प्रेमी (डैनिश कहानी) : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन

Premi (Danish Story in Hindi) : Hans Christian Andersen

दराज़ में बहुत सारे खिलौनों के बीच में एक लट्टू और एक गेंद पड़े थे। एक दिन लट्टू ने गेंद से कहा, 'हम इस दराज़ में कब से एक दूसरे के साथ पड़े हैं, क्या हमें सगाई नहीं कर लेनी चाहिए?' पर गेंद जो मोरक्को के चमड़े से बनी थी अपने को बहुत ऊँचा समझती थी। उसने लट्टू के प्रश्न का जवाब तक नहीं दिया।

अगले दिन जिस लड़के के ये सारे खिलौने थे, लट्टू को लाल और पीले रंग से रंगकर बीच में पीतल की एक कील ठोंक दी। अब जब वह घूमता था तो बहुत अच्छा दिखता था।

लट्टू् ने फिर गेंद से कहा, 'अब मझे देखो! क्या तम नहीं सोचती कि हमारा जोड़ा बढ़िया रहेगा? तुम कूद सकती हो और मैं नाच सकता हूँ! हम साथ-साथ कितने खुश रहेंगे।'

"ऐसा तुम सोचते हो।' गेंद ने जवाब दिया। 'तुम्हें पता भी है कि मेरे माता-पिता मोरक्को की लकड़ी का तख्ता थे और मेरे अंदर कॉर्क है?'

लट्टू ने अपनी तारीफ में कहा, 'मैं भी बढ़िया लकड़ी का हूँ। मेयर ने अपने तहखाने की खराद पर खुद मुझे बनाया था और बनाकर बहुत खुश हुआ था।'

गेंद ने पछा, 'मझे क्या पता कि तुम जो कह रहे हो वह सच है?'

लट्टू ने जवाब दिया, 'अगर मैं झूठ बोल रहा हूँ तो मुझे कोई कभी न चलाए।

गेंद ने कहा, 'तुम अपनी तारीफ में अच्छा बोल लेते हो, पर मैं फिर भी मना करूँगी। क्योंकि मेरी सगाई अबाबील से पक्की ही समझो। जितनी बार मैं ऊपर हवा में उछलती हूँ, वह घोंसले से सिर निकालकर पूछता है, "करोगी, करोगी?" मैंने चाहे अभी तक हाँ कहा नहीं है पर कहने का तय कर लिया है, और वह सगाई होने जैसा ही समझो। पर मैं वायदा करती हैं कि तुम्हें कभी नहीं भुलाऊँगी।'

लट्टू ने गुर्राकर कहा, 'उससे बड़ा फर्क पड़ेगा!' बस, यही उनकी बातचीत का अंत था।

अगले दिन गेंद को दराज से निकाला गया। लट्टू देखता ही रह गया। गेंद को आसमान में इतना ऊँचा फेंका गया कि वह चिडिया जैसी दिख थी और फिर वह गायब हो गई। हर बार वह जमीन को छूती और बहुत ऊँची उछलती थी। लट्टू् तय नहीं कर पा रहा था कि वह अबाबील की झलक देखने के लिए ऊपर जाती थी या सिर्फ इसलिए कि उसके अंदर कॉर्क भरा था।

नवीं बार जब गेंद हवा में उछली तो फिर वापस नहीं आईं। लड़का सब तरफ ढूँढ़ता रहा, पर वह नहीं मिली।

लट्टू् ने कहा, 'मैं जानता हूँ कि वह कहाँ है। वह ऊपर अबाबील के घोंसले में उससे शादी कर रही है।'

लट्टू् जितना गेंद के बारे में सोचता उतना ही उसका प्यार बढ़ता जा रहा था। वह मिल नहीं सकती थी इसलिए उसकी पाने की इच्छा बढ़ती जा रही थी। उसे सबसे ज्यादा अजीब यह बात लगी थी कि गेंद को कोई दूसरा ज्यादा पसंद था। लट्टू घूमता रहा, गोल-गोल चलते हुए वह पूरा वक्त गेंद के बारे में ही सोचता रहा। उसकी कल्पना में वह और ज्यादा सुंदर होती जा रही थी। सालों बीत गए आखिर वह एक पुराना प्यार बनकर रह गई।

अब लट्टू् जवान नहीं था, पर एक दिन फिर उसे सुनहरी रंग में रंग दिया गया। और वह एक सुनहरी लट्टू् बन गया जो घूमता और ऊपर हवा में उछलता था।

एक दिन वह खूब उछला और गायब हो गया। सब उसे ढूँढ़ते रहे, यहाँ तक कि तहखाने में भी ढूँढ़ा पर वह नहीं मिला। कहाँ गया?

वह बेचारा कूड़ेदान में चला गया था जिसमें बहुत तरह की चीजें पड़ी थीं जैसे मलवा, बंदगोभी का डंठल, कूड़ा, मिट्टी और बहुत सारे पत्ते जो छत की नाली से आए थे।

'यह जगह तो अच्छी है पर यहाँ कितनी तरह का कूड़ा-कचरा पड़ा है। देखो, कितने दिन यहाँ रह पाऊँगा ।' लट्टू सोच रहा था और बंदगोभी के डंठल की तरफ देख रहा था, तभी उसकी नज़र एक अजीब सी गोल चीज़ पर पड़ी जो देखने में सड़े हुए सेब जैसी लग रही थी। पर वह सेब नहीं गेंद थी जो न जाने कितने सालों से उसमें पड़ी थी ।

गेंद ने सुनहरी लट्टू् की तरफ देखते हुए कहा, 'भगवान का शुक्र है कि कोई मेरी तरह का आया जिससे बात करने में मुझे शरम नहीं आएगी। मुझे एक युवती ने मोरक्को के चमड़े से बनाया था और मेरे अंदर कॉर्क भरा है। पर अब उसे देख पाना मुश्किल है। मैं एक अबाबील से शादी करने वाली थी पर तभी छत से नीचे की नाली में गिर गई। पाँच साल मैं वहीं पड़ी रही। किसी भी युवती के लिए यह एक लंबा वक्त है।'

लट्टू् ने कुछ नहीं कहा। वह अपनी पुरानी प्रिया के बारे में सोच रहा था। गेंद की बातें सुनकर वह समझ गया कि यह वही है।

तभी एक नौकरानी कुछ फेंकने के लिए आई और चिल्लाई, 'अरे, यह | रहा सुनहरी लट्टू्।'

सुनहरी लट्टू् को वापिस बैठक में लाया गया। वहाँ उसका खूब स्वागत हुआ और इज्जत मिली। किसी ने कभी भी गेंद के बारे में कुछ नहीं कहा। | लट्टू् ने भी फिर कभी अपने प्रिय की बात नहीं की। जब किसी का प्रिय पाँच साल नाली में पड़ा रहे तो उसके बारे में भूला ही जाता है। अगर वह कूड़ेदान में मिले तो उसे पहचाना भी नहीं जा सकता ।

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