दास पीटर महान का (उपन्यास) : अलेक्सांद्र पूश्किन
Peter the Great's Negro (Novel) : Alexander Pushkin
1
मैं हूँ पेरिस में :
शुरू किया मैंने जीना,
न कि सिर्फ़ साँस लेना
उन नौजवानों में, जिन्हें पीटर महान ने नवगठित राज्य के लिए आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए विदेशों में भेजा था, उनका धर्मपुत्र, दास इब्राहीम भी था। वह पेरिस की सैनिक अकादमी में प्रशिक्षण ग्रहण करते हुए, तोपख़ाने का कप्तान नियुक्त होकर, स्पेन के साथ हुए युद्ध में अनुपम शौर्य का प्रदर्शन कर, गम्भीर रूप से घायल पेरिस लौट रहा था। अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद सम्राट अपने प्रिय दास की खोज-ख़बर लेना न भूलते थे एवं उसके आचरण तथा प्रगति के बारे में उन्हें हमेशा प्रशंसात्मक टिप्पणियाँ ही प्राप्त होती थीं। पीटर उससे बहुत प्रसन्न थे एवं अनेक बार उसे रूस वापस बुला चुके थे, मगर इब्राहीम को कोई जल्दी न थी। वह अनेक प्रकार के बहाने बनाता, कभी ज़ख्मी होने का, कभी अपनी शिक्षा में निपुणता प्राप्त करने का, तो कभी पैसे न होने का, और पीटर उसकी प्रार्थना को दयालुभाव से स्वीकार कर लेते तथा उसे अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए कहते, शिक्षा के प्रति उसकी ज़िद और लगन के लिए धन्यवाद देते, स्वयं फ़िजूलखर्च न होते हुए भी उसके लिए सरकारी ख़र्च में कटौती न करते, पैसों के साथ-साथ पितृवत सलाहें एवं चेतावनी भरे आदेश भी भेजते।
ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार तत्कालीन फ्रांसीसियों की उन्मुक्त स्वच्छन्दता, पागलपन एवं शानो-शौकत का कोई जवाब न था। ल्युद्विक चौदहवें के शासन के अन्तिम वर्षों का, जो अपनी कट्टर धर्मपरायणता, दिखावे एवं सलीके के लिए प्रसिद्ध थे, कोई प्रभाव न बचा था। ऑर्लियन्स के ड्यूक1 में, जिनमें अनेक बेहतरीन गुणों के साथ-साथ अनेक बुराइयाँ भी थीं, दुर्भाग्यवश दम्भ एवं पाखंड का लेशमात्र भी न था। पैले रयाल2 में होनेवाले आमोद-प्रमोद पेरिस में किसी से छिपे नहीं थे; यह उदाहरण संक्रामक था। इसी समय लॉ3 का अवतरण हुआ; धन के लोभ के साथ ऐशो-आराम एवं बेपरवाही की प्यास भी बढ़ी; जागीरें लुप्त हो गयीं; नैतिकता का ह्रास हो गया; फ्रांसीसी मुस्कुराते और गिनती करते, और सरकार का व्यंग्यकारों के हल्के-फुल्के नाटकों के बीच विघटन होने लगा।
1. ऑर्लियन्स के ड्यूक : ल्युद्विक XV के अल्पायु होने के कारण फ्रांस के रीजेण्ट थे।
2. पैले रयाल : राजमहल।
3. लॉ : जॉन लॉ, जिसने फ्रांस में काग़ज़ के नोटों का प्रचलन किया एवं भारतवर्ष में आरम्भ की
गयी कम्पनी के कृत्रिम रूप से महँगे शेयर्स जारी किये। सन् 1720 में लॉ के वित्तीय कार्यकलाप
ठप हो गये, जिसके परिणामस्वरूप अनेक शेयर धारकों का दिवाला निकल गया तथा काग़ज़ी
नोटों का मूल्य एकदम गिर गया।
इस दौरान समाज काफ़ी दिलचस्प हो चला था। शिक्षा एवं मनोरंजन की माँग ने सभी वर्गों को एक-दूसरे के निकट ला दिया था। सम्पन्नता, सहृदयता, प्रतिष्ठा, योग्यता, परम विचित्रता, सभी कुछ, जो कुतूहल जगा सकता या प्रसन्नता का वादा करता, समान अनुग्रह का पात्र था। साहित्य, विज्ञान एवं दर्शन खामोश अध्ययन कक्ष से निकलकर उच्च वर्ग के बीच आ गये फ़ैशन को सन्तुष्ट करने के लिए, उसकी राय से चलने के लिए। महिलाओं का बोलबाला था, मगर अब वे प्रेम प्रशंसा की माँग न करती थीं। बाह्य शिष्टाचार का स्थान परम आदर ने ले लिया था।
आधुनिक अफीना1 के अल्कीवियाद2 रिशेल्ये के ड्यूक3 की छिछोरी हरकतें, जो इतिहास का अंग बन चुकी हैं, तत्कालीन सामाजिक जीवन पर प्रकाश डालती हैं :
1. आधुनिक अफीना-यहाँ पेरिस से तात्पर्य है।
2. अल्कीवियाद-अफीना के सेनापति (5 शताब्दी ई.पू.) जो बेहतरीन योग्यताओं के स्वामी होने के
साथ-साथ अनैतिक एवं स्वैर व्यवहार के लिए कुख्यात थे।
3. रिशेल्ये के ड्यूक : लुइ फ्रांसुआ अमान द्यू प्लेसी (1696-1788) फ्रांस के मार्शल, जो अपने
छिछोरेपन के लिए प्रसिद्ध थे।
सुख के दिन, मंडित स्वैराचार से,
डुनडुना बजाता अपना; पागलपन
फ्रांस में विचरता दबे पाँव से;
नश्वर प्राणी धर्म कर्म से दूर भगाता;
लाज करे बस केवल पश्चात्ताप से ।
इब्राहीम के अवतरण ने, उसके व्यक्तित्व, शिक्षा एवं स्वाभाविक बुद्धिमत्ता ने पेरिस में सभी का ध्यान आकर्षित कर लिया। सभी महिलाएँ त्सार के नीग्रो को अपने आवास में निमन्त्रित करना चाहतीं और उन्होंने उसे घेर ही लिया; रीजेंट ने अनेक बार अपनी आमोद-प्रमोद की पार्टियों में उसे आमन्त्रित किया; वह अरूएता की जवानी और शोल्ये के वृद्धत्व एवं मॉण्टेस्क्यू तथा फोन्तेनेल के वार्तालापों की गरिमा से मंडित भोजों में शामिल हुआ; किसी भी बॉल नृत्य को, किसी भी त्यौहार को, किसी भी प्रीमियर को उसने नहीं छोड़ा और आमोद-प्रमोद के उस तूफ़ान में अपनी उम्र और स्वभावगत जोश से उसने स्वयं को झोंक दिया।
मगर केवल इस व्यभिचार के, इन खूबसूरत दिलचस्पियों के स्थान पर पीटर्सबुर्ग के राजप्रासाद की सादगी को अपनाने के ही विचार से इब्राहीम भयभीत नहीं था। कुछ अन्य मज़बूत ज़ंजीरें उसे पेरिस से जकड़े हुए थीं। अफ्रीकी युवक प्यार कर रहा था।
काउंटेस डी. ढलती जवानी में भी अपनी सुन्दरता के लिए चर्चित थी। सत्रह वर्ष की उम्र में, मॉनेस्ट्री से शिक्षा पूर्ण करके निकलते ही, उसका ब्याह उस आदमी से कर दिया गया, जिससे वह प्यार न कर पाई और जिसने आगे चलकर कभी भी इस बारे में प्रयत्न नहीं किया। अफ़वाहें थीं कि उसके कई प्रेमी थे, मगर भद्र समाज की आचार संहिता के अनुसार उसे आदरणीय स्थान प्राप्त था, क्योंकि उसकी किसी भी हास्यास्पद अथवा प्रलोभक कारनामे के लिए निन्दा नहीं की गयी थी। उसका आवास अत्याधुनिक था। उसके यहाँ पेरिस का बेहतरीन समाज एकत्रित होता था। इब्राहीम को उसके सामने प्रस्तुत किया युवा मेर्विल ने, जो पूरी शिद्दत से यह जतलाने का प्रयत्न करता कि वही उसका अन्तिम प्रेमी है।
काउंटेस ने इब्राहीम का बड़ी शिष्टतापूर्वक, मगर बिना विशेष ध्यान दिये स्वागत किया; जिससे उसे बड़ी प्रसन्नता हुई। आमतौर से इस युवा नीग्रो को अचरज भरी निगाहों से देखा जाता, उसे घेरकर उस पर अभिवादनों एवं प्रश्नों की बौछार की जाती, और यह उत्सुकता, सहृदयता के आवरण में छिपी होने पर भी, उसके आत्मसम्मान को आहत कर जाती। औरतों का मिठास भरा व्यवहार, जो हमारी कोशिशों का लगभग एकमात्र उद्देश्य होता है, उसके हृदय को न केवल अप्रसन्न करता, अपितु उसे पीड़ा एवं घृणा से भर देता। वह महसूस करता कि वह उनके लिए किसी बिरली ही जाति का जानवर है, एक ऐसा विशिष्ट, विचित्र, संयोगवश पृथ्वी पर अवतरित हुआ प्राणी है, जिसकी उनके साथ कोई समानता नहीं है। उसे उन लोगों से ईर्ष्या भी होती, जिन पर कोई ध्यान न दिया जाता, और उनकी क्षुद्रता को वह उनका सौभाग्य समझ बैठता।
