रास्ते से उठाकर लाए कुछ कागज (उड़िया कहानी) : सरोजिनी साहू
Raste Se Uthakar Laye Kuchh Kagaj (Oriya Story) : Sarojini Sahu
“तुम कल आई क्यों नहीं?” बडे ही असंतोष लहजे में पूछा था रूबी ने।
दीपा आंगन में कपड़े सुखाते हुए कहने लगी, “मेरे ससुराल वाले आए थे कल।” रूबी ने जितना ज्यादा गुस्से का इजहार किया था, दीपा के उत्तर से उतनी ही जल्दी शांत हो गई। मन ही मन सोच रही थी कि इसलिए ही दीपा को रखने से पहले मन गवाही नहीं दे रहा था। शादी होने के बाद लड़की के कितने दिन तक अपने पति और ससुराल वालों को छोडकर पिता के घर आकर काम-धंधा करने से चलेगा? एक वर्ष पहले मिसेज राव ने जुगाड़ किया था दीपा का। पहले दिन से ही जान-पहचान वालों की तरह आकर हंस-हंसकर नमस्कार किया था दीपा ने। “दीदी मुझे पहचानती हो? मैं मूर्तिबाबू के घर काम करती थी। बचपन में। आपके घर तब अहिल्या काम करती थी।”
रूबी को पहले पहल याद नहीं आया। फिर उसे याद आने लगा, दस वर्ष पहले अहिल्या नाम की एक लड़की उसके घर काम करती थी। अहिल्या और दीपा अपनी बस्ती से एक साथ आती थी। अचानक एक दिन अहिल्या ने औरतों को कौतुहलता दिखाते हुए उसको कहा था, “जानती हो दीपा का बाप मरे एक महीना भी नहीं बीता होगा कि उसकी मां ने करमा के बाप से शादी कर ली। ये लोग ऐसे हैं।” अहिल्या हंसने लगी थी। दीपा को मिलाकर तीन भाई बहिन थे और करमा के घर में चार। सभी मिलकर एक घर में रहते थे सात लोगों का परिवार।
उस घटना के घटने के कुछ दिन बाद दीपा फिर मूर्तिबाबू के घर काम करने नहीं आई। उस समय दीपा की उम्र कितनी रही होगी? यही दस वर्ष या ग्यारह। अब वह बीस वर्ष की लड़की है। उस वर्ष जब वह मेरे पास काम खोजने आई थी मैं उसको पहचान नहीं पाई। मगर दीपा कह रही थी, “यहां से मैं और नहीं जाऊंगी। यहां ही रहूंगी हमेशा के लिए। बचपन में मूर्तिबाबू के घर से काम छोड़कर चली गई थी क्योंकि मेरी दादी ने उस समय गांव से बुलाकर मेरी शादी कर दी थी। दस साल की उम्र में क्या बुद्धि थी?”
रूबी को काम करने वाली की निहायत जरुरत थी इसलिए “इस बार और कहीं नहीं जाओगी, क्या हुआ?” इत्यादि सवाल जीभ पर नहीं आए थे। फिर भी मन में एक संदेह बना हुआ था कि विवाहिता लड़की कितने दिनों तक अपने पति का घर छोड़कर रहेगी।
दीपा अविवाहित लडकियों की तरह सलवार कमीज पहन कर आई थी काम करने के लिए। झटपट मन मुताबिक काम कर देती थी हर दिन। न रूबी ने उसके व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप करना चाहा और न ही दीपा ने रूबी के. अचानक एक वर्ष के बाद दीपा के अपने ससुराल का प्रसंग छेड़ने पर, रूबी विचलित हो गई थी कि फिर से एक नकरानी खोजनी पडेगी काम के लिए। अति शांत स्वर में उसने पूछा था, “तुम्हारे ससुराल वाले क्या तुम्हें लेने आ रहे हैं?”
“नहीं, तलाक देने के लिए आए थे वे। आज सुबह गाड़ी में चले गए।
“तलाक?” आकाश से गिरने जैसे चौंककर रूबी ने पूछा था “किसको तलाक देंगे, तुझे?”
