रेगिस्तान की माया (कहानी) : ओनोरे द बाल्ज़ाक
Registan Ki Maya (French Story) : Honore de Balzac
पशुशाला से बाहर आते ही उस महिला ने कहा, "कैसा भयानक दृश्य है?"
अब तक वह पिंजड़े के भीतर खिलाड़ी और उसके पालतू शेर का खेल देख रही थी।
"मनुष्य कैसे इन भयानक पशुओं को इस तरह वश में कर लेता है? उनके स्नेह पर कैसे इतना निर्भर करता है?"
मैंने कहा, "आपको जो बात एक बहुत गहरी समस्या-सी लग रही है, वह प्रकृति के एक नियम के सिवाय और कुछ भी नहीं है।"
तब वह अविश्वास की मुस्कान के साथ कह उठी, "अच्छा, यह बात है।"
मैंने पूछा, "क्या आपको यह ख्याल है कि इन पशुओं में स्नेह या प्रेम करने की क्षमता नहीं है? सभ्य मनुष्यों में जितने दोष और गुण हैं, सब इनको सिखाए जा सकते हैं।"
वह महिला मेरी ओर बहुत चकित-सी होकर देखती रही।
मैंने कहा, "मैं भी पहली बार इस खिलाड़ी को क्रूर जानवरों के साथ खेलते देख, आपकी तरह ही चकित हुआ था। मेरी बग़ल में एक बूढ़ा सैनिक खड़ा था, उसका एक पैर जांघ से कटा हुआ था। उसके चेहरे ने और शक्ल ने मुझ पर एक विचित्र प्रभाव डाला। उसके गर्व से ऊँचे माथे पर मानो किसी अदृश्य विजय का टीका अंकित था। देखते ही लगता कि महावीर नेपोलियन के साथ युद्धों में उसने उम्र काटी है। उसके सरल भाव और खुशमिज़ाजी ने मुझे आकर्षित कर लिया। यह उस सेना-दल का एक सिपाही था, जिसे कोई भी विषय चकित नहीं कर सकता, जो मृत्यु के पंजे में भी हँसता रहता है, जो शैतान के साथ बैठकर भी खुशमिज़ाजी से बातें करने को तैयार रहता है। वह बूढ़ा सैनिक इस खिलाड़ी और जानवर का खेल एकटक काफ़ी देर तक देखकर होंठ बिचका कर व्यंग्य की हँसी हँसता हुआ चला जा रहा था। खिलाड़ी के साहस से चकित होकर मेरे कुछ कहने पर उसने जानकार की तरह सिर हिला कर हंसते हुए कहा, 'जनाब, यह सब मुझे खूब अच्छी तरह मालूम है-खूब मालूम है!"
मैंने कहा, "अच्छा, आप अगर इस रहस्य को समझा दें, तो बहुत आभारी होऊँ।"
कुछ क्षणों में हम दोनों में घनिष्ठता हो गई, और साथ-साथ हम लोगों ने एक होटल में प्रवेश किया। वहाँ बैठकर एक बोतल शैम्पेन पीते ही उस बूढ़े का दिल मानो खुल गया। तब उसने अपने जीवन का किस्सा सुनाना शुरू किया। तभी मैंने समझा कि 'यह सब मुझे मालूम है' कहकर उसने जो गर्व प्रकट किया है, वैसा कहने का उसे अधिकार है।
वह महिला घर लौट कर ऐसे मीठे भाव से अनुरोध करने लगी कि मजबूरन मुझे उस बूढ़े सैनिक का किस्सा लिख देने का वादा करना पड़ा।
दूसरे दिन यह कहानी उसके पास भेजी :
"मिस्र (इजिप्ट) में फ्रांसीसी सेनापति डेसई के नेतृत्व में जो सेना-दल लड़ने गया था, उसमें से एक फ्रांसीसी सैनिक शत्रु-दल के अरबों के पंजे में फंस गया। वे लोग उसे नाइल नदी के पार एक रेगिस्तान में ले गए। फ्रांसीसी सेना-दल उस सैनिक का कोई पता न पा सके, इसलिए वे बड़ी तेजी से चलकर बहुत दूर निकल गए, और रात होने पर एक जगह ठहरने के लिए रुके। यह जगह एक कुएँ के पास थी। उस कुएँ को चारों तरफ से खजूर के पेड़ घेरे खड़े थे। कुछ दिन पहले अरबों ने उसी जगह कुछ खाने की चीजें गाड़ रखी थीं, इसीलिए उन्होंने इस जगह को चुना।
उनका बन्दी भागने की कोशिश कर सकता है, यह उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। इसीलिए वे केवल उस फ्रांसीसी सैनिक के दोनों हाथों को बाँध कर भोजन आदि करके निश्चिन्तता से सो गए। फ्रांसीसी वीर ने जब देखा कि उसके दुश्मन लोग नींद से बेहोश हैं, तो उसने दाँतों से एक तलवार उठाई, और उसे जाँघों के बीच रखकर अपने हाथों का बन्धन काट डाला। इस प्रकार अपने को मुक्त करके उसने एक बन्दूक और एक छुरा अपने हाथ कर लिया। साथ में घोड़े के लिए थोड़ा-सा जौ, अपने लिए सूखे खजूर, बन्दूक की गोलियाँ आदि इकट्ठा करना भी वह नहीं भूला। फिर एक घोड़े पर यह सब रखकर, सवार होकर उसी रेगिस्तान में घोड़ा दौड़ा दिया। उसके ख्याल में जिस तरफ फ्रांसीसी सेना थी, उसी ओर चला। अपनी छावनी में जल्दी से जल्दी पहुँचने के ख्याल से उसने इतनी तेजी से घोड़े को भगाया कि कुछ दूर जाकर ही वह अभागा घोड़ा गिर कर मर गया! फ्रांसीसी सैनिक उस सीमा-हीन रेगिस्तान में अकेला खड़ा रहा।...
पर इस भागे हुए बन्दी का साहस भी असाधारण था। बहुत देर तक इधर-उधर भटक कर अन्त में वह रुकने को बाध्य हुआ। रात्रि आ रही थी। पूर्वी देश की रात्रि के अपूर्व सौन्दर्य से मोहित होकर भी, उसने अपने में और आगे बढ़ने की शक्ति नहीं पाई। सौभाग्य से उस समय वह एक छोटी पहाड़ी के पास आ पहुँचा था। पहाड़ी पर कुछ खजूर के पेड़ थे। दूर से उन पेड़ों के पत्ते देखकर सैनिक के मन में आश्रय पाने का भाव जाग उठा। ऊपर चढ़ कर वह एक बड़े पत्थर पर लेट गया और कुछ देर पीछे सो गया। वह इतना थक गया था कि नींद में अपने को किसी तरह बचाने का कुछ भी इन्तजाम नहीं किया। शायद अपने जीवन की आशा उसने छोड़ रखी थी। सब तरह की सहायता की सीमा का अतिक्रमण करके, अब अरब डाकुओं का साथ छोड़ आने के लिए शायद उसे दुख और पश्चात्ताप होने लगा था। उनका वह खानाबदोश जीवन भी अब उसे बहुत मीठा लगा रहा था।
धूप से पत्थर बहुत गरम हो उठने पर उसकी नींद टूटी। असावधानी से वह ऐसी जगह पर लेटा था कि जहाँ पेड़ की छाया नहीं पड़ती थी। पेड़ों की ओर देखकर उसका चित्त भय से भर उठा। चारों तरफ देखा-कहीं कुछ भी नहीं, केवल असीम बालू का समुद्र। तब निराशा मानो उसके कलेजे को मुट्ठी से कस कर दबाने लगी। जहाँ तक दृष्टि पहुँचती, बालू का सागर, तेज चमकती हुई तलवार की तरह दीख रहा था। वह सचमुच ही नहीं समझ पा रहा था कि समुद्र की ओर देख रहा है या रेगिस्तान की ओर। चारों
ओर के दृश्य पर एक आग-भरे कुहरे का आवरण हिल रहा था। आसमान भी एक तीव्र ज्योति से प्लावित था। नीचे-ऊपर सब कुछ आग के रंग से रँगा हुआ था। चारों तरफ की वह नीरवता कैसी भयानक थी! असीम, ज्वालामय शून्यता उसके अस्तित्व को पीड़ित करने लगी। आसमान में रत्ती भर भी बादल नहीं, हवा में कोई शब्द नहीं, बालू का विशाल समुद्र बिलकुल स्थिर!
फ्रांसीसी सैनिक ने पास के पेड़ों को मित्र की तरह आलिंगन कर लिया। फिर उसकी छोटी-सी छाया में बैठकर रोने लगा। आँखों के सामने फैला हुआ दृश्य उसे बहुत ही भयावह मालूम हो रहा था। वह चिल्ला-चिल्ला कर रो रहा था, पर रेगिस्तान में इस रोदन की कोई प्रतिध्वनि नहीं मिली। केवल उसके हृदय में ही प्रतिध्वनि थी।
तब उस सैनिक की उम्र केवल इक्कीस साल थी। घड़ी पीछे कुछ समय के बाद वह आत्महत्या के लिए बन्दूक में गोली भरने लगा। पर उसे उसी क्षण काम में न ला कर बन्दूक उसने अपने सामने पत्थर पर रख ली। फिर बड़बड़ाकर कहा, "इसके लिए काफी समय मिल जाएगा।"
वह एक बार नीले आकाश की ओर देखता, फिर एक बार बालू के ढेर के उस निरानन्द दृश्य की ओर। फिर वह अपनी मातृ-भूमि फ्रांस का स्वप्न देखने लगा वह कल्पना से ही पेरिस की सड़कों की गन्ध सूंघने लगा। जिन शहरों के बीच से वह आया है, अपने साथियों के चेहरे, अपने जीवन की छोटी-मोटी घटनाएँ-सब स्मरण करते ही उसक चित्त आनन्द से भर उठा। रेगिस्तान की मृग-तृष्णा के बीच अपने देश की पहाड़ी को कल्पना में देख पाया। पर मृग-तृष्णा में भय का अन्त नहीं है, इसलिए वह आँखें घुमा कर पहाड़ी की दूसरी तरफ से नीचे उतरने लगा। नीचे उतर कर उसने एक छोटी गुफ़ा-सी देखी, बालू के पत्थर की छाती खोद कर प्रकृति ने ही उसे बनाया था। उसे देखकर सैनिक खुश हुआ। गुफ़ा में एक फटी चटाई पड़ी थी; समझा कि इस जगह कभी मनुष्य रह भी गए हैं। और कुछ दूर जाकर फिर फलों के भार से झुके हुए अनगिनत खजूर के पेड़ देखे। यह सब पाकर मनुष्य के स्वाभाविक जीवन धारण की वृत्ति उसके मन में जागृत हो उठी। वह आशा करने लगा कि यहाँ रहते-रहते किसी सफ़री अरब की निगाह में वह पड़ सकेगा, तोपों के शब्द भी वह सुन सकेगा, क्योंकि इस समय सारे मिस्र में नेपोलियन की सेना लड़ रही थी।
इस चिन्ता से उसके मन ने कुछ शक्ति पाई। तब वह एक पेड़ से थोड़े से खजूर तोड़ कर खाने लगा। वे खजूर इतने स्वादिष्ट और मीठे थे कि उसने सोचा कि यह केवल प्रकृति की ही कीर्ति नहीं है, इसमें शायद मनुष्य का भी हाथ है।
निराशा के गहरे गड्ढे से निकलकर वह आनन्द से भर उठा। फिर पहाड़ी पर आकर एक खजूर का पेड़ काटना शुरू किया।
कोई क्रूर पशु आकर उस पर वार कर सकता है-सहसा यह बात उसके मन में आई। पत्थरों की देरी के भीतर से एक छोटा झरना निकला था, यहाँ जल की तलाश में कोई पशु आ सकता है। तब रात को सोने के पहले वह गुफ़ा के मुँह पर एक घेरा लगा देगा। पर डर के मारे जी-जान से मेहनत करने पर भी वह उस पेड़ को टुकड़े-टुकड़े करके नहीं काट सका। पेड़ काटते-काटते ही संध्या हो गई। उस विशाल पेड़ के गिरते समय चारों ओर को कँपा कर एक शब्द हुआ, मानो निर्जन रेगिस्तान का आर्तनाद हो! सुनकर सैनिक की देह सिहर उठी, मानो कोई दैववाणी किसी होनेवाले बड़े भारी अनर्थ की सूचना कर गई। पर अधिक देर तक न रुककर झटपट पेड़ के डार-पत्ते काटकर वह फटी चटाई की मरम्मत में लग गया। अन्त में सारे दिन की धूप और मेहनत से थका वह सैनिक गुफ़ा के भीतर पड़कर सो गया।
सहसा आधी रात के समय एक अद्भुत शब्द से उसकी नींद टूट गई। गहरी निस्तब्धता में उसने एक साँस की आवाज़ सुनी, वह बिलकल बनैली और भयानक थी, मनुष्य की साँस से उसका कोई भी मेल नहीं था। गहरे अन्धकार में, इस घटना से जाग कर डर के मारे उसका खून मानो जम गया। आँखें खोल कर उसने अच्छी तरह से देखा-अँधेरे में दो पीले रोशनी के टुकड़े 'भक्-भक्' जल रहे थे! भय के मारे उसके सिर के बाल सीधे खड़े हो गए। पहले लगा, शायद देखने में गलती हुई है, पर आँखों के अँधेरे की आदी होते ही स्पष्ट देख पाया, उससे दो-तीन कदम की दूरी पर, एक बड़ा भारी पशु लेटा हुआ है!
वह सिंह है या चीता या घड़ियाल? फ्रांसीसी सैनिक का जीव-विद्या का ज्ञान अधिक नहीं था। वह इस भयानक आगन्तुक का निर्णय आसानी से नहीं कर सका। अज्ञान के कारण उसे डर और भी अधिक हुआ। डर से वह हिल भी नहीं पा रहा था, केवल लेटा-लेटा उस भयावह साँस की आवाज़ में कोई फ़र्क होता है या नहीं, वह सुन रहा था। भेड़िये के बदन की गन्ध-सी, परन्तु उससे भी कहीं अधिक तीव्र एक गन्ध से गुफ़ा भर उठी थी। नाक में उस गन्ध के पहुँचते ही आतंक से उसके होश गायब होने लगे। यह समझने में देर नहीं हुई कि किसी भयानक पशु के राज-भवन में आकर उसने आश्रय लिया है। फिर कुछ समय के बाद अस्त होते हुए चन्द्रमा की किरण गुफ़ा के भीतर पड़ी। उस रोशनी से गुफ़ा के उज्ज्वल होने पर एक शेर की देह साफ़-साफ़ दीख पड़ी!
मिस्र का वह पशु-राज कुत्ते की तरह सिकुड़कर लेटा हुआ सो रहा था। उसकी दोनों आँखें एक बार खुल कर फिर बन्द हो गई। वह फ्रांसीसी सेनिक की ओर मुँह करके ही लेटा हुआ था।
शेर का बन्दी होकर, सैनिक के दिमाग में सैकड़ों प्रकार की चिन्ताएँ आने-जाने लगीं। पहले उसने निश्चय किया कि शेर को गोली से मारेगा। पर वह पशु उसके इतने निकट लेटा हुआ था कि बन्दूक पकड़ने की भी जगह नहीं थी। इसके सिवाय बन्दूक को ठीक करते समय वह अगर जग जाय? इस डर से बह हिल-डुल भी नहीं पा रहा था। रेगिस्तान की नीरवता में उसे अपने हृदय का स्पन्दन भी बहुत प्रबल सुनाई दे रहा था। वह अपने को श्राप दे रहा था कि अगर इस आवाज़ से ही उसके दुश्मन की नींद टूट जाए? वह जब तक सोता रहे, इतने ही समय के भीतर उसे अपनी मुक्ति का उपाय सोचकर कुछ निश्चय करना पड़ेगा। दो बार उसने अपनी छुरी पर हाथ रखा, पर शेर की गर्दन इतने घने बालों से ढंकी थी कि उसके भीतर से छुरी चलाना असाध्य समझ कर उसने वह कोशिश भी त्याग दी। पर यदि वह उस पर वार करके उसे मार न सके, तो अपने जीवन को बचाने का और कोई उपाय ही नहीं रहेगा। उस भयानक शत्रु के साथ आमने-सामने लड़कर विजयी होने की चेष्टा ही उचित समझकर अब उसने निद्रित अवस्था में उसे मारने की इच्छा त्याग दी, और वह प्रतीक्षा करने लगा कि कब दिन निकले।
बहुत देर नहीं लगी। तब उसने शेर को अच्छी तरह से देखा। उस समय भी शेर का मुख खून से भीगा था। सैनिक ने सोचा-'कुछ समय पहले ही इसने भर पेट खाया है, अब जागते ही वह शायद खाने की कोशिश नहीं करेगा।'
और अच्छी तरह से देखकर जाना कि वह शेर नहीं, शेरनी है। उसकी छाती और जाँघों के बाल सफ़ेद और चमकीले थे। पंजों के चारों ओर घिरी मखमल की तरह कोमल काली बिन्दियाँ थीं: देखने पर लगता कि सुन्दरी ने चूड़ियाँ पहनी हैं। उसकी पट्टेदार दुम भी सफ़ेद थी, केवल अगला भाग गोल-गोल काली धारी से शोभित था। पीठ का चमड़ा पुराने सोने की तरह पीले रंग का था, बहुत कोमल और चिकना; उस पर काले गुलाब की छाप थी। यही छाप देखकर उसकी जाति का निर्णय होता है। बिल्ली का बच्चा जिस सुन्दर ढंग से कुर्सी की गद्दी पर लेटा रहता है, वह भयानक आगन्तुक भी उसी ढंग से, निश्चिन्त भाव से सो रहा था। खून से रंगे, लम्बे नाखूनों से शोभित पंजे सामने फैलाकर, उन पर सिर रखकर वह शेरनी लेटी हुई थी; मुख के दोनों तरफ चाँदी के तार की तरह सफ़ेद और सीधी मूंछे दीख रही थीं।
फ्रांसीसी सैनिक इसी पशु को अगर पिंजड़े में बन्द हालत में देखता, तो उसके गठन की सुन्दरता और देह की खाल की नाना रंगों से रँगी राजोचित शोभा की तारीफ़ किए बिना न रहता। पर इस समय शेरनी के भयावह सौन्दर्य से उसकी दृष्टि, मानो धुंधली होने लगी। निद्रित शेरनी का रहना उसे मन्त्रमुग्ध कर रहा था, उसी तरह जिस तरह साँप की दृष्टि पक्षी को सम्मोहित करती है।
इस विपदा के सामने उसका साहस क्रमशः कम होता जा रहा था। यद्यपि उसने तोप के सामने छाती फैला कर खड़े होने में कभी पसोपेश नहीं किया था, तथापि एक बात सोच कर उसने अपने को कुछ शान्त किया। उसके माथे से पसीना झरना भी बन्द हुआ। बिलकुल निरुपाय होने पर मनुष्य अनेक समय नियति की उपेक्षा करके छाती फुलाकर खड़ा हो जाता है। उस सैनिक ने भी सोच लिया कि यह घटना वियोगान्त ही होगी, पर इस नाटक में अन्त तक अपने पार्ट का उसे एक वीर की तरह ही अभिनय करना होगा। मृत्यु की सम्भावना तो मनुष्य को प्रतिदिन ही है।
अपने को दलील देकर समझाया-दो दिन पहले भी तो अरबों के हाथों से तुम्हारी मौत हो सकती थी।
और उसने अपने को मृत ही सोच लिया। फिर मन में साहस का संचय करके वह शेरनी के जागने की प्रतीक्षा में रहा। कुछ कौतूहल भी उसके मन में झाँक रहा था।
सूर्य के उदय होने के साथ ही साथ शेरनी ने आँखें खोलीं। फिर चारों पैर तान कर आलस्य तोड़ने लगी। फिर उसने मुँह फैलाकर एक जम्हाई ली, तब उसके डरावने दाँतों की पंक्ति और आरे-सी जीभ अच्छी तरह से दीखी। लोट-पोट होने का मनोरम ढंग देखकर फ्रांसीसी ने मन-ही-मन कहा, 'यह महिला काफ़ी शौक़ीन भी है!' मुँह पर
और पंजों पर जो खून लगा था, उसे चाट कर साफ़ कर दिया, फिर वह सिर को जमीन पर बहुत मनोहर ढंग से घिसने लगी।
मन में जबरन साहस लाने के साथ ही साथ थोड़े खुशहाली के भाव भी आए। सैनिक ने मन-ही-मन कहा, 'हाँ, अपनी सजावट पहले कर लो, फिर तुमसे नमस्कार करेंगे!' अरबों के पास से जो छुरा चोरी करके लाया था, उसकी मूठ सैनिक ने अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़ी।
ठीक इसी समय शेरनी ने फ्रांसीसी वीर की ओर देखा। वह एकटक देखती रही, पर आगे बढ़ने की कोई कोशिश नहीं की। इधर उसकी दृष्टि की असहनीय उग्रता से फ्रांसीसी वीर की देह सिहर उठी। फिर शेरनी उसकी ओर धीरे-धीरे बढ़ने लगी। सैनिक उसकी ओर एकटक देखता रहा, मानो उसे वह मन्त्र-मुग्ध करना चाहता है। शेरनी के पास आने पर वह साहस का संचय करके उसकी देह पर हाथ फेरने लगा। वह उसके सिर से शुरू करके पिंडली की हड्डी पर से दुम तक बार-बार उसे सहलाने लगा, तब शेरनी चैन से दुम उठा कर बिल्ली की तरह 'घड़-घड़' शब्द करने लगी। उसकी दृष्टि क्रमशः कोमल होने लगी। उसकी विशाल छाती भेद कर उठने वाला यह 'घड़-घड़' शब्द ही एक विशाल 'हारमोनियम' की ध्वनि-सा लग रहा था। फ्रांसीसी सैनिक अपना प्यार सफल होता देख और अधिक उत्साह से सुन्दरी शेरनी का मनोरंजन करने लगा। कुछ ही क्षणों में शेरनी जैसे शान्त हो गई।
सैनिक ने जब देखा कि शेरनी का क्रूर भाव बिलकुल नष्ट हो गया है, तब वह गुफ़ा से बाहर जाने के लिए खड़ा हुआ। शेरनी ने पहले कोई एतराज प्रकट नहीं किया, पर सैनिक के बालू की ढेरी पर चढ़ते ही, वह तेजी से एक छलाँग मार कर उसके पास आ गई, और बिल्ली की तरह पीठ सिकोड़ कर वह युवक के पैरों पर अपनी देह घिसने लगी। फिर साथी की ओर उज्ज्वल दृष्टि से देखकर बड़े जोर से गरज उठी।
'इसे प्यार की चाह बहुत अधिक है!' कहकर युवक ने फिर उसका सिर सहला दिया, और उसके बदन पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। सफलता से उसका साहस बढ़ गया; तब वह अपने छुरे से शेरनी के सिर पर गुदगुदी देने लगा; चोट करने के योग्य नर्म जगह है या नहीं, यह भी देख लिया। पर उसकी खोपड़ी इतनी कठोर मालूम हुई कि असफलता के डर से उसने कुछ भी नहीं किया।
रेगिस्तान की सुल्ताना नौकर की सेवा से सन्तुष्ट हुई है, यह बात वह नाना भावों से प्रकट करने लगी। उसने सिर उठा कर गर्दन आगे बढ़ा दी और बिलकुल नीरव और निस्पन्द हो गई। फ्रांसीसी सैनिक ने सोचा कि अब ताकत से गर्दन पर छुरा मारने पर इस भयानक शेरनी की हत्या की जा सकती है। छुरा उठाकर वह मारने ही जा रहा था कि शेरनी ऐसे मनोहर ढंग से उसके पैरों पर लेट गई और उसकी ओर इस तरह से ताकने लगी, जिसमें स्वभावोचित क्रूरता कुछ रहने पर भी, प्रेम-चिह्न बहुत साफ़ दीख पड़ा। सैनिक निराशा भाव से एक पेड़ पर टेक देकर खजूर खाने लगा। वह मुक्ति की आशा से एक बार रेगिस्तान की ओर देखता, फिर एक बार शेरनी की ओर देखता। उसका प्रेम-भाव एकाएक गायब तो नहीं हो रहा है, यह देखने के लिए जितनी ही बार वह खजूर की गुठली दूर फेंकता, उतनी ही बार शेरनी उस ओर सन्देह-भरी दृष्टि से देखती। युवक को भी वह बहुत ध्यान से देखने लगी। परीक्षा का फल अच्छा ही हुआ; क्योंकि खाना खत्म करके युवक के उठते ही शेरनी जीभ से चाटकर उसकी जूतियाँ साफ़ करने लगी।
फ्रांसीसी ने सोचा, 'इस समय तो बहुत खातिर कर रही है, पर जब भूख लगेगी तब जाने क्या होगा?'
यह बात मन में आते ही देह फिर सिहर उठी। फिर भी वह बैठा-बैठा शेरनी की देह की सुन्दरता देखने लगा। इस जाति के पशु में वह बहुत सुन्दर थी, इसमें कोई सन्देह नहीं था। शेरनी करीब तीन फुट ऊँची थी और दुम के छोड़ देने पर भी पाँच फुट लम्बी। दुम काफ़ी मोटी और लम्बाई में करीब तीन फुट थी। उसका सिर भी बहुत बड़ा था। चेहरे पर से एक बहुत ही मनोहर सुकुमारिता टपकती थी। उसमें शेरनी की कठोर क्रूरता थी जरूर, पर एक चतुर रमणी के चेहरे के भाव से भी काफ़ी मेल था। इस निर्जन रेगिस्तान की रानी का चेहरा एक कठोर आनन्द से खिला हुआ था, उसने खून पीकर अपनी प्यास शान्त की थी, अब वह आनन्द करना चाहती थी।
सैनिक जरा इधर-उधर घूमने लगा। शेरनी ने एतराज नहीं किया, यद्यपि उसके हर एक कदम की ओर उसने अपनी तेज दृष्टि रखी। सहसा सैनिक ने झरने के पास जाकर अपने घोड़े की लाश देखी। शेरनी उसे इतनी दूर खींच लाई थी, और वह घोड़े की लाश का दो-तिहाई भाग खा गई थी। यह दृश्य देखकर उसे कुछ चैन मिला। निद्रित हालत में उस पर क्यों शेरनी ने वार नहीं किया था और वह किस काम में व्यस्त थी, युवक अच्छी तरह से यह समझ गया।
अब उसे भविष्य के लिए भी थोड़ी आशा हुई। शेरनी को लेकर घर-गृहस्थी करने की अद्भुत इच्छा उस पर सवार हुई। हर समय उसे महारानी की गुलामी ही करनी होगी, जिससे वे किसी प्रकार भी नाखुश न हों, इसका भी ख्याल रखना होगा। वह लौटकर शेरनी की बग़ल में बैठा और यह देखकर खुश हुआ कि वह आनन्द-सूचक दुम हिला रही है। युवक के मन से डर हट गया, वह उसके साथ खेलने लगा। उसके बदन पर हाथ फेरकर, पीठ खुजला कर उसे खुश कर दिया। पंजे पर हाथ फेरते ही उसने झट नाखन समेट लिए, जिससे युवक के हाथ में खरोंच न लग जाए। युवक के हाथ में उस समय भी वह छुरा था, शेरनी की देह में उसे भोंक देने की इच्छा उस समय भी मन से नहीं हटी थी। पर शेरनी मरते समय अन्तिम आलिंगन में उसे भी साथी न कर ले, यह डर भी था। इसके सिवाय उसके मन में थोडा पश्चाताप नहीं हो रहा था, सो नहीं। इस पशु ने तो उसका कुछ भी नुकसान नहीं किया है, बल्कि उसे लग रहा था कि इस निर्जन रेगिस्तान में उसने एक साथी पाया है। इसे देखकर उसे एक स्त्री की बात याद आ रही थी। वह उस स्त्री से किसी समय बहुत प्रेम करता था। मजाक में युवक ने उसका नाम रखा था 'केतकी' (एक प्रकार का काँटेदार फूल); क्योंकि युवती सुन्दर तो थी, पर बड़ी क्रूर थी। जब तक सैनिक का उससे सम्बन्ध था, आशंकित रहना पड़ता था, जाने कब वह युवती उसकी छाती पर खंजर चला दे! उस अतीत की स्मृति आने पर, इस सुन्दर पशुराज की पुत्री का नाम भी 'केतकी' रखना उसने निश्चय कर लिया। क्रमशः उसे शेरनी का भय कम होता जा रहा था।
शाम होने तक उसे परिस्थिति इतनी सहज हो गई कि अच्छी लगने लायक चीजें भी उसने देख पाई। 'केतकी' कहकर बुलाने पर शेरनी क्रमशः आँखों की दृष्टि से जवाब देने लग गई।
सूर्यास्त के समय शेरनी कई बार गरजी। यह देखकर खुशमिजाज फ्रांसीसी युवक ने मन-ही-मन कहा, 'श्रीमती की शिक्षा अच्छी ही देख रहा हूँ। 'संध्या' करना भी जानती है।'
अँधेरा हो आया। सैनिक ने निश्चय कर लिया कि शेरनी के निद्रित होने पर वह अपने पैरों के दौड़ने की शक्ति की परीक्षा करके देखेगा। रात्रि काटने के लिए दूसरा आश्रय ढूँढ लेना ही ठीक है। और वह धीरज के साथ प्रतीक्षा करने लगा। फिर समय आने पर वह जी-जान से नाइल नदी की ओर दौड़ा। पर मील पर जाते ही वह समझ गया कि शेरनी उसका पीछा कर रही है। उसकी तीव्र गर्जना और छलाँग मार कर दौड़ने का शब्द नीरवता में बहुत भयानक होकर युवक के कानों में पहुँचा।
युवक ने मन-ही-मन कहा, 'देखता हूँ, इसने मुझसे बहुत प्रेम कर डाला है। शायद अब तक और किसी से युवती का परिचय नहीं हुआ था। खैर, उसके प्रथम प्रेमी होने में थोड़ा गौरव है।'
सहसा वह एक बालू के दलदल में गिर पड़ा। यह रेगिस्तान का सबसे गहरा खतरा है, इसमें गिरने पर बचना असम्भव-सा हो जाता है। युवक समझ गया कि वह क्रमशः डूबता जा रहा है। तब डर से पागल होकर वह चिल्ला उठा।
शेरनी पास आ गई थी। सहसा युवक के गले का कॉलर' दाँतों से पकड़ वह तेजी से पीछे की ओर कूदी। क्षण-भर में युवक बालू के दलदल के गड्ढे से बाहर आ गया।
युवक ने बहुत उत्साह से उसे प्यार करते हुए कहा, “केतकी, आज से हम लोग सदा के लिए मित्र हो गए। पर धोखा न देना!"
दोनों फिर लौट आए।
अब से रेगिस्तान का सूनापन दूर हो गया। यहाँ एक ऐसा साथी मिल गया, जिससे बातें की जा सकती हैं, जिसे प्यार किया जा सकता है। शेरनी की क्रूरता जाने किस तरह गायब हो गई, युवक यह सोच कर भी नहीं समझ सका।
उसे रात को जागृत रहने की इच्छा थी, पर अपने अनजाने ही वह जाने कब सो गया। नींद टूटने पर उसने 'केतकी' को अपने पास नहीं पाया। पहाड़ी पर चढ़ कर उसने देखा कि बहुत दूर से 'केतकी' कूदती हुई दौड़ी आ रही है।
शेरनी के पास आने पर, युवक ने देखा कि उसका मुँह खून से रँगा है। सैनिक उसे प्यार करने लगा, और आराम पाकर वह 'घड़-घड' शब्द करने लगी। दोनों आँखों में अनुराग भरकर वह फ्रांसीसी युवक की ओर देखती रही।
युवक ने उसे प्यार करते-करते कहा, "केतकी, तुम बहुत बड़े घराने की लड़की हो न? पर तुम तो प्यार बहुत पसन्द करती हो! तुम्हें शरम नहीं लगती? अभी क्या खाकर आई, क्या किसी अरब को? तुम चाहे जितना खा सकती हो; वे तो तुम्हारी तरह ही पशु हैं। पर कभी भी किसी फ्रांसीसी को पकड़कर न खाना, अच्छा! अगर खाओगी तो मैं तुमसे प्रेम नहीं करूंगा।"
बिल्ली का बच्चा जिस तरह मालिक से खेलता है, वह उसी तरह युवक से खेलने लगी। युवक के अनमना होने पर वह भाव-भंगिमा से खुशामद करके प्यार की भीख माँगने लगी।
इसी तरह दिन कटने लगे। क्रमशः फ्रांसीसी युवक की आँखों में रेगिस्तान का अतुलनीय सौन्दर्य प्रकट होने लगा। आसमान से मानो वह स्वर्गीय स्वर सुनने लगा। इस निर्जन रेगिस्तान की कृपा से वह आत्म-चिन्ता का आनन्द भी जान सका, और शेरनी पर उसका प्रेम दिनोदिन गहरा होने लगा। मनुष्य किसी से प्रेम किए बिना रह नहीं सकता। वह समझ नहीं पाता कि अपनी इच्छा-शक्ति की प्रबलता से उसने शेरनी की प्रकृति बदल दी थी, या दूसरी जगह अधिक परिमाण में खाने की चीजें मिलने के कारण वह उस पर वार करने की रत्ती भर भी कोशिश नहीं करती थी। अन्त में शेरनी युवक की इतनी आज्ञाकारिणी हो गई कि उसके विषय में सैनिक को जरा भी डर नहीं रहा।
दिन और रात का अधिकांश समय वह सोकर काट देता। पर जिससे मुक्ति का उपाय आँखों से निकल न जाए, उस विषय में वह अपने मन को सदा सतर्क रखता। अपनी कमीज़ फाड़ कर, एक झंडा बना कर, उसने एक खजूर के पेड़ पर लटका दी थी।
जब उसे लगता कि मुक्ति की आशा बिलकुल नहीं है, तब वह शेरनी को प्यार करने लगता। अब वह उसके स्वर का ज़रा-सा भी फ़र्क समझ पाता, उसकी विभिन्न दृष्टि का अर्थ लगा सकता। अब शेरनी दुम पकड़कर खींचने पर भी एतराज नहीं
करती। उसकी सफ़ेद छाती और सुन्दर देह देखकर सैनिक को बहत आनन्द होता। जब वह कूदती हुई खेलती तब उसकी क्षिप्रता, उसकी मनोहरता देखकर वह खुश और चकित हो जाता । चाहे वह जितनी खेल में डूबी रहे, 'केतकी' कह कर पुकारते ही उसी क्षण पुकारनेवाले की ओर देखती।
एक दिन दोपहरी की कड़ी धूप में एक विशाल पक्षी दीखा। सैनिक शेरनी को छोड़कर इस नए आगन्तुक को देखने गया। कुछ क्षणों तक प्रतीक्षा करके रेगिस्तान की सुलताना गरज उठी।
सैनिक ने लौट कर देखा कि शेरनी की आँखें फिर भयानक हो उठी हैं। उसने चकित होकर कहा, "ईर्ष्या भी है! अवश्य ही किसी स्त्री की आत्मा ने इसकी देह में प्रवेश किया है।"
पक्षी उड़ते-उड़ते आसमान में अदृश्य हो गया। युवक लौट कर शेरनी के सौन्दर्य की तारीफ़ करने लगा। सचमुच ही वह युवती स्त्री की तरह ही सुन्दर थी। उसके सुनहले रंग के बाल फीके होते-होते छाती के पास बिलकुल दूध से सफ़ेद हो गए थे। सूर्य की किरणों से उसकी खाल अपूर्व रंगों से रँग उठती। शेरनी और सैनिक एक-दूसरे की ओर देखते रहते, मानो वे दोनों एक दूसरे के हृदय की बात जानते हैं। सिर पर हाथ फेरने पर इस रेगिस्तान की सुन्दरी की देह आनन्द से काँप उठती। आँखें बिजली की तरह चमककर क्रमशः आराम के आधिक्य से बिलकुल बन्द हो जातीं।
सैनिक निद्रित शेरनी की ओर देखता रहा। रेगिस्तान की बालू की तरह ही उसकी देह सुनहली और उसी तरह ज्वालामयी और अकेली! उसने मन-ही-मन कहा, 'इसमें जरूर ही आत्मा है।'
यहाँ तक की कहानी पढ़कर वह महिला मुझसे बोली, “पशुओं के सम्बन्ध में आपकी वकालत पढ़ ली है। पर इन दोनों प्रेमियों का अन्तिम परिणाम क्या हुआ?"
“साधारणतः परिणाम जैसा होता है। सभी प्रेमी का अन्त किसी ग़लतफ़हमी के कारण होता है। एक-दूसरे को धोखेबाज़ी का सन्देह होता है, पर आत्म-सम्मान के आधिक्य से कोई सुलह करने की कोशिश नहीं करता। फलतः दोनों अलग हो जाते हैं।'
महिला बोली, "बात सही है। कभी-कभी एक बात एक ही निगाह से खत्म हो जाती है। पर कहानी का अन्त तो कहिए!"
मैंने कहा, "कहना कुछ कठिन है, पर शायद आप समझ सकें।"
...बूढ़े सैनिक ने शराब की बोतल खत्म करके मुझसे कहा, "पता नहीं, जाने कैसे, मैंने शेरनी को दुख दिया, और सहसा उसने घूम कर मेरी जाँघ को दाँतों से पकड़ लिया। बहुत क्रूरता से उसने यह किया सो नहीं, पर मैं डर गया कि वह मुझे मार डालना चाहती है। मैंने हाथ का छुरा झट उसकी गर्दन में भोंक दिया! और बड़े जोर से गरज कर वह लुढ़क पड़ी। उस शब्द से मेरे हृदय में बड़ी चोट-सी लगी। फिर उसने मेरी ओर देखा, उसकी दृष्टि में रत्ती-भर भी क्रोध नहीं था। दुनिया में मेरा जो कुछ भी था, वह सब मैं उसके जीवन को लौटाने के लिए दे सकता था। मुझे लग रहा था कि मैंने एक मानव की ही हत्या कर डाली है!'
कुछ समय बाद एक फ्रांसीसी सेना का दल मेरा झंडा देखकर मेरे पास आया। आकर उन लोगों ने देखा, मैं रो रहा हूँ।
फिर कितनी जगहों में गया, कितनी लड़ाइयों में लड़ता फिरा, पर रेगिस्तान की तरह सुन्दर और कहीं कुछ नहीं देखा। कैसा अपूर्व और महान सौन्दर्य था!
मैंने उससे पूछा-"आप वहाँ क्या अनुभव करते थे?"
बूढ़े ने कहा, "यह मैं साफ़-साफ़ नहीं कह सकूँगा। खजूर के पेड़ों की छाया और शेरनी के लिए अब भी मुझे क्षोभ होता है। रेगिस्तान में सब है, पर कुछ भी नहीं है।"
"इसका क्या मतलब?".
बूढ़े ने कहा, “जानते हो किस तरह? केवल परमात्मा है, मनुष्य नहीं है, वह जिस तरह है।"