प्रार्थना : पंजाबी लोक-कथा
Prarthana : Punjabi Lok-Katha
एक बार किसी घर-परिवार में एक लड़की अपनी दादी के साथ रहती थी। बहुत पहले उस बेचारी की माँ की मृत्यु हो चुकी थी। उसकी दादी उसे रोज़ एक विशेष रोटी बना कर देती थी और उससे कहा करती थी कि वह रोटी जाकर ब्राह्मणों के घर दे आए, परन्तु वह मार्ग में ही बीच में से आधी रोटी स्वयं खा लेती और शेष बची आधी रोटी भी कुछ कुत्तों को डाल देती थी। इसी प्रकार करते-करते उसे एक महीना व्यतीत हो गया।
एक महीने के बाद दादी ने लड़की से पूछा कि “तुम वह रोटी ब्राह्मणों के घर दे आती हो न?" इस पर लड़की ने कहा कि आप स्वयं ही ब्राह्मणों के घर से पता कर लो। दादी ने ब्राह्मणों के घर से पता किया तो ब्राह्मण कहने लगा कि उस लड़की ने हमारे घर आज तक कभी भी कोई रोटी नहीं दी है। इतनी बात सुनते ही दादी माँ को क्रोध आ गया और उसने घर जाकर लड़की को बहुत पीटा और उसे अपने घर से ही निकाल दिया। लड़की रोती हुई एक वृक्ष के नीचे जाकर बैठ गई। संयोग की बात है कि उसी समय वहाँ पर एक राजा शिकार खेलने के लिए आया हुआ था। सौभाग्य से उसकी नज़र उस दीन-हीन लड़की पर पड़ गई और राजा बड़े ही प्यार से उसे अपने साथ महल ले गया।
कुछ दिन बीतने पर दयालू राजा ने उस लड़की से विवाह कर लिया और उसे अपनी रानी बना लिया। एक दिन वही राजा शिकार खेलने के लिए गया तो रानी ने पीछे से मक्की की एक रोटी बनाई और उस पर काफी सारा घी लगा कर खाने लगी। तभी अचानक राजा वापिस आ गया तो रानी ने मक्की की रोटी पटरी के नीचे छुपा दी। राजा उसकी वह चोरी किसी तरह भाँप गया और उसने रानी को प्यार से पूछा, “यह बताओ, इस पटरी के नीचे क्या है ?" रानी ने उत्तर में उससे कहा कि कुछ भी तो नहीं है। लेकिन राजा-रानी ने कितने ही प्रश्न किया तो रानी ने पहले वाला उत्तर देते हुए यही कहा कि कुछ भी तो नहीं है। राजा ने तीसरी बार फिर पूछा तो रानी ने मक्की की रोटी दिखा दी जोकि अब तक शुद्ध सोने की बन चुकी थी। राजा ने उससे पूछा कि "मुझे यह बताओ कि सोने की यह रोटी तुमने भला कहाँ से ली है ?” इस प्रश्न के उत्तर में वह रानी अपने पति से कहने लगी कि यह सोने की रोटी तो मेरे पीहर से आई है।
उसके कुछ दिन पश्चात् राजा फिर से शिकार खेलने के लिए गया तो रानी ने फिर बाजरे की एक रोटी बनाई। फिर से राजा रानी के सामने आ खड़ा हुआ। रानी ने पहले की तरह अब फिर रोटी एक पटरी के नीचे छुपा दी। लौट कर वह राजा पहले की तरह ही उससे पूछने लगा कि "तुमने पटरी के नीचे क्या छुपाया है ?" रानी भी अपने पिछले हठ का प्रदर्शन करती हुई उससे कहने लगी कि “पटरी के नीचे कुछ भी तो नहीं है, तुम्हें तो वैसे ही भ्रम हो रहा है। राजा ने फिर से उससे वही प्रश्न किया, तो रानी ने अब स्वयं छुपाई हुई वही रोटी राजा के सामने कर दी। अब यह देखकर उस राजा की हैरानी की कोई सीमा न रही कि वह रोटी भी सोने की बन चुकी थी। राजा ने उससे पहले की तरह ही यह पूछा, “यह सोने की कीमती रोटी तुम्हारे पास भला कहाँ से आई ?" रानी कहने लगी कि यह रोटी भी मेरे पीहर से ही आई है। अब राजा उससे कहने लगा कि मैं तुम्हारे पीहर जाना चाहता हूँ। रानी ने राजा को रोकने की बहुत चेष्टा की, लेकिन राजा बहुत रोकने पर भी न माना और उसके पीहर अर्थात् अपने ससुराल जाने के लिए ही अड़ा रहा।
आख़िर उस राजा ने अपने सेवकों से कहा कि मेरे लिए ससुराल जाने के लिए मेरा रथ तुरन्त तैयार किया जाए। उसका आदेश पाकर उसके लिए रथ तैयार हो गया। जब सब चलने लगने तो रानी ने सोचा कि मेरे तो पीहर ही नहीं है। रानी एक पाँव पर खड़े होकर भगवान् से प्रार्थना करने लगी। जब काफी दूर चले गए तो उन्होंने देखा कि एक गाँव में बहुत से व्यंजन बन रहे हैं और लोग अच्छे वस्त्र पहने हुए हैं। उस गाँव के लोग राजा को लेने आ रहे हैं। उन्होंने राजा का बहुत आदर-सत्कार किया। उसके दूसरे दिन राजा और रानी रथ पर सवार होकर वापस चले आए।
अभी उन्होंने थोड़ा ही मार्ग तय किया था कि राजा ने कहा कि “मेरा छाता तो वहीं पर रह गया।” रानी कहने लगी कि “राजदरबार में हमें कोई कमी हैं क्या ? हम फिर से ख़रीद लेंगे", परन्तु राजा न माना और उसने सेवकों को भेज दिया। रानी भगवान से फिर से प्रार्थना करने लगी। परन्तु जब सेवक वहाँ पहुँचे तो उन्होंने देखा कि वहाँ पर एक ही स्तम्भ है और उस पर छाता लटका हुआ है। सेवक छाता लेकर वापस आ गया। सेवक ने बताया कि राजा जी वहाँ पर एक ही स्तम्भ था। इसके अतिरिक्त वहाँ कोई भी स्तम्भ नहीं था। यह सुनकर राजा हैरान हो गया। राजा ने रानी से पूछा तो रानी कहने लगी कि मेरा तो कोई भी गांव नहीं था। मैंने तो भगवान से प्रार्थना की थी और उनकी कृपा से यह गाँव बन गया। उससे राजा बहुत प्रसन्न हुआ और अब दोनों प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे।
साभार : डॉ. सुखविन्दर कौर बाठ