यह ख़याल कि प्रकृति ने उसे प्रेम का प्रतिसाद पाने के लिए नहीं गढ़ा, उसे आत्मनिर्भरता एवं स्वाभिमान के झूठे दावे से दूर रखता, जिससे महिलाओं से मुख़ातिब होने का उसका अन्दाज़ बड़ा दिलकश हो गया था। उसकी बातचीत सीधी-सादी एवं रोबदार होती; वह भा गया काउंटेस डी. को, जो सदाबहार चुटकुलों एवं फ्रांसीसी हाज़िरजवाबी से ऊब चुकी थी। इब्राहीम अक्सर उसके यहाँ आता रहता। धीरे-धीरे उसे नौजवान नीग्रो के रूप की आदत हो गयी, बल्कि अपने मेहमान कक्ष में पाउडर लगे विगों के बीच चमकते, इस काले घुँघराले बालों वाले सिर में उसे आकर्षण प्रतीत होने लगा। (इब्राहीम के सिर में चोट लगी थी अतः विग के स्थान पर वह सिर पर दास पीटर महान का पट्टा बाँधे रखता।) उसकी उम्र सत्ताईस वर्ष की थी, वह ऊँचा और हष्ट-पुष्ट था और अनेक सुन्दरियाँ उसे न केवल उत्सुकता की अपितु प्रशंसापूर्ण नज़रों से देखा करतीं, मगर पूर्वाग्रह-ग्रस्त इब्राहीम या तो किसी भी बात पर गौर न करता या उसे इसमें केवल छिछोरापन नज़र आता। जब उसकी निगाहें काउंटेस की नज़रों से मिलीं तो अविश्वास की धुन्ध छटने लगी। उसकी आँखों में ऐसी प्यारी सहृदयता थी, उसका व्यवहार उसके साथ इतना निष्कपट था, इतना सहज कि उसमें छिछोरेपन एवं व्यंग्य की छाया होने का सन्देह करना भी असम्भव था।
प्यार ने उसकी बुद्धि में नहीं झाँका, मगर काउंटेस को हर रोज़ देखना उसकी अनिवार्यता बन गयी। वह हर जगह उससे मिलने का मौक़ा ढूँढ़ा करता, और हर बार उस मुलाक़ात को ईश्वर की अप्रत्याशित कृपा समझता। काउंटेस ने, उससे पहले, उसकी भावनाओं को ताड़ लिया। कुछ भी कहिए, मगर चापलूसी की अपेक्षा आशा एवं कामना-रहित प्रेम स्त्री-हृदय को कहीं गहरे छू जाता है। इब्राहीम की उपस्थिति में काउंटेस उसकी हर हरकत पर नज़र रखती, उसकी सभी बातों को तन्मयतापूर्वक सुनती, उसकी अनुपस्थिति में ख़यालों में खो जाती और अपनी चिर-परिचित उदासीनता में डूब जाती... मेर्विल ने ही पहले-पहल इस पारस्परिक झुकाव को भाँप लिया और इब्राहीम को बधाई दे दी। प्रेम की आग को कोई और चीज़ इतना नहीं भड़काती जितना गैरों का प्रशंसात्मक प्रोत्साहन। प्रेम अन्धा होता है और स्वयं पर भी विश्वास न करते हुए शीघ्रता से किसी भी सहारे से लिपट जाता है। मेर्विल के शब्दों ने इब्राहीम को मानो जगा दिया। अपनी प्रिय महिला का स्वामित्व पाने की सम्भावना अब उसे कोरी कल्पना प्रतीत न हुई; आशा ने उसकी आत्मा को चकाचौंध कर दिया; वह बेतहाशा प्यार करने लगा। उसके प्रेमोन्माद से घबराई हुई काउंटेस ने व्यर्थ ही दोस्ती की नसीहतें एवं विवेक सम्बन्धी उपदेश देकर उसका विरोध करने की कोशिश की, मगर वह स्वयं ही कमज़ोर पड़ गयी।
असावधानी से दिखाई गयी मेहरबानियाँ शीघ्रतापूर्वक बढ़ती गयीं। और आखिरकार अपने ही द्वारा प्रेरित प्रेमोन्माद से आकर्षित होकर, उसके प्रभाव से निढाल, उसने स्वयं को उन्मादित इब्राहीम को सौंप दिया।
सतर्क समाज की पैनी दृष्टि से कुछ भी छिपा नहीं रहता। काउंटेस के नये सम्बन्ध के बारे में जल्दी ही सब जान गये। कुछ महिलाओं को उसके चुनाव पर विस्मय हुआ और कईयों को यह स्वाभाविक प्रतीत हुआ। कुछ लोग हँसे, कुछ औरों ने इसमें उसकी अक्षम्य असावधानी देखी। अनुराग से उत्पन्न आनन्द के पहले दौर में इब्राहीम और काउंटेस ने कुछ भी महसूस नहीं किया, मगर शीघ्र ही पुरुषों के द्विअर्थी मज़ाक़ और औरतों की पैनी फ़ब्तियाँ उन तक पहुँचने लगीं। इब्राहीम का गरिमापूर्ण एवं संयमित व्यवहार उसको इन आक्रमणों से अब तक बचाता रहा, वह बड़े धैर्य से उन्हें सहन करता रहा और समझ नहीं पाया कि क्या प्रतिक्रिया दिखाए। समाज से आदर पाने की अभ्यस्त काउंटेस स्वयं को उपहास एवं अफ़वाहों का शिकार होते देख शान्त न रह पायी। कभी वह आँसू लिये इब्राहीम से शिकायत करती, कभी उसे कड़वाहट से बुरा-भला कहती, कभी उसकी सहायता न करने की चिरौरी करती, जिससे कि व्यर्थ उठे तूफ़ान से वह पूरी तरह तबाह न हो जाए।
नयी परिस्थिति ने उसकी स्थिति को और भी जटिल बना दिया। असावधानीपूर्वक किये गये प्रेम का परिणाम प्रकट हो चुका था। सान्त्वना, परामर्श, सुझाव, सभी समाप्त हो चुके थे, नकार दिये गये थे। काउंटेस अपनी अवश्यम्भावी मृत्यु को देख रही थी और बड़ी बदहवासी से उसका इन्तज़ार कर रही थी।
जैसे ही काउंटेस की स्थिति का पता चला, नये जोश से अटकलें लगायी जाने लगीं। संवेदनशील स्त्रियाँ भय से कराह उठीं; पुरुष शर्त लगाने लगे कि काउंटेस किसे जन्म देगी : गोरे या काले बालक को। उसके पति पर, जो पूरे पेरिस में अकेला ही ऐसा व्यक्ति था, जो न कुछ जानता था, न किसी बात पर शक करता था, व्यंगात्मक मुक्तकों की बौछार होने लगी।
मनहूस घड़ी निकट आ रही थी। काउंटेस की हालत बड़ी नाज़ुक थी। इब्राहीम प्रतिदिन उसके पास आता। वह देख रहा था कि कैसे उसकी आन्तरिक एवं शारीरिक ऊर्जा धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। उसके आँसू, उसका डर हर पल प्रकट होते। आख़िरकार उसे पहले दर्द का अहसास हुआ। शीघ्र ही सारे प्रबन्ध किये गये। काउंट को किसी बहाने से दूर भेजा गया। डॉक्टर आया। इससे दो दिन पूर्व एक निर्धन स्त्री को अपने नवजात शिशु को पराये हाथों में सौंपने पर राज़ी किया गया था; इसके लिए एक विश्वसनीय व्यक्ति को भेजा गया। इब्राहीम उस शयनकक्ष के निकट ही के कमरे में उपस्थित था, जहाँ अभागी काउंटेस लेटी थी। साँस लेने से भी डरते हुए वह उसकी ज़ोर-ज़ोर की कराहें, सेविका की फुसफुसाहट और डॉक्टर के निर्देश सुन रहा था। वह बड़ी देर तक तड़पती रही। उसकी हर कराह इब्राहीम के दिल को चीर जाती; ख़ामोशी का हर लमहा उसे भय से सराबोर कर देता... अचानक उसने शिशु की कमज़ोर चीख़ सुनी और अपने जोश को नियन्त्रण में रखने में असमर्थ होकर वह काउंटेस के कमरे में घुस गया। एक साँवला शिशु काउंटेस के पैरों के बीच बिस्तर पर पड़ा था। इब्राहीम उसके निकट आया। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। काँपते हाथों से उसने पुत्र को आशीर्वाद दिया। काउंटेस क्षीणतापूर्वक मुस्कुरायी और उसने अपना निर्बल हाथ उसकी ओर बढ़ाया... मगर डॉक्टर ने, रोगी के लिए अत्यधिक मानसिक आवेग की स्थिति उत्पन्न होने के डर से, इब्राहीम को उसके बिस्तर से दूर खींच लिया। नवजात शिशु को बन्द डलिया में रखा गया और गुप्त सीढ़ियों से घर से बाहर ले जाया गया। दूसरे बालक को लाया गया और उसका पालना प्रसूता के शयनकक्ष में रख दिया गया।
इब्राहीम कुछ आश्वस्त होकर चला गया। काउंट का इन्तज़ार किया गया। वह देर से वापस लौटा, पत्नी की सुखद प्रसूति के बारे में जानकर बड़ा प्रसन्न हुआ। इस प्रकार जनता, जो किसी लफ़ड़े का इन्तज़ार कर रही थी, धोखा खा गयी और केवल तानों पर ही सन्तोष करने को बाध्य हो गयी।
सब कुछ पुराने ढर्रे पर चलने लगा। मगर इब्राहीम को यह महसूस होता कि उसका भाग्य बदलने वाला है, उसके सम्बन्धों के बारे में देर-सबेर काउंट डी. को पता चलेगा। उस हालत में, चाहे कुछ भी हो, काउंटेस की मृत्यु अवश्यम्भावी होती। वह बड़ी शिद्दत से प्यार कर रहा था और उसी तरह प्यार पा भी रहा था; मगर काउंटेस मनचली और छिछोरी थी। वह पहली बार प्यार नहीं कर रही थी। उसके हृदय के कोमल भावों का स्थान तिरस्कार एवं घृणा ले सकते थे। इब्राहीम ठंडेपन के इस क्षण की कल्पना कर रहा था; अब तक उसे प्रतिद्वन्द्विता के दर्शन तो नहीं हुए थे मगर उसका त्रासद पूर्वाभास हो चला था। उसने सोचा कि जुदाई का ग़म कुछ कम पीड़ादायक होगा, और उसने इस दुर्भाग्यपूर्ण सम्बन्ध को समाप्त करने का, पेरिस छोड़ने और रूस जाने का निश्चय कर लिया, जहाँ से कब से उसे बुला रहे थे—पीटर और उसकी कृतज्ञतापूर्ण बोझिल भावना।
