राक्षसी रानी : कश्मीरी लोक-कथा

Rakshasi Rani : Lok-Katha (Kashmir)

लोग एक ऐसे राजा की कहानी कहते हैं जिसके सात पत्नियाँ थी पर उनमें से बच्चा किसी के नहीं था। जब उसने अपनी पहिली पत्नी से शादी की थी तो सोचा था कि वह जरूर ही उसको एक बेटा देगी पर ऐसा नहीं हुआ।

फिर उसने दूसरी से शादी की तीसरी से शादी की फिर चौथी पाँचवीं छठी और सातवीं से शादी की पर किस्मत की बात किसी के भी कोई लड़का नहीं हुआ जो उसको खुश करता और उसके बाद उसका राज्य सँभालता। इस बात को ले कर वह बहुत दुखी था। एक बार वह पास के एक जंगल से कुछ कराहता सा गुजर रहा था कि उसको बहुत सुन्दर परी दिखायी दी। उसने राजा से पूछा “तुम कहाँ जा रहे हो?”

राजा बोला — “मैं बहुत दुखी और अभागा हूँ। हालाँकि मेरे सात पत्नियाँ हैं पर अपना कहने के लिये मेरा कोई बेटा नहीं है जिसे मैं अपना वारिस कह सकूँ। मैं इस जंगल में आज इसलिये चला आया ताकि मुझे कोई संत मिल जाये और वह मेरी इच्छा पूरी कर दे।”

परी ने हँसते हुए पूछा — “और तुम क्या सोचते हो कि तुम्हें यहाँ इस बियाबन जंगल में कोई संत मिलेगा? यहाँ केवल मैं रहती हूँ। पर मैं तुम्हारी सहायता कर सकती हूँ। अगर मैं तुम्हारे दिल की इच्छा पूरी कर दूँ तो बताओ तुम मुझे क्या दोगे?”

राजा बोला — “तुम मुझे एक बेटा दे दो मैं तुमको अपना आधा राज्य दे दूँगा।”

परी बोली — “मुझे तुम्हारा न तो सोना चाहिये और न देश ही चाहिये। तुम मुझसे शादी कर लो तो तुम्हें बेटा भी मिल जायेगा और राज्य का वारिस भी।”

राजा राजी हो गया और परी को ले कर अपने महल चला गया। वहाँ जा कर उसने जल्दी ही उसको अपनी आठवीं पत्नी बना लिया। राजा की खुशी का कोई ठिकाना न रहा जब उसे कुछ दिन बाद यह पता चला कि उसकी दूसरी सातों पत्नियों के बच्चा होने वाला था।

पर वह परी जिसको राजा ने अपनी आठवीं पत्नी बनाया था परी नहीं थी बल्कि एक राक्षसी थी जो उस जंगल में राजा के सामने परी के रूप में इसलिये प्रगट हुई थी ताकि वह उसको धोखा दे कर उसके महल में खुराफात मचा सके। हर रात जब शाही घराने के सब लोग सो जाते वह उठती और अस्तबल में जाते समय और बाहर नौकरों के घरों की तरफ जाते समय एकाध हाथी खा लेती या फिर तीन चार घोड़े या कुछ भेड़ें या ऊँट खा लेती और अपनी भूख प्यास बुझाने के बाद सुबह होने से पहिले पहिले अपने कमरे में आ कर लेट जाती जैसे कुछ हुआ ही न हो।

पहिले तो राजा के नौकर इस बात को बताने में डरते रहे पर जब उन्होंने देखा कि जानवर तो हर रात गायब होते रहे हैं तो उनको राजा के पास जाना पड़ा। तुरन्त ही महल की इमारत की सुरक्षा की कड़ा हुकुम सुना दिया गया और उसके हर कमरे की रक्षा के लिये चौकीदार नियुक्त कर दिये गये।

पर सब बेकार था। जानवर हर रात गायब होते रहे और कोई यह नहीं बता सका कि यह सब कैसे हो रहा था। एक रात राजा अपने कमरे परेशान सा घूम रहा था कि वह इस बारे में क्या करे कि उसकी आठवीं पत्नी नकली परी ने कहा — “तुम मुझे क्या दोगे अगर मैं तुम्हारा चोर ढूँढ दूँ तो।”

राजा बिना सोचे समझे बोला — “कुछ भी। हर चीज़।”

परी बोली — “ठीक है। तो अभी तुम जा कर सोओ कल सुबह मैं तुम्हें बताऊँगी कि यह सब खुराफात किसने मचा रखी है।” यह सुन कर राजा सोने चला गया और जल्दी ही गहरी नींद सो गया। उसके सोते ही उसकी नीच पत्नी उस कमरे से निकली भेड़ों के बाड़े में गयी एक भेड़ ली उसको मारा और उसका खून एक मिट्टी के बरतन में भर दिया।

वह खून भरा बरतन ले कर वह वापस महल लौटी और दूसरी पत्नियों के कमरों में गयी। वहाँ जा कर उसने वह खून उनके मुँह पर लगा दिया और उसमें से कुछ खून उनके कपड़ों पर छिड़क दिया। इसके बाद वह अपने कमरे में आ कर लेट गयी। राजा तभी भी गहरी नींद सो रहा था।

जैसे ही सुबह हुई उसने राजा को जगाया और बोली — “मैंने तुम्हारा चोर पकड़ लिया है। तुम्हारी जो दूसरी पत्नियाँ हैं उन्होंने ही जानवर चुराये हैं और खाये हैं। वे लोग इन्सान नहीं हैं बल्कि राक्षसी हैं। अगर तुम अपनी ज़िन्दगी बचाना चाहते हो तो तुम्हें उनसे बच कर रहना चाहिये। अगर तुम्हें मेरी बात झूठ लग रही हो तो तुम खुद जा कर देख लो।”

राजा अपनी सब पत्नियों के कमरों में गया तो देखा कि सचमुच ही उनके मुँह पर खून लगा है और उनके कपड़ों पर भी खून के धब्बे हैं। यह देख कर राजा बहुत गुस्सा हो गया।

उसने उनके लिये यह हुकुम सुना दिया कि उन सबकी आँखें निकाल ली जायें और उनको शहर के बाहर वाले सूखे कुँए में फेंक दिया जाये। ऐसा ही किया गया।

अगले दिन ही उनमें से एक रानी ने एक लड़के को जन्म दिया जिसको खाने की जगह सबने खा लिया। उसके अगले दिन एक और रानी ने एक लड़के को जन्म दिया उसी तरह से खाने की जगह उसको भी सबने खा लिया।

तीसरे दिन तीसरी रानी ने चौथे दिन चौथी रानी ने पाँचवे दिन पाँचवीं रानी ने और छठे दिन छठी रानी ने एक एक लड़के को जन्म दिया और वे सब बच्चे खा लिये गये।

सातवीं रानी का अभी समय नहीं आया था। उसने अपने हिस्से के बच्चों के टुकड़े नहीं खाये थे बल्कि उनको सँभाल कर रख लिया था जब तक उसका अपना बच्चा जन्म लेता।

जब उसके बच्चे का जन्म हुआ तो उसने दूसरी रानियों से प्रार्थना की कि वे उसके बच्चे को न खायें। बल्कि उस बच्चे के हिस्से के बदले में उसने उनके बच्चों के हिस्से जो उन्होंने उसको खाने के लिये दिये थे वे ले लें। छहों रानियाँ मान गयीं और इस तरह उस बच्चे की भी जान बच गयी और सब रानियों की जान भी बच गयी।

बच्चा धीरे धीरे बढ़ने लगा और बड़ा हो कर वह एक ताकतवर और सुन्दर लड़का बन गया। जब वह छह साल का हुआ तो सातों रानियों ने सोचा कि उसको कुछ बाहर की दुनियाँ दिखायी जाये। पर वे यह काम कैसे करें। कुँआ बहुत गहरा था और उसकी दीवारें बिल्कुल सीधी खड़ी थीं।

आखिर उन्होंने एक तरकीब निकाल ही ली। वे एक दूसरे के कन्धे पर खड़ी हो गयीं। सातवीं रानी जो सबसे ऊपर खड़ी थी उसने बच्चे को उठा कर कुँए के किनारे पर बिठा दिया। कुँए से बाहर निकलते ही बच्चा महल की तरफ भाग गया।

शाही रसोईघर में पहुँच कर उसने रसोइये से खाना माँगा। रसोइये ने उसको बहुत सारा खाना दिया जिसमें से कुछ उसने खाया और बाकी बचा खाना वह अपनी माँ और राजा की दूसरी रानियों के लिये ले आया।

कुछ दिनों तक ऐसे ही चलता रहा कि एक दिन रसोइये ने उससे वहीं रुक जाने के लिये और राजा के लिये कुछ खाना बनाने के लिये कहा। उसने उससे कहा कि उसकी माँ मर गयी है और उसको उसका अन्तिम संस्कार करने जाना जरूरी था तो आज वह उसकी जगह खाना बना दे।

लड़का राजी हो गया। उसने कहा कि वह अपनी तरफ से भरसक कोशिश करेगा कि राजा के लायक खाना बना सके और रसोइया उसे खाने का काम सौंप कर चला गया।

उस दिन के खाने से राजा बहुत खुश हुआ। खाना ठीक से पका हुआ था। उसमें खुशबू भी बहुत अच्छी आ रही थी और वह ठीक से परोसा गया था।

शाम को रसोइया लौट आया। राजा ने उसको बुला कर उसके खाने की बहुत तारीफ की और कहा कि आज का खाना बहुत अच्छा था और वह आगे भी वैसा ही खाना बनाया करे।

यह सुन कर रसोइये ने ईमानदारी से स्वीकार किया कि उस दिन का खाना तो उसने बनाया ही नहीं था। उस दिन तो वह सारा दिन ही महल में नहीं था क्योंकि उसकी माँ मर गयी थी। उसने एक लड़के को यह जिम्मेदारी सौंप दी थी उसने ही वह खाना बनाया था।

जब राजा ने यह सुना तो उसने रसोइये को उस लड़के को अपने रसोईघर में नियमित रूप से नौकरी देने के लिये कहा। अब क्या था राजा के रसोईघर में रोज नये नये पकवान बनने लगे और राजा उनसे खुश हो कर उस लड़के को अक्सर भेंटें देने लगा। वह लड़का ये सब भेंटें और खाना अपनी माँ और अपनी सौतेली माँओं के लिये ले कर जाने लगा।

जब यह लड़का महल से कुँए की तरफ जाता था तो रास्ते में एक फकीर पड़ता था जो हमेशा उसे आशीर्वाद देता और उससे भीख माँगता तो लड़का भी उसको कुछ न कुछ दे ही देता था। इस तरह से फिर कुछ साल निकल गये। लड़का और जवान और सुन्दर हो गया कि एक दिन उस नीच रानी की निगाह उस पर पड़ी। वह उसकी सुन्दरता देख कर दंग रह गयी और उससे पूछा कि वह वहाँ कहाँ से आया था और कब आया था।

लड़के को रानी के चरित्र के बारे में कुछ पता नहीं था न उसे उस पर कोई शक ही हुआ सो उसने अपने बारे में अपनी माँ और अपनी सौतेली माँओं के बारे में उसे सब कुछ बता दिया। उसी समय से वह उसकी जान लेने की योजना बनाने लगी।

उसने बीमारी का बहाना बनाया और एक हकीम को बुलाया। उसको उसने राजा से यह कहने के लिये रिश्वत दी कि “रानी बहुत बीमार है और केवल मादा चीते का दूध ही उसकी जान बचा सकता है।”

राजा ने जब यह सुना तो वह तुरन्त उसके पास आया और उससे कहा — “प्रिये यह मैं क्या सुन रहा हूँ। हकीम जी कह रहे हैं कि तुम बीमार हो और तुम्हारे इलाज के लिये मादा चीते के दूध की जरूरत है। यह हमें कैसे मिल सकता है? किसकी हिम्मत है जो उसका दूध ला सके?”

रानी बोली — “यह काम वह लड़का कर सकता है जो अपने यहाँ रसोईघर में काम करता है। वह बहुत बहादुर है। तुमने उसके लिये जो कुछ भी किया है उसके बदले में वह यह काम तुम्हारे लिये खुशी खुशी कर देगा। उसके अलावा मैं किसी और को नहीं जानती जो तुम्हारा यह काम कर सके।”

“ठीक है मैं उसको बुला कर पूछूँगा।”

लड़का तुरन्त ही तैयार हो गया और अगले दिन अपनी इस खतरे भरी यात्रा पर चल दिया। रास्ते में वही फकीर पड़ता था। उसने लड़के से पूछा — “किधर चल दिये?”

उसने राजा का हुकुम फकीर को बता दिया और साथ में यह भी कहा कि राजा की इच्छा पूरी करके उसे कितनी खुशी होगी जिन्होंने उसके ऊपर इतनी दया की है।

फकीर बोला — “तुम वहाँ मत जाओ। तुम ऐसा काम करने की हिम्मत भी कैसे कर सकते हो। तुम्हें मालूम है कि यह कितनी जोखिम का काम है?”

पर लड़के को अपनी ज़िन्दगी की चिन्ता नहीं थी तो फकीर बोला — “अगर तुम नहीं मानते तो मेरी सलाह मानो इससे तुम सुरक्षित भी रहोगे और अपने काम में कामयाब भी होगे। जब तुम किसी मादा चीते को देखो तो एक तीर उसके एक थन में मारना। इससे वह बोल पड़ेगी और पूछेगी कि तुमने उसको तीर क्यों मारा। तब तुम उससे कहना कि यह तीर तुमने उसको मारने के लिये नहीं चलाया बल्कि इसलिये चलाया था ताकि उसके थन में एक छेद हो जाये और उससे दूध आसानी से बह सके। तुम उससे यह भी कहना कि तुमको उसके बच्चों पर दया आती है जो कम दूध की वजह से कमजोर दिखायी दे रहे हैं।”

फिर फकीर ने उसे आशार्वाद दिया और उसको उसकी यात्रा पर भेज दिया। इस तरह प्रोत्साहित हो कर लड़का खुशी खुशी जंगल की तरफ बढ़ा। जल्दी ही उसको एक मादा चीता मिल गयी। फकीर की सलाह के अनुसार उसने तुरन्त ही एक तीर उसके एक थन में मारा।

जब मादा चीता ने उससे उसके इस तीर मारने की वजह पूछी तो उसने वही कहा जो फकीर ने उससे कहने के लिये कहा था। पर साथ में उसने यह भी कहा कि महल में रानी जी बहुत बीमार हैं उनके इलाज के लिये मादा चीते का दूध चाहिये।

मादा चीता बोली — “मेरा दूध चाहिये और रानी जी को? क्या तुम्हें यह मालूम नहीं कि वह एक राक्षसी है। तुम उससे दूर ही रहना कहीं ऐसा न हो कि वह तुमको मार डाले और खा जाये।”

लड़का बोला — “मुझे उससे कोई खतरा नहीं है। उसकी मुझसे कोई दुश्मनी नहीं है।”

“तब ठीक है। मैं तुम्हें अपना दूध जरूर दूँगी पर तुम रानी से बच कर रहना।” कह कर मादा चीता उसको एक बहुत बड़ी चट्टान के पास ले गयी जो एक चट्टान से टूट कर अलग हो गयी थी। वहाँ जा कर वह बोली — “इधर देखो। यहाँ मैं अपने दूध की एक बूँद गिराती हूँ।” कह कर उसने अपने दूध की एक बूँद उस चट्टान पर गिरा दी तुरन्त ही वह चट्टान टुकड़े टुकड़े हो कर बिखर गयी।

वह फिर बोली — “तुमने देखी मेरे दूध की ताकत। पर अगर रानी जितना दूध मैं तुम्हें दे रही हूँ वह सब भी पी जायेगी तो भी उसका उसके ऊपर कोई असर नहीं होगा क्योंकि वह राक्षसी है और ऐसी चीज़ों का उसके ऊपर कोई असर नहीं होगा। अगर तुमको मेरा व्श्विास न हो तो तुम खुद देख लेना।”

मादा चीता का दूध ले कर लड़का वापस लौट आया और वह दूध उसने राजा को दे दिया। राजा उसको अपनी पत्नी के पास ले गया। रानी ने वह सारा दूध पी लिया और कहा कि वह अब ठीक हो गयी।

राजा उस लड़के से बहुत खुश हुआ और अपने महल के नौकरों में उसकी तरक्की कर दी पर रानी का उद्देश्य तो अभी पूरा नहीं हुआ था। वह तो उसको मारना चाहती थी और वह अभी भी ज़िन्दा था। वह फिर सोचने लगी कि वह उसको राजा को बिना गुस्सा किये कैसे मार सकती थी।

कुछ दिनों के बाद उसने बीमारी का फिर से बहाना किया और राजा को बुला कर उससे कहा — “लगता है मैं फिर बीमार पड़ गयी हूँ पर तुम चिन्ता न करो। मेरे दादा उस जंगल में रहते हैं जहाँ से यह मादा चीते का दूध लाया गया था।

उनके पास एक खास दवा है शायद मैं उससे ठीक हो जाऊँ। अगर तुम मँगवा सकते हो तो वह दवा मुझे मँगवा दो। वह लड़का जो मेरे लिये यह दूध ले कर आया था वही वहाँ भी जा सकता है और वह दवा उनसे ला सकता है।”

सो वह लड़का दोबारा रानी के दादा से दवा लाने के लिये भेज दिया गया। रास्ते में फिर से फकीर पड़ा तो फकीर ने उससे फिर पूछा — “किधर चले?” लड़के ने फिर से सब कहानी उसको सुना दी।

फकीर बोला — “तुम वहाँ मत जाओ वह आदमी तो राक्षस है। वह तुम्हें खा जायेगा।” लेकिन लड़का तो पिछली बार की तरह से फिर से अपनी जिद पर अड़ा रहा।

फकीर बोला — “तो ठीक है जाओ मगर मेरी सलाह सुनते जाओ। जब तुम उस राक्षस को देखो तो उसको नाना जी कह कर पुकारना। वह तुमसे अपनी पीठ खुजलाने के लिये कहेगा तो तुम उसकी पीठ जरूर खुजलाना और बहुत ही ज़ोर से खुजलाना।”

लड़के ने वायदा किया कि वह वैसा ही करेगा और जंगल की तरफ चल दिया। जंगल बड़ा था और घना था उसको लगा कि वह तो उस राक्षस तक कभी पहुँच ही नहीं पायेगा। पर तभी उसको उस राक्षस का मकान दिखायी दे गया और साथ में राक्षस भी।

उसको देखते ही वह तुरन्त चिल्लाया — “नाना जी मैं आपकी बेटी का बेटा हूँ। मैं आपसे यह कहने आया हूँ कि आपकी बेटी बहुत बीमार है और वह जब तक ठीक नहीं हो सकती जब तक कि वह वह दवा न ले जो आपके पास है। उन्होंने मुझे इसीलिये आपके पास भेजा है। मेहरबानी करके वह दवा मुझे दे दीजिये।”

राक्षस बोला — “ठीक है। मैं तुम्हें वह दवा देता हूँ पर पहले तुम ज़रा मेरी पीठ खुजला दो। यहाँ बहुत खुजली आ रही है।” राक्षस ने झूठ बोला था। उसकी पीठ में बिल्कुल भी खुजली नहीं आ रही थी। वह तो बस यह देखना चाहता था कि वह लड़का उसकी बेटी का असली बेटा था या नहीं। फकीर के बताये अनुसार उसने राक्षस की पीठ बहुत ज़ोर से खुजला दी।

जब लड़के ने राक्षस की पीठ में अपने नाखून गड़ाये जैसे कि वह उसकी पीठ खुरच देना चाहता हो तभी राक्षस ने उसे रोक दिया “ठीक है ठीक है।” और दवा दे कर उसे वापस भेज दिया। महल पहुँच कर उसने वह दवा राजा को दे दी। राजा उसको अपनी रानी के पास ले कर गया। उसने उसको लिया और बताया कि वह अब पहले से बेहतर थी।

राजा उस लड़के से अब और भी ज़्यादा खुश था। बदले में उसने उसको कई भेंटें दीं और उसको और भी कई चीज़ें दीं। नीच रानी की अब समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह ऐसे लड़के के साथ क्या करे। वह तो मादा चीते से भी बच कर आ गया था उसके पिता से भी बच कर आ गया था। भगवान ही जानता है कि ऐसा कैसे हुआ। पर अब वह उसका क्या करे। आखिर उसने उसको अपनी एक बूढ़ी दादी के पास भेजने का प्लान बनाया जो उसी जंगल में उसके पिता के घर के पास ही रहती थी। उसको पूरा भरोसा था कि इस बार वह ज़िन्दा वापस नहीं आ पायेगा।

सो उसने राजा को बुलाया और उससे कहा कि मेरे घर में मेरी एक बहुत ही कीमती कंघी है मुझे वह चाहिये। मेहरबानी करके उस लड़के को मेरी वह कंघी लाने भेज दो। जब वह जाने के लिये तैयार हो तो मुझे बता देना मैं उसको अपनी दादी के नाम चिट्ठी दे दूँगी।”

राजा ने उसकी बात मान ली और लड़का उससे उसकी दादी के नाम चिट्ठी ले कर चल दिया। रास्ते में फिर वही फकीर पड़ा तो उसने पूछा — “अब कहाँ चल दिये?”

लड़के ने उसको फिर से सब कुछ बता दिया। उसने उसको रानी की दी हुई चिट्ठी भी पढ़ने के लिये दी।

फकीर बोला — “ज़रा मैं भी तो पढ़ूँ कि इसमें क्या लिखा है।”

पढ़ कर वह बोला — “क्या तुम जान बूझ कर मौत के मुँह में जाना चाहते हो यह चिट्ठी तो तो तुम्हारी मौत का परवाना है। कंघी का तो केवल बहाना है। सुनो इसमें क्या लिखा है — “इस चिट्ठी का लाने वाला मेरा बहुत खास दुश्मन है। मैं अपना कोई भी काम तब तक पूरा नहीं कर पाऊँगी जब तक यह ज़िन्दा है। जैसे ही यह तुम्हारे पास पहुँचे इसको मार देना ताकि मैं इसके बारे में फिर कुछ न सुनूँ।”

जैसे ही लड़के ने यह शब्द सुने वह तो डर के मारे थर थर काँपने लगा पर वह राजा को दिया हुआ अपना वायदा नहीं तोड़ सकता था। उसने यह पक्का इरादा कर लिया था कि वह राजा का काम पूरा करेगा चाहे उसकी जान खतरे में ही क्यों न हो।

सो फकीर ने वह चिट्ठी तो फाड़ कर फेंक दी और एक दूसरी चिट्ठी इस तरह लिखी — “यह मेरा बेटा है। जब यह तुम्हारे पास पहुँचे तो इसका खास ख्याल रखना और इसको बहुत प्यार से रखना।” यह लिख कर उसने यह चिट्ठी लड़के को दी और कहा कि वह उसको नानी कह कर पुकारे और उससे बिल्कुल डरे नहीं। लड़के ने वह चिट्ठी ली और जंगल की तरफ चल दिया।

राक्षसी के घर पहुँच कर उसने जैसा कि फकीर ने उसे सलाह दी थी राक्षसी को नानी कह कर पुकारा और फकीर की लिखी हुई चिट्ठी उसको थमा दी।

चिट्ठी पढ़ कर उसने लड़के को गले लगाया और अपनी बेटी और उसके शाही पति के बारे में काफी कुछ बातें पूछी। राक्षसी ने जितना अपनी तरफ से सोच सकती थी लड़के पर पूरा ध्यान दिया और उसकी सुख सुविधा का भी पूरा ख्याल रखा।

जब वह वहाँ से चलने लगा तो उसने उसको बहुत सारी भेंटें दीं। जिनमें से एक साबुन की शीशी थी जिसकी अगर एक बूँद भी जमीन पर गिर जाये तो वहाँ एक बहुत बड़ा पहाड़ खड़ा हो जाता था।

एक शीशी भर कर सुइयाँ थीं जिसकी अगर एक सुई नीचे गिर जाये तो एक बड़ी पहाड़ी खड़ी हो जायेगी जिस पर नुकीलें कीलें गड़ी होंगी। एक शीशी भर कर पानी था जिसमें से अगर पानी जमीन पर डाला जाये तो समुद्र बन सकता था।

उसने उसको ये चीज़ें भी दिखायीं और उनका मतलब भी समझाया — सात बढ़िया किस्म के मुर्गे, एक चरखा, एक कबूतर, एक चिड़िया और एक दवा।

उसने कहा इन सात मुर्गों में तुम्हारे सात मामाओं की आत्मा है जो कुछ दिनों के लिये बाहर गये हुए हैं। जब तक ये सात मुर्गे ज़िन्दा हैं तब तक तुम्हारे मामा ज़िन्दा हैं और उनको कोई नुकसाननहीं पहुँच सकता। इस चरखे में मेरी आत्मा बन्द है। अगर यह टूटा तो मैं भी टूट जाऊँगी यानी मैं मर जाऊँगी नहीं तो मैं अमर हूँ। इस कबूतर में तुम्हारे नाना की ज़िन्दगी बन्द है और इस चिड़िया में तुम्हारी माँ की ज़िन्दगी बन्द है। यह कबूतर और यह चिड़िया जब तक कुशल मंगल हैं तुम्हारे नाना और माँ भी सकुशल हैं। और इस दवा को लगाने से एक अन्धा भी देख सकता है।

लड़के ने राक्षसी को जो कुछ उसने उसको दिया था और जो कुछ उसने उसको दिखाया था उस सबके लिये धन्यवाद दिया और सोने चला गया।

सुबह को राक्षसी जब नदी पर नहाने गयी लड़के ने सातों मुर्गों और कबूतर को मारा और चरखे को जमीन पर मार कर तोड़ दिया। उसी समय राक्षसी उसका पति और सातों बेटे मर गये। फिर उसने पिंजरे में बन्द चिड़िया को पकड़ा वह कीमती दवा ली और राजा के महल की तरफ चल दिया।

रास्ते में वह अपनी माँ और राजा की दूसरी रानियों का अन्धापन दूर करने के लिये रुका। जैसे ही उसने वह दवा उनकी आँखों पर लगायी उनकी दॄष्टि वापस आ गयी। उसने उन सबको कुँए से बाहर निकाला। अब सब मिल कर राजा के महल की तरफ चले।

महल जा कर लड़के ने उनको एक कमरे में इन्तजार करने के लिये कहा और फिर वह राजा के पास गया और उसको अपनी माँओं से मिलने के लिये तैयार किया। उसने कहा — “राजा साहब मैं आपको कई भेद बताना चाहता हूँ। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप उन्हें ध्यान दे कर सुनें।

आपकी पत्नी एक राक्षसी है और वह मुझे मारने का प्लान बना रही है क्योंकि वह यह जानती है कि मैं आपकी कई पत्नियों में से एक पत्नी का बेटा हूँ जिनको आपने अन्धा करके एक सूखे कुँए में डलवा दिया था।

वह डरती है कि मैं एक दिन आपकी राजगद्दी का वारिस बन जाऊँगा इसलिये वह वह चाहती है कि मैं जल्दी से जल्दी मर जाऊँ। मैंने उसके पिता माता और सात भाइयों को मार दिया है और अब मैं उसको मारने वाला हूँ। उसकी ज़िन्दगी इस चिड़िया में बन्द है।”

कह कर उसने उस चिड़िया का गला घोंट दिया। रानी तुरन्त ही मर गयी। फिर वह राजा को अपने साथ ले गया और उसकी सातों रानियों को दिखा कर बोला — “ये आपकी सातों असली रानियाँ हैं। आपके घर में आपके सात बेटे पैदा हुए जिनमें से छह बेटे खाने की कमी की वजह से मार कर खा लिये गये। मैं सातवाँ अकेला ज़िन्दा बच रहा।”

यह सुन कर राजा बिलख बिलख कर रो पड़ा — “ओह यह मैंने क्या किया। मुझे धोखा दिया गया।”

इसके बाद राजा ने अपने बेटे को राजा बना दिया वह भी अपनी साबुन की सुइयों की और पानी की जादुई बोतलों के सहारे अपने राज्य से लगे हुए राज्यों को जीतने में सफल रहा। बूढ़ा राजा अपनी सातों पत्नियों के साथ शान्तिपूर्ण ज़िन्दगी बिताता रहा और आनन्द करता रहा।

(सुषमा गुप्ता)

  • कश्मीरी कहानियां और लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां