गलियारे की तरह चिकना किया गया था; वही शादी की दावत थी। मेहमान जब चाहें चबा सकते थे। मिठाई की जगह मूंगफली परोसी जा रही थी, उन पर परिवार के एक सदस्य ने शादी वाले जोड़े के नाम के पहले अक्षर काटकर बना दिए थे। सब कुछ अद्भुत था!

सारे चूहों ने घोषणा की कि शादी बहुत बढ़िया रही और बातचीत भी बहुत अक्लमंदी की थी।

शादी हो जाने पर चुहिया जालमर को वापस ले आई। वह एक बढ़िया दावत थी जिसके लिए उसे बुलाया गया था। पर उसे अपने आप को छोटा बनाकर टीन के सैनिक की पोशाक पहननी पड़ी थी।

शुक्रवार

रेत के आदमी ने कहा कि बहुत-से बड़े आदमी खासकर जो बुरे हैं मुझे अपने पास आने और कहानी सुनाने को कहते हैं, वे विनती करते हैं, 'ओ दयालु रेत के आदमी, कृपा करके आओ। हम सो नहीं पा रहे हैं; हमारी आँखें बंद नहीं हो रहीं। हम सारी रात जागते हुए अपने बुरे कामों को देखते रहते हैं। वे हमारे बिस्तर पर भूतों की तरह बैठकर हम पर उबलता पानी फेंककर हमें जगाए रखते हैं। क्या तुम आकर उनसे जाने को नहीं कहोगे जिससे हम सो सकें?' फिर वे लंबी ठंडी साँस भरते हैं और कहते हैं, 'हम इसके लिए तुम्हें रुपए देंगे। सिर्फ आकर हमसे शुभरात्रि कहो, अच्छे रेत के आदमी। हमने रुपए खिड़की की चौखट पर रख दिए हैं।' पर ऐसी चीजें आप पैसों से नहीं खरीद सकते।' रेत के आदमी ने समझाया।

'आज रात को क्या होगा?' जालमर ने पूछा।

'क्या तुम एक और शादी में जाना चाहोगे?' रेत के आदमी ने हँसते हुए पूछा। यह कल रात वाली से थोड़ी अलग तरह की होगी। तुम्हारी बहन का गुड्डा-जो आदमी के- से कपड़े पहने है और जिसे तुम सब हर्मन कहते हो-बर्था नाम की गुड़िया से शादी करना चाहता है। आज बर्था का जन्मदिन है और उसे बहुत-से उपहार मिलने की उम्मीद है।'

'ओह, मैं वह सब जानता हूँ।' जालमर ने विरक्ति से कहा। 'मेरी बहिन हर वक्त अपनी गुड़ियों के जन्मदिन या शादी करती रहती है, खासकर जब उनके नए कपड़े बनने होते हैं। मेरे ख्याल से वह यह काम सौ बार कर चुकी है।'

'पर आज रात यह एक सौ एकवीं बार होगी, और ऐसा मौका बार-बार नहीं आता। इसके बाद सब कुछ खत्म हो जाएगा। आओ देखो।'

जालमर ने अपनी खिलौनों की मेज़ की तरफ देखा। गुड़िया के कागज़ के मकान की खिड़की में रोशनी थी; और बाहर सारे टीन के सैनिक हथियार लिए खड़े थे। शादी वाला जोड़ा ज़मीन पर बैठा था। वे मेज़ के पावे से पीठ टिकाकर बैठे, एक-दूसरे को देखते हुए कछ सोच रहे थे—यह कोई अजीब बात नहीं थी; आखिर उनकी शादी होने वाली थी।

रेत के आदमी ने जालमर की दादी की स्कर्ट पहनी हुई थी और शादी करवा रहा था। शादी होते ही सब मेज़-कुर्सियों ने बड़ा सुंदर गाना गाया, जो इस मौके के लिए पेंसिल ने लिखा था, उसने शब्दों की परवाह न करके लय की फिक्र की थी।

शादी एक सौ एकवीं
अभी शुरू हुई है।
वह पिन जैसा अभिमानी
वह चमड़े से बनी हुई है।
हुरे पिन, हुर्रे चमड़ी।

फिर वक्त आया उपहार देने का। दोनों ने खाने की किसी भी चीज़ के लिए मना कर दिया था, वे प्यार पर जीने वाले थे।

दूल्हे ने पूछा, 'हनीमून के लिए गाँव जाना है या विदेश?' यह बड़ी मुश्किल समस्या थी। इसलिए दूर-दूर तक घूमी हुई अबाबील और अहाते की मुर्गी जिसने पाँच बार बच्चों को जन्म दिया था, राय माँगी गई। अबाबील ने दक्षिण के देशों के बारे में बताया, जहाँ बेलों पर अंगूरों के गुच्छे लटकते हैं, और जहाँ की हवा हल्की और गरम होती है। उसने पहाड़ों और उनके सुंदर रंगों के बारे में बताया जो उत्तर में दिखाई देने वाले पहाड़ों से बहुत अलग होते हैं।

