इंशा अल्ला खाँ 'इंशा' के क़िस्से'
Qisse : Insha Allah Khan Insha
1. अंधे को अंधेरे में बड़ी दूर की सूझी
जुर्रत नाबीना थे। एक रोज़ बैठे फ़िक्र-ए-सुख़न (शायरी) कर रहे थे कि इंशा आगये। उन्हें मह्व (तल्लीन) पाया तो पूछा, “हज़रत किस सोच में हैं?”
जुर्रत ने कहा, “कुछ नहीं ,बस एक मिसरा हुआ है। शे’र मुकम्मल करने की फ़िक्र में हूँ।” इंशा ने अ’र्ज़ किया, “कुछ हमें भी पता चले।”
जुर्रत ने कहा, “नहीं! तुम गिरह लगाकर मिसरा मुझसे छीन लोगे।” आख़िर बड़े आग्रह के बाद जुर्रत ने बताया, मिसरा था;
“इस ज़ुल्फ़ पे फबती शब दीजूर की सूझी”
इंशा ने फ़ौरन गिरह लगाई:
“अंधे को अंधेरे में बड़ी दूर की सूझी”
जुर्रत लाठी उठाकर इंशा की तरफ़ लपके। देर तक इंशा आगे और जुर्रत पीछे-पीछे उन्हें टटोलते हुए भागते रहे।
2. गंजा-सर और शैतान की धौलें
एक दिन सय्यद इंशा नवाब आसिफ़-उद्दौला साहिब के साथ बैठे खाना खा रहे थे। गर्मी से घबरा कर दस्तार सर से उतार कर रख दी थी। मुँडा हुआ सर देखकर नवाब साहिब की तबीयत में चुहल आयी, हाथ बढ़ा कर पीछे से एक धौल मारी। इंशा ने जल्दी से टोपी पहन ली और कहने लगे सुब्हान-अल्लाह बचपन में बुज़ुर्गों से सुना करते थे, वो बात सच है कि नंगे-सर खाना खाते हैं तो शैतान धौलें मारता है।
3. कुत्ते की क़ज़ा-ए-हाजत
नवाब आसिफ़-उद्दौअला एक रोज़ इंशा के साथ हाथी पर सवार लखनऊ के किसी मुहल्ले से गुज़र रहे थे।
रास्ते में देखा कि एक कुत्ता एक क़ब्र पर पेशाब कर रहा है। नवाब साहिब ने इंशा पर फब्ती कसी और कहा,
“इंशा किसी सुन्नी की क़ब्र मा’लूम होती है।”
इंशा ने कहा, “हुज़ूर सच फ़र्मा रहे हैं, मगर पेशाब करने वाला शीया मालूम होता है।” इस पर नवाब साहिब बेसाख़्ता हंस पड़े।