प्यार (अज्ञात) : कमलेश्वर
(अज्ञात लेखक की यह जर्मन कथा 14वीं सदी की है। जर्मन संकलन ‘गेसेम्मटबेण्टर’ से इसे लिया गया है। प्यार और सेक्स के प्रति विकसित होते दृष्टिकोण को इसमें देखा जा सकता है।)
एक दिन एक अमीर सामन्त शिकार के लिए निकला। साथ में दो कुत्ते और एक बाज भी था। चलते-चलते थोड़ी-सी खुली जगह में एक खरगोश दिखा। कुत्तों ने उसे खदेड़ा, पर वह कहीं छुप गया। आखिर एक किसान झाड़ी में से उसे पकड़ लाया। सामन्त ने उसे किसान से माँग लिया।
वह चल पड़ा। रास्ते में एक गाँव पड़ा। वहाँ एक कुंज में गाँव की एक सुन्दर लड़की खड़ी थी। सामन्त ने उसकी ओर देखा, तो उस ग्रामकन्या ने पूछा, “यह खरगोश आपको कहाँ मिला? कितना सुन्दर है यह! इसे आप बेचेंगे?”
सामन्त ग्रामकन्या की सुन्दरता पर मोहित हो गया था, बोला, “अगर सचमुच तुम्हें यह अच्छा लगा है, तो ले लो।”
लड़की बोली, “इसका दाम तो बताइए। अगर मैं इसका मूल्य चुका सकी, तो जरूर ले लूँगी...”
“इसका मूल्य है प्यार, दोगी?” सामन्त ने पूछा।
लड़की की मुद्रा प्रश्नवाचक हो गयी। उसने कहा, “मेरे पास कुछ अँगूठियाँ हैं, दस कीमती पत्थर हैं और एक रेशमी करधनी है, जिसमें मेरी माँ ने सोने के घुँघरू टाँके हैं। अगर आप मजाक नहीं कर रहे हैं, तो मैं यह सब खरगोश के बदले में दे सकती हूँ!”
सामन्त ने कहा, “मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए। इसके बदले में सिर्फ तुम्हारा प्यार चाहिए।”
“लेकिन यह, जो प्यार नाम की कीमत आप माँग रहे हैं, इस चीज का तो मुझे पता ही नहीं, न यह मेरे पास है!”
“मैं उसे तुम्हारे पास से ही खोज लूँगा!” सामन्त बोला।
“चलिए, खरगोश दे दीजिए और आप प्यार खोज लीजिए।”
सामन्त ने चारों ओर सतर्कता से निगाह दौड़ायी और पूछा, “हमारी बातें किसी ने सुनी तो नहीं?”
“नहीं तो,” वह फाख्ता की तरह पवित्र और भोली लड़की बोली, “माँ और नौकरानी दोनों गिरजे गये हुए हैं!”
यह सुनकर सामन्त ने उस भोली लड़की को लताकुंज के भीतर ले जाकर खरगोश दे दिया। उस कोमल खरगोश को अपनी बाँहों में लेकर लड़की खिल उठी। फिर सामन्त से बोली, “तो अब तुम प्यार ले लो!”
सामन्त ने उसे बाँहों में भर लिया। उसके गुलाब-से अधरों को चूमा और वासना में डूब गया। जब वह जाने के लिए उठा, तो भोली लड़की की आँखें आश्चर्य से फैल गयीं। वह बोली, “आप अपनी कीमत लिये बिना चले जाएँ, यह तो ठीक नहीं।”
सामन्त ने उसे फिर बाँहों में समेट लिया और वासना में डूब गया। जब दुबारा वह चलने लगा, तो लड़की ने उसके गले में बाँहें डालते हुए कहा, “आप तो कुछ भी नहीं ले जा रहे हैं। आपने प्यार भी नहीं लिया...”
सामन्त हँसा और घोड़ा दौड़ाता हुआ चला गया।
भोली लड़की की माँ जब वापस आयी, तो उसने वह खरगोश देखकर पूछा, “यह कहाँ से मिला?”
लड़की ने पूरा किस्सा बता दिया। सुनकर माँ बिफर उठी। माँ ने उसके बाल नोच डाले और उसे पीटा भी। भोली लड़की कुछ भी नहीं समझ पायी। पर जब माँ ने उसे लानतें दीं, तो यह समझकर कि ‘प्यार’ क्या है, वह रोने-चीखने लगी - तकलीफ के दर्द से नहीं, बल्कि इससे कि उसका प्यार चला गया है।
वह रोज लताकुंज में खड़ी होकर सामन्त का इन्तजार करने लगी कि शायद कभी वह गुजरता हुआ नजर आ जाए। आखिर एक दिन वह दिखाई दिया, तो पागलों की तरह भागती हुई वह लड़की उसके पास पहुँची और बोली, “मेरा प्यार मुझे लौटा दो। जब से तुम उसे ले गये हो, मैं बहुत दुखी हूँ। मेरी माँ ने मुझे पीटा और मेरे बाल नोच डाले। तुम अपना खरगोश ले लो और मेरा प्यार मुझे दे दो...”
सामन्त के लिए यह मौका और भी अच्छा था। वह भोली लड़की को भीतर कुंज में ले गया। वासना में डूबा और चलते समय कोमलता से बोला, “आज मैंने तुम्हारा प्यार तुम्हें वापस कर दिया है! यह खरगोश भी तुम्हीं रखो...”
लड़की भागी-भागी माँ के पास गयी और बोली, “माँ! माँ! मैंने प्यार वापस ले लिया!” पर जब माँ ने उसे और पीटा, तो वह असमंजस में पड़ गयी। उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया।
एक बरस बाद सामन्त ने एक धनी-मानी सुन्दरी से शादी करने की बात सोची। सामन्त उस भोली लड़की को भूल नहीं पाया था। उसने उसे भी निमन्त्रित किया।
जिस समय भोली लड़की खरगोश लिये हुए आयी, तब सामन्त अपनी होनेवाली बीवी के पास बैठा हुआ था। उस भोली लड़की और खरगोश को देखकर सामन्त को हँसी आ गयी। उसकी होनेवाली बीवी ने उसके हँसने का कारण पूछा, तो वह टाल गया। पर वह बोली, “अगर नहीं बताओगे, तो मैं तुमसे शादी नहीं करूँगी!”
और कोई चारा न देखकर सामन्त ने भोली लड़की की कहानी उसे बता दी। सुनकर उसकी होनेवाली बीवी हँसकर बोली, “पागल लड़की...! मैं तो अपनी माँ को कभी न बताती...”
यह सुनते ही सामन्त क्रोध से भर गया और उसे लगा कि होनेवाली यह बीवी विश्वास करने लायक नहीं है। उसने फौरन शादी की योजना बदल दी। सामन्त उस भोली लड़की के पास पहुँचकर बैठ गया और उसने घोषणा की कि उसकी शादी अब इस भोली लड़की से ही होगी।