गरुड़ों का वायदा : यूरोप की लोक-कथा

Promise of Eagles : European Folktale

बहुत ज़ोर की ठंड पड़ रही थी। ऐसी सरदी में कोई भी जीव पहाड़ों पर नहीं रह सकता था। सभी चट्टानों और पेड़ों पर घने कोहरे की परत जमी पड़ी थी। इसलिये पहाड़ों पर रहने वाले सभी जानवर, जंगली बिल्ला, भालू आदि पहाड़ों से नीचे आ गये थे।

इन्हीं जानवरों में एक मादा गरुड़ भी थी जो घाटी में खरगोशों के पास मदद माँगने आ पहुँची। उसने खरगोशों के घर के पास खड़े हो कर पूछा — “प्यारे खरगोश भाइयों, बाहर बहुत सरदी है, क्या मैं अन्दर आ सकती हूँ?”

सबसे बूढ़े खरगोश ने अपना सिर बाहर निकाला तो सामने एक अजनबी को खड़ा देखा। उसने गरुड़ को पहले कभी नहीं देखा था। वह बोला — “ओ अजनबी, हम तुमको इस ठंड से छुटकारा तो दिला सकते हैं अगर तुम यह वायदा करो कि तुम हमें कभी कोई नुकसान नहीं पहुँचाओगे।”

मादा गरुड़ ने कसम खायी कि वह हमेशा उनके प्रति वफादार रहेगी और उनको कभी कोई नुकसान नहीं पहुँचायेगी। सो खरगोश ने उसको अन्दर बुला लिया और उस गरुड़ ने सारी सरदियाँ आराम से खरगोश के घर में गुजारीं।

उसी समय एक नर गरुड़ भी पहाड़ों से उतर कर नीचे आया और उसने मुर्गियों के घर के दरवाजे पर खड़े हो कर कहा — “प्यारी मुर्गियों, बाहर बहुत सरदी है, क्या मैं सरदी से बचने के लिये अन्दर आ सकता हूँ?”

सबसे बड़े मुर्गे ने अपना सिर बाहर निकाला और एक अजनबी को खड़ा देखा और क्योंकि उसने भी गरुड़ को पहले कभी नहीं देखा था बोला — “ओ अजनबी, हम तुमको इस ठंड से छुटकारा तो दिला सकते हैं अगर तुम यह वायदा करो कि तुम हमें कभी कोई नुकसान नहीं पहुँचाओगे।”

नर गरुड़ ने भी इस बात की कसम खायी कि वह हमेशा उनके प्रति वफादार रहेगा और वह उनको कभी भी कोई भी नुकसान नहीं पहुँचायेगा। सो उस मुर्गे ने उसको अन्दर बुला लिया और उस नर गरुड़ ने भी सारी सरदियाँ आराम से उन मुर्गों के घर में गुजारीं। कुछ समय बाद सरदियाँ खत्म हो गयीं और वसन्त आ गया और सूरज फिर सोने की तरह चमकने लगा तो नर गरुड़ उड़ गया।

सभी मुर्गे मुर्गियाँ उसके पंखों की फड़फड़ाहट से डर गये। मगर नर गरुड़ ने ऊपर से ही कहा — “प्यारी मुर्गियों, मैं तुम्हारे इस उपकार को कभी नहीं भूलूँगा और अपने वायदे के अनुसार हमेशा ही तुम्हारा दोस्त रहूँगा।” और तब से सच में ही वह उनका दोस्त रहा। इस बीच में उसने केवल खरगोशों का शिकार किया।

उसी समय जब वसन्त आया और सूरज फिर सोने की तरह चमकने लगा तो मादा गरुड़ भी उड़ गयी। सारे खरगोश उसके पंखों की फड़फड़ाहट से डर गये मगर मादा गरुड़ ने भी ऊपर से ही कहा — “प्यारे खरगोश भाइयो, मैं तुम्हारे इस उपकार को कभी नहीं भूलूँगी और अपने वायदे के अनुसार हमेशा ही तुम्हारी दोस्त बनी रहूँगी।”

और तब से सच में ही वह उनकी दोस्त बनी रही। इस बीच में उसने केवल मुर्गियों का ही शिकार किया।

अब मादा गरुड़ बहुत सुन्दर हो गयी थी। पहाड़ के सारे नर गरुड़ उससे शादी करने को इच्छुक थे। वे उसके लिये स्वादिष्ट मुर्गियों का माँस लाते थे परन्तु वह तो मुर्गियाँ खा खा कर ऊब चुकी थी इसलिये उसने भूख हड़ताल कर दी और पहाड़ की और ज़्यादा ऊँची चोटियों पर चली गयी।

और जब इस कहानी के नायक नर गरुड़ को उस मादा गरुड़ के बारे में पता चला तो वह उसको खुश करने के लिये खरगोश ले आया।

आश्चर्य, उसकी खोयी हुई भूख वापस आ गयी। उसने तुरन्त ही उससे खरगोश ले लिया और दोनों ने मिल कर अपना घर बसाया और करीब करीब एक सप्ताह तक वह नर गरुड़ अपनी पत्नी को स्वादिष्ट खरगोश खिलाता रहा,।

हफ्ते भर तक मादा गरुड़ ने देखा कि उसका पति बेमन से खाना खाता था तो एक दिन उसने अपने पति से पूछा — ‘प्रिये, क्या बात है, क्या तुम्हें ठंड लग रही है? ऐसा करते हैं कि आज खाना लाने मैं जाती हूँ और तुम घर में आराम करो।”

ऐसा कह कर मादा गरुड़ तुरन्त ही घाटी से एक मुर्गीमार कर ले आयी जिसे उसने और उसके पति दोनों ने बड़े प्रेम से खाया क्योंकि वह खुद भी कई दिनों से खरगोश खा खा कर ऊब चुकी थी।

अब क्या था घर में कभी खरगोश आता तो कभी मुर्गी। दोनों ने इस तरह का खाना पहले कभी नहीं खाया था। वे लोग खाने का पूरा आनन्द ले रहे थे।

इस तरह न तो मुर्गियाँ ही शिकायत कर सकीं कि नर गरुड़ ने अपना वायदा नहीं निभाया और न खरगोश ही कुछ कह सके कि मादा गरुड़ ने अपना वायदा नहीं निभाया। दोनों गरुड़ों ने अपने अपने वायदे को निभाया।

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