रात और दिन : लोक-कथा (अंडमान निकोबार)
Raat Aur Din : Lok-Katha (Andaman & Nicobar)
सदियों पहले अंडमानी जनजाति के पुकिकवार समुदाय के पूर्वज वोटाएमी नामक जंगल में रहते थे। तब उन्हें रात की भयावहता का ज्ञान नहीं था। इसका कारण यह कि सृष्टि-निर्माण के शुरू के दिनों में रात होती ही नहीं थी। इसलिए उन्हें रात के विषय में कुछ भी मालूम नहीं था। हमेशा दिन ही रहना उनके लिए एक तरह से अच्छा भी था। इससे उन्हें शिकार करने में सुविधा रहती थी। दिन में कंद-मूल-फल भी आसानी से खोजे और इकट्ठे किए जा सकते थे। कीड़े-मकोड़ों और जानवरों से रक्षा करने के लिए भी दिन ही उपयुक्त था। उसी समय के पूर्वजों में से एक था—ता पेती। वह काफी हृष्ट-पुष्ट और ताकतवर था। उसे जिमीकंद (रतालू) खाना बहुत पसंद था। जिमीकंद का नाम आते ही उसकी जीभ पर पानी आने लगता था।
एक समय की बात है, ता पेती को तेज भूख लगी हुई थी। वह कुछ भी खाकर अपना पेट भर सकता था, लेकिन उस समय उसे जिमीकंद खाने की इच्छा हुई। इसके लिए तो जंगल जाना जरूरी था। वहाँ जाए बगैर जिमीकंद मिलना संभव नहीं था। एक अच्छी बात यह थी कि ता पेती अपनी इच्छा पूरी करने में किसी तरह की शिथिलता और आलस्य का अनुभव नहीं करता था। इसलिए जिमीकंद की चाहत होते ही वह बिनाहयिर को साथ लिये जंगल की ओर चल दिया।
ता पेती जिस समय जंगल के लिए निकला, उस समय मौसम बहुत खुशगवार था। मंद-मंद हवा चल रही थी। धूप भी तेज नहीं थी। उसे हर बात अपने अनुकूल लग रही थी। जंगल में पहुँचकर उसने जिमीकंद खोजना शुरू कर दिया। काफी देर तक वह इधर-उधर खोजता रहा, लेकिन सफलता नहीं मिली। जब वह उदास और दुःखी होकर वापस डेरे की ओर लौटने की सोच रहा था, उसी समय उसे पर्याप्त मात्रा में जिमीकंद दिखे। उसने सारे जिमीकंद खोद लिये। मनपसंद वस्तु पाकर हर किसी को प्रसन्नता तो होती ही है, वह भी काफी प्रसन्न हुआ। जिमीकंद लेकर वह घर की ओर लौट रहा था कि रास्ते में उसे एक पदार्थ मिला। वह कुछ और नहीं, पेड़ से निकलनेवाला राल था। उसने उसे भी ले लिया और घर की ओर चल दिया। अभी वह थोड़ी ही दूर चला होगा कि उसे एक रोटो (एक प्रकार का कृमि) भी मिला। अब उसके पास ये तीन वस्तुएँ हो गईं। इन्हें पाकर वह बहुत खुश था। उन चीजों को लेकर वह वोटाएमी पहुँचा। उसके परिजनों तथा साथियों को जब यह बात मालूम हुई, तब वे भी उत्सुकतावश उसके पास आ गए। वे यह देखना चाहते थे कि ता पेती जंगल से कौन-कौन सी चीजें लाया है।
ता पेती प्रसन्न मुद्रा में बैठा था। परिजन और साथी उसे चारों ओर से घेरकर बैठे थे। उसने अपनी लाई हुई चीजें सभी को दिखाईं। इसी क्रम में उसने रोटो को अपनी हथेलियों में उठा लिया। फिर धीरे-धीरे दबाना शुरू किया। अंत में उसे खूब जोर से दबाकर कुचल दिया। रोटो के करुण-क्रंदन और विलाप से सारा वातावरण अवसादमय हो गया। उसकी चीख इतनी भयावह और वेदना भरी थी कि दिन गायब हो गया और उसके स्थान पर चारों ओर अँधेरा छा गया। सभी लोग हैरान और परेशान कि यह क्या हुआ? उनकी समस्याएँ बढ़ने लगीं। सबसे बड़ी कठिनाई शिकार पकड़ने तथा कंद-मूल-फल इकट्ठा करने की थी। इधर अँधेरा सघन होता चला गया, वह समाप्त होने का नाम ही नहीं लेता था। इससे उन लोगों का चिंतित होना और उसे दूर करने के उपायों पर विचार करना लाजिमी था।
वे सभी इसी चिंता में थे कि अँधेरा कैसे दूर होगा। तभी उन्हें याद आया कि ता पेती जंगल से लौटते समय पेड़ का राल लाया है। अगर उसकी मशाल बनाकर नाचना-गाना हो तो शायद अँधेरा दूर हो जाए। उन्होंने उसकी मशाल बनाई तथा नाचना और गाना शुरू किया। उन्हें यह विश्वास था कि नाचने-गाने से दिन की वापसी हो सकती है। सबसे पहले कोतारे ने एक गाना गाया, किंतु अँधेरा नहीं मिटा। उसका प्रयत्न बेकार गया। उसके बाद बुमु ने इस आशा से गाना शुरू किया कि दिन वापस लौट आएगा, किंतु वह नहीं लौटा। एक-के-बाद एक गाने का सिलसिला चलता रहा, लेकिन दिन की रोशनी नहीं लौटी। सबसे बाद में कोनोरो ने एक गाना गाया। उसके गाते ही प्रभात हो गया। इससे सभी में खुशी की लहर दौड़ गई। उन्हें लगा, जैसे एक नया जीवन मिल गया हो। उसके बाद रात और दिन एक-दूसरे के पीछे बारी-बारी से आने लगे। तभी से रात और दिन का क्रमशः आना लगा हुआ है।
(प्रस्तुति: व्यास मणि त्रिपाठी)