प्रोफेसर शंकू और कोचाबम्बा की गुफा (बांग्ला कहानी) : सत्यजित राय

Professor Shanku Aur Cochabamba Ki Gufa (Bangla Story in Hindi) : Satyajit Ray

7 अगस्त

आज मेरे पुराने मित्र, होनोलूलू के प्रोफेसर डम्बार्टन की चिट्ठी आई है। उन्होंने लिखा है :
प्रिय शैंक्स,

लिफाफे पर चिपके डाक-टिकट से ही समझ जाओगे कि यह खत बोलिविया से लिख रहा हूँ। प्राकृतिक दुर्घटना से भी सभ्य समाज का उपकार हो सकता है, उसका एक गजब का प्रमाण मुझे यहाँ आकर मिला है। यह चिट्ठी तुम्हें वही बताने के लिए है।

पिछले जून में बोलिविया में जो भूकम्प आया था, उसकी खबर तुम्हारे गिरिडिह तक भी जरूर पहुँची होगी। उस भूकम्प से यहाँ के दूसरे सबसे बड़े शहर कोचाबम्बा से लगभग एक सौ मील की दूरी पर एक विशाल पहाड का एक हिस्सा फटकर दो हिस्सों में बँट जाने से लोगों के जाने-आने का एक रास्ता बन गया है। इस पहाड़ के पीछे की ओर इससे पहले कभी किसी आदमी का पाँव नहीं पड़ा (बोलिविया का अधिकांश हिस्सा ही अभी भूतात्विकों का अजाना है, यह तुम्हें मालूम है)। खैर! इस पहाड़ के आसपास के एक गाँव के कुछ लड़के लुकाछिपी खेलते हुए इस रास्ते से काफी दूर निकल गए। उनमें से एक लड़का छिपने के लिए पहाड़ की एक गुफा में घुसा। घुसते ही उसने अन्दर ही दीवारों पर रंगीन तसवीरें आँकी हुई देखीं।

पिछले शनिवार को पेरु की एक कान्फ्रेन्स के लिए जाते हुए मैं भूकम्प से हुए नतीजे को अपनी आँखों देख जाने की नीयत से बोलिविया आया। आने के दूसरे ही दिन वहीं के भूतात्विक प्रोफेसर कार्डोवा से मैंने उस गुफा के बारे में सुना और उसी दिन जाकर तसवीरों को देख आया। मेरा ख्याल है, तुम्हें भी एक बार यहाँ आना चाहिए। तसवीरें देखने लायक हैं। कार्डोवा से मेरा मतभेद हो रहा है। तुम्हारा समर्थन पाने से (जो कि जरूर ही पाऊँगा!) मुझे कुछ बल मिलेगा। चले लाओ। पेरु में मैंने कह दिया है तुम्हारे नाम से कान्फ्रेन्स का आमन्त्रण जा रहा है। तुम्हारे जाने-आने का खर्च वही लोग देंगे। आशा है, सानन्द हो। बस!

-ह्यूगो डम्बार्टन

मुझे दो कारण से जाने का लोभ हो रहा है। पहला तो कि दक्षिण अमरीका का यह इलाका मेरा देखा हुआ नहीं है। दूसरा कि स्पेन की मशहूर अलतामिरा गुफा की तसवीरें देखने के बाद से ही मेरे मन में आदिम मनुष्य के बारे में तरह-तरह के प्रश्न जग गए हैं। पचास हजार साल पहले के आदमी-जिनसे बन्दरों का बड़ा मामूली-सा ही फर्क है उनके हाथों से ऐसी तसवीरें आँकी कैसे गईं, यह मेरी समझ में अभी तक नहीं आया। एक-एक तसवीर को देखकर तो ऐसा लगता है कि आज के कलाकार भी नहीं आँक सकते, गोकि ये लोग तो सीधे होकर चल भी नहीं सकते थे!

अगर बोलिविया जाना ही पड़े, तो अपनी नई बनाई हुई ‘ऐनिस्थियम' पिस्तौल को साथ लेता जाऊँगा। क्योंकि जिस जगह पर इससे पहले इंसान के कदम ही नहीं पड़े, वहाँ बहुत तरह की अनजानी विपत्तियाँ छिपी रह सकती हैं। ऐनिस्थियम पिस्तौल के घोड़े को दबाने से उसमें तीर की भाँति तरल गैस छूटती है, जो कई घंटे के लिए दुश्मन को बेहोश कर दे सकती है।
अब सिर्फ पेरु के आमन्त्रण की प्रतीक्षा है।

18 अगस्त

बोलिविया के कोचाबम्बा शहर से एक सौ तीस मील दूर भूकम्प से निकली हुई गुफा के बाहर बैठकर अपनी डायरी लिख रहा हूँ। दसेक हाथ की दूरी पर नीचे प्रायः समतल पत्थर के ऊपर चित्त लेटा है डम्बार्टन। उसके दोनों हाथ माथे के नीचे पड़े थे और उसने सफेद कपड़े की टोपी सूरज के ताप से बचने के लिए मुँह पर डाली हुई थी।

दिन के चार बजे का समय। दिन की रोशनी फीकी हो आई है। और बीसेक मिनट में सूरज पहाड़ के पीछे उतर जाएगा। एक अस्वाभाविक आदिम सन्नाटा इस जगह को घेरे हुए है। इससे पहले यहाँ आदमी के पाँव नहीं पड़े, यह यहाँ अजीब ढंग से महसूस होता है। मनुष्य से मेरा मतलब सभ्य मनुष्य है, यह कहना नहीं होगा। क्योंकि आदिम मनुष्य कभी यहाँ थे, इसका सबूत तो पास की गुफा में ही है। बोलिविया के भूकम्प की बदौलत धीरे-धीरे दुनिया के लोग इस अनोखी गुफा के बारे में जानेंगे। अलतामिरा की गुफा को मैंने स्वयं देखा है। फ्रांस की लास्वो गुफा की तसवीर किताब में देखी है लेकिन बोलिविया की इस गुफा से उन दोनों की तुलना ही नहीं हो सकती।

पहली बात तो यह कि तसवीरें तादाद में बहुत ज्यादा हैं। गुफा के अन्दर दाखिल होइए, एक फर्श के सिवाय तमाम तसवीर ही तसवीर है। गुफा के प्रवेशद्वार से लगभग सौ गज तक तसवीर हैं। उसके बाद से गुफा एकाएक पतली हो गई है। घुड़ककर आगे बढ़ना पड़ता है। उस तरह से काफी आगे तक जाने के बाद भी हमें तसवीर देखने को नहीं मिली। लगता है, उन्हीं सौ गज के रकबे में तसवीरें हैं। लेकिन चूंकि गुफा चौड़ी है, इसलिए उस एक सौ गज के अन्दर तसवीरों की संख्या अलतामिरा से दस गुनी होगी।

उन तसवीरों में चित्रण के गुण के अलावा भी अवाक् कर देनेवाली बहत-सी बातें हैं। आदिम मनष्य गहा-प्राचीरों में प्रायः शिकार सम्बन्धी तसवीरें ही आँकते हैं। उनमें जो भी जीव-जन्त का चित्र वे बनाते थे. सब उनके शिकार से सम्बन्ध रखनेवाले ही होते थे। इसके सिवाय ऐसी भी तसवीरें मिलती हैं कि आदमी भाले से शिकार कर रहा है। शिकार के चित्र यहाँ भी हैं, पर ऐसे भी चित्र हैं, जिनका शिकार से कोई वास्ता ही नहीं। पसलन, पेड़-पौधे, फूल, चिड़िया, चाँद आदि। समझ में आ ही जाता है कि ये चीजें अच्छी लगी हैं, इसलिए आँकी गई हैं और कोई कारण नहीं है। तसवीरों के बीच-बीच में एक किस्म की गिचपिच लिखावट या नक्शे जैसी चीज नजर आई. जिसका कोई मतलब नहीं निकलता। कुल मिलाकर यह समझ में आता है कि ये लोग कुछ खास किस्म के आदिम मनुष्य थे।

इससे भी आश्चर्य की बात है, इन तसवीरों का रंग। इनके रंगों में वह बहार और चमक है, जो किसी भी प्रागैतिहासिक गुफा के चित्रों में नहीं है। सम्भवतः ये लोग किसी विशेष प्रकार के पक्के रंग का व्यवहार करते थे। संक्षेप में कहें, देखने से यह नहीं लगता कि ये तसवीरें दस-बारह साल से ज्यादा परानी हैं यद्यपि चित्रों के जीव-जन्तु सब फ्रांस या स्पेन जैसे ही प्रागैतिहासिक हैं। आदिम बाइसन, बड़े-बड़े, टेढ़े दाँतवाले बाघ-इन सबकी अनगिनती और अनोखी तसवीरें गुफा में हैं। इनके अलावा एक और ही तरह के जानवर के चित्र हमने देखे, जो हम दोनों को ही बिलकुल नए-से लगे। इसकी गर्दन लम्बी है, नाक पर गैंडे जैसे सींग और तमाम पीठ पर साहिल-जैसे काँटे। मोटी-सी पूँछ भी है, करीब-करीब मगर-जैसी।

मैं दिनभर अपने ‘कैमेरापिड' से गुफा के चित्रों की तसवीर खींचता रहा। यह कैमरा मेरा ही बनाया हुआ है। इससे रंगीन चित्र लिए जाते हैं और लेने के पन्द्रह सेकंड के अन्दर ही प्रिंट होकर निकल आते हैं। होटल में पहँचने पर इन तसवीरों की छानबीन करूँगा।

गुफा से बाहर चारों ओर देखने से साफ समझ में आ जाता है कि इधर आदमी क्यों नहीं आ सके। यहाँ तीन ओर सलेट-पत्थर के पहाड़ खड़े हैं। पहाड़ अजीब तरह का चिकना है, पेड़-पौधे, झाड़ियाँ नहीं के ही बराबर हैं। दूसरी तरफ, यानी उत्तर की ओर घोर घना जंगल है। हम जहाँ पर बैठे हैं, वहाँ से जंगल का फासला आधा मील तो होगा ही। जंगल के पीछे दूर पर ऐंडीज पर्वतमाला दिखाई पड़ती है, जिसकी चोटी बर्फ से ढंकी है। गुफा के आसपास पेड़-पौधे खास कुछ नहीं हैं, पर पत्थर की चट्टानें चारों ओर बिखरी पड़ी हैं। इन चट्टानों में से कोई-कोई पचास फुट ऊँची है। कीड़े-मकोड़ों की यहाँ कमी नहीं, मगर चिड़िया अभी तक तो नहीं दिखाई पड़ी है। शायद हो कि जंगल के भीतर हों। जरा ही देर पहले चारेक फुट लम्बा एक मारमाडिलो यानी चींटीखोर जानवर डम्बार्टन के बहुत ही नजदीक से होता हुआ पत्थर के एक टीले के पीछे गायब हो गया।
कुल मिलाकर यहाँ का परिवेश एकबारगी आदिम है और इसीलिए गुफा की तसवीरों की ऐसी बहार इतना अवाक् किए देती है।

एक बात कह रखना अच्छा होगा, यहाँ के वैज्ञानिक पोरफिरिओ कार्डोवा हम लोगों के इस गुफा-अभियान को खास अच्छी नजर से नहीं देख रहे हैं। उसका कारण यह हो सकता है कि उनसे हमारा गहरा मतभेद हो रहा है। कार्डोवा ने कहा, “मैं नहीं जानता, आप लोग इस गुफा को प्रागैतिहासिक कैसे कह रहे हैं। मेरा ख्याल है, इसकी उम्र बहुत भी होगी तो हजार साल। पचास हजार वर्ष की पुरानी गुफा के चित्रों का रंग ऐसा चटकदार कैसे होगा?"

कार्डोवा के बोलने का लहजा बड़ा रूखा है, बहुत कुछ उनके चेहरे जैसा। मैंने इतनी घनी भौंहें किसी की नहीं देखीं।
मैंने कहा, “दीवारों पर जिन प्रागैतिहासिक जानवरों के चित्र हैं वे कैसे आए?"

कार्डोवा ने हँसकर कहा, “आदमी की कल्पना से आज भी हाथी के बदन पर रोएँ उग सकते हैं। उससे कुछ साबित नहीं होता। हमारे देश की इन्को सभ्यता के बारे में सुना है न? इन्को लोगों के बनाए चित्रों के जानवरों से किन्हीं जानवरों का हूबहू मेल नहीं है तो क्या उन जानवरों को प्रागैतिहासिक कहना होगा? इनकी सभ्यता की आयु हजार साल से ज्यादा नहीं है कतई।"
मैंने कुछ नहीं कहा, पर डम्बार्टन ने इसका जवाब देने में चूक नहीं की।

वह बोला, “प्रोफेसर कार्डोवा, अलतामिरा गुफा जब पहले-पहल निकली, तो उस समय भी बहुत-से वैज्ञानिकों ने उसे प्रागैतिहासिक नहीं मानना चाहा था। बाद में लेकिन उन सबको बड़ा अप्रतिम होना पड़ा था!"

इसके जवाब में कार्डोवा ने कछ नहीं कहा। लेकिन हमारे इस अभियान से वह बिलकल ही सन्तुष्ट नहीं है, यह बात भाँप लेने में कोई कठिनाई नहीं हुई।
जो भी हो, हम कार्डोवा की परवाह किए बिना ही अपना काम करते जाएँगे। आज का काम अब यहीं खत्म। अब शहर को लौटना चाहिए।

18 अगस्त, रात के बारह बजे

गुफा से रात के साढ़े नौ बजे शहर लौटा। रात का भोजन करने के बाद दो घंटे तक अपनी आज की ली हुई तसवीरों को ध्यान से देखा। प्राकृतिक चीजों की तसवीरों से भी जिनके बारे में ज्यादा कौतूहल हो रहा है, वह है वह गिचपिच लिखावट। उन बहुत-सी गिचपिच तसवीरों को पास-पास रखकर उनमें बहुत कुछ समानता देखी। यहाँ तक कि मन में यह सन्देह भी जगने लगा कि असल में ये सब अक्षर या अंक हैं। यदि वही हो, फिर तो इन लोगों को शिक्षित असभ्य कहना होगा! अवश्य यह एक अंदाज-भर है। असल में शायद यह सब उन आदिम लोगों के कुसंस्कार के कोई सांकेतिक चिह्न हों।
इस पर कल डम्बार्टन से चर्चा करना जरूरी है।

19 अगस्त, रात के ग्यारह बजे

होटल के कमरे में बैठा डायरी लिख रहा हूँ। आज शायद इन लोगों का कोई पर्व-त्योहार है, क्योंकि कहीं से जाने गाने-बजाने और चहल-पहल की आवाज आ रही है। एक बहुत भयंकर भूकम्प के बाद कुछ दिनों तक बीच-बीच में हलके धक्के की बात कुछ अस्वाभाविक नहीं है।

आज की रोमांचक घटना के बाद काफी थकावट महसूस कर रहा हूँ। फिर भी इसी समय उसे लिख लेना अच्छा है। यह कह दूं कि रहस्य दस गुना बढ़ गया है। उसके साथ ही एक आतंक का लक्षण दिखाई पड़ा है, जिसने डम्बार्टन जैसे जरनैल अमेरिकी को भी सोच में डाल दिया है।

पहले ही कह चुका हूँ, गुफा कोचाबंबा से कोई एक सौ तीस मील दूर है। रास्ता ठीक होता तो यह दूरी तीन घंटे में तय की जा सकती थी। लेकिन भूकम्प के चलते रास्ता बहुतेरी जगहों पर बड़ी ही बुरी हालत में है, लिहाजा जीप से चार घंटे से कम समय में नहीं जाया जा सकता। दरार पडी जगह पर जीप से उतरकर बाकी रास्ता दस मिनट का। पत्थरों को पार करते हए पैदल जाना पड़ता है।
इसलिए हम लोगों ने तय किया था कि सुबह छह ही बजे हम अपने अभियान पर निकल पड़ेंगे।

होटल से जब जीप रवाना हई, उस समय ठीक सवा छह बज रहे थे। सूरज उस समय तक भी पहाड़ के पीछे ही था। आज हम लोगों ने अपने साथ एक स्थानीय स्पेनिश आदमी को ले लिया था-नाम था पेद्रो। लेने का मतलब था, जब हम गुफा के अन्दर जाएँगे वह बाहर पहरा देता रहेगा। क्योंकि कुछ सरो-सामान, खाने-पीने की चीजें बाहर रखने से हम लोगों के लिए चलना-फिरना और आसान होगा। हम लोगों ने कुछ कहा नहीं था, फिर भी देखा, पेद्रो अपने साथ एक बन्दूक ले आया है। यह किसलिए? पूछने पर उसने बताया, "सिनिओर, यहाँ के जंगलों से कब क्या निकल पड़े, नहीं कहा जा सकता। सो अपने बचाव के लिए मैं इसे साथ लिये चल रहा हूँ।"

गाड़ी जब तीस मील के करीब निकल गई तो अचानक लगा, हमारे पीछे-पीछे एक गाड़ी और आ रही है। और वह मानो हमारी गाड़ी को पकड़ने के ख्याल से खासी तेजी से ही आ रही है। पाँचेक मिनट में ही वह गाड़ी (वह भी जीप ही थी) हमारे पास आ पहुँची। देखा, गाड़ी के अन्दर से हाथ बढ़ाकर प्रोफेसर कार्डोवा हमें रुकने को कह रहे हैं।
लाचार हम रुके। दोनों ही गाड़ी से उतरे। दूसरी जीप से उतरकर कार्डोवा हमारी तरफ बढ़ा। उसमें हमने उत्तेजना की एक साफ झलक देखी।

हमें गम्भीरता से नमस्कार करके कार्डोवा ने कहा, “मेरा ड्राइवर आपके ड्राइवर को जानता है। उसी से पता चला, आप लोग अहले सुबह ही रवाना हो जाएँगे। मैं आप लोगों को सावधान करने के लिए आया हूँ।"

हम दोनों ही अवाक रह गए। कहा, "किस बात के लिए सावधान?"
कार्डोवा ने कहा, "गुफा के उत्तर का जंगल खतरे से खाली नहीं है।"
डम्बार्टन ने कहा, “आपने कैसे जाना?"

कार्डोवा ने कहा, "मैं पहली बार जिस दिन गुफा को देखने के लिए आया था, उस दिन उस जंगल में भी गया था। मुझे यह ख्याल हुआ था कि तसवीरें बहुत कम ही दिन पहले की आँकी हुई हैं। और, इन चित्रों के रंगों के उपादान शायद जंगल में ही पाए जाएँगे। हो सकता है किसी पेड़ के रस या किसी प्रकार के पत्थर को पानी में घिसकर ये रंग तैयार किए गए हैं।"

"उसका कोई पता चला था क्या?"
“नहीं। क्योंकि ज्यादा दूर तक अन्दर घुसने की हिम्मत नहीं पड़ी। जंगल की माटी पर पैरों के कुछ निशान देखकर डर से निकल आया था।"
“किस किस्म के पैरों की छाप?"
“विशाल जानवरों के। किसी जाने हुए जानवर के पैरों की छाप वैसी नहीं होती।"

डम्बार्टन ने हँसकर कहा, “ठीक है। हमें होशियार कर देने की कृपा के लिए धन्यवाद । लेकिन हमारे साथ हथियारबन्द आदमी हैं और गुफा में हमें जाना ही है। ऐसा मौका हम अपने हाथ से जाने नहीं दे सकते। क्या ख्याल है, शैंक्स?”

मैंने सिर हिलाकर डम्बार्टन की बात पर हामी भरी। कहा, “मामूली हथियार के सिवा भी हमारे पास दूसरे हथियार हैं। वे एक जीते-जागते मैमथ को भी कुछ सेकंड में ही पस्त कर सकते हैं।"

कार्डोवा ने कहा, "ठीक है। अपना फर्ज मैंने अदा कर दिया, क्योंकि यह मुल्क मेरा है। आप लोग यहाँ अतिथि हैं। आप लोगों पर कोई मुसीबत पड़ने पर मुझ पर उसकी कुछ जिम्मेदारी तो आ सकती है न! लेकिन जब आप लोग निहायत ही मेरी मनाही मानने को तैयार नहीं हैं; तो मैं क्या कर सकता हूँ? तो मैं चलता हूँ, आप लोग जाइए।"

कार्डोवा अपनी जीप पर सवार होकर शहर की ओर लौट गया। हम लोग गुफा की तरफ चल पड़े।
कुछ दूर जाने पर सामने की सीट से कार्डोवा के बारे में हठात् पेद्रो बोल उठा, “भूकम्प के दिन इन प्रोफेसर साहब का क्या हुआ था, सुना है आपने?'
कहा, "नहीं तो! क्या हुआ था?"

पेद्रो ने कहा, “उस दिन इतवार था। प्रोफेसर सबेरे उठकर गिरजा जा रहे थे। गिरजा के फाटक से अन्दर घुसते समय भूकम्प शुरू हुआ। प्रोफेसर की नजरों के सामने ही मारिया का विशाल गिरजा धूल में मिल गया और लगभग तीन सौ आदमी पत्थर से दबकर मर गए और दस सेकंड की भी देर हुई होती तो प्रोफेसर की भी वही हालत होती।"
हमने कहा, “सो तो उसकी खुशकिस्मती कहनी होगी।”

पेद्रो ने कहा, "वह तो ठीक है। लेकिन उस घटना के बाद से प्रोफेसर का दिमाग बीच-बीच में बिगड़ जाता है। आज वह जिस जानवर के बारे में कह रहे थे, लगता है, वह मनगढंत है। उस जंगल में जो जन्तु हैं, वे बोलिविया के सभी जंगलों में हैं।"

मैंने और डम्बार्टन ने एक-दूसरे की ओर देखा। दोनों के मन में एक ही ख्याल कि कार्डोवा नहीं चाहता कि हम लोग गुफा में जाकर अपना काम करें। यानी बहुत सम्भव है, वह यह चाहता है कि गुफा में अगर कोई आश्चर्यजनक तत्त्व का आविष्कार करना है, तो वह आविष्कार वही करे। हम बाहर के आदमी आकर उनके अपने इलाके में अनाधिकार वैज्ञानिक जगत की वाहवाही न लूट लें। मैं जानता हूँ कि वैज्ञानिकों की यह आपसी होड़ अस्वाभाविक नहीं है। फिर भी मैं कहूँगा, इतनी दूर बोलिविया में आकर मुझे इस झमेले में पड़ना पड़ेगा, यह उम्मीद नहीं की थी।

पेद्रो को बाहर मुस्तैद करके हम गुफा में दाखिल हुए। उस समय लगभग साढ़े दस बज रहे थे। आज सूरज कुछ फीका था, क्योंकि आसमान हलकी बदली से ढंका था। कल गुफा के भीतर काफी दूर तक बाहर से आती हुई सूरज की रोशनी से ही साफ दिखाई दे रहा था। आज पचास डग बढ़ते न बढ़ते हाथ की टॉर्च का सहारा लेना पड़ा।

रास्ता जहाँ से पतला हो गया है, वहाँ से बदस्तूर घुड़ककर चलना शुरू किया। आज कुछ और आगे जाने का इरादा है। यहाँ पर तसवीरें नहीं हैं, इसलिए आसपास में देखने का भी कुछ नहीं है। हम लोग जमीन की ओर नजर गड़ाकर बढ़ने लगे। पत्थर गजब के चिकने और अलगी पत्थर नहीं के ही बराबर हैं। साफ समझ में आता है कि यहाँ आदिम लोग काफी अरसे तक रहे हैं, उन्हीं के चलते-फिरते रहने से पत्थर में यह चिकनापन है।

कल जहाँ तक आया था, उससे सौ हाथ आगे बढ़कर देखा सुरंग फिर चौड़ी होने लगी है। लेकिन अभी तक कोई चित्र नहीं नजर आया। डम्बार्टन ने कहा, “सुनते हो, शैंक्स, कभी-कभी मुझे लगता है, अब और आगे बढ़ने से कोई फायदा नहीं है। लेकिन गुफा में यह जो गजब का साफ-सुथरापन दिखाई दे रहा है, उसी से शक होता है कि आगे और भी देखने की चीज है।"

डम्बार्टन ने गोया मेरे मन की बात कही। सचमुच, गुफा के अन्दर कितना झकमक-सा है! दीवार की तरफ ताकने से लगता है जैसे उसे डस्टर से नियमित पोंछा जाता रहा हो।

सुरंग चौड़ी हो गई, इसलिए हम सीधे होकर चल रहे थे। इतने में मेरे कानों में एक आवाज-सी आई। डम्बार्टन के कन्धे पर हाथ रखकर उसे रुकने के लिए कहा।
“सुन रहे हो?"

खुट् खुट् खुट् खुट...मुझे साफ सुनाई दे रहा था। लेकिन डम्बार्टन की सुनने की शक्ति शायद मेरी तरह पैनी नहीं है। वह कुछ और आगे बढ़ गया। उसके बाद रुककर फुसफुसाते हुए कहा, “मिल गई।"

दोनों ने अगल-बगल खड़े होकर कुछ देर तक उस आवाज को सुना। बीच-बीच में रुक जाती, पर ज्यादा देर के लिए नहीं।
आदमी है? या और कुछ ? कहा, “आगे चलो।"
डम्बार्टन ने कहा, "तुम्हारी पिस्तौल साथ में है न?"
"वह काम तो करती है?"

मैंने हँसकर कहा, “उसकी परीक्षा तो नहीं कर सकता, किन्तु इतना कह सकता हूँ, मेरी बनाई कोई चीज आज तक फेल नहीं हुई।"
"तो फिर चलो।" कुछ दूर जाकर एक मोड़ घूमते ही हम दोनों ठिठक गए।

हम एक खासे हॉल में जा पहुंचे थे। इधर-उधर टॉर्च की रोशनी डाली। देखा, वह एक गोल कमरा है, जिसकी परिधि कम-से-कम सौ फुट की तो होगी। ऊँचाई कम-से-कम बीस फुट।

हॉल की दीवारें और छत चित्र और नकशे से गिजबिज कर रही थीं। चित्र से नकशा ही ज्यादा। उन्हें देखकर समझने में कोई दिक्कत नहीं हुई कि ये अंक या फार्मूला किस्म के कुछ हैं।

डम्बार्टन ने दबे गले से कहा, “कला की दुनिया से हम धीरे-धीरे विज्ञान का दुनिया में आ पहुँचे, ऐसा लगता है! यह सब किनकी करामात है? इनका मतलब क्या है? ये नकशे कब के हैं?"
खुट्-खुट् की आवाज थम गई थी।

मैंने हाथ की टॉर्च को रखकर कन्धे के थैले से कैमरे को निकाला। फ्लैश-लाईट है-फिक्र की बात नहीं। मैंने खूब महसूस किया कि उत्तेजना से मेरे हाथ काँप रहे हैं।
कैमरा निकालकर दो ही चित्र लिये थे कि एक धीमी, लेकिन तीखी चीख हमारे कानों में आई।
आवाज अवश्य यह गुफा के बाहर से आ रही थी। पेद्रो की चीख।

पल-भर की देर न करके हम दोनों पीछे की ओर लौट पड़े। चलकर, दौड़कर, घुड़ककर हमें बाहर निकलने में बीस मिनट के करीब लग गए। निकलकर देखा, पेद्रो अपनी जगह पर नहीं है, गरचे हमारे सामान ज्यों के त्यों हैं। आखिर यह आदमी गया कहाँ? दाएँ पत्थर का एक टीला था। डम्बार्टन दौड़कर उसके पीछे गया और चीख पड़ा, “इधर आइए, शैंक्स!"

जाकर देखा, आँखें कपाल पर चढ़ाए पेद्रो चित्त पड़ा है। उसके गले के एक गहरे जख्म से लहू बह रहा है। उसकी बन्दूक उससे पाँच हाथ दूर पर पड़ी है। पेद्रो की निष्पलक आँखों के आतंक का वह भाव मैं कभी नहीं भूलूँगा। उसकी नब्ज देखकर डम्बार्टन ने कहा, "अरे! यह तो मर गया!" यह कहने की भी जरूरत नहीं थी। देखते ही समझ में आ रहा था कि पेद्रो के शरीर में जान नहीं है।

अब हमारी नजर पेद्रो से भी लगभग बीस हाथ उत्तर की ओर गई। मिट्टी पर कुछ जगह लिये एक लाल निशान और था। आगे बढ़कर समझा, वह भी शायद लहू है। लेकिन वह लहू आदमी का नहीं है। लहू के आसपास जो चीज पड़ी थी, उसे देखने से मूठरहित तलवार-सी लगती थी। हाथ में उठाकर उसे परखा, वह किसी धातु की बनी चीज नहीं थी।

मैंने उसे डम्बार्टन के हाथ में दे दिया। उलट-पुलट करके देखकर वह बोला, “इससे मुझे जो अंदाजा हो रहा है, वह अगर सही हो, तो अब हमारा यहाँ रहना ठीक नहीं है।"

मैंने समझा, हम दोनों ही का अंदाज एक ही है, फिर भी वह सच है, यह यकीन नहीं कर पा रहा था। मैंने कहा, "दीवार पर आँके उस अनामे जानवर की सोच रहे हो क्या?"
"बेशक! पेद्रो ने घायल होने के बाद भी गोली चलाई थी। उससे वह जानवर जख्मी हुआ और उसकी पीठ से यह काँटा टूट गिरा।"

डमबार्टन की उम्र पचास होते हुए भी वह खासा जवान है। उसने अकेले ही पेद्रो की लाश को कन्धे पर उठा लिया। मैंने बाकी सारे सामान उठाए। आसमान में बादल घिरे होने से एक थमथम करता हुआ-सा भाव! तो, कार्डोवा ने गलत नहीं कहा। उत्तर के इस जंगल में और भी न जाने कितनी विभीषिका छिपी हुई है।

पेद्रो की लाश उसके घर पहुँचाकर, उसके बाप को दिलासा और कुछ रुपए-पैसे देकर जब होटल को लौट रहा था, तो टिपटिप-टिपटिप बारिश शुरू हो गई थी। घड़ी में सात बजे थे।
होटल में घुसते ही देखा, सामने ही एक सोफे पर प्रोफेसर कार्डोवा बैठे हैं। हमें देखते ही भले आदमी हड़बड़ाकर आगे बढ़ आए।
“खैर, तुम लोग लौट आए!" डम्बार्टन ने कहा, “लौट तो आए, लेकिन सभी नहीं।" “मतलब?" कार्डोवा को घटना बताई।

सब सुन-सुनाकर कार्डोवा के आँख-मुँह में एक अजीब भाव जग आया, जिसमें अफसोस के बजाय उल्लास की मात्रा ज्यादा थी। दबी उत्तेजना से वह बोला, “मेरी बात का आप लोगों ने यकीन नहीं किया। लेकिन अब समझ गए न? मैं जानता हूँ कि उस जंगल में ऐसे-ऐसे अजीब जीव हैं, जो दुनिया में और कहीं नहीं हैं और मैं जानता हूँ, गुफा के चित्रों के बारे में तुम लोगों की धारणा गलत है। वहाँ इन्को जातीय कोई सभ्य लोग रहते थे, वह भी ज्यादा दिन पहले नहीं। चित्रों के जन्तुओं को देखकर ही तो आप लोगों ने गुफा की आयु का अंदाज किया था! लेकन अब समझ ही सकते हैं कि उनमें से कम-से-कम एक प्रकार के जानवर अभी भी हैं। लुप्त नहीं हुए हैं। लिहाजा मेरा अंदाज ठीक है। मैंने आप लोगों के भले के लिए ही कहा है, उस गुफा के पीछे आप नाहक ही समय न बरबाद करें।"
बोलकर कार्डोवा हनहनाता हुआ होटल से चला गया।

डम्बार्टन ने कहा, “डर लग रहा है, वह अकेले ही शाबाशी लूटने के लिए झट किसी अखबार में कुछ निकलवा न दे। अभी भी साफ तौर पर कुछ जाना नहीं जा सका है, मगर वह हम लोगों से होड़ लेने के लिए व्यग्र हो उठा है।"

मैंने कहा, “फिर भी तो उसे पता नहीं है कि गुफा में हम लोगों ने खुट्-खुट् की आवाज सुनी है। तब तो वह कह ही बैठता कि गुफा में अभी भी लोग रह रहे हैं-चित्र पचास हजार नहीं, पाँच वर्ष के आँके हुए हैं!"

हम लोग बाकायदा थके हुए लग रहे थे, इसलिए और समय नष्ट न करके अपने-अपने कमरे में चले गए। बारिश जोर से ही होने लगी, उसके साथ बीच-बीच में मेघों की गरज और बिजली की चमक। गरम पानी से नहाकर लगातार दो प्याला कॉफ़ी (यहाँ की कॉफ़ी बड़ी अच्छी है) पीने के बाद धीरे-धीरे शरीर और मन का बल लौट आया। डिनर भी कमरे में ही मँगवाकर खाया। उसके बाद अपनी खींची हुई तसवीरें लेकर बैठा। उन गिचपिच नकशों के रहस्य का पता लगाना था। अनचीन्हे अक्षरों का मतलब निकालने में मेरा सानी नहीं। हरप्पा और मोहेंजोदड़ों की लिपि का मतलब दुनिया में मैंने ही पहले निकाला।

डेढ़ घंटे तक उन गिचपिच चित्रों को आपस में मिलाकर एक चीज ढूँढ़ निकाली, जिसे फोन करके डम्बार्टन को फौरन बताया। ये चिह्न सारे के सारे वैज्ञानिक फार्मूले हैं और इनसे हमारे आज के फार्मूलों की समानता है।

डम्बार्टन पाँच ही मिनट में मेरे कमरे में आया और मेरी बात सुनकर धप्प से खाट पर बैठकर बोला, "दिस इज़ टू मच! सब गड़बड़ हुआ जा रहा है, शैंक्स! ये फार्मूले पचास हजार साल पहले के वनमानुसों ने निकाले हैं, यह हरगिज विश्वास नहीं कर पाता।"
मैंने कहा, “तो?"
"तो क्या! तो इतिहास को फिर नए सिरे से लिखना होगा! आदिम मनुष्यों के बारे में आज तक जो कुछ भी जाना गया है, उसकी किसी भी बात का मेल इन अंकों के साथ नहीं बैठाया जा सकता।"

पेद्रो की लाश के पास जो चीज मिली थी, उसे मैं अपने कमरे में ले आया था। डम्बार्टन ने अन्यमनस्क-सा होकर उसे अपने हाथ में उठा लिया था। हठात् उसे अपनी नाक के पास ले जाकर वह उसे सूंघने लगा।
“शैंक्स!" डम्बार्टन की आँखें झकमका रही थीं। "सूँघकर देखो।"
मैंने उस काँटे को हाथ में लेकर सूंघा। एक जानी-पहचानी-सी बू मिली। मैंने कहा, “प्लास्टिक।"
“ठीक! कोई शुबहा नहीं। बड़ी चतुराई की कारीगरी है लेकिन यह आदमी के ही हाथ का बनाया हुआ है। इससे किसी जानवर का कोई वास्ता नहीं।"
"लेकिन इसका मतलब क्या?"

सवाल पूछे जाते ही उसके बहुत-से जवाब एक साथ ही मेरे मन में खेल गए। कहा, "मामला कठिन है। पहली बात तो यह कि पेट्रो किसी जानवर के डर से नहीं मरा। उसका किसी आदमी ने खून किया है। इसका एक ही मतलब हो सकता है कि जिसने मारा है, वह नहीं चाहता है कि हम गुफा के पास जाएँ और यह आततायी कौन है, सो साफ ही समझ में आ रहा है।"
"हूँ !"
डम्बार्टन खाट पर से उठकर इधर-उधर घूमने लगा। उसके बाद बोला,
"लगता है, हमें यहाँ टिकने नहीं देगा।"
"लेकिन इस तरह से हार मान लेंगे?" मेरे वैज्ञानिक मन में विद्रोह का भाव जाग उठा था।
डम्बार्टन ने कहा, “एक काम किया जाए।"
"क्या?"

“कार्डोवा से कहें, इसकी शाबाशी लेने का लोभ हमें नहीं है। असली जो जरूरत है, वह यह कि इस अजीब गुफा के तथ्य दुनिया के लोगों को सही-सही बताना। लिहाजा कार्डोवा हमारे साथ हो जाएँ। हम मिलकर ही अभियान करें। उसका अनुमान यदि गलत हो, तो भी उसका नाम हम लोगों के साथ जुड़ा रहेगा। लोगों की नजर में हम एक 'टीम' होंगे। क्या ख्याल है?"
"लेकिन एक खूनी को इस तरह से साथ करोगे?"

"खून का प्रमाण तो नहीं है। और ऐसा नहीं करने से वह हमारे काम में तरह-तरह की अड़चनें डालेगा। हमारा काम बन जाए, फिर इसकी पोल खोल देंगे। अभी कुछ नहीं कहेंगे। यहाँ तक कि यह भी नहीं कि हम लोगों ने जान लिया है, वह काँटा प्लास्टिक का है।"
“खैर, वही सही।"

फोन करने पर कार्डोवा नहीं मिला। उसके घरवालों को भी पता नहीं था कि वह कहाँ गया है। सोच लिया। कल सवेरे उससे बातचीत का सिलसिला बैठाया जाएगा। हम लोगों का यह काम जिसमें बेकार न हो, इसके लिए जो भी जरूरी है, करना ही है।

डर आसमान की हालत देखकर लग रहा था। कल भी अगर ऐसी ही हालत रही, तो निकलना नहीं हो सकेगा। लेकिन तसवीर लगभग ढाई-सौ हैं, उन्हीं को देखकर दिन काट लिया जाएगा।

20 अगस्त

जिस बात का डर था, वही हुई। आज तमाम दिन होटल के कमरे में ही बैठकर बिताना पड़ा। रात के साढ़े दस बज रहे हैं। अब बारिश कुछ रुकी है।

लेकिन घर बैठे भी घटना का अभाव नहीं रहा। पहली तो यह कि आज भी दिन-भर कार्डोवा का पता नहीं चला। सुबह से लेकर शाम तक बहुत बार टेलीफोन किया गया। देखा, उसके घर के लोग खासे चिन्तित हैं। घरवालों को आशंका है, पागलपन के चलते भूकम्प से पड़ी दरारों में से किसी में शायद गिर पड़ा हो।

इधर डम्बार्टन के दिमाग में और भी एक अजीब ख्याल हो आया। दोपहर को वह दौड़ता हुआ मेरे कमरे में आया। बोला, “चौपट!" मैंने पूछा, “क्या हो गया?"

डम्बार्टन सोफे पर बैठकर बोला, "तुम्हारे दिमाग में यह बात आई है क्या कि दीवारों के वे सारे सांकेतिक फार्मूले कार्डोवा के लिखे हैं? मान लो, तसवीरों के आसपास वह सब गिचपिच लिखकर वह साबित करना चाहता हो कि गुफावासी लोग विज्ञान में काफी दूर तक आगे बढ़े हुए थे? यदि वह ऐसी एक बात साबित कर सके तो उसकी कैसी प्रसिद्धि होगी, समझ रहे हो?"
"अलबत्ता सोचा है!"

वास्तव में डम्बार्टन की सूझ की तारीफ किए बिना नहीं रह सका। डम्बार्टन कहता गया, “ज़रा उस आदमी के खुराफाती दिमाग की सोचो तो सही। मेरे यहाँ आकर पहुँचने के कोई दस दिन पहले इस गुफा का पता चला था। गुफा को मनमाना सजाने का काफी वक्त मिला कार्डोवा को। पत्थर के ये सारे औजार उसी ने बनवाए हैं, जैसाकि वह काँटा बनवाया।"

मैंने कहा, “फार्मूलों के पीछे, लगता है, नाहक ही समय बरबाद किया। लेकिन...” मेरे मन में एकाएक एक खटका-सा हुआ, “गुफा के अन्दर खट्-खट् की आवाज कहाँ से आ रही थी?"

"वह कारस्तानी भी कार्डोवा की नहीं है, यह कैसे जाना? उसने ही अगर पेद्रो का खून किया हो, तो वह उस दिन गुफा के आसपास ही होगा। शायद हो कि गुफा के किसी और मुँह को खोज निकाला हो। उसी के अन्दर जाकर वह हमें डराने के लिए आवाज कर रहा था।"
“लेकिन यह सब कर-कराके वह कम-से-कम मुझे पस्त-हिम्मत नहीं कर सकता।"
डम्बार्टन ने कहा, “मुझे भी नहीं। कल अगर बारिश बन्द हो जाए, तो हम लोग फिर चलेंगे।"
"बेशक! उसे मेरी ऐनिस्थियम बन्दूक का तो पता नहीं है न?"