बड़े ही स्वाभाविक लहजे में कहा था दीपा ने, “हाँ, मेरे पति की किसी दूसरी जगह शादी करवाएंगे, सोचकर लडकी देखी है, तलाक नहीं होने पर शायद मैं बाद में झमेला करूंगी, इसलिए बातचीत कर सब कुछ निपटाने आए हैं वे लोग।
रूबी की चेतना में बार-बार तलाक शब्द गूंज रहा था। तलाक पत्र कहने से इतना जोर से धक्का लगता है, किसको पता नहीं? मगर तलाक शब्द से डर लग रहा था। तीन बार केवल तीन बार “तलाक- तलाक- तलाक” कहने से पेड़ से डालियां काट दी हो। पहने हुए कपड़े या पहने हुए फटे जूते को फेंकने की तरह। संबंध क्या जूता या कपड़े होते हैं? जूता या कपड़े फेंकने पर भी कितना मोह हो जाता है जो फेंकने की इच्छा नहीं होती है और यह आदमियों का संबंध है जिसमें इतनी निबिडता, कुछ गोपनीयता कुछ भरोसे की बालू सीमेंट, ईट में तैयार।
एक वर्ष के अंदर एक मोह सा हो गया था अथवा दीपा के मुंह से तलाक शब्द सुनकर, अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु खुश होने के जगह रूबी विचलित हो गई थी। मगर दीपा का आश्वस्त मुंह देखकर उसके अंदर दीपा की पिछली जिंदगी में झांकने की उत्सुकता बढ़ गई थी। यह बात पूछने के लिए अभी उपयुक्त समय नहीं है सोचकर वह चुपचाप रही। उस घटना के महीने, दो महीने बाद, सुबह- शाम पहुंचते ही दीपा कहती थी, कल सारी रात मैं सो नहीं पाई।
“क्यों क्या हुआ?”
“सारी रात मेरी मां मेरे साथ झगड़ती रही।”
“झगड़ा ? किस चीज के लिए झगड़ा?”
“क्या कहूं, मेरा भाग्य ही खराब।”
“कहो न क्या हुआ?”
“देखो न दीदी, मैं तुम्हारे घर एक साल से काम कर रही हूँ, मेरा व्यवहार हाव -भाव कभी खराब देखा है ? जो दो मुट्ठी कमा नहीं सकती हैं, ये जो लड़कियाँ कॉलोनी में काम करने आती हैं, उनकी तरह मैं प्रेम करती रहूंगी, कहो तो? तुम तो देखती हो मैं सीधा घर से आती हूँ,सीधा अपने घर जाती हूँ।
“तुम्हारी मां किसलिए कह रही है?”
“हाँ ! एक लड़का कई दिनों से मेरे पीछे पड़ा है। मेरे पीछे- पीछे मगरी पार करते कॉलोनी के मेन गेट तक आता है। काम को आते समय मगरी के पास बैठा रहता है। मेरी मां कुछ भी समझती नहीं है, व्यर्थ में संदेह कर मुझे गाली देती है।”
“संदेह क्यों करती है तुम उसे सारी सही- सही बात बता दो।”
“मैंने क्या बताया नहीं? वह कहती है अगर तुम्हारी कोई गलती नहीं है तो वह तुम्हारे पीछे- पीछे क्यों जाता है। उस पागल लड़के को भी क्या पड़ी है, देखो न, मुझे कितना परेशान करता है। मेरी मां अब कहती है तुम काम पर मत जाओ।”
रूबी मन ही मन सोच रही थी, जवान लड़की काम पर रखने से यही समस्या है। कुछ न कुछ होता रहता है उसके साथ। आजकल कॉलोनी के पार्क में, कलवर् पर, यही कामवाली लड़कियां उनके लड़के दोस्तों के साथ बैठकर गप लगाने के दृश्य कई बार उसे भी नजर आए हैं। मगर दीपा को उसने कभी भी वहां नहीं देखा। रूबी ने कहा था, तुम उस लडके को सीधे-सीधे पूछ लो, उसका मतलब क्या है?
“तुम क्या सोच रही हो, मैने उसे पूछा नहीं? एक बार उसे खूब गाली दी थी। पत्थर फेंककर उसका सिर फोड़ दिया था। लडके में इतना पागलपन सवार है कि वह फिर भी आता है। एक दिन मैने उसे पूछा था, तुम्हारा मतलब क्या है, कहो। मुझे क्यों परेशान कर रहे हो? क्या कहा, जानती हो? कहने लगा मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ।”
“अपनी माँ को कही थी यह बात।”
“पर मेरी मां मुझे मारकर फेंक देगी? एक दिन मेरी मां ने जरूर उसको बहुत डांटा था, मगर दो दिन के बाद फिर जहाँ का तहाँ।”
“वह तो उस लड़के का दोष है, फिर तुम्हारे साथ सारी रात झगड़ा करने का क्या कारण है?” एक गुप्तचर पुलिस की तरह पूछा था रूबी ने।
“मेरी माँ और मेरे नए बाप की एक बेटी है। वह कहती है मेरे लिए उसकी बेटी बदनाम हो रही है।
“तुम्हारी बहिन भी है?”
“दस वर्ष की है,स्कूल में पढ़ती है। मैं तो बिल्कुल अनपढ़ हूँ।”
“तुम उस लड़के को पहचानती हो? तुम्हारी जाति का है?”
“हाँ, हमारी बस्ती का। उसके पिता नाई है। छोटा केबिन खोला है थाने के पास में। हमारी जाति तो दूसरी है। वह हमारे छत्तीसगढ़ का रहने वाला जरूर है मगर हमारी जाति का नहीं है।”
“तुम्हे बड़ी चिंता में डाल दिया है उस लड़के ने।” रूबी ने कहा।
“नहीं, नहीं, उस लड़के को लेकर मुझे कोई डर नहीं है। वह मेरा कुछ भी बिगाड नहीं सकता है। दीपा ने कहा था, मेरी परेशानी है मेरी माँ। इस घटना के बाद वह मुझे अपने पास रखना नहीं चाहती है।”
“तब तुम क्या करोगी, सोचा है कुछ ? काम छोड़ दोगी?” बड़े ही आशंका भरे लहजे में पूछा था रूबी ने।
“मैं क्या करूंगी, कुछ समझ नहीं पा रही हूँ। उसके लिए तो सारी रात इतना झगडा-झंझट। मेरे पिता भी मेरी मां की बात मान रहे हैं, मेरे पीछे पड़ गए हैं। मेरा दोष नहीं होने पर भी मुझे पीटते हैं। मेरा जीवन अब मुझे तीखा लगने लगा है।”
फिर वही कौतुहल, “तुमने तलाक क्यों दिया?” रूबी के मन में जाग उठा। फिर भी उसने वह बात नहीं पूछकर पूछा था तेरा वह सोतेला बाप है? पूछकर वह संकुचित हो गई थी। हमारे समाज में सौतेली माँ की बात जितनी प्रचलित है, सौतेला बाप उतना प्रचलित नहीं है। लड़की ने क्या सोचा होगा?
दीपा ने कहा था, “जब मेरी अपनी मां होकर भी यदि उसकी मेरे प्रति ममता नहीं है तो बाप तो पराया आदमी है, वह मेरी हालत क्या समझेगा? असली बात जानती हो दीदी मेरी माँ अपनी बात को ज्यादा देखती है। मेरे लिए लड़ाई करेगी तो कल बाप के सामने खराब हो जाएगी। ऐसे व्यवहार करती है जैसे मैं उसकी कुछ भी नहीं हूँ। अब उसने जिद्द पकड ली है कि मैं यहां से चली जाऊँ। यहां नहीं रहूं।”
“चली जा मतलब? कहां जाएगी तू? तुम्हारी माँ को छोड़कर और कौन तेरा है? ससुराल का रास्ता तो तुम्हारे लिए बंद है। कहां जाने के लिए तुझे वह कह रही है?”
“वह कह रही है जहां तेरी इच्छा हो, वहां तू चली जा, मगर यहां मत रूक।”
“वह मां है या कौन? तुम्हारे कौन- कौन अपने आदमी है कहो तो? तुम्हारे गांव में तुम्हारी दादी थी? " "दादी माँ?" बड़ी उदास होकर कहा था उसने। "उसे न तो आंखों से दिखता है और न कानों से सुनाई पड़ता है। गांव में वह भीख मांगकर जीवन गुजार रही है। गांव घर की अवस्था तो और खराब है। दोनो तरफ की दीवार टूट गई है। जैसे- तैसे करके आधी दिवार उठाकर बांस का ढांचा डालकर वह रहती है। वहां मैं कहां रह पाऊंगी? एक पूरा मकान नहीं होने पर मुझे कौन वहां रखेगा?”
जीवन के इस दुख को जानने का अवसर नहीं मिला था रूबी को। छोटे समय से ही उसकी यह बात दूसरे लोग जानते थे आज तक कि कहां पढ़ेगी ?। कहां घूमने जाएगी?। कैसे बच्चों के साथ मेल जोल बढाएगी?। कैसे घर में शादी होगी?। किसी भी प्रकार की समस्या होने पर दूसरे लोग समाधान करते आए थे आज तक। उसे सोचने की जरूरत ही नहीं पड़ी चारदीवारी की सुरक्षा के बारे में।
“तुम्हारा और कोई नहीं है?” निरुपाय होकर पूछा था रूबी ने।
“नहीं, और कोई होने पर चिंता किस बात की थी। जब मेरा बाप मर गया, उसी समय मेरी माँ ने उस आदमी के साथ शादी कर ली। मैने मना किया था हमारा जीवन बरबाद हो जाएगा, उसने मगर सुना नहीं। मेरी माँ मुझे दादी के पास ले गई। मेरे छोटा भाई कहां चला गया?। जो आज तक पता नहीं। और माँ की गोद में एक छोटी बहिन थी, वह मर गई। मेरी दादी माँ ने मुझे गांव ले जाकर बचपन में ही मेरी शादी कर दी। हमारी जाति के लोग अनपढ़ है। दस वर्ष हुए भी नहीं कि शादी कर दी। तुम जिससे शादी कर रही हो बड़ा होकर चोर होगा, या चांडाल होगा या खूनी, कैसे पता चलेगा, कहो तो "?
रूबी मन ही मन सोच रही थी कि इस लड़की को पास में रखने से होगा। ऐसे भी एक कमरा टूटा-फूटा तथा सामान से भरा पड़ा है, सफाई कर देने से लड़की को सिर ढ़कने की जगह मिल जाएगी। मगर जवान लड़की की जिम्मेदारी कौन लेगा? इसके अलावा वह लड़का भौंरे की तरह इसके चारो ओर चक्कर काट रहा है। बाद में हमें ही बदनाम होना पडेगा? रूबी सोच रही थी कि दीपा को नारी सदन में छोड़ देने से ठीक होता। मगर दीपा सुनकर इतनी भयभीत हुई जैसे उसको कोई जेल में डाल रहा हो।
इस बार रूबी को कोई जिज्ञासा नहीं थी वरन चिंतित होकर उसने पूछा, “तुम्हारे ससुराल वाले तुम्हें तलाक देना क्यों चाहते हैं?”
दीपा अब तक घर में झाड़ू लगाते-लगाते उसकी बातों का जवाब दे रही थी। रूबी का प्रश्न सुनकर जमीन पर पालकी मारकर बैठ गई। हम छत्तीसगढ़ के लोगों की बात तुम नहीं जानती हो, दीदी। उनका चाल- चलन यहां की तरह नहीं है। सारे लोग जंगली गंवार है। दीपा की बातों में जैसे आक्रोश छिटककर आ रहा हो।
रूबी ने क्रोधित होकर कहा था, “तुम ये फालतू बातें मत करो। हमने छत्तीसगढ़ के लोगों को देखा नहीं है क्या? वे भी दूसरे लोगों की तुलना में कोई कम नहीं है, समझे?”
रूबी के धमकाने से दीपा कुछ क्षण के लिए चुप हो गई। उसके बाद कहने लगी, “आप शहर वाले लोगों की बात कर रही हो, गांव के लोगों के बारे में क्या जानती हो?”
रूबी मन ही मन सोच रही थी, सिर ढंकने की जगह नहीं है, मगर लड़की की बात तो देखो। मगर दीपा के ऊपर नजर गिरते ही वह नरम हो गई। आंसूओं से छलकती आंखें और रूँआसा चेहरा हो गया दीपा का। बचपन में मेरी दादी ने मेरी शादी कर दी, मेरे लिए उनकी सारी चिंताएं खत्म। शादी होने के बाद मैं अपनी दादी के पास रहती थी। बड़ी होने पर ससुराल वाले बुलाकर ले गए। मेरी जिस लड़के के साथ शादी हुई थी, वह कुछ भी काम नहीं करता था। सभी बदमाश लड़कों के साथ मिलकर सुनसान जगह में लोगों को लूटने का काम करता था। लूट के पैसों को दारू में रायपुर, बिलासपुर में अय्याशी में उड़ा देता था। इसी चोरी के इल्जाम में एक दो बार जेल भी गया था। बहुत समझाया था कि तुम काम पर जाओ या मजदूरी करो, थोड़ा -मोड़ा जो मिलेगा उसमें हम सुखी रहेंगे। मगर सुना नहीं।
“इसलिए तुम भाग आई?” रूबी ने पूछा।
“नहीं, नहीं उसके लिए नहीं। कितने दुख भरे दिन मैने बिताए हैं, क्या कहूंगी तुम्हें। ये दुख तो कुछ भी नहीं है। मैने दुर्गा माँ का व्रत रखा था। पूरे चौंसठ गुरुवार उपावस रखे थे कि उस घर से किस तरह मुक्ति मिल जाए।”
“तुझे क्या वे लोग मार-पीट करते थे?” बड़े ही दयाद्र्र लहजे में बोली थी रूबी।
“नहीं, नहीं, मारपीट नहीं, कैसे कहूं तुम्हे हमारे लोगों के आचरण की बात। दुनिया कहां से कहां पहुंच गई, देखो। मगर वे लोग अभी तक कुछ भी नहीं बदले। वे ही पुराने रीति-रिवाज को रखकर बैठे हैं। मेरा यहां जन्म हुआ है। शहर के चाल- चलन में पली-बढ़ी, गांव के वे आलतू फालतू धंधे मुझे पता नहीं। एक दिन बाहर बैठकर बाल बना रही थी। मेरी सास ने गुस्सा होकर मुझे बुलाया- “ऐ थोडगी, भीतर जाओ काम धंधा तो कुछ नहीं केवल बाहर बैठकर बाल संवारने है।”
“तुम्हारा नाम थोडगी?”
“थोडगी किसी का नाम होता है? मेरे बाल बच्चे नहीं थे तो, हमारी भाषा में जिसके बच्चे नहीं होते हैं उनको थोडगी कहते हैं। थोडगी एक अपमानजनक शब्द है। मेरे देवर के लिए लड़की देखने जाना था उस दिन। मेरा मुंह देखने से अशुभ होता, इसके लिए मुझे भीतर भेज दिया मेरी सास ने। उस दिन मैं बहुत रोई। इच्छा हो रही थी दादी के पास चली जाऊँ।
रात को कुछ भी नहीं खाकर मैं सो गई। मेरी सास ने पास बुलाकर बहुत समझाया था। जिसके बच्चे नहीं होते हैं, उनका मुंह देखने से अशुभ होता है। कोई भी काम अच्छा नहीं होता है। औरतें वंश को आगे बढ़ाने के लिए हैं और अगर वह अपना वंश आगे नहीं बढ़ा पाती हैं तो उसका जीवन व्यर्थ है। फिर भी तुम चिंता मत करो। मैं कुछ बंदोबस्त कर दूंगी। दूसरे दिन मेरी सास ने तरह-तरह की जड़ी -बूटियाँ पीसकर मुझे पिलाई। उस समय मेरा आदमी जेल में था। इन जड़ी बूटियों को पीने से क्या लाभ होगा?, मैं सोच रही थी। उस महीने मेरा शुद्ध स्नान होने के बाद मेरी सास ने बुलाकर मेरे बाल गूंथे थे। कहने लगी, “सारा दिन ये ही कपड़े पहनी रहोगी, बदल दो।”
मुझे आश्चर्य हो रहा था रात के समय इतना सजना-धजना क्यों ? मेरे गांव में न तो नाच हो रहा था न नौटंकी। उस दिन मेरी सास ने मुझे साथ में बैठकर खिलाया। कहने लगी थी जिसके बच्चे नहीं होते हैं वे नरक में जाते हैं। प्रेत होकर घूमते हैं। समझी, आज रात को अपने किवाड़ खुले रखना। रात को तुम्हारे जेठ तुम्हारे कमरे में आएंगे।
रूबी के आश्चर्य की सीमा नहीं रही। किसी का किसी के साथ संबंध बनने की बात तो उसने सुन रखी थी मगर इस उद्देश्य के साथ क्या यह संभव था? उसी समय उसे महाभारत की अंबिका और अंबालिका की बात याद आ गई। मुनि व्यास की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण थी वंश रक्षा के उद्देश्य की पूर्ति के लिए। ऐसे भी उसने सुन रखा था छत्तीसगढ़ की संस्कृति मे संकीर्णता नहीं है। तुमने अपनी सास की बात का विरोध नहीं किया? पूछा था रूबी ने।
“पता नहीं कौन जानता है?मेरी सास ने उस बात को मेरे मन को काबू में करके मनवाया था। मैं विरोध नहीं कर पाई।
“बाद में?” रूबी ने बात को आधे में रोका।
“ये सब इतनी आसानी से मान लेना संभव है? वह मेरे पिता की उम्र के थे। एक बाप की उम्र के आदमी को कैसे मान लिया जाता? ऐसे भी मेरी अवस्था हिम-शितल थी फिर भी उस बार दो- तीन महीनों तक संबंध रखना पड़ा। सचमुच मैं जैसे प्रेत बन गई थी। उस आदमी के छूने से मेरा शरीर घृणा से भर उठता था। उलटी करने का मन कर रहा था।”
“तुम्हारी जेठानी ने कुछ कहा नहीं?”
“क्या कहती? ये तो पुराना रीति-रिवाज है। जब सारी बातें याद आती है तो शरीर कांप उठता है।”
“इसलिए तुम ससुराल छोडकर आ गई?” रूबी ने पूछा।
“मेरे देवर का स्वभाव अच्छा नहीं था। मौका मिलने पर शेर की तरह कूद पड़ता था। गिद्ध की तरह नोंच लेता था। भालू की तरह शरीर को काट लेता था।इस शरीर पर उसे जरा भी दया नहीं आती थी। इस कष्ट से कौन मुझे छुडा पाता? किस के पास मै फरियाद करने जाती? कौन मेरे दुख को कम करता? पेट में रूबी अपना मालिकपना फेंककर उसके पास दौड़ आई। सिर के बाल को सहलाने लगी। “रो मत, मत रो, चुप हो जा।”
कुछ समय बाद अपने आंसू पोंछकर उठ गई थी दीपा, और हर दिन की तरह अपना काम करने लगी। उसके बाद दोनों ने एक दूसरे के साथ और कोई बात नहीं की। काम खत्म करके अपना नाश्ता खाकर वह चुपचाप चली गई थी। उसके जाने के बाद घर में अद्भुत शांति छा गई थी जैसे तेज बारिश के बाद खुले आकाश में एक शून्यता। मगर रूबी का मन सारा दिन भारी रहा। इन सारी बातों ने उसको मादक द्रव्य की तरह नशाग्रस्त कर दिया था। बाहर उसकी अपनी दुनिया है, वह समझ नहीं पाई थी।
दीपा के चेहरे की हंसी धीरे-धीरे खत्म होती जा रही थी। कभी उसका चेहरा पत्थर की मूर्ति की तरह दिखता था तो कभी कृष्णपक्ष की रात की तरह।कभी जिद्दी स्त्रोत की तरह विवृत तो कभी प्रतिक्रियाशील नारीनेत्री की तरह। एक दिन सिर पर निकले गुमडे के साथ आई थी वह। रूबी ने पूछा “अरे ! यह क्या हुआ? कहीं गिर पड़ी?”
