पुरुष का हृदय (इतालवी कहानी) : जर्जेरी कंट्री
Purush Ka Hriday (Italian Story in Hindi) : Jarjerri Kantri
गुगलियेलमो ने बुलाने की घंटी बजती सुनी, फिर कोई भीतर आया और बैठक में बातचीत शुरू हुई। वह नहीं उठा। कौन आया? दवा-फ़रोश, रोटीवाला, या नौकरानी ? अपने विचित्रताहीन एक से जीवन की तफ़सील उसकी पूर्ण रूप से रटी हुई थी। अपने 'पाठ-गृह' से वह प्रतिदिन ही घटनाओं की ताल, ताँत के चलने की भाँति वह ताल, सुन पाता। उस दिन उसके घर में ग़ैर-मामूली घटनाएँ हो रही थीं, फिर भी जैसे उसके कान उनकी आवाज़ से परिचित-से थे, और उसे कोई विशेष कौतूहल नहीं हो रहा था। उदाहरण के लिए, वह दवा-फ़रोश, परमात्मा की कृपा से उससे काम आज ही लगा है। इसलिए वह क्यों अपने कमरे से निकल आए? वह कुछ भी नहीं जान सकता, वह इन घटनाओं की धारा बदलने के लिए कुछ भी नहीं कर सकता। वह सोचता हुआ अपने आप कहने लगा- " अभी दाई आ जाएगी, फिर डॉक्टर आएगा, और एक या दो घंटे में सब काम ख़त्म हो जाएगा।"
अपनी घबराहट छिपाने के लिए, सामने की छोटी हरी-भरी फुलवारी की ओर बिना देखे ही, उसने फिर पढ़ना शुरू कर दिया। उसका पाठ-गृह उसके जीवन की तरह ही साधारण और सीमाबद्ध था। वह पढ़ता हुआ अपने जीवन के बारे में सोचता जा रहा था। उसने पच्चीस साल की उम्र में शादी की थी, और अब उसकी उम्र तीस साल की है... उसका यह पाँच वर्ष का जीवन बिलकुल विचित्रताहीन था, न वह विशेष सुखी था, न विशेष दुखी। उसकी माता की साधारण और आकांक्षाहीन कामना बहुत अच्छी तरह पूरी हुई है और उसने पूरी होने भी दी है, क्योंकि आलस्य करके वह इसका विरोध नहीं कर सका था, उसे अपने गुण और पुरुषार्थ पर भी विशेष विश्वास और भरोसा नहीं था। उसकी माता भी अधिकांश स्त्रियों की-सी बहुत साधारण आकांक्षाएँ रखती थी। वह पुत्र से सदा कहती थी, "तुम आइरीन से शादी करो, वह तुम्हारी योग्य पत्नी होगी, तुम केवल उससे ही शादी कर सकते हो। वह सुन्दर तो नहीं है, पर गम्भीर है; काम-काजू है... साथ में दहेज भी अच्छा लाएगी। दहेज बहुत नहीं है तो क्या? तुम्हारा लक्ष्य तो रुपए से शादी करना नहीं है...वह तुम्हारी गृहस्थी बड़ी अच्छी तरह सँभालेगी - तुम्हें बच्चे देगी। तुम अपने मन में भ्रम न पालो, समझे?"
और सचमुच ही उसने कोई भ्रम पोषण नहीं किया। माता को प्रसन्न करने के लिए ही उसने आइरीन से शादी की थी और माता के सुख के विचार के अनुसार ही वह सुखी होने का आदी हुआ था।
यह एक धुंधला, सुस्त- सा सुख था, स्वप्न-मग्न नर्स की तरह 'भ्रम' का उल्लेख उसकी माँ किस उद्देश्य से करती थी, यह वह खूब अच्छी तरह जानता था। गुगलियेलमो के लिए भ्रम का अर्थ अन्ना था, अन्ना उसकी धनी बुआ की लड़की थी। जब गुगलियेलमो किशोर वय का था, तब अक्सर ही वह उनके घर जाता था; पर जैसे ही वह युवावस्था में आया, अपनी बुआ का सन्देह और दोनों परिवारों के धन के अन्तर ने उन दोनों के बीच एक दीवार खड़ी कर दी और उसने धीरे-धीरे वहाँ जाना छोड़ दिया। अन्ना लम्बी और सुन्दर थी, वह सदा सुसज्जित और सुगन्धित रहती थी। गुगलियेलमो की माता सदा इस 'भ्रम' के विरुद्ध लड़ती आई है। “उसके जैसे पुरुष को भला वह चाहेगी? शादी करेगी? कभी नहीं उसका ध्येय उससे और भी ऊँचा है।... अन्ना उससे प्रेम करती है? वह समझता क्यों नहीं कि वह सिर्फ उससे दिल बहला ले रही है, जरा आनन्द ले रही है और वास्तव में रत्ती भर भी उसका ख्याल नहीं कर रही है!"
लगातार ये निर्दय बातें सुनते-सुनते उसका स्वप्न टूट गया और इसलिए उसने आइरीन से शादी की....
वर्षों के धुँधले और सुस्त सुख के बाद अब आइरीन एक बच्चा प्रसव करने जा रही है। पहले गुगलियेलमो को इसमें कोई उत्साह नहीं हुआ था। पर अब उसने सोचा कि किसी को लाने का समय आ गया है जिसको वह भी 'भ्रम' से बचाएगा। फिर, जैसे-जैसे महीने बीतते गए, उसका हृदय आनन्द से पूर्ण हो उठने लगा, जिस तरह बाढ़ भूमि को ढँक देती है। एक पुत्र, वंशधर, उसके सारे पिछले दुख तथा प्रेम और सुख की निछावर का तावान होगा।
वह उठ पड़ा, पाठ-गृह से निकला और दालान में आया। पत्नी के कमरे से तेज़ 'डिसिनफ़ेक्टेंट' की गन्ध आ रही थी। अगर वह बहुत ध्यान से सुनता, तो एक बहुत क्षीण कराहने की ध्वनि सुन पाता... पर बाहर से एकाएक एक छाया उसके निकट आई, और एक सबल और स्थिर स्वर से उसकी चिन्ता धारा को तोड़ दिया-
"मैं आ गया - मैं आ गया! तुम घबराए क्यों हो?"
यह डॉक्टर था । कभी स्कूल में गुगलियेलमो का सहपाठी था। किसी समय वह गुगलियेलमो के घर बहुत अधिक आता था। वह मीठा, रसिक और लाल मुँह वाला मनुष्य था। नए जीवनों को दुनिया में लाना उसका काम था और कदाचित् यही उसे अतिरिक्त जीवन-शक्ति देने का कारण हो ।
"जितनी जल्दी हो सका आ गया...कैसी तबीयत है? अच्छी है? बहुत अच्छा।... घबराओ मत जी... मैं होता तो घूमने-घामने चला जाता, या पाठ-गृह में शान्ति से रहता। मैं एक या दो घंटे में फिर तुम्हें हाल-चाल बताऊँगा।"
वह हँसा और सोने के कमरे में प्रवेश किया। गुगलियेलमो अपने पाठ-गृह में लौट गया। एक क्षण के लिए उसने बाहर जाने की बात गम्भीरता से सोची, पर एक अस्पष्ट भय और प्रसन्नता के मिश्रण ने उसे जाने से रोका। वह सोचने लगा कि यह उसके स्नायुविक उत्तेजना का फल है या और कुछ ?
वह फिर अपनी टेबिल के सामने बैठ गया। वहाँ उसकी सब पुरानी चिन्ताएँ लौट आईं और फिर बिलकुल ऐसे मौके पर जबकि उसका जीवन अपने बच्चे के जन्म के साथ भविष्य की ओर बढ़ने का विचार कर रहा था, उसकी असली चिन्ताएँ जिद के साथ अतीत की ओर बढ़ती ही गई, बढ़ती ही गईं।
अतीत का अर्थ था अन्ना, सदा ही अन्ना, अन्ना के सिवाय और कुछ नहीं ।
अपनी शादी के बाद उसने अन्ना को अनेक बार देखा था। अन्ना ने विवाह नहीं किया; वह हँसती हुई कहती कि उसे स्वतंत्रता अधिक पसन्द है। अब वह सत्ताइस साल की थी। वह अकेली रहती थी, बहुत सफ़र करती थी और सदा व्यस्त रहती थी। वह अभी भी पहले जैसी खुशमिजाज और सुन्दर थी। वह कभी-कभी उन लोगों से मिलने के लिए आती और आइरीन से सखी-सी गपशप करती थी। गुगलियेलमो से एक-दो मुस्कान के विनियम के अलावा, अधिक बात नहीं करती थी; और वह अधनिष्ठता के ढंग से उससे हाथ मिलाती थी। गुगलियेलमो सोचता था कि उसकी माता आधी ग़लत और आधी सही थी। अन्ना अधिक ऊँची ख्वाहिशमन्द न भी हो, पर अवश्य ही वह स्नेहशील नहीं थी।....
घंटी की आवाज़ सुनाई दी। क्या और कोई आया? कोई धीमे स्वर से नौकरानी से बात कर रहा था। इस स्वर ने गुगलियेलमो को चौंका दिया। फिर उसके पाठ - गृह का द्वार खुल गया और एक सुन्दर मुख दीखा।
“मैं हूँ, गुगलियेलमो! क्या मैं भीतर आ सकती हूँ?”
उसने टेबिल पर अपने हाथों से एक असहाय भाव प्रकट किया। वह भाव अपराधी के अपराध करते समय पकड़े जाने का सा था। वह चाह रहा था कि अपनी सब चिन्ताएँ किसी बक्स में बन्द करके रख दे, पर अन्ना बढ़ आई स्थिर और निःसंकोच भाव से । "मैं जरा ख़बर लेने के लिए चली आई। आइरीन की तबीयत कैसी है?"
गुगलियेलमो इतना अनमना दीखा कि अन्ना ने उसकी ओर स्नेहपूर्ण दृष्टि से देखा और कहा- "तुम बहुत ही चिन्तित ..."
"नहीं,” उसने कुछ अस्पष्ट स्वर में कहा, "वहाँ डॉक्टर है।"
और एकाएक इस युवती का ख्याल, जो प्रेम और जीवन से इतना सम्बन्धित था, उसके मन में उठ पड़ा और उसे परेशान किया; क्योंकि वह होशियार और साफ़ दिल का था। उसने बे-इरादे से अन्ना की सुन्दर देह की ओर देखा, जो कि सन्तान वहन करने के बिलकुल योग्य थी।
"एक क्षण के लिए बैठ जाओ, अन्ना!...कृपा है कि तुम आई हो!"
उसका स्वर अजीब-सा ध्वनित हुआ, बाजे का पर्दा बदलने की तरह। अन्ना ने चकित भाव से उसकी ओर देखा और क्षण-भर तक मौन रही फिर उसने पूछा, "क्या तुम्हें कुछ जरूरत है? क्या मैं तुम्हारे किसी काम में आ सकती हूँ?"
अब कोई उत्तर न देने की उसकी बारी थी। उन दोनों के बीच मौनता बढ़ती गई एक चक्र की तरह, जिसमें वे दोनों खो गए थे अनजाने में ही वे दोनों मानो किसी दूसरे स्वर को सुनने में मग्न रहे, उन बातों की स्मृति, जो बातें किसी समय कही गई थीं, पर अब विस्मृत हैं, या वे बातें, जो सोची गई थीं, और कभी कही नहीं गई और एकाएक गुगलियेलमो ने एक अजीब प्रश्न से निस्तब्धता भंग की। यह प्रश्न इसलिए और भी अजीब प्रतीत हुआ कि यह उसके जैसे लजीले मनुष्य के मुँह से निकला, और इस प्रश्न ने अन्ना को एक बेढंगे दुलार के रूप से स्पर्श किया-
"तुम इतनी नेक हो, अन्ना!... तुमने अभी तक शादी क्यों नहीं की है?"
अन्ना के कपोलों पर लाली दौड़ गई, उसका सारा चेहरा और गर्दन सुर्ख हो गई। अपनी आँखों की छाया छिपाने के लिए उसने मुस्कराने की चेष्टा की।
"तुम क्या सोच रहे हो, गुगलियेलमो? तुमने यह सवाल क्यों पूछा? मैं कुमारी रह गई इसलिए ... इसलिए कि किसी ने भी मुझे नहीं चाहा।”
"अच्छा?"
गुगलिलो खूब हँसता रहा। किसी ने भी नहीं चाहा ! अरे, अरे, उसके 'युवक मित्र' तो शहर भर की सब युवतियों के जोड़ने पर भी अधिक थे !
"तुमसे किसने कहा ?"
"मेरी माँ ने।"
"तुम्हारी माँ कुछ भी नहीं जानती थीं। ये सब बातें जाने भी दो अच्छा, तब मान लो कि मैंने शादी न करने की प्रतिज्ञा की थी।" अन्ना ने हँसते हुए कहा, पर उसके चेहरे से परेशानी टपक रही थी।
"प्रतिज्ञा? पर जब हम लोग बच्चे थे, तब तुम सदा कुछ और ही बात..."
“प्रतिज्ञा बाद में की जाती है।"
"कब तुमने की थी ?"
"याद नहीं है।... शायद पाँच-छह साल पहले..."
"यानी, जब मेरी शादी हुई?"
वह चुप रही। वह बहुत ही अधिक परेशान-सी दीखी। वह अपने होंठ काटती रही। वह पछता रही थी कि क्यों उसने ये सब बातें कह डालीं ?
"हाँ-हाँ,” गुगलियेलमो ने कहा, "मुझे स्मरण हो रहा है कि तुम उस साल बीमार रहीं....तुम्हें क्या हो गया था, यह कोई भी नहीं जानता था।...मुझे स्मरण है, मैं उस समय आइरीन के साथ स्विट्ज़रलैंड में था।... यह सब मैंने बहुत पीछे सुना था। और," वह मुस्कराता हुआ कहता गया, "क्या उसी समय तुमने प्रतिज्ञा कर डाली ?”
"नमस्ते, गुगलियेलमो,” कुर्सी पर से उठती हुई अन्ना बोली, "मैं अब जा रही हूँ, मैं फिर आऊँगी। मुझे टेलीफ़ोन से हाल बताते रहना।"
"अच्छा, अवश्य बतलाऊँगा। क्या मुझसे हाथ बिना मिलाए ही चली जाओगी?"
"अच्छा, तो आओ, मिला लें।"
अन्ना ने हाथ बढ़ा दिया। गुगलियेलमो ने उससे हाथ मिलाया और फिर देर तक पकड़े रहा बिना इरादे के बात क्या है? क्यों अन्ना का हाथ इस तरह काँप रहा है? वह और जोर से दबाता गया, और लगा ( ओह, यह आकस्मिक, उजाड़ और निश्चित बोध था) मानो अन्ना ने अपने को और रोक न पाकर उसे समर्पण कर दिया।
अकेले में वह चकित और भीत हो गया कि कैसे उसने ये सब बातें कह डालीं, और कैसे यह सब सोच भी डाला। उसे लगा मानो, सत्य उसके सामने खड़ा है और पूछ रहा है- "क्या तुम समझ नहीं पा रहे हो?"
नहीं, वह नहीं समझा। उसने अपने को अपनी माता के अन्धेपन में चलित होने दिया था और इसलिए अपने को गड्ढे के किनारे पाया था, जिसमें लाचार होकर वह गिर ही पड़ा। अब उसने अतीत को उसकी सच्ची रोशनी में देखा। जब वह अक्सर ही अन्ना से मिलने के लिए जाता था, तब उसका चेहरा उज्ज्वल और प्रसन्न दीखता था; जब उसकी मुलाकातें कम और अर्से के बाद होती थीं, तब वह दुखी दीखती थी। फिर वह बीमार हो गई; माँ-बाप से लड़ाई-झगड़ा मचा, क्योंकि वह किसी से भी शादी नहीं करना चाहती थी... पर उसने क्यों गुगलियेलमो से कुछ भी नहीं कहा? क्या यह गर्व था? या वह तिरस्कार और इनकारी की शंका करती थी? नहीं, अन्ना भी कुछ नहीं समझ सकी थी।
और अब? यह आकस्मिक आविष्कार ?... और उसका शरमाना और उसके हाथ का काँपना... अन्ना उससे अभी तक प्रेम करती होगी...'नहीं' उसने अपने मन में कहा, 'यह सम्भव नहीं है।' पर उसका हृदय दृढ़ता से अनुभव करके कि अभी तक वह उससे प्रेम करती है, काँपने लगा नहीं, इसमें सन्देह नहीं है ....
एक गहरे कष्ट की चीख ने उसकी चिन्ता की रेलगाड़ी को रोक दिया, और वह उसे वास्तविक जीवन में लौटा लाई। उसका एक बच्चा, उसके ही मांस का जन्म ले रहा है और भविष्य में उसी का जीवन कायम रखेगा। और वह अपने अन्तर्हित सुख के बारे में ही सोच रहा है, जबकि एक नई खुशी, उसका पुत्र, उसकी बगल में है। फिर भी अन्ना के विचार से उसका चित्त भरा रहा और उसे लगा कि ये दोनों खुशियाँ - एक असम्भव और मृत और दूसरी अति निकट में निश्चित-सी मिल-जुलकर एक-दूसरे को पूर्ण करेंगी.....
डॉक्टर उसके सामने आ खड़ा हुआ पीला और घबराया हुआ।
गुगलियेलमो उछल पड़ा। बोला, "क्यों-क्यों? क्या बात हो गई?"
“हाँ,” डॉक्टर ने बहुत गम्भीरता से कहा, “तुम्हारी पत्नी बहुत ख़तरे में है। बच्चा पेट में फँस गया है, फिर भी अभी तक आशा है; पर हम लोगों को चीर-फाड़ की सहायता लेनी ही पड़ेगी। मैं तुमसे कहने के लिए आया हूँ।"
गुलियेलमो लड़खड़ाने लगा। सोचा, 'आह, बेचारी अपने जीवन को जोखिम में डाल कर घोर कष्ट और पीड़ा सहन कर रही है।'
"और तुमसे एक बात पूछ रहा हूँ," डॉक्टर कहता गया, "तुम्हारा हृदय कहेगा कि क्या करना अच्छा होगा। अगर मैं दो में से एक बचा सकूँ, तो किसे? माँ को या बच्चे को ?"
"क्या ?" वह चिल्लाया। वह मृत की तरह पीला दीख रहा था ।
"हाँ, मामला कुछ ऐसा ही हो पड़ा है। विज्ञान उनमें से एक को ही बचा सकता है। यह मैं तुम से वादा कर सकता हूँ; पर शायद दोनों को नहीं!...तुम अच्छी तरह से सोच कर बताओ..."
एक चमक में गुगलियेलमो ने अपने सामने अपना नया जीवन देखा। वह जीवन जो भाग्य उसे देने का वायदा कर रहा है और सामने रखकर प्रलोभित कर रहा है। एक पुत्र; उसके जीवन का लक्ष्य है। अन्ना और सुख सब कुछ भिन्न हो जाएगा सब कुछ फिर नए सिरे से शुरू हो जाएगा। धुँधले और सुस्त सुख के बदले में, जैसी कि उसने अक्सर कामना की है, उसका सुख उज्ज्वल और जलता हुआ होगा ।... अगर आइरीन मर जाए, तो वह अन्ना से विवाह करेगा।... बस उसे हाथ बढ़ा भर देने की और लेने भर की देर है। कौन उस पर दोष लगा सकेगा? क्या वह जीवन के क़ानून और आवश्यकता के अनुसार कार्य नहीं कर रहा है?
“परमात्मा! परमात्मा!” गुगलियेलमो कराह पड़ा।
'तुम अपनी पत्नी से प्रेम नहीं करते हो, उसका हृदय कहता गया, 'और ऐसी स्त्री के साथ, जिसकी क़ीमत तुम्हारे निकट कुछ भी नहीं है। अकेले और बिना बच्चों के तुम्हें रहना है, जरा सोचो कि अन्ना को फिर दूसरी बार तुम किस तरह खो रहे हो । अब सब तुम्हारा ही दोष है।...कह दो... बस, दो ही शब्द तो हैं...क्या इन सभी से यह मुश्किल लग रहा है? अरे कह दो, बेवकूफ़ कह दो, बच्चे को !'
उसने अपना पीला मुख ऊपर को उठाया और कहा, "माँ को बचाओ !"