मुर्गी बोली, पर वहाँ बंदगोभी नहीं होती। मैंने एक गरमी गाँव में बिताई थी। मेरे साथ मेरे चूजे थे। हम बालू के गड्ढे में रहे थे। बालू कुरेदने में इतना मज़ा आता है, और बगीचे के उस हिस्से में जाने की इजाज़त भी थी जहाँ बंदगोभी उग रही थी। उसका इतना सुंदर हरा रंग था; मुझे पक्का पता है कि किसी और चीज़ का इतना सुंदर रंग नहीं होता।'

'पर बंदगोभी के सारे पौधे एक से दिखते हैं,' अबाबील ने कहा।

'इसके अलावा यहाँ मौसम हमेशा खराब रहता है।'

'हमें उसकी आदत है।' मुर्गी ने जवाब दिया।

'पर हमेशा ठंड रहती है, मैं तो जमा जा रहा हैं।' काँपते हए अबाबील बोला।

"ठंड बंदगोभी के लिए अच्छी होती है।' मुर्गी बोली। "कभी-कभी तो यहाँ भी मौसम गरम होता है। चार साल पहले की गरमी मुझे याद है। करीब पाँच हफ्ते तक चली थी। इतनी गरमी थी कि साँस लेना मुश्किल हो रहा था। और फिर विदेशी ज़मीन पर सब तरह की रेंगने वाली ज़हरीली चीजें और लुटेरे होते हैं, मुझे लगता है जिन लोगों को अपना देश पसंद नहीं होता, वे कृतघ्न दुष्ट होते हैं, उन्हें यहाँ रहने ही नहीं देना चाहिए।' और मुर्गी रोने लगी पर फिर भी बोलती रही, 'एक बार मैंने भी यात्रा की है, एक लकड़ी के बक्से में बारह मील गई थी। विश्वास करो, यात्रा करने में कोई मज़ा नहीं है।' बर्था नाम की गुड़िया बोली, 'मुझे लगता है मुर्गी बहुत अक्लमंद है। मुझे भी पहाड़ों में जाना पसंद नहीं है। उसमें है क्या? एक तरफ से चढ़ो, दूसरे से उतरो। नहीं, हम रेत के गड्ढे में जाएंगे और सैर के लिए बंदगोभी के खेतों में।'

और उन्होंने वही किया।

शनिवार

'क्या तुम मुझे कहानी सुनाओगे?' बिस्तर में घुसते ही जालमर ने पूछा।

'नहीं, आज रात मेरे पास वक्त नहीं है।' रेत के आदमी ने कहा और जालमर के बिस्तर के ऊपर अपना सबसे सुंदर छाता खोल दिया। 'पर तुम इसे देख सकते हो। यह पूरी तरह चीनी है।'

अचानक छाता चीनी कटोरे जैसा दिखने लगा। उसके अंदर पूरी दुनिया थी। नीले पेड़, नीले पुल जिन पर छोटे-छोटे चीनी स्त्री-पुरुष खड़े जालमर की तरफ सिर हिला रहे थे।

'आज मुझे देखना है कि सारी दुनिया अच्छी तरह साफ हो जाए, क्योंकि तुम जानते हो कि कल इतवार है। मुझे चर्च की बुर्जी पर जाकर देखना होगा कि चर्च के बौनों ने घंटियाँ चमकाई हैं ना जिससे वे नकली न लगें। फिर मुझे खेतों में जाकर देखना है कि हवा ने पेड़ों और फूलों को झाड़ दिया है कि नहीं। पर सबसे ज़रूरी काम है सारे सितारों को उतार कर चमकाना। मैं उन्हें अपने एप्रन में रख लेता हूँ; पर पहले मुझे सारे छेदों की गिनती करनी होगी ताकि उन्हें ठीक जगह पर वापस रख दूँ। अगर ऐसा नहीं हुआ तो कुछ ही शायद उन छेदों में सही ढंग से आएँगे और तब यह डर होगा कि वे गिर ना जाएँ। फिर बहुत सारी उल्काएँ एक के बाद एक गिरती जाएँगी।'

जालमर के बिस्तर के सामने वाली दीवार पर टँगी उसके परबाबा की तसवीर ने कहा, 'देखो श्रीमान रेत के आदमी, मैं जालमर का परबाबा हूँ, मुझे खुशी है कि तुम जालमर को कहानियाँ सुनाते हो पर उसे उलझन में मत डालो। तारे हमारी धरती की तरह ग्रह हैं। कोई भी उन्हें उतार कर चमका नहीं सकता; और इसीलिए वे इतना उत्तेजित करते हैं।'

