प्लेग की कहानी : हिंदी लोक-कथा

Plague Ki Kahani : Folktale in Hindi

एक बार एशिया में भयंकर प्लेग फैला। करोड़ों लोग उसकी भेंट चढ़ गए। भारत के एक धर्मनिष्ठ राजा ने अपने राज्य के सभी वृद्ध और बुद्धिमान पुरोहितों को बुलाया और उन्हें इस महामारी से बचने का उपाय पूछा। पुरोहितों की सभा में उसने कहा, “प्लेग मेरे राज्य की सीमाओं के निकट आ गया है। मुझे बताओ, अपनी प्रजा को बचाने के लिए मैं क्या करूँ?” पुरोहितों ने काफ़ी विचार-विमर्श किया। फिर सबकी ओर से एक पुरोहित खड़ा हुआ, “राजन, इस विपत्ति का कारण भगवान शिव है। उसे प्रसन्न करने के लिए हमें पूरे राज्य में शिव की पूजा और प्रार्थना करनी होगी।” राजा ने अदेर आदेश दिया कि शिव के हर मंदिर और हर घर में शिव की पूजा और उससे प्रार्थना की जाए। इसका सारा ख़र्च राज्य के ख़ज़ाने से दिया जाएगा।

पुरोहितों के पूजा प्रारंभ करने के एक सप्ताह बाद सबसे वरिष्ठ पुरोहित को शिव ने दर्शन दिए और कहा, “तुम क्या चाहते हो?” पुरोहित के रोंगटे खड़े हो गए। महादेव को दंडवत करके उसने हकलाते हुए कहा, “हे महादेव! सृष्टि के पालनहार! आपसे कुछ भी छुपा हुआ नहीं है। हमारे राज्य की ओर बढ़ते प्लेग से हमें बचाओ!” भोले शंकर ने कहा, “तथास्तु! तुम्हारी पूजा से मैं प्रसन्न हूँ। मेरा सेवक नंदी प्रत्येक अनिष्ट से तुम्हारे राज्य की रक्षा करेगा।” इतना कहकर शिव अंतर्ध्यान हो गए।

अगले दिन सवेरे राजा को यह शुभ समाचार दिया गया। उसने प्रत्येक पुरोहित को पच्चीस दुधारू गायें और कौड़ियों से भरे पचास थैले देकर विदा किया।

प्लेग को राज्य की सीमा में घुसने से रोकने के लिए नंदी रात-दिन चौकसी करने लगा। एक रात वह सीमा पर गश्त कर रहा था कि क्रूर प्लेग सदेह प्रकट हुआ और उसे धमकी देने लगा कि वह उसे राज्य में प्रवेश करने दे। नंदी त्रिशूल को ऊपर उठाकर गरजा, “दूर हो जा मेरी आँखों के सामने से! नीच, पापी, एक पग भी आगे रखा तो यमलोक पहुँचा दूँगा।” विकराल प्लेग यों आसानी से हार मानने वाला नहीं था। दोनों में विकट युद्ध छिड़ गया। युद्ध कई दिन चलता रहा। उनके आघातों से अनेक पहाड़ और जंगी पेड़ धराशाई हो गए। अंततः युद्धविराम हुआ। यह संधि हुई कि प्लेग सिर्फ़ एक दिन राजधानी में रुकेगा और एक से अधिक बलि नहीं लेगा।

पर अगले दिन शाम को नगर में हाय-त्राय मच गई। ख़बर थी कि एक या दो नहीं, बल्कि पूरे सौ आदमी प्लेग से मर गए। राजा ने तुरंत पुरोहितों को बुलवाया और सफ़ाई माँगी। पुरोहित भागे-भागे नंदी के पास गए। नंदी क्रोध से पागल हो गया और प्लेग की तलाश में दौड़ा। उसे प्लेग एक खंडहर के धूल से अटे फ़र्श पर पड़ा मिला। नंदी ने उसको गर्दन से दबोचा और दहाड़ा, “दुष्ट, तूने वचन तोड़ा है। तूने एक नहीं, एक सौ लोगों की बलि ली है। तुझे इसका परिणाम भुगतना होगा।” नंदी की पकड़ में होने के बावजूद प्लेग ठठाकर हँसा, “नहीं भई, मैंने वचन नहीं तोड़ा। बेकार ग़ुस्सा मत करो। मैंने तो वचन के अनुसार एक ही आदमी की बलि ली। बाक़ी निन्यानबे तो डर से मर गए। इसमें मेरा क्या दोष है? इन लोगों को मामूली बुखार था और ग्रंथियों में कुछ सूजन थी। इसे इन्होंने मेरी आहट समझा और डर से मर गए। इसमें मेरा कोई दोष नहीं।” अब नंदी क्या कहता! उसने प्लेग को छोड़ दिया।

(साभार : भारत की लोक कथाएँ, संपादक : ए. के. रामानुजन)

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