पृथ्वी का क्रोध (बाल कहानी) : सुमित्रानंदन पंत
Prithvi Ka Krodh (Hindi Story) : Sumitranandan Pant
लालू भालू अपनी बीवी और छोटे-छोटे चार बच्चों के साथ जंगल की एक गुफा में रहता था। उसकी बीवी का नाम भानुमति था। उसके बच्चों का नाम था—मोना, निक्कू, रोमा और मीनू। सब लोग बड़े प्रेम से रहते थे। एक दिन जंगल में एक जानवर शहद बेचने आया। वह जानवर बंदर था। बंदर की भालू से बहुत पक्की दोस्ती थी। उसने भालू को एक बड़ी शीशी में शहद दिया। भालू बहुत खुश हुआ। उसने बंदर से कहा, ‘कल तुम मेरे यहां दावत खाने आओ।’ भानुमति प्रसन्न होकर बोली, ‘देवरजी, मेरी देवरानी और बच्चों को भी लाइएगा।’
भालू ने जंगल के सब पशु-पक्षियों को भी दावत के लिए बुलाय था। दावत खाने के बाद बीवियां तो गुफा में बैठ कर बातें करने लगीं और आदमी लोग बाहर चले गए। वे खेलने लगे। बच्चे भी अपने पिताओं का खेल देखने बाहर आ गए। खेल देखने में उन्हें आनंद आने लगा, कभी वे ताली पीटते, कभी शोर मचाते तो कभी उछल-उछलकर हंसते। उनके पिताओं ने पहले फुटबाल खेली। फुटबाल में हाथी जीत गया। फिर उन लोगों ने पतंगबाजी करनी शुरू की। बंदर ने हाथी की पतंग काट दी। हाथी ने सबसे कहा, अब आइसपाइस खेलेंगे। देखें उसमें कौन हारता है? बंदर चोर बना। हाथी, चीता, घोड़ा, भालू, कुत्ता, बिल्ली, कोयल, मोर, तीतर, बाज, चील, कबूतर, नीलकंठ आदि छिप गए। बंदर ने सबसे पहले हाथी को पकड़ा, क्योंकि वह बहुत बड़ा था, छिप नहीं सकता था। फिर इन लोगों ने ऊंच- नीच खेलना शुरू किया। खेलते-खेलते जब ये लोग थक गए तो सुस्ताने लगे।
भालू ने कोयल से कहा, ‘कोयल रानी, आज तो अपना गाना सुना दो।’ कोयल गाने लगी तो मोर नाचने लगा। मोर को नाचता देख भालू और बंदर भी नाचने लगे। पर और लोगों ने उन्हें नाचने नहीं दिया, बेचारे चुपचाप मन मारकर बैठ गए। मोर ने अपना नाच खत्म किया ही था कि एक आइसक्रीम वाला आ गया। लाल, पीली, हरी, नीली आइसक्रीम सबने खाई। आइसक्रीम वाले के साथ एक गुब्बारे वाला भी आ गया। बच्चों ने खूब सारे गुब्बारे खरीदे। इतने में रात हो गई। सब लोग अपने-अपने घर चले गए। सबको भालू की दी हुई दावत बड़ी अच्छी लगी। उन्होंने दावत की तारीफ की और सोचा कि अब वे भी वैसी दावत देंगे।
अपने घर पहुंचकर हाथी को सर्दी हो गई, क्योंकि उसने बहुत आइसक्रीम खाई थी। उसकी बीवी ने डॉक्टर शेर को बुलाया। डॉक्टर शेर ने हाथी को देखा। थर्मामीटर से उसका बुखार लिया, रक्तचाप देखा और आला लगाकर छाती तथा पीठ देखी। फिर चश्मा लगाकर उसने कागज पर दवाइयां लिख दीं। भालू की बीवी की ओर देखते हुए कहा, ‘आपके पति को निमोनिया होने का डर है। मैंने दवाइयां लिख दी हैं। ठीक समय पर दे दीजिएगा। अभी एक इंजेक्शन दे रहा हूं, शाम को फिर से दूंगा। कम-से-कम बारह इंजेक्शन देने होंगे।’
डॉक्टर शेर तो इंजेक्शन देकर चला गया। उसके गए बाद हाथी को छींक पर छींक आने लगी। वह अपनी बीवी पर बिगड़ गया, ‘तुमने गलत डॉक्टर को बुलाया। मैं इससे इलाज नहीं करवाऊंगा। इसके इंजेक्शन से मुझे छींक आ रही हैं।’ बीवी चुप रही। उसने सोचा बीमार से बहस करना ठीक नहीं है। वह डॉक्टर के बताए के अनुसार, दवाई देती गई। हाथी पहले तो दवाई देखकर बिगड़ जाता, फिर खा लेता। दस दिन बाद हाथी ठीक हो गया। उसकी बीवी को बहुत अच्छा लगा। वह उसके चिड़चिड़े स्वभाव से थक गई थी। उसने भगवान से कहा, ‘भगवान बीमार का स्वभाव मत बिगाड़ा करो।’
जब हाथी बिल्कुल ठीक हो गया, तब चीते ने दावत दी। उस दावत में चीते के मामा भी थे। चीते के मामा प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। उनके पास चन्द्रमा के पास जाने के लिए एक मशीन थी। सब आलसी जानवरों का मन चन्द्रमा के पास जाने का हुआ। बीवियों ने मना किया, ‘वहां मत जाइए। वह पितृलोक है।’ आलसी जानवर बिगड़ गए, ‘हम लोग पढ़े-लिखे हैं। सब समझते हैं। तुम लोग मूर्ख हो, अनपढ़ हो।’ बच्चों और बीवियों को धरती पर ही छोड़कर आलसी जानवरों ने एक विशिष्ट पोशाक पहनी और मशीन पर बैठ कर चन्द्रलोक के लिए रवाना हो गए।
चन्द्रलोक पहुंच कर उन्हें बड़ी निराशा हुई। धरती से प्यारा दिखनेवाला चंदा मामा उन्हें बिल्कुल भी सुन्दर नहीं लगा। ऊबड़-खाबड़ चट्टानी जगह, पहाड़ों तथा गहरे और चौड़े गोल गड्ढों से भरी हुई थी। वहां न सूरज का फैला हुआ प्रकाश था, न हवा थी और न पानी था। जानवरों का दम घुटने लगा। सबके पास ऑक्सीजन लेने की थैलियां थीं, फिर भी वे परेशान हो गए। चीता, हाथी और शेर तो बेहोश हो गए, चीते के मामा ने उनको दवाई दी और उनको तथा सभी जानवरों को मशीन में बैठाया, मशीन धरती की ओर आने लगी ज्यों-ज्यों मशीन धरती के निकट आने लगी, त्यों-त्यों जानवरों को अच्छा लगने लगा।
जब वे पृथ्वी पर पहुंचे, तब पृथ्वी पर तेज अंधड़ आ चुका था। उन लोगों के घर धूल से भर गए थे। उनकी बीवियों ने अपने-अपने घरों में झाड़ू लगाई और पोछा लगाया। काम करते-करते वे बेहद थक गई थीं। अपने पतियों को देखकर वे बिगड़ने लगीं, ‘तुम माता पृथ्वी को छोड़कर चन्द्रलोक क्यों गए? मालूम है, माता को कितना गुस्सा आ गया था? जितनी देर तुम लोग बाहर रहे, उतनी देर तक उनके मुंह से धूल की आंधी निकलकर हम लोगों को धमकाती रही।’
(कहानी संग्रह : आलू और बैगन सुंदरी 'से'
साभार : सुमिता पंत)