परेशान करने वाला दोस्त : कश्मीरी लोक-कथा
Preshan Karne Wala Dost : Lok-Katha (Kashmir)
यह बहुत पुरानी बात है कि एक बार काश्मीर में एक मुकद्दम अपने गाँव के एक आदमी का दोस्त बन गया। यह गाँव का आदमी आगे चल कर इतना बुरा साबित हुआ कि वह उससे छुटकारा पाने की सोचने लगा।
पर यह जितना कहना आसान था करना उतना ही मुश्किल था क्योंकि उनके बीच इतनी पक्की दोस्ती हो गयी थी कि वह यह भी नहीं चाहता था कि उसको बुरा लगे। इसके अलावा उसने उस आदमी को अपने कुछ भेद भी बता दिये थे।
आखिर एक तरकीब उसके दिमाग में आयी। वह अपनी पत्नी से बोला — “प्रिये जैसे ही हम लोग शाम का खाना खाने बैठेंगे तुम देखोगी कि वह आदमी इस आशा में यहाँ आयेगा कि उसको भी कुछ खाना मिल जायेगा।
इसलिये मैं अभी बाहर जाता हूँ और फिर अपना खाना खाने के लिये बाद में घर वापस आता हूँ। तुम थोड़ा सा खाना खा लेना और बाकी बचा हुआ खाना उठा कर रख देना। जब वह घर आये तो उससे कहना कि हम लोगों ने खाना खा लिया है।
और अगर वह यह कहे “कोई बात नहीं तुम मेरे लिये कुछ खाना बना दो।” तो तुम उससे कह देना कि ऐसा शमनाक काम तुम अपने पति की गैरहाजिरी में नहीं कर सकतीं। उसके साथ तमीज से पेश आना पर उसको खाना नहीं देना।”
ऐसा कह कर मुकद्दम चला गया। कुछ देर में ही वह आदमी आया। जब वह आया तो पत्नी ने वैसा ही किया जैसा कि उसके पति ने उससे करने के लिये कहा था।
उसने उससे कहा — “मुझे अफसोस है कि मुकद्दम तो बाहर गये हैं। अगर वह यहाँ होते तो यकीनन आपके लिये एक मुर्गा मार देते।”
वह आदमी बोला — “इसमें अफसोस की क्या बात है। मैं तो हूँ यहाँ। खाने के लिये मुर्गा मैं मारे देता हूँ।”
पत्नी बोली — “नहीं नहीं। अगर मेरे पति को यह पता चल गया तो वह मुझसे बहुत नाराज होंगे। आप परेशान न हों और अभी यहाँ से चले जायें और तब आयें जब मुकद्दम घर पर हों।”
पर वह आदमी भी आसानी से जाने वाला नहीं था। वह बोला — “अरे इसमें परेशानी की क्या बात है। आप मेरा यकीन करें मैं भी थोड़ा सा काम करना चाहता हूँ। मैं जब तक एक मुर्गा मारता हूँ तब तक आप उसको पकाने के लिये आग जलाइये। जब मुकद्दम आयेगा तो मैं उसको सब कुछ समझा दूँगा।” ऐसा कहते हुए वह बाहर मैदान में निकल गया जहाँ मुकद्दम अपने मुर्गे मुर्गियाँ रखता था।
वहाँ से उसने सबसे अच्छा एक मुर्गा पकड़ा और उसको मारने ही वाला था कि मुकद्दम की पत्नी बोली — “ओह उसे मत मारो। मेरे पति खाना ले कर अभी आते ही होंगे।”
पर वह आदमी तो मानने वाला था नहीं। उसने मुर्गा लिया और उसे मार दिया। मुर्गा उसने मुकद्दम की पत्नी को देते हुए कहा कि वह उसको उसके लिये पका दे। इस मुश्किल से बचने का कोई और तरीका न देख कर पत्नी उसको पकाने के लिये चली गयी। खाना तैयार होने से पहले पहले ही मुकद्दम घर लौट आया।
आते ही उसने अपने दोस्त को सलाम किया और कुछ सामान्य बातें पूछने के बाद वह तुरन्त ही रसोईघर की तरफ दौड़ा। उसने अपनी पत्नी से पूछा कि उसने क्या किया तो पत्नी ने उसे सब कुछ बता दिया।
वह बोला — “चलो इसमें कोई ज़्यादा नुकसान नहीं हुआ। हमें इसको अच्छी तरह से देखना है। सुनो जब मुर्गा तैयार हो जाये तो तुम इसे उसे थोड़ा सा ही देना और ताँबे के बरतन में देना। और बाकी बचा मुझे दे देना और मिट्टी के बरतन में देना।”
सो जब खाना तैयार हो गया तो पत्नी ने वैसा ही किया।
पर वह दोस्त बहुत चालाक था। उसने देखा कि कि उसको बहुत थोड़ा सा मुर्गा परोसा गया है और मुकद्दम के सामने बहुत सारा मुर्गा परोसा गया है।
वह बोला — “नहीं नहीं यह नहीं हो सकता कि मैं ताँबे के बरतन में खाऊँ और तुम मिट्टी के बरतन में खाओ। नहीं नहीं ऐसा कभी नहीं हो सकता।”
कहते हुए उसने मुकद्दम के सामने रखा मिट्टी का बरतन अपने सामने खिसका लिया और अपने आगे का ताँबे का बरतन मुकद्दम के आगे खिसका दिया। इस तरह मुकद्दम की सारी कोशिश बेकार गयी तो उसकी तो जैसे साँस ही रुक गयी।
यह मामला इस तरह हाथ से जाते देख कर वह अपनी पत्नी से बोला — “कई दिनों से एक देव हमारे घर को डरा रहा है। एक दो बार वह इस समय भी आया है और उसने घर की सारी रोशनी बुझा दी है।”
आदमी बोला — “क्या सचमुच?”
पत्नी ने पति का इशारा समझा और तुरन्त ही लैम्प बुझा दिया। लैम्प बुझते ही घर में चारों तरफ अँधेरा छा गया। अँधेरे में ही मुकद्दम ने अपने दोस्त के सामने से मिट्टी का बरतन उठाने की कोशिश की पर दोस्त ने भी मुकद्दम के हाथों की हलचल को भाँप लिया। उसने बरतन को अपने बाँये तरफ रख लिया और दूसरे हाथ में लैम्प पकड़ लिया और उससे मुकद्दम को बड़ी बेरहमी से पीटना शुरू कर दिया।
बेचारा मुकद्दम चिल्लाया “ओह ओह।” उधर मुकद्दम की पत्नी चिल्लायी — “तुम मेरे पति के साथ क्या कर रहे हो?”
दोस्त बोला — “कुछ नहीं। यह देव मेरा खाना चुराने की कोशिश कर रहा है। सावधान रहना।” कह कर वह लैम्प से मुकद्दम को जितनी जोर से मार सकता था मारता रहा।
आखिर वह लैम्प टूट गया तो वह दोस्त अपना मिट्टी का बरतन उठा कर वहाँ से भाग लिया। मुकद्दम बेचारा कुछ न कर सका बल्कि और पिट कर रह गया।
(सुषमा गुप्ता)