'धन्यवाद, धन्यवाद, परबाबाजी।' रेत का आदमी बोला; पर ऐसा नहीं लगा कि वह सचमुच एहसानमंद है। 'आप परिवार के मुखिया हैं। पर मैं आपसे काफी बड़ा हूँ; मैं नास्तिक हूँ। रोमन और यूनानी लोग मेरी पूजा करते थे और मुझे सपनों का. भगवान मानते थे। मैं बढ़िया से बढ़िया महल में जा चुका हूँ और मेरा हर जगह स्वागत होता है। मैं बच्चों और बड़ों को खुश करना जानता हूँ। पर आप कोई कहानी क्यों नहीं सुनाते?' और इन शब्दों के साथ रेत का आदमी अपना छाता लेकर चला गया।

परबाबा की तसवीर बड़बड़ाई, 'आजकल किसी को अपनी बात कहने का हक नहीं है।' और तब जालमर जाग गया।

इतवार

'शुभ संध्या', रेत के आदमी ने कहा।

जालमर ने सिर हिलाया और बिस्तर से बाहर कूद पड़ा, फिर परबाबा की तसवीर तक दौड़ा, और दीवार की तरफ उसका मुँह कर दिया ताकि वे कल की तरह रुकावट न डालें।

'अब मुझे कहानियाँ सुनाओ-मटर की फली में पाँच दानों की, ऊँचे बाँग देने वाले मुर्गे की और रफू करने वाली उस सुई की जो अपने को सिलाई की सुई के बराबर समझती थी,' जालमर ने माँग की।

'बहुत हो चुका,' रेत के आदमी ने कहा। अच्छी चीज भी ज्यादा नहीं हो जानी चाहिए। इसके अलावा मैं कहानियों की जगह तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूँ। मैं तुम्हें अपना भाई दिखाऊँगा; उसे भी रेत का आदमी कहा जाता है, पर वह सिर्फ एक बार आता है और फिर लोगों को घोड़े पर उठाकर ले जाता है। वह कहानी सुनाता है पर सिर्फ दो कहानियाँ जानता है। एक इतनी सुंदर है कि तुम कल्पना भी नहीं कर सकते; दूसरी इतनी भद्दी और डरावनी कि उसका भी वर्णन नहीं कर सकते।' रेत के आदमी ने नन्हे जालमर को ऊपर उठाया ताकि वह खिड़की से बाहर देख सके। वह मेरा भाई घोड़े पर आ रहा है, उसे मौत कहते हैं। किताबों में उसकी जैसी तसवीर खींची जाती है, वह वैसा डरावना या बुरा नहीं है। वह कंकाल भी नहीं है। वह तो उसकी पोशाक के ऊपर चाँदी की कढ़ाई है। सेना में होने की वजह से वह घुड़सवारी करता है। उसके मखमल के चोगे को देखो। वह आगे आता है और हवा से उसका चोगा पीछे फहराता है।'

जालमर ने देखा, कैसे मौत घोड़े पर आकर मरे हुए लोगों को ले गया; उनमें कुछ बूढ़े थे, कुछ जवान। कुछ को आगे बिठाया, कुछ को पीछे। सबसे एक ही सवाल पूछा, 'तुम्हारी क्या रिपोर्ट है?'

सबने जवाब दिया : 'ओह, अच्छी!' पर वह उनके जवाबों से संतुष्ट नहीं था, उसे खुद देखना था। जिनके अच्छे नंबर थे उन्हें उसने अपने आगे बिठाया, और दुनिया भर की सबसे सुंदर कहानियाँ सुनाईं; पर जिनके बुरे नंबर थे उन्हें अपने पीछे बिठाया और भयानक कहानियाँ सुनाईं। वे लोग रो रहे थे और घोड़े से कूद जाना चाहते थे पर ऐसा कर नहीं सकते थे।

जालमर ने कहा, 'मैं सोचता हूँ मौत से भी अच्छा रेत का आदमी है, मैं उससे नहीं डरता।'

'डरने की कोई वजह ही नहीं है', रेत के आदमी ने मुस्कराते हुए कहा।

'सिर्फ यह ध्यान रखो कि तुम्हारे अच्छे नंबर आएँ।'

'अब ऐसी कहानी को मैं ज्ञान बढ़ाने वाली मानता हूँ।' परबाबा की तसवीर ने बड़बड़ाते हुए कहा। अपनी बात कहने और शिकायत करने का फ़ायदा होता है।' अब वे खुश थे।

अब तुमने रेत के आदमी की कहानी सुन ली। जब वह आज रात को आए, तब तुम खुद उससे कहानी सुनाने को कह सकते हो।

  • हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन की डैनिश कहानियाँ हिन्दी में
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां