पुनर्मिलन : जोहन पीटर हेवेल

(जोहन पीटर हेवेल (1760-1826) जर्मन लेखकों में अपनी छोटी-छोटी कहानियों के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। प्रस्तुत कहानी प्रेम की एक अखिण्डत प्यास और एक ऐसे विश्वास की कहानी है, जिसके सहारे आदमी अपनी तमाम भावी सम्भावनाओं के प्रति समर्पित हो जाता है।)

कोई पचास बरसों से भी पहले की बात है कि फालुन में - जो कि स्वीडन में है - एक युवक खनिक ने अपनी प्रेमिका का चुम्बन लिया और उससे बोला, “सेण्ट लूसी के दिन धर्म-गुरु हमारे प्यार को आशीर्वाद देंगे। तब हम पति-पत्नी बन जाएँगे - और तब हम अपना एक छोटा-सा घोंसला बनाकर उसमें रहेंगे।”

“और वहाँ प्यार और शान्ति रहेगी,” बड़ी प्यारी मुसकराहट के साथ उसकी खूबसूरत प्रेमिका ने कहा, “क्योंकि तुम्हीं मेरे सबकुछ हो और तुम्हारे बगैर कहीं भी रहने से अच्छा होगा कि मैं कब्र में जा रहूँ।”

लेकिन सेण्ट लूसी दिवस आने के पहले ही, जब कि पादरी ने चर्च में दूसरी बार आवाज दी और पूछा कि “क्या कोई ऐसा आदमी है, जो बता सके कि इन दोनों को विवाह-बन्धन में क्यों नहीं बाँध दिया जाना चाहिए”...मौत खुद बोल उठी। यह सही है कि अगले दिन खनिक प्रेमिका के घर के सामने से गुजरा था, उसने काले वस्त्र पहन रखे थे (खनिक हमेशा कफन जैसे वस्त्र ही पहनते हैं), और उसने उसकी खिड़की पर दस्तक देकर, हमेशा की तरह ही उसे नमस्कार कहा था, लेकिन ‘शुभ रात्रि’ कहने के लिए वह फिर लौटकर नहीं आया। वह खान से लौटा ही नहीं।

उस सुबह, शादी के मुबारक दिन अपने प्रेमी को उपहार में देने के लिए वह लाल बॉर्डरवाला काला रूमाल तैयार कर रही थी। पर चूँकि वह कभी लौटकर नहीं आया। इसलिए उसने उस रूमाल को एक तरफ डाल दिया और रोने लगी।

फिर बाद के सालों में पुर्तगाल में, लिजबन नगर को भूकम्प ने तबाह कर दिया, सप्त वर्षीय युद्ध खत्म हो गया, और सम्राट फ्रांसिस प्रथम की मृत्यु हो गयी, और पोलैण्ड का विभाजन हो गया और सम्राज्ञी मारिया टेरीसा भी परलोक सिधार गयी स्ट्रूऐंसी का सर कलम कर दिया गया, अमरीका आजाद हो गया और फ्रांस और स्पेन की संयुक्त शक्ति भी जिब्राल्टर पर काबू पाने में असफल सिद्ध हुई। तुर्कों ने जनरल स्टीन को हंगरी की बेटर केव में बन्द कर दिया, अँग्रेजों ने कोपनहागेन पर बम बरसाये और किसानों ने फसलें बोयीं और काटीं, चक्की वाला अनाज पीसता रहा, लुहार अपने हथौड़े चलाते रहे और खनिक धरती के भीतर बने अपने ‘कारखानों’ से कच्ची धातुएँ निकालते रहे।

और जब 1809 में - जून में, सेण्ट जॉन दिवस के आसपास-फालुन के खनिक, धरती में कोई सौ फीट नीचे रास्ता खोदने की तैयारी कर रहे थे, तो खुदाई में उन्हें एक युवक का शरीर मिल गया; शरीर आयरन सल्फेट से लिथड़ा हुआ था, लेकिन जहाँ तक बाकी बातों का सम्बन्ध है, वह बिलकुल सुरक्षित और पूरा था - यहाँ तक कि कोई भी व्यक्ति उसे देखकर पहचान सकता था और उसकी उम्र बता सकता था। ऐसा लगता था, जैसे वह घण्टा पहले ही मरा हो, या काम करते-करते थककर सो गया हो।

उसे ऊपर ले आया गया और चूँकि उसके माँ-बाप, दोस्त और परिचित अरसा पहले मर चुके थे, इसलिए उस ‘सोते हुए’ युवक की शिनाख्त कोई भी व्यक्ति नहीं कर पाया। किसी को उसके साथ हुई त्रासदी का भी ज्ञान नहीं था-पर जब उस युवक की प्रेमिका वहाँ आयी, तो उसने बताया कि एक दिन वह अपनी पाली पर गया था और फिर कभी लौटकर नहीं आया था।

सफेद बाल और झुर्रियोंवाला चेहरा लिये वह एक बैसाखी के सहारे वहाँ आयी और उसने अपने मंगेतर को पहचान लिया और दुख की अपेक्षा मिलन-सुख से भर कर वह अपने प्रेमी के शरीर में डूब गयी। फिर जब काफी देर बाद वह भावुकता के उस बोझ के नीचे से उबरकर आयी, तो बोली, “यह मेरा मंगेतर प्रेमी है, जिसके लिए मैंने पचास बरसों तक शोक मनाया है, और जिसे मेरे मरने के पहले एक बार देखने का मौका फिर भगवान ने मुझे दिया है।”

आस-पास खड़े सभी लोगों का हृदय दुख से भर उठा, और वे यह देखकर रो उठे कि प्रेमिका अब कितनी बूढ़ी हो चुकी है और उसका जीवन बिखर चुका है, जबकि उसका प्रेमी अब भी जवानी के सौन्दर्य से भरपूर है, और कि कैसे पचास साल बाद भी युवा प्रणय की लपट प्रेमिका के हृदय में पुनः जाग्रत हो उठी है - प्रेमी ने मुसकराने के लिए अपने होठ तक नहीं हिलाये। वह आखिरकार उसे अपने छोटे-से कमरे तक उठवाकर ले गयी - ठीक वैसा ही, जैसे वह अकेली ही उसकी कुछ लगती थी और उस अकेली ही का उस पर अधिकार था।

अगले दिन, जब कब्र तैयार हो गयी और उसे ले जाने के लिए खनिक आये, तो प्रेमिका ने एक छोटा-सा सन्दूक खोला, लाल बॉर्डरवाले काले रूमाल को उसने प्रेमी के गले में बाँधा और खुद रविवार की सबसे अच्छी पोशाक पहनकर वह साथ चल दी, जैसे वह शोक का दिन न हो, उसकी शादी का दिन हो।

तब, चर्च के पिछवाड़े उसे उसकी कब्र में लिटा दिया गया, वह बोली, “इस शीतल सोहाग-शैया पर सोते रहो-जब तक चाहूँ मेरी प्रार्थना है, कि समय तुम्हें असह्य न लगे! मुझे अभी कुछ चीजें पूरी करनी हैं, मैं फिर जल्दी ही आऊँगी। जल्दी ही दिन फिर जाएगा। धरती ने जो चीज एक बार दिखा दी है, दूसरी बार भी उसे दिखाने से वह इनकार नहीं करेगी,” और जाने के लिए घूम गयी और फिर आखिरी-आखिरी बार उसने पीछे मुड़कर देख लिया।

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