राजकुमार और राजकुमारी : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा
Rajkumar Aur Rajkumari : Lok-Katha (Oriya/Odisha)
एक देश में एक राजा थे। उनका एक ही लड़का था। उसका रूप जितना सुंदर था, उतनी ही उसकी विद्या-बुद्धि भी थी। राजकुमार की शिक्षा पूरी हो गई तो राजा मंत्री और सभासद आदि के साथ विचार-विमर्श कर राजकुमार के विवाह के लिए उपयुक्त कन्या की खोज करने लगे।
एक दिन राजकुमार ने सोचा, “किसी दूसरे के द्वारा तलाश की गई कन्या कहीं मुझे पसंद न आए। इससे तो अच्छा मैं ख़ुद तलाश करूँ।” ऐसा सोचकर उसने बढ़ई को बुलाकर लकड़ी का एक घोड़ा तैयार करने के लिए कहा। बढ़ई ने अपनी सारी विद्या, बुद्धि, कौशल का उपयोग कर लकड़ी का एक घोड़ा तैयार कर राजकुमार को दे दिया।
राजकुमार लकड़ी के घोड़े पर सवार होकर देशाटन के लिए निकल पड़े। चलते-चलते कुछ दूर जाने के बाद एक दूसरा राज्य आया। राजकुमार ने देखा राजमहल से सटा हुआ एक अपूर्व बग़ीचा है। कई तरह के पेड़-पौधों से बग़ीचा भरा हुआ है। कितने तरह के पक्षियों के कलरव से बग़ीचा गूँज रहा है। बीच में एक सुंदर तालाब है। काँच की तरह पारदर्शी पानी। देखने पर तलहटी भी दिखाई पड़ रही है। इस तरह के एक सुंदर उपवन को देखकर राजकुमार का मन ललचा गया और वहीं वह अपने घोड़े से उतर गए। पास के पेड़ के नीचे लकड़ी के घोड़े को रखकर तालाब का पानी पीकर एक पेड़ की छाँव में सुस्ताने लगे।
काफ़ी दूर से यात्रा करके आए राजकुमार बहुत थक गए थे। पेड़ के नीचे आराम करते-करते उन्हें नींद आ गई। गहरी नींद में वह सोए थे कि तभी राजकुमारी अपनी सहचरियों के साथ तालाब में नहाने के लिए आई। तालाब के किनारे पहुँचकर राजकुमारी ने देखा एक अपूर्व राजकुमार काठ का घोड़ा पेड़ के नीचे रखकर सो गया है। सोते हुए राजकुमार रूप-सौंदर्य को देखकर राजकुमारी उसके प्रति आकर्षित हो गई। मन की बात मन में रखकर नहा-धोकर अपनी सखियों के साथ वापस राजमहल चली गई।
पर राजकुमारी का मन राजमहल को छोड़कर पेड़ के नीचे सोए उस कुमार में ही अटका रह गया। जितना भी अपने को सँभालने की कोशिश करती उतना अधीर हो जाती। राजकुमारी की इस तरह की अस्वाभाविक हालत देखकर सहचरियों में से कुछ ने आक्षेप करते हुए हँसी-मज़ाक़ करना शुरू कर दिया। कुछ सखियाँ राजकुमारी के आज के इस नए व्यवहार का कारण ढूँढ़ने लगीं।
इसी तरह कुछ समय बीत गया। राजकुमारी को जब एहसास हुआ कि उस राजकुमार के बिना अब एक पल भी रहना मुश्किल है तो किसी से कुछ न कहकर अकेली चुपचाप बग़ीचे की तरफ़ जाने के लिए निकली। राजकुमारी के वहाँ पहुँचने के कुछ क्षण पहले ही राजकुमार उठकर मुँह हाथ-पैर धोकर, काठ के घोड़े पर चढ़ चले जा रहे थे।
