घमंडी राजकुमारी : आयरिश लोक-कथा
Proud Princess : Irish Folktale
बहुत पुरानी बात है कि आयरलैंड में किसी जगह एक राजा राज करता था। उसकी एक बेटी थी जो सुन्दर तो बहुत थी पर साथ में घमंडी भी बहुत थी।
जब वह शादी के लायक हुई तो राजा ने कई राजकुमारों को बुलवाया ताकि वह किसी राजकुमार को पसन्द कर ले तो उससे उस की शादी कर दी जाये पर वह सबमें कोई न कोई बुराई बता देती थी और उससे शादी करने से इनकार कर देती थी।
एक बार राजा ने कुछ राजकुमारों को बुलाया और अपनी बेटी से उनमें से एक को चुनने के लिये कहा। परन्तु इस बार भी वैसा ही हुआ।
उसने हर राजकुमार में कोई न कोई खोट निकाल दिया और शादी से इनकार कर दिया। किसी को लम्बा ताड़ बताया तो किसी को छोटा बौना। किसी को मोटा बताया तो किसी को छड़ी। अन्त में वह एक सुन्दर से राजकुमार के पास आ कर खड़ी हुई तो उसमें वह कोई खोट न निकाल सकी। वह कुछ परेशान सी हो गयी। अब वह क्या करे। तभी उसको उस राजकुमार की ठोड़ी के नीचे एक बाल दिखायी दे गया।
बस फिर क्या था उसको मौका मिल गया, वह बोली — “मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती ओ दढ़ियल।” और चली गयी।
यह सब सुन कर राजा बहुत परेशान हुआ। उसने अपनी बेटी से कहा — “बेटी तुम हर किसी में ऐब निकालती हो अब तुम्हारी सजा यही है कि कल सुबह जो भी पहला भिखारी या गाने वाला मेरे दरवाजे पर आयेगा मैं तुम्हारी शादी उसी से कर दूँगा।”
अगले दिन सुबह ही एक भिखारी फटे कपड़े पहने, कन्धों तक बाल बढ़ाये और लम्बी सी दाढ़ी रखे राजा के दरवाजे पर आ कर गीत गाने लगा।
जब उसका गाना खत्म हो गया तब दरबार का दरवाजा खोला गया और उसको अन्दर बुला कर उससे राजकुमारी की शादी कर दी गयी। राजकुमारी बहुत रोयी चिल्लायी पर राजा ने उसकी एक न सुनी।
शादी के बाद राजा ने उस भिखारी को सोने की पाँच मुहरें दीं और कहा — “ये पाँच मुहरें तुम्हारे लिये हैं। अपनी पत्नी को लो और मेरी नजरों से दूर हो जाओ। और फिर कभी अपनी और अपनी पत्नी की सूरत मुझे मत दिखाना।”
वह भिखारी वह पाँच मुहरें और अपनी पत्नी को ले कर वहाँ से चला गया। राजकुमारी इस सबसे बहुत दुखी थी पर कुछ कर नहीं सकती थी। केवल एक ही चीज़ उसको इस समय तसल्ली दे रही थी – वे थे उसके पति के प्यार भरे शब्द और उसका नम्र बर्ताव।
चलते चलते वे एक जंगल में पहुँचे। राजकुमारी ने पूछा — “यह जंगल किसका है?”
उसका पति बोला — “यह जंगल उसी राजकुमार का है जिसको कल तुमने दढ़ियल कहा था।”
यही जवाब उसने रास्ते में पड़े मैदानों, खेतों और अन्त में आने वाले एक शहर के बारे में भी दिया।
यह सुन कर राजकुमारी सोचने लगी कि “मैं भी कितनी बेवकूफ थी कि मैंने उस अच्छे खासे राजकुमार से शादी नहीं की। केवल उसकी दाढ़ी पर उगे एक बाल की वजह से ही मैंने उससे शादी करने से मना कर दिया।”
अन्त में वे एक छोटे से घर के सामने आ पहुँचे तो राजकुमारी ने पूछा — “यह तुम मुझे कहाँ ले आये हो?”
पति बोला — “पहले यह घर मेरा था आज से यह घर तुम्हारा है।”
राजकुमारी कुछ रुआँसी सी हो गयी पर वह बहुत थकी हुई और भूखी थी सो वह उसके साथ उस घर के अन्दर चली गयी। पर उस घर में न तो खाने की मेज सजी हुई थी और न ही कहीं आग ही जल रही थी। आग जलाने और फिर खाना बनाने में उसको पति की सहायता करनी पड़ी।
फिर दोनों ने मिल कर घर साफ किया, खाना खाया और सो गये। राजकुमारी थकी थी सो वह तो बिना शाही पलंग के ही जैसे घोड़े बेच कर सो गयी।
अगले दिन उसने अपनी नयी पत्नी को सूती कपड़े की एक पोशाक ला कर दी। जब उसका घर का काम खत्म हो गया तो पति ने उसको कुछ जंगली घास ला कर दी और उसको टोकरियाँ बुनना बताया।
टोकरियाँ बनाते समय उस घास की नोकें राजकुमारी के हाथ में गड़ रहीं थीं जिनसे खून निकल रहा था। वह दर्द से रो पड़ी। इसके बाद उसके पति ने उससे अपने कुछ कपड़े मरम्मत करने के लिये कहा तो सुई उसके हाथों में चुभने लगी और उनसे भी खून निकलने लगा। वह फिर रो पड़ी।
भिखारी पति से राजकुमारी का रोना नहीं देखा गया तो उसने उसके लिये कुछ मिट्टी के बर्तन ला दिये और उनको बाजार में बेच आने के लिये कहा। यह तो उसके लिये बहुत ही मुश्किल काम था परन्तु क्या करती।
वह उनको ले कर बाजार गयी। वह वहाँ खड़ी इतनी सुन्दर और उदास लग रही थी कि दोपहर से पहले ही उसके सारे बर्तन बिक गये। उसके पति को इस बात से बड़ी खुशी हुई।
पति ने उसको अगले दिन बर्तन बेचने के लिये फिर बाजार भेजा। पर लगता था कि वह दिन उसके लिये अच्छा नहीं था। एक शराबी उस दिन बाजार में आया और उसके सारे बर्तन तोड़ कर चला गया।
राजकुमारी रोती हुई घर पहुँची तो वह भिखारी उसकी कहानी सुन कर बहुत दुखी हुआ और बोला — “तुम इनमें से किसी काम के लायक नहीं हो। मैं ऐसा करता हूँ कि मैं यहाँ के राजा के रसोइये को जानता हूँ तुमको मैं उससे कह कर शाही रसोई में काम दिलवा देता हूँ।”
बेचारी राजकुमारी एक बार फिर शर्म से पानी पानी हो गयी पर वह क्या करती वह तो राजकुमारी थी उसको तो यह सब आता नहीं था।
पति ने उसको रसोइये से कह कर उसको शाही रसोई में काम दिलवा दिया था। वहाँ उसको काफी काम दिया जाता था। काम खत्म कर के वह रात को घर चली जाती थी। जाते समय उसकी पोशाक की दोनों जेबें बची खुची खाने की चीज़ों से भरी रहतीं।
एक हफ्ते बाद उसने देखा कि रसोई में खूब हलचल मची हुई है। पूछने पर पता चला कि उस दिन राजा की शादी हो रही थी पर आश्चर्य की बात यह थी कि दुलहिन का पता ही नहीं था कि वह है कौन।
रोज की तरह रसोइये ने उस दिन भी उसकी जेबें खाने की चीज़ों से भर दीं और बोला — “चलो, तुम्हारे जाने से पहले एक बार राजा के कमरे को देख आयें कि वहाँ क्या हो रहा है।”
वे दरवाजे के पास आ कर कमरे में झाँकने को ही थे कि उसमें से राजा निकला और वह कोई दूसरा राजा नहीं बल्कि वही दढ़ियल राजा खुद ही था जिसको राजकुमारी ने पहले शादी करने से मना कर दिया था।
राजा रसोइये से बोला — “तुम्हारी इस सुन्दर नौकरानी को मेरे कमरे में झाँकने की कोशिश करने की सजा तो भुगतनी ही पड़ेगी। इसको मेरे साथ नाचना पड़ेगा।”
इससे पहले कि राजकुमारी हाँ या न कहती दढ़ियल राजा ने उसका हाथ पकड़ा और उसे कमरे के अन्दर ले गया। साजिन्दों ने उनके नाच के साथ साज बजाने शुरू किये और दोनों उनकी धुन पर नाचने लगे।
राजा को उसके साथ नाचते कुछ पल भी नहीं बीते थे कि नाचते में उसकी जेबों से खाने का सामान निकल कर नीचे फर्श पर गिर गया। वहाँ बैठे हर आदमी के मुँह से एक चीख सी निकल गयी।
राजकुमारी तो यह सब देख कर शर्म से पानी पानी हो गयी और अपना हाथ छुड़ा कर दरवाजे की तरफ भागी पर राजा ने उसको तुरन्त ही पकड़ लिया और उसे बड़े कमरे के पीछे वाले कमरे में ले गया और बोला — “प्रिये, क्या तुम मुझे नहीं जानतीं? मैं वही दढ़ियल राजा हूँ जिससे तुमने कुछ दिन पहले शादी करने से इनकार कर दिया था।
और मैं ही तुम्हारा पति भी हूँ जो तुमको भिखारी का वेश रख कर तुमसे शादी कर लाया। और वे मेरे ही आदमी थे जो पहले दिन तुम्हारे सारे मिट्टी के बर्तन खरीद कर ले गये। और मैं ही वह शराबी हूँ जिसने बाजार में तुम्हारे मिट्टी के बर्तन तोड़ दिये थे। जब तुम्हारे पिता ने तुम्हारी शादी मुझसे की थी वह मुझे अच्छी तरह जानते थे। और हम लोगों ने यह सब नाटक मिल कर केवल तुम्हारा घमंड दूर करने के लिये खेला था।”
राजकुमारी के दिल में शर्म, डर और खुशी सभी विचार एक साथ आ रहे थे पर शायद पति के लिये प्रेम पहली बार इन सबसे ऊपर था क्योंकि यह सब सुन कर वह राजा के सीने पर अपना सिर रख कर बच्चों की तरह रो पड़ी और बोली “मुझे माफ कर दो दढ़ियल राजा।” राजा ने उसको धीरज बँधाया और उसको अपनी दासियों को सौंप दिया।
दासियाँ उसको एक अलग कमरे में ले गयीं और कुछ देर बाद ही उसको सजा कर ले आयीं। सब लोग बैठे यही सोच रहे थे कि रसोई में काम करने वाली इस लड़की का अब क्या हाल होगा। परन्तु उन्होंने जब उसी लड़की को राजा के साथ रानी के रूप में सजे हुए आते देखा तो वे भौंचक्के से रह गये।
अब तक राजकुमारी के माता पिता भी वहीं आ गये थे। दोनों की शादी हो गयी और सारे महल में खुशी की लहर दौड़ गयी।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)