2
दिन और महीने गुज़रते रहे और प्रेमासक्त इब्राहीम स्वयं द्वारा फुसलाई गयी महिला को छोड़ने का निर्णय न ले सका। काउंटेस का उसके साथ सम्बन्ध धीरे-धीरे अधिकाधिक प्रगाढ़ होता चला गया। उनका पुत्र एक दूर-दराज़ के इलाके में पल रहा था। समाज की अफ़वाहें धीरे-धीरे शान्त होने लगीं और प्रेमी ख़ामोशी से बीते हुए तूफ़ान को याद करते, भविष्य के बारे में सोचने की कोशिश न करते हुए, इस सुकून का आनन्द उठाने लगे।
एक बार इब्राहीम ऑर्लियन्स के ड्यूक के द्वार के पास ही खड़ा था। ड्यूक ने, उसके नज़दीक से गुज़रते हुए, उसके हाथ में एक पत्र थमाकर उसे फ़ुर्सत की घड़ी में पढ़ने की आज्ञा दी। यह पत्र पीटर प्रथम का था। सम्राट ने उसकी अनुपस्थिति के वास्तविक कारण को भाँपते हुए ड्यूक को लिखा कि उसका इब्राहीम को किसी भी तरह के बन्धन में रखने का कोई इरादा नहीं है, वह रूस में वापस लौटने या न लौटने का निर्णय उसी की इच्छा पर छोड़ता है, मगर किसी भी हालत में वह अपने भूतपूर्व पाल्य को नहीं छोड़ेगा। यह पत्र इब्राहीम के दिल की गहराइयों को छू गया। उसी क्षण से उसके भाग्य का निर्णय हो गया। दूसरे दिन उसने ड्यूक को शीघ्र ही रूस जाने के अपने इरादे से अवगत कराया।
“सोचो कि आप क्या करने जा रहे हैं!” ड्यूक ने उससे कहा, “रूस आपकी ‘पितृभूमि’ नहीं है; मैं नहीं सोचता कि आप कभी अपनी उष्ण मातृभूमि को दुबारा देख पाएँगे; मगर फ़्रांस में आपकी लम्बी मौजूदगी ने आपको अधजंगली रूस की जलवायु और जीवन-शैली के लिए भी अजनबी बना दिया है। जन्म से तो आप पीटर की प्रजा नहीं थे। मुझ पर विश्वास कीजिए: उसकी इस उदारतापूर्वक दी गयी आज्ञा का लाभ उठाइए। फ़्रांस में रह जाइए, जिसके लिए आप अपना ख़ून बहा चुके हैं, और यक़ीन कीजिए, यहाँ भी आपकी सेवाएँ एवं योग्यताएँ समुचित पुरस्कार से वंचित नहीं रहेंगी।”
इब्राहीम ने ड्यूक को हार्दिक धन्यवाद दिया, मगर अपने इरादे पर अटल रहा।
“मुझे अफ़सोस है,” ड्यूक ने उससे कहा, “मगर आप सही हैं।” उसने उसे सेवामुक्ति का आश्वासन दिया और रूस के सम्राट को विस्तृत पत्र लिखा।
इब्राहीम ने शीघ्र ही यात्रा की तैयारी कर ली। प्रस्थान की पूर्व-सन्ध्या उसने आदत के मुताबिक़ काउंटेस डी. के यहाँ गुज़ारी। उसे कुछ भी मालूम न था, इब्राहीम की हिम्मत ही नहीं हुई उससे खुलकर कहने की। काउंटेस शान्त एवं प्रसन्न थी। उसने कई बार उसे अपने निकट बुलाया और उसकी चिन्तनशीलता का मज़ाक़ उड़ाया। भोजन के बाद सभी चले गये। मेहमानख़ाने में बचे काउंटेस, उसके पति और इब्राहीम। अभागा उसके साथ एकान्त के कुछ क्षणों के लिए दुनिया की हर चीज़ लुटा देता; मगर काउंट डी. अँगीठी के पास इतने आराम से बैठे नज़र आये कि उनके कमरे से बाहर निकलने की आशा करना व्यर्थ प्रतीत हुआ। तीनों ख़ामोश थे।“गुड नाइट,” आखिरकार काउंटेस ने कहा। इब्राहीम का दिल मानो बैठ गया और अचानक वह जुदाई के ख़ौफ़ को महसूस करने लगा। वह निश्चल खड़ा रहा। “गुड नाइट, महाशय,” काउंटेस ने दुहराया। वह फिर भी नहीं हिला... अन्त में उसकी आँखें नम हो गयीं, सिर घूमने लगा, वह जैसे-तैसे कमरे से बाहर निकल पाया। घर आकर लगभग पागलपन की हालत में उसने यह ख़त लिखा:
“प्यारी लियोनारा, मैं जा रहा हूँ, तुम्हें हमेशा के लिए छोड़कर। तुम्हें लिख इसलिए रहा हूँ कि तुम्हारे सामने कोई सफ़ाई पेश करना मेरी सामर्थ्य से बाहर है।
“मेरा सुख स्थायी न रह पाया। स्वभाव एवं भाग्य की प्रतिकूलता के बावजूद मैं उसका आनन्द उठाता रहा। तुम्हें मुझसे घृणा हो जाएगी, आकर्षण लुप्त हो ही जाएगा, यह ख़याल हमेशा मेरा पीछा करता रहा, उन क्षणों में भी, जब मैं सब कुछ भूल जाया करता, जब तुम्हारे पैरों के पास बैठकर तुम्हारे उत्कट, निःस्वार्थ प्रेम, तुम्हारी असीम कोमलता और प्यार को महसूस करता... छिछोरा समाज वास्तविकता में बड़ी बेरहमी से उस चीज़ के पीछे पड़ जाता है, जिसे सैद्धान्तिक रूप से मान्यता प्रदान करता है: उसका बेरूखा उपहास कभी-न-कभी तुम्हें पराजित कर देता, तुम्हारी आवेगपूर्ण आत्मा को शान्त कर देता और अन्त में तुम्हें अपने उन्माद पर लज्जा होने लगती... तब मेरा क्या होता? नहीं! उस भयानक क्षण के आने से पूर्व बेहतर है मर जाना, बेहतर है तुम्हें छोड़ देना...”
“तुम्हारा सुख-चैन मेरे लिए सबसे ज़्यादा क़ीमती है : जब तक समाज की नज़रें हम पर तनी हुई होंगी, तुम उसका आनन्द न उठा पाओगी।
"याद करो वह सब, जो तुमने सहा है—आत्मसम्मान का अपमान, भय की सारी पीड़ाएँ; याद करो हमारे पुत्र के जन्म की भयानक गाथा। सोचो : क्या मैं दुबारा तुम्हें उन्हीं परेशानियों और खतरों के हवाले कर दूँ? इतनी सुन्दर, कोमल रचना का भाग्य अभागे नीग्रो के भाग्य से जोड़ने का कष्ट क्यों किया जाए, जिसे मानव कहलाने का अधिकार भी मुश्किल से मिलता है?
"माफ़ करना, लिओनोरा, माफ़ करना मेरे प्यारे, मेरे इकलौते दोस्त! तुम्हें छोड़ते हुए मैं अपने जीवन की प्रथम एवं अन्तिम खुशियों को अलविदा कह रहा हूँ। मेरी न तो कोई पितृभूमि है, न ही कोई निकट सम्बन्धी। जा रहा हूँ उदास रूस को, जहाँ मेरा निपट एकान्त ही मेरा सुख होगा। कठोर परिश्रम, जिसके लिए मैं अब से समर्पित हूँ, यदि मेरा दमन न कर दे, तो कम-से-कम सुख और उन्माद के दिनों की पीड़ादायक स्मृतियों से तो मेरा ध्यान हटाएँगे। क्षमा करना, लिओनोरा—इस ख़त से यूँ दूर हो रहा हूँ, जैसे तुम्हारे आलिंगन से; माफ़ करना, खुश रहो, और कभी-कभी अभागे नीग्रो को, अपने सच्चे इब्राहीम को याद कर लिया करो।”
उसी रात वह रूस के लिए चल पड़ा। यात्रा उसे इतनी भयावह न प्रतीत हुई, जितनी उसने कल्पना की थी। उसकी कल्पना वास्तविकता पर हावी हो रही थी। जैसे-जैसे वह पेरिस से दूर होता गया, वैसे-वैसे बड़ी ज़िन्दादिली से उन वस्तुओं की निकटता महसूस करता गया, जिन्हें वह बरसों पहले छोड़ आया था।
संवेदनशून्य अवस्था में वह रूस की सीमा पर पहुँचा। शिशिर का आगमन हो चुका था। मगर गाड़ीवान, बेतरतीब रास्तों पर ध्यान न देते हुए, उसे हवा की रफ़्तार से ले जा रहे थे और अपनी यात्रा की सत्रहवीं सुबह को वह क्रास्नोये सेलो पहुँचा, जहाँ से तत्कालीन राजमार्ग गुज़रता था।
पीटर्सबुर्ग तक अट्ठाईस वेर्स्त (मील) रह गये थे। जब तक घोड़े जोते जा रहे थे, इब्राहीम कोचवान की झोंपड़ी में गया। एक कोने में ऊँचे क़दवाला एक आदमी हरा कफ्तान1 पहने, मुँह में चीनी मिट्टी का पाइप दबाये मेज़ पर कोहनियाँ टिकाये हैम्बर्ग के समाचार पत्र पढ़ रहा था। किसी के अन्दर आने की आहट से उसने सिर उठाया।
1. कफ्तान — लम्बे पल्लोंवाला पुरुषों का अँगरखा
“ब्वा! इब्राहीम?” बेंच से उठते हुए वह चिल्लाया, “बहुत अच्छे, धर्मपुत्र!”
इब्राहीम पीटर को पहचानकर, ख़ुशी के मारे उसकी ओर लपकने ही वाला था, मगर आदरपूर्वक ठिठक गया। सम्राट निकट आये, उसका आलिंगन कर उसके माथे को चूमा।
“मुझे तुम्हारे आगमन की पूर्व सूचना दी गयी थी,” पीटर ने कहा, “और मैं तुम्हारा स्वागत करने चला आया। कल से तुम्हारा इन्तज़ार कर रहा हूँ।”
इब्राहीम को कृतज्ञता प्रकट करने के लिए शब्द ही न मिले।
“अपनी गाड़ी को हमारे पीछे आने की आज्ञा दो,” सम्राट ने आगे कहा, “और तुम मेरे साथ बैठो, मेरे निवास पर चलेंगे।”
सम्राट की गाड़ी तैयार कर दी गयी। वे इब्राहीम के साथ बैठे और चल पड़े। डेढ़ घण्टे बाद वे पीटर्सबुर्ग पहुँचे। इब्राहीम उत्सुकता से नवजात राजधानी को देख रहा था, जो दलदल में से उभरी थी निरंकुशता की सनक के फलस्वरूप। जहाँ-तहाँ बिखरे अनावृत बाँध, तटबन्ध रहित नहरें, लकड़ी के पुल—प्रकृति के असहयोग के ऊपर मानवीय इच्छा की विजय की कहानी कह रहे थे। घर शीघ्रता से निर्मित प्रतीत हो रहे थे। पूरे शहर में कोई भी चीज़ शानदार नहीं थी सिवाय नीवा के, जो अभी तक ग्रेनाइट की चौखट से सुसज्जित नहीं हुई थी, मगर व्यापारिक एवं सामरिक जहाज़ों से आच्छादित अवश्य हो चुकी थी। सम्राट की गाड़ी तथाकथित त्सार उद्यान के निकट रुकी। ड्योढ़ी पर पीटर का स्वागत किया लगभग पैंतीस वर्षीया महिला ने, जो सुन्दर थी और पेरिस के आधुनिकतम फ़ैशन के वस्त्र पहने थी।
पीटर ने उसके अधरों का चुम्बन लिया और इब्राहीम का हाथ पकड़कर बोला— “पहचाना तुमने, कातेंका, मेरे धर्मपुत्र को? कृपया इसे पहले की ही भाँति प्रेम करना एवं इसका ध्यान रखना।” एकातेरिना ने उस पर अपनी काली, भेदक आँखें टिकाई और स्नेहपूर्वक उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाया। दो नवयौवनाएँ, ऊँची, सुदृढ़, गुलाब जैसी ताज़ा-तरीन, जो उसके पीछे खड़ी थीं, आदरपूर्वक पीटर के निकट आयीं।
“लीजा,” वह उनमें से एक से बोला, “तुझे वह नन्हा नीग्रो याद है, जो तेरे लिए ओरेनबाऊम में मेरे सेब चुराया करता था? यह रहा वो, पेश करता हूँ।”
महान राजकुमारी हँस पड़ी और लाल हो गयी। वे भोजन गृह में गये। सम्राट के इन्तज़ार में मेज़ सजाई गयी थी। पीटर इब्राहीम को आमन्त्रित करते हुए पूरे परिवार के साथ भोजन करने बैठा। भोजन करते हुए सम्राट उससे अनेक विषयों पर बातें करता रहा—स्पेन के युद्ध के बारे में, फ्रांस के आन्तरिक मामलों के बारे में, ड्यूक के बारे में उससे पूछा, जिसे वह बहुत चाहता था, हालाँकि उसकी अनेक खामियाँ भी निकालता रहता। इब्राहीम की निरीक्षण शक्ति बड़ी पैनी एवं सटीक थी। पीटर उसके उत्तरों से बहुत प्रसन्न हुआ। इब्राहीम के बचपन के क़िस्से याद कर-करके, वह इतनी सहृदयता एवं प्रसन्नता से सुना रहा था कि इस प्यारे एवं आतिथ्यप्रिय गृह स्वामी को देखकर कोई भी उसके पॉल्तावा के ‘हीरो’ एवं रूस के शक्तिशाली एवं भयानक पुनर्निर्माता होने की कल्पना न कर सकता था।
भोजन के पश्चात् रूसी प्रथा के अनुसार सम्राट विश्राम करने चले गये। इब्राहीम सम्राज्ञी एवं महान राजकुमारियों के साथ रह गया। वह उनकी उत्सुकता को शान्त करने का प्रयत्न कर रहा था, पेरिस के जीवन का चित्र खींचते, वहाँ के त्यौहार और अनूठे फ़ैशन का वर्णन करता रहा। इसी बीच कुछ विशिष्ट व्यक्ति, जो सम्राट के काफ़ी निकट थे, महल में एकत्रित हो गये। इब्राहीम ने पहचान लिया—महान राजकुमार मेन्शिकोव को, जो एकातेरिना से बातें करते हुए, इब्राहीम को बड़े घमंड से देख रहा था; सम्राट के गम्भीर सलाहकार राजकुमार याकाव दोल्गारुकी को; जनता के मध्य रूसी ‘फाउस्ट’ के रूप में विख्यात वैज्ञानिक ब्रूस को; अपने पूर्व सखा युवा रागूजिन्स्की को और अन्य अनेक व्यक्तियों को, जो सम्राट के पास अपने-अपने निवेदनों एवं उसके आदेशों के लिए आये थे।
सम्राट लगभग दो घण्टे बाद बाहर आये। “देखते हैं,” उन्होंने इब्राहीम से कहा, “तुम अपने पुराने कर्तव्य को तो नहीं भूले। तख्ती लेकर मेरे साथ आओ।” वह खरादी में आया और द्वार बन्द करके शासकीय कामकाज निपटाने लगा। वह बारी-बारी से ब्रूस, राजकुमार दोल्गारुकी, पुलिस जनरल देवियेर के साथ चर्चा करता रहा तथा इब्राहीम को कुछ आज्ञाएँ एवं निर्णय लिखवाता रहा। इब्राहीम उसके तेज़ एवं स्पष्ट दिमाग़, उसकी एकाग्रता एवं परिस्थिति को समझने की शक्ति तथा उसके कार्यों की विविधता का कायल हुए बिना न रह सका। काम समाप्त होने के पश्चात् पीटर ने जेबी डायरी निकाली यह देखने के लिए कि आज के लिए निर्धारित सभी कार्य पूरे हो गये हैं अथवा नहीं। फिर, खरादी से निकलते हुए इब्राहीम से कहा— “काफ़ी देर हो चुकी है; तुम, मैं समझता हूँ, थक गये हो। रात यहीं गुज़ार लो, जैसा पहले गुज़ारा करते थे। कल मैं तुम्हें उठा दूँगा।”
अकेले रह जाने पर, इब्राहीम को अपने आप पर विश्वास नहीं हो रहा था। वह पीटर्सबुर्ग में था, उसने दुबारा उस महान व्यक्ति को देखा, जिसके सान्निध्य में, उसकी महत्ता जाने बगैर, उसने अपना बचपन गुज़ारा था। लगभग पश्चात्ताप की भावना से ही उसने मन-ही-मन स्वीकार किया कि इस पूरे दिन, जुदाई के बाद पहली बार, काउंटेस डी. उसके विचारों का एकमात्र केन्द्र नहीं रही थी। उसने देखा कि जीवन का यह नया रूप, जो उसका इन्तज़ार कर रहा था—कार्यकलाप एवं निरन्तर व्यस्तता—उसकी आत्मा को, जो आवेगों, निठल्लेपन एवं रहस्यमय निराशा के कारण थककर चूर हो गयी थी, जीवित कर सकेंगे। इस महान व्यक्ति का सहयोगी होने एवं उसके साथ मिलकर महान जनता के भविष्य के लिए कार्य करने के विचार ने उसके भीतर पहली बार महत्त्वाकांक्षा को जाग्रत किया। इसी उधेड़बुन में वह अपने लिए तैयार किये गये बिस्तर पर जा लेटा, और तब परिचित सपने उसे ले चले दूरस्थ पेरिस की ओर—प्रियतमा के आलिंगन में।
3
दूसरे दिन अपने वादे के मुताबिक़ पीटर ने इब्राहीम को उठाया और प्रेओब्राझेन्स्की रेजिमेंट, जिसका कप्तान वह स्वयं था, के बमबारी दस्ते का लेफ़्टिनेंट नियुक्त किये जाने की बधाई दी। दरबारियों ने इब्राहीम को घेर लिया। हर कोई अपने-अपने तरीक़े से नये कृपापात्र के प्रति स्नेह प्रदर्शित करने का प्रयत्न कर रहा था। घमंडी राजकुमार मेन्शिकोव ने मित्रतापूर्वक उससे हाथ मिलाया। शेरेमेत्येव ने पेरिस के अपने परिचितों के बारे में पूछा और गोलोविन ने उसे भोजन के लिए बुला लिया। इस अन्तिम उदाहरण का अनुकरण दूसरों ने भी किया, जिसके फलस्वरूप इब्राहीम को लगभग पूरे महीने के लिए निमन्त्रण प्राप्त हो गये।
इब्राहीम एक-से, मगर कामकाज से भरपूर दिन गुज़ारता था, जिसके कारण वह ऊबता नहीं था। दिन-प्रतिदिन सम्राट के प्रति अधिकाधिक स्नेह का अनुभव करता हुआ वह उसकी महान आत्मा को सबसे अच्छी तरह समझ रहा था। किसी महान व्यक्ति के विचारों को समझना बड़ी दिलचस्प कला है। इब्राहीम पीटर को देखा करता—सिनेट में, बुतुर्लिन और दोल्गोरुकी के साथ बहस करते हुए; न्यायपालिका की महत्त्वपूर्ण समस्याओं का समाधान ढूँढ़ते हुए; जहाज़ निर्माण संस्था में रूस की नौसेना की महानता पर ज़ोर देते हुए; फिओफान, गावरीला बुझिन्स्की और कोपियेविच के साथ फ़ुर्सत के क्षणों में विदेशी प्रकाशनों के अनुवाद देखते हुए; या किसी व्यापारी की फ़ैक्ट्री, कारीगर के कारखाने अथवा वैज्ञानिक के अध्ययन-कक्ष में जाते हुए। रूस इब्राहीम को एक भीमकाय कारखाना प्रतीत हो रहा था, जिसमें केवल मशीनें चल रही हैं, जहाँ हर कामगार निर्धारित नियमों का पालन करते हुए अपने काम में मग्न है। उसने स्वयं को भी अपनी मशीन पर कार्य करने के लिए बाध्य समझा और पेरिस के जीवन की रंगीनियों के अभाव का कम-से-कम अफ़सोस करने का प्रयत्न करने लगा। मगर एक और चीज़—प्यारी यादों को—स्वयं से दूर करना उसके लिए बहुत कठिन था। अक्सर वह काउंटेस डी. के बारे में सोचा करता—उसकी स्वाभाविक अप्रसन्नता, उसके आँसू और उसकी उदासी। कभी-कभी एक भयानक विचार उसके दिल को सहमा देता—कुलीन समाज की अन्यमनस्कता, नये सम्बन्ध, कोई और भाग्यशाली। वह काँप उठता; ईर्ष्या उसके अफ़्रीकी ख़ून में उफान लाने लगती और गरम-गरम आँसू उसके स्याह चेहरे पर बहने को मचल उठते।
एक बार वह अपने अध्ययन-कक्ष में कामकाज सम्बन्धी काग़ज़ात लिये बैठा था कि अचानक फ्रांसीसी भाषा में ज़ोरदार अभिवादन सुनाई दिया। इब्राहीम फ़ुर्ती से पलटा और नौजवान कोर्साकोव ने, जिसे वह पेरिस के उच्च समाज की आँधी में छोड़ आया था, ख़ुशी से चिल्लाते हुए उसको अपनी बाँहों में भर लिया।
“मैं बस अभी-अभी पहुँचा हूँ,” कोर्साकोव ने कहा, “और सीधा तेरे पास भागा हूँ। पेरिस के हमारे सभी परिचित तुझे नमस्ते कहते हैं, तुम्हारी गैरहाज़िरी का अफ़सोस मनाते हैं। काउंटेस डी. ने तुम्हें बुलाने का हुक्म दिया है, और यह रहा उसका ख़त।” अपनी आँखों पर भरोसा करने की हिम्मत न करते हुए इब्राहीम ने थरथराते हाथों से ख़त पकड़ा और लिफ़ाफ़े के ऊपर के जाने-पहचाने अक्षरों को देखने लगा।
“मैं बहुत खुश हूँ,” कोर्साकोव कहता रहा, “कि इस जंगली पीटर्सबुर्ग में उकताहट के मारे तुम अब तक मरे नहीं हो। यहाँ करते क्या हो? क्या व्यवसाय है? तुम्हारा दर्ज़ी कौन है? क्या यहाँ कम-से-कम ऑपेरा भी है?” इब्राहीम ने अनमनेपन से जवाब दिया कि इस समय सम्राट शायद गोदी में काम कर रहे हैं। कोर्साकोव मुस्कुराया।
“देख रहा हूँ,” वह बोला, “कि इस समय तुम्हें मुझमें कोई दिलचस्पी नहीं है। किसी और समय जी भर के बातें करेंगे। अभी मैं सम्राट की सेवा में प्रस्तुत होने जा रहा हूँ।” इतना कहते-कहते वह एक पैर पर खड़े-खड़े घूम गया और कमरे से बाहर भाग गया।
अकेला रह जाने पर इब्राहीम ने जल्दी से ख़त खोला। काउंटेस ने बनावटीपन एवं अविश्वसनीयता का उलाहना देते हुए उससे प्यार भरी शिकायत की थी—“तुम कहते हो कि तुम्हारे लिए मेरा सुकून दुनिया की हर चीज़ से बढ़कर है। इब्राहीम! अगर यह सच होता तो क्या तुम मुझे उस स्थिति में छोड़ सकते थे, जिसमें तुम्हारे प्रस्थान की मनहूस ख़बर ने मुझे ला पटका था? तुम डरते थे कि कहीं मैं तुम्हें रोक न लूँ। यक़ीन करो कि मेरे प्यार के बावजूद, तुम्हारी भलाई के लिए, उस कार्य के लिए, जिसे तुम अपना कर्तव्य समझते हो, मैं उसे क़ुर्बान कर देती।” काउंटेस ने प्यार का चरम विश्वास दिलाते हुए और दुबारा मिलने की कोई उम्मीद न होने की स्थिति में उसे कभी-कभार पत्र लिखने की कसमें दिलाकर पत्र समाप्त किया था।
इब्राहीम उन अनमोल पंक्तियों को उत्तेजना से चूमते हुए पत्र को बीस बार पढ़ गया। वह काउंटेस के बारे में कुछ सुनने की बेसब्री से सन्तप्त जहाज़ निर्माण संस्था की ओर चलने की तैयारी करने लगा, इस आशा से कि शायद कोर्साकोव को अभी भी वहाँ पकड़ सके। मगर दरवाज़ा खुला और कोर्साकोव खुद ही दुबारा प्रकट हुआ। वह सम्राट के सम्मुख प्रस्तुत हो चुका था और आदत के मुताबिक़ स्वयं पर बेहद ख़ुश था।
“सिर्फ़ हमारे बीच,” उसने इब्राहीम से कहा, “सम्राट बड़ा विचित्र व्यक्ति है। सोचो, मैंने उसे गाढ़े की जैकेट पहने देखा—नये जहाज़ के मस्तूल पर, जहाँ मुझे अपने प्रमाण पत्रों के साथ चढ़ना पड़ा। मैं रस्सी की सीढ़ी पर खड़ा था और वहाँ पर्याप्त स्थान नहीं था कि मैं सलीके से अभिवादन कर सकूँ। मैं पूरी तरह गड़बड़ा गया—जो अब तक मेरे साथ कभी नहीं हुआ था। मगर सम्राट ने मेरे काग़ज़ात पढ़कर सिर से पैर तक मुझे देखा और शायद मेरी शानदार वेशभूषा से विस्मित हो गया। कम-से-कम वह मुस्कुराया और मुझे आज सभा में आने का निमन्त्रण दे दिया। मगर पीटर्सबुर्ग में मैं बिलकुल अजनबी हूँ। छह साल की अनुपस्थिति में मैं यहाँ के रिवाज़ पूरी तरह भूल गया हूँ। कृपया मेरे पथ-प्रदर्शक बनो, मेरे साथ आओ और मेरा परिचय करवाओ।” इब्राहीम मान गया और फ़ौरन बातचीत को अपने मतलब की ओर मोड़ने लगा—
“तो, काउंटेस डी. कैसी है?”
“काउंटेस? ज़ाहिर है, पहले तो तुम्हारे जाने से उसे बहुत दुःख हुआ; मगर धीरे-धीरे वह शान्त हो गयी और अपने लिए नया प्रेमी ढूँढ़ लिया। मालूम है किसको? लम्बा सामन्त आर… ये तुम अपनी अफ्रीकी आँखें क्यों फाड़ रहे हो? या यह सब तुम्हें अजीब लग रहा है? क्या तुम्हें नहीं मालूम कि अधिक समय तक शोक मनाना मानव स्वभाव के प्रतिकूल है, विशेषकर नारी स्वभाव के। इस बारे में अच्छी तरह सोचो। और अब मैं जा रहा हूँ, सफ़र की थकान उतारूँगा। मेरे पास आना न भूलना।”
इब्राहीम के मन में कौन से ख़याल आये? ईर्ष्या? वहशीपन? निराशा? नहीं, बल्कि गहरी दमघोंट उदासी। उसने मन-ही-मन दुहराया—“मुझे इसका पूर्वानुमान था, यह तो होना ही था।” फिर काउंटेस के पत्र को खोला, उसे दुबारा पढ़ा, सिर लटकाया और ज़ोर से रो पड़ा। वह बड़ी देर तक रोता रहा। आँसुओं ने उसके जी को कुछ हल्का किया। घड़ी पर नज़र डालते ही उसने देखा कि जाने का समय हो गया था। इब्राहीम न जाने की छूट पाकर प्रसन्न ही होता, मगर सभा बहुत ज़रूरी समझी जाती थी और सम्राट इसमें अपने निकट व्यक्तियों की उपस्थिति की माँग कठोरता से करते थे। उसने कपड़े पहने और कोर्साकोव को लेने के लिए चल पड़ा।
कोर्साकोव गाऊन में बैठा फ्रांसीसी किताब पढ़ रहा था। “इतनी जल्दी?” उसने इब्राहीम को देखकर कहा।
“ग़ौर फ़रमाइए,” उसने जवाब दिया, “साढ़े पाँच बज चुके हैं, हमें देर हो रही है, जल्दी से कपड़े बदलो, निकल पड़ेंगे।”
कोर्साकोव हड़बड़ा गया। उसने पूरी ताक़त से घण्टियाँ बजायीं; सेवक दौड़ते हुए आये। वह शीघ्रतापूर्वक तैयार होने लगा। फ्रांसीसी सेवक ने उसे लाल एड़ी वाले जूते, नीली मखमली पतलून, गुलाबी सितारों जड़ा क़फ्तान दिया। सामने वाले कमरे में शीघ्रता से उसके विग पर पाउडर लगाकर उसे पेश किया गया। कोर्साकोव ने अपना गंजा सिर उसमें घुसाया, तलवार और दस्ताने माँगे, दस बार आईने के सामने घूम-घूम कर देखा और इब्राहीम से बोला कि वह तैयार है। सेवकों ने उन्हें भालू की ख़ाल के कोट दिये और वे शीतप्रासाद के लिए निकल पड़े।
कोर्साकोव ने इब्राहीम पर प्रश्नों की बौछार कर दी : पीटर्सबुर्ग में सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी कौन है? सर्वश्रेष्ठ नर्तक होने का सम्मान किसे प्राप्त है? आजकल कौन से नृत्य का चलन है? इब्राहीम बड़े अनमनेपन से उसकी उत्सुकता को शान्त किये जा रहा था। इसी बीच वे महल पहुँच गये। सामने मैदान में पहले से ही अनेक लम्बी-लम्बी स्लेज गाड़ियाँ, पुरानी भारी-भरकम गाड़ियाँ और सुनहरे रथ खड़े थे। प्रवेश-द्वार के निकट जमघट था—वर्दी पहने मुच्छड़ कोचवान; चमकीले वस्त्र पहने, परोंवाले शिरस्त्राण एवं गदाएँ लिए गाड़ियों के साथ-साथ दौड़ने वाले सेवक, अश्वारोही सेना के सैनिक छोकरे, अपने-अपने स्वामियों के कोट तथा दस्ताने पकड़े सेवक: यानी कि वह पूरा तामझाम, जो तत्कालीन सामन्तों के लिए आवश्यक था।
इब्राहीम को देखते ही वहाँ फुसफुसाहट होने लगी, “दास, दास, सम्राट का दास।” वह शीघ्रतापूर्वक कोर्साकोव को नौकर-चाकरों के इस भड़कीले समूह से निकाल ले गया। महल के द्वारपाल ने उनके लिए द्वार खोला और वे हॉल में आये। कोर्साकोव मानो बुत बन गया... तम्बाकू के धुएँ के बादलों के बीच टिमटिमाती, चर्बी से बनी मोमबत्तियों के प्रकाश से आलोकित विशाल कमरे में अभिजात्य कुल के भद्र पुरुष कन्धे पर नीले फीते लगाये, राजदूत, विदेशी व्यापारी, हरी वर्दी पहने सेना के अफ़सर, कोट तथा धारीदार पतलूनें पहने जहाज़ों के कारीगर धार्मिक संगीत की निरन्तर ध्वनि में आगे-पीछे झूल रहे थे।
महिलाएँ दीवारों के निकट बैठी थीं; युवतियाँ भड़कीली सज-धज में दमक उठती थीं। उनके वस्त्रों में सोना एवं चाँदी झिलमिला रहे थे, उनकी पोशाक के निचले, फूले-फूले भाग से पतली कमर नाजुक डाल की तरह ऊपर जाती प्रतीत हो रही थी; कानों में, बालों की लटों में, गले में हीरे जगमगा रहे थे। वे प्रसन्नता से दाएँ-बाएँ घूम रही थीं, नृत्य के आरम्भ होने और साधियों की प्रतीक्षा में। अधेड़ उम्र की भद्र महिलाएँ चतुरता से पहनावे के आधुनिक रूप का खदेड़े जा रहे पुरातन के साथ मेल कर रही थीं : सम्राज्ञी नतालिया किरीलोव्ना चेपेत्स की टोपी पहने थी और रोब्रोन्द तथा मेण्टिल सराफान और रूईदार वास्कट की याद दिला रहे थे।
ऐसा प्रतीत होता था मानो वे प्रसन्नता से नहीं, बल्कि विस्मय से इन नवायोजित युवावर्ग के समारोहों में उपस्थित हुई थीं और बड़े अफ़सोस के साथ कनखियों से जर्मन नौसैनिक अधिकारियों एवं व्यापारियों की पत्नियों तथा बेटियों को देख रही थीं, जो धारियोंवाले सूती स्कर्ट और लाल ब्लाउज़ पहने अपनी टोली में हँसते और बातें करते हुए अपने-अपने मोज़े बुन रही थीं, मानो वे अपने ही घर में हों।
कोर्साकोव स्वयं को सँभाल नहीं पा रहा था। नये मेहमानों को देखते ही सेवक प्लेट में बियर एवं गिलास लेकर उनके निकट गया।
“यह क्या बेहूदगी है?” — दबी आवाज़ में कोर्साकोव ने इब्राहीम से पूछा।
इब्राहीम मुस्कुराए बगैर न रह सका। साम्राज्ञी एवं महान राजकुमारियाँ सौन्दर्य एवं वस्त्राभूषणों से देदीप्यमान, मेहमानों से मिलनसारिता से बातें करते हुए उनके बीच से गुज़र रही थीं। सम्राट दूसरे कमरे में थे। उन्हें दिखाई देने की इच्छा से कोर्साकोव लगातार घूमती भीड़ में से बड़ी मुश्किल से मार्ग बनाता हुआ वहाँ पहुँचा। वहाँ अधिकांश विदेशी बैठे थे, बड़ी शान से मिट्टी के पाइपों के कश लगाते और मिट्टी के गिलासों को ख़ाली करते। मेज़ों पर बियर तथा वाइन की बोतलें, तम्बाकू भरी चमड़े की थैलियाँ, रम के गिलास और शतरंजें बिछी थीं। इन्हीं में से एक मेज़ पर चौड़े कन्धों वाले अंग्रेज़ व्यापारी के साथ पीटर ड्राफ़्ट खेल रहा था। वे बड़ी लगन से एक-दूसरे को तम्बाकू के धुएँ की सलामी दे रहे थे, और सम्राट अपने प्रतिद्वन्द्वी की अकस्मात् चाल से इतना परेशान हो गया था कि अपने चारों ओर मँडराते कोर्साकोव को भी देख न पाया। इसी समय एक मोटे महाशय, मोटे गुलदस्ते के साथ प्रविष्ट हुए, ज़ोर से घोषणा करते हुए बोले कि नृत्य आरम्भ हो चुका है और फौरन निकल गये। उसका अनुसरण अनेक अतिथियों ने किया, जिनमें कोर्साकोव भी था।
अप्रत्याशित दृश्य ने उसे चौंका दिया। एक उदास संगीत की आवाज़ सुनते ही नृत्य हॉल की पूरी लम्बाई में महिलाएँ और पुरुष दो पंक्तियों में एक-दूसरे के सामने खड़े हो गये। पुरुष नीचे की ओर झुके, महिलाएँ उससे भी अधिक नीचे झुककर बैठतीं, पहले सीधे अपने सामने, फिर घूमतीं दाएँ, फिर बाएँ, फिर दुबारा सामने, दुबारा दाएँ... इसी तरह नृत्य करती रहीं। इस तरह के समय बिताने के विचित्र तरीक़े को देखकर कोर्साकोव की आँखें चौड़ी हो गयीं और वह अपने होंठ काटने लगा। यह नीचे बैठना और झुकना लगभग आधे घण्टे तक चलता रहा; अन्त में यह सिलसिला समाप्त हुआ और गुलदस्तेवाले मोटे महाशय ने घोषणा की कि औपचारिक नृत्य समाप्त हुए और उसने संगीतकारों को मेनुएत1 बजाने की आज्ञा दी।
1. मेनुएत-प्राचीन फ्रांसीसी नृत्य एवं इसके साथ बजाया जानेवाला संगीत ।
कोर्साकोव बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने महफ़िल पर छा जाने का इरादा किया। नौजवान अतिथियों में से एक उसे विशेष रूप से पसन्द आ गयी थी। उसकी उम्र क़रीब सोलह साल थी, वह क़ीमती मगर सुरुचिपूर्ण वेशभूषा में थी, और एक अधेड़ पुरुष के निकट बैठी थी, जो देखने से गर्वीला और कठोर प्रतीत होता था। कोर्साकोव उड़ता हुआ उसके पास गया और प्रार्थना करने लगा कि उसके साथ नृत्य कर वह उसे अनुगृहीत करे। युवा सुन्दरी ने परेशानी से उसकी ओर देखा और शायद वह समझ न पायी कि क्या जवाब दे। उसके निकट बैठे हुए पुरुष ने और भी अधिक नाक-भौं सिकोड़ ली।
कोर्साकोव उसके निर्णय की प्रतीक्षा कर रहा था, मगर गुलदस्ते वाले महाशय उसके पास आये, उसे हॉल के बीचों-बीच ले गये और बड़ी शान से बोले, “मालिक मेरे, तूने गुनाह किया है: पहला यह कि इस नौजवान साहिबा के पास गया, बगैर तीन बार सलाम किये; और दूसरा, उसे तूने खुद ही चुन लिया, जबकि मेनुएत में यह हक़ महिलाओं को हासिल है, न कि पुरुषों को। इसलिए तुझे कड़ी सज़ा मिलेगी; मतलब यह बड़ा मग पीना पड़ेगा।”
कोर्साकोव का आश्चर्य बढ़ता जा रहा था। एक ही मिनट में मेहमानों ने उसे घेर लिया और शोर मचाते हुए तुरन्त नियम का पालन करने की माँग करने लगे। पीटर ठहाके और चीखें सुनकर दूसरे कमरे से बाहर निकल आया, क्योंकि दंड देने के ऐसे मौक़ों पर वह खुशी-खुशी स्वयं हाज़िर रहना चाहता था। उसके सामने भीड़ दो भागों में विभाजित हो गयी और वह उस झुंड में पहुँचा, जहाँ एक सज़ायाफ़्ता नौजवान और उसके सामने सभा का मार्शल एक विशाल माल्वाजिया1 से भरा जग लिये खड़ा था। वह यूँ ही मुजरिम को नियम का पालन करने के लिए मना रहा था।
1.माल्वाजिया — एक तरह की शराब।
“आहा,” पीटर ने कोर्साकोव को देखकर कहा, “फँस गये भाई! कृपा करो मिस्यो, बिना नखरे किये पी जाओ।”
कोई रास्ता ही न था। बेचारे छोकरे वाबू ने एक ही साँस में गटगट करके जग खाली कर दिया और मार्शल को लौटा दिया।
“सुनो, कोर्साकोव,” पीटर ने उससे कहा, “पतलून तो तुम्हारी मख़मल की है, जैसी मेरी भी नहीं है, मगर मैं तुमसे काफ़ी अमीर हूँ। ये फ़िज़ूलखर्ची है; देखो, कहीं मैं तुमसे झगड़ा न कर बैठूँ।”
यह डाँट सुनकर कोर्साकोव उस झुंड में से बाहर निकलने की कोशिश करने लगा, मगर सम्राट और वहाँ उपस्थित प्रसन्न लोगों को विस्मित करते हुए चकरा गया और गिरते-गिरते बचा। इस दृश्य ने मुख्य घटना की एकाग्रता एवं मनोरंजकता पर कोई प्रभाव न डाला, उल्टे उसे और सजीव बना दिया। पुरुष थिरकने लगे और अभिवादन करने लगे, महिलाएँ प्रयत्नपूर्वक एड़ियों की खटखट करने और नीचे बैठने लगीं। कोर्साकोव इस सामूहिक हर्षोल्लास में भाग न ले सका। उसके द्वारा चुनी गयी युवती ने अपने पिता गावरीला अफानास्येविच के आदेशानुसार, इब्राहीम के निकट जाकर नीली आँखें झुकाते हुए अपना हाथ उसके हाथों में दे दिया। इब्राहीम ने उसके साथ मेनुएत नृत्य किया और उसे अपने स्थान तक ले गया; फिर कोर्साकोव को ढूँढकर उसे हॉल से बाहर ले गया, गाड़ी में बिठाया और घर ले गया।
रास्ते भर कोर्साकोव उनींदी आवाज़ में बड़बड़ाता रहा, “ओफ़, ये नृत्य सभा! घिनौना जाम शराब का!” मगर शीघ्र ही गहरी नींद सो गया। उसे पता भी न चला कि वह कैसे घर पहुँचा, कैसे उसके वस्त्र बदले गये, उसे बिस्तर पर लिटाया गया; और दूसरे दिन वह जागा—सिर दर्द लिये और एड़ियों की खटखटाने, नीचे बैठने, तम्बाकू के धुएँ, बड़े गुलदस्ते वाले महाशय और ज़बरदस्त शराब के मग की धुँधली यादों के साथ।
4
अब मुझे अपने सहृदय पाठकों का परिचय गावरीला अफानास्येविच झेर्व्स्की से करवाना चाहिए। वह प्राचीन सामन्त कुल से था, विशाल जायदाद का मालिक और आतिथ्यप्रिय था। बाज़ों का शिकार करता था, उसके पास अनेक नौकर-चाकर थे। संक्षेप में वह पक्का रूसी ज़मींदार था और उसके अपने शब्दों में जर्मन आचार-विचार बिलकुल बर्दाश्त नहीं करता था और अपने घर में वह अपने प्रिय प्राचीन रीति-रिवाज़ों को सँभाले हुए था।
उसकी पुत्री सत्रह वर्ष की थी। बचपन में ही वह माँ को खो चुकी थी। उसका लालन-पालन प्राचीन रीति-रिवाज़ों के अनुसार हुआ था। मतलब वह मिसियों से, दाइयों से, सहेलियों से और नौकरानियों से घिरी रहती, सुनहरे धागों से कढ़ाई किया करती और पढ़ना-लिखना न जानती थी। उसके पिता, सभी विदेशी चीज़ों से घृणा करने के बावजूद, बेटी की अपने घर में रहने वाले स्वीडिश अफ़सर से जर्मन नृत्य सीखने की इच्छा का विरोध न कर सके। यह सेवानिवृत्त डांस मास्टर क़रीब पचास वर्ष का था। उसके बाएँ पैर में युद्ध के समय, नार्वा के निकट गोली लगी थी और इसलिए वह मेनुएत और कुरान्त के काबिल नहीं रहा था। मगर दाहिने पैर से बड़ी आश्चर्यजनक निपुणता और सहजता से कठिनतम पदन्यास कर लेता था। शिष्या ने उसकी कोशिशों को कामयाब किया। नतालिया गावरीलोव्ना सभाओं में बेहतरीन नृत्यांगना मानी जाती थी। यही कुछ हद तक कारण भी था कोर्साकोव की हरक़त का, जो दूसरे दिन गावरीला अफानास्येविच से माफ़ी माँगने चला आया, मगर नौजवान छोकरे की सजधज स्वाभिमानी सामन्त को पसन्द नहीं आयी। उसने व्यंग्यपूर्वक फ़ौरन उसका नाम “फ्रांसीसी वन्दर” रख दिया था।
त्योहार का दिन था। गावरीला अफानास्येविच को कई रिश्तेदारों एवं स्नेहियों का इन्तज़ार था। पुराने विशाल कक्ष में लम्बी मेज़ सजाई गयी। मेहमान अपनी-अपनी पत्नियों एवं बेटियों के साथ आने लगे, जिन्हें आखिरकार, सम्राट की आज्ञा एवं स्वयं द्वारा प्रस्तुत उदाहरण के फलस्वरूप बन्द घरों के एकान्तवास से मुक्ति प्राप्त हुई थी। नतालिया गावरीलोव्ना प्रत्येक मेहमान के सम्मुख सोने के छोटे-छोटे जामों से सजी चाँदी की तश्तरी ला रही थी। हरेक व्यक्ति अपना-अपना जाम पी रहा था और अफ़सोस कर रहा था कि प्राचीन काल में ऐसे अवसरों पर दिये जाने वाले चुम्बन का चलन अब नहीं रहा था। सभी मेज़ की ओर आये। मेज़बान की बग़ल में प्रथम स्थान पर बैठे उसके श्वसुर राजकुमार बोरिस अलेक्सेयेविच लिकोव, सत्तर वर्षीय बोयार1, और अन्य अतिथि अपने-अपने कुलों की वरीयता के अनुसार बैठे। पुराने खुशहाल दिनों की याद ताज़ा करते हुए, जब कुल एवं पद के अनुसार अग्रताक्रम निश्चित किया जाता था—पुरुष मेज़ की एक ओर, महिलाएँ दूसरी ओर। अन्त में सभी अपने-अपने निश्चित स्थानों पर बैठे, गृहस्वामी के परिवार की महिलाएँ उत्सवों के अवसर पर पहनी जाने वाली पारम्परिक पोशाक शुशून2 और किच्का3 में; तीस वर्षीय अनुशासनप्रिय, झुर्रियोंवाली बौनी और नीला पुराना कोट पहने स्वीडिश गुलाम। अनेक खाद्य पदार्थों से सजी मेज़ के चारों ओर अनेक सेवक व्यस्त थे, जिनमें कड़ी नज़रवाला, बड़े पेटवाला, रोबदार खानसामा अलग से नज़र आ रहा था। भोज के पहले कुछ मिनट केवल हमारी प्राचीन रसोई के पदार्थों की ओर ध्यान देने के लिए थे, केवल तश्तरियों और चम्मचों की खनखनाहट ही मौन को तोड़ रही थी। आखिरकार, यह देखते हुए कि मेहमानों को खुशगवार बातचीत में लगाने का समय आ गया है, मेज़बान मुड़ा और पूछने लगा—
“और एकिमोन्ना कहाँ है? उसे यहाँ बुलाया जाए।”
1. बोयार-प्राचीन एवं मध्ययुगीन रूस में शासक वर्ग से सम्बन्धित अत्यन्त धनी ज़मींदार।
2. शुशून-प्राचीन काल में महिलाओं द्वारा पहनी जानेवाली सराफान से मिलती-जुलती पोशाक ।
3. किच्का-विवाहित स्त्रियों के सिर पर पहनी जानेवाली विशेष प्रकार की टोपी।
कुछ सेवक दौड़े विभिन्न दिशाओं में, मगर तभी वृद्ध महिला—पाउडर और लाली थोपे, फूलों और सलमा-सितारों से सजी, खुले गले और खुले सीने की बेल-बूटेदार पोशाक पहने—नाचती और गाती हुई प्रकट हुई। उसके आगमन से प्रसन्नता की लहर दौड़ गई।
“नमस्ते, एकिमोव्ना,” राजकुमार लीकोव ने कहा, “कैसी कट रही है?”
“जब तक चल रही है, अच्छी है यार! गाते-नाचते, मंगेतरों का इन्तज़ार करते।”
“तू कहाँ थी पगली?” गृहस्वामी ने पूछा।
“सिंगार कर रही थी यार, प्यारे मेहमानों के लिए, ख़ुदा के त्योहार के लिए, सार की सीख के मुताबिक़, मालिक के हुक्म के मुताबिक़, जर्मन ढंग से सारी दुनिया को हँसाने के लिए।”
इन शब्दों को सुनते ही ज़ोरदार ठहाका लगा और पगली मालिक की कुर्सी के पास अपनी जगह खड़ी हो गई।
“मगर पगली तो बोल रही है झूठ और बना रही है सच को झूठ।” गृहस्वामी की बड़ी बहन तात्याना अफानास्येव्ना बोली, जिसकी वह बहुत इज़्ज़त करता था। “सचमुच, आजकल का बनाव-सिंगार दुनिया को हँसाने के लिए ही है। जब आपने भी, जनाब, अपनी-अपनी दाढ़ियाँ कटवाकर छोटे-छोटे कफ्तान पहन लिए, तो औरतों के चीथड़ों के बारे में क्या कहा जाए! मगर सचमुच सराफ़ान, लड़कियों के फ़ीतों और सिर पर बाँधे जानेवाले रूमाल के बारे में अफ़सोस होता है। आजकल की हसीनाओं की ओर देखिए तो हँसी आती है और दुःख होता है। बालों को फेंट-फेंटकर, कंघी करके लिहाफ़ की तरह फुलाती हैं; फ्रांसीसी सफ़ेद आटा उन पर पोतती-छिड़कती हैं; पेट इतना खिंचा हुआ कि बस फट ही जाएगा। अन्तर्वस्त्र तारों की तगड़ी पर कसे हुए—गाड़ी में बैठती हैं गठरी बनकर, दरवाज़ों से अन्दर आती हैं झुकते-मुड़ते हुए। न खड़ी हो सकती हैं, न बैठ सकती हैं; साँस लेना भी मुश्किल—परेशानी की मारियाँ हैं मेरी प्यारियाँ।”
“ओह माँ मेरी, तात्याना अफानास्येव्ना!” — यार्ज़ान के भूतपूर्व सैनिक प्रान्ताध्यक्ष किरीला पेत्रोविच ने कहा, जिसके पास तीन हज़ार गुलाम और एक युवा पत्नी थी, और दोनों को ही वह सँभाल न पाया था — “मेरे हिसाब से तो बीवी चाहे जो पहने—कुताफेइ या बोल्दीखान; बस इतना हो कि हर महीने अपने लिए नयी पोशाक न बनवाए और पुरानी, जो नयी ही हो, फेंक न दे। एक ज़माना था जब पोती को दहेज में मिलता था दादी का सराफ़ान। और आजकल की पोशाक देखो—आज मालकिन के तन पर है, तो कल दासी के बदन पर। क्या किया जाए? सत्यानाश हो रहा है रूसी अभिजात वर्ग का। बदक़िस्मती है और क्या?”
इतना कहकर उसने गहरी साँस ली और अपनी मारिया इलिनीच्ना की ओर देखा। मगर शायद, पुरातन की प्रशंसा और नवीन प्रथाओं की निन्दा उसे ज़रा भी न भायी। अन्य सुन्दरियाँ भी उसकी अप्रसन्नता में शामिल हो गयीं, मगर ख़ामोश रहीं, क्योंकि उस समय विनयशीलता लड़की का अनिवार्य गुण समझा जाता था।
“मगर दोषी कौन है?” — गावरीला अफानास्येविच ने गोभी के खट्टे शोरबे के बाउल में चम्मच हिलाते हुए पूछा। — “हम ख़ुद ही तो नहीं? युवा महिलाएँ बेवक़ूफ़ी करती हैं, और हम उन्हें मनमानी करने देते हैं।”
“पर हम करें भी क्या, जब हमारे बस में ही कुछ नहीं है?”
किरीला पेत्रोविच ने प्रतिवाद करते हुए कहा, “बीवी को अटारी में बन्द करके कोई ख़ुश होता, मगर यहाँ तो उसे बैण्ड-बाजे के साथ सभा में बुलाया जाता है। पति चाहे चाबुक, और पत्नी बनाव-सिंगार। ओह, ये सभाएँ! हमारे पापों के लिए भगवान हमें यह सज़ा दे रहा है।”
मारिया इलिनीच्ना मानों काँटों पर बैठी थी, उसकी ज़बान यूँ भी विलबिला रही थी। आखिरकार, उससे और बर्दाश्त न हुआ और पति की ओर मुख़ातिब होकर उसने कड़वी मुस्कान के साथ पूछ ही लिया कि उसे सभाओं में कौन-सी बेवक़ूफ़ी नज़र आती है।
“बेवक़ूफ़ी उनमें यह है,” उत्तेजित पति ने जवाब दिया, “कि जब से ये शुरू हुई हैं, शौहरों की अपनी बीवियों से पटती नहीं है। बीवियाँ फ़रिश्तों का यह कथन भूल गयी हैं : बीवी शौहर से डर के रहे। घर-गृहस्थी की नहीं, हाँ, नयी-नयी पोशाकों की ज़रूर फ़िकर करती हैं। शौहर को खुश करने के बदले अफ़सरों-मनचलों की नज़र में चढ़ने की बात सोचती हैं। महोदया, क्या बोयार की पत्नी या बेटी को जर्मनों—तम्बाकू बेचनेवालों या उनके कारिन्दों—के साथ एक ही स्थान पर डोलना शोभा देता है? कभी सुना है कि देर रात तक नाचते रहे और नौजवानों के साथ बतियाते रहे? रिश्तेदार होते तो कोई बात थी; ये तो अजनबी हैं, अपरिचित हैं।”
“कुछ बोलो तो खाने को दौड़े,” नाक-भौं चढ़ाते हुए गावरीला अफानास्येविच ने कहा, “मानता हूँ कि सभाएँ मुझे रास नहीं आतीं; जिसे भी देखो, शराबी से ही टकराओगे, या फिर तुम्हें ही इतना पिला देंगे कि हँसी का पात्र बन जाओ। यह भी देखते रहो कि कोई रोमियो तुम्हारी बेटी के साथ शरारत न कर बैठे। मसलन, पिछली सभा में स्वर्गीय एवग्राफ सेगेयेविच कोसाकोव के बेटे ने नताशा के साथ ऐसी गड़बड़ की कि मैं लाल-पीला हो गया। दूसरे दिन देखता हूँ, सीधे मेरे घर के आँगन में गाड़ी आ रही है; मैं सोचने लगा — यह किसे भगवान ला रहा है? कहीं राजकुमार अलेक्सान्द्र दानिलोविच तो नहीं? मगर नहीं, यह बात नहीं थी — यह था इवान एवग्राफोविच! गाड़ी प्रवेश-द्वार पर रोककर, पैदल ड्योढ़ी तक नहीं आ सकता था, कहाँ! उड़ता हुआ आया! धिरकता रहा, बड़बड़ाता रहा... पगली एकीमोव्ना उसकी ऐसी बढ़िया नक़ल करती है — हाँ, दिखा पगली विदेशी बंदर को।”
पगली एकीमोव्ना ने एक डोंगे का ढक्कन उठाया, बगल में दबाया, जैसे वह हैट हो, और लगी तिरछी होकर बूट बजा-बजाकर धिरकने और चारों ओर झुकने। यह कहते-कहते: “मिस्यो, मौमजेल... सभा... माफ़ी।” देर तक गूँजते सामूहिक ठहाके मेहमानों की प्रसन्नता प्रकट कर रहे थे।
“न कम, न ज़्यादा, कोसाकोव,” वृद्ध राजकुमार लीकोव ने हँसते-हँसते निकल आए आँसुओं को पोंछते हुए कहा, जब धीरे-धीरे सब शांत हो गए, “और छिपाने में हर्ज़ ही क्या है? वह अकेला ही तो नहीं, जो जर्मन माँद से पवित्र रूस लौटा है विदूषक बनकर। हमारे बच्चे वहाँ सीखते क्या हैं? थिरकना, भगवान जाने किस भाषा में बकवास करना, बड़ों का सम्मान न करना और पराई औरतों की खुशामद करना। उन सभी नवयुवकों में, जो विदेशों में पढ़े हैं (भगवान माफ़ करना), सम्राट का गुलाम ही इंसान के समान प्रतीत होता है।”
“बेशक,” गावरीला अफानास्येविच ने टिप्पणी की, “वह गंभीर, समझदार और सलीकापसंद आदमी है, छिछोरेपन का नामोनिशान नहीं... अब यह और कौन अंदर आया प्रवेश-द्वार से आँगन में? कहीं फिर से विदेशी बंदर तो नहीं? तुम उबासियाँ क्यों ले रहे हो, जानवरो?” वह सेवकों से मुख़ातिब होकर कहता रहा, “भागो, मना करो उसे, आगे भी कभी...”
“बूढ़ी दाढ़ी! कहीं तुझे सरसाम तