राजकुमार डेनियल के हुकुम से : रूसी लोक-कथा
Rajkumar Daniel Ke Hukum Se : Russian Folk Tale
एक बार की बात है कि एक जगह एक बड़ी उम्र की रानी रहती थी। उसके दो बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी। उसके दोनों बच्चे बहुत सुन्दर और मजबूत थे। पर वहाँ एक बुरी जादूगरनी भी रहती थी। वह यही सोचती रहती थी वह उनको उनके राज्य से कैसे बाहर निकाले।
सो एक दिन वह रानी माँ के पास गयी और बोली — “प्रिय बहिन मैं तुम्हें यह अँगूठी देती हूँ। इसको अपने बेटे की उँगली में पहना देना इससे वह बहुत दयालु और अमीर हो जायेगा। इसके अलावा उसको किसी ऐसी लड़की से शादी करनी चाहिये जिसकी उँगली में यह अँगूठी फिट आ जाये।”
रानी माँ ने उसका विश्वास कर लिया और वह वह अँगूठी ले कर बहुत खुश हो गयी। जब वह मर रही थी तो उसने अपने बेटे से कहा कि वह किसी ऐसी लड़की से ही शादी करे जिसकी उँगली में यह अँगूठी फिट आ जाये।
समय गुजरता गया। लड़का बड़ा होता गया।
जब वह आदमी हो गया तब उसने अपनी शादी के लिये लड़की देखना शुरू किया। बहुत सारी लड़कियाँ उसे अच्छी लगीं पर जैसे ही वह उस अँगूठी को उनकी उँगली में पहना कर देखता तो देखता कि किसी की उँगली में तो वह ढीली है तो किसी की उँगली में वह आ ही नहीं रही है।
बेचारा क्या करता। वह अब गाँव गाँव शहर शहर घूमने लगा। इस बीच उसने बहुत सारी सुन्दर सुन्दर लड़कियाँ देखीं पर उसको अपनी वाली कहीं नहीं मिली। उदास सा वह घर लौट आया।
एक दिन उसकी बहिन ने पूछा — “भैया क्या बात है तुम इतने उदास क्यों हो?”
सो उसने उसको अपनी समस्या बतायी। अँगूठी देखते ही वह बोली — “अरे तुम्हारी यह अँगूठी तो बहुत अच्छी है। मैं पहन कर देखूँ।” कह कर उसने उसे अपनी उँगली में पहन कर देखा तो वह उसकी उँगली में बिल्कुल फिट आ गयी, न छोटी न बड़ी। “ओह बहिन तो तुम ही मेरी पत्नी हो जो मेरे लिये बनी है।”
“उफ़ यह तो बहुत ही अजीब सा विचार है। यह तो पाप है।”
पर लड़का जो कुछ वह कह रही थी उसकी बात सुन कर ही न दे। वह तो खुशी के मारे नाच उठा। वह बोला कि बस अब तुम शादी के लिये तैयार हो जाओ।
उसकी बहिन बहुत ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। घर के सामने चली गयी और वहाँ दहलीज़ पर बैठ कर रोने लगी।
उधर से दो भिखारी जा रहे थे तो उसने उनको कुछ खाने पीने के लिये दिया। उन्होंने उसको रोते देखा तो उससे पूछा कि “बेटी क्यों रोती हो? तुम हमें बताओ तो सही।” उसने उनको सब बता दिया।
वे बोले — “अब तुम्हें रोने की जरूरत नहीं है। अब जैसा हम कहते हैं तुम वैसा ही करो। तुम चार गुड़ियाँ बनाओ और उनको कमरे के चारों कोनों में रख दो। जब तुम्हारा भाई तुमको शादी के लिये बुलाये तो चली जाना और अगर वह तुमको दुलहिन वाले कमरे में बुलाये तो उससे थोड़ा सा समय माँगना। भगवान पर विश्वास रखना और हमारी सलाह मानना।”
कह कर वे चले गये। भाई और बहिन की शादी हो गयी। अब भाई ने दुलहिन के कमरे में पहुँच कर उसको पुकारा — “आओ बहिन आओ।”
बहिन बोली — “मैं अभी आती हूँ ज़रा मैं अपने कान के बुन्दे उतार लूँ।” तभी कमरे के चारों कोनों में रखी हुई चारों गुड़ियों ने गाना शुरू कर दिया — कू कू राजकुमार डेनिलो कू कू गोवोरिलो कू कू यह एक भाई है कू कू जो बहिन से शादी कर रहा है कू कू धरती फट जाये कू कू और बहिन उसमें समा जाये तभी धरती ऊपर को उठी और धीरे से बहिन को निगल गयी।
भाई फिर चिल्लाया — “बहिन आओ इस पंख के बिस्तर पर आओ।”
बहिन फिर बोली — “एक मिनट मैं ज़रा अपनी कमर की पेटी निकाल रही हूँ।” तभी कमरे के चारों कोनों में रखी हुई चारों गुड़ियों ने फिर गाना शुरू कर दिया — कू कू राजकुमार डेनिलो कू कू गोवोरिलो कू कू यह एक भाई है कू कू जो बहिन से शादी कर रहा है कू कू धरती फट जाये कू कू और बहिन उसमें समा जाये इस बार उसका केवल सिर ही बाहर दिखायी देता रहा बाकी की वह पूरी की पूरी जमीन के अन्दर धँस गयी। भाई फिर चिल्लाया — “बहिन आओ इस पंख के बिस्तर पर आओ।”
बहिन बोली — “बस एक मिनट मैं अपने जूते उतार लूँ।”
गुड़ियें फिर गाने लगीं और इस बार वह सारी की सारी धरती में समा गयी। भाई चिल्लाता रहा चिल्लाता रहा चिल्लाता रहा।
जब वह काफी देर तक नहीं आयी तो वह बहुत गुस्सा हो गया और उसको लाने के लिये भागा तो उसने देखा कि कमरे में तो कोई नहीं था केवल चार गुड़ियें रखी हुई थीं कमरे के चारों कोनों में। वे अभी भी गा रही थीं।
उसने उनके सिर आपस में टकराये और उनको आग में फेंक दिया।
उधर बहिन धरती के अन्दर चलती चली गयी तो उसको एक झोंपड़ी दिखायी दी जो एक मुर्गे की टाँग पर खड़ी हुई और चारों तरफ घूम रही थी। उसको देख कर वह चिल्लायी — “ओ झोंपड़ी रुक जा तू अपना पिछवाड़ा जंगल की तरफ करके खड़ी हो जा।”
उसके यह कहते ही झोंपड़ी अपनी पीठ जंगल की तरफ करके खड़ी हो गयी और दरवाजा खोल दिया। उसमें से एक बहुत सुन्दर लड़की निकली जो सोने और चाँदी के तारों से कोई कपड़ा बुन रही थी।
उसने अपने मेहमान को बहुत प्रेम से नमस्कार किया पर एक लम्बी साँस ले कर बोली — “मेरी प्यारी बहिन। मैं तुझे देख कर बहुत खुश हूँ और तेरी देखभाल करके और भी ज़्यादा खुश होती पर केवल तब तक के लिये जब तक मेरी माँ यहाँ नहीं है। पर जैसे ही वह उड़ कर यहाँ आयेगी तो बस यह जान लो कि तुम्हारे और मेरे दोनों के लिये दुखदायी होगी। क्योंकि वह एक जादूगरनी है।”
लड़की ने जब यह सुना तो वह तो बहुत डर गयी पर वह वहाँ से कहीं भाग नहीं सकी। सो वह उसके पास ही बैठ गयी और दूसरी लड़की के काम में सहायता कराने लगी।
वे काम भी करती रहीं साथ में बातें भी करती रहीं। जैसे ही दूसरी लड़की की माँ के आने का समय हुआ तो उसने अपने मेहमान को एक सुई में बदल दिया। उसको एक कपड़े में लगा कर एक तरफ को रख लिया।
जैसे ही उसने यह किया कि बाबा यागा अन्दर घुसी। आते ही वह बोली — “मेरी सुन्दर बेटी, मेरी प्यारी बच्ची मुझे यह तो बता तेरे कमरे में रूसी की हड्डियों की बू कहाँ से आ रही है।”
लड़की बोली — “माँ अभी थोड़ी देर पहले ही यहाँ कुछ अजीब आदमी पानी पीने के लिये रुके थे।”
“तो तूने उन्हें पकड़ कर क्यों नहीं रखा।”
“माँ वे बहुत बूढ़े थे। तुम्हारे दाँतों के लिये बहुत सख्त थे।”
बाबा यागा बोली — “ठीक है पर आगे से अगर कोई आये तो तू उसको पकड़ कर रखा कर और उसको कभी मत जाने दिया कर। मैं अब कोई दूसरा शिकार करने जाती हूँ।” कह कर वह फिर उड़ गयी।
जैसे ही वह वहाँ से गयी उस लड़की ने अपने मेहमान को सुई से लड़की में बदल दिया। वे फिर अपनी बुनाई करने लगीं और साथ में बातें करने लगीं और हँसने लगीं।
तभी वह जादूगरनी उस कमरे में एक बार फिर आयी। उसने घर में इधर उधर कुछ सूँघा और बोली — “बेटी मेरी प्यारी बेटी मुझे तुरन्त बता कि यह रूसी हड्डियों की बू कहाँ से आ रही है।”
लड़की बोली — “कुछ बूढ़े लोग अपने हाथ गरम करने के लिये यहाँ आये थे। तुम्हारे कहे अनुसार मैंने उनको रोकने की कोशिश की पर वे रुके ही नहीं।”
लड़की की इस बात पर माँ बहुत नाराज हुई उसे बहुत डाँट लगायी और फिर वापस उड़ गयी। इस बीच पहले की तरह से उस लड़की ने अपने मेहमान को सुई के रूप में ही रखा हुआ था। माँ के जाने के बाद वे दोनों फिर बुनने बातें करने और हँसने के लिये बैठ गयीं।
अब वे दोनों यह बात कर रही थीं कि इस जादूगरनी से कैसे बचा जाये। इस बार बातों बातों में वे समय ही भूल गयीं।
अचानक ही बाबा यागा उनके सामने आ कर खड़ी हो गयी और बोली — “मेरी प्यारी बेटी मुझे बता तो सही कि रूसी हड्डियों की बू कहाँ से आयी।”
अब तो वह झूठ नहीं बोल सकती थी सो बोली — “माँ यह सुन्दर लड़की तुम्हारा इन्तजार कर रही है।”
बाबा यागा बोली — “जा मेरी बच्ची जा कर ओवन तो गरम कर। और हाँ देखना उसे अच्छी तरह गरम करना।”
मेहमान ने ऊपर की तरफ देखा तो डर के मारे काँप गयी क्योंकि बाबा यागा अपनी लकड़ी की टाँगों पर उसके सामने ही खड़ी थी। उसकी नाक उसके कमरे की छत से भी ऊँची जा रही थी।
सो माँ बेटी आग जलाने के लिये लकड़ियाँ ले कर आयीं – ओक और मैपिल81 की लकड़ियों के लठ्ठे। उन्होंने उनमें आग लगायी और तब तक इन्तजार किया जब तक वह ओवन खूब गरम नहीं हो गया।
उसके बाद बाबा यागा ने अपना फावड़ा उठाया और दोस्ती की आवाज में कहा — “आजा मेरी प्यारी बच्ची आजा मेरे फावड़े पर बैठ जा।”
लड़की ने उसका कहना माना तो बाबा यागा उसको भट्टी में डालना चाह रही थी कि उसनी अपने टाँगें भट्टी की दीवार से जमा दीं। बाबा यागा ने पूछा — “बेटी क्या तू चुपचाप बिना हिले डुले बैठ सकती है?”
पर उसकी इस बात का कोई असर नहीं हुआ। बाबा यागा उस लड़की को ओवन में नहीं रख सकी। इससे वह और बहुत नाराज हो गयी।
उसने उसकी पीठ पर धक्का मार कर उसको ओवन में धकेलने की कोशिश की और कहा — “तू बेकार में ही समय बरबाद कर रही है। तू मेरी तरफ देख और देख कि इस फावड़े के ऊपर कैसे बैठा जाता है।”
कह कर वह नीचे फावड़े पर बैठ गयी और अपने दोनों घुटने एक साथ अपनी छाती तक मोड़ लिये। बस जैसे ही वह उस तरीके से बैठी दोनों लड़कियों ने मिल कर उसको ओवन में धकेल दिया।
ओवन का दरवाजा ज़ोर से बन्द किया जिससे वह ओवन के बिल्कुल अन्दर चली गयी। अपनी अपनी बुनाई ली अपनी अपनी कंघी और ब्रश लिये और वहाँ से भाग लीं।
वे बड़ी मुश्किल से भाग रही थीं कि एक बार उन्होंने पीछे मुड़ कर देखा तो देखा कि बाबा यागा तो उनके पीछे पीछे आ रही थी। वह ओवन में से किसी तरह बच निकली थी और चिल्लाती जा रही थी – “हू हू हू देखो वे दोनों जा रही हैं।”
सो लड़कियों ने मजबूरी में अपना ब्रश अपने पीछे फेंक दिया। इससे उनके और बाबा यागा के बीच एक बहुत ही घना गंगल पैदा हो गया जिसको बाबा यागा पार नहीं कर सकती थी। सो उसने अपने पंजे फैलाये अपने आपको खुजलाया और फिर भाग चली।
अब वह बेचारी दोनों लड़कियाँ कहाँ भागें। इस बार उन्होंने अपने कंघे अपने पीछे फेंक दिये। इससे उन दोनों के बीच एक बहुत ही बड़ा घना और अँधेरा जंगल पैदा हो गया कि कोई मक्खी भी उड़ कर उसे पार नहीं कर सकती थी।
यह देख कर जादूगरनी ने अपने दाँत किटकिटाये और फिर पीछा करने लगी। वह अब एक के बाद एक हर पेड़ को तोड़ती हुई चली जा रही थी। इस तरह से उसका रास्ता बनता हुआ चल जा रहा था। वह उनको पकड़ने ही वाली थी।
जबकि लड़कियों में अब भागने की ताकत बिल्कुल नहीं बची थी सो उन्होंने अपने पीछे अपना एक कपड़ा फेंक दिया। इससे उन दोनों के बीच में एक बहुत बड़ा गहरा चौड़ा और आग का समुद्र बन गया।
बुढ़िया उठ कर उसे पार करना चाहती थी पर उसने जैसे ही उठ कर उसे पार करना चाहा तो वह खुद ही उस आग के समुद्र में गिर पड़ी और जल कर मर गयी।
बेचारी लड़कियाँ अब बेघर की हो गयी थीं वे नहीं जानती थीं कि वे अब कहाँ जायें। भागते भागते वे थक गयी थीं सो वे एक जगह आराम करने के लिये बैठ गयीं।
एक आदमी उधर से गुजर रहा था तो दो लड़कियों को अकेला बैठा देख कर उसने उनसे पूछा कि वे कौन थीं। उसने अपने मालिक से जा कर कहा — “मालिक आपके राज्य में दो छोटी छोटी चिड़ियें उड़ कर आ गयी हैं। दोनों बहुत सुन्दर हैं और देखने में बिल्कुल एक सी लगती हैं आँखों में और बनावट में सभी तरह से।”
उसने उनको देखा तो उनमें से एक तो उसकी बहिन थी, पर कौन सी। यह वह नहीं बता सका। इसका मतलब साफ था कि उसके नौकर ने झूठ नहीं बोला था पर वह क्या करता वह तो जानता ही नहीं था।
बहिन उससे गुस्सा थी पर कुछ कह नहीं पा रही थी। मालिक ने कहा “अब मैं क्या करूँ।”
नौकर बोला — “सरकार मैं एक खाल में थोड़ा सा खून भर लेता हूँ और उसको आपकी बगल में छिपा देता हूँ। फिर आप उन दोनों से बातें करिये। इस बीच में मैं आपकी बगल में एक चाकू मारूँगा तो उसमें से खून टपक पड़ेगा तभी आपकी असली बहिन अपने आपको बता देगी।”
मालिक बोला — “यह ठीक है।”
जैसे ही यह करने की सोचा गया उतने ही जल्दी कर भी दिया गया। नौकर ने अपने मालिक की बगल में कई बार चाकू मारा तो उसकी बगल से खून बह निकला और वह गिर पड़ा।
यह देख कर उसकी बहिन उठ कर उसके पास पहुँच गयी और चिल्लायी “भैया भैया।”
यह सुन कर मालिक हँसी खुशी तन्दुरुस्त उठ गया और अपनी बहिन को गले लगा लिया। बाद में उसने एक अच्छा लड़का देख कर उसकी शादी कर दी।
उसने खुद ने उसकी दोस्त से शादी कर ली क्योंकि उसका नाप तो सब वैसा ही था। उसके बाद सब लोग हँसी खुशी रहे।