पिता की अंतिम इच्छा : उज़्बेक लोक-कथा

Pita Ki Antim Ichha : Uzbek Folk Tale

एक आदमी के तीन बेटे थे। जब उसका अंतिम समय निकट आया, तो उसने बड़े बेटे को बुलाया और बोला :

"बेटा, मेरे मरने के बाद क्या तुम तीन रात मेरी क़ब्र के पास गुजार सकते हो ?"

"नहीं, मैं क़ब्र के पास नहीं सो सकता," बड़े बेटे ने जवाब दिया।

उस आदमी ने अपने मंझले बेटे को बुलाकर यही सवाल किया, पर उसने भी ऐसा करने से इंकार कर दिया। तब उस आदमी ने सबसे छोटे बेटे को बुलाकर पूछा :

"बेटा, क्या तुम मेरे मरने के बाद तीन रात मेरी क़ब्र के पास सो सकते हो ?" छोटा बेटा बोला :

"पिता जी अगर आप चाहें, तो मैं तीन नहीं सौ रातें आपकी क़ब्र के पास गुजार सकता हूँ।

अपने बेटे के ये शब्द सुनकर पिता ने शांति से आँखें मूंद लीं और यह संसार छोड़ दिया । पिता को दफ़नाने के बाद छोटा बेटा शोक मनाता हुआ कब्र के पास ही बैठा रहा। आधी रात बीते वहाँ एक सफ़ेद घोड़ा आसमान से उतरकर आया। घोड़े पर पूरा साज था और सब तरह के हथियार उस पर बंधे थे । घोड़े ने सरपट दौड़ते हुए क़ब्र के तीन चक्कर लगाये । छोटे बेटे की नींद खुल गयी। वह घोड़े को पकड़कर पूछने लगा :

"तुमने सरपट दौड़ते हुए मेरे पिता की कब्र के तीन चक्कर क्यों लगाये ?"

"मैं कभी तुम्हारे पिता का वफ़ादार घोड़ा था और इस समय तुम्हारे पिता को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आसमान से उतरकर आया हूँ," घोड़े ने जवाब दिया और वहाँ से वापस आसमान में ग़ायब होने से पहले उसने अपनी अयाल के कुछ बाल अपने दांतों से तोड़कर लड़के को दे दिये ।

"अगर तुम्हारे ऊपर कोई मुसीबत आये, तो तुम मेरा एक बाल जलाना और मैं फ़ौरन तुम्हारे पास आ जाऊँगा," घोड़ा जाते-जाते बोला । दूसरी रात भी छोटा बेटा अपने पिता की कब्र के पास बैठा रहा। ठीक आधी रात के समय तक काला घोड़ा आसमान से उतरा और उसने भी सरपट दौड़ते हुए क़ब्र के तीन चक्कर लगाये। लड़के ने काले घोड़े को पकड़कर पूछा :

"तुम आसमान से क्यों उतरे और तुमने मेरे पिता की क़ब्र के तीन चक्कर क्यों लगाये ?"

"मैं कभी तुम्हारे पिता का वफ़ादार घोड़ा था और मुझ पर सवारी करने में उन्हें बड़ा मजा आता था। उनके मरने के बाद मैं आसमान से अपना फ़र्ज पूरा करने के लिए उतरा हूँ, तुम भी मुझे याद रखना," घोड़े ने कहा और अपनी लंबी अयाल के कुछ बाल अपने दांतों से तोड़कर लड़के को दिये और जाते-जाते बोला :

"अगर तुम पर कोई मुसीबत आये, तो मेरा एक बाल जलाना, उसी क्षण मैं तुम्हारे पास पहुँच जाऊँगा ।"

छोटा लड़का तीसरी रात भी पिता की कब्र के पास बैठा रहा। ठीक आधी रात के समय एक लाखी रंग का घोड़ा, जिस पर पूरा साज और हथियार थे, आसमान से उतरकर आया और सरपट दौड़ते हुए उसके पिता की क़ब्र के तीन चक्कर लगा गया। लड़के ने घोड़े से पूछा :

"तुमने क्यों सरपट दौड़ते हुए मेरे पिता की क़ब्र के तीन चक्कर लगाये ?"

"मैं तुम्हारे पिता की सेवा कर चुका हूँ। जहाँ भी वे जाना चाहते थे, उन्हें फ़ौरन वहाँ पहुँचाने के लिए मैं हमेशा तैयार रहता था। अब वे इस दुनिया में नहीं रहे, इस लिए मैं अपना आखिरी फ़र्ज़ पूरा करने के लिए आसमान से उतरकर आया हूँ," यह कहकर घोड़े ने अपनी अयाल के कुछ बाल अपने दांतों से तोड़कर लड़के को दिये और गायब हो गया ।

लड़का चौथी रात भी अपने पिता की कब्र के पास बैठा रहा । पर उस रात कोई नहीं आया । अपने पिता की अंतिम इच्छा का असली मतलब समझकर छोटा लड़का क़ब्र के पास से उठकर घर आ गया। पिता जो कुछ छोड़ गये थे, उसे तीनों भाइयों ने आपस में बाँट लिया। पर यह सब ज़्यादा दिन न चला, इसलिए तीनों चरवाहे का काम करने लगे । छोटा बेटा ईमानदारी से अपना काम करता था, पर उसके दोनों बड़े भाई अकसर दूसरों के जानवर बेच देते थे, पैसा खा-पी जाते थे या उन्हें काटकर खा जाते थे। अंत में जब लोगों को गुस्सा आया तो उन्होंने तीनों भाइयों को अपने गांव से निकाल दिया। तीनों भाई वहाँ से निकलकर दूसरे गांव में चरवाहे का काम करने लगे। एक बार छोटा भाई ढोर चरा रहा था, तो बाक़ी दोनों भाई घूमने के लिए शहर चले गये। उन्होंने शहर में एक अत्यंत आकर्षक और दिलचस्प बात देखी। वहाँ के बादशाह के हुक्म से शहर की सबसे बड़ी मेहराब के सहारे एक चालीस सीढ़ियोंवाली चौड़ी नसीनी लगा दी गयी और उसकी सबसे ऊपरी सीढ़ी के पास बादशाह की बेटी के बैठने के लिए तंबू तान दिया गया और सारे शहर में यह एलान करवा दिया गया :

"जो कोई घोड़े, गधे या ऊंट पर बैठकर इस नसीनी की सबसे ऊपरी सीढ़ी तक चढ़ जायेगा और शाहजादी के हाथ से पानी का प्याला पीकर उसकी अंगूठी लेकर नीचे उतर आयेगा, उसके साथ शाहजादी की शादी कर दी जायेगी। बादशाह सलामत इस बहादुरी के कारनामे और शादी की खुशी में चालीस दिन की दावत देंगे।"

यह खबर बिजली की तरह सारे देश में फैल गयी। हजारों लोग अपने-अपने घोड़ों, ऊंटों और गधों पर सवार होकर शहर पहुँचने लगे। और बहुत-से बहादुर नौजवान चालीस सीढ़ियों-वाली नसीनी पर चढ़ने की कोशिश करने लगे। पर उनमें से कोई भी सबसे ऊपर की सीढ़ी तक न पहुँच पाया और कई तो गिरकर मर भी गये। दोनों बड़े भाइयों ने जी भरकर यह नजारा देखा और घर आकर अपने छोटे भाई को सुनाने लगे :

"अहा ! आज शहर में हमने कितना मजेदार नजारा देखा !"

"आपने ऐसा कौन-सा मजेदार नजारा देखा, मुझे भी बताइये, " छोटा भाई पूछने लगा।

"बादशाह के हुक्म से चालीस सीढ़ियोंवाली एक नसीनी लगायी गयी है। अगर कोई अपने घोड़े पर बैठकर आखिरी सीढ़ी तक चढ़ जायेगा और शाहजादी के हाथ से पानी का प्याला पीकर और उसकी अंगूठी लेकर नीचे उतर आयेगा, तो बादशाह उसके इस बहादुरी के कारनामे की खुशी में दावत देगा और अपनी बेटी की शादी उस बहादुर के साथ कर देगा। बहुत-से बहादुर नौजवान घोड़ों, ऊँटों और गधों पर सवार होकर ऊपरी सीढ़ी तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं, पर सफलता अभी तक किसी के हाथ नहीं लगी और कई तो गिरकर मर चुके हैं या अपाहिज हो गये हैं। कितना मज़ेदार तमाशा देखा हमने !"

"अच्छा तो कल आप लोग जानवर चराना और मैं शहर जाकर यह नज़ारा देखूंगा,"

छोटा भाई बोला । और बड़े भाइयों ने जवाब दिया :

"नहीं, अगर तू चला गया तो हम लोग भूखे रह जायेंगे ।"

दूसरे दिन भी दोनों बड़े भाई नजारा देखने गये। उनका छोटा भाई शाम होने तक जानवर चराता रहा। उसके बाद उसने उन्हें पोपलर के एक बड़े पेड़ के नीचे जमा कर दिया और सफ़ेद घोड़े का एक बाल जलाया। फ़ौरन पूरे साज़ और हथियार से लैस सफ़ेद घोड़ा आसमान से उतरकर उसके सामने आ खड़ा हुआ। छोटा भाई घुड़सवार के कपड़े पहन और हथियार बांधकर सफ़ेद घोड़े पर सवार हो गया और शहर की ओर सरपट भाग चला। घोड़े को सीधे उस नसीनी के पास ले जाकर वह जोर से चिल्लाया "छू !" घोड़ा बड़ी तेजी से अड़तीसवीं सीढ़ी तक पहुँच गया, पर घुड़सवार ने घोड़े को मोड़ लिया और वापस उतर आया । वहाँ जमा लोगों की भीड़ में से कुछ ने आवाज दी "अरे, नौजवान, एक बार 'छू' और कहो और तुम ऊपरी सीढ़ी तक पहुँच जाओगे ! पर तब तक वह जा चुका था । स्तेपी में लौटकर वह फिर से जानवर चराने लगा, जैसे कुछ हुआ ही न हो। दोनों बड़े भाई घर आकर बड़े जोश से उसे शहर में देखा किस्सा सुनाने लगे :

"आज एक स्तेपी के घुड़सवार ने नसीनी पर घोड़ा चढ़ाने की कोशिश की। कितनी फुर्ती से अड़तीसवीं सीढ़ी तक चढ़ गया वह ! पर जब दो सीढ़ियाँ ही बाक़ी रह गयीं, तो उसने घोड़ा मोड़ लिया और नीचे उतर आया ।

"अरे भई, अब तुम मुझे भी कम-से-कम एक बार तो शहर जाकर यह तमाशा देख लेने दो," छोटा भाई गिड़गिड़ाया, पर बड़े भाई फिर बोले :

"वाह रे वाह अगर तुझे जाने दें, तो हमें खाना कौन खिलायेगा ?"

रात बीत गयी। सुबह होते ही बड़े भाई फिर तमाशा देखने के लिए शहर चल दिये । छोटे भाई ने भरपेट चराने के बाद जानवरों को पोपलर के बड़े पेड़ के नीचे बाँध दिया। इसके बाद उसने काले घोड़े का एक बाल जलाया और पूरे साज और हथियारों से लदा काला घोड़ा आसमान से उतरकर फ़ौरन सामने आ खड़ा हुआ। छोटे भाई ने कपड़े बदले और हथियार बाँधकर काले घोड़े पर शहर की ओर दौड़ चला। लोगों ने देखा कि आज यह नौजवान जिस घोड़े पर सवार है, वह उसके कलवाले घोड़े से चालीस गुना बेहतर है। छोटे भाई ने नसीनी के पास घोड़े को लाकर एड़ लगायी और 'छू' कहा। घोड़ा पलक झपकते ही उनतालीसवीं सीढ़ी तक चढ़ गया पर सवार ने वहाँ से घोड़ा मोड़ लिया और उस पर बैठा सीढ़ी से नीचे उतर आया। लोग चिल्लाने लगे "अरे भई, एक बार और 'छू' कहो और तुम्हारा घोड़ा तंबू तक पहुँच जायेगा !" शाम ढलने लगी थी, लोगों ने सोचा कि अब इससे ज्यादा मजेदार तमाशा देखने को नहीं मिलेगा और सब वहां से अपने-अपने घर लौट गये। दोनों बड़े भाई घर लौटकर अपने छोटे भाई को बड़े जोश के साथ आज के नजारे के बारे में बताने लगे :

"आजवाला घोड़ा कलवाले से कहीं ज्यादा अच्छा था। सवार के 'छू' कहने की देर थी कि वह पलक झपकते ही उनतालीसवीं सीढ़ी तक जा पहुँचा, पर उस बहादुर नौजवान ने खुद ही घोड़े को वहाँ से मोड़ लिया और नीचे उतर आया ।"

छोटा भाई फिर अपने बड़े भाइयों की आरजू-मिन्नत करने लगा :

"आज तो कम-से-कम तुम लोग जानवर चरा लो, मैं भी शहर जाकर यह मजेदार तमाशा देखना चाहता हूँ ।"

"अगर तू चला गया, तो हम लोग खायेंगे क्या ?" बड़े भाई बोले और उसे शहर नहीं जाने दिया ।

रात बीती और फिर सुबह हुई। दोनों बड़े भाई फिर शहर चले गये। छोटे भाई ने फिर जानवरों को भरपेट चराया और उन्हें पोपलर के घने पेड़ के नीचे बांध दिया। इस दिन उसने लाखी रंग के घोड़े का बाल जलाया और वह फ़ौरन पूरे साज-सामान और हथियारों से लदा आसमान से उतरकर सामने आ खड़ा हुआ। लड़के ने कपड़े बदले हथियार बांधे और घोड़े पर सवार होकर शहर की ओर दौड़ चला। नसीनी का एक चक्कर लगाकर उसने कहा "छू !" और पलक झपकते ही घोड़ा चालीसवीं सीढ़ी पार करके शाहजादी के तंबू के सामने आ खड़ा हुआ। लड़के ने शाहजादी के हाथों से पानी का प्याला पिया, उसकी उंगली से अंगूठी उतारी और घोड़े पर बैठे-बैठे ही नीचे उतर आया। दोनों बड़े भाई लौटकर अपने छोटे भाई को पूरा हिसाब देकर सुनाने लगे कि कितने ऊंट, घोड़े और गधे उस नसीनी पर से गिरकर मर गये ।

"पहला घोड़ा दूसरे घोड़े के मुक़ाबले में कुछ भी नहीं था, पर आज हमने उसका तीसरा घोड़ा देखा जो दूसरे से भी कई गुना बेहतर था। उसने सब लोगों के सामने अपने घोड़े पर सवार होकर नसीनी का एक चक्कर लगाया और उसके एड़ लगाकर 'छू !' कहते ही घोड़ा बिजली की तरह दौड़ा और चालीसों सीढ़ियां पार कर गया। घुड़सवार घोड़े से उतरा, शाहजादी के हाथों से पानी का प्याला पिया और उसकी उंगली से अंगूठी उतारकर घोड़े पर बैठा नीचे उतर आया।

छोटा भाई फिर बड़े भाइयों को मनाने लगा :

"आप लोगों ने कितना मज़ेदार तमाशा देखा, मुझे भी कम-से-कम एक दिन के लिए तो छोड़ देते, ताकि मैं भी एक बार ऐसा मजेदार नजारा देख लेता ।"

भाई कहने लगे कि बादशाह सब लोगों को दावत दे चुका है और अब और कोई तमाशा नहीं होगा। तीनों भाई पहले की तरह ढोर चराने लगे। एक दिन उन्होंने यह एलान सुना :

"जिस नौजवान ने शाहजादी के हाथों से पानी का प्याला पिया और उसकी उंगली से अंगूठी उतारी है, वह फ़ौरन महल में बादशाह के सामने हाज़िर हो जाये। बादशाह सलामत अपनी बेटी की शादी उसके साथ कर देंगे और बहुत शानदार दावत देंगे।"

पर महल में कोई नहीं आया। तब बादशाह ने फिर एक बहुत बड़ी दावत दी और एलान किया :

"दावत में हर आनेवाला जब हाथ धोयेगा, तो मेरे आदमी उसके हाथों को बड़े ध्यान से देखेंगे और शाहजादी की अंगूठी नज़र आते ही मुझे ख़बर करेंगे।"

बादशाह ने तीस दिनों तक अपनी प्रजा को खूब शानदार दावत दी और उन्हें भरपेट खिलाया और पिलाया। जब लोग हाथ धोते, तो बादशाह के आदमी बड़े ध्यान से उनके हाथ देखते, पर शाहजादी की अंगूठी पहने कोई आदमी वहाँ नहीं आया ।

और कोई बाक़ी तो नहीं रह गया ?" बादशाह ने पूछा ।

"बचे हैं तो सिर्फ़ स्तेपी के चरवाहे " वजीर ने जवाब दिया ।

बादशाह ने फ़ौरन उन्हें भी बुलाकर खिलाने-पिलाने का हुक्म दिया। एक वजीर चरवाहों को बुलाने गया । और जब वे हाथ धोकर महल में घुसने लगे, तो बादशाह के आदमी ने छोटे भाई की उंगली में शाहजादी की अंगूठी पहचान ली। दोनों बड़े भाई आश्चर्यचकित रह गये :

"शाहजादी की अंगूठी हमारे छोटे भाई के पास कैसे पहुँची ?"

तब छोटे भाई ने उन तीनों रातों का क़िस्सा सुनाया, जो उसने अपने पिता की क़ब्र के पास गुज़ारी थीं। बड़े भाई बहुत पछताये और कहने लगे कि अपने पिता की आखिरी इच्छा पर कोई ध्यान न देने के कारण हमें यह सजा मिल रही है। उन्हें बस इतने पर ही संतोष करना पड़ा कि उन्होंने अपने छोटे भाई की शादी की दावत खायी।

चालीस दिनों तक दावत चलती रही और उसके बाद बादशाह ने अपनी बेटी की शादी उस चरवाहे के साथ कर दी ।

एक महीना बीता कि अचानक बादशाह मर गया। प्रजा ने बादशाह के दामाद को अपना बादशाह बना दिया। दोनों बड़े भाई यह देखकर फिर पछताने लगे :

"हमारी तो क़िस्मत फूटी है। हर उस आदमी का भी यही हाल होगा जो अपने पिता की अंतिम इच्छा पूरी नहीं करेगा ।"

छोटे भाई की सारी आकांक्षाएं पूरी हुईं और वह सुख-चैन से राज करता रहा ।

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