पुरखों की पूजा : सिक्किम की लोक-कथा

Purkhon Ki Pooja : Lok-Katha (Sikkim)

दुधिया तालाब में मंगर राजा और रानी का राज्याभिषेक हुआ था, जो पूर्वी हिमालय के सुमेरु पर्वत के पास पड़ता है। अपने उस विशिष्ट दिन राजा ने रुद्राक्ष की माला और रानी ने अपनी गरिमा की रक्षा करते हुए पुआल की माला पहनी। राजा धनुष-बाण चलाने में बड़ा अभ्यस्त था। उन्हें शिकार करना अच्छा लगता था। उनके चार बेटे थे। अपनी रानी और बच्चों के संग राजा समृद्ध, खुशहाल जिंदगी जी रहे थे।

एक दिन राजा दरबार से शिकार करने निकल गए। शिकार की खोज में वे घने जंगल के भीतर प्रवेश करते गए, जिसके कारण वापसी में वे रास्ता भटक गए। रास्ता नहीं मिलने के कारण वे रात गुजारने के लिए पर्वत के नजदीक गए। पर वहीं रहते हुए राजा को काफी समय बीत गया। ऐसे ही 12 साल निकल गए। उनके परिवार जन ने राजा को बहुत खोजा। जब कहीं से भी राजा की कोई सूचना नहीं मिली तो अंत में उनके न होने की शंका जताई गई, जिसके कारण उनका अंतिम क्रिया-कर्म किया गया। राजा का क्रिया-कर्म करने के पश्चात् उन्हें इस बात की चिंता हुई कि अब राज-काज को सँभालेगा कौन? इस चर्चा-परिचर्चा में यह तय हुआ कि जो अपने पिता के समान आकाश से धरती पर तारा तोड़ लाएगा, वह भविष्य का राजा बनेगा। इस प्रक्रिया में छोटे राजकुमार ने तारा तोड़ने के लिए लोहे के तीर को आसमान की ओर फेंका। राजा ने अनुभव किया, लोग तीर फेंक रहे हैं। उन्होंने भी उसी दिशा में सोने का तीर फेंका। राजा के तीर ने बेटे के तीर को तोड़कर रख दिया और वह टूटा तीर जाकर राजकुमार की गोद में गिर पड़ा। सोने के तीर को देखकर सब राजकुमार दौड़ने लगे। कोई बेटा भेड़ों के घर में घुस गए, कोई घबराकर बकरे के घर में और कोई बेटा अन्य देश भाग गया।

एक दिन राजा ने पर्वत के सामने हनुमान को देखा। उसने अपने को एक छोटे से कीड़े का रूप दिया और उसकी पूँछ से लटककर उस पर्वत से निकलने का निर्णय लिया। बहुत लंबे समय तक पूँछ पकड़ न सकने के कारण उसका हाथ फिसल गया, जिसके कारण राजा गिरकर कुएँ में घुस गया। नीचे गिरने के बाद उन्होंने पुनः मानव रूप ले लिया।

एक दिन पानी लेने रानी साहिबा स्वयं कुएँ पर आईं। वे जितनी बार कोशिश करतीं, उतनी ही बार मैला पानी उनके हाथ आता। उन्होंने सोचा, ‘पानी के भीतर छोटी मछली के कारण पानी मटमैला हो रहा होगा।’ ऐसा सोचकर वह कपड़ों की गठरी से पानी छानने लगी। कुछ समय बाद उन्हें पानी के भीतर छिपे राजा का अक्स दिखाई दिया। रानी को देखकर राजा भी बाहर आ गया। राजा के लौटने की खबर से सभी राजकुमार लौट आए और बहुत खुशी के साथ रहने लगे। मंगर जातियों का विश्वास है कि इन्हीं चार बेटों से उत्पन्न संतान ही मंगर जाति है। इन्हीं को अपना वंशज मानकर वे उनकी पूजा करते हैं। मंगसिर या वैशाख पूर्णिमा के दिन विभिन्न गोत्रवाले मंगर अपने कुलदेवता और देवियों की पूजा-अर्चना करते हैं तथा उन्हें प्रसन्न करने के लिए उस दिन वे भेड़ और सूअर की बलि चढ़ाते हैं। मंगर लोगों में यह विश्वास है कि उनके पूर्वज कुलदेवता के रूप में होते हैं, जो प्रेतात्मा और बुरी दृष्टि से उनकी रक्षा करते हैं। इस तरह मंगर लोगों में पुरखों को पूजने की प्रथा है।

(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)

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