रास्ता इधर मुड़ता है (कहानी) : विभा देवसरे
Raasta Idhar Mudta Hai (Hindi Story) : Vibha Devsare
दरोगा ने अपना डंडा मेज पर पटकते हुए खुरंट आवाज में पूछा, "क्या नाम है तुम्हारा?"
महिला पुलिस ने तत्परता दिखाई और बोली, "सर, निशा नाम बता रही थी।"
दरोगा जोर से गरजा, “मैंने तुमसे नहीं पूछा। उतना ही बोलो जितनी जरूरत हो।"
सिर नीचा किए दोनों महिला पुलिस बोलीं, “जी सर !”
अब तक दरोगा अपनी कुरसी छोड़कर कैदी लड़की के पास आ चुका था। जिस तरह वह कैदी लड़की को घूर रहा था, उसकी नीयत से यह साफ पता चल रहा था कि उसका बस चले तो वह इसी वक्त उस कैदी लड़की को चबा जाएगा। हसरत भरी निगाह फेंकते हुए वह बोला, "माल अच्छा है।"
दोनों महिला पुलिस अजीब सी स्थिति में थीं। अगर वे ड्यूटी पर न होतीं तो दरोगा की इस हरकत का जवाब जरूर देतीं। मन-ही-मन वे दरोगा को गरियाते हुए खून का घूँट गले में उतार रही थीं। और दरोगा के भय से अनुशासन का नकाब ओढ़े चेहरे और अपनी हरकतों से चमची बने रहने के अंदाज में बोलीं, “जी सर, हर ओर से ठीक है।" और एक-दूसरे को देखकर मुसकराईं।
दरोगा पान चबाता हुआ डंडे को हाथ में लेकर ऐसे घुमा रहा था जैसे किसी सर्कस के शो का रिहर्सल कर रहा हो। दूसरी ओर वह अपराधिन बिलकुल निर्विकार, एकटक दीवार को देख रही थी। सबसे विचित्र स्थिति में वे दोनों महिला पुलिस थीं, जो दरोगा की हर बेतुकी हरकत को सिर माथे लिये हुए थीं। चाहकर भी वे दरोगा का तिरस्कार नहीं कर पा रही थीं।
दरोगा ने डंडे को उछालते हुए पूछा, "कब आई है यह यहाँ ?"
"सर, दो दिन हुए।" पहली महिला पुलिस बोली ।
"सर, कोई इसे लेकर नहीं आया, अपने आप आई है।" दूसरी महिला पुलिस ने कहना शुरू किया, "सर, इसने अपना जुर्म कबूल किया है।"
पहली महिला पुलिस ने फुरती दिखाते हुए बात को आगे बढ़ाया, “सर, इसने एक सोते हुए आदमी का गला दबाकर उसे मार डाला है। "
दरोगा ने लगभग चीखते हुए कहा, "बकवास बंद करो! मैं तुमसे इसकी केस हिस्ट्री नहीं पूछ रहा हूँ। लड़की दो दिन से लॉकअप में है और तुम लोग आज इसे मेरे सामने लेकर आई हो।"
“सर, आप मंत्रीजीवाले केस की तहकीकात में बहुत बिजी थे ।" पहली महिला पुलिस ने स्थिति को सँभालने की कोशिश में कहा।
दरोगा फिर गुर्राया, "बकवास बंद करो! आइंदा से थाने में आए किसी भी केस को बताने में इतनी देर की तो तुम सबको देख लूँगा।"
"जी सर ।" डरी हुई सहमी आवाज में दोनों महिला पुलिस ने सिर झुकाकर कहा।
दरोगा ने डंडा घुमाते हुए अपराधिन महिला के चारों ओर चक्कर लगाया और कड़कती आवाज में उससे पूछा, "ऐ लड़की, तूने किसको मार डाला ? सच- सच बता, क्या तूने ही हत्या की है या झूठ बोल रही है ?"
लड़की बड़ी निडर होकर बोली, "हाँ, मैंने अपना जुर्म कबूल कर लिया है। और मैं झूठ क्यों बोलूँगी ?"
"कौन लगता था वह तुम्हारा ?" दरोगा फिर गरजा ।
"दुश्मन था वह मेरा ।" बड़ी सधी हुई आवाज में लड़की ने उत्तर दिया।
"दुश्मन का कुछ तो नाम होगा ?" दरोगा ने सहलाने के अंदाज में पूछा।
"मैं अपने बयान में सबकुछ लिखवा चुकी हूँ, मुझे कुरेदने की कोशिश म करो। "
“ऐ लड़की, तू पुलिस थाने में दरोगा के सामने खड़ी है, समझी। बहुत अकड़ने की कोशिश मत कर। यहीं इसी वक्त तेरा क्रिया-कर्म हो जाएगा।" दरोगा इतनी जोर से दहाड़ा कि क्षण भर को तो वह अपराधिन भी भयभीत नजर आई और दोनों महिला पुलिस तो सैल्यूट के अंदाज में खड़ी काँप उठीं।
दरोगा फिर चीखा, "कौन लगता था वह तुम्हारा ?"
"मेरा मामा था।" लड़की ने कहा ।
"यानी तुम्हारी माँ का भाई ?"
"हाँ, ऐसा ही कुछ होगा। माँ के भाई को ही मामा कहते होंगे !" दरोगा ने कड़कते हुए कहा, "मुझे सिखाने की कोशिश मत करो। तुम्हारी माँ का सगा भाई था, तुमने क्यों उसे मार डाला ?"
“मेरी मरजी।” लड़की अभी भी बहुत निडर होकर जवाब दे रही थी।
"वाह लड़की, वाह! तुम कहीं की लाट गवर्नर हो कि हर काम अपनी मरजी से करोगी !” दरोगा ने हँसते हुए अपनी बात की प्रतिक्रिया जानने के लिए खड़ी दोनों महिला पुलिस की ओर देखा ।
दोनों ने खीस निपोर दी।
"तुम्हें मालूम है, हत्या के जुर्म में तुम्हें क्या सजा मिलेगी ?" दरोगा बोला।
"हाँ, जानती हूँ। मुझे मौत की सजा मिलेगी; लेकिन जो भी जुर्म मैंने किया है, आज नहीं तो कल मैं जरूर करती।" लड़की ने संयत होते हुए कहा।
"ऐसी क्या खराबी थी उसमें ?" व्यंग्य से दरोगा ने पूछा ।
"यह मैं अदालत में बताऊँगी।"
"स्साली, बहुत ऊँची चीज है।" डंडा पटकते हुए दरोगा चीख उठा।
दोनों महिला पुलिस में से एक ने लड़की की पीठ पर धौल जमाते हुए कहा, " होश में आ लड़की, तू किसके सामने अकड़ रही है, तुझे कुछ होश है। यहीं लॉकअप में ही तेरा भुरता बन जाएगा, फाँसी के तख्ते पर तो जब चढ़ेगी तब चढ़ेगी।"
दरोगा फिर चीखा, " ले जाओ इसे लॉकअप में बंद कर दो और इसका खाना-पानी सब बंद कर दो। अंतड़ियाँ भूख से जब तिलमिलाएँगी तो दिमाग की सारी गरमी निकल जाएगी। अगर गरमी ठंडी न हो तो मेरे पास ले आना, माल अच्छा है। "
और दरोगा ने जिस भद्दी निगाह से लड़की को देखा, वह तिलमिला उठी। उसकी आँखों में खून उतर आया था। अगर कैदी न होती तो दरोगा पर आक्रमण करने से चूकती नहीं। अपनी ओर अपराधिनी को घूरता देखकर क्षण भर को दरोगा भी सकपका गया। एक महिला पुलिस धकियाती हुई उसे लॉकअप की ओर ले गई। दूसरी दरोगा के संग उसके पीछे चल पड़ी। लॉकअप में लड़की को धकेलती हुई वह महिला पुलिस लॉकअप का ताला लगाकर अपनी थकान उतारने के लिए स्टूल पर बैठकर बड़बड़ाने लगी, "रात-दिन स्साले मार-धाड़ के केस ही आते हैं। जमाना भी क्या तेजी से बदल रहा है! मरदों की तरह औरतें भी जाहिल हुई जा रही हैं। गला दबोचने में देर नहीं लगाती हैं। "
टेढ़ी गरदन करके उस महिला पुलिस ने लड़की को देखा । वह चुपचाप घुटने में सिर टिकाए बैठी कुछ सोच रही थी। महिला पुलिस अपनी आवाज में नरमी लाते हुए बोली, “इतनी छोटी उमर में तुमने इतना बड़ा जुर्म क्यों किया ? क्या वह तेरे संग ..."
अपराधिन ने घूरते हुए महिला पुलिस को देखा। कुछ कहने को हुई, फिर चुप हो गई।
महिला पुलिस ने सरलता दिखाते हुए कहा, "बता-बता, कुछ कह देने से मन हलका हो जाता है। हम औरतों की यही तो बुराई है कि हम सीने में जाने कितना दर्द लिये पत्थर बनी रहती हैं। ऐसा पत्थर, जिसे हटाने की कभी कोई कोशिश ही नहीं करता है। तू बता कुछ कह लेगी तो मन हलका हो जाएगा।"
अपराधी लड़की के घाव पर जैसे किसी ने मरहम लगा दिया हो। जब उसने महिला पुलिस की बात सुनी तो उसकी अंगार जैसी आँखें पनीली हो उठीं। इस तरह तो कभी उसकी माँ ने भी उसका दुःख जानने की कोशिश नहीं की। लड़की अचानक ही फूट-फूटकर रोने लगी।
महिला पुलिस पहले तो हतप्रभ रह गई कि इस हत्यारिन के दिल में इतना दुःख ! फिर उसने पूरी सहानुभूति उड़ेलते हुए कहा, "अरे, इस तरह रो क्यों रही है ? पहले यह बता, तेरा नाम क्या है ?"
"निशा।" आँसू पोंछते हुए हत्यारिन ने कहा।
" मेरी ननद का नाम भी निशा है। अच्छा, यह बताओ कि इतना बड़ा जुर्म तुमसे किस मजबूरी में हुआ ?"
"वह राक्षस था। कहने को भले मेरा मामा था। जब मैं सिर्फ ग्यारह साल की थी, तभी से वह मेरे शरीर में कुछ टटोलता था। धीरे-धीरे उसे कुछ मिलने लगा, उसे मजा आने लगा। 'बेटी-बेटी' कहकर वह मुझे चिपकाता। मुझसे जबरदस्ती करता। मेरे लाख चीखने-चिल्लाने पर भी वह समय का फायदा उठाता और अपनी हवस पूरी करता। मुझे फुसलाता और इस बात की पूरी हिदायत देता कि अगर मैं कुछ कहूँगी तो वह मुझे मार डालेगा। मेरे घर में भी किसी को जिंदा नहीं छोड़ेगा। अकसर वह मेरे लिए लिपस्टिक, पाउडर, शैंपू, अच्छे कीमती कपड़े लाकर देता। कभी-कभी हलके गहने भी लाता । अम्मा के लिए भी साड़ी लाकर देता । अम्मा निहाल हो जाती और मेरे बाप को नीचा दिखाने के लिए अपने भाई की बहुत बड़ाई करतीं।
"मैंने कई बार अम्मा को बताना चाहा, पर अम्मा मेरी बात सुनने को तैयार ही नहीं थी। जब कि वह बहुत अच्छी तरह जानती थी कि मैं उसके भाई से कितनी नफरत करती हूँ; लेकिन अम्मा पर तो अपने लाडले भाई का ऐसा नशा सवार था कि वह किसी की कुछ सुनती ही नहीं थी। उसके आते ही अम्मा मेरा पुराण लेकर बैठ जाती कि मैं कितनी मक्कार, जिद्दी और ढीठ हुई जा रही हूँ । और वह अकसर अम्मा को सलाह देता कि वह उसे अपने घर ले जाएगा। उसकी पढ़ी-लिखी पत्नी उसे सारे तौर-तरीके सिखा - समझा देगी। अम्मा भाई की बात को मानने की पूरी कोशिश कर मेरे बाप से झगड़ती भी; लेकिन मेरा बाप किसी भी तरह इस बात पर राजी नहीं होता।"
जूते की आवाज से थोड़ी देर को महिला पुलिस चौकन्नी होते हुए एकदम खड़ी हो गई। अँधेरा हो रहा था। दरोगा राउंड पर निकला था। दरोगा ने लॉकअप में बंद लड़की को देखा और महिला पुलिस से बोला, “ताला खोलो।”
अंदर जाकर दरोगा देर तक उस लड़की को देखता रहा । वह भी निडर होकर आग्नेय नेत्रों से दरोगा का तिरस्कार करती रही। दरोगा गुस्से से तिलमिला गया और लगभग चीखता हुआ बोला, "इसे खाना-पानी कुछ भी देने की जरूरत नहीं है। स्साली, जाने अपने आपको क्या समझ रही है !" दरोगा लॉकअप से बाहर आ गया था।
महिला पुलिस ताला लगाती हुई बोली, "सर, बहुत खूँखार हो गई है। हिंसा अभी भी इसके दिमाग से उतरी नहीं है।"
"ठीक है, ठीक है। देख लूँगा इसे भी। इसकी वकालत करने की कोई जरूरत नहीं है।" अकड़ता हुआ दरोगा आगे बढ़ गया।
महिला पुलिस दरोगा को दबी जबान में गरियाते हुए बोली, “स्साले, मर्द की जात एक ही होती है।" और लॉकअप के बाहर पड़े स्टूल पर इतमीनान से बैठ अपनी जेब से गुटका निकाल मुँह में दबाते हुए बोली, “हाँ, तो तू बता, आगे क्या हुआ ?"
"होता क्या, अब तो वह हरामी अकसर आता । अम्मा उसके आगे अपनी गरीबी का रोना रोती। वह सहानुभूति के चार बोल बोल उसे नोट की गड्डी थमाता। अम्मा बाजार करने निकल जाती। मेरा स्कूल जाना रोक दिया जाता और वह राक्षस अपनी मौज में अपनी हवस पूरी करता मुझे अकसर लगता, इस साजिश में अम्मा भी शामिल है। मैंने सोचा कि मैं अपने बाप को सबकुछ बता दूँगी। पर दिन भर का थका-माँदा मेरा बाप देर रात शराब के नशे में लौटता। कभी दो रोटी खाता, कभी नशे में धुत सो जाता। सवेरे नहा-धोकर भगवान् के आगे हाथ जोड़ता, सामने रखे रूखे-सूखे खाने की थाली और अम्मा की जली-कटी सुन परिवार की परवरिश के लिए निकल पड़ता।
"मैं दिन-पर-दिन जबर हो रही थी। अंदर का घाव और तकलीफदेह घाव का रिसना एक पल को भी नहीं रुकता। कोई ऐसा कंधा और कोई ऐसी गोद नहीं थी, जहाँ सिर टिकाकर मैं जी भरकर रो पाती और अपना दर्द कह पाती। अजीब सा सन्नाटा मन के अंदर उतरता जा रहा था। घने बियाबान जंगल में मैं अकेले भटक रही थी। नफरत का लावा हर समय फट पड़ने को तैयार रहता। अचानक ही मेरी तबीयत काफी खराब रहने लगी। किसी काम में मन नहीं लगता। मैं उस राक्षस से इतनी भयभीत हो गई कि उसे देखते ही ऐसा लगता कि किसी तरह जमीन फट जाए और मैं उसमें समा जाऊँ। एक दिन अम्मा ने उससे कहा भी कि निशा को जाने क्या होता जा रहा है, रात में नींद में चीखकर उठ बैठती है। इसका खाना-पीना भी एकदम कम हो गया है। कब से स्कूल भी नहीं गई है।
"अम्मा की बात को उछलकर उस राक्षस ने पकड़ा, 'दीदी, मैं इसे कुटियावाले बाबा के आश्रम में ले जाता हूँ। वहाँ यह ठीक हो जाएगी। जरूर कोई भूत-प्रेत का चक्कर है।'
"मैं बहुत चीखी- चिल्लाई कि मैं नहीं जाऊँगी, पर मेरी एक न चली। कुटियावाले बाबा के आश्रम में मैं तीन दिन रही। चिलम का धुआँ वह मेरे मुँह पर फेंकता रहा और मुझे एक गोली खिला दी। दो दिन तक मैं बेहोश सोती रही। आँख जब खुली तो बदन बुरी तरह टूट रहा था। कुटियावाले बाबा ने मुझे आशीर्वाद दिया और कुटिलता से मुसकराते हुए बोले, 'छोरी सुंदर है। समय से पहले ही जवान हो गई है।' मैं अपने आपको पूरी तरह खो चुकी थी। अपने को तलाशने की अब मैं कोई जरूरत भी नहीं समझ पा रही थी।
"वह राक्षस बड़ी बुलंद आवाज में अपनी बहन को समझा रहा था कि कुटियावाले बाबा ने इसे ठीक कर दिया है। भभूत दिया है, इसे पानी में डालकर पूर्णिमावाले दिन पिला देना। अम्मा अपने भाई की हिदायतों का पूरी तरह पालन करती। वह उसका सुरक्षा कवच था। यही उसका विश्वास था। हर समय अपने भाई के आगे अपने पति की बुराइयों और गैर-जिम्मेदारियों का पुलिंदा खोलकर बैठ जाती । इधर मेरी तबीयत दिन-पर-दिन खराब होती जा रही थी। दो महीने से मैं कपड़े से नहीं हुई थी। मुझे अपना ही शरीर अजीब बेगाना लगने लगा था। बार- बार आनेवाली उलटियों से अम्मा चौंकी। अब उसे पता चला कि मैं पेट से हूँ। मुझे मेरे परिवार के बीच बहुत लताड़ा गया, मारा गया। मेरे शराबी बाप ने भी मुझे बुरी तरह पीटा और पीटकर खुद खूब रोया। उसी दौरान अम्मा का वह राक्षस भाई आया। उसने जी भरकर मेरी लानत-मलामत की और अपनी बहन से बोला, 'कहो तो इसे जहर की पुड़िया लाकर खिला दूँ। घरवालों से तो ऐंठी फिरती थी और बाहरवालों से यारी यहाँ तक निभा आई। अरे, कुछ मुँह से तो इसके फूटे, कौन है इसका खसम ? जिंदा जला डालूँगा उसे । '
"उस राक्षस की बात से मैं तड़प उठती। जी में आता कि मैं चीख-चीखकर पूरे शहर को बता दूँ, पर कौन सुनता मेरी बात। मैं अपनी जिंदगी का कोई छोर नहीं पकड़ पा रही थी। मन के अंदर एक भयंकर आक्रोश था, जो प्रतिशोध की अग्नि धधक रहा था। एक सुबह मैंने आँख खोलते ही निर्णय लिया कि मैं उसे नहीं जीने दूँगी, जिसने मेरे जीने का सारा हक मुझसे छीना है ।
"और उस रात घोर अँधेरे में मैं उठी। वह राक्षस हमेशा की तरह आँगन में अकेला सोया था। उसे मेरा इंतजार था और उसने बारह बजे के बाद मुझे बुलाया था। ऐसा वह अकसर करता । न पहुँचने पर वह जिस तरह मुझे बेइज्जत करता और मेरी माँ को मेरे खिलाफ भड़काता, वह भी मेरे लिए बड़ा दर्दनाक होता । लेकिन उस रात मैं उसका इरादा पूरा करने के लिए नहीं गई थी। मैंने ठान लिया था कि अगर आज मैं चूक गई तो अपने को कभी माफ नहीं कर पाऊँगी। मैं उस सोते हुए राक्षस की छाती पर चढ़ गई और अपनी पूरी ताकत से मैंने उसका गला दबा दिया। थोड़ी देर वह बुरी तरह छटपटाया। उसने अपनी ताकत आजमाने की कोशिश भी की, लेकिन जाने कहाँ से मुझमें गजब की शक्ति प्रवेश कर गई थी। वह बुरी तरह तड़पकर दम तोड़ चुका था। मैंने पास पड़ा एक बड़ा पत्थर उठाया और उसकी छाती पर रख दिया। ऐसा करते ही मैंने अपने आपको बहुत हलका महसूस किया। मैंने किसी को घर में जगाया नहीं और सीधे पुलिस स्टेशन आ गई। मेरे मन में न कोई सुख था, न कोई दुःख । अम्मा के राक्षस भाई को खत्म कर मैं अपने प्रतिशोध के धधकते लावे को शांत कर चुकी थी।"
महिला पुलिस निशा की आपबीती से प्रभावित होते हुए बोली, “तुमने कुछ गलत तो नहीं किया। आखिर कितना और कब तक सहेगी औरत!" और उसने मुँह का तंबाकू भरा पीक पिच्च से दीवार पर थूकते हुए कहा, "पर एक बात बताओ, गर्भ में पल रहे इस बच्चे का क्या होगा ? हो सकता है, तुम्हारी इस अवस्था को देखते हुए कानून की सख्ती कुछ नरम हो जाए।"
निशा एकदम चीख उठी, "नहीं-नहीं, ऐसा नहीं होगा। मैं इस नाजायज औलाद को जन्म देकर एक और राक्षस नहीं पैदा करूँगी।"
"लेकिन वह लड़की भी तो हो सकती है ?"
"जो भी हो, नाजायज तो नाजायज ही कहलाएगी। मैं अदालत से कहूँगी कि मेरे इस नाजायज बच्चे को जन्म न लेने दे।"
महिला पुलिस ने अपनी ड्यूटी महसूस करते हुए पुलिसिया अंदाज में कहा, "बस-बस, इस तरह चीख मत। रात हो रही है, सो जा और सुन, मैं तो आएदिन इस तरह का नजारा देखती हूँ। सबकुछ जानती हूँ, सबकुछ समझती हूँ। तुझसे एक ही बात कहूँगी - अभी तेरी उम्र ही क्या है? फिर जानती है, औरत को औरत होने का हक हमारा समाज तभी देता है जब वह माँ बनती है। माँ बनकर ही वह पूरी कहलाती है।"
निशा हतप्रभ - सी उस महिला पुलिस को देखती रही और एक बार उसने अपने हाथ से पेट में पलते गर्भस्थ शिशु को महसूस किया। और झटके से करवट बदलते हुए लोहे के सींखचों को देखती हुई सोचती रही - 'कौन सा समाज, कैसी औरत और कैसी उसकी पूर्णता, जिसे अंकुरित होते ही रौंदने की साजिशें घेर लेती हैं ? मेरा कौमार्य, मेरी अस्मिता नष्ट करके मुझे यह नसीहत दी जा रही है कि मैं इस बच्चे को जन्म दूँ? क्या सिर्फ समाज के बने ढाँचों में हर सच, हर विद्रूपता को दफना देना ही औरत का आदर्श समझा जाता रहेगा? कुछ भी हो, वह इस रास्ते को एकदम नई दिशा में मोड़कर ही दम लेगी। नाजायज औलाद नाजायज ही होती है, उसका जीने का हक कभी दमदार नहीं हो सकता; क्योंकि झूठी मान्यताओं, बेवकूफी भरी सहानुभूतियों से कोई पौधा अपनी जड़ें मजबूत नहीं कर सकता।'
सवेरा हो गया था। लॉकअप में बंद निशा घने अँधेरे में पूरी रात सोने के बाद जाग उठी थी। महिला पुलिस की ड्यूटी बदल गई थी। कुछ आगंतुक उससे कुछ पूछ रहे थे। वह अकड़ती हुई बोली, “किसको पूछ रहे हो, किससे मिलना है ?"
औरत अनुरोध भरे स्वर में बोली, "मैडम, हम अपनी लड़की से मिलने आए हैं।"
"कौन ? वह खूनी तुम्हारी बेटी है! आगेवाले लॉकअप में है, जाकर मिल लो।" उपेक्षा से उस महिला पुलिस ने कहा।
वे दोनों आदमी-औरत आगे बढ़ गए। निशा को देखते ही औरत जोर-जोर से चीखने लगी, “अरे, तूने ये क्या किया ? बिना सोचे-समझे अपने सगे मामा को मार डाला। अरे, तू तो औरत जात है। अरे, भगवान् ने हमें धरती बनाया है, धरती, सिर्फ रौंदे जाने के लिए और देते रहने के लिए। कुछ तो सोचती, कुछ तो समझती।"
निशा ने बिलकुल बेलाग होते हुए पूछा, "कौन हो तुम लोग ?"
आदमी ने बिलकुल निरीह होते हुए कहा, “निशा बेटी, हम तुम्हारे माँ-बाप हैं । "
"कोई नहीं है मेरा, और मैं अपना रास्ता तय कर चुकी हूँ । मुझे आपकी किसी भी हिदायत की जरूरत नहीं है। आप लोग यहाँ से चले जाइए।" निशा लगभग चीख रही थी।
महिला पुलिस ने उस आदमी तथा औरत को वहाँ से जल्दी जाने को कहा, क्योंकि शोर सुनकर दरोगा बिगड़ेगा।
वह औरत गिड़गिड़ाती हुई बोली, "लेकिन यह मेरी बेटी है। "
महिला पुलिस ने उनकी बात अनसुनी करते हुए कहा, "यहाँ वह लॉकअप में सिर्फ एक अपराधिन है।"