उस दिन अपना दुख बताने के बाद आज तक वह दूर- दूर रहने लगी। रूबी का प्रश्न सुनकर कहने लगी, “कल शाम को मेरे पिता ने मुझे खूब पीटा है। चोटी पकड़कर इतनी जोर से फेंका कि सिर फूल गया है।”
“तुम्हारी माँ ने कुछ नहीं कहा?”
“वह दो दिन पहले अपने ससुराल गई है। होने से भी क्या करती। वह तो चाहती है, मैं कैसे भी यहां से चली जाऊँ। मेरे पिता को लेकर उसको मुझ पर बहुत संदेह है।”
“ये सब क्या चल रहा है? रूबी ने कहा। तुम्हारे बाप ने तुझे क्यों मारा, सही- सही कहो?”
“दारु पीने के लिए पैसे मांगे। मैं पैसे कहां से लाती? मैं कौन-सी मजदूरी करती हूँ कि हर दिन हाथ में कुछ पैसे आएंगे, जो घर को ले जाऊंगी।। जिस-तिस घर काम करके जो महीने के पैसे मिलते हैं, उनसे घर के लिए महीने भर का चावल खरीद लेती हूँ। तुम्हारे घर की तरह कम चावल नहीं खाते हैं? तुम तो जानती हो, एडवांस लेकर घर में खप्पर बदलने के लिए दिए थे, और कहाँ से पैसे लाती जो उसको दारु पीने के लिए देती?”
इतनी होशियार होने के बाद भी तुम्हारे माँ- बाप तुम्हें घर से निकालना चाहते हैं ? कैसे लोग हैं?
असली बात क्या है, जानती हो दीदी, वह मेरा असली बाप नहीं है इसलिए मेरी माँ मन में संदेह करती है। वह तो मौका खोजती है कि मैं कैसे भी यहां से भागूं। इसलिए झूठ बोलकर कि मेरा उस लड़के के साथ संबंध हैं, कहकर झगड़ा करती है। और मेरा बाप बेकार बैठे- बैठे उसके रोजाना का दारू-खर्च मुझसे हासिल करना चाहता है। पैसा नहीं मिलने पर उस लड़के का बहाना बनाकर मुझे पीटता है। मैं सोच रही हूँ चली जाऊँ?
“कहाँ जाओगी? तुम्हारा तो कोई नहीं है?”
“उस लड़के के साथ ही चली जाऊंगी?”
“मतलब?” दीपा की बात सुनकर रूबी को आश्चर्य होने लगा। "वह लड़का तो तुझे बहुत परेशान करता है, कह रही थी हर दिन रास्ते में चलने नहीं देता है। कितनी बार तुमने पत्थर फैंका है, झगड़ा किया है और उस लड़के के सामने हाथ जोड़कर विनती की हो कि वह तुम्हारे जीवन से चला जाए। और अब कह रही हो कि उस लड़के के साथ चली जाऊँगी? कहीं लड़की ने डूबकर पानी तो नहीं पी लिया? या अपने को लेकर तरह-तरह की काल्पनिक कहानियां बनाकर तो नहीं सुना दी उसने आज तक? " रूबी भी बचपन में इस तरह की कल्पना किया करती थी, कि वह बहुत पैसे वाली है। सारे लोग उसको प्यार करते हैं। जीवन दांव पर लगाने वाला उसका एक प्रेमी भी है। एक दिन रूबी को कैंसर हो गया है और वह मृत्युशैया पर अपने आखिरी दिन गिन रही है। सभी रो रहे हैं, सभी को रोता देख वह खुद भी रो रही है। दीपा उस तरह के कहीं सपने तो नहीं देख रही है? आज यह भोलीभाली लड़की अपने दुख और दुर्दशा की कहानी सुनाकर कहीं उसे मूर्ख तो नहीं बना रही है।
“तुम क्या आज जा रही हो?” रूबी ने पूछा।
“नहीं, कल शाम को जाऊंगी।”
रूबी ने अलमारी में से एक गाढ़े रंग की साड़ी निकालकर दीपा को दी। उस साड़ी को उसने समेटकर पालिथीन में भर दिया।दीपा कहने लगी, “मैने एक लड़की को कह दिया है वह आकर काम करेगी, आप चिंता मत करना।”
सब कुछ जैसे घालमेल हो जा रहा हो। रूबी विश्वास करेगी या अविश्वास? दीपा काम करने के बाद जब जाने लगी तो रूबी उसके पीछे- पीछे कॉलोनी के मुख्य फाटक तक गई। शायद वह घटना की वास्तविकता जानना चाहती थी। या वह उस प्रेमी पागल लड़के को देखना चाहती थी। गेट के पास वाले कलवर्ट पर बैठा हुआ था वह लड़का। यह वही लड़का था जिसके साथ दीपा जाना चाहती थी? इतना गंदा? शायद रूबी ने इतना गंदा लड़का कभी देखा तक नहीं था। तरल काले कोलतार की तरह उसका शरीर दिख रहा था। गाल पर एक कटा हुआ लंबा दाग। दोनो ने रुककर कुछ बात की, फिर रूबी अपने घर को लौटी। उसने लंबी सांस ली।
दूसरे दिन दीपा ने अपना नियमित काम कर लिया था। रूबी रोजाना दीपा को चाय नहीं पिलाती थी, मगर उस दिन दीपा ने पीने के लिए चाय मांगी थी। पहले से ही उसने अपने कपड़े पॉलिथीन में भरकर रख दिए थे। रूबी ने दो बिंदी पैकेट, एक पुरानी बेडशीट, आधा हुआ टेलकम पावडर का डिब्बा दीपा को दिया। चाय पीने के बाद दीपा ने कहा, “जा रही हूँ। और तो इधर नहीं आ पाऊँगी।”
“हाँ” रूबी ने कहा था।
दीपा गेट पारकर जा रही थी। रुबी ने पीछे से आवाज लगाई, “दीपा सुनो तो।”
पीछे मुडकर दीपा ने देखा।
“तू क्या अपनी खुशी से उस लडके के साथ जा रही है?।
“खुशी मन से?” दो कदम पीछे मुडकर आई वह।
“आप तो सब जानती हैं, फिर पूछ रही हो? आपने तो देखा ही है उस लड़के ने मेरी क्या गत बना दी है? घर से बेघर कर दिया मुझको। किधर जाती मैं? जैसे भी करके एक मनुष्य का सहारा तो है। कुत्ते, बिल्ली का जन्म पाना बल्कि अच्छा है। मुझे लग रहा था उसके लिए मैं निराश्रय हुई, अब वही मुझे आश्रय भी देगा।”
“इतनी नफरत से घर परिवार बसना संभव है?” रूबी ने कहा।
“जानती सब हूं, मगर मेरे पास और कोई ऊपाय नहीं है। मैं यह बात भी जानती हूं कि लडके का वर्ष, डेढ़ वर्ष में मेरे से मन टूट जाएगा। फिर?”
इस फिर का कोई उत्तर नहीं था रूबी के पास। दीपा ने भी उत्तर की आशा नहीं की थी। और कहने लगी, “जा रही हूँ।”
(अनुवादक : दिनेश कुमार माली)