डम्बार्टन के चले जाने के बाद सोचने लगा। कार्डोवा ने यदि सचमुच ही ये सारे कारनामे किए हैं, तो मानना होगा कि उसके जैसा कूटबुद्धि शैतान वैज्ञानिक दूसरा नहीं है।

कल गुफा के और अन्दर जाकर यदि नया कुछ न मिले तो अब यहाँ ठहरना बेकार है। मैं अपने घर लौट जाऊँगा। गिरिडिह में बहुत सारे काम पड़े हैं। अपने बिल्ले न्यूटन के लिए भी मेरा मन कैसा तो कर रहा है!

22 अगस्त

आदमी के मन के भंडार में कितनी कोटि स्मृतियाँ जमी हुई होती हैं, इसका लेखा कभी कोई नहीं लगा सका और वह सब दिमाग में ठीक किस जगह किस तरह से जमा रहती हैं, यह भी कोई नहीं जानता। हम लोग सिर्फ इतना ही जानते हैं कि जैसे बहुत दिनों की पुरानी बात भी कारण-अकारण हठात् कभी हमें याद आ जाती हैं। वैसे ही कोई-कोई घटना सदा के लिए हृदय से पुंछ भी जाती है किन्तु कोई-कोई घटना होती है, जो कभी नहीं भूलती। ज़रा देर चुपचाप बैठे रहने पर ही दस साल के बाद भी वैसी घटनाएँ आँखों में नाच उठती हैं। तिस पर घटना अगर कल जैसी भयानक हो तो उसके याद आते ही सारे शरीर में सिहरन का अनुभव होता है। मैं जो अब तक जिन्दा हूँ यही ताज्जुब है और कौन-सी अदृश्य शक्ति बार-बार मुझे निश्चित मृत्यु के हाथ से बचाती है, यह भी नहीं जानता।

कल डायरी लिखी नहीं जा सकी। सो सबेरे से ही शुरू की। बारिश परसों आधी रात से ही थम गई थी। हमारी जीप ठीक समय पर तैयार थी। मैं और डम्बार्टन तड़के छह बजे होटल से निकले। हमारी जीप के ड्राइवर का नाम था मिगुएल। वह भी स्पेनिश ही था। गाड़ी चल पड़ने के कुछ देर बाद वह बोला, "कार्डोवा का शायद अभी तक भी पता नहीं चला है। सिर्फ इतना ही जाना जा सका है कि वह पैदल नहीं गया है, जीप से निकला है।" हम लोगों ने तो सिर थाम लिया। तो क्या वह फिर गुफा की तरफ ही गया है? कल उस बारिश में ही?

साढ़े-तीन घंटे के पश्चात् हमारे प्रश्न का जवाब मिला। कार्डोवा की जीप पहाड़ की दरार के सामने गुफा के मुँह पर ही खड़ी थी। देखकर ही लग रहा था कि जीप पर से काफी पानी गुजरा। ड्राइवर शायद कार्डोवा के साथ ही गया है, क्योंकि जीप खाली पड़ी थी।

हमने इन्तजार नहीं किया। चल पड़े। मिगुएल ने कहा, “सिनिओर, आप लोग जा रहे हैं, यह मुझे कतई अच्छा नहीं लग रहा है। मैं आप लोगों के साथ जाता, लेकिन उस दिन पेद्रो के सा मन में बड़ा डर समा गया है। मेरे घर में बाल-बच्चे हैं!"

हम दोनों ने कहा, “तुम्हारी कोई जरूरत नहीं। कोई खतरा भी नहीं। यदि कोई आफत आती दीखे तो हम लोगों की राह न देखकर चल देना। लेकिन कोई मुसीबत होगी, ऐसा नहीं लगता और फिर वैसे को सबक देने के लिए वैसा हथियार हमारे पास है।"

गुफा के मुँह पर पहुँचा तो आदमी-आदमजाद का कोई लक्षण नहीं दिखाई दिया और उस दिन की तरह ही सब सुनसान, सन्नाटा पड़ा था। जमीन पथरीली है, जंगल की तरफ ढलान है, इसलिए रात की वर्षा का पानी जमा नहीं था। वर्षा हुई है, ऐसा पता ही नहीं चल रहा था।
कार्डोवा क्या गुफा के अन्दर है कि जंगल में गया है?
डम्बार्टन ने कहा, “बाहर रुके रहने से कोई लाभ है?"

मैंने 'ना' कहकर गुफा की तरफ कुछ कदम बढ़ाए कि गुफा के मुँह के दाईं ओर बाहर के पत्थर की एक दरार से कोई सादी-सी चीज दिखाई पड़ी। मैंने हाथ घुसाकर देखा, मुड़ी हुई एक चिट्ठी थी। कार्डोवा की लिखी। खोलकर दोनों ने उसे एक ही साथ पढ़ा। लिखा था :

प्रिय प्रोफेसर डम्बार्टन और प्रोफेसर शँकू,
मैं जानता हूँ कि आप लोग यहाँ फिर आएँगे। यह चिट्ठी मिलते ही समझिएगा कि मुझ पर कोई आफत आई है, मैं गुफा में ही अटक गया हूँ। लिहाजा आप लोग घुसने से पहले सोच लेना कि काम आप ठीक कर रहे हैं या नहीं। मैं मरा भी तो गुफा के रहस्य को खोलकर ही मरूँगा। लेकिन लोगों तक उस रहस्य की बातें पहुंचा पाऊँगा। आप लोग यदि बच गए, तो यह रहस्य लोगों को बता पाएँगे। मेरा केवल एक अनुरोध है कि आप लोगों के साथ इसमें मेरा भी नाम जुड़ा रहे।

यह शायद समझ ही गए होंगे कि पेद्रो की मौत का जिम्मेदार मैं ही हूँ। वह काँटा मेरी ही प्रयोगशाला का बना हुआ है। लेकिन जंगल में पैरों का निशान मैंने ठीक ही देखा था, उस मामले में बेखबर रहने से आप लोग भारी भूल करेंगे।
जानता हूँ, ईश्वर आप लोगों की रक्षा करेंगे। आप लोग मेरी तरह पापी तो नहीं हैं न।

आपका
पोरिफिरिओ कार्डोवा

इस एक चिट्ठी से हमारे मन का भाव बिलकुल बदल गया और नए सिरे से एक अजानी आशंका जग आई। लेकिन काम बन्द करने से काम नहीं चलेगा। मैंने कहा, “चलो ह्यूगो, अन्दर चलें। नसीब में चाहे जो भी लिखा हो।"

कुछ दूर जाते ही समझ गया कि कार्डोवा यहाँ आए थे, क्योंकि आधी पी हुई एक खाली सिगरेट जमीन पर पड़ी थी। वैसी सिगरेट सिर्फ कार्डोवा को ही पीते देखा था। लेकिन इसके सिवाय आदमी का और कोई चिह्न नजर नहीं आया। पत्थर पर जब पाँव का निशान पड़ता ही नहीं तो और कौन-सी निशानी रहेगी?

उस विराट हॉल में पहुँचकर इस बार वहाँ रुके बिना हम सीधे उलटी तरफ की सुरंग से चलने लगे। थी तो सुरंग ही, पर रास्ता यहाँ चौड़ा था। सिर झुकाकर नहीं चलना पड़ रहा था।

एक आवाज सुनाई दे रही थी। हलकी गरज-सी आवाज। उसे डम्बार्टन ने भी सुना। उस गरज में घट-बढ़ भी देखी। असली आवाज किस जोर की और कितनी दूर से आ रही है, यह समझने का कोई उपाय नहीं था। डम्बार्टन ने कहा, “गुफा के भीतर जन्तु-जानवर तो नहीं हैं न?" वास्तव में आवाज बड़ी अजीब-सी थी। एक बार ऊँची, एक बार धीमी। बहुत-कुछ गुर्राहट-सी।

सुरंग सामने बाएँ को मुड़ गई थी। उस मोड़ से घूमते ही देखा, हम एक दूसरे बड़े-से कमरे में पहुंच गए हैं। इधर-उधर टॉर्च की रोशनी डालकर समझा, यह एक अजीब ही कमरा है। चारों ओर अजीब-अजीब अजाने औजार पड़े हैं और दीवारों पर चित्रों के बदले गणित और ज्यामिति के नक्शे। औजारों में से कोई भी काँच, लोहा, इस्पात या हम लोगों के किसी पहचाने हुए धातु का नहीं बना है और फिर पतले-पतले, लम्बे-लम्बे तार जैसी चीज, जो दीवार पर से होती हुई इधर-उधर को गई थी, वह सब चीज काहे की बनी हुई हैं, समझ में नहीं आया।
फर्श पर कुछ है या नहीं, यह देखने के लिए टॉर्च जलाते ही एक दृश्य देखकर मेरे बदन का रक्त पानी हो गया।

दीवार के पास ही, अपने दाएँ हाथ से एक तार को पकड़े औंधे मुँह पड़े हैं प्रोफेसर कार्डोवा। कार्डोवा की पीठ पर माथा रक्खे चित्त पड़ा था बाएँ, उनका ड्राइवर और ड्राइवर के पास दाएँ हाथ में बन्दूक लिये पड़ा था और भी एक अनजाना आदमी। इन तीनों में से किसी के शरीर में प्राण नहीं थे, यह कहना ही फिजूल है।
मेरे मुँह से अपने आप ही निकल गया-“इलेक्ट्रिक शाक!" फिर कहा, “इन लोगों को छूना मत, डम्बार्टन!"

डम्बार्टन ने धीरे-से कहा, “यह कहने की जरूरत नहीं, फिर भी धन्यवाद। और धन्यवाद कार्डोवा को, क्योंकि उसकी यह दशा नहीं देखता तो शायद हम लोग भी उस तार पर हाथ डाल सकते थे। कार्डोवा को बचाने में ही बाकी दो व्यक्तियों की भी जान गई है। कैसी भयंकर बात है, कहो तो?"
मैंने कहा, “इससे एक बात का सबूत मिलता है कि ये फारमूले कार्डोवा के लिखे हुए नहीं हैं।"

वह जो हलकी-सी गरज हो रही थी, वह अब हलकी नहीं रही। वह हम लोगों के काफी करीब से ही आ रही थी। मैं हाथ में टॉर्च लिये आगे बढ़ा। मेरे पीछे डम्बार्टन। गरज बढ़ रही थी।

उन औजारों से बचते हुए बड़ी सावधानी से कोई एक मिनट चलने के बाद सामने और एक दरवाजा दिखाई दिया। यह भी समझा कि उस दरवाजे के पीछे और भी एक कमरा है। और उस कमरे में रोशनी है। डम्बार्टन से मैंने कहा, “तुम अपनी टॉर्च बुझाओ तो।"

दोनों के हाथ की रोशनी बुझते ही काँपती हुई एक लाल रोशनी से गुफा का भीतरी भाग भर गया। समझा कि अन्दर आग जल रही है और वह गरज भी वहीं से आ रही है। डम्बार्टन की आवाज निकली, "अपनी बन्दूक तैयार रक्खो !"

बन्दूक को सम्हालकर बहुत धीरे-धीरे हम दोनों उस कमरे के अन्दर गए। विशाल कमरा। उसके एक कोने में एक चूल्हे में आग जल रही थी, उसके सामने जन्तुओं की कुछ हड्डियाँ बिखरी पड़ी थीं। कमरे के बीच में पत्थर की एक वेदी या खाट। उस पर एक प्राणी चित्त होकर सोया हुआ था, नींद में।
हम लोग धीरे-धीरे पा-पा करके खाट की तरफ बढे।

उस जीव को आदमी कहना खटकता था। ढालू कपाल, सिर के बाल लगभग भौंहों तक उतर आए थे। होंठ मोटे, ठोढ़ी दबी-सी, कान चिपटे और गरदन नहीं होने के ही बराबर। सारा बदन राख के रंग के रोएँ से भरा और चेहरे पर जहाँ रोआँ नहीं था, वहाँ की चमड़ी गजब तरह की सिकुड़ी हुई। उसका बायाँ हाथ छाती पर और दूसरा खाट पर लम्बा पड़ा था। इतना लम्बा हाथ कि उँगली की नोक घुटने तक पहुंच गई थी।

डम्बार्टन ने अस्फुट स्वर में कहा, “केव-मैन! अभी भी बन्दर की अवस्था से पूरी तरह आदमी की शकल में नहीं पहुंचा है।"
गले की आवाज को भरसक धीमा करके मैंने जवाब दिया, "केव-मैन सिर्फ यह शकल में है, क्योंकि गुफा में जो कुछ भी देख रहा हूँ, सबकुछ इसी की कीर्ति है।"
डम्बार्टन ने अचानक कन्धे पर हाथ रखकर कहा, “शैंक्स, वह क्या लिखा है, पढ़ पा रहे हो?"

डम्बार्टन ने उँगली के इशारे से दीवार की ओर दिखा दिया। बड़े-बड़े हरूफों में क्या तो लिखा था। हरूफों को फारमूलों से ही पहचान लिया था, इसलिए लिखने का मतलब निकालने में समय नहीं लगा। मैंने कहा, “गजब है!"
"क्या?"

लिखा है-“और सभी मर गए। मैं हूँ। मैं रहूँगा। मैं अकेला हूँ। मैं बहुत जानता हूँ और भी जानूँगा। जानने की सीमा नहीं। पत्थर मेरा मित्र है। पत्थर शत्रु!"
डम्बार्टन ने कहा, “तो समझो, यह उन्हीं प्रागैतिहासिक लोगों में से एक है। किसी अनोखे उपाय से अनन्त आयु पा गया है।"
“हूँ! और हजारों साल से ज्ञान संचय करता आ रहा है। केवल चेहरा गुफावासी जैसा रह गया है।...लेकिन अन्तिम दो शब्दों का क्या मतलब समझा?"

“पत्थर इसका मित्र है, यह तो देख ही रहा हूँ। इसके घरद्वार, असबाब पत्तर, औजार आदि पत्थर के बने हैं। लेकिन शत्रु से पता नहीं, क्या मतलब है!"

डम्बार्टन मेरी ही तरह आश्चर्य से अवाक् हो गया था। बोला, “गुफा में रहता है, इसलिए दिन-रात का फर्क सब समय समझ नहीं पाता। शायद हो कि रात में जगता रहता है, इसलिए दिन को सो रहा है।"

चित्र खींचने की हिम्मत नहीं हो रही थी। कैमरे के शब्द से नींद खुल जाए कहीं! हम लोगों जैसे आदमी को एकाएक आँखों के आगे देखकर वह क्या करेगा? लेकिन लोभ सम्हालना भी कठिन हो रहा था। इसलिए डमबार्टन के हाथ में बन्दूक थमाकर कन्धे पर की थैली से कैमरा निकालने की सोचकर हाथ डाला कि नाक बजने की आवाज को छापकर गहरी घड़घड़ाहट सुनने में आई। डमबार्टन ने खप्प से मेरा हाथ पकड़कर कहा, “भूकम्प!" दूसरे ही क्षण एक गहरे धक्के से गुफा का भीतरी भाग थर-थर काँपने लगा। कई पलों तक सोच ही नहीं पाए कि क्या करें! गड़गड़, गुम्गुम् की आवाज बहती गई, उसके साथ-साथ कम्पन भी। "बन्दूक!” डम्बार्टन दबे गले से चिल्ला उठा। आदिम आदमी की नींद टूट गई। वह खाट पर उठ बैठा। मैं डम्बार्टन के हाथ से बन्दूक ले करके भी कुछ कर नहीं सका। सिर्फ तन्मय होकर सामने की तरफ ताकने लगा।

वह तब तक उठ खड़ा हुआ। रोएँदार भौंहों के नीचे गढ़ों में ढंकी आँखों से एकटक हमें देखने लगा। सीधा खड़ा था, इसलिए समझा कि पाँच फुट से ज्यादा लम्बा नहीं है। कन्धा गुरिल्ले जैसा चौड़ा और पीठ शायद उम्र के लिहाज से झुक गई है। उसकी नजरों के भाव से समझा, उसने हम जैसे आदमी को इससे पहले नहीं देखा है।

भूकम्प के बार-बार धक्के लगने से वह जैसे डर गया हो। एक कातर लेकिन कर्कश आवाज हुई। मैंने समझा, गुफा की दीवार में कहीं दरार पड़ी। हम लोगों ने और राह नहीं देखी, एक ही साँस में कमरे से बाहर भागे। दूसरे ही क्षण आदिम आदमी वाले घर की छत धंस गई।

कार्डोवा और उनके साथियों की लाश से कतराकर भागते-भागते डम्बार्टन ने कहा, "उस अन्तिम बात का मतलब समझा न? पत्थर से दब करके ही उसकी मौत हुई।"

धरती का हिलना थम नहीं रहा था। हम कैसे बाहर निकल पाएँगे, नहीं जानता। घुड़ककर चलनेवाला रास्ता तो अभी बाकी ही है। उस बड़े-से हाल के करीब पहुंचा, तो देखा, सामने दिन की रोशनी दिखाई दे रही है। यह कैसे दिखा? रास्ता तो एक ही है! गलत रास्ते से आने की कोई सम्भावना नहीं थी।
आगे बढ़कर देखा, भूकम्प से घर की दीवार में दरार पड़कर निकलने का एक नया रास्ता बन गया है।

पत्थरों के टूटने से कुछ अनोखी तसवीरें और नक्शे सदा के लिए बरबाद हो गए, यह सोचने का समय नहीं था। गुफा के नए रास्ते से हम दोनों दौड़ते हुए पत्थरों को फलाँगते बाहर निकले।

बाहर आने पर कुछ सेकंड के लिए दिशा-भ्रम हुआ था, पर ऐंडीज़ की चोटी पर बर्फ देखकर पता चल गया। हमें बाईं ओर चलना होगा, तभी हम गुफा के असली दरवाजे और अपने निकलने के सही रास्ते पर पहुँच सकेंगे।
बीच में आधे मिनट के लिए भूकम्प का धक्का रुका था, पर फिर से गुम्गुम आवाज के साथ जोरों की झकझोर शुरू हो गई।

लेकिन भूकम्प की आवाज के सिवाय भी कोई आवाज आती-सी लग रही थी। वह आवाज आ रही थी हमारी दाईं ओर के उस भयंकर जंगल से। आवाज से लग रहा था, जैसे एक ही साथ अनगिनती दमामे बज रहे हों और उसी के साथ जैसे असंख्य अजाने जीव आतंक से चीख रहे हों। जंगल की तरफ ताकते हुए मैं खड़ा हो गया था, पर मेरी आस्तीन को खींचकर डम्बार्टन ने कहा, “रुको मत। चलते चलो।"

रास्ता थोड़ा समतल हो आया था, इसलिए हम लोगों ने दौड़ना कुछ तेज कर दिया। लेकिन दाईं ओर से मैं अपनी नजर हटा नहीं पा रहा था क्योंकि वह धपधपाहट और उसके साथ चीख की आवाज बढ़ती ही जा रही थी। करीब आती जा रही थी।

इतने में जानवरों पर नजर पड़ गई। जंगल से वह सब पागल की भाँति दौड़ते चले आ रहे थे। पहली पाँत में मैमथ-विशाल, लोमस हाथी। चीखते हुए हुड़मुड़ करते हुए जंगल से खुली जगह की तरफ-यानी हमारी ही ओर चले आ रहे थे।
उस अजीब और भयावने दृश्य को देखकर हम लोगों के पाँव मानो अब बढ़ना नहीं चाह रहे थे और इधर वे जानवर हम लोगों से तीन-चार सौ गज़ की दूरी पर आ पहुँचे।

डम्बार्टन अचानक सूखे गले से चीखकर बोल उठा, “वह क्या है?"
मैंने भी देखा। मैमथ के ठीक पीछे एक अजीबोगरीब जानवर, लम्बा गला, नाक के ऊपर सींग, पीठ पर काँटों की झाड़ी-सी। गुफा की दीवार पर जो देखा था, वह जानवर ! पूँछ पर भार देकर जान के डर से कंगारू की तरह उछलउछलकर भागा जा रहा था।
मेरे तो हाथ-पाँव ठंडे हो आए। मेरे हाथ में ऐनिस्थियम पिस्तौल थी। लेकिन पशुओं की इस उन्मत्त सेना के सामने इस पिस्तौल की बिसात भी क्या!
डम्बार्टन के पाँव काँप रहे थे। “बस, अब अन्त आ ही गया!" कहकर वह धप्प से जमीन पर बैठ गया।
मैंने एक झटके से डम्बार्टन को खींचकर उठाते हुए कहा, “पागल मत बनो। अभी भी भागने का समय है।"
मुँह से तो मैं बोल गया, लेकिन सामने ही देख रहा था कि मैमथों का झुंड सौ गज के फासले पर आ पहुंचा।

भूकम्प का जोर कुछ घट आया था। फिर से जोरों की थरथराहट शुरू हो गई। उसके साथ ही उन जानवरों का चीत्कार बढ़ गया। पीछे बाइसनों का झुंड दिखाई दिया। कुल मिलाकर वह कैसी जो एक खौफनाक आवाज थी, मैं कहकर नहीं बता सकता।

कुछ दूर तक दौड़कर और आगे नहीं बढ़ सका। ऐसी हालत में बचने की उम्मीद पागलपन के सिवाय और कुछ नहीं। उससे तो अच्छा है, उन हाथियों के पैरों तले रौंदे जाने से पहले उन्हें नजदीक से अच्छी तरह देख लूँ! इसके पहले ऐसा अवसर किसी भी सभ्य आदमी को नहीं मिला होगा!
डम्बार्टन और मैं दोनों ही रुक गए और आगे बढ़ते आनेवाले जानवरों की ओर मुँह करके खड़े हो गए। अब और कितनी देर? बहुत ज्यादा तो बीस सेकंड!

भूकम्प का जोर और ज्यादा बढ़ गया। उससे उन जानवरों में और भी तहलका-सा मच गया। गोया वे यह नहीं ठीक कर पा रहे थे कि किधर को जाएँ। किंकर्तव्यविमूढ़ होकर जिधर-तिधर भाग रहे थे, आपस में ही टकरा रहे थे।

जो दृश्य इसके बाद देखा, वैसा दृश्य मैंने जीवन में कभी नहीं देखा। भविष्य में भी कभी देखूँगा कि नहीं, नहीं जानता! सामने मैमथों का जो झुंड चला आ रहा था, उसके पाँव के नीचे की जमीन जंगल के समानान्तर एक रेखा में प्रायः मीलभर तक फटकर दो भागों में बँट गई। उससे जो विराट खाई-सी हो गई, उसमें नहीं भी तो कुछ सौ हाथी, बाइसन और वह अनाम जानवर चीखते हुए माटी के अन्दर समा गए। बाकी जानवरों ने उलटी दिशा में दौड़ना शुरू किया यानी फिर जंगल की ओर।।
और हम? हमें आखिर इस प्रलयकारी भूकम्प ने ही मौत से बचा लिया।

गुफा के मुँह के पास जाकर देखा, उसके अन्दर जाने का कोई उपाय नहीं रह गया था। छत गिर गई। अन्दर जो कुछ भी था, सब सदा के लिए निश्चिन्त हो गया। रह गए सिर्फ मेरे लिए हुए चित्र ।

दरार से बाहर आकर देखा, मिगुएल भागा नहीं है। लेकिन डर से लगभग अधमरा हो गया है। हमें देखकर खुशी से लिपटकर रो-सा पड़ा!

कोचाबम्बा लौटते हुए डम्बार्टन ने कहा, “समझ रहे हो, हम लोगों ने भी सही नहीं कहा, कार्डोवा ने भी ठीक नहीं कहा। यह गुफा-आदमी है यह अंदाज तो हमारा ठीक है। लेकिन यह भी ठीक है कि उसकी कुछ तसवीरें हाल की आँकी हुई हैं। लिहाजा इसमें कार्डोवा की भूल नहीं है।"

डमबार्टन ने सिर हिलाकर कहा, "यकीन आता है कि लोग पचास हजार साल के केवमैन की बात पर विश्वास करेंगे?"

मैंने हँसकर कहा, “जो हमारे पुराण के सहस्रायु मुनि-ऋषि पर विश्वास करते हैं, कम-से-कम वे जरूर करेंगे।"

  • सत्यजित रायकी बांग्ला कहानियाँ हिन्दी में
  • बंगाली/बांग्ला कहानियां और लोक कथाएँ
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां