फूस का बछड़ा - राल की पीठ : यूक्रेन लोक-कथा
Phoos Ka Bachhda - Raal Ki Peeth : Lok-Katha (Ukraine)
पुरानी बात है । कहीं एक बूढ़ा आदमी अपनी बुढ़िया के साथ रहा करता था । बूढ़ा पेड़ों से राल निकालता था, बुढ़िया घर की देखभाल करती थी ।
एक बार बुढ़िया ने जिद करते हुए बूढ़े से कहा :
"तुम मेरे लिए फूस का एक बछड़ा बना दो !"
"तू भी अजीब मूर्ख है ! अरे, फूस का बछड़ा तेरे किस काम का ?"
"उसे मैं चराने ले चलूंगी।"
बूढ़ा मजबूर था। पत्नी की जिद के कारण उसे फूस का बछड़ा बनाना ही पड़ा। उसने बछड़ा बनाकर उसके पेट और पीठ पर राल पोत दी ।
अगले दिन सुबह बुढ़िया ने तकली उठाई और बछड़े को चराने चल दी ।
एक टीले पर बैठकर तकली पर सूत कातते हुए यह कहती जाती :
"फूस का है तू बछड़ा, राल की तेरी पीठ, चर, मेरे बछड़े, चर चर चर !"
इस तरह बुढ़िया सूत कातती रही तकली चलाती रही। अचानक उसे नींद आ गई।
इस बीच सघन वन से एक भालू भागता हुआ वहां आया और बछड़े पर झपटा :
"तू कैसा जानवर है रे ?"
"फूस का मैं हूं बछड़ा, राल की मेरी पीठ !"
"ला मुझे थोड़ी राल दे दे, कुत्तों ने मेरे बाल नोच लिए हैं !"
लेकिन राल की पीठवाला बछड़ा खामोश खड़ा रहा। भालू को बड़ा गुस्सा आया । उसने आव देखा न ताव बछड़े की पीठ पर अपने पंजे का एक जोरदार झपट्टा मारा - और भालू मियां खुद राल में जा चिपके ।
बुढ़िया की नींद खुली तो उसने भालू को राल में चिपका हुआ पाया। उसने बूढ़े को जोर से पुकारा :
"सुनो सुनो जल्दी आओ, हमारे बछड़े ने भालू पकड़ा है ! बूढ़े ने भालू को पकड़कर तहखाने में बन्द कर दिया ।"
दूसरे दिन सुबह बुढ़िया ने फिर से अपनी तकली ली और बछड़े को चराने चल दी। टीले पर जा बैठी । तकली चलाती, सूत कातती हुई यह कहती जाती :
"फूस का है तू बछड़ा, राल की तेरी पीठ, चर, मेरे बछड़े, चर चर चर !"
बस, इस तरह तकली चलाते और सूत कातते हुए बुढ़िया को नींद आ गई। तभी सघन वन से एक भेड़िया भागता हुआ वहां आया और बछड़े पर झपटा :
"तू कैसा जानवर है रे ?"
"फूस का मैं हूं बछड़ा, राल की मेरी पीठ।"
"ला, मुझे थोड़ी राल दे दे, कुत्तों ने मेरे बाल नोच लिए हैं ! "
"ले लो । "
राल की पीठ पर पंजा लगाते ही भेड़िया चिपक गया ।
बुढ़िया की नींद खुली तो उसने भेड़िये को राल में चिपका हुआ पाया। उसने बूढ़े को जोर से पुकारा :
"सुनो सुनो जल्दी आओ, हमारे बछड़े ने भेड़िया पकड़ा है !"
बूढ़ा लपककर वहां आ पहुंचा और उसने भेड़िये को भी तहखाने में डाल दिया । तीसरे दिन फिर बुढ़िया बछड़े को चराने चल दी और सूत कातने लगी । सूत कातते-कातते ऊंघने लगी ।
अचानक एक लोमड़ी वहां पहुंची। बछड़े से पूछने लगी :
"तू कैसा जानवर है रे ?"
"फूस का मैं हूं बछड़ा, राल की मेरी पीठ ।"
"ला मुझे थोड़ी राल दे दे, कुत्तों ने मेरे बाल नोच लिए है !"
"ले लो।"
और फिर लोमड़ी भी चिपक गई । बुढ़िया की नींद खुली और उसने बूढ़े को पहले की तरह जोर से पुकारा ।
बूढ़े ने लोमड़ी के साथ भी वही सलूक किया। लोमड़ी भी तहखाने में बन्द हो गई । अहा, कितने जानवर इकट्ठे हो गए !
बूढ़े ने चाकू उठाया और उसकी धार तेज करने लगा । धार तेज़ करते हुए बोलता जा रहा था :
"भालू को मारकर उसकी खाल उधेड़ंगा । बढ़िया कोट बनेगा ।"
भालू की तो यह सुनकर सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई, बोला :
"मुझे मत मारो मुझे छोड़ दो! मैं तुम्हारे लिए शहद लाऊंगा ।"
"धोखा तो नहीं दोगे ?"
"नहीं, मैं तुम्हें धोखा नहीं दूंगा ।"
"खबरदार, जो धोखा दिया ! यह कहकर उसने भालू को छोड़ दिया । और फिर से चाकू की धार तेज करने लगा । सहमे हुए भेड़िये ने पूछा :
"बाबा, यह चाकू किसलिए तेज कर रहे हो ? "
"तुम्हारी खाल उतारकर अपने लिए जाड़े की गरम टोपी बनाऊंगा !"
"मुझे छोड़ दो! मैं तुम्हारे लिए मेमना लेकर आऊंगा ।"
"खबरदार, धोखा मत देना !"
उसने भेड़िये को भी छोड़ दिया और फिर से चाकू की धार तेज़ करने लगा ।
"बाबा, यह चाकू किसलिए तेज कर रहे हो ?" लोमड़ी ने सहमी आवाज पूछा ।
"तुम्हारी खाल बहुत बढ़िया है," बूढ़े ने कहा । "बुढ़िया के गरम कोट के लिए इसका खूबसूरत कालर बनेगा ।"
"मुझे मत मारो! मैं तुम्हारे लिए मुर्गियां, बत्तखें और हंस लेकर आऊंगी।"
"ख़बरदार, धोखा मत देना ! "
यह कहकर बूढ़े ने लोमड़ी को भी आज़ाद कर दिया ।
अगले दिन सवेरे तड़के ही दरवाजा खटका ।
"जाओ, देखो तो कौन है," बुढ़िया ने कहा ।
बूढ़ा उठकर बाहर आया । दरवाजे पर भालू खड़ा था। वह मधुमक्खियों का समूचा छत्ता ही उठा लाया था ।
बूढ़े बाबा ने शहद लेकर भालू को विदा किया। इसी बीच फिर दरवाजे पर दस्तक हुई भेड़िया मेमनों को हांककर लाया था। इतने में लोमड़ी भी वहां पहुंच गयी। उसके साथ ढेर सारी मुर्गियां, हंस और बत्तखें थीं ।
बूढ़ा भी खुश, बुढ़िया भी खुश । दोनों मजे से जीने लगे ।