प्यार (असमिया बाल कहानी) : हेमन्त कुमार शर्मा/হেমন্ত কুমাৰ শৰ্মা

Pyar (Assamese Baal Kahani in Hindi) : Hemant Kumar Sharma

बहुत समझाया गया, लेकिन बापन का रोना बढ़ता ही गया। बीच-बीच में चिल्लाता है, 'बिकुट दो, बिकुट दो!' जिका फुली ने समझाया, 'बेटे, बिस्कुट खराब चीज है। उससे बीमारी होती है, उसे मत खाओ, मेरे बेटे ! ' लेकिन वह कहाँ मानता है! आखिर जिका फुली ने कहा, 'बेटे, मेरे पास तो एक पैसा भी नहीं है। तेरा बाप मजदूरी के लिये बरमा गया है। आज पन्द्रह दिन हुए, उसकी कोई खबर तक नहीं। मैं पैसा कहाँ से पाऊँ, बेटे ! तेरा बाप जब आएगा तब पैसा ले आएगा। उस समय तुम जितना चाहे बिस्कुट खाना । अब तो मत रोओ बेटा ।'

बापन छै साल का है। माँ की बात वह कहाँ समझता है। बिस्कुट न पाकर माँ की पीठ पर एक मक्का जोर से लगाकर घर के एक कोने में जा रोता रहा ।

बकुली जिका फुली की पहली संतान । करीब दस साल की होगी । बापन का रोना सुनकर उसने अपनी माँ से कहा, 'माँ तुमने तो परसों चावल का पीठा बनाया था। होगा तो उनमें से उसे एक दे दो न ।'

पीठा का नाम सुनकर बापन बिस्कुट की बात भूल गया और पीठा दो कहकर रोने लगा। जिका फूली रसोई घर में गयी। बापन भी माँ के पीछे- पीछे गया। जिका फूली ने रसोई घर के आले से मिट्टी का घड़ा उतार लिया। उसने बड़ी आशा से घड़े का ढकना हटाकर उसमें टटोलकर देखा, लेकिन उसमें कुछ नहीं मिला। एक भी पीठा नहीं है । केवल पीठे के कुछ टुकड़े ही मिले। माँ ने उससे कहा, 'देखो बेटा, इसमें एक दो पीठा होगा, ऐसा सोचा था। ये टुकड़े ही खा लो बेटा। जब तेरे बाप लौट आयेंगे, तब तू जितना चाहेगा, उतना दूँगी। अब मत रो बेटा।

पीठा न मिलने के कारण बापन का रोना और बढ़ गया। उसने पीठे के टुकड़े माँ की ओर फेंक दिये और घड़े पर एक लकड़ी धम से मारा। वह घड़ा टुकड़े-टुकड़े हो गया। बापन दौड़कर बाहर भागा। जिका फुली का धीरज खो गया । 'ठहरो बदमाश' कहती हुई वह बापन को खदेड़ने लगी। बापन रास्ते की ओर भागा, जिका फुली ने भी पीछा नहीं छोड़ा।

कुछ दूर तक खदेड़ने के बाद जिका फुली ने देखा कि उसी गाँव का चरवाहा मंगलराम हाथ में एक लाठी लिये आ रहा है। वह चिल्लायी, 'मंगला, बापन को पकड़ो न । जिका फुली की बात सुनकर मंगल ने डराते हुए कहा, 'ठहरो ठहरो, कहाँ भागोगे तुम। अभी पुलिस बुलाता हूँ।' वह भी दौड़ता हुआ पास पहुँचा । मंगलराम को देखकर बापन जोर-जोर से चिल्लाने लगा, 'मुझे बचाओ, बचाओ।' कहकर पीठ की ओर से माँ से लिपट गया। जिका फुली ने बापन को पहले तो एक धक्का दिया फिर गोद में उठा लिया और अपने घर की ओर लौट पड़ी।

लेकिन बापन की जिद इतने पर भी नहीं छूटी। अपने ताऊजी के लड़के धन के हाथ में गुड़िया देखकर, 'गुड़िया दो, गुड़िया दो' कहकर रोने लगा ।

आज सुबह से ही वह यह चाहिए, वह चाहिए कह माँ को तंग करता रहा । और फिर जब गुड़िया माँगने लगा तो जिंका फुली को रोना आ गया। वह अपने नसीब को धिक्कारते हुए रोने लगी, 'मैं मर क्यों नहीं जाती । इन्हें मैंने जन्म दिया, लेकिन एक भी चीज दे नहीं पाती। कहाँ जाऊँ, क्या करूँ।' जिका फुली रोने लगी ।

माँ की हालत देखकर बकुली को बहुत दुख पहुँचा। अब वह समझदार बनती जा रही थी। उसने सोचा, भाई को अड़ोस-पड़ोस के घरों में घुमाने ले जायें तो शायद गुड़िया की बात भूल जायेगा। वह बापन का हाथ पकड़कर रास्ते की ओर चली। कुछ दूरी पर उसने कुछ आदमियों को इकट्ठे होते देखा । वह बापन को लेकर उसी ओर चल पड़ी। उसने वहाँ देखा कि पीले रंग की पगड़ी पहने बड़ी-बड़ी मूँछवाला एक आदमी घूम-घूम कर पूंगी बजाकर साँपों को नचा रहा है। साँप देख कर बापन का रोना बन्द हो गया।

कुछ समय बाद उसने देखा, उसका साथी मण्टुल अपनी माँ की गोद में बैठा है। उसे भी अपनी माँ की याद आ गयी। दीदी, मेरी माँ कहाँ है। 'घर में है मुन्ना ।' बकुली ने कहा ।

इस बार उसने नयी माँग उठाई, 'मुझे माँ दो। मुझे माँ दो।' कहकर कुली को तंग करने लगा । आखिर बकुली को अपने घर की ओर खींचने लगा।

'ठहरो न, यह खेल खतम होने दो!' बकुली ने खिन्न होकर कहा । लेकिन वह कहाँ मानने वाला । वह चिल्लाता रहा, 'मुझे माँ दो, मुझे माँ दो ।' बकुली के सामने कोई चारा न रहा और वह बापन को लेकर फिर घर पहुँची।

घर आकर देखती है कि उनकी माँ घर में नहीं है। घर का दरवाजा बन्द है । भीतर की ओर से शलाका लगाया हुआ है। कभी-कभी जिका फुली इस तरह से भीतर से दरवाजा बन्द कर जाती है। आज भी शायद किसी काम से बाहर गयी होगी। नहीं तो दिन में भीतर से दरवाजा बन्द नहीं किया जाता। भीतर होती तो अभी तक जरूर बोलती। बकुली बापन को लेकर फिर सपेरे के यहाँ जाना चाहती थी, लेकिन बापन कहाँ मानता। 'माँ कहाँ है, माँ कहाँ है' कह कहकर वह जोर-जोर से चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगा । बकुली रुक गयी। उसने समझाने के स्वर में कहा, 'माँ अभी आएगी, मुन्ना । तू चुपचाप रह ।' लेकिन बापन नहीं माना। 'माँ कहाँ है, माँ कहाँ है' कह कर रोता ही रहा।

कुली के ताऊजी बुधिराम दूकान से आ रहे थे। बापन का रोना सुन उसके घर की ओर चले आये। उन्होंने बापन को, 'मत रोओ बेटा!' कह अपनी थैली से एक बिस्कुट निकालकर दिया। लेकिन बापन ने उसे फेंक दिया। कहने लगा, 'मुझे बिकुट नहीं माँ दो, मुझे माँ दो।' फिर चिल्ला-चिल्ला कर रोने लगे । बुधिराम चुपचाप चला गया।

बुधिराम की पत्नी बताही बड़ी भली औरत थी। बहुत समय से बापन का रोना सुन बताही ने दो तिल पीठा लाकर बापन के हाथ में दिया, लेकिन उसने दोनों जमीन पर फेंक दिया और चिल्ला-चिल्ला कर रोने लगा, 'मेरी माँ कहाँ है, कहाँ है।' बताही जानती थी कि जिका फुली कभी कभी गाँव में किसी का घर साफ करने, कपड़े बुनने, धान काटने आदि का काम कर बदले में कुछ चावल अथवा पैसे के लिए चली जाती थी। आज भी शायद उसी काम से बाहर गई हुई है। इसी कारण जिका फुली के लिए सोचना बेकार समझकर और बापन को एक गुड़िया देकर शान्त करने की बात सोची। बताही ने अपने लड़के के पूजा के समय कई गुड़ियाँ खरीदी थीं उनमें से एक लाकर बापन के हाथ में दे दिया। लेकिन बापन ने गुड़िया को भी फेंक दिया, 'मुझे गुड़िया नहीं, माँ दो, माँ दो!' कहकर रोने लगा। बापन को शान्त करना बकुली-बताही के लिए असंभव हो गया।

हाथ में एक पोटली में थोड़ा-सा चावल लेकर हाँफते हुए जिका फुली आ रही थी। अचानक बापन का रोना सुन चिल्ला कर पूछने लगी, 'बकुली, बापन इतना रो क्यों रहा है, रे!'

अपनी माँ की आवाज सुनते ही बापन रास्ते की तरफ दौड़ पड़ा और 'माँ-माँ' कह अपनी माँ के गले लग गया। जिका फुली ने हाथ की पोटली फेंककर बापन को गोद में उठा लिया।

(अनुवाद : चित्र महंत)

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