‘पू-पूत्त’ फूल का खिलना : तमिल लोक-कथा
'Poo-Poott' Phool Ka Khilna : Lok-Katha (Tamil)
तमिलनाडु में प्रसिद्ध आधुनिक संदर्भ से जुड़ी रोचक, ज्ञानवर्धक, उपयोगी लोककथाओं को कहने के बाद, कुछ अन्य वर्ग से संबंधित लोककथाएँ भी उल्लेखनीय हैं। राजा को श्रम का महत्त्व समझाते हुए राजधर्म का बोध कराने वाली लोकप्रिय लोककथा ‘पसीने की कमाई’ थी, राजनीतिक मूल्यों में हो रहे पतन पर व्यंग्य है। राजसी ठाठबाट भोगने वाले नेता अपने पाखंड और वाक् चातुर्य से जनता को उल्लू बनाकर उसके हक को अपने पसीने की कमाई घोषित करने का दुस्साहस करना। एक मनोरंजक लोककथा थी ‘मदिवन्नन का गधा’। उसी प्रकार शिक्षण के क्षेत्र में पनप चुकी व्यावसायिकता पर चोट करती है ‘ब्रह्मराक्षस और नादस्वरम’ लोककथा। सरकारी कार्यालयों में हो रही कामचोरी और घूसखोरी पर केंद्रित ‘पारिश्रमिक का महत्त्व’ लोककथा है। ‘चमेली राजा’ पाठकों को प्रकृति से जुड़े रहने की प्रेरणा देती है। ‘काठ के बच्चे’ लोककथा द्वारा चिंतनशील रहकर विवेक सम्मत कदम उठाने की शिक्षा दी गई है, ‘ताकि पछताना न पड़े। ‘पू-पूत्त’ लोककथा उपर्युक्त सामाजिक यथार्थ की स्थिति से हटकर एक खेल पर आधारित लोककथा है, जो वर्षों पहले घटित हुई और सत्य कथा पर आधारित है।
बहुत वर्ष पहले एक सुंदर गाँव में एक छोटी बालिका खेलती हुई अपने आगामी जीवन की कल्पना करती है। खेल का नाम है ‘पू-पूत्त’, प्रसिद्ध लोककथा पर आधारित इस खेल के बोल हैं—
‘एक घड़ा पानी से एक फूल खिला
दो घड़े पानी से दो फूल खिले
तीन घड़े पानी से तीन फूल खिले’
इस प्रकार 10 घड़े पानी डालती हुई चिन्नताई बालिका फूलों को खिलाने में लगी हुई थी। इस लोक खेल के अंत में पूछा जाता है, ‘वह किसे अपना बनाएगी?’ गीत के बोल हैं—
‘अरे! तुम्हारे फुफेरे भाई खड़े हैं,
तुम्हें रानी बनाने को तुले हैं।
क्या तुम ममेरे को वरण करोगी?
बता तू! किससे ब्याह करेगी?
मेरे कानों में तुम रहस्यपूर्ण बता कर, चली जा।’
बालिका चिन्नताई फूलों से पूछती है? उन सभी फूलों का परिचय पाती है, अन्य बातों पर विचार करती है और अंत में प्रथम फूल की बात को मानते हुए अपना निर्णय सुनाती है कि वह ‘चाँद’ को ही अपना पति बनाएगी।
चिन्नताई ने अपने बचपन के दिन यों ही खेलते हुए गुजार दिए। वय:संधि से युवावस्था को प्राप्त करती है। माता-पिता को उसकी शादी की चिंता होती है। घर में जब उसके भविष्य की बात उठती है, चिन्नताई साफ मना कर देती है। वह किसी से भी शादी नहीं करना चाहती। ‘पू-पूत्त’ खेल को याद करती है। उस समय जो निर्णय उसने लिया था, वही आज भी उसके मन में दौड़ रहा था। वह समझ नहीं पाती है, क्या करे। उसने तो उसी समय ‘चाँद’ से शादी कर ली थी। अपना विचार बहुत धैर्य और साहस के साथ माता-पिता को कह देती है चिन्नताई।
‘क्या, चाँद से शादी करोगी?’ पागल तो नहीं हो गई हो तुम?’ माताजी ने समझाते हुए कहा।
‘हाँ माँ, मैं चाँद से ही शादी करूँगी।’ चिन्ननाई ने जिद करते हुए साफ कह दिया।
पिता परेशान, चिन्ननाई का यह निर्णय कैसे संभव है? आकाश के चाँद से भला कौन शादी कर सकता है? बहुत समझाने पर भी चिन्नताई किसी की बात को मानने में तैयार न थी। घर में मानो शोक वातावरण छा गया। किसी को भी समझ में नहीं आता कैसे चिन्नताई को समझाए। किसी की बात को मानने के लिए वह बिल्कुल तैयार नहीं थी। उसकी जिद थी ‘चाँद’ को पाना। हार जाने के बाद घर में माता-पिता ने निर्णय लिया कि वे मंदिर के पूजारी से मिलकर इस बात की चर्चा करेंगे और निश्चित रूप से उन्हें कुछ समाधान मिलेगा। ऐसा सोच कर निन्नताई को मंदिर के पुजारी से मिलवाते हैं। पुजारी को सारी बातें बताई गईं। पुजारी ने चिन्नताई को अब समझाना शुरू किया।
‘देखो बेटी, अपनी जिद छोड़ दो। आकाश में रहने वाला ‘चाँद’ कैसे नीचे उतारा जा सकता है?
‘नहीं! मेरी तो शादी हो चुकी है ‘चाँद’ से।’ चिन्नताई ने शरमाते हुए कहा।
पुजारी ने तरह-तरह की उक्तियों से उसे मनाने का प्रयास किया, परंतु सब बेकार। चिन्नताई के मन में ‘चाँद’ का निवास हो चुका था। अंत में पुजारी ने कहा, ‘ठीक है बेटी, तू ‘चाँद’ से ही शादी करना। पर इसके लिए तुम्हें तपस्या करनी पड़ेगी। शिव की पूजा करो। उन्हें प्रसन्न करो। वे तुम्हें वर देंगे। तब तुम ‘चाँद’ को माँग लेना और अपनी मनोकामना पूरी कर लेना।’
चिन्नताई कठोर तपस्या के लिए तैयार हो गई। माता-पिता और घर के सभी सदस्यों से आशीर्वाद लेकर पुजारी की बातों पर विश्वास करके चिन्नताई कई दिनों शिव की पूजा की। तपस्या की और एक दिन शिव भगवान् प्रसन्न होकर चिन्नताई को दर्शन देते हैं। चिन्नताई खुश होकर उन से चाँद माँगती है। भगवान् उसकी प्रार्थना सुन लेते हैं और कहते हैं, ‘ठीक है बेटी, तू! चाँद को अपनाना चाहती है न, तब एक काम करना। धरती पर तुम्हें जहाँ चाँद दिख जाता है, वहीं से उसे उठा लाना मैं फूलों की वरमाला तैयार करके यहाँ इंतजार करता हूँ। तुम्हारे आते ही दोनों की शादी करवा दूँगा।’’
अब चिन्नताई अति खुश। ‘चाँद’ को धरती पर खोजने निकल पड़ती है। चिन्नताई। कई दिन बीत जाते हैं, उसे चाँद की नहीं दिखता। एक दिन पूर्णिमा के दिन एक तालाब से चिन्नताई गुजर रही थी। अचानक उसे प्यास लगी। पास के तालाब में पानी पीने गई, वहाँ चाँदनी रात में ‘चाँद’ को तालाब में अड़खेलते देखकर चिन्नताई को खुशी का ठिकाना न रहा। तुरंत धरती पर चाँद को उठाने का प्रयास करती है। जब भी दोनों हाथों से चाँद को पानी से उठाने का प्रयास करती है, पानी तालाब में गिर जाता है। चाँद भी धूमिल हो जाता है। चिन्नताई को अब समझ में नहीं आता, कैसे चाँद को पकड़कर शिवजी के पास जाए। वह प्रयास करते करते थक जाती है। और थोड़ी देर के बाद बेहोश होकर वहीं सदा के लिए सो जाती है।
माना जाता है कि आज भी तमिलनाडु के इस गाँव में चिन्नताई की याद में उस तालाब के किनारे पूर्णिमा के दिन वहाँ के लोग फूल चढ़ाने आते हैं।
(साभार : डॉ. ए. भवानी)