प्रतियोगिता : अर्मेनियाई लोक-कथा

Pratiyogita : Armenian Lok-Katha

इरिंजना गाँव के पास के पहाड़ों में ऊँचे कद के दो डाकू रहते थे, जिनका नाम हमायग और हर्षद था। हमायग दिन के समय लूटमार करता था और फिर वो अपनी मंगेतर एहलेजा के साथ अपनी शामें बिताता था। हर्षद रात के समय लूटपाट करता था और भविष्य की पत्नी के साथ अपना दिन बिताता था। उसकी मंगेतर का नाम भी एहलेजा था। पर मामले की सच्चाई यह थी कि वे दोनों एक ही एहलेजा के साथ प्रेम करते थे, हालांकि वे एक-दूसरे को बिल्कुल नहीं जानते थे।

एक शाम जब हमायग, एहलेजा के घर जा रहा था और हर्षद, एहलेजा के लिए धन की तलाश कर रहा था तब प्रत्येक डाकू ने अपने भविष्य के बारे में सोचा। प्रत्येक ने यह तय किया कि अब वो अगले प्रांत में जाकर अपनी किस्मत आज़मायेंगे। दोनों चोरों ने अपनी-अपनी तैयारी की। एहलेजा ने दोनों को यात्रा में खाने के लिए एक-एक टिफिन बॉक्स दिया।

हमायग रोजाना की तरह सुबह जल्दी निकला, क्योंकि उसे दिन के समय काम करना पसंद था। बाद में हर्षद भी निकला क्योंकि वो रात तक अपने गंतव्य तक पहुंचना चाहता था।

अब कुछ ऐसा हुआ कि दोनों लुटेरे दोपहर में एक अनार के पेड़ के नीचे मिले। दोनों ने वहां पर दोपहर के भोजन के लिए रुकने की ठानी। उन्होंने एक-दूसरे को अपना परिचय दिया और फिर दोनों ने अपने-अपने टिफ़िन बक्से खोले यह देखने के लिए कि एहलेजा ने उन्हें खाने में क्या दिया था।

हमायग के डिब्बे में कुछ पनीर और जैतून थे। हर्षद के डिब्बे में भी वही थे। हर्षद के डिब्बे में सूखे मांस का एक छोटा टुकड़ा था। हमायग के डिब्बे में भी वही था। उसके अलावा, प्रत्येक के टिफिन बॉक्स में एक टमाटर, तीन खीरे के टुकड़े और चार बड़ी-बड़ी खुमानी थीं।

इस संयोग से लुटेरे आश्चर्यचकित थे। उन्हें लगा जैसे वो एक-दूसरे से एक रिश्ते की डोर से बंधे थे। उन्होंने एक-साथ यात्रा जारी रखी और एक-दूसरे से अपने जीवन की तुलना की।

"मैं अपनी चतुराई से अपना जीवन यापन करता हूं," हमायग ने कहा।

"मैं भी ऐसा ही करता हूँ।"

"मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि मैं एक लुटेरा हूं,” हमाय ने कहा।

"मैं भी।"

"मैं इरिंजना गांव के ऊपर पहाड़ी पर रहता हूं, " हमाय ने कहा।

"मैं भी वहीं रहता हूँ।"

"और पहाड़ी की सबसे प्यारी लड़की एहलेजा से मेरी शादी पक्की हुई है। "

"मेरी भी वही मंगेतर है। "

"नहीं वो मेरी मंगेतर है, " हमायग ने जोर देकर कहा।

अपनी-अपनी प्रेमिका का वर्णन करते हुए दोनों चोर उत्तेजित हुए। जल्द ही उन्हें सच्चाई का पता चला।

हमायग ने कहा, "तुम मेरे पहाड़ों में चोरी करते हो, उसका मुझे कोई गम नहीं है, लेकिन तुम निश्चित रूप से मेरी भावी पत्नी से शादी नहीं कर सकते!"

"लेकिन वह मेरी है!" हर्षद चिल्लाया। दोनों में इस तरह से वाद-विवाद जारी रहा। जल्द ही दोनों लुटेरों को एहसास हुआ कि क्रोध और गुस्से से उनकी समस्या का समाधान नहीं होगा।

"ठीक है, हमारी प्यारी धोखेबाज प्रेमिका को हम में से एक को छोड़ना ही पड़ेगा। इसलिए वो कौन होगा हम खुद ही उसका निर्णय करेंगे," बड़े आत्मविश्वास के साथ हमायग और हर्षद इस बात पर सहमत हुए। यह जानने के लिए कि उनमें से कौन सा चोर सबसे चतुर चोर था उन्होंने एक प्रतियोगिता आयोजित करने का फैसला किया। विजेता, एहलेजा से शादी करेगा।

चूंकि शहर के मुख्य दरवाज़े में प्रवेश करने के बाद भी अभी कुछ रोशनी थी, इसलिए हमायग की बारी पहली थी। उसने देखा कि एक आदमी एक छोटी सी गठरी लेकर जा रहा था। हमायग ने चुपचाप गठरी को आदमी से दूर खिसका दिया। जब उसने देखा कि उसमें गहने थे तो उसने जल्दी से उन्हें पत्थरों से बदल दिया और गठरी आदमी को वापिस लौटा दी।

कहने की जरूरत नहीं कि गठरी खोलने पर वो आदमी और जौहरी दोनों ही हैरान थे। आदमी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने गठरी उठाई और वहां से चल दिया। जबकि वो शख्स घर की तरफ जा रहा था तब हमायग ने फिर से गठरी में से पत्थरों को हटा दिया, और रत्नों को वापस गठरी में रख दिया। फिर दोनों मुस्कुराते हुए लुटेरों ने अपनी चाल का परिणाम देखने के लिए उस आदमी का पीछा किया। आदमी की पत्नी ने गुस्से में उसे डांट लगाईं, और उसे लुटेरों ने खिड़की में से देखा। पर जब आदमी ने उसने गठरी को खोला तो उसमें उसने गहने पाए।

"तुम कैसी बकवास कर रहे हो?" पत्नी ने आदमी से पूछा। "मैं भला गहनों के बदले तुम्हें पत्थर क्यों देती?"

भ्रमित आदमी ने गठरी बाँधी और वो फिर से गहनों की दुकान की तरफ चला। लेकिन हमायग ने अभी अपना काम ख़त्म नहीं किया था। हमायग ने एक बार फिर से गहनों को गठरी से बाहर निकाला और पत्थरों को अंदर खिसकाया। फिर दोनों लुटेरों ने उस आदमी का पीछा किया। और उसने गठरी खोली तो वो गरीब आदमी फिर से हैरान रह गया। अब जौहरी अपना धैर्य खोने लगा था। आदमी ने तुरंत पत्थरों को गठरी में बाँधा और घर की ओर भागा।

लुटेरों की हँसी जारी रही और हमायग ने अपना खेल भी जारी रखा। गठरी में गहनों ने एक बार फिर से पत्थरों की जगह ले ली। अब घर पहुँचने पर अपनी पत्नी पर चिल्ला सकता था और साबित कर सकता था कि वो मूर्ख नहीं था।

"क्या तुम्हारी आँखें कमजोर हो गई हैं या तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है ?" पत्नी, आदमी पर चिल्लाई। "लो मेरे गहने और उन्हें मरम्मत के लिए तुरंत सुनार के पास लेकर जाओ।"

अब आदमी तीसरी बार गहनों को घर से बाहर लेकर निकला तब तीसरी बार भी हमायग ने रत्नों की जगह पत्थरों को रखा। जब आदमी दुकान पर पहुंचा तब जौहरी ने गठरी खोली और उसमें फिर से पत्थरों को पाया। निश्चित रूप से वो आदमी उसके साथ कोई मजाक कर रहा था। फिर अपनी दुकान से बाहर निकाल दिया।

"मेरी दुकान पर फिर कभी वापस मत आना !" सुनार चिल्लाया। पर फिर उस आदमी को कभी वापिस आने की ज़रुरत ही नहीं पड़ी क्योंकि अंत में हमायग ने गहने अपने पास रख लिए।

"अब रात होने लगी है," हमायग ने अपने साथी से कहा। "अब मैं देखूँगा कि तुम कितने चालाक हो।"

हर्षद ने कुछ लम्बी कीलें और एक हथौड़ा लिया और वो हमायग को ईशान महल में ले गया। उसने हमायग को अपने कंधों पर बैठने को कहा, और फिर वे महल की दीवार पर चढ़ गए। फिर वे हथौड़े से कीलें ठोकते-ठोकते महल की दीवार पर चढ़े।

दीवार के अंदर घुसने के बाद हमयाग को याद आया कि वो भूखा था। "ठीक है, " हर्षद ने कहा, "हम यहाँ पर बढ़िया दावत करेंगे।" उसने ईशान के महल के मुर्गीघर में से सबसे मोटी मुर्गी पकड़ी, आग जलाई, मुर्गी भूनी और रात का खाना खाया। हमायग थोड़ा चिंतित था क्योंकि किसी का भी आग पर ध्यान जा सकता था, लेकिन उन्हें वहां कोई गार्ड दिखाई नहीं दिया। भोजन करने के बाद उन्होंने हड्डियों को वहीं छोड़ दिया।

उन्होंने महल में प्रवेश किया, और हर्षद सीधे ईशान के कमरे की ओर गया। हमयाग धीरे-धीरे उसके पीछा चला। दरवाजे के बाहर एक सोता हुआ गार्ड था जो खुद को जगाए रखने के लिए तम्बाकू चबा रहा था। हर्षद ने दीवार पर एक कंकड़ फेंका। शोर ने गार्ड को चौंका दिया और उसके हाथ से तम्बाकू गिर गई। फिर गार्ड ने हॉल की जाँच की और आश्वस्त होकर फिर अपने स्थान पर चला गया। पांच मिनट बाद गार्ड सो गया।

दोनों लुटेरे ईशान के कमरे में घुस गए। हर्षद ने बिस्तर हिलाया और राजा को जगाया। आधी नींद की स्थिति में ईशान ने उनके आने का कारण पूछा। हर्षद ने ईशान को बताया कि अब उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना होगा।

"एक बार," हर्षद ने कहा, "दो डाकू थे जो एक ही महिला के साथ प्रेम कर रहे थे।"

"यह कैसे हो सकता है?" नींद में डूबे हुए ईशान ने पूछा।

"लुटेरों को यह पता ही नहीं था," हर्षद ने कहा, "फिर एक दिन उन दोनों ने एक ही पड़ोसी प्रांत में जाने का फैसला किया। "

हर्षद ने दिन की घटनाओं का वर्णन किया। उसने ईशान को बताया कि कैसे उन्होंने एहलेजा के रहस्य की खोज की और कौन उसका पति बनेगा यह तय करने के लिए कैसे उन्होंने एक प्रतियोगिता आयोजित की।

ईशान को लगा जैसे कि वो कोई मज़ेदार सपना देख रहा हो। हर्षद ने उसे दिन वाले डाकू के बारे में विस्तार से बताया। कैसे उसने एक आदमी, तीन बार एक ही गहने चुराए। ईशान सहमत था कि दिन वाला डाकू वाकई एक बहुत चालाक डाकू था।

तब हर्षद ने उसे बताया कि कैसे रात का डाकू ईशान के महल की दीवार पर चढ़ा और उसने महल के मुर्गीघर से एक मुर्गी चुराई और उसे आग में भूनकर खाया। फिर उसने हड्डियों को पीछे छोड़ दिया। इसके अलावा लुटेरों ने ईशान के कमरे प्रवेश करने की भी हिम्मत की।

"असंभव," मुस्कुराते हुए ईशान ने कहा। "वो डाकू दीवार के ऊपर चढ़कर आया मुर्गी खाई यह कहानी सच नहीं हो सकती।"

"शायद नहीं," हर्षद ने कहा, "लेकिन मुझे बताओ, बुद्धिमान ईशान, अगर कहानी सच है, तो आप दोनों में से किस को ज़्यादा चतुर समझेंगे?"

"मैं रात के डाकू को ज़्यादा चतुर समझंगा, " ईशान ने कहा। "लेकिन वैसे दिन वाला डाकू भी बहुत चालाक था।"

और यह कहने के बाद ईशान कोई दूसरा सपना देखने लगा।

अगली सुबह दो चालाक लुटेरों का सपना याद करते हुए ईशान उठा। पहरेदारों ने महल की चौखट के पास मुर्गी की हड्डियों के बारे में ईशान को न बताना ही बेहतर समझा। इस बीच, हर्षद और हमायग दोनों ने फैसला किया कि उनकी प्रेमिका उन दोनों में से किसी के लायक नहीं थी। एक बात पर वो दोनों सहमत थे कि नया प्रांत उन दोनों को एक लाभदायक भविष्य प्रदान कर सकता था। इसलिए उन दोनों ने वहीं बसने का फैसला किया।

और इरिंजना गांव में उनकी मंगेतर एहलेजा ने भी जल्द ही अपने लिए एक नया भविष्य तलाश लिया।

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