प्रेम में सम्सा (जापानी कहानी) : हारुकी मुराकामी

Prem Mein Samsa (Japanese Story in Hindi) : Haruki Murakami

नींद से जागते ही उसे पता चला कि उस का कायांतरण हो गया है और वह ग्रिगोर सम्सा बन गया है।

वह छत को ताकता हुआ पीठ के बल चारपाई पर सीधे लेटा रहा। उसकी आँखों को प्रकाश की अनुपस्थिति से सामंजस्य बनाने में समय लगा। छत हर जगह दिखने वाली सामान्य सी छत थी। कभी उस पर सफ़ेद रंग से अथवा संभवतः हल्का पीलापन लिए सफ़ेद रंग से पुताई की गयी रही होगी। लेकिन वर्षों की धूल और गंदगी ने उसका रंग फटे दूध जैसा कर दिया था। उसमें कोई सजावट नहीं थी, न ही कोई खास विशेषता। कोई तर्क नहीं, कोई सन्देश नहीं। वह अपनी बनावट का उद्देश्य अवश्य पूरा करती थी पर उससे अधिक किसी बात का दावा नहीं करती थी।

उसके बायीं ओर, कमरे की एक साइड में एक ऊँची खिड़की थी किंतु उसके पर्दे हटा दिए गए थे और फ्रेम में लकड़ी के तख्ते कीलें ठोक कर जड़ दिए गए थे। क्षैतिज रूप से लगे दो तख्तों के बीच में लगभग एक इंच का अंतर रखा गया था, किसी खास उद्देश्य से अथवा यूँ ही, यह स्पष्ट नहीं था। उनसे हो कर सुबह के सूरज की किरणें चमकती हुई कमरे के फर्श पर समानांतर पंक्तियाँ बना रही थी। खिड़की इस अनगढ़ तरीके से क्यों बंद की गयी थी ? क्या कोई बड़ा तूफान या टोरनैडो आने वाला था? अथवा यह किसी को भीतर आने से रोकने के लिए था? अथवा किसी को (संभवतः उसे ही?) बाहर जाने से रोकने के लिए?

पीठ के बल लेटे-लेटे ही उसने अपना सर घुमाया और बाकी कमरे का जायजा लिया। जिस बेड पर वह लेटा था उसे छोड़ कर कोई अन्य फर्नीचर वह कमरे में नहीं देख पाया। कोई अलमारी नहीं, दराज नहीं, कोई मेज नहीं, कोई कुर्सी नहीं। कोई तस्वीर, घड़ी, अथवा दर्पण दीवार पर नहीं थे। न कोई लैम्प अथवा प्रकाश का अन्य कोई स्रोत। न ही उसे फर्श पर कोई दरी अथवा कालीन ही बिछा दिखाई दिया। बस लकड़ी ही लकड़ी। दीवारें किसी जटिल डिजाइन के वॉलपेपर से ढकी थीं किंतु यह इतना पुराना और घिस चुका था कि कमजोर प्रकाश में, उस पर क्या डिजाइन बनी थी, यह बता पाना लगभग असंभव था।

कमरा कभी संभवतः एक सामान्य शयन कक्ष के रूप में उपयोग में लाया जाता रहा होगा। किन्तु अब मानव जीवन से संबंध रखने वाली हर वस्तु नोच कर हटा दी जा चुकी थी। जो एकमात्र चीज बची हुई थी वह थी कोने में पड़ी उसकी एकाकी चारपाई। और उस पर कोई बिस्तर नहीं था। कोई चादर नहीं, कोई रजाई नहीं, कोई तकिया नहीं। बस एक प्राचीन दरी मात्र।

सम्सा को कुछ भान नहीं था कि वह कहाँ था अथवा उसे क्या करना चाहिए। वह केवल इतना जानता था कि वह अब एक मनुष्य था जिसका नाम ग्रिगोर सम्सा था। और यह बात वह कैसे जानता था? संभवतः यह बात, जब वह सोया पड़ा था, किसी ने उसके कान में फुसफुसा कर कही थी ? लेकिन ग्रिगोर सम्सा बनने के पूर्व वह कौन था? वह क्या था?

जिस क्षण उसने इन प्रश्नों के संबंध में सोचना प्रारम्भ किया उसी क्षण उसके मस्तिष्क में मच्छरों का एक झुण्ड सा भिनभिनाने लगा। यह झुण्ड ज्यों-ज्यों उसके मस्तिष्क के कोमल भाग की ओर बढ़ता गया निरंतर अधिक बड़ा और अधिक सघन होता गया, लगातार भिनभिनाता हुआ। सम्सा ने सोचना बंद कर देने का निर्णय लिया। समय के इस बिंदु पर कुछ भी सोचने की कोशिश करना बड़ा भारी बोझ था।

खैर अभी तो उसे यह सीखना था कि अपने शरीर को गतिशील कैसे किया जाये। वह यहाँ लेटा हुआ हमेशा ही छत को ताकता नहीं रह सकता था। यह हालत उसके लिए खतरनाक थी। उदाहरण के लिए किसी शिकारी पक्षी के आक्रमण के दौरान उसके बचने की कोई संभावना नहीं थी। पहले कदम के रूप में उसने अपनी उँगलियों को गतिशील करने का प्रयत्न किया। वे दस थीं, उसके दो हाथों से जुड़ी हुई लम्बी चीजें। हरेक में कई जोड़ थे, जिसके कारण उनकी गति में सामंजस्य बिठाना बहुत जटिल हो रहा था। स्थिति को और बदतर बनाते हुए, उसका शरीर एकदम सुन्न हो रहा था, मानों वह किसी चिपचिपे, गाढ़े द्रव में डूबा था, जिसके कारण अंतिम सिरे तक शक्ति का सम्प्रेषण कठिन हो रहा था।

आखिर में, कई बार के प्रयत्नों और असफलताओं के पश्चात, अपनी आँखें बंद करने और मस्तिष्क को एकाग्र करने के पश्चात वह अपनी उंगलियों को अपने नियंत्रण में ला पाने में सफल रहा। थोड़ा-थोड़ा करके वह उनसे एक साथ काम लेना सीख रहा था। जैसे ही उसकी उंगलियां क्रियाशील हुई वह सुन्नपन जो उसके शरीर को अपनी गिरफ्त में लिए हुए था, समाप्त हो गया। परंतु उसके स्थान पर- जैसे ज्वार के उतर जाने के पश्चात कोई दुर्घर्ष चट्टान प्रगट हो जाती है- उसने अत्यंत तीव्र पीड़ा का अनुभव किया।

सम्सा को यह समझने में कुछ समय लगा कि यह पीड़ा ‘भूख’ थी। उसके लिए भोजन की यह अदम्य इच्छा एकदम नयी थी, अथवा कम से कम उसे इस तरह के किसी अनुभव की स्मृति नहीं थी। ऐसा लग रहा था मानों उसने एक हफ्ते से एक कौर भी न खाया हो। मानों उसके शरीर का केंद्रबिंदु अब एक क्षुधातुर शून्य हो। उसकी हड्डियां चटचटायी; उसकी मांसपेशियों में खिंचाव आया; उसकी देह में ऐंठन सी होने लगी।

यह पीड़ा सहन करने में अपने को अक्षम पा कर सम्सा ने दरी पर अपनी कुहनियां टिकाई और थोड़ा-थोड़ा कर के अपने को ऊपर उठाने का प्रयत्न करने लगा। इस प्रक्रिया में उसकी रीढ़ की हड्डी से कई बार मंद और कष्टदायक कड़कड़ाहट हुई। हे भगवान, सम्सा ने सोचा, मैं यहाँ कितने समय से लेटा हुआ था ? उसके शरीर ने हर हरकत का प्रतिरोध किया। लेकिन वह संघर्ष करता रहा, अपनी सारी शक्ति जुटा कर, जब तक कि आखिर में वह उठ कर बैठ जाने में सफल नहीं हो गया।

सम्सा ने अपनी नग्न देह की ओर निराशा से देखा। यह कितनी ख़राब तरीके से निर्मित थी! ख़राब से भी ख़राब। इसमें आत्मरक्षा का कोई साधन नहीं था। कोमल सफ़ेद त्वचा (बस नाम मात्र के बालों से ढकी हुई ) और उस में से झांकती नीली रक्त वाहिकाएं। एक नाजुक असुरक्षित पेट, हास्यास्पद और असंभव आकार के जननांग, लटकी हुई भुजाएं और टाँगें (बस दो, दो ), एक पतली सी सरलता से टूट सकने वाली गर्दन, एक विशाल, अनुपातहीन आकार का सिर जिस के ऊपर कुछ कड़े रूखे बाल, दो विचित्र कान- समुद्री घोंघों की भांति बाहर की ओर निकले हुए। क्या यह चीज वास्तव में वही है? क्या कोई शरीर संसार में जीवित बचे रहने के लिए इतना विचित्र, नष्ट किये जाने के लिए इतना आसान (बिना किसी सुरक्षा उपकरण के, आक्रमण हेतु बिना किसी हथियार के) हो सकता है। वह किसी मछली के रूप में रूपांतरित क्यों नहीं हुआ? अथवा एक सूरजमुखी के रूप में ? किसी भी रूप में एक मछली अथवा एक सूरजमुखी होना एक मनुष्य ग्रिगोर सम्सा होने के मुकाबले अधिक तर्कसंगत था।

अपने को समेट कर, उसने बेड के किनारे से अपने पैर नीचे लटकाए जब तक कि उसके तलुए फर्श का स्पर्श नहीं करने लगे। नग्न लकड़ी की अनपेक्षित ठंढक के कारण उसके मुंह से एक आह सी निकल गयी। अनेक असफल प्रयत्नों, जिनके परिणाम स्वरूप वह फर्श पर धड़ाम होता रहा, के पश्चात अंत में वह अपने दो पैरों पर स्वयं को संतुलित करने में सफल हो गया। सहारे के लिए चारपाई का फ्रेम पकड़े, वह घायल और चोटिल वहाँ खड़ा रहा। उसका सिर अनावश्यक रूप से भारी और स्थिर रख पाने के लिए कठिन लग रहा था। उसकी बगलों से पसीना बहने लगा था और तनाव के कारण उसके जननांग सिकुड़ गए थे। उसने कई बार गहरी सांसें ली उसके पश्चात उसकी अकड़ी हुई मांसपेशियां फिर से आरामदायक स्थिति में आने लगीं।

एक बार जब वह खड़ा हो गया तो उसे अब चलना सीखना था। दो पैरों के सहारे चलना एक प्रकार की यातना जैसा था, हर कदम किसी पीड़ा के अभ्यास जैसा। किसी भी प्रकार से देखने पर, अपने दाएं और बाएं पैर को क्रमिक रूप से एक के बाद एक आगे बढ़ाना उसे एक असंगत संभाव्यता लग रही थी जो सभी प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध थी जबकि अपनी आँखों से जमीन की अत्यधिक दूरी के कारण वह भय से सिकुड़ता सा जा रहा था। उसे अपने कूल्हों और घुटनों के जोड़ों के बीच सामंजस्य बिठाना सीखना था। हर बार जब वह आगे की ओर कदम बढ़ाता, उसके घुटने कंपकंपाने लगते और वह दोनों हाथों से दीवार का सहारा ले कर अपने को स्थिर करता।

लेकिन वह जानता था कि वह इस कमरे में हमेशा नहीं रह सकता। यदि उसे भोजन नहीं मिला, और वह भी शीघ्र, तो उसका भूख से छटपटाता पेट उसका अपना ही मांस खा डालेगा और फिर उसका अस्तित्व समाप्त हो जायेगा।

वह दीवार को पकड़े-पकड़े दरवाज़े की ओर सरकने लगा। इस यात्रा में घंटों का समय लगने की सी अनुभूति हो रही थी, यद्यपि उसके पास पीड़ा के अतिरिक्त समय को मापने का कोई और तरीक़ा नहीं था। उसका चलना अजीब सा था और गति अत्यंत धीमी। वह बिना किसी चीज का सहारा लिए आगे नहीं बढ़ सकता था। उसे पूरी आशा थी कि सड़क पर उसे अपंग की तरह देखेंगे।

उसने दरवाज़े के हत्थे को पकड़ा और खींचा। लेकिन उस पर कोई असर नहीं पड़ा। बाहर धकेलने का भी यही परिणाम रहा। फिर उसने हत्थे को दायीं ओर घुमाया और खींचा। दरवाजा हल्की सी चरमराहट के साथ आधा खुल गया। उसने खुले दरवाजे से अपना सिर निकाल कर बाहर की ओर देखा। हाल सुनसान था। वह इस तरह शांत था जैसे किसी महासागर की तलहटी। उसने दरवाजे से अपना बायां पैर बाहर निकाला, अपने शरीर के ऊपरी भाग को बाहर की ओर धकेला और दाएं पैर से उसका अनुगमन किया। वह दीवार पर हाथ रखे धीरे-धीरे गलियारे में चलने लगा ।

हाल में चार दरवाजे थे, उस एक को ले कर जिसका उसने अभी-अभी उपयोग किया था। सभी एक जैसे थे, गहरे रंग की लकड़ी के बने हुए। उनके पीछे क्या अथवा कौन था? उसे उन दरवाजों को खोल कर यह बात पता करने की इच्छा हुई। सम्भवतः तभी उसे वे रहस्यमय स्थितियाँ समझ में आ सकती थी जिसमें उसने स्वयं को पाया था। अथवा उसने कोई सूत्र जैसा खोज लेता। कुछ भी हो, वह हर दरवाजे के सामने से, जितना संभव था कम से कम आवाज़ करता हुआ गुज़रा। पेट भरने की आवश्यकताओं ने उसकी जिज्ञासा को पछाड़ दिया था। उसे खाने के लिए पर्याप्त मात्रा में कुछ चाहिए था।

और अब वह जान गया था कि यह कहाँ मिल सकता था।

बस सुगंध का पीछा करो, उसने सूंघते हुए सोचा। यह पके हुए भोजन की ख़ुशबू थी, जिसके नन्हे कण हवा में उड़ कर उस तक आए थे। घ्राणेन्द्रियों द्वारा उसकी नाक में एकत्रित की गयी सूचना उसके मस्तिष्क को संचारित की जा रही थी, बहुआयामी प्रत्याशा, तीव्र उत्कंठा का सृजन करती हुई जिसके कारण उसे अपनी अंतड़ियाँ ऐंठती सी प्रतीत हो रही थी जैसे कोई अनुभवी यातना देने वाला उन्हें पकड़ कर ऐंठ रहा हो। उसके मुंह में लार की बाढ़ सी आ गयी।

यद्यपि सुगंध के स्रोत तक पहुँचने के लिए उसे तेज ढाल वाली सीढ़ियां, कुल सत्रह, उतर कर नीचे जाना था। उसे समतल फर्श पर चलने में बहुत अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था- ऐसे में उन सीढ़ियों से उतरना निश्चय ही एक सचमुच का दुःस्वप्न होगा। उसने रेलिंग को दोनों हाथों से पकड़ा और उतरना प्रारंभ किया। उसके नाजुक टखने उसके भार से ध्वस्त होने को तैयार थे और वह लगभग लुढ़कता हुआ सीढ़ियों से नीचे गया।

इन सीढ़ियों का रास्ता तय करते समय सम्सा के मस्तिष्क में क्या था? अधिकांश समय मछली और सूरजमुखी। यदि मैं एक मछली अथवा सूरजमुखी के रूप में रूपांतरित हुआ होता, मैं अपना जीवन शांति से व्यतीत कर सकता था, उसने सोचा, बिना इस तरह सीढ़ियों से ऊपर नीचे जाने हेतु संघर्ष किये।

जब सम्सा सत्रहवीं सीढ़ी पार कर एकदम नीचे पहुँच गया, उसने अपने को सीधा किया और अपनी शेष शक्ति एकत्र कर उस दिशा की ओर चल पड़ा जिधर से वह ललचाती हुई सुगंध आ रही थी। उसने ऊँची छत वाले प्रवेश कक्ष को पार किया और भोजन कक्ष के खुले दरवाजे में प्रविष्ट हुआ। भोजन एक विशाल अंडाकार टेबुल पर सजा हुआ था। वहाँ पाँच कुर्सियां थी, लेकिन किसी व्यक्ति का कोई निशान मात्र नहीं था। भोजन के पात्रों से भाप के सफेद गुच्छे उठ रहे थे। टेबल के बीच में शीशे के एक फूलदान में एक दर्जन लिली के फूल रखे हुए थे। चार जगह नैपकिन और कटलरी करीने से लगी थी जो देखने मात्र से ही अनछुई लग रही थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे कुछ समय पहले ही लोग नाश्ता करने के लिए बैठे थे जब किसी आकस्मिक और अप्रत्याशित घटना ने उन्हें वहाँ से भागने पर विवश कर दिया। क्या हुआ था? वे सब कहाँ चले गए? अथवा वे कहाँ ले जाये गए? क्या वे अपना नाश्ता करने के लिए वापस आएंगे?

लेकिन सम्सा के पास ऐसे प्रश्नों पर विचार करने का समय नहीं था। सबसे पास की कुर्सी में गिरते हुए जो भी भोजन उसकी पहुँच में आया, उसने उसे दोनों हाथों से अपने मुंह में ठूसना आरंभ कर दिया, छुरी, चम्मच, कांटों और नैपकिन्स को पूरी तरह से नजरंदाज करते हुए। उसने ब्रेड के टुकड़े किये और उन्हें बिना जैम अथवा मक्खन के ही खा डाला। मोटे मोटे उबले हुए सॉसेज को समूचा ही निगल गया। उबले अंडों को उसने इस तेजी से गड़प किया कि लगभग उन्हें छीलना ही भूल गया। ढेर से मसले आलू, जो अभी भी गर्म थे और अचार को उंगलियों से ही खा डाला। वह इन सब को एक साथ चबाता रहा और जग के पानी के सहारे उन्हें निगल गया। स्वाद का उसके लिए कोई महत्व नहीं था। स्वादिष्ट अथवा फीका, मसालेदार अथवा खट्टा- उसके लिए सब एक जैसे थे। जो कुछ महत्वपूर्ण था वह उसके भीतर के विशाल गड्ढे को भरना था। उसने पूरी एकाग्रता के साथ खाया मानों समय के विरुद्ध दौड़ लगा रहा हो। वह खाने में इतना मगन था कि अपनी उंगलियां चाटते समय एकाध बार गलती से उन्हें ही चबा गया। चारों तरफ खाने के टुकड़े बिखरे हुए थे और एकबार जब एक प्लेट नीचे गिर कर टूट गयी, उसने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया।

जब सम्सा पेट भर खाने के बाद सांस लेने के लिए रुका, तब लगभग कुछ भी शेष नहीं बचा था और डाइनिंग टेबल का दृश्य भीषण था। लग रहा था मानो झगड़ालू कौवों का एक झुंड किसी खुली खिड़की से आया हो और गले तक खाना भरने के पश्चात फिर वापस उड़ गया हो। केवल एक चीज अछूती रह गयी थी वह था लिली के फूलों वाला फूलदान; यदि वहाँ कम मात्रा में भोजन रहा होता तो शायद वह उनका भी भक्षण कर गया होता।

वह अपनी कुर्सी में देर तक स्तंभित सा बैठा रहा। टेबल पर दोनों हाथ रखे, वह अधखुली आँखों से लिली के फूलों को देखता रहा और लंबी, धीमी सांसे लेता रहा, जबकि खाये गए भोजन ने उसके पाचन तंत्र में अपनी राह बनानी शुरू कर दी थी- ग्रासनली से आंतों तक। संतुष्टि का एक भाव उसके भीतर चढ़ते हुए ज्वार की भांति उठ रहा था। उसने धातु का एक बर्तन उठाया और चीनी मिट्टी के एक कप में अपने लिए कॉफी उड़ेली। तीव्र महक से उसे कोई चीज याद आने लगी, मानों वह भविष्य में से वर्तमान को इकट्ठा कर रहा था। जैसे समय दो भागों में बंट गया हो, जिससे स्मृति और अनुभव एक चक्रीय गति से घूम रहे हों, एक दूसरे का अनुगमन करते हुए। उसने ढेर सी क्रीम अपनी कॉफी में डाली, उसे अपनी उंगली से हिलाया और पी गया। यद्यपि कॉफी ठंडी हो चली थी लेकिन थोड़ी सी गर्माहट शेष थी। उसने उसे अपने गले के नीचे उतारने से पूर्व अपने मुंह में अनुभव किया। उसे लगा इससे वह कुछ हद तक शांत हो गया है।

एकाएक उसे सर्दी महसूस होने लगी। भूख की गहनता ने उसके अन्य संवेदों को कुंद कर रखा था। अब जब कि वह संतुष्ट हो चुका था, सुबह की ठंड ने उसे कंपकंपा दिया। आग बुझ चुकी थी। कोई भी हीटर चालू किया हुआ नहीं लग रहा था। इन सब बातों से ऊपर वह एकदम नग्न था, उसके पैर तक नंगे थे।

वह जानता था- उसे पहनने के लिए कुछ खोजना पड़ेगा। इस तरह तो बहुत ठंड लग रही थी। सबके ऊपर, यदि कोई आ गया तो उसकी नग्नता मुद्दा बन सकती थी। दरवाजे पर कोई दस्तक दे सकता था। वे लोग जो कुछ समय पूर्व नाश्ता करने वाले थे, वापस लौट सकते थे। यदि वे लोग उसे इस दशा में पाएंगे तो कौन जाने उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी?

वह यह सब समझ गया। उसने इन बातों की कल्पना नहीं की थी न ही उन्हें बौद्धिक चिंतन से जाना पड़ा था; वह यह सब जानता था, साफ और स्पष्ट रूप से। सम्सा को समझ में नहीं आ रहा था कि यह जानकारी उसमें किस तरह, कहाँ से आयी। संभवतः यह उन्हीं घूर्णन करती स्मृतियों की देन थी जो उसके भीतर घुमड़ रही थीं।

वह कुर्सी से उठा और सामने के हाल की ओर चल दिया। वह अब भी अजीब लग रहा था पर अब कम से कम वह बिना किसी चीज का सहारा लिए अपने दो पैरों पर खड़ा हो सकता था और चल सकता था। हाल में लोहे का बना एक छतरी स्टैंड था जिसमें कई टहलने की छड़ियाँ रखी थी। उसने उनमें से चलने में सहारे हेतु ओक की एक छड़ी खींच कर निकाली, उसका मजबूत सिरा पकड़ते ही उसे आराम और उत्साह की अनुभूति हुई। और अब उसके पास लड़ने के लिए एक हथियार भी था, यदि पक्षी उस पर आक्रमण करते। वह खिड़की के पास गया और पर्दों के अंतराल से बाहर की ओर देखने लगा।

मकान एक गली की ओर खुलता था। यह बहुत बड़ी गली नहीं थी। न ही उसमें बहुत अधिक लोग थे। जो भी हो, उसने नोटिस किया कि जितने भी लोग वहाँ से गुजर रहे थे, पूरी तरह कपड़े पहने हुये थे। कपड़े अलग-अलग रंगों और ढंग के थे। आदमी और औरतों ने अलग-अलग तरह के कपड़े पहन रखे थे। उनके पांवों में चमड़े के जूते थे। कुछ चमकते पॉलिश किये हुए बूट भी पहने हुए थे। वह सड़क पर उनके बूटों के तल्लों की खट-खट सुन सकता था। बहुत सारे आदमियों और औरतों ने हैट पहन रखा था। लग रहा था वे अपने दो पैरों पर चलने और अपने जननांगों को ढके होने के बारे में कुछ नहीं सोच रहे थे। सम्सा ने हाल में लगे दर्पण में अपने प्रतिबिम्ब की तुलना बाहर टहलते लोगों से की। जिस आदमी को उसने शीशे में देखा वह एक अस्त व्यस्त सा मरियल सा दिखने वाला प्राणी था। उसके पेट पर सालन फैला था और पेड़ू के नीचे के बालों में ब्रेड के टुकड़े रुई के फाओं की तरह चिपके हुए थे। उसने अपने हाथों से यह गंदगी साफ की।

हाँ, उसने फिर सोचा कि मुझे अपने शरीर को ढकने के लिए कुछ खोजना चाहिए।

उसने एक बार फिर से खिड़की के बाहर देखा, चिड़ियों को तलाशते हुए। लेकिन दूर-दूर तक कोई चिड़िया नहीं थी।

मकान के भूतल में एक हाल, एक डाइनिंग रूम, एक रसोई, और एक लिविंग रूम था लेकिन उनमें पहनने के कपड़ों से मिलता जुलता कुछ भी नहीं था। इसका अर्थ था कि कपड़े पहनने और उतारने का काम कहीं और होता था। संभवतः दूसरी मंजिल के किसी कमरे में।

सम्सा सीढ़ियों के पास वापस आया और ऊपर चढ़ने लगा। उसे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि ऊपर जाना नीचे उतरने की तुलना में कितना आसान था। रेलिंग पकड़ कर वह सत्रह सीढियां अपेक्षाकृत अधिक गति से और बिना किसी अनावश्यक दर्द अथवा भय के चढ़ पाने में सफल रहा, एक बार बीच में सांस लेने के लिए रुकने (यद्यपि अधिक समय तक नहीं) के बावजूद।

कहा जा सकता है कि भाग्य उसके साथ था क्योंकि दूसरी मंजिल के किसी कमरे में ताला नहीं लगा था। बस उसे दरवाजे के हत्थे को घुमाना था और हर दरवाजा खुल जाता था। कुल चार कमरे थे और उस एकमात्र बर्फीले कमरे को छोड़ कर जिसमें वह जागा था, शेष सभी कमरे आरामदायक तरीके से फर्निश्ड थे। सभी में एक बेड था और साफसुथरे बिस्तर बिछे थे, एक ड्रेसिंग टेबल, एक पढ़ने की मेज, दीवार अथवा छत में लगा एक लैम्प और फर्श पर दरी अथवा कालीन, जिस पर महीन कसीदाकारी थी। किताबें अपनी जगह पर व्यवस्थित तरीके से रखी थीं और प्राकृतिक दृश्यों के तैलचित्र दीवारों की शोभा बढ़ा रहे थे। हर कमरे में फूलों से सजा एक शीशे का फूलदान था। किसी भी कमरे की खिड़की में खुरदुरे तख्ते नहीं जड़े थे। उन सभी कमरों की खिड़कियों पर रेशमी पर्दे थे जिनसे हो कर रोशनी ऊपर से बरसते आशीर्वाद की भांति भीतर आ रही थी। सभी बिस्तरों को देख कर लग रहा था कि कोई कुछ देर पहले ही उन पर सोता रहा है। वह तकियों पर सिरों के निशान देख सकता था।

“दान की बछिया के दाँत नहीं गिनते।”

सबसे बड़े कमरे की आलमारी में सम्सा को अपने साइज का एक गाउन मिला। यह कुछ ऐसा लग रहा था जिसे सम्सा आसानी से इस्तेमाल कर सकता था। उसे कुछ पता नहीं था कि अन्य कपड़ों का क्या करना है- उन्हें कैसे पहनना है। वे कुछ अधिक ही जटिल थे: बहुत सारे बटन तो एक बात थी उसे यह भी नहीं पता था उनका ऊपरी हिस्सा कौन है निचला कौन, सामने का कौन और पीछे का कौन। किसे बाहर पहना था और किसे उसके नीचे? इसके विपरीत ड्रेसिंग गाउन काफी सरल, स्वाभाविक और सजावट से मुक्त था। उसका हल्का, कोमल कपड़ा उसे अपनी त्वचा पर अच्छा अनुभव हो रहा था और उसका रंग गहरा नीला था। उसने उसी से मैच करते चप्पल भी पहन लिए।

उसने ड्रेसिंग गाउन अपने नग्न शरीर पर पहन लिया और काफी प्रयत्न के पश्चात कमर में उसकी बेल्ट कसने में भी सफल रहा। अब गाउन और चप्पल पहनने के बाद उसने स्वयं को आईने में देखा। यह निश्चय ही इधर उधर नग्न टहलने से बेहतर था। यह निश्चय ही पर्याप्त गर्म नहीं था किंतु जब तक वह घर के भीतर ही रहता, यह ठंड को दूर भगाने के लिये पर्याप्त था। सबसे अधिक अब उसे इस बात की चिंता नहीं करनी थी कि उसकी कोमल त्वचा दुष्ट चिड़ियों के लिए एकदम खुली थी।

जब दरवाजे की घंटी बजी, सम्सा मकान के सबसे बड़े कमरे के सबसे बड़े बेड पर सो रहा था। हल्की रजाई के नीचे गर्मी थी, ऐसी आरामदायक मानों वह किसी अंडे के भीतर सो रहा हो। वह स्वप्न से जागा। वह उसे याद नहीं रख पाया था लेकिन वह सुखद और आनंदपूर्ण था। मकान में गूंजती घंटी की प्रतिध्वनि ने उसे ठंडी वास्तविकता में वापस ला दिया।

उसने अपने आप को बिस्तर से बाहर निकाला, अपने गाउन की बेल्ट बांधी, गहरे नीले रंग की चप्पलें पहनी, अपनी काले रंग की छड़ी उठाई और रेलिंग पकड़े सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा। पहली बार के मुकाबले इस बार उतरना काफी आसान था। फिर भी गिरने का खतरा बना ही हुआ था। वह अपनी सावधानी छोड़ना नहीं गवारा कर सकता था। उसने अपने पैरों को देखते हुए एक बार में एक सीढ़ी पार की जिस दौरान दरवाजे की घंटी लगातार बजती रही। जो भी घंटी बजा रहा था निश्चय ही सबसे अधीर और जिद्दी व्यक्ति था।

अपने बाएं हाथ में छड़ी लिए सम्सा मुख्यद्वार की ओर बढ़ा। उसने हत्थे को दायीं ओर घुमाया और खींचा। दरवाजा खुल गया।

बाहर एक छोटी सी स्त्री खड़ी थी। एक बहुत छोटी स्त्री। यह एक आश्चर्य ही था कि वह घंटी तक पहुँचने में सफल रही थी। जब उसने ध्यान से देखा तब उसे समझ में आया कि उसका आकार मुद्दा नहीं था। यह उसकी पीठ थी जो स्थाई रूप से झुकी हुई थी। इससे उसका आकार छोटा लगता था, यद्यपि उसका ढांचा सामान्य आकार का था। उसने अपने बालों को रबर बैंड से बांध रखा था ताकि वे उसके चेहरे पर न गिरें। उसके बाल गहरे बादामी रंग के और खूब घने थे। वह ट्वीड का घिसा हुआ जैकेट और ढीला ढाला स्कर्ट पहने हुए थी जो उसके टखनों तक जाता था। उसने अपने गले में एक स्कार्फ लपेट रखा था। वह कोई हैट नहीं पहने थी। उसके पैरों में लंबे फीते वाले जूते थे और उसकी उम्र बीस वर्ष से कुछ अधिक रही होगी। अभी उसमें कुछ लड़कपन सा बचा हुआ था। उसकी आँखें बड़ी थीं, उसकी नाक छोटी और उसके होंठ एक ओर थोड़े टेढ़े थे, जैसे पतला चंद्रमा। उसकी गहरी भौहें उसके माथे के आरपार एक सीधी रेखा बनाती थीं जिससे वह थोड़ी संशयात्मक दिखती थी।

“क्या यह सम्सा का आवास है?” युवती ने अपना सिर ऊपर उठाने और उसे देखने का उपक्रम करते हुए पूछा। फिर उसने अपनी देह को ऊपर से नीचे तक घुमा दिया। उसी तरह जैसे पृथ्वी किसी गंभीर भूकंप के दौरान घुमा देती है।

वह एकाएक स्तंभित रह गया, फिर उसने अपने को व्यवस्थित किया। “जी हाँ”, उसने कहा। चूंकि वह ग्रिगोर सम्सा था इसलिए इसके सम्सा के आवास होने की संभावना थी। किसी भी रूप में ऐसा कह देने में कोई हानि नहीं हो सकती थी।

फिर भी ऐसा लगा मानो युवती को उसका जवाब अधिक संतोषजनक नहीं लगा। उसकी भौंहें हल्की सी टेढ़ी हो गईं। संभवतः उसने उसकी आवाज़ में मौजूद थोड़े से अनिश्चय को भांप लिया था।

“तो यह निश्चित रूप से सम्सा का ही आवास है?” उसने तीखी आवाज़ में पूछा। जैसे एक अनुभवी द्वार रक्षक किसी अस्त व्यस्त आगंतुक से पूछताछ कर रहा हो।

“मैं ग्रिगोर सम्सा हूँ,” सम्सा ने जितना संभव था उतनी निश्चिंतता से कहा। कम से कम इस एक बात का उसे पूरा निश्चय था।

“मैं आशा करती हूँ, तुम सही हो।” उसने अपने पैरों के पास रखे कपड़े के एक झोले को उठाते हुए कहा। यह बैग काले रंग का था और बहुत भारी लग रहा था। कई जगह से घिसा हुआ था और कई लोगों के स्वामित्व में रह चुका प्रतीत हो रहा था। “तो फिर आओ हम शुरू करें।”

बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए, वह घर के भीतर चली आयी। सम्सा ने उसके पीछे दरवाजा बंद किया। वह उसे ऊपर से नीचे देखती हुई वहीं खड़ी रही। ऐसा लग रहा था मानों उसके गाउन और चप्पलों ने उसके अंदर संदेह उत्पन्न कर दिया था।

“लग रहा है मैंने तुम्हें सोते से जगा दिया” उसने कहा, उसकी आवाज़ ठंडी थी।

“जी बिलकुल ठीक है,” सम्सा ने उत्तर दिया। वह उसके गहरे भावों को देख कर कह सकता था कि उसके कपड़े इस अवसर के लिए ख़राब चुनाव थे।” मुझे अपने कपड़ों के लिए आप से माफ़ी माँगनी चाहिए।” वह कहता गया “इसके भी कारण है…।।

युवती ने उसे नजरंदाज किया। “तो फिर” उसमें होंठों को दबा कर कहा।

“तो फिर” उसने दोहराया।

“तो फिर, वह ताला कहाँ है जिस में समस्या है।” युवती ने कहा।

“ताला?”

“जी, ताला जो ख़राब हो गया है” उसने कहा “तुमने हमें आ कर उसे ठीक करने को कहा था।”

“ओह” सम्सा ने कहा “ख़राब ताला।”

सम्सा ने अपने मस्तिष्क को खूब टटोला। जल्दी में वह किसी एक चीज़ पर एकाग्र नहीं हो पा रहा था। हालांकि एक बार फिर मच्छरों का वही काला झुंड फिर उसके मस्तिष्क में उठ खड़ा हुआ था।

“मैंने कोई बात ख़ास तौर से ताले के संबंध में नहीं सुनी है।” उसने कहा। “मेरे अनुमान से वह दूसरी मंजिल के किसी कमरे के दरवाजे का होना चाहिए।”

युवती ने उसकी ओर ध्यान से देखा “तुम्हारे अनुमान से?” उसने उसके चेहरे को ध्यान से देखते हुए कहा। उसकी आवाज़ और भी ठंडी हो गयी थी। एक भौंह अविश्वास से टेढ़ी हो गयी। “किसी कमरे के दरवाजे का ?”

सम्सा अपने चेहरे पर आती लाली महसूस कर सकता था। ताले के बारे में उसकी अनभिज्ञता ने उसकी स्थिति को हास्यास्पद बना दिया था। उसने बोलने के लिए अपना गला साफ किया लेकिन शब्द बाहर नहीं आए।

“मिस्टर सम्सा, क्या आपके माता पिता घर पर हैं? मैं समझती हूँ यह बेहतर होगा यदि मैं उन लोगों से बात करूँ।”

“वे किसी काम से बाहर गए लगते हैं,” सम्सा ने कहा।

“काम से?” उसने आश्चर्यचकित होते हुए कहा। “इन सब संकटों के दौरान?

“मुझे वास्तव में कुछ पता नहीं। जब मैं आज सुबह उठा, सब लोग जा चुके थे।” सम्सा ने कहा।

“दुःखद” युवा स्त्री ने कहा। उसने एक गहरी साँस ली। “हमने उन्हें बताया था कि कोई आज इसी समय आएगा”

“मैं बहुत शर्मिंदा हूँ”

युवती उसी जगह कुछ क्षण खड़ी रही। फिर धीरे-धीरे उसकी टेढ़ी हुई भौंह सीधी हो गयी। उसने सम्सा के बाएं हाथ में टहलने वाली काली छड़ी देखी। “क्या तुम्हारे पैर में कोई समस्या है, ग्रिगोर सम्सा?”

“हाँ, थोड़ी सी” उसने पहले से ही तैयारी कर ली थी।

युवती ने एक बार फिर एकाएक अपने शरीर को मरोड़ा। सम्सा को कुछ समझ में नहीं आया कि इस हरकत का क्या अर्थ है अथवा क्या उद्देश्य है। फिर भी वह प्राकृतिक रूप से उस जटिल अंग संचालन की ओर आकृष्ट हुआ।

“ठीक है, फिर क्या करना चाहिए?” युवती ने ऊबे से स्वर में कहा। “आओ हम दूसरी मंज़िल के वे दरवाज़े देखते हैं। मैं पुल से होती हुई, सारे शहर को पार कर, इस सारी भयानक उठापटक के बीच से इसीलिए यहाँ तक आयी, वास्तव में, जीवन का खतरा उठा कर। इसलिए यह कहना बहुत अर्थपूर्ण नहीं होगा कि ‘वास्तव में यहाँ कोई नहीं है। मैं फिर आऊँगी,’ क्या होगा?”

यह भयानक उठापटक? सम्सा समझ नहीं पाया कि वह किस चीज़ के बारे में बात कर रही है। क्या आश्चर्यजनक परिवर्तन हो रहे हैं? लेकिन उसने विवरण न जानने का निर्णय लिया। बेहतर होगा कि वह अपनी अज्ञानता को और न खुलने दे।

कमर झुका कर युवती ने अपना भारी काला बैग दाएँ हाथ में उठाया और सीढ़ियों की ओर जाने हेतु संघर्ष करने लगी, किसी रेंगते हुए कीड़े की भाँति। सम्सा इसके पीछे संघर्ष कर रहा था, रेलिंग पर अपना हाथ रखे हुए। उसका झुका हुआ शरीर उसके प्रति संवेदना उत्पन्न कर रहा था- वह उसे किसी चीज की याद दिला रहा था।

युवती सीढ़ियों के ऊपर पहुँच कर खड़ी हो गयी और उसने गलियारे पर एक नज़र डाली। “तो” उसने कहा “इन्हीं चार में से किसी एक का ताला ख़राब है, ठीक।”

सम्सा का चेहरा लाल हो गया। “हाँ” उसने कहा “ इन्हीं में से एक। वह हाल के अंत में बाईं ओर वाला हो सकता है संभवतः,” उसने खुशामद सी करते हुए कहा। यह वही ख़ाली कमरा था जिस में आज सुबह वह जागा था।

“यह हो सकता है” युवती ने जीवनविहीन आवाज़ में कहा मानों कोई बुझा हुआ अलाव हो। “सम्भवतः” वह सम्सा के चेहरे का जायज़ा लेने के लिए मुड़ी।

“ऐसे ही कहा” सम्सा ने कहा।

“युवती ने फिर गहरी सांस ली। “ग्रिगोर सम्सा” उसने रूखी आवाज़ में कहा “तुम से बात करना आनंददायक है। कितना समृद्ध शब्द भंडार, और तुम हमेशा मुद्दे की बात करते हो।” फिर उसका स्वर बदल गया “ख़ैर कोई बात नहीं, आओ हम सबसे पहले गलियारे के आखिर में बायें दरवाज़े को ही चेक करते हैं।”

युवती दरवाज़े तक गयी। उसने हत्थे को दायें बायें घुमाया और धकेला, वह भीतर की ओर खुल गया। कमरा वैसे ही था जैसा यह पहले था, एक चारपाई और एक दरी जो किसी तरह साफ नहीं कही जा सकती थी। फर्श भी ख़ाली था। खिड़कियों में तख़्ते जड़े हुए थे। युवती ने यह सब देखा होगा, लेकिन उसने आश्चर्य का कोई भाव अपने चेहरे पर नहीं आने दिया। उसकी भाव भंगिमा बता रही थी कि इसी तरह के कमरे सारे शहर में पाए जा सकते थे।

वह नीचे झुकी, काला बैग खोला, एक सफेद कपड़ा निकाला और उसे फर्श पर बिछा दिया। फिर उसने बहुत सारे औजार निकाले, जिन्हें कपड़े पर पंक्तिबद्ध रख दिया, जैसे कोई कठोर यातना देने वाला किसी शिकार के समक्ष अपने औजारों का प्रदर्शन कर रहा हो।

मध्यम मोटाई का एक तार चुन कर उसने उसे ताले में डाला और अनुभवी हाथों से भिन्न-भिन्न कोणों पर घुमाया। उसकी आँखें एकाग्रता से सिकुड़ गयी थी और कान सूक्ष्म से सूक्ष्म ध्वनि सुनने हेतु तत्पर थे। फिर उसने एक और पतला तार चुना और यही प्रक्रिया दोहराई। उसका चेहरा गम्भीर हो गया और उसकी कठोर मुखाकृति टेढ़ी हो गयी, एक चीनी तलवार की भाँति। उसने एक बड़ी सी टार्च ली और अपनी आँखों में काली चमक लिए ताले का विस्तार से परीक्षण करने लगी।

“क्या तुम्हारे पास इस ताले की चाबी है?” उसने सम्सा से पूछा।

“मुझे कुछ पता नहीं कि चाबी कहाँ है।” उसने ईमानदारी से कहा।

“आह, ग्रिगोर सम्सा, कभी-कभी तुम पर मर जाने का दिल करता है,” उसने कहा।

इसके बाद उसने उसे पूरी तरह नजरंदाज कर दिया। उसने एक पंक्ति से रखे औजारों में से एक पेचकस उठाया और ताले को दरवाज़े से निकालने का प्रयत्न करने लगी। उसकी गति धीमी और सावधान थी। वह बार-बार शरीर को घुमाने और झटकने के लिए रुकती थी, जैसा उसने पहले किया था।

जब वह उसके पीछे खड़ा उसको इस तरह काम करते देख रहा था, सम्सा की खुद की देह ने विचित्र तरीके से प्रतिक्रिया देनी आरम्भ कर दी। उसका शरीर समूचा ही गर्म हो रहा था, उसके नथुने फ़ैल रहे थे। उसका मुँह इतना सूख गया था कि जब वह थूक निगलता तो तेज आवाज़ आती। उसके कानों की लवें जल रही थी। और उसका यौवनांग, जो उस क्षण तक निर्जीव सा लटका हुआ था, सख़्त होना और फैलना शुरू हो गया था। जैसे ही वह फैला, उस के गाउन के ऊपर एक उभार सा निकल आया। लेकिन वह अंधकार में था कि इसका क्या अर्थ हो सकता था।

ताला निकाल लेने के पश्चात युवती उसे ले कर खिड़की से आती सूरज की रोशनी में उसका परीक्षण करने हेतु चली गयी। उसने उसे एक पतले तार से कोंचा और उसमें क्या आवाज़ होती है यह देखने के लिए जोर से हिलाया। उसका चेहरा गम्भीर था और होंठ बंद थे। अंत में उसने फिर लम्बी साँस ली और सम्सा की ओर मुड़ी।

“इसके भीतर के पुर्जे ख़राब हो गए हैं” युवती ने कहा “यह एक मजबूत ताला है, जैसा तुम ने बताया था।”

“यह ठीक है” सम्सा ने कहा।

“नहीं, यह ठीक नहीं है” युवती ने कहा “कोई तरीका नहीं है जिससे मैं इसे यहीं तुरंत ठीक कर सकूँ। यह एक विशेष प्रकार का ताला है। मैं इसे अपने साथ ले जाऊँगी और मेरे पिता या कोई भाई इस पर काम करेंगे। वे संभवतः इसे ठीक कर दें। मैं अभी सीख रही हूँ। मैं केवल सामान्य तालों की मरम्मत कर पाती हूँ।”

“ओह मैं समझा” सम्सा ने कहा। तो इस युवती के पिता और कई भाई हैं। ताला मरम्मत करने वालों का एक पूरा परिवार।

“वास्तव में मेरे एक भाई को ही आज यहाँ आना था लेकिन वहाँ भीड़ के कारण जाम होने से उन्होंने उसकी जगह मुझे भेज दिया। पूरे शहर में चेक प्वाइंट बन गए है।” उसने अपने हाथ में लिए ताले की ओर देखा। “लेकिन ताला इस तरह से कैसे ख़राब हुआ। अजीब बात है। लगता है किसी ने किसी विशेष औजार से इसके भीतर के पुर्जों को बाहर खींच लिया हो। अन्य कोई तरीका नहीं है इसे व्याख्यायित करने का।”

वह फिर घूमी और अपने बदन को मरोड़ा। उसने अपनी बाँहें घुमाई मानो वह कोई तैराक हो और किसी नए स्ट्रोक का अभ्यास कर रही हो। सम्सा को उसका यह कार्य सम्मोहक और उत्तेजक लगा।

सम्सा मानसिक रूप से तैयार हो गया। “क्या मैं एक प्रश्न पूछ सकता हूँ?” उसने कहा।

“प्रश्न?” उसने उस पर एक संदेहास्पद नज़र डालते हुए कहा। “मैं कल्पना नहीं कर सकती, लेकिन पूछो।”

“तुम अक्सर इस तरह देह क्यों मोड़ती हो?

उसने अपने होंठ थोड़ा सा खोले हुए सम्सा की ओर देखा। “मोड़ना” उसने एक क्षण सोचा। “तुम्हारा मतलब है इस तरह” उसने वह क्रिया दोहरायी।

“हाँ, यही।”

“मेरे ब्रेजियर फ़िट नहीं आते” उसने व्यंग से कहा “बस इतना ही।”

“ब्रेजियर?” सम्सा ने कमजोर आवाज़ में कहा। यह एक ऐसा शब्द था जिसे वह अपनी स्मृति में नहीं ढूंढ पा रहा था।

“ब्रेजियर। तुम जानते हो वह क्या होता है, क्या नहीं?” युवती ने कहा। “अथवा तुम्हें यह आश्चर्यजनक लग रहा है कि कुबड़ी युवतियां भी ब्रेजियर्स पहनती हैं। क्या तुम सोचते हो कि यह हमारे लिए झंझट का काम है?”

“कुबड़ी?” सम्सा ने कहा। एक और शब्द जो उस विस्तृत शून्य में समाहित हो गया जिसे वह अपने भीतर लिए हुए था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस बारे में बात कर रही थी। फिर भी वह जानता था कि उसे कुछ कहना चाहिए।

“नहीं, मैं एकदम ऐसा नहीं सोचता,” वह बुदबुदाया।

“सुनो, हम कुबड़ी औरतों को भी दो स्तन होते हैं, अन्य औरतों की ही भाँति। और उन्हें सहारा देने के लिए हमें भी ब्रेजियर्स का प्रयोग करना पड़ता है। हम गायों की तरह अपना थन झुलाते हुए नहीं घूम सकती।”

“निश्चय ही,” सम्सा गड़बड़ा गया था।

“लेकिन ब्रेजियर्स हमारे लिए नहीं डिजाइन किए जाते- वे ढीले हो जाते हैं। हमारी बनावट सामान्य स्त्रियों से भिन्न है, समझे। हमें बार-बार टेढ़ा होना पड़ता है उन्हें सही जगह लाने के लिए। कुबड़ों की समस्याएँ तुम्हारी कल्पना से अधिक होती हैं। क्या इसीलिए तुम मुझे पीछे से घूर रहे थे? क्या इसी तरह तुम्हें उत्तेजना मिलती है?”

“नहीं नहीं, बिलकुल नहीं। मुझे बस जिज्ञासा थी कि तुम ऐसा क्यों कर रही थी।”

तो उसने निष्कर्ष निकाला कि ब्रेजियर्स ऐसा उपकरण था जो स्तनों को सही जगह रखने के लिए बनाया गया था और कुबड़ा व्यक्ति इस युवती की तरह विशेष बनावट का होता है। इस दुनिया में कितना कुछ है जो उसे सीखना है।

“क्या तुम निश्चित हो कि तुम मेरा मज़ाक़ नहीं बना रहे थे?” युवती ने पूछा।

“मैं तुम्हारा मजाक नहीं उड़ा रहा था।”

युवती ने अपना सिर उठाया और सम्सा की ओर देखा। वह कह सकती थी कि वह सच बोल रहा था। उसके भीतर कोई बुराई नहीं प्रतीत हो रही थी। वह बस दिमाग से कुछ कमजोर लग रहा था, शायद। वह संभवतः उससे कुछ ही साल बड़ा होगा। लंगड़ा होने के साथ ही वह बौद्धिक रूप से भी अपंगता का शिकार लग रहा था। लेकिन वह एक अच्छे परिवार से था और उसका व्यवहार शानदार था। वह देखने में भी सुंदर था यद्यपि थोड़ा अव्यवस्थित और चिपचिपे चेहरे वाला।

यही वह समय था जब उसने उसके गाउन के निचले हिस्से के उभार की ओर ध्यान दिया।

“वह क्या बकवास है?” उसने पत्थर जैसी सख्त आवाज़ में पूछा “वह उभार वहाँ क्या कर रहा है?”

सम्सा ने अपने गाउन के अगले भाग की ओर नीचे देखा। उसका अंग विशेष निश्चय ही बहुत उभर गया था। उसने उसकी आवाज़ से अनुमान लगाया कि उसकी यह दशा किसी रूप में अनुचित है।

“मैं समझ गयी” उसने लताड़ा “तुम सोच रहे हो कि एक कुबड़ी से संभोग करना कैसा लगेगा, क्या नहीं?”

“संभोग?” उसने कहा। एक और शब्द जिसका उसे कुछ पता नहीं था।

“तुम कल्पना कर रहे होंगे कि चूंकि एक कूबड़ वाली स्त्री कमर से झुकी होती है इसलिए उसके साथ बिना किसी समस्या के तुम पीछे से ऐसा कर सकते हो, ठीक?” युवती ने कहा। “विश्वास करो तुम्हारे जैसे ढेरो विकृत मनोरोगी आसपास हैं। जो सोचते हैं हम वह सब करने देंगी जो वे चाहते हैं क्यों कि हम कुबड़े हैं। एक बार फिर से सोचो, लफंगे। हम इतने गए गुजरे नहीं हैं।”

“मैं बहुत भ्रमित हूँ” सम्सा ने कहा। “यदि मैंने तुम्हारे साथ कोई बदतमीजी की हो तो मैं उसके लिये सचमुच क्षमाप्रार्थी हूँ। मैं माफी मांगता हूँ। कृपया मुझे माफ़ कर दो। मेरा इरादा नुकसान पहुंचाने का नहीं था। मेरी तबीयत ठीक नहीं रही है और बहुत सी चीजें हैं जो मैं नहीं समझ पाता।”

“ठीक है मैं समझ गयी। तुम थोड़े सुस्त हो, ठीक? पर तुम्हारा वीनर (केले का आकार का खाद्य पदार्थ) शानदार आकार का है। मेरे अनुमान से चीजें ऐसी ही हैं, तुम क्या कर सकते हो।

“मुझे खेद है,” सम्सा ने फिर कहा।

“भूल जाओ इसे।” उसने नरम पड़ते हुए कहा। मेरे चार नालायक भाई हैं और जब मैं छोटी बच्ची थी तभी उन्होंने मुझे सब कुछ दिखा रखा है। वे इसे एक बड़े मजाक की तरह लेते हैं। निकृष्ट, चार के चारों। इसलिए जब मैं कह रही हूँ की मैं जानती हूँ तो मैं मजाक नहीं कर रही।”

वह अपने औजार बैग में रखने के लिए झुकी। बिगड़े हुए ताले को कपड़े में लपेट कर एक ओर रख लिया।

“मैं ताला अपने साथ ले जा रही हूँ।” उसने खड़े होते हुए कहा। “अपने माता पिता को बता देना। या तो हम इसे ठीक कर देंगे या नया लगा देंगे। हाँ नया लगाने में समय लग सकता है, जैसे हालात हैं उसे देखते हुए। उन्हें बताना मत भूलना। ओ। के। । क्या तुम मेरी बात समझ गए? क्या तुम याद रखोगे?”

“मैं उन्हें बता दूंगा,” सम्सा ने कहा।

वह धीरे-धीरे सीढ़ियां उतरने लगी। सम्सा उसके पीछे-पीछे। वे विरोधाभास का बेहतरीन नमूना थे। लग रहा था, वह जैसे चार पैरों पर रेंग रही हो जबकि सम्सा पीछे की ओर अप्राकृतिक तरीके से अत्यधिक झुका हुआ था। लेकिन उनकी गति एक सी थी। सम्सा अपने उभार को खत्म करने का कठिन प्रयत्न कर रहा था, लेकिन वह चीज अपनी पुरानी अवस्था में जा नहीं रही थी। सीढ़ियां उतरते हुए पीछे से उसके अंगों की गति देख कर उसका हृदय जोर से धड़क रहा था। गर्म, ताजा रक्त उसकी धमनियों में उछाल मार रहा था। ढीठ उभार अभी भी बना हुआ था।

“जैसा कि मैंने पहले बताया था, यहाँ मेरा एक भाई आने वाला था,” युवती ने कहा जब वे मुख्य द्वार तक पहुँच गए।” लेकिन सड़कें सिपाहियों और टैंकों से अटी पड़ी हैं। लोगों से पूछताछ की जा रही है। इसलिए मेरे परिवार के पुरुष बाहर नहीं जा सकते। एक बार तुम गिरफ्तार हो गए तो कुछ पता नहीं कब लौटोगे। इसलिए मुझे भेजा गया। प्राग के आर-पार, अकेले। एक कुबड़ी लड़की पर कोई ध्यान नहीं देगा, वे कहते थे।”

“टैंक?” सम्सा भिनभिनाया।

“हाँ, ढेर सारे। टैंक, तोप और मशीनगन के साथ। तुम्हारी तोप प्रभावशाली है,” उसने उसके उभार की ओर इशारा करते हुए कहा,” लेकिन ये तोपें अधिक बड़ी और कठोर हैं और कई गुना अधिक मारक भी। आशा करें कि तुम्हारे परिवार के सब लोग सुरक्षित लौट आएं।”

सम्सा ने बैल को सींग से पकड़ने का निर्णय लिया। “क्या हमारा फिर से मिल पाना संभव होगा?” उसने पूछा।

“मेरे पास नई जगह जाने की लिस्ट आ चुकी है।” युवती ने सम्सा की ओर सिर उठाया। “क्या तुम कह रहे हो कि तुम मुझ से फिर मिलना चाहते हो?”

“हाँ, मैं तुम से एक और बार मिलना चाहता हूँ।”

“तुम्हारी चीज के इसी तरह उभरे रहते?”

सम्सा ने एक बार फिर नीचे उभार की ओर देखा। “मैं नहीं जानता कि मैं क्या स्पष्टीकरण दूँ लेकिन इसका मेरी भावनाओं से कुछ भी लेना देना नहीं है। यह किसी तरह की हृदय की समस्या होनी चाहिए।”

“मजाक मत करो।” उसने प्रभावित होते हुए कहा “हृदय की समस्या, तुमने कहा, यह इस बात को देखने का आकर्षक नजरिया है। इसके बारे में पहले कभी नहीं सुना।”

“तुम देख रही हो, यह मेरे नियंत्रण से बाहर है।”

“और इसका सेक्स से कुछ लेना देना नहीं है?”

“सेक्स मेरे दिमाग में नहीं है, सच में।”

"तो मुझे बात साफ करने दो। जब यह चीज बड़ी और कठोर हो जाती है अभी की तरह, तो यह तुम्हारे दिमाग से नहीं, तुम्हारे हृदय के कारण होता है।?”

सम्सा ने स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया।

“भगवान कसम?” युवती ने कहा।

“भगवान” सम्सा ने दोहराया। एक और शब्द जो याद नहीं आ रहा कि उसने पहले कभी सुना था। वह चुप हो गया।

युवती ने धीरे से सिर हिलाया। वह अपना ब्रेजियर ठीक करने को फिर से घूमी और टेढ़ी हुई। “इसे भूल जाओ। लगता है भगवान कुछ दिन पहले ही प्राग को छोड़ गए हैं। आओ हम उसे भूल जाएं।”

“तो क्या मैं तुम से फिर मिल सकता हूँ।” सम्सा ने पूछा।

लड़की के चेहरे पर एक नई रोशनी आयी। उसकी आँखें कहीं दूर के कुहासे भरे परिदृश्य में उलझी सी लग रही थी। “तुम सचमुच मुझ से फिर मिलना चाहते हो?”

सम्सा ने सिर हिलाया।

“हम क्या करेंगे?”

“हम आपस में बात कर सकते हैं।”

“किस बारे में?” युवती ने पूछा।

“ढेर सारी चीजों के बारे में।”

“केवल बातें?”

“बहुत सी चीजें हैं जिनके बारे में मैं तुम से पूछना चाहता हूँ।” सम्सा ने कहा।

“किस बारे में?”

“इस दुनिया के बारे में, तुम्हारे बारे में, अपने बारे में। मुझे लगता है बहुत सारी चीजें हैं जिनके बारे में हमें बात करने की जरूरत है। उदाहरण के लिए टैंक, भगवान, और ब्रेजियर्स, और ताले।”

एक बार फिर उनके बीच मौन पसर गया।

“मैं नहीं जानती” युवती ने आखिर में कहा। उसने अपना सिर धीरे से हिलाया लेकिन उसकी आवाज़ का ठंडापन कम ध्यान में आ रहा था। “तुम्हारा लालन पालन मुझसे बहुत अच्छी तरह हुआ है। और मुझे संदेह हैं कि तुम्हारे माता पिता इस बात से बहुत उत्साहित होंगे कि उनके मूल्यवान बेटे का संबंध शहर के गरीब इलाके की एक कुबड़ी लड़की से हो। तब भी जब वह बेटा थोड़ा लंगड़ा और मानसिक रूप से थोड़ा सुस्त है। और सबके ऊपर हमारे शहर में विदेशी सैनिकों और टैंकों की बाढ़ आई हुई है। कौन जाने आगे क्या होना है।”

सम्सा को सच में नहीं अनुमान था कि आगे क्या होना है। वह हर चीज के प्रति अंधेरे में था, भविष्य, निश्चय ही, लेकिन वर्तमान और अतीत के सम्बन्ध में भी। क्या सही था और क्या गलत? कपड़े पहनना तक उसके लिए एक पहेली जैसा था।

“कैसे भी, मैं इधर कुछ दिन में आऊँगी।” कुबड़ी युवती ने कहा। “यदि हम इसे ठीक कर सके, तो मैं ताला ले कर आऊँगी और यदि ठीक नहीं हुआ, तो मैं इसे तुम्हें वापस करने आऊँगी। सर्विस कॉल के लिए निश्चय ही तुमसे भुगतान लिया जाएगा। यदि तुम यहाँ हुए, हम मिल सकते हैं। हम लंबी वार्ता कर पाएंगे अथवा नहीं, मैं नहीं जानती। लेकिन यदि मैं तुम्हारी जगह होती तो उस उभार को अपने माता पिता से छिपा कर रखती। असली दुनिया में तुम्हें ऐसी चीजें दिखाने के लिए प्रशंसा नहीं मिलती।”

सम्सा ने स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया। उसे अब भी स्पष्ट नहीं था कि किस तरह उस प्रकार की चीज को छिपाया जा सकता था।

“यह विचित्र है, क्या नहीं?” युवती ने उदास सी आवाज़ में कहा। “हमारे आसपास की हर चीज उड़ रही है, लेकिन अभी भी लोग हैं जिन्हें टूटे ताले की चिंता है और दूसरे हैं जो उसे ठीक करने हेतु कर्तव्यपरायण हैं…। लेकिन शायद यही तरीका है जैसे चीजों को होना चाहिए। संभवतः छोटी-छोटी चीजों पर ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता से काम कर के, जितना हम कर सकते हैं, ही वह तरीका है जिससे हम होश में रह सकते हैं तब जब हमारे आसपास की दुनिया ध्वस्त हो रही हो।”

युवती ने सम्सा के चेहरे की ओर देखा। “मैं ताक झांक नहीं करना चाहती लेकिन दूसरी मंजिल के उस कमरे में क्या चल रहा था? तुम्हारे माता पिता को उस कमरे के लिए इतने बड़े ताले की क्या जरूरत थी जिसमें बस एक चारपाई थी, और टाला टूटने पर उन्हें इतनी चिंता क्यों हुई? और खिड़की में जड़े उन लकड़ी के तख्तों का क्या मतलब था? क्या वहाँ कोई चीज बंदी बना कर रखी गयी थी- क्या ऐसा था?”

सम्सा ने अपना सिर हिलाया। यदि कोई आदमी अथवा कोई चीज वहाँ बंद कर के रखी गयी थी, तो वह उसे ही होना चाहिए। लेकिन यह क्यों जरूरी था? उसके पास इस को समझने का कोई सूत्र नहीं था।

“मुझे लगता है तुम से पूछने का कोई फायदा नहीं,” युवती ने कहा। “ठीक है, अब मुझे जाना चाहिए। यदि मुझे देर हुई तो वे लोग चिंता करेंगे। प्रार्थना करना कि मैं सही सलामत पहुँच जाऊं। कि सैनिक एक बेचारी कुबड़ी लड़की को अनदेखा कर दें। और कि उनमें से कोई विकृत मानसिकता का न हो। हमारी वैसे ही काफी दुर्गति हो रही है।”

“मैं प्रार्थना करूँगा,” सम्सा ने कहा। पर उसे कुछ पता नहीं था कि ‘विकृत मानसिकता’ वाले कौन होते हैं और उसी तरह ‘ प्रार्थना’ क्या होती है।

युवती ने काला बैग उठाया और झुके-झुके ही दरवाजे की ओर बढ़ी।

“क्या मैं तुम से फिर मिल पाऊँगा?” सम्सा ने आखिरी बार पूछा।

“यदि तुम किसी के बारे में पर्याप्त सोचते हो, तो तुम निश्चय ही उससे फिर मिलोगे,” उसने जाते-जाते कहा। इस बार उसकी आवाज़ में सच्ची गर्माहट थी।

“चिड़ियों से बचना,” उसने उसे सावधान किया। वह मुड़ी और उसने सिर हिलाया। फिर वह गली में चली गयी।

सम्सा पर्दे की झिर्रियों से देखता रहा जब उसकी कूबड़ युक्त काया सड़क के पत्थरों को पार कर रही थी। वह विचित्र ढंग से चल रही थी लेकिन आश्चर्यजनक गति से। उसे उसकी हर भंगिमा बहुत आकर्षक लग रही थी। उसे देख कर उसे किसी जलचर की याद आती थी जिसे सूखी भूमि पर रहने हेतु जल को छोड़ दिया। जहाँ तक वह बता सकता था, उसकी तरह चलना अधिक समझदारी भरा था बनिस्पत दो पैरों पर सीधे खड़े हो कर लुढ़कने के।

उसे दृष्टि से ओझल हुए अधिक समय नहीं बीता होगा जब उसने देखा कि उसके जननांग पुनः अपनी कोमल और सिकुड़ी अवस्था में आ चुके हैं। वह तेज उभार गायब हो चुका था। अब उसका अंग विशेष उसकी टांगों के बीच में किसी निर्दोष फल की भांति लटका था, शांत और सुरक्षाविहीन। उसकी गोलियां अपनी थैली में गतिहीन थीं। अपने गाउन की बेल्ट ठीक कर, वह डाइनिंग रूम की एक कुर्सी पर बैठ गया और बची हुई कोल्ड कॉफी पीने लगा।

लोग जो यहाँ रहते थे, कहीं और चले गए थे। वे कौन थे यह वह नहीं जानता था लेकिन उसने कल्पना की कि वे लोग उसका परिवार रहे होंगे। कुछ एकाएक घटित हुआ और वे सब चले गए। संभवतः वे कभी वापस नहीं आएंगे। “दुनिया नष्ट हो रही है” का क्या अर्थ है? ग्रिगोर सम्सा को कोई अंदाजा नहीं था। विदेशी सैनिक, टैंक, चेक पॉइंट- हर चीज रहस्य के आवरण से लिपटी हुई थी।

एक ही चीज जिसे वह निश्चय के साथ जानता था यह थी कि वह उस कुबड़ी लड़की से पुनः मिलना चाहता था। आमने सामने बैठ कर उससे अपने हृदय की बात करना चाहता था। उसके साथ दुनिया के रहस्यों पर से आवरण हटाना। वह उसे अपने ब्रेजियर्स को ठीक करने के लिए टेढ़ा होते, घूमते प्रत्येक कोण से देखना चाहता था। यदि संभव हो, वह उसकी देह पर अपने हाथ फिराना चाहता था। उसकी कोमल त्वचा को स्पर्श करने और उसकी गर्माहट को अपनी उंगलियों के पोरों से अनुभूत करने के लिए। उसके साथ-साथ दुनिया की सीढ़ियों के उतार चढ़ाव तय करने के लिए।

उसके बारे में बस सोचने मात्र से उसे अपने भीतर गरमाहट सी प्रतीत होती थी। अब वह मछली या सूरजमुखी- अथवा और कुछ भी जहाँ तक वह बात है, नहीं होना चाहता था। वह एक मनुष्य हो कर प्रसन्न था। निश्चय ही, दो पैरों पर चलना और कपड़े पहनना बहुत बड़ी असुविधा थी। बहुत सारी बातें थी जिन्हें वह नहीं जानता था। फिर भी यदि वह एक मछली अथवा सूरजमुखी रहा होता, एक मनुष्य की बजाय, तो उसका इन भावनाओं से कभी परिचय नहीं हुआ होता। ऐसा उसने महसूस किया।

सम्सा वहाँ देर तक अपनी आँखें बंद किये बैठा रहा। फिर निश्चय करके, वह खड़ा हुआ, उसने अपनी काली छड़ी ली और सीढ़ियों की ओर चल पड़ा। वह दूसरी मंजिल पर जा कर यह समझने की कोशिश करेगा कि ठीक ढंग से कपड़े कैसे पहने जाते हैं। कम से कम अभी के लिए यही उसका मिशन होगा।

सीखने के लिए संसार उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।

(अंग्रेजी अनुवाद टेड गूसेन ‘Samsa in Love’ हिंदी अनुवाद इसी पर आधारित है : श्रीविलास सिंह)’
ई-मेल : sbsinghirs@gmail.com

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