राजकुमारी ने उसे जाते देखा तो वापस राजमहल न लौटकर उसके पीछे-पीछे भागी। काठ के घोड़े पर चढ़ राजकुमार नाक की सीध चले जा रहे थे। पीछे राजकुमारी कभी दौड़कर तो कभी थके क़दमों से चलती रही। बहुत दूर ऐसे ही राजकुमारी पीछा करती रही। राजकुमार एक बार भी पीछे पलटकर नहीं देख रहे थे। बहुत दूर चलने के बाद एक बीहड़ जंगल आया। अब राजकुमारी ने सोचा अकेली राजमहल लौटना संभव नहीं है और इस घने जंगल के संकरे रास्ते पर चलकर राजकुमार तक पहुँचना भी संभव नहीं है।
थक-हारकर राजकुमारी कुछ पल वहीं खड़ी रही। पैर उसके काँप रहे थे। आँखों से टप-टप आँसू झरने लगे और अपने को रोक नहीं पाई। पुकारने लगी, “कुमार! कुमार! मेरी उपेक्षा मत करो कुमार। जीवन का सबकुछ त्याग कर मैं तुम्हारी अनुगामिनी हुई। मेरी रक्षा करो कुमार! कुमार! कुमार! ” बहुत दूर होने पर राजकुमार मानो वह आवाज़ सुन पाए। यूँ शब्द तो उसके कानों से नहीं टकराए, पर उसे लगा जैसे पीछे से कोई उसके दिल को निकाल रहा है।
अस्थिर हो गए राजकुमार। मन चंचल हो उठा। जाने कैसे उनकी गति भी थम गई। वहीं घोड़े से उतरकर राजकुमार ने पीछे मुड़कर देखा तो देखा कि बहुत दूर कोई युवती अकेली खड़ी है। पास उसके कोई सहारा नहीं था। कुमार के मन में दया आ गई। तुरंत वह पीछे लौटे और कुमारी के पास जा पहुँचे।
कुमार को इतनी तकलीफ़ में भी अपने पास पाकर राजकुमारी के सारे शारीरिक कष्ट, तकलीफ़ मानो ग़ायब हो गए। आनंद से विभोर होकर उसकी आँखों से ख़ुशी के आँसू बहने लगे। राजकुमार यह सब देखकर भौंचक रह गया। उन्होंने पूछा, “इस निर्जन जंगल के संकरे रास्ते में तुम कौन हो?” राजकुमारी बोली, “मैं एक राजकन्या हूँ। आपने जिस बग़ीचे में विश्राम किया था, वहीं आपको देखकर मैंने अपना सर्वस्व आपको सौंप दिया था। मुझे आप अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लीजिए, नहीं तो मैं अपनी जान दे दूँगी।” राजकुमारी से यह सब सुनकर राजकुमार ने उसे पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। दोनों एक-दूसरे को पाकर ख़ुश हुए।
उस बीहड़ जंगल में कहीं कुछ भी नहीं था। राजकुमारी राजकुमार के खाने-पीने के लिए कुछ ढूँढ़ने निकली। कुछ दूर आगे बढ़ी तो उसे कुछ मकान दिखे। वहाँ ज़रूर लोग-बाग होंगे — ऐसा सोचकर उस मकान के पास पहुँची। वह एक बूढ़ी राक्षसी का घर था।
उस बूढ़ी राक्षसी के छह लड़के थे। छोटा लड़का लंगड़ा और अंधा था। उस समय सारे लड़के जंगल में लकड़ी लेने गए थे। बूढ़ी राक्षसी ने जैसे ही उस सुंदर स्त्री को अपने द्वार पर देखा, एक पल का भी समय गँवाए बिना, उसे अपने लड़कों की बहू बनाएगी, ऐसा सोचकर तुरंत उसे मंत्र मारकर बेहोश कर दिया। राजकुमारी राजकुमार के लिए खाना लेकर वापस क्या लौटती, बूढ़ी राक्षसी के द्वार पर बेहोश पड़ी रही।
उधर बहुत देर होने के बाद भी राजकुमारी नहीं लौटी तो राजकुमार परेशान हो गए। एक तो भूख-प्यास से हाल बेहाल था। ऊपर से राजकुमारी का लौटकर न आना राजकुमार के लिए बहुत तकलीफ़देह था। आख़िर में घोड़े पर बैठकर राजकुमार ख़ुद उसे ढूँढ़ने निकल पड़े।
ढूँढ़ते-ढूँढ़ते उसी बूढ़ी राक्षसी के घर जा पहुँचे राजकुमार। वहाँ अपनी प्राणप्रिय राजकुमारी को बेहोश पड़ा हुआ पाया। काठ के घोड़े से उतरकर सारी बात उसे पता चली। तुरंत बिना समय गँवाए मंत्र पढ़कर कुमारी को होश में ले आए। राजकुमार और राजकुमारी दोनों घोड़े पर बैठकर आगे बढ़ने लगे।
ठीक उसी समय छह राक्षस भाई घर लौटे। उनके घर पहुँचते ही बूढ़ी राक्षसी उनसे बोली, “बेटो, तुम्हारे लिए एक दिव्य सुंदरी लड़की यहाँ रखी थी। कुछ समय पहले आते तो तुम्हें वह मिल जाती। कुछ देर पहले एक राजकुमार आकर उसे होश में लाकर अपने साथ घोड़े पर बैठाकर ले गया।”
छहों राक्षस माँ की बात सुनकर राजकुमार और राजकुमारी के पीछे दौड़े। काठ के घोड़े पर जाते-जाते पीछे कुछ शोरगुल सुनकर राजकुमार ने पलटकर देखा तो पाया कि छह असुर उन्हें पकड़ने के लिए पीछे दौड़े चले आ रहे हैं। कुछ भी हो वह तो ठहरे इंसान! उनकी गति से असुरों की गति तेज़ थी। इसलिए असुरों ने तुरंत उनके पास पहुँचकर उन्हें पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया।
खतरा ख़ूब पास है, जानकर राजकुमार ने मंत्र के बल पर असुर और उनके बीच में सात सौ पहाड़ और जंगल की सृष्टि कर दी। ख़ूब घने जंगल में धू-धू करके आग फैलने लगी। सारे राक्षस वहीं खड़े रह गए। एक पाँव भी आगे बढ़ना असंभव था। सभी परेशान हो उठे। क्या उपाय किया जाए? बड़े भाइयों ने सलाह किया और आगे बढ़ना संभव नहीं होगा, ऐसा सोचकर वापस लौटने का फ़ैसला लिया। पर छोटे भाई ने, जो अंधा और लंगड़ा था, माँ डाँटेगी ऐसा डराकर सभी भाइयों को आग के अंदर जाने के लिए उकसाया।
बूढ़ी राक्षसी के डर से सभी सातों भाई जलते हुए जंगल की आग के अंदर घुसे। मुश्किल से कुछ ही दूर जा पाए थे तो उन सब का शरीर बुरी तरह से जलने लगा। एक क़दम भी फिर जब वे आगे बढ़ नहीं पाए तो जादू से सारे जंगल और आग को ग़ायब कर दिया। तब तक राजकुमार और राजकुमारी काफ़ी आगे निकल चुके थे। जंगल और आग के ग़ायब हो जाने के बाद सारे राक्षस आराम से राजकुमार के पास पहुँचने लगे। पीछे फिर से शोरगुल की आवाज़ सुनकर राजकुमारी पलटी तो देखा कि छहों राक्षस जंगल और आग को अपने जादू से ग़ायब करके अचानक वहाँ हाज़िर हो गए हैं। उसने तुरंत यह बात राजकुमार को बताई तो फिर से राजकुमार ने मंत्र की ताक़त से सात समुद्र तैयार कर दिए।
समुद्र के इस पार राजकुमार और राजकुमारी तो दूसरी तरफ़ छह राक्षस। जंगल को अपने माया के बल पर ग़ायब तो कर दिया था, पर अब सात समुद्र को ग़ायब करें तो कैसे? ख़ाली हाथ लौटेंगे तो बूढ़ी राक्षसी डाँटेगी, ऐसा सोचकर सभी समुद्र के भीतर कूद गए। तैरकर ही सही शायद समुद्र पार कर लेने से राजकुमार और राजकुमारी को पा जाएँ?
दूसरी तरफ़ राजकुमार और राजकुमारी समुद्र सृष्टि करके निश्चिंत थे। काफ़ी दूर चलकर आने के कारण उन्होंने तय किया कि कुछ देर रुककर रसोई बनाकर खाना खा लिया जाए। ऐसा विचार कर चूल्हा जलाकर खाना पकाने लगे। रसोई ठीक बनकर तैयार हुआ ही था कि राजकुमारी ने देखा कि वह सारे राक्षस सात समुद्र तैरकर इस पार पहुँच रहे हैं। तब राजकुमार तलवार लेकर किनारे खड़ा हो गया। एक-एक राक्षस किनारे पहुँचकर उठने लगता तो एक ही चोट से राजकुमार उसका गला काट देता। इस तरह पाँच राक्षसों को राजकुमार ने मार दिया।
आख़िर में अंधा लंगड़ा छोटा राक्षस किनारे पहुँचा। बड़े भाइयों का अंजाम देखकर वह पहले से ही गुहार लगाने लगा, “देख भाई! मुझे कुछ पता नहीं है। मुझे इन लोगों ने कहा इसलिए मैं इनके साथ आया। देखो पहले तो मैं अंधा हूँ, ऊपर से लंगड़ा भी। मुझसे तुम्हें भला क्या नुक़सान होगा? मुझे माफ़ कर दो। मैं मज़दूरों की तरह तुम्हारा सारा काम कर दूँगा।” छोटे राक्षस को इस तरह गिड़गिड़ाता देखकर राजकुमार का मन पिघल गया। वह फिर उसे न मारकर अपने साथ रखने के लिए राज़ी हो गया। राजकुमारी ने उसे मार देने के लिए कहा, पर उसकी बात राजकुमार ने नहीं मानी।
खाना बन गया था। अब राजकुमार नहाने गए। साथ में लंगड़ा राक्षस भी गया। राजकुमार अपनी पोशाक और तलवार किनारे रखकर पानी में उतरे। घाट के पत्थर पर बैठकर राजकुमार अपना सिर धोने लगे, तभी वह राक्षस राजकुमार की पोशाक पहनकर, तलवार से राजकुमार के दो टुकड़े करके, राजकुमारी के पास पहुँचा और अब वही उसका पति है ऐसा कहकर ख़ूब ख़ुश हुआ।
राजकुमारी ने राक्षस से सारी बातें जानकर, ऊपरी मन से यह कहा कि मैं तुम्हारी पत्नी हुई, फिर नहाने के बहाने दो टुकड़े हो गए राजकुमार के पास जाने के लिए निकल पड़ी। जाते-जाते उसने राक्षस से कहा कि खाना तैयार है, वह खाना खा ले। राजकुमारी ने एक मंत्र पढ़ दिया। अब राक्षस जितना भी खाएगा उसका पेट भरेगा नहीं। ना ही भात के पतीले से भात ही ख़त्म होगा। राक्षस खाना खाने बैठा।
मृत राजकुमार के पास पहुँचकर राजकुमारी नहाएगी क्या, पति का यह हाल देखकर रोने लगी। और कहीं न जाकर वहीं वह दिन-रात रोते-रोते दिन बिताने लगी। उसका यह रोना शिव-पार्वती ने सुना। उनकी कृपा से राजकुमार ज़िंदा हो गया। राजकुमारी राजकुमार को सारी बातें बताने लगी। बात करते दोनों राक्षस के पास पहुँचे। राक्षस उसी तरह खाने में जुटा था। राजकुमार ने तलवार से राक्षस पर वार किया। एक ही चोट से राक्षस के प्राण निकल गए। राजकुमार और राजकुमारी दोनों जब घर लौटे, तब तक राजा और रानी बूढ़े हो चुके थे। बेटा-बहू को राज्य भार सौंपकर दोनों वानप्रस्थ के लिए निकल गए।
(साभार : ओड़िशा की लोककथाएँ, संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र)