गुणवत्ता (कहानी) : जॉन गाल्सवर्दी, अनुवादक : सुरेंद्र तिवारी

Quality (Story in Hindi) : John Galsworthy

"क्या किसी चर्मकार को शिल्पी कह सकते हैं? हाँ, यदि वह अपना काम किसी शिल्पकार की भांति पूर्ण गुणवत्ता के साथ करता है। शिल्पकार की भांति अपनी कृतियों पर गौरवान्वित हो कर उनका आदर करता है। यह कहानी लंदन में रह रहे एक विशिष्ट जर्मन चर्मकार मि.गेसलर की है जिसने अपना पूरा जीवन जूते बनाने की कला को समर्पित कर दिया था।

मैं उसको अपनी किशोरावस्था से ही जानता था क्योंकि मेरे पिताजी उसीसे जूते बनवाते थे। दो छोटी-छोटी दुकानों को जोड़ कर उस जमाने में वेस्ट एंड की सर्वाधिक फैशनेबुल गली में अपने बड़े भाई के साथ रहता था। अब वह गली नहीं है। उस दुकान की एक विशेषता थी कि उसके बाहर राजपरिवार के जूतों के निर्माता का किसी प्रकार का विज्ञापन नहीं था। केवल अपना नाम ‘ग्रेसलर ब्रदर्स ‘लिखा था। शोकेस में कुछ जोड़ी जूते रखे थे। मुझे याद है कि शोकेस में एक जैसे जूतों को देख कर कभी-कभी परेशानी होती थी। वह वही जूते तैयार करते थे जिन का उनको ऑर्डर दिया जाता था,उनके अतिरिक्त नहीं। यह बात कल्पनातीत थी कि उनके द्वारा बनाए गए जूते कभी पैरों में फिट न बैठे हों। क्या वह पैरों के अनुरूप जूतों को खरीदता था? यह बात भी अविश्वसनीय थी। वे घर में अपने तैयार किए गए चमड़े के अतिरिक्त किसी और चमड़े का इस्तेमाल नहीं करते थे। यही नहीं जूते बहुत खूबसूरत और हल्के होते थे,अवर्णनीय रूप से हल्के। विशिष्ट कपड़े के ऊपर पतला कपड़ा चढ़ा होता था। उनको देख कर किसी का मन भी उन पर मोहित हो जाता था। घुड़सवारी के लिए काली चमक वाले ऊंचे ब्राउन बूट एकदम नए होते हुए भी सौ साल पुराने दिखाई देते थे। ऐसे जूतों का निर्माण केवल वही व्यक्ति कर सकता था जिसने स्वयं जूतों की आत्मा के भीतर झाँका हो। वास्तव में सभी जूतों की मूल आत्मा को मूर्तिमान करते उत्कृष्ट जूते होते थे। चौदह साल की उम्र में उनसे मिलते समय मुझे उनके और उनकी प्रतिभा के बारे में कुछ-कुछ आभास था, लेकिन उपरोक्त भावना मेरे मन में बहुत देर बाद उत्पन्न हुई।

जूते बनाना,उस की तरह जूते बनाना मेरे ख्याल में तब भी और अब भी एक विलक्षण, रहस्यपूर्ण कार्य था। मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है कि एक दिन अपने पैर का नाप देते समय उससे झिझकते हुए पूछा था-" क्या यह काम बेहद अरुचिकर नहीं है,मि. गेसलर?"

उसने अपनी दाढ़ी के बीच से व्यंग्यात्मक लहजे में अचानक मुस्कुराते हुए जवाब दिया-" यह एक कला है।"

वह स्वयं छोटा सा था,मानो चमड़े का बना हुआ हो , पीला सिकुड़ा चेहरा, सिकुड़े बाल और दाढ़ी, मुंह के कोनों तक फैले शिकन, उसकी रूखी और कठोर आवाज़, सख्त और कम महत्त्व का उपाहस्य तत्त्व चमड़ा,यही उसकी पहचान थी। इस दृष्टिकोण के साथ उसकी सफ़ेद,नीली आँखों में रहस्यपूर्ण आदर्श का सहज आकर्षण निहित था। उसके चेहरे की यह विशिष्टता थी। उसका भाई भी उसी की तरह था, हालांकि उसका रंग ज़्यादा पीला, चेहरा निस्तेज था लेकिन वह भी बहुत मेहनती था। उससे मिलने के बाद शुरू-शुरू में मुझे इस बात पर विश्वास नहीं होता था-" यह बात मैं अपने भाई से पूछूंगा।" यह सुनते ही मैं समझ जाता था कि वह स्वयं था, अन्यथा उसका बड़ा भाई होता था।

बुढ़ापे, रिटायरमेंट के बाद जूतों की कीमत चुकाने में असमर्थ होने के कारण अब लोग गेसलर ब्रदर्स के पास नहीं दौड़ते थे। उसके पास जा कर लोहे की नीली कमानी वाले चश्मे के पीछे से झाँकती आँखों के आगे पैर का नाप देना -एक से ज़्यादा जूतों की जोड़ी-दो जोड़ी के ऑर्डर देने पर उसको सहज आश्वासन मिल जाता था कि मैं अभी भी उनका ग्राहक था।

उसके पास बार-बार जा पाना संभव नहीं था-उसके बनाए जूते बहुत देर तक चलते थे-साधारण जूतों की अपेक्षा उनमें कोई विशेषता होती थी-मानों उनमें जूतों का सार निहित था।

दूसरी दुकानों की तरह यहाँ पर कोई ग्राहक इस मूड में नहीं आता था-" मेहरबानी कर के मेरा नाप जल्दी से ले लो और मुझे जाने दो। बल्कि आराम से, जिस प्रकार कोई चर्च में प्रार्थना करने के लिए जाता है, लकड़ी की इकलौती कुर्सी पर बैठ कर इंतज़ार करता। आमतौर पर वहाँ कोई ग्राहक नहीं होता था। जल्दी ही ऊपर की अंधेरी शाफ़्ट से, ऊपर से चमड़े की गंध के साथ वह या उसका बड़ा भाई नीचे उतरते दिखाई देता। कठोर,रूखी आवाज़, बिना कोट पहने, सीढ़ियों पर लकड़ी के स्लीपरों की ठक-ठक करते, थोड़ा झुककर , बिना चमड़े के एप्रन के, ऊपर मुड़ी हुई बाजू के साथ आंखे मलते हुए, मानों जूतों के किसी सपने से जागा हो या फिर दिन की रोशनी में खलल डालने पर उल्लू हैरान हो कर खीझ जाता है, नीचे आता।

मैं कहता-" कैसे हो मि. गेसलर? क्या तुम मेरे लिए रशियन चमड़े के जूते तैयार कर दोगे?"

मुझे वहीं छोड़ कर वह चुपचाप चला जाता है। वह आ कर फिर दुकान के किसी दूसरे हिस्से में चला जाता । मैं लकड़ी की कुर्सी पर आराम से बैठा उसके पेशे की महक का आनंद लेता रहता हूँ। जल्दी ही वह अपने दुबले-पतले हाथों में ब्राउन चमड़े का एक टुकड़ा लेकर वापिस आ कर कहता है-" बहुत शानदार टुकड़ा है।"

मेरे तारीफ करने पर वह पूछता है-" तुम्हें कब तक चाहिए?"

मैं जवाब देता हूँ-" आराम से जितनी जल्दी तैयार कर सको।"

वह कहता है-“पंद्रह दिनों में?"

अगर उसका बड़ा भाई होता तो वह कहता-" मैं अपने भाई से पूछता हूँ।"

मैं धीरे से कहता हूँ-" धन्यवाद, गुडमॉर्निंग मि.गेसलर।"

अपने हाथ के चमड़े को देखते हुए जवाब देता है-" गुडमॉर्निंग।"

दरवाज़े की तरफ जाते हुए मुझे सीढ़ियों के ऊपर जूतों के स्वप्नलोक में जाते हुए उसके लकड़ी के स्लीपरों की ठक-ठक की आवाज़ सुनाई देती है। अगर मेरे नए डिजाइन के जूते तैयार करने हों, जिन्हें उन्होने पहले कभी न बनाया हो, तब वह सचमुच विधिवत नाप लेता है। मेरा जूता उतार कर वह अपने लम्बे हाथों में लेकर उसको प्यार भरी और समीक्षक की नज़र से देखता है। वह याद करने की कोशिश करता है कि उसने उसको कितनी प्रसन्नता के साथ तैयार किया था। उस खूबसूरत कृति को जिस तरह से तोड़ा गया था वह उसकी भर्त्सना करता है। मेरे पैर को कागज के एक टुकड़े पर रख कर दो-तीन बार बाहर की तरफ पेंसिल से निशान लगाता है और अपनी अंगुलियों को मेरे अंगूठे के बीच घूमा कर मेरी मूल आवश्यकता को जानने की कोशिश करता है।

मैं वह दिन कभी नहीं भूल सकता जब मैंने उससे कहा था-" मि. गेसलर क्या आप जानते हैं कि पिछली बार मैंने आपसे जो जूते शहर में घूमने-फिरने के लिए बनवाए थे, वे टूटने लगे हैं।"

वह कुछ देर तक इस आशा से कि मैं अपनी बात पर खेद प्रकट करूंगा या उसमें संशोधन करूंगा मेरी तरफ देखता रहा फिर कहने लगा-" उनको टूटना नहीं चाहिए था।"

"ऐसा ही है, मुझे डर है।"

"क्या पहनने से पहले वे पानी में भीग गए थे?"

यह कह कर उसने अपनी आँखें नीची कर ली मानो उन जूतों के बारे में कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो। मुझे यह बात कहने के लिए मन में अफसोस होने लगा।

"उनको मेरे पास भिजवा दो। मैं उनको देखूंगा।"

अपने टूटे हुए जूतों के लिए मेरे मन में सहानुभूति उत्पन्न हो गयी थी। मैं आदर के साथ उसको उदास, लम्बी जिज्ञासा के साथ उन पर झुक कर काम करने की कल्पना कर रहा था।

"कुछ जूते," उसने धीमे स्वर में कहा-" जन्म से ही खराब होते हैं। अगर मैं उनको ठीक नहीं कर पाया तो उनके पैसे लौटा दूंगा।"

एक बार अनजाने में उसकी दुकान में एमर्जेंसी में किसी बड़ी दुकान से खरीदे हुए जूते पहन कर घुस गया। उसने चमड़ा दिखाए बगैर मेरा ऑर्डर ले लिया। मैंने महसूस किया कि उसकी आँखें मेरे जूतों के घटिया चमड़े को घूर रही थी। आखिरकार वह बोल ही पड़ा-" ये जूते मैंने नहीं बनाए हैं।"

उसकी आवाज़ में न क्रोध था, न दुःख और न ही तिरस्कार की भावना लेकिन कुछ ऐसा था जिससे मेरा खून जम गया था। उसने अपने हाथ की अंगुली से बाएँ जूते को, फैशनेबुल जूते को, उस जगह से दबाया जहां दर्द होता था।

"यहाँ पर दर्द होता है?" उसने कहा-" इन बड़ी-बड़ी कम्पनियों का कोई आत्मसम्मान नहीं। धिक्कार है!" उसके बाद मानो उसके भीतर कुछ बिखर सा गया था, वह बहुत देर तक कड़वाहट से बोलता रहा। मैंने पहली बार उसके मुंह से उसके पेशे की हालत और मुश्किलों के बारे में सुना था।

"उनको काम मिल जाता है,"वह कहने लगा-" वे सब विज्ञापन दे कर काम हासिल कर लेते हैं,काम कर के नहीं। हम जो अपने जूतों से प्यार करते हैं, वे हमसे काम छीन लेते हैं।"

झुर्रीदार चेहरे पर मैंने ऐसे भाव देखे जो पहले कभी नहीं देखे थे। कठिन परिस्थितियाँ, कठिन संघर्ष। उसकी लाल दाढ़ी में यकायक बहुत सारे सफ़ेद बाल उग आए थे।

मैंने उसको उन बदनसीब जूतों की खरीद के बारे में अपनी सामर्थ्यानुसार समझाने की कोशिश की लेकिन उसके चेहरे और आवाज़ ने मुझ पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि अगले कुछ मिनटों में प्रायश्चितस्वरूप जूतों की कई जोड़ियाँ बनाने का ऑर्डर दे डाला। वे पहले से भी ज़्यादा मज़बूत थे और टूटे ही नहीं। जानबूझ कर लगभग दो साल तक उसके पास नहीं गया।

आखिर में वहाँ जाने पर यह देख कर हैरान रह गया कि उसकी दुकान की दो छोटी खिड़कियों में से एक के ऊपर दूसरा नाम लिखा हुआ था। निस्संदेह, वह भी राजपरिवार के लिए जूते बनाने वाले का नाम था। पुराने, जाने-पहचाने जूते अब एक खिड़की में पहले की तरह इकट्ठे , प्रतिष्ठित रूप में नहीं दिखाई दे रहे थे। अब एक छोटी दुकान के सिकुड़े हुए शाफ़्ट में पहले की अपेक्षा ज़्यादा अंधेरा और महक थी। हमेशा की तरह किसी के नीचे झाँकने और सीढ़ियों पर स्लीपरों की ठक-ठक की आवाज़ सुनाई दी। वह आखिरकार अपने लोहे के जंग लगे चश्मे से सामने आ कर मुझे देख रहा था।

"मिस्टर, क्या आप हैं?"

"हाँ, मि.गेसलर," मैंने हकला कर कहा-" तुम्हारे बनाए जूते वास्तव में बहुत बढ़िया हैं, तुम जानते हो? देखो , ये अभी तक बिल्कुल ठीक हैं।" मैंने अपना पैर उसके सामने कर दिया।

वह उन्हें देख कर बोला-" लगता है अब लोगों को बढ़िया जूतों की ज़रूरत नहीं है।"

उसकी उलाहना भरी आवाज़ और आँखों से बचने के लिए मैंने जल्दी से पूछा-" तुमने अपनी दुकान का क्या किया?"

उसने धीरे से ज़वाब दिया-" वह बहुत महंगी थी। क्या तुम्हें जूते बनवाने हैं?"

हालांकि मुझे दो जोड़ी जूतों की ही ज़रूरत थी,मैंने तीन जोड़ी जूतों का ऑर्डर दिया और जल्दी से बाहर निकल आया। मुझे नहीं मालूम कि उसके दिमाग के किस हिस्से में अपने विरुद्ध या फिर जूतों के खिलाफ कोई खुराफात चल रही थी। मेरे ख्याल से कोई भी उस तरह का अहसास करना नहीं चाहता।

कई महीनों के बाद दोबारा दुकान में पैसे देने के लिए इस अहसास के साथ गया-‘हाँ, मैं उस बूढ़े आदमी को इस तरह से नहीं छोड़ सकता था और चला गया। मन में सोचा कि हो सकता है उसका बड़ा भाई मिले। इस बात से थोड़ी तसल्ली मिली कि वह दुकान उसके बड़े भाई की थी। एक चमड़े का टुकड़ा रखा था।

"हाँ, तो, मि. गेसलर कैसे हो?"

वह पास आ कर मुझे घूरने लगा-" मैं बिल्कुल ठीक हूँ," धीरे से कहा-" लेकिन मेरे बड़े भाई का निधन हो गया है।"

ध्यान से देखा वह खुद था लेकिन कितना बूढ़ा और निस्तेज दिखाई दे रहा था। इससे पहले मैंने कभी उसके मुंह से बड़े भाई के बारे में कोई बात नहीं सुनी थी। सुनकर बहुत दुःख हुआ। मैंने धीरे से जवाब दिया-" ओह! मुझे बहुत अफसोस है।"

"हाँ," उसने कहा-" वह बहुत अच्छा आदमी था, जूते भी बहुत बढ़िया बनाता था लेकिन अब वह इस दुनिया में नहीं है।"

उसने अपने सिर पर हाथ रखा वहाँ पर उसके भाई के सिर की तरह ही गिने-चुने बाल बचे थे।

"वह दूसरी दुकान चले जाने का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाया था। क्या तुम्हें कुछ जूते बनवाने हैं?" उसने हाथ में पकड़ा हुआ चमड़े का टुकड़ा दिखाया-" यह एक खूबसूरत टुकड़ा है।"

मैंने कई जोड़ी जूतों का ऑर्डर दे दिया। काफी समय बाद आए लेकिन वे पहले से ज़्यादा बढ़िया थे। कोई भी उनको जल्दी से घिस नहीं सकता था। उसके फौरन बाद मुझे विदेश जाना पड़ गया।

एक साल से भी ज़्यादा समय के बाद लंदन वापिस लौटा। अपने पुराने दोस्त की दुकान पर सबसे पहले गया। मैं 60 साल के आदमी को छोड़ कर गया था और अब मेरे सामने 75 साल का दुःखी, थका -मांदा, निराश आदमी खड़ा था। वास्तव में इस बार उसने मुझे पहचाना ही नहीं।

"ओह! मि.गेसलर," दुःखी स्वर में कहा-" आपके जूते कितने शानदार हैं! देखो न, जितने दिन बाहर रहा जूतों की यही जोड़ी पहनी लेकिन अभी भी घिसे नहीं हैं, हैं न?"

वह देर तक मेरे लंबे रशियन चमड़े से बने जूतों को देखता रहा। उसके चेहरे पर धीरे-धीरे स्थिरता आ गयी थी। अपना हाथ मेरे टखने पर रख कर बोला-" क्या तुम्हें यहाँ पर दर्द होता है? मैं उस जोड़ी को ठीक कर दूंगा। मुझे याद है।"

मैंने विश्वास दिलाया कि वे जूते बिल्कुल ठीक है, मुझे कोई तकलीफ नहीं है।"

"तुम्हें नए जूते बनवाने हैं?" उसने कहा-" मैं जल्दी से तैयार कर दूंगा। आजकल धंधा मंदा चल रहा है।"

मैंने जवाब दिया-" तुम्हारी बड़ी मेहरबानी होगी। मुझे हर तरह के जूतों की ज़रूरत है।"

"मैं नए डिजाइन के जूते बनाऊँगा। तुम्हारा पैर शायद बड़ा हो गया होगा।" उसने बहुत आहिस्ता से मेरे पैर का नाप लिया-अंगूठे के बीच देखा, बीच में केवल एक बार ऊपर देख कर कहा-" क्या मैंने तुम्हें बताया है कि मेरे बड़े भाई का निधन हो गया है।"

उसको देखना अत्यधिक कष्टदायी था, वह कितना कमजोर हो गया था? मैं वहाँ से फौरन बाहर निकल जाना चाहता था। उन जूतों की मैंने आशा छोड़ दी थी। एक शाम वे आ गए। पार्सल खोल कर मैंने जूतों की चार जोड़ी एक कतार में लगा दी। एक-एक कर के पहन कर देखने लगा। निस्संदेह , शानदार डिजाइन, पैरों में एकदम फिट, चमड़े की क्वालिटी और पूर्णरूप से मेरे लिए तैयार किए गए जूतों में वे सर्वश्रेष्ठ थे। शहर में घूमने वाले जूतों की जोड़ी में रखा एक बिल मिला। हमेशा वाली कीमत, इससे मुझे गहरा दुःख हुआ। इससे पहले उसने कभी तीन महीने से पहले बिल नहीं भेजा था। मैं सीढ़ियाँ उतर कर फौरन नीचे गया, चेक काटा और अपने हाथ से डाक से भेज दिया।

एक-दो दिन बाद छोटी सी गली से गुजरते हुए ख्याल आया कि अंदर जा कर मैं उसको बता दूँ कि उसके बनाए गए जूते कितने शानदार हैं! लेकिन जहां पर उसकी दुकान थी वहाँ पर उसका नाम नहीं था। खिड़की में अभी भी हल्के जूतों की जोड़ियाँ, कपड़ा चढ़े पेटेंट चमड़े के जूते और घुड़सवारी के लिए काले जूते रखे हुए थे।

बहुत परेशान हो कर अंदर गया। दोनों दुकानों को मिला कर दोबारा एक दुकान बन गयी थी। काउंटर पर एक अंग्रेज़ी चेहरे वाला नौजवान बैठा हुआ था। उसने मुझे अजीब, कृतज्ञतापूर्ण नज़रों से देखा।

"आइये, सर," उसने कहा-" आपका स्वागत है, आपकी कोई भी सेवा करने में हमें खुशी होगी। हमने यह दुकान ले ली है। आपने पहले दरवाज़े पर हमारा नाम पढ़ा होगा। हम सम्पन्न, संभ्रांत लोगों के लिए काम करते हैं।"

"हाँ,हाँ," मैंने कहा-" लेकिन मि. गेसलर?"

"ओह," उसने जवाब दिया-" उनकी मृत्यु हो गयी है।"

"मृत्यु हो गयी है, लेकिन पिछले हफ्ते बुधवार को ही उनके भेजे गए जूते मुझे मिले हैं।"

"हाँ," उसने कहा-" अचानक देहांत हो गया। बेचारा, गरीब आदमी भूख के कारण मर गया।"

"हे भगवान!"

"डाक्टर का कहना था-भूख के कारण धीमी मौत। तुम जानते हो वह इसी तरह काम करता था। वह दुकान में अपने सिवाय किसी दूसरे को जूतों को हाथ नहीं लगाने देता था। ऑर्डर मिलने पर उसे पूरा करने में बहुत समय लगाता था। लोग ज़्यादा इंतज़ार नहीं कर सकते। सभी ग्राहकों ने आना बंद कर दिया था। वह वहाँ बैठा ग्राहकों का इंतज़ार करता रहता-करता रहता। उसके बारे में इतना ज़रूर कह सकता हूँ कि पूरे लंदन में उससे ज़्यादा शानदार जूते कोई और नहीं बना सकता लेकिन कंपीटिशन देखो। उसने कभी अपना विज्ञापन नहीं दिया। सबसे बढ़िया चमड़ा खरीदता और खुद जूते तैयार करता था। ठीक है, यह उसी का नतीजा है। उसके आदर्शों का मूल्य और क्या हो सकता है?"

"लेकिन भूख?"

"यह थोड़ी अतिशयोक्ति हो सकती है लेकिन मैं जानता हूँ कि वह आखिरी सांस तक रात-दिन अपने जूतों को तैयार करता रहता था। खाने-पीने की सुध नहीं थी। घर में एक पैसा नहीं था। सब कुछ किराए और चमड़े पर खर्च हो जाता था। मैं नहीं जानता कि वह इतने दिनों तक भी कैसे जीवित रह पाया? वह अपना जीवन नियमित रूप से चलाता था। वास्तव में वह अपने-आप में विलक्षण था। वह बढ़िया जूते बनाता था।"

"हाँ," मैंने कहा-" वह बढ़िया जूते बनाता था।" मैं जल्दी से बाहर निकल आया क्योंकि मैं उस नौजवान को यह नहीं बताना चाहता था कि उसकी बातें सुनने के बाद मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया था।

(साभार अनुवादक : प्रमीला गुप्ता)

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