कवि शौनचन और बिल्लियों का राजा : आयरिश लोक-कथा

Poet Seanchan and the King of Cats : Irish Folktale

जब कवि शौनचन को आयरलैंड का कविराज घोषित किया गया तो कौनौट के राजा गुऐर ने एक बहुत बड़ी दावत का इन्तजाम किया जिसमें देश के टीचर, विद्वान, कलाकार, वैज्ञानिक आदि सबको बुलाया गया था।

राजा ने सबकी मेहमानी का खूब अच्छा इन्तजाम कर रखा था। रोज वह सबसे जा कर पूछता — “आप सब ठीक तो हैं न?” पर फिर भी वे सब राजा के इन्तजाम से खुश नहीं थे।

वे लोग कुछ ऐसी चीज़ें चाहते थे जिनको राजा जुटा नहीं पा रहा था। इसलिये राजा भी बहुत दुखी था और रोज भगवान से प्रार्थना करता था कि वह उसको उनके नाखुश होने से बचाये। फिर भी वह दावत तीन दिन और तीन रात चली और लोगों ने खूब खाया और खूब पिया।

कवि शौनचन बहुत दुखी था। वह न कुछ खा रहा था और न कुछ पी रहा था क्योंकि वह कौनौट के दरबारियों से बहुत जलता था और जब वह यह देखता कि वे सबसे अच्छा माँस और शराब खा पी रहे थे तो उसने यह घोषणा कर दी कि जब तक उन दरबारियों और उनके नौकरों को उस घर से नहीं भेज दिया जायेगा वह न कुछ खायेगा और न कुछ पियेगा।

और जब गुऐर ने उनसे फिर पूछा — “आप सब लोग ठीक तो हैं न?”

तो शौनचन ने जवाब दिया — “इससे पहले मैंने इतने बुरे दिन और इतनी खराब रातें कभी नहीं बितायीं और न ही इतना खराब खाना खाया।” और सचमुच ही उसने पूरे तीन दिन तक कुछ भी नहीं खाया था।

राजा बहुत दुखी हुआ। उसके दूसरे मेहमान तो सब आनन्द मना रहे थे और उसका जो खास मेहमान था जिसके लिये इस दावत का इन्तजाम किया गया था वह उपवास कर रहा था।

यह देख कर राजा ने अपने सबसे प्रिय और सबसे ज़्यादा होशियार नौकर को बुलाया और उसको कविराज के पास खास खाना ले जाने के लिये कहा। वह वह खास खाना ले कर कविराज के पास गया।

शौनचन ने उसे देखते ही कहा — “इस सबको ले जाओ यहाँ से। मैं इसमें से कुछ भी नहीं खाऊँगा।”

नौकर बड़ी नम्रता से बोला — “ऐसा क्यों हुजूर?”

शौनचन बोला — “क्योंकि तुम साफ आदमी नहीं हो। तुम्हारे दादा जी के हाथों के सब नाखून टूटे हुए थे। मैंने उनको देखा है। ऐसी हालत में मैं तुम्हारे हाथ का खाना तो बिल्कुल नहीं खा सकता।”

राजा ने फिर एक सुन्दर लड़की को बुलाया और उसको कविराज के पास खाना ले जाने के लिये कहा पर जब शौनचन ने उसे देखा तो कहा — “तुमको यहाँ किसने भेजा है और तुम यह खाना मेरे लिये क्यों लायी हो?”

लड़की बोली — “मालिक़ मुझे राजा ने भेजा है। क्योंकि मैं बहुत सुन्दर हूँ इसलिये राजा ने कहा कि मैं खुद अपने हाथों से आप को खाना खिलाऊँ।”

शौनचन बोला — “ले जाओ यह सब। तुम बिल्कुल भी सुन्दर नहीं हो। तुमसे ज़्यादा बदसूरत तो मैंने और कोई देखा ही नहीं। एक दिन तुम्हारी दादी दीवार पर बैठी राह चलते कोढ़ी को उँगली दिखा रही थी। मैं तुम्हारे हाथ का खाना तो छू भी नहीं सकता।”

इस पर राजा गुऐर बहुत नाराज हुआ और बोला — “मैं उन होठों को शाप देता हूँ जिन्होंने ऐसा कहा। उसके मरने से पहले उन होठों को कोई कोढ़ी जरूर चूमेगा।”

वहाँ खड़ी एक नौकरानी यह सब सुन रही थी। वह शौनचन से बोली — “एक जगह एक मुर्गी का अंडा रखा है कविराज। अगर आप कहें तो मैं आपके लिये वह अंडा ला दूँ?”

शौनचन बोला — “ठीक है वही ला दो। मैं उसी से अपना काम चला लूँगा।” पर जब वह वह अंडा लाने गयी तो वह अंडा तो अपनी जगह पर नहीं था।

कविराज बोले — “लगता है कि वह अंडा तूने ही खाया है।”

नौकरानी गिड़गिड़ाते हुए बोली — “नहीं मालिक़ लगता है कि कोई चुहिया उसको ले गयी है।”

इस पर शौनचन बोला — “अगर ऐसा है तो मैं उन चुहियों पर एक व्यंग्य वाली कविता लिख दूँगा।”

और जब कविराज ने ऐसी एक कविता लिखी तो उसके असर से बहुत सारी चुहियें तो उसके सामने ही मर गयीं।

शौनचन बोला — “यह सब तो ठीक है पर वास्तव में बिल्ला ही इस सबका जिम्मेदार है क्योंकि उसको चुहियों को दबा कर रखना चाहिये था इसलिये अब मैं बिल्लियों के राजा पर व्यंग्य वाली कविता लिखूँगा।

“ओ इरूसन, तुम चूहों को मारते तो हो परन्तु उनको छोड़ भी देते हो। ओ कमजोर बिल्ले, तुम सबको तो अपनी मूँछें नीची कर लेनी चाहिये क्योंकि तुमने चूहों को जरूरत से ज़्यादा आजादी दे रखी है और वे तुम्हारी हँसी उड़ा रहे हैं।”

इरूसन अपने घर में बैठा बैठा उसकी यह व्यंग्य वाली कविता सुन रहा था। वह अपनी बेटी से बोला — “शौनचन ने मेरी खिल्ली उड़ायी है मैं उससे इसका बदला जरूर लूँगा।”

बेटी बोली — “पिता जी, आप उनसे बदला न लें बल्कि उन्हें यहाँ ज़िन्दा ही ले आयें ताकि हम सब उनसे अपना बदला ले सकें।”

इरूसन को अपनी बेटी की बात समझ में आ गयी। वह बोला
— “तुम ठीक कहती हो बेटी। अच्छा ऐसा करो, अपने भाइयों को बोलो कि वे भी मेरे साथ चलें।”

इधर जब शौनचन ने सुना कि बिल्लियों का राजा उसे पकड़ने आ रहा है तो वह घबरा गया। उसने राजा गुएर और वहाँ पर मौजूद सभी दरबारियों से प्रार्थना की कि वे सब उसके पास रहें और बिल्लियों के राजा से उसकी रक्षा करें क्योंकि वह उसको पकड़ने आ रहा था।

इतने में ही उनको किसी के आने की बड़ी ज़ोर की आवाज सुनायी देने लगी और जल्दी ही बिल्लियों का राजा उनको आता भी दिखायी देने लगा। वह बिल्ला उन लोगों को बैल जितना बड़ा दिखायी दे रहा था।

वह बिल्ला बहुत गुस्से में भरा था। वह हाँफ रहा था, उसके कान खड़े हुए थे और उसके तेज़ दाँत बाहर निकले हुए थे। वह वहाँ खड़े हुए लोगों की तरफ बिल्कुल भी ध्यान न देते हुए सीधा कवि शौनचन के पास जा पहुँचा। उसने शौनचन की बाँह पकड़ कर उसको अपनी पीठ पर लादा और अपने घर की तरफ चल दिया।

शौनचन तो कवि था सो रास्ते में उसने बिल्लियों के राजा की तारीफ करनी शुरू कर दी — “ओ इरूसन, तुम कितने बड़े हो, तुम्हारी कूद कितनी शानदार है, ताकतवर है और सुन्दर है। परन्तु मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? ओ इरूसन, ओ अरूसन के बेटे, मुझे छोड़ दो। मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ, ओ बिल्लियों के राजा।”

परन्तु इरूसन के कानों पर इस तारीफ का कोई असर नहीं हुआ। वह सीधा क्लौनमैकनोइज़ आ गया जहाँ सेन्ट कीरन दरवाजे पर खड़ा उसका इन्तजार कर रहा था।

सेन्ट उसको देखते ही बोला — “अरे यह क्या? ऐरिन का महाकवि बिल्ले की पीठ पर? क्या राजा गुएर की उदारता बिल्कुल ही खत्म हो चुकी है?”

और यह कहता हुआ वह भट्टी में से लोहे का गरम डंडा निकाल लाया और उसको उस बिल्ले के ऊपर ऐसे मारा कि वह बिल्ले के शरीर के पार हो गया और बिल्ला वहीं गिर कर मर गया।

कवि बोला — “बिल्ले को मारने वाले को मैं शाप देता हूँ।”

सेन्ट कीरन बोला — “मगर क्यों?”

कवि बोला — “क्योंकि मैं इरूसन के हाथों मारा जाना और उसके द्वारा खाया जाना ज़्यादा पसन्द करता ताकि यह राजा गुऐर को बदनाम करता कि उसने मुझे कितना खराब खाना खिलाया क्योंकि यह सब उसी की वजह से हुआ।”

यह सब जब और दूसरे राजाओं ने सुना तो उन्होंने उससे प्रार्थना की कि वह उनके दरबार में आ जाये लेकिन शौनचन कहीं नहीं गया। वह सीधा “कवियों के घर” चला गया जहाँ हमेशा ही अच्छा रहना सहना था।

जितने दिन वह वहाँ रहा उन सबका सरदार बन कर रहा। सारे दरबारी उससे नीचे बैठते थे। कुछ दिनों बाद राजा गुऐर से भी उसकी दोस्ती हो गयी। उन्होंने फिर वहाँ तीस दिन तक आनन्द मनाया।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

  • आयरिश/आयरलैंड की कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां