रात का अंध जमाई : कर्नाटक की लोक-कथा

Raat Ka Andh Jamai : Lok-Katha (Karnataka)

एक बुढ़िया थी। उसका एक ही (अकेला) बेटा था। रात के वक्त वह अंधा हो जाता था, यानी दिखाई नहीं देता था। बुढ़िया ने किसी तरह गोलमाल करके एक रिश्ता ढूँढ़ा और उसकी शादी रचाई। लड़की सुंदर थी। उसके मायकेवाले भी अच्छे लोग थे, मगर बुढ़िया इतनी चतुर थी कि बहू या उसके परिवारवालों के आगे उसने यह रहस्य बनाकर रखा कि लड़का रात के समय अंधा हो जाता है, यानी उसको दिखाई नहीं देता, मगर सोचिए, यह सच कब तक छिपाकर रखा जा सकता था!

शादी के बाद पहला त्योहार दीवाली आई। परंपरा के अुनसार लड़की के घर से न्योता आया। अब बुढ़िया को चिंता हुई। जाना तो था ही। उसने बेटे को सावधान करते हुए कहा, “तुम बहुत सावधान रहना, रात को तुम्हें कुछ भी दिखाई नहीं देता और यह बात बहू के घरवाले नहीं जानते। तुम ऐसा करना कि रात को बाहर नहीं निकलना। कहीं इधर-उधर नहीं घूमना। दिन रहते यात्रा करना। दूसरा यह कि वहाँ एक ही दिन रहकर लौट आना।”

अपनी माँ के कहे अनुसार वह दिन रहते ससुराल पहुँचने के लिए बहुत तेजी से चल पड़ा, मगर कितनी भी कोशिश करने पर भी अँधेरा होने से पहले वह वहाँ पर पहुँच नहीं सका। उसकी नजर धुँधली हो गई। माँ की चेतावनी याद कर वह एक जगह बैठ गया। उसके साथ किस्मत का खेला था। वह अनजाने में अपनी ससुराल के सामने के कूड़े के ढेर पर बैठ गया। वह वहाँ बैठा और उसकी सासू माँ कूड़ा फेंकने वहाँ आई। अँधेरा था, इसलिए उसने दामाद को नहीं देखा। उसने कूड़ा उसके सिर पर फेंका। दामाद बेचैन होकर उठा तो सासू ने उसे पहचाना कि यह और कोई नहीं, अपना दामाद ही है।

जो होना था, वह हो चुका। अब उसे पछताना ही था। उसने बहुत मनसूबे बना रखे थे, दामाद पहली बार घर आ रहा है, तो उसकी बहुत अच्छी आवभगत करेगी, धूमधाम से त्योहार बनाएगी। रिश्तेदार और पड़ोसियों के आगे उसका सत्कार करेगी, मगर छिह! यह क्या हो गया? उसको रोना आ गया। शर्म के मारे वह तेजी से घर के अंदर भाग आई। सड़क पर उसका दस साल का बेटा भैंस को भगाता हुआ घर लौट रहा था। उसको देखते ही उसने कहा, “बेटा, तुम्हारे जीजा आए हैं, मगर पता नहीं क्यों, वे हमारे घर के कूड़ेवाले ढेर पर बैठ गए हैं। शायद पेशाब करने बैठे होंगे। मैं उन्हें वहाँ बैठे देख नहीं पाई, उनके ऊपर कूड़ा फेंक दिया। उन्हें मुझ पर गुस्सा आया होगा। तुम्हें वे बहुत चाहते हैं। तुम भी बहुत चाहते हो न? उन्हें घर के अंदर बुला लाओ।”

लड़का जीजाजी पुकारते हुए उसकी तरफ भागा। जमाई के पास जाकर कहा, “जीजाजी, आइए न, घर के अंदर, यहाँ पर क्यों बैठे हैं?” उसने उसका हाथ पकड़ा। रात का अंधा होने के बावजूद जमाई बहुत होशियार था। उसने जवाब दिया, “मैं यहाँ कूड़े पर इसलिए बैठा हूँ कि जानूँ तो कि इसमें से कितनी गाड़ी खाद निकलेगा।” फिर मानो प्रेम से, किशोर बालक के कंधे पर हाथ रखकर वह आगे बढ़ा। भैंस ने उसे घूरकर देखा। उसे धक्का मारने आई तो तेज आवाज सुनकर उसने थोड़ा सा पीछे हटकर पूछा, “यह क्या है?”

लड़के ने जवाब दिया, “यह हमारी भैंस है। मैं उसे चराने ले गया था।”

उसको तो अपना दोष छिपाना था। कहा, “ओफ! यह भैंस बहुत बड़ी है।” फिर वह भैंस की पूँछ पकड़कर आगे बढ़ा। इस तरह आगे बढ़ने पर वह धान के भंडार के पास आई। उन दिनों अनाज को जमीन में गड्ढा खोदकर खत्ती बनाकर उसमें जमा किया जाता था।

वह अंधा उस गड्ढे में गिर पड़ा।

लड़के ने घबराकर पूछा, “हाय, जीजाजी, क्या हो गया, क्या आपको ढंग से दिखाई नहीं देता?”

जवाब में दामाद ने कहा, “ऐसी कोई बात नहीं, मैं सिर्फ यह जानना चाहता था कि यह अनाज का भंडार कितना गहरा है? मैं भी इसी तरह का अनाज जमा करनेवाला एक भंडार खुदवाने वाला हूँ। कोई बात नहीं, तुम अब मुझे हाथ का सहारा दो, मैं ऊपर आता हूँ।” यह कहकर इस बार भी अपने प्राकृतिक दोष को उसने छिपा लिया।

दीवार का सहारा लेकर वह आगे बढ़ा। लड़के ने फिर पूछा, “जीजाजी, आप दीवार का सहारा लेकर आगे बढ़ रहे हैं, क्या आपकी नजर ठीक नहीं है?”

जवाब में उसने कहा, “छिह, तुम यह क्या कह रहे हो? मैं तो सिर्फ तुम्हारे घर की दीवार की लंबाई नाप रहा हूँ।”

घर के दरवाजे पर एक मेढ़ा खड़ा था। वह उससे टकराकर गिर पड़ा। तब मेढ़े ने अपने सींगों से उसे भोंका। लड़के ने मेढ़े को एक चाँटा दिया और जीजा को सहारा देकर उठाया, फिर पूछा, “जीजाजी, आपने मेढ़े को नहीं देखा, क्यों?”

“नहीं, नहीं, तुम समझो मेरी बात, उसका आकार देखकर मुझे उससे टकराने का मन हुआ, मगर देखो, मुझे तो उसने भोंक दिया।” जमाई ने कहा।

अँधेरा गहरा हुआ। रात हुई। सब लोग खाना खाने बैठ गए। सामने पटिए पर थाली रखी थी। त्योहार के अवसर का बढ़िया भोजन था तो सासूजी स्वयं परोसने आ गईं। विशिष्ट संदर्भों पर महिलाएँ खूब सजधजकर काम करती हैं। सासूजी नूपुर और चूड़ियाँ पहनकर परोस रही थीं। चूड़ियों की खनखनाहट से जमाई साहब ने समझा कि मेढ़ा दुबारा आया है। वह डर गया। घबराहट में आवाज सुनकर उस तरफ अपनी प्लेट उठाकर फेंकी। वह प्लेट सास के पाँवों पर लगी। वह घबराहट में रसोई की तरफ भागी। सासू को लगा कि जमाई गुस्से में उससे बदला ले रहा है। एक तो यह कि उसके सिर पर कूड़ा डाल दिया था और दूसरी वजह यह कि बेटी को परोसने भेजना था। फिर बेटी ने खुद उसे खाना परोसा।

रात को खाना खाने के बाद पति-पत्नी दोनों कमरे में लेटे। बाकी लोग नीचे बाहर के बरामदे में लेटे थे। ऐसा हुआ कि आधी रात को उसे पेशाब करने का मन हुआ। अँधेरे में लड़खड़ाते हुए दीवार का सहारा लेकर किसी तरह वह पिछवाड़े तक गया। काम पूरा होने पर उसे मकान का दरवाजा नहीं दिखा। भटककर वह उस जगह पहुँचा, जहाँ पर सासूजी सो रही थीं। यह सोचकर कि वह अपनी पत्नी है, उसने सासू के पाँव छू दिए। अँधेरे में सासूजी ने समझा कि कोई चोर है, उसने चिल्लाकर पूछा, “कौन हो?”

उसे अपनी गलती का अहसास हुआ।

“मैं हूँ मैं!” उसका जवाब था।

सासू माँ ने पूछा, “आप हैं? आधी रात में आप यहाँ पर क्यों आए हैं?”

उसने कहा, “मैंने खाने की थाली आपके ऊपर फेंक दी थी। मैं आपसे क्षमा माँगने आया हूँ। मुझसे गलती हो गई। मुझे माफ कर दीजिए।”

जमाई की बात सुनकर सासूजी बहुत बेचैन हो गई। कहने लगी, “कोई बात नहीं, आप अब अपने कमरे में जाकर सो जाइए।”

उधर आधी रात में इस शोर को सुनकर उसकी पत्नी की समझ में नहीं आया कि बाहर क्या हो रहा है? उसे सिर्फ यह पता था कि उसका पति पेशाब करने गया हुआ है। उसने सोचा, माफी तो सुबह भी माँगी जा सकती है। आधी रात में इन लोगों की आवाज सुनकर पड़ोसियों को कुछ गलतफहमी न हो जाए, यह उचित नहीं रहेगा। वह बाहर आकर मामले को सुबह निपटाने के लिए कहकर पति का हाथ थामकर अंदर ले आई।

रात बीती, सुबह हुई। जमाई उठकर अपने गाँव जाने की तैयारी में लग गया। कहने लगा, “मैं बहुत व्यस्त हूँ। बहुत काम है, मुझे जाने दो।” इस तरह अपनी बीवी को मनाकर सास-ससुर से कहकर अपने घर के लिए निकल पड़ा।

किसी को भी पता नहीं चल सका कि वह रात का अंधा है। अपने इस कुशल व्यवहार पर खुशी मनाते हुए वह भी अपने गाँव लौट आया।

(साभार : प्रो. बी.वै. ललितांबा)

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