रंग-बिरंगी मिठाइयां : तेनालीराम की कहानी
Rang-Birangi Mithaiyan : Tenali Raman Story
वसंत ऋतु छाई हुई थी। राजा कृष्णदेव राय बहुत ही खुश थे। वह तेनालीराम के साथ बाग में टहल रहे थे। वह चाह रहे थे कि एक ऐसा उत्सव मनाया जाए, जिसमें उनके राज्य के सारे लोग शामिल हों। पूरा राज्य उत्सव के आनंद में डूब जाए। इस विषय में वह तेनालीराम से भी राय लेना चाहते थे। तेनालीराम ने राजा की इस सोच की प्रशंसा की और इसके बाद राजा ने विजयनगर में राष्ट्रीय उत्सव मनाने का आदेश दे दिया। शीघ्र ही नगर को स्वच्छ करवा दिया गया, सड़कों व इमारतों में रोशनी की व्यवस्था कराई गई। पूरे नगर को फूलों से सजाया गया। सारे नगर में उत्सव का वातावरण था। इसके बाद राजा ने घोषणा की कि राष्ट्रीय उत्सव मनाने के लिए हलवाई की दुकानों पर रंग-बिरंगी मिठाइयां बेची जाएं। घोषणा के बाद नगर के सारे हलवाई रंगीन मिठाइयां बनाने में व्यस्त हो गए।
इस घोषणा के बाद कई दिनों तक तेनालीराम दरबार में नजर नहीं आए। किसी को भी उनके बारे में कुछ नहीं पता था। राजा कृष्णदेवराय ने तेनालीराम को ढूंढ़ने के लिए सिपाहियों को भेजा, लेकिन वे भी तेनालीराम को नहीं ढूंढ़ पाए। उन्होंने राजा को इस बारे में बताया।
यह सुनकर राजा और भी अधिक चिंतित हो गए। उन्होंने दोबारा सिपाहियों को तेनालीराम की खोज में जुट जाने का आदेश दिया।
कुछ दिनों बाद सैनिकों ने तेनालीराम को ढूंढ़ निकाला। वापस आकर उन्होंने राजा को बताया, ‘महाराज, तेनालीराम ने तो कपड़ों की रंगाई की दुकान खोल ली है। वह सारा दिन अपने इसी काम में व्यस्त रहते हैं। जब हमने उन्हें अपने साथ आने को कहा तो उन्होंने आने से मना कर दिया।’
यह सुनकर राजा को गुस्सा आ गया। वह सैनिकों से बोले,‘मैं तुम्हें आदेश देता हूं कि तेनालीराम को जल्दी से जल्दी पकड़कर यहां ले आओ। अगर वह तुम्हारे साथ अपनी मर्जी से न आए तो उसे बलपूर्वक लेकर आओ।’
राजा के आदेश का पालन करते हुए सैनिक तेनालीराम को बलपूर्वक पकड़कर दरबार में ले आए।
राजा ने पूछा, ‘तेनाली, तुम्हें लाने के लिए जब मैंने सैनिकों को भेजा तो तुमने शाही आदेश का पालन क्यों नहीं किया? और एक बात और बताओ। हमारे दरबार में तुम्हारा अच्छा स्थान है, जिससे तुम अपनी सभी आवश्यकताएं पूरी कर सकते हो। फिर भला तुमने यह रंगरेज की दुकान क्यों खोली?’
तेनालीराम बोले,‘महाराज, दरअसल मैं राष्ट्रीय उत्सव के लिए अपने कपड़ों को रंगना चाहता था। नगर में बहुत सारे लोग उत्सव में पहनने के लिए अपने कपड़े रंगवाना चाहते हैं। इस काम में अच्छी कमाई है। इससे पहले कि सारे रंगों का इस्तेमाल दूसरे लोग कर लें, मैं रंगाई का काम पूरा कर लेना चाहता था।’
‘सभी रंगों के इस्तेमाल से तुम्हारा क्या मतलब है? क्या नगर के सारे लोग अपने कपड़ों को रंग रहे हैं?’ राजा ने पूछा।
‘नहीं महाराज, वास्तव में रंगीन मिठाइयां बनाने के आपके आदेश के बाद से नगर के ज्यादातर हलवाई मिठाइयों को रंगने के लिए रंग खरीदने में व्यस्त हो गए हैं। अगर वे सारे रंगों को मिठाइयां रंगने के लिए खरीद लेंगे तो मेरे कपड़े कैसे रंगे जाएंगे?’
इतना सुनते ही राजा को अपनी भूल का अहसास हो गया। वह बोले,‘तो तुम यह कहना चाहते हो कि मेरा आदेश अनुचित है। मेरे आदेश का फायदा उठाकर मिठाइयां बनाने वाले मिठाइयों को रंगने के लिए घटिया व हानिकारक रंगों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि उन्हें केवल खाने योग्य रंगों का ही इस्तेमाल करना चाहिए’, इतना कहकर महाराज ने तेनालीराम की तरफ देखा। तेनालीराम के चेहरे पर वही चिर-परिचित मुस्कराहट थी। राजा कृष्णदेव राय ने गंभीर होते हुए आदेश दिया कि जो मिठाई बनाने वाले हानिकारक रासायनिक रंगों का प्रयोग कर रहे हैं, उन्हें कठोर दंड दिया जाएगा। इस तरह तेनालीराम ने अपनी बुद्धि के इस्तेमाल से विजयनगर के लोगों को बीमार होने से बचा लिया।