प्रेम और रोटी (स्वीडिश कहानी) : ऑगस्ट स्ट्रिंडबर्ग (अनुवाद: प्रमीला गुप्ता)

Prem Aur Roti (Swedish Story in Hindi) : August Strindberg

असिस्टेंट काउन्सलर युवा गुस्ताव फॉक ने जब लुई के पिता के सामने लुई से विधिवत विवाह करने का प्रस्ताव रखा तब वृद्ध आदमी का पहला प्रश्न था-"तुम्हारी आमदनी कितनी है?”

"प्रतिमाह एक सौ क्रोनर से अधिक नहीं, लेकिन लुई—-।”

"बाकी बातों की चिंता मत करो,"फॉक के भावी श्वसुर ने बीच में टोका-"तुम्हारी आमदनी काफी नहीं है।”

"हाँ, लेकिन लुई और मैं एक-दूसरे से बहुत ज़्यादा प्रेम करते हैं, एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं व विश्वास करते हैं।”

"हो सकता है? क्या मैं पूछ सकता हूँ कि क्या तुम पूरे एक वर्ष में केवल बारह सौ क्रोनर ही कमाते हो?”

"सर्वप्रथम हमारी मुलाक़ात लिडिंगो में हुई थी।”

"क्या सरकारी वेतन के अतिरिक्त भी तुम्हारी कुछ आमदनी है?"लुई के पिता ने अपनी बात दोहराई।

"हाँ, मेरे विचार में मेरी पर्याप्त आमदनी है और फिर हमारा प्रेम—–।”

"हाँ, वही। पहले हिसाब लगा लें।”

“ओह! "प्रेमी उत्साहपूर्वक बोला-"अन्य काम करने पर मैं पर्याप्त धन कमा सकता हूँ।”

"किस प्रकार का काम? कितनी आमदनी?”

"मैं फ्रेंच पढ़ा सकता हूँ और अनुवाद भी कर सकता हूँ। यही नहीं मैं प्रूफ रीडिंग का काम भी कर सकता हूँ।”

"कितना अनुवाद कर सकते हो?"वृद्ध ने हाथ में पेंसिल ले कर पूछा।

"मैं एकदम सही नहीं बता सकता। इस समय मैं एक फ्रेंच पुस्तक का अनुवाद दस क्रोनर प्रति पृष्ठ के हिसाब से कर रहा हूँ।”

"उसमें कुल कितने पृष्ठ हैं?”

"मेरे विचार में कुल चौबीस पृष्ठ।”

"ठीक है, इससे ढाई सौ क्रोनर की आमदनी हुई। अब और क्या?”

"मैं नहीं जानता। कुछ निश्चित नहीं है।”

"क्या? तुम निश्चित रूप से नहीं जानते और विवाह करना चाहते हो? विवाह के संबंध में तुम्हारी विचित्र धारणाएँ हैं, नौजवान! क्या तुम जानते हो कि बच्चे होंगे, उनके लिए भोजन, कपड़ों का प्रबंध करना होगा; उनका पालन-पोषण करना होगा?”

"परंतु,"फॉक ने असहमति जताई-"बच्चे एकदम थोड़े ही पैदा हो जाएंगे और फिर हम एक-दूसरे से बेहद प्यार करते हैं,वह—।”

"बच्चों का जन्म एक सीमा तक पूर्व निर्धारित किया जा सकता है,"थोड़ा नर्म पड़ कर पिता कहने लगे-"तुम दोनों ने विवाह बंधन में बंध जाने का निर्णय ले लिया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि तुम दोनों एक दूसरे से बेहद प्रेम करते हो। ऐसा प्रतीत होता है कि अंततः मुझे अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ेगी। लुई से सगाई हो जाने के बाद तुम्हें अपनी आमदनी बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए।”

स्वीकृति मिल जाने पर नौजवान फॉक का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा। खुशी प्रकट करने के लिए उसने वृद्ध पिता के हाथ का चुम्बन लिया। आनंदित! कितना प्रसन्न था वह और उसकी लुई भी। पहली बार हाथों में हाथ डालकर सैर करते समय कितना गर्वित महसूस कर रहे थे। सभी ने सगाई के बाद उनके खुशी से दमकते चेहरों को देखा।

संध्या के समय वह उससे मिलने आता, अपने साथ संशोधन करने के लिए प्रूफ शीट भी लेकर आता। इससे पापा पर अच्छा प्रभाव पड़ता था। मेहनती नौजवान को उसकी प्रेमिका चुम्बन देती। परिवर्तन के लिए एक शाम दोनों थियेटर चले गए और टैक्सी में घर वापिस आए। उस दिन शाम के समय मनोरंजन पर दस क्रोनर खर्च हो गए थे। एक और दिन शाम के समय पढ़ाने के बजाय वह अपनी प्रेमिका को घूमाने-फिराने के लिए ले गया।

विवाह का निर्धारित दिन समीप आता जा रहा था। अपने फ्लैट को सजाने-सँवारने के लिए आवश्यक खरीददारी के बारे में उनको सोचना था। उन्होने असली अखरोट के पेड़ की लकड़ी से बने दो सुंदर पलंग, उनके लिए स्प्रिंग वाले गद्दे और नर्म बत्तख के परों से भरी दो रजाइयाँ खरीदी। लुई के बाल भूरे थे, इसलिए उसको नीले रंग की रज़ाई चाहिए थी। निस्संदेह, वे घर को फर्निश करने वाली दुकान पर भी गए। वहाँ से उन्होने लाल शेड वाले लैम्प, एक खूबसूरत पोरसलेन की वीनस की प्रतिमा, मेज़ पर खाना परोसने वाले चम्मच, छुरी-कांटे और काँच का सामान खरीदा। रसोई के बर्तन खरीदने में उनको मम्मी की सलाह और मदद से बहुत लाभ हुआ। असिस्टेंट काउन्सलर फर्नीचर ठीक-ठाक पंहुच गया या नहीं, चेक लिखने आदि के कामों में व्यस्त था।

स्वाभाविक था कि इस अवधि में गुस्ताव की कोई अतिरिक्त आमदनी नहीं हुई थी। विवाह हो जाने के बाद सब कुछ आसानी से ठीक हो जाएगा। पूरी तरह से सोच-समझ कर खर्च करेंगे। शुरू में दो कमरों से ही काम चल जाएगा। छोटे घर को बड़े घर की तुलना में अधिक सरलता से फर्निश किया जा सकता है। इसलिए उन्होने पहली मंज़िल पर दो कमरों, रसोई और स्टोर वाला अपार्टमेंट छह सौ क्रोनर किराए पर लिया था। वैसे लुई को ऊपरी मंज़िल पर तीन कमरों वाला अपार्टमेंट पसंद आ रहा था लेकिन जब तक दोनों एक-दूसरे से निष्ठापूर्वक प्रेम करते हैं तब तक इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था।

आखिरकार कमरे पूरी तरह से फर्निश हो गए थे। सोने का कमरा छोटे से मंदिर की तरह लग रहा था। साथ-साथ सटे पलंग जीवन यात्रा पर ले जाने के लिए तैयार रथ के समान दीख रहे थे। नीली रजाइयाँ, सफ़ेद चादरें, कढ़ाई किए हुए युवाओं के हस्ताक्षर वाले तकिये के गिलाफ प्रेमातुर युगल की प्रतीक्षा कर रहे थे। सब कुछ चमकता और खुशनुमा दिखाई दे रहा था। लुई के इस्तेमाल के लिए ऊंची, शानदार स्क्रीन थी, उसका बारह सौ क्रोनर मूल्य वाला पियानो दूसरे कमरे में, जो ड्राइंग,डाइनिंग, स्टडी रूम सब कुछ था, रखा हुआ था। यहाँ अखरोट की लकड़ी से बनी एक बड़ी स्टडी-टेबल और डाइनिंग टेबल थी। उनके साथ मेल खाती कुर्सियाँ, गिल्ट के फ्रेम वाला बड़ा सा शीशा, एक सोफा, किताबों की आलमारी सुख-सुविधा का अहसास दिला रही थी।

शनिवार की रात्रि को विवाह सम्पन्न हुआ था। रविवार को प्रफुल्लित नवयुगल देर सुबह तक सोता रहा। गुस्ताव की आँख खुल गयी। खिड़कियों के झरोखों से सूरज की तेज़ रोशनी आ रही थी लेकिन उसने खिड़कियाँ नहीं खोली, लाल शेड वाला लैम्प जला दिया। असली जादुई गुलाबी चमक पोरसलेन की प्रतिमा पर पड़ रही थी। सुंदर, युवा पत्नी सुस्त और संतुष्ट लेटी हुई थी। वह गहरी नींद में सो रही थी। रविवार का दिन था, बाज़ार में चल रही गाड़ियों के शोर से भी उसकी आँख नहीं खुली। चर्च की घंटियाँ आल्हादित हो कर बज़ रही थी मानो स्त्री-पुरुष के सृजन का उत्सव मना रही हों।

लुई ने करवट ली। गुस्ताव दीवार के पीछे जा कर कुछ चीज़ें रखने लगा। वह बाहर रसोई में लंच का ऑर्डर देने गया। नए तांबे और स्टील के चमकते, जगमगाते बर्तन आँखों को चकाचौंध कर रहे थे। यह सब कुछ उन दोनों का था। उसने रसोइये को पड़ोस के रेस्टौरेंट में लंच का ऑर्डर देने के लिए भेज दिया। रेस्टौरेंट के मालिक को पता था। उसको पहले दिन ही सब निर्देश मिल गए थे। इस समय उसको केवल याद दिलाने की ज़रूरत थी।

दूल्हे ने वापिस शयनकक्ष में जा कर मृदु स्वर में कहा-"क्या मैं आ सकता हूँ?”

हल्की सी चीख सुनाई दी-"नहीं, प्रियतम! एक मिनट रुको।”

गुस्ताव ने स्वयं मेज़ लगाई। रेस्टौरेंट से खाना आने तक नयी प्लेटें, छुरी-कांटे, ग्लास नए सफ़ेद मेज़पोश पर सज़े थे। नववधू के लिए फूलों का गुलदस्ता लुई की प्लेट के पास रखा हुआ था। जब लुई कढ़ाई किया हुआ गाउन पहन कर कमरे में दाखिल हुई तब सूरज की किरणों ने उसका स्वागत किया। वह अभी भी थकावट महसूस कर रही थी। गुस्ताव ने उसको ले जा कर मेज़ के पास कुर्सी पर बिठा दिया। मीठी शराब की एक-दो घूंट भरने के बाद उसमें जान आ गयी, स्वादिष्ट केवियार खाने के बाद उसको भूख लग आई। कल्पना करो, यदि मम्मी बेटी को शराब पीते देख लेती तो क्या कहती? विवाह करने का यही तो लाभ है कि तुम अपनी मनमर्जी का काम कर सकते हो।

युवा पति अपनी सुंदर पत्नी की बेचैनी से प्रतीक्षा करता है। कितना आनंददायक है? निस्संदेह उसने कुंवारेपन में भी स्वादिष्ट लंच खाया था लेकिन क्या उसमें इतना सुख और संतोष मिला था? नहीं। प्लेट में कस्तूरा मछली ( आयस्टर) खाते हुए, बियर पीते हुए उसके चेहरे पर खुशी झलक रही थी। विवाह न करने वाले लोग कितने मूर्ख होते हैं? कितने स्वार्थी होते हैं? कुत्तों की भांति उन पर भी टैक्स लगना चाहिए। लुई इतनी साहसी नहीं कि जो लोग अकेले रहने का निर्णय लेते हैं उन बेचारों को प्रेम और कोमलता के साथ यह बात समझा पाए कि वे सचमुच दया के पात्र हैं। निस्संदेह उसके विचार में समर्थ लोगों को विवाह कर लेना चाहिए। गुस्ताव को हृदय में थोड़ी सी चुभन होती है। निश्चित रूप से खुशी को धन की तराजू पर नहीं तोला जा सकता। नहीं,नहीं, लेकिन ठीक है। चिंता की कोई बात नहीं। जल्दी ही बहुत काम मिल जाएगा। उसके बाद सब कुछ आराम से चलने लगेगा। फिलहाल तो क्रैनबेरी सास डालकर इस स्वादिष्ट भूने तीतर और बर्गण्डी शराब का मज़ा लिया जाए। बढ़िया आर्टिचोक्स ( एक पेड़ का फूल जो खाने के काम आता है) के साथ राजसी ठाठ-बाठ देख कर युवा पत्नी एक क्षण के लिए परेशान हो गयी। गुस्ताव से संकोच के साथ पूछा कि क्या वे ऐसे राजसी स्तर पर जीवन यापन कर सकते हैं? गुस्ताव ने अपनी प्यारी लुई के ग्लास में वाइन डालते हुए उसको आश्वस्त किया, उसके बेबुनियाद डर को कम किया। "हर दिन एक समान नहीं होता,"उसने कहा-"मनुष्य को समय पर सुख भोगना चाहिए। आह! जीवन कितना सुखद है!”

छह बजे दो घोड़ों वाली बग्घी दरवाज़े के बाहर आ कर रुकी, नव दंपत्ति उसमें बैठकर घूमने के लिए निकल गए। पार्क में लुई बग्घी में आराम से पीठ टिकाए मंत्रमुग्ध सी बैठी थी। पैदल चल रहे परिचित ईर्ष्या और हैरानी से झुक कर अभिवादन कर रहे थे। वे सोच रहे थे कि असिस्टेंट काउन्सलर को अच्छा जीवनसाथी मिल गया है, अमीर युवती से विवाह कर लिया है। वे बेचारे! पैदल चल रहे थे। कोमल कुशन का सहारा लिए, बिना किसी श्रम के सैर करना कितना सुखदायी था! यह मनपसंद विवाहित जीवन का परिणाम था।

पहला महीना आनंद से परिपूर्ण था- नृत्य पार्टियां, डिनर, थियेटर। इस पर भी घर में बिताया गया समय अधिक सुखद था। रात्रि के समय लुई को उसके माता-पिता के घर से लाना अतीव आनन्दमय रोमांचक क्षण होता था। वे अपने घर की छत के नीचे कुछ भी आनंदपूर्वक करने के लिए स्वतंत्र थे। घर पंहुच कर हल्का-फुल्का खाना तैयार करते और आराम से बैठ कर देर रात तक बातें करते। वास्तव में, इसके पीछे था गुस्ताव का बचत का सिद्धान्त। एक दिन युवा दुल्हन और घर के प्रबन्धक ने उबले आलुओं के साथ भूनी मछली खाई। लुई को बहुत स्वादिष्ट लगी लेकिन गुस्ताव ने इस पर आपत्ति की। भूनी मछली के स्थान पर गुस्ताव ने तीतर पर पैसे खर्च कर दिये। उसे वह बाज़ार से एक क्रोनर में खरीद कर लाया था। इतने सस्ते सौदे पर वह फूला नहीं समा रहा था लेकिन लुई को यह बात पसंद नहीं आई। वह एक बार इससे भी कम दाम पर तीतर का जोड़ा खरीद कर लाई थी। वैसे भी खाने का शौक फिजूलखर्ची था। इतनी छोटी सी बात को लेकर वह अपने पति से बहस नहीं करना चाहती थी।

कुछ महीनों के बाद लुई अजीबोगरीब रूप से बीमार हो गयी। उसको सर्दी लग गयी थी? या फिर रसोई के धातु वाले बर्तनों से अचानक संक्रमण हो गया था? डाक्टर को बुलाया गया। वह खुश हो कर हंसने लगा। बोला-‘ सब ठीक है।"निश्चित रूप से उसका निदान विचित्र था। युवती गंभीर रूप से बीमार थी। शायद वालपेपर में संखिया था। फॉक थोड़ा सा कागज केमिस्ट के पास ले गया। उसको ठीक प्रकार से उसका विश्लेषण करने के लिए कहा। केमिस्ट की रिपोर्ट में लिखा था कि वालपेपर में किसी प्रकार का कोई हानिकारक तत्त्व नहीं था।

पत्नी की बीमारी कम होने में नहीं आ रही थी। गुस्ताव ने स्वयं बीमारी का निदान करने का फैसला किया। चिकित्सा पुस्तक पढ़ने के बाद उसने उसकी बीमारी का निदान किया। वह गरम पानी से पाँव सेंकने लगी। एक महीने के भीतर ही उसकी हालत में आश्चर्यजनक सुधार हो गया था। यह सब आकस्मिक था। उनकी आशा से पहले था। फिर भी ‘पापा-मम्मी’ कितने प्यारे शब्द थे। निस्संदेह बेटा ही होगा। उसके नाम के बारे में भी सोचना होगा। लुई ने एकांत में पति को याद दिलाया कि विवाह के बाद तंख्वाह के अतिरिक्त कोई और आमदनी नहीं हुई थी। तंख्वाह आवश्यकता से बहुत कम थी।

हाँ, यह ठीक है कि वे ज़्यादा ठाठ-बाठ के साथ रह रहे थे लेकिन अब परिवर्तन आवश्यक था। ऐसा करने पर ही सब काम सुचारु रूप से चलेगा।

अगले दिन असिस्टेंट काउन्सलर अपने प्रिय मित्र वकील के पास एक हुंडी ( प्रामिसिरी नोट) पर हस्ताक्षर करवाने के लिए गया। गुस्ताव ने अपने मित्र को बताया कि इससे आगामी आवश्यक खर्च के लिए ऋणस्वरूप आवश्यक धन ले पाएगा।

“हाँ,"वकील ने कहा-"विवाह और परिवार का भरण-पोषण एक महंगा काम है। मैं यह करने में कभी भी समर्थ नहीं हो पाया।”

फॉक को मित्र से अनुरोध करते समय बहुत लज्जा आई। खाली हाथ घर लौटने पर समाचार मिला कि दो अजनबी उससे मिलने के लिए आए थे, उसके बारे में पूछ रहे थे। वे सेवारत सेना के लेफ्टिनेंट होंगे, गुस्ताव ने सोचा-‘ फोर्ट वैक्सहोम सेना में तैनात उसके दोस्त होंगे।’ पता चला कि वे लेफ्टिनेंट नहीं थे, वृद्ध आदमी थे। ‘तब शायद ‘उपसला’ के परिचित सज्जन होंगे। उन्होने उसके विवाह के बारे में सुना होगा और उससे मिलने के लिए आए होंगे।’ नौकर ने बताया कि वे ‘उपसला’ से नहीं स्टाकहोम से आए थे। उनके हाथों में डंडे थे। ‘ बड़े अजीब थे। निश्चित रूप से वे दोबारा आएंगे।’

युवा गुस्ताव दोबारा खरीददारी करने के लिए निकल गया। वह स्ट्राबेरी लाया। निस्संदेह मोल-भाव कर के लाया था।

"कल्पना करो,"उसने विजेता की तरह पत्नी से कहा-"इस मौसम में एक पाउंड स्ट्राबेरी केवल डेढ़ क्रोनर में लाया हूँ।”

"लेकिन प्रिय गुस्ताव, हम अब इस प्रकार का खर्च करने में समर्थ नहीं है।”

"चिंता मत करो, डार्लिंग! मैंने अतिरिक्त काम का प्रबंध कर लिया है।”

"लेकिन हमारे कर्ज़ का क्या होगा?”

"कर्ज़? क्यों? मैं एक और बड़ी धनराशि उधार लेने जा रहा हूँ।उससे सब का कर्ज़ एक साथ चुकता कर देंगे।”

"ओफ़्फ़ोह!"लुई ने आपत्ति जताई-"इसका मतलब एक और कर्ज़ लोगे?”

"तो क्या हुआ। तुम जानती हो इससे हमें आराम मिलेगा । निराशाजनक बातें क्यों करती हो? प्रिये! स्ट्राबेरी का मूल्य ही क्या है? तुम्हारे ख्याल में क्या स्ट्राबेरी खाने के बाद एक ग्लास शैरी पीना अच्छा नहीं रहेगा?”

स्वाभाविक है कि नौकर सबसे बढ़िया शैरी लेने के लिए चला गया।

दोपहर को सोफ़े पर झपकी लेने के बाद जब लुई की आँख खुली तो उसने मृदु स्वर में दोबारा कर्ज़ की बात उठाई। उसको आशा थी कि गुस्ताव उसकी बात पर क्रोध नहीं करेगा। क्रोध? नहीं,बिल्कुल नहीं, फिर क्या था? क्या उसको घर के लिए धन की आवश्यकता थी? लुई ने बताया-"राशन वाले के पैसे बकाया हैं, कसाई ने हमें धमकी दी है, अस्तबल का मालिक भी हिसाब-किताब चुकता करने पर ज़ोर दे रहा है।”

"बस इतनी सी बात है,"असिस्टेंट काउन्सलर ने जवाब दिया-"कल उनकी पाई-पाई चुकता हो जाएगी। चलो, अब कोई और बात करें। पार्क में सैर करने के लिए जाने के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है? तुम शायद बग्घी में जाना पसंद नहीं करोगी। ठीक है, ट्राम चलती है हम उसी से पार्क पंहुच जाएंगे।

वे पार्क गए। अल्हम्बरा रेस्टौरेंट के प्राइवेट रूम में डिनर किया। बड़ा आनंद आया। बाहर डिनर हाल में बैठे लोगों के विचार में वे एक चंचल प्रेमी-प्रेमिका थे। गुस्ताव को यह बात मज़ेदार लगी। लुई बिल देखने के बाद अवसादग्रस्त हो गयी थी।

उतने पैसों में तो वे घर पर बड़ा अच्छा खाना खा सकते थे। महीनों बीत गए। वास्तविक तैयारी यथा पालना, बच्चे के कपड़े व अन्य सामान की नितांत आवश्यकता थी।

गुस्ताव के पास पैसा कमाने के लिए समय ही नहीं था। अस्तबल के मालिक, राशन वाले ने उधार देने से मना कर दिया था। आखिरकार उन्हें भी तो अपने बाल-बच्चों का भरण-पोषण करना था। कितना कष्टदायी है यह भौतिकवाद?

अंततः वह महत्तवपूर्ण दिन आ ही गया। गुस्ताव को एक नर्स का इंतज़ाम करना होगा। अपनी नवजात बेटी को गोद में लिए-लिए उसने कर्जदारों को किसी तरह से शांत किया था। नयी जिम्मेवारियों के तले दब कर रह गया था वह। कभी-कभी तनावग्रस्त हो जाता। यह सच है कि उसे कुछ अनुवाद का काम मिलने में सफलता मिल जाती थी लेकिन वह यह काम कर कैसे पाता? हर वक्त उसको छोटे-छोटे कामों के लिए भागा-दौड़ी करनी पड़ती थी। ऐसे समय में वह श्वसुर से सहायता के लिए अनुरोध करता है। वे सज्जन उससे उदासीन स्वर में बात करते हैं-"मैं इस बार तुम्हारी सहायता कर दूंगा, दोबारा नहीं। मेरे पास अपने लिए थोड़ा सा धन बचा है और फिर अकेले तुम ही तो मेरे बच्चे नहीं हो।”

माँ को पौष्टिक आहार, चिकन और वाइन की आवश्यकता थी। नर्स को भी वेतन देना था।

सौभाग्य से गुस्ताव की पत्नी लुई शीघ्र ही स्वस्थ हो गयी। वह पहले की तरह दुबली-पतली दिखने लगी थी। चेहरे का पीलापन आकर्षक था। लुई के पिता ने दामाद से गंभीरतापूर्वक बात की-"अगर बर्बाद नहीं होना चाहते हो तो अब और बच्चे नहीं।”

थोड़े समय तक छोटा सा गुस्ताव परिवार प्रेम और बढ़ते हुए कर्ज़ों पर जीवित रहा। एक दिन दिवालिया होने की नौबत आ गयी। घर के सामान पर कब्जा करने की धमकी दी गयी। उस समय वृद्ध श्वसुर अपनी बेटी लुई और उसकी नन्ही बच्ची को अपने साथ ले गया। टैक्सी में बैठते समय उसकी आँखों से स्पष्ट झलक रहा था कि उसने अपनी बेटी को एक ऐसे नौजवान के हाथों में सौंप दिया था जिसने उसको एक साल बाद ही अपमानित कर वापिस लौटा दिया था। लुई गुस्ताव के साथ प्रसन्नतापूर्वक रह सकती थी लेकिन वहाँ पर जीवन यापन के लिए कुछ बचा ही नहीं था। वह पीछे खड़ा डंडे लिए आदमियों,बेलिफ़ को देखता रहा। सारा सामान-फर्नीचर , पलंग, क्राकरी, कटलरी, रसोई के बर्तन-भांडे निकाल कर फ्लैट को एकदम खाली कर दिया था।

गुस्ताव का वास्तविक जीवन अब शुरू हुआ था । उसको सुबह प्रकाशित होने वाले एक समाचारपत्र में प्रूफ रीडिंग का काम मिल गया था। इसके लिए उसको हररोज रात को कई घंटे काम करना पड़ता था। उसको आधिकारिक रूप से दिवालिया घोषित नहीं किया गया था अतः उसे सरकारी नौकरी से नहीं निकाला गया। हालांकि वहाँ पर उसकी तरक्की के रास्ते बंद हो गए थे। उसके श्वसुर ने उसको रविवार को पत्नी व बच्ची से मिलने की अनुमति दे दी थी लेकिन वह उनसे अकेले में नहीं मिल सकता था। शाम के समय समाचारपत्र के आफिस जाते समय वे उसे दरवाज़े तक छोड़ने के लिए आते थे। वह अन्तर्मन तक अपमानित महसूस करता। शायद अपनी जिम्मेवारी को पूरी तरह से निभाने में बीस साल लग जाएँ। नहीं,शायद नहीं। इस बीच यदि उसके श्वसुर की मृत्यु हो जाती है तब तो उनके पास रहने के लिए घर भी नहीं बचेगा। अतः वह अपने कठोर हृदय श्वसुर का हृदय से आभारी था जिसने निष्ठुरता से उन दोनों को अलग कर दिया था।

हाँ, मानव जीवन यथार्थ में कठोर और निर्मम है। खेतों के जानवर भी आसानी से अपना जीवन निर्वाह कर लेते हैं। इसके विपरीत सभी प्राणियों में मानव को कठोर परिश्रम करना पड़ता है। कितने शर्म की बात है? सचमुच बेहद शर्म की बात! इस जीवन में सभी को मेहनत किए बिना तीतर और स्ट्राबेरी खाने को नहीं मिलते।

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