रात का सामना (स्पेनिश कहानी) : जूलियो कोर्टाज़ार

Raat Ka Saamana (Spanish Story in Hindi) : Julio Cortazar

(एक)

होटल के लम्बे गलियारे के मध्य, उसने सोचा कि संभवतः उसे देर होने वाली थी और वह शीघ्रता से गली में उस कोने की ओर, जहाँ सामने वाला सुरक्षा गार्ड उसे मोटर साइकिल रखने देता था, अपनी मोटर साइकिल निकालने के लिए बढ़ा। कोने पर स्थित आभूषण भंडार की घड़ी में उसने देखा कि अभी नौ बजने में दस मिनट शेष थे; अभी उसके पास कुछ अतिरिक्त समय था। सूरज की रोशनी शहर के केंद्र की ऊँची इमारतों से छन कर आ रही थी, फ़िलहाल उसकी सोच में उसका अपना कोई नाम नहीं था। मोटर साइकिल की सवारी के विचार का आनंद लेते हुए उसने उसे चालू कर दिया।

मोटर साइकिल उसकी टांगो के मध्य गड़गड़ाई और ठंडी हवा का एक झोंका उसकी पैंट से टकरा कर चला गया।

उसने मुख्य मार्ग पर मंत्रालयों के भवनों (सफ़ेद और लाल) को, जिनकी खिड़कियाँ चमक रहीं थी, तेजी से पीछे छोड़ दिया। अब वह इस यात्रा का सबसे आनंददायक भाग शुरू कर रहा था, वास्तविक यात्रा: किनारे-किनारे वृक्षों से आच्छादित एक लम्बी सड़क, जिस पर बहुत कम ट्रैफिक था, विशाल कोठियां थी, जिनके बगीचे फुटपाथ तक फैले हुए थे और जो नीची बाड़ से मुश्किल से ही छिप रहे थे। संभवतः थोड़ा लापरवाह, लेकिन सड़क के दाहिनी ओर चलते हुए उसने स्वयं को ताजगी संग, अभी मुश्किल से शुरू हुए दिन के भारहीन संकुचन के संग बहक जाने दिया। संभवतः यह अनैच्छिक असावधानी उसके लिए दुर्घटना से बचने में बाधा बन गयी। उसने कोने में खड़ी स्त्री को, अभी जब उसके लिए ट्रैफिक संकेत हरा ही था, तेजी से सड़क के पार जाने वाली पट्टी पर तेजी से बढ़ते देखा, और अब संभवतः किसी सामान्य उपाय के लिए काफी विलम्ब हो चुका था। उसने स्वयं को बायीं ओर मरोड़ते हुए हाथ-पैर दोनों से जोर से ब्रेक लगाया, उसने महिला को चीखते हुए सुना, टक्कर के साथ ही उसकी दृष्टि गायब हो गयी। यह एकदम से नींद में जाने जैसा था।

उसे एकाएक होश आया। चार या पांच युवा लोग उसे मोटर साइकिल के नीचे से निकाल रहे थे। उसने मुंह में रक्त और नमक का स्वाद महसूस किया, एक घुटना पीड़ा दे रहा था, और जब उन्होंने उसे उठाया, वह चीख पड़ा, वह अपनी दायीं बांह पर दबाव बर्दाश्त नहीं कर सका। आवाजें, जो उन लोगों की नहीं प्रतीत हो रही थी जो उस पर झुके हुए थे, मज़ाक़ और सांत्वना द्वारा उसे प्रसन्नता से उत्साहित कर रहीं थी। उसके लिए एकमात्र संतोष की बात किसी को इस बात की पुष्टि करते सुनना था कि उस समय ट्रैफिक लाइट उसके पक्ष में थी। उसने आ रही उबकाई, जो उसके गले से बाहर आने-आने को थी, को नियंत्रित करने का प्रयत्न करते हुए, उस स्त्री के बारे में पूछा। जब वे, उसे उसका चेहरा ऊपर किये, उसे उठा कर पास के एक चिकित्सालय तक ले गए, उसे पता चला कि दुर्घटना का कारण बनी स्त्री को पाँव में मात्र कुछ खरोंचें आयी थी। “नहीं, तुम उससे मुश्किल से टकरा पाए थे, लेकिन जब तुम टकराये, टक्कर के कारण मोटरसाइकिल उछाल गयी और एक साइड में गिर गयी।”

सलाहें, अन्य दुर्घटनाओं का स्मरण, आराम से रहो, पहले उस के कंधे को देखो, वहाँ, यह ठीक है, और कोई व्यक्ति जो, डस्टकोट पहने हुए था, उसे स्थानीय चिकित्सालय के नीम रौशन कक्ष में कुछ आराम देने वाली चीज का एक घूँट दे रहा था।

पांच मिनट के भीतर पुलिस की एम्बुलेंस आ गयी, और उन्होंने उसे एक गद्देदार स्ट्रेचर पर उठा लिया। सीधे लेट सकने योग्य होना उसके लिए राहत की बात थी। पूरी तरह होश में, किन्तु यह जानते हुए कि वह एक भयानक सदमे से निकलने के प्रभाव झेल रहा था, उसने उसके साथ एम्बुलेंस में बैठे पुलिसकर्मी को अपनी सारी सूचनाएं दे दी। बाँह में पीड़ा लगभग न के बराबर थी, भौंह के ऊपर लगी चोट से निकल कर रक्त उसके पूरे चेहरे पर फ़ैल रहा था। उसने एक या दो बार इसे पीने के लिए अपने होंठ चाटे। उसे काफी बेहतर महसूस हो रहा था, यह एक दुर्घटना थी, एक मुश्किल सौभाग्य, अब कुछ दिन शांति से रहो, कोई बुराई नहीं। पुलिसकर्मी ने बताया कि मोटर साइकिल में बहुत नुकसान हुआ नहीं लग रहा था। “क्यों नुकसान होता,” उसने जवाब दिया। “यह तो पूरी तरह मुझ पर गिर पड़ी थी।” वे दोनों हँसने लगे और जब वे अस्पताल पहुँचे, पुलिसकर्मी ने उससे हाथ मिलाया और उसे शुभकामनाएं दी। अब उबकाई धीरे-धीरे पुनः वापस आने लगी थी, इस दौरान वे उसे पहिये वाले स्ट्रेचर पर, चिड़ियों से भरे वृक्षों के नीचे से चलते हुए एक पैवेलियन की ओर ले जा रहे थे, उसने अपनी आंखें बंद कर ली और इच्छा की कि वह सो रहा था अथवा क्लोरोफॉर्म से बेहोश कर दिया गया था। लेकिन वे उसे अस्पताल की गंध से भरे एक कमरे में काफी देर रखे रहे- फार्म भरते हुए, उसके कपड़े उतार कर भूरे रंग के मोटे कपड़े की अस्पताल की ड्रेस पहनाते हुए। उन्होंने सावधानी से उसकी बाँह को हिलाया, उसे इससे पीड़ा नहीं हुई। नर्सें निरंतर समझदारी भरे मजाक कर रहीं थी और यदि इसके पेट में मरोड़ न हो रही होती तो वह काफी बेहतर महसूस कर रहा होता, लगभग प्रसन्न जैसा।

वे उसे एक्स-रे के लिए ले गए और लगभग बीस मिनट पश्चात, जब एक्स-रे का अभी भी गीला नेगेटिव उसके सीने पर किसी कब्र के काले पत्थर की तरह पड़ा था, वे उसे सर्जरी कक्ष में धकेल ले गए। एक स्त्री का हाथ उसके सिर को व्यवस्थित कर रहा था, उसे महसूस हुआ जैसे वे उसे एक स्ट्रेचर से दूसरे पर स्थानांतरित कर रहे थे। सफ़ेद कपड़े पहने हुए लम्बा और दुबला आदमी उसके पास आया एक्स-रे देखने लगा। सफ़ेद कपड़ों वाला आदमी पुनः मुस्कराता हुआ उसके पास आया, उसके दाएं हाथ में कुछ चमकता सा था। उसने उसके गाल थपथपाये और उसके पीछे स्थित किसी आदमी को कुछ संकेत किया।

(दो)

एक स्वप्न के रूप में यह असामान्य था क्योंकि इसमें तरह-तरह गंध भरी हुई थीं, और उसने कभी भी गंध वाले स्वप्न नहीं देखे थे। पहले एक दलदल की गंध, पगडंडी के बायीं ओर दलदल पहले ही शुरू हो चुका था, एक अस्थिर दलदल जिससे कोई भी कभी वापस नहीं लौटा। लेकिन कुहासा छट गया, और उसकी जगह एक काली सी मिली जुली महक वहाँ थी, उस रात्रि की भाँति जब उसने एज़्टेक से पलायन किया था। और यह सब इतना स्वाभाविक था, उसे उसकी तलाश करते लोगों से बचने हेतु एज़्टेक से पलायन करना पड़ा था और उसके बचने का एक मात्र अवसर जंगल के सबसे भीतरी हिस्से में छिपने के लिए कोई जगह पा लेना था। इस बात का ध्यान रखते हुए कि वह उस संकरी पगडंडी को न छोड़ दे जिसे मात्र वे, मोटेकास ही जानते थे।

जो चीज उसे सबसे अधिक कष्ट दे रही थी, वह थी बदबू, मानो, स्वप्न को पूर्णतः स्वीकार करने की बात को छोड़ कर, कुछ ऐसा था जो उसका प्रतिरोध कर रहा था, जो कुछ आदतन नहीं था, कुछ ऐसा वह उस समय तक खेल में नहीं उतरा था। “इसमें युद्ध की गंध है,” उसने सोचा, उसका हाथ उसके पत्थर के चाकू पर, जो उसके बुने हुए ऊनी कमरबंद में एक कोण पर खुंसा था, अनायास ही चला गया। एक अनपेक्षित आवाज़ ने उसे एकाएक स्तंभित और काँपते हुए सिकुड़ जाने पर मजबूर कर दिया। भयभीत होना कुछ अपरिचित नहीं था, उसके स्वप्नों में ढेरों भय था। वह एक झाड़ी की शाखाओं और तारक विहीन रात्रि से आच्छादित प्रतीक्षा करता रहा। काफी दूर, संभवतः विशाल झील के दूसरे किनारे पर, वे पढ़ाव डालने हेतु आग जला रहे थे; आकाश के एक हिस्से में रक्ताभ चमक थी। आवाज़ दोहराई नहीं गयी। यह किसी टूटे हुए अंग जैसी थी। हो सकता है कोई जानवर उसी की भांति युद्ध की गंध से पलायन कर रहा था।

वह हवा को सूँघता हुआ धीरे से सीधा खड़ा हो गया। कोई आवाज़ नहीं सुनी जा सकती थी, किंतु भय अब भी पीछे पड़ा था, और उसी तरह गंध भी, ‘फूलों के युद्ध’ की वह ऊबन भरी गंध। उसे आगे बढ़ना ही था, दलदल से बचने के लिए और जंगल के एकदम भीतर जाने के लिए। अंधेरे में अनिश्चितता से रास्ता तलाशते, हर दूसरे क्षण झुक कर पगडंडी की सूखी मिट्टी को छूते हुए उसने कुछ कदम बढ़ाए। वह तेज दौड़ लगाना पसंद करता किंतु उसके दोनों ओर भीषण कटीली झाड़ियाँ थीं। रास्ते पर और उस अंधेरे में उसने स्वयं पर नियंत्रण रखा। फिर उसने उस भयानक बदबू के झोंके, जिससे वह सबसे अधिक भयभीत था, को महसूस किया और उसने हताशा में आगे की ओर छलांग लगा दी।

“तुम बिस्तर से गिर जाओगे,” उसकी बग़ल वाले मरीज़ ने कहा। “उछल कूद करना बंद कर दो, दोस्त।”

उसने अपनी आँखें खोली, यह अपराह्न का समय था, सूरज पहले ही उस लम्बे वार्ड की अपेक्षाकृत अधिक बड़ी खिड़की में नीचे जा चुका था। अपने पड़ोसी की ओर देख मुस्कराने का प्रयत्न करते हुए, उसने स्वयं को लगभग शारीरिक रूप से दु:स्वप्न के अंतिम दृश्य से अलग कर लिया। उसकी प्लास्टर से ढँकी बाँह वजन और पुली वाले एक उपकरण से लटकी हुई थी। उसे प्यास महसूस हुई, मानो वह मीलों से दौड़ता रहा हो, किंतु वे उसे अधिक पानी नहीं देना चाहते थे, मुश्किल से होंठों को गीला करने भर को, बस एक घूँट भर। बुखार उस पर विजय हासिल करता जा रहा था और अंततः वह पुनः सो जाने में सफल हो जाता, लेकिन वह जागते रहने का मज़ा ले रहा था, आँखें आधी बंद किए हुए, अन्य मरीज़ों की बातें सुनता हुआ, और यदा कदा किसी प्रश्न का जवाब देता हुआ। उसने एक छोटी सी ट्राली को अपने बिस्तर के पास ले आए जाते देखा, एक सुनहले बालों वाली नर्स ने उसकी जाँघ के अगले भाग को अल्कोहल से रगड़ा और उसमें एक मोटी सुई घुसेड़ दी जो एक नली से जुड़ी हुई थी। नली एक दूधिया चमकदार द्रव से भरी हुई बोतल तक जाती थी।

एक युवा इंटर्न कुछ चमड़े और धातु के उपकरण लिए हुए आया जिसे उसने उसकी दूसरी ठीक बाँह पर कुछ जाँच हेतु फिट करने के लिए समायोजित किया। रात आयी और बुखार उसे कोमलता से घसीट कर एक ऐसी स्थिति में ले गया जहाँ चीज़ें उभरी-उभरी सी लगती हैं मानो दूरबीन से देखी जा हों; वे सब वास्तविक और कोमल थीं, और साथ ही अस्पष्ट रूप से अरुचिकर; किसी उबाऊ फ़िल्म को देखते बैठे होने और सोचते हुए कि बाहर गली में और भी बुरी स्थिति होगी, रुके रहने जैसी।

सुनहरे रंग के शानदार शोरबे का एक प्याला आया, जिसमें हरे प्याऊ, धनिये और अजवाइन की ख़ुशबू आ रही थी। ब्रेड का एक छोटा ढेर, जो एक समूचे भोज से अधिक मूल्यवान था, थोड़ा-थोड़ा कम होता रहा। उसकी बाँह में मुश्किल से कोई तकलीफ़ हो रही थी और केवल भौंह में जहाँ उन्होंने टाँके लगाए थे, कभी-कभी तीव्र पीड़ा उठती थी। जब रास्ते के पास की बड़ी खिड़की गहरे नीले धब्बों में परिवर्तित हो गयी, उसने सोचा कि अब उसके लिए सोना मुश्किल नहीं होगा। अभी भी पीठ के बल लेटे हुए और इस कारण थोड़ी असुविधा महसूस करते हुए, अपने अत्यधिक सूखे और गर्म होंठों पर जीभ फिराते हुए, उसने शोरबे का स्वाद चखा और आनंद की एक गहरी साँस के साथ वह नींद में गोता लगा गया।

शुरू में थोड़ी भ्रामक स्थिति थी, मानो उसकी सभी अनुभूतियाँ, उस क्षण के लिए स्वयं उसी में भोथरी अथवा गडमड हो गयी हों। उसे भान हुआ कि वह घने अंधेरे में भाग रहा था, यद्यपि घने पेड़ों के ऊपरी हिस्सों के मध्य से दिखता आकाश और चारों ओर के मुक़ाबले कम काला था। “पगडंडी” उसने सोचा, “मैं पगडंडी से दूर हो गया हूँ।” उसके पाँव पत्तियों और कीचड़ के एक ढेर में धँस गए और फिर वह एक भी कदम नहीं उठा सका जब कि झाड़ियों की शाखाएं उसकी पसलियों और पैरों में नहीं उलझ रही थी। उखड़ी साँसों के साथ, अंधेरे और सन्नाटे के बावजूद यह जानते हुए कि वह घिर गया था, वह सुनने के लिए नीचे झुक कर बैठ गया। हो सकता है पगडंडी पास ही हो और सुबह की पहली किरण के साथ वह उसे देख पाने में सक्षम हो जाये। अब कोई चीज उसे पाने में उसकी मदद नहीं कर सकती थी। वह हाथ जो अनायास ही खंजर की मूठ पर कस गया था, किसी बिच्छू के डंक की भांति उसकी गर्दन की ओर उठा जहाँ बचाव का तावीज लटका हुआ था। अपने होंठ मुश्किल से ही चलाते हुए उसने उन प्रार्थनाओं का पाठ किया जो शुभकर चंद्रमा को ले आती हैं और उस महान देवी की प्रार्थनाओं का भी जो मोटेकॉन की समृद्धिदात्री थी। ठीक उसी समय उसे यह भी महसूस हुआ कि उसके टखने कीचड़ में गहरे धँसते जा रहे थे और शाहबलूत के घने अस्पष्ट जंगल के अँधेरे में प्रतीक्षा करना उसके लिए असहनीय होता जा रहा था।

‘फूलों का युद्ध’ चन्द्रमा के पखवाड़े के प्रारम्भ में शुरू हुआ था और अब उसे जारी रहते तीन दिन और तीन रातें हो चुकी थीं। यदि वह पगडंडी से दूर जा कर भी दलदली इलाके से दूर रहने और जंगल की गहराई में छिपे रहने में सफल रहा तो संभवतः योद्धा उसके रास्ते पर नहीं आएंगे। उसने उन अनेक लोगों के बारे में सोचा जिन्हें वे पहले ही बंदी बना चुके थे। किन्तु संख्या का कोई महत्व नहीं था बस पवित्र अवधि महत्वपूर्ण थी। आखेट तब तक जारी रहता जब तक पुजारी वापसी का संकेत न दे देते। हर चीज की गिनती थी और उसकी सीमा भी, और यह पवित्र अवधि के दौरान ही होनी थी, और वह आखेटकों के पक्ष के दूसरी ओर था।

उसने चीखें सुनी और चाकू हाथ में लिए हुए उछल पड़ा। मानो क्षितिज पर आकाश में आग लगी हो, उसने शाखाओं के मध्य मशालों को काफी नजदीक चलते हुए देखा। युद्ध की गंध असहनीय थी, और जब पहला शत्रु उस पर झपटा, उसकी गर्दन की ओर लपका, उसने अपने वक्ष में पत्थर के खंजर को मूठ तक उतरने का लगभग आनंद जैसा कुछ महसूस किया। रौशनी पहले से ही उसके चारों ओर थी, और प्रसन्नता की चीखें भी। वह एक या दो बार हवा खींचने में सफल रहा और फिर पीछे से उसके गले में रस्सी का एक फंदा पड़ गया। “यह बुखार है,” बगल के बिस्तर पर वाले व्यक्ति ने कहा। “मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था जब उन्होंने मेरे ड्यूडोनम का ऑपरेशन किया था। थोड़ा पानी पियो, तुम देखना, तुम बिलकुल ठीक से सो सकोगे।”

उस रात्रि के पहलू में पड़े हुए, जहाँ से वह वापस आया था, वार्ड की अपेक्षाकृत गर्म छाया उसे सुखकर लग रही थी। दूर की दीवार पर जलाता हुआ बैंगनी लैम्प किसी सुरक्षा आँख की भांति लग रहा था। आप लोगों का खाँसना और गहरी सांसें लेना और कभी-कभार फुसफुसाहट भरा वार्तालाप भी सुन सकते थे। सब कुछ प्यारा और सुरक्षित था, बिना पीछा किए जाने के, नहीं, किन्तु वह दुःस्वप्न के सम्बन्ध में सोचते रहना नहीं चाहता था। स्वयं को प्रसन्न रखने को ढेरों सामग्री थी। वह अपनी बांह पर लगे प्लास्टर को देखने लगा, और उन पुलियों के सम्बन्ध में सोचने लगा जो इसे इतने आराम से संभाले हुए थी। वे उसकी बगल वाली मेज पर एक मिनरल वॉटर की बोतल छोड़ गए थे। उसने बोतल की गर्दन अपने मुंह से लगायी और उसे किसी बहुमूल्य तरल की भांति पीने लगा।

अब वह इस वार्ड की तरह-तरह की आकृतियों को स्पष्टतः देख सकता था, तीस बेड, अलमारियां जिनमें शीशे के दरवाजे लगे हुए थे। उसने अनुमान लगाया कि उसका बुखार अब उतर गया था, और उसका चेहरा ठंडा प्रतीत हो रहा था। भौंह के ऊपर की चोट मुश्किल ही तकलीफ दे रही थी, किसी पुरानी स्मृति की भांति। उसने स्वयं को होटल छोड़ते देखा, मोटर साइकिल चलाते, किसने सोच होगा कि इसका इस तरह का अंत होगा?

उसने दुर्घटना के क्षण पर एकदम ठीक-ठीक स्थिर होने का प्रयत्न किया और इस बात को देख कर वह बहुत क्रोधित हुआ कि वहां एक रिक्ति थी, एक खालीपन, जिसे भर पाने में वह सफल नहीं हो सका। टक्कर के क्षण और उस समय, जब उन्होंने उसे फुटपाथ से उठाया, के मध्य बेहोशी अथवा जो कुछ भी हुआ, ऐसा कुछ नहीं था जिसे वह देख सकता। और उसी समय उसे यह भी महसूस हो रहा था कि यह रिक्ति, यह कुछ न होने की अनुभूति, अनंत तक चलती रही थी। नहीं, मात्र समय भी नहीं, कुछ और भी मानो इस रिक्ति में, उसने किसी चीज के पार चला गया था, अथवा कोई अमित दूरी वापस भागते हुए तय की थी। सदमा, फुटपाथ के साथ निर्दय टक्कर।

जो भी हो, उस काले गर्त से बाहर निकलने में, जब लोग उसे जमीन पर से उठा रहे थे, उसने अत्यधिक राहत का अनुभव किया। टूटी हुई बाँह में दर्द, चोटिल भौंह से बहता रक्त, घुटने में लगी गुप्त चोट, इन सब के साथ, दिन के प्रकाश में, दिन में वापस लौटने की राहत और सुरक्षित होने और ध्यान रखे जाने की अनुभूति। यह सब अजीब था। किसी दिन वह डाक्टर से उसके कार्यालय में पूछेगा। अब नींद ने पुनः उसे नीचे खींचते हुए उस पर कब्ज़ा जमाना शुरू कर दिया था। तकिया कितना कोमल था और उसके बुखार से तप्त गले में मिनरल वाटर की शीतलता भी। वहां रखे लैम्प का बैंगनी प्रकाश निरंतर मंद और मंद होना शुरू हो गया था।

चूंकि वह पीठ के बल सो रहा था, जिस अवस्था में वह पहुँच गया उससे उसे कोई आश्चर्य नहीं हुआ लेकिन दूसरी ओर वह नम गंध, रिसती हुई चट्टान की गंध ने उसके गले को जकड़ लिया और उसे समझने हेतु मजबूर कर दिया आंखें खोल कर चारों दिशाओं में देखने को, एकदम निराश। वह सघन अंधकार से घिरा हुआ था। उसने उठने का प्रयत्न किया किन्तु उसे अपनी कलाइयों और टखनों के बंधे होने की अनुभूति हुई। वह एक सीलन भरे ठंडे पत्थर के फर्श पर रखा हुआ था। ठंड उसकी नग्न पीठ और उसके पांवों को काट सी रही थी। उसने अपनी ठुड्ढी से अपने ताबीज़ का स्पर्श करना चाहा किन्तु वह पहले ही उतार लिया था। अब वह खो चुका था और कोई प्रार्थना उसे उसके अंत से नहीं बचा सकती थी, सुदूर कहीं, जैसे कालकोठरी की चट्टानों से छन कर आ रही हो, महाभोज के विशाल नगाड़ों की ध्वनि उसने सुनी। वे उसे मंदिर तक ले आये थे, वह टीओकली मंदिर के भूगर्भ में स्थित कोठरी में अपनी बारी की प्रतीक्षा करता हुआ पड़ा था।

उसने एक चीख सुनी, एक कर्कश चीख जिसने दीवारों को हिला कर रख दिया। एक और चीख, जो तीव्र कराह में ख़त्म हुई। यह वह स्वयं था जो अँधेरे में चीख रहा था, वह चीख रहा था क्योंकि वह जीवित था, उस चीख के साथ उसका सम्पूर्ण शरीर उसकी ओर आती हुई हर चीज को, सुनिश्चित अंत को दूर हटा रहा था। उसने अन्य कारागारों में ठुसे हुए अपने मित्रों के सम्बन्ध में सोचा और उनके बारे में भी जो इस समय बलि वेदी की सीढ़ियाँ चढ़ रहे होंगे। उसकी एक और घुटी हुई चीख निकल गयी, वह मुश्किल से अपना मुंह खोल सका, उसके जबड़े ऐंठे हुए थे मानो लकड़ी और रस्सी की सहायता से जकड़ दिए गए हों, और वे लोग उन्हें कभी-कभार अनंत श्रम के साथ धीरे-धीरे खोलने वाले हों, मानो वे लोग रबर के बने हुए हों।

लकड़ी की सिटकानियों की खड़खड़ाहट ने उसे कोड़े की चोट की भांति उछाल दिया। घिघियाते, पीड़ा से ऐंठते हुए वह अपनी त्वचा में धंस रही रस्सियों से मुक्ति के लिए संघर्ष करने लगा। उसकी दायीं बाँह, सबसे मजबूत, तब तक खींचती रही जब तक पीड़ा असहनीय न हो गयी और उसने प्रयत्न करना छोड़ न दिया। उसने दोहरे दरवाजे को खुलते हुए देखा और मशालों की गंध उस तक रोशनी के पहुँचने के पूर्व ही पहुँच गयी।

बमुश्किल पूजा के लंगोट कमर में पहने पुजारी के अनुचर उसकी दिशा में उसे घृणा से देखते हुए बढ़े। प्रकाश भीगे कबंधों और पंखों से सजे काले बालों से परावर्तित हो रहा था। रस्सियां ढीली हो गयीं थी, और उनकी जगह कांसे की भांति कठोर और मजबूत हाथों की गर्म पकड़ ने ले ली। उसने स्वयं को उठाये जाते, अभी भी उसका मुंह ऊपर की ओर था, और चार अनुचरों के साथ झटके लेता हुआ महसूस किया जो उसे गलियारे में ले जा रहे थे। मशाल लिए हुए लोग आगे चल रहे थे, अस्पष्टता से उस गलियारे को प्रकाशित करते हुए जिसकी दीवारों से पानी टपक रहा था और जिसकी छत इतनी नीची थी कि अनुचरों को अपने सिर टकराने से बचाने पड़ रहे थे।

अब वे उसे बाहर की ओर ले जा रहे थे, बाहर की ओर, यह उसका अंत था। वह एक विशाल जीवित चट्टान, जो कुछ क्षणों तक मशालों की रोशनी में जगमगा उठी थी, के नीचे मुंह ऊपर की ओर किये पड़ा था। जब ऊपर छत की बजाय तारे दिखने लगे और उसके समक्ष टैरेस की सीढ़ियों की चढ़ाई शुरू हो गयी, आग के समक्ष चीखों और नृत्य के मध्य, यही अंत होगा। रास्ता कभी ख़त्म होने वाला नहीं था किन्तु अब वह ख़त्म होना शुरू हो रहा था, वह अकस्मात् तारों से भरा खुला आसमान देखेगा, लेकिन अभी नहीं, वे उसे लालिमायुक्त छाया में अंतहीन तरीके से घुमाते रहे, उसे बुरी तरह से ढोते हुए जैसा वह नहीं चाहता था, लेकिन उन्हें कैसे रोकता जबकि उन्होंने उसका तावीज भी छीन लिया था, उसका वास्तविक हृदय, उसके जीवन का केंद्र।

(तीन)

बस एक छलांग में वह अस्पताल की रात्रि में वापस लौट आया, ऊँची, विनम्र और खाली छत के नीचे, अपने चारों ओर लिपटी कोमल परछाइयों के पास। उसने सोचा वह अवश्य चिल्लाया होगा किन्तु उसके पड़ोसी शांति से खर्राटे ले रहे थे। साइड टेबुल पर बोतल में पानी बुलबुलों से भरा था, खिड़की की गहरी नीली छाया में एक चमकीली आकृति। उसने अपने फेफड़ों के लिए राहत तलाशते हुए तेज-तेज सांसें ली, उन छवियों को विस्मृत करते हुए जो अभी भी उसकी पलकों से चिपकी हुईं थी। हर बार जब उसने अपनी आँखें बंद की उसने उन्हें तत्काल आकार ग्रहण करते हुए पाया, और वह उठ बैठा, पूरी तरह चकराया हुआ किन्तु साथ ही इस निश्चितता का आनंद लेता कि अब वह जागा हुआ था, कि यदि वह फोन करेगा तो रात्रिकालीन नर्स जवाब देगी, कि शीघ्र ही सुबह हो जाएगी, और अच्छी, गहरी नींद भी जो वह इन घंटों में लिया करता था, कोई छवि नहीं, कुछ भी नहीं, आँखें खुली रखना कठिन लग रहा था, नींद का झोंका उससे अधिक शक्तिशाली था।

उसने अपनी ठीक बाँह को पानी की बोतल की ओर फैलाते हुए एक अंतिम प्रयत्न किया, पर वह उस तक पहुँच पाने में असफल रहा, उसकी उंगलियां पुनः एक काले खालीपन पर कस गयीं और रास्ता अंतहीन रूप से चलता रहा, चट्टानों के बाद दूसरी चट्टानों तक, रोशनी की क्षणिक लाल चमक के साथ, और मुंह ऊपर किये उसने एक मद्धिम सी कराह ली क्योंकि छत समाप्त होने वाली थी, वह उठने लगी, किसी परछाईं के मुख की भांति, और अनुचर सीधे हो गए, और मद्धिम होते चन्द्रमा का प्रकाश उसके चेहरे पर आ पड़ा उसकी आंखें, उस पार जाने का प्रयत्न करती, वार्ड की सुरक्षात्मक छत को ढूँढने का प्रयत्न करती, अधीरता से खुल और बंद हो रहीं थी, उसे नहीं देखना चाहती थी। हर बार जब वे खुलीं वहां रात्रि और चन्द्रमा ही थे, जब वे विशाल टैरेस की सीढ़ियाँ चढ़े, उसका सिर अब नीचे की ओर लटका हुआ था और ऊपर सबसे ऊपर अग्निवेदी की अग्नि जल रही थी, सुगन्धित धुआँ उठ रहा था, और अकस्मात् ही उसने लाल पत्थर को देखा, टपकते हुए रक्त से चमकता हुआ, और शिकार लोगों के पैरों से बने घूमते हुए अर्द्धवृत्त जिन लोगों को वे उत्तर की सीढ़ियों के नीचे लुढ़काने के लिए फेंकने हेतु खींच रहे थे।

एक अंतिम आशा के साथ, जागने हेतु कराहते हुए उसने अपनी पलकें कस कर बंद की। एक क्षण को उसने सोचा वह वहां पहुँच गया था, क्योंकि एक बार फिर वह अपने बिस्तर पर जड़ हो गया था, सिवाय इस बात के कि उसका सिर हिलता हुआ इससे नीचे लटका हुआ था। किन्तु उसने मृत्यु की गंध महसूस की, और जब उसने अपनी आँखें खोली उसने बधिक पुजारी की रक्त में डूबी हुई काया को अपनी ओर बढ़ते हुए देखा जिसके हाथ में पत्थर का चाकू था। वह पुनः अपनी पलकें बंद करने में सफल रहा यद्यपि वह जानता था कि अब इस बार वह जागने वाला नहीं था, कि वह जग रहा था, कि वह शानदार स्वप्न कुछ दूसरा ही था, उन अन्य स्वप्नों जैसा अबूझ जिनमें वह अचंभित कर देने वाले शहर की विचित्र गलियों से गुजरता रहा था, उन हरी और लाल प्रकाश वाला जो बिना आग अथवा घुएं के जलती थीं, अथवा उस विशाल कीड़े वाला जो उसकी टांगों के मध्य गड़गड़ाता था। स्वप्न के अनंत झूठ के मध्य, उन्होंने उसे जमीन से उठा भी लिया था, कोई चाकू के साथ उसके पास भी आया था, उसके पास जो मुंह ऊपर किये पड़ा था, सीढ़ियों पर जल रहे अलावों के मध्य आँखें बंद किये पड़ा सामना करता हुआ।

(‘फूलों का युद्ध’ guerra florida एज़्टेक सभ्यता के लोगों का एक धार्मिक कर्मकांड था जिसमें नरबलि दी जाती थी।)

(अंग्रेजी से अनुवाद - श्रीविलास सिंह)
ई-मेल : sbsinghirs@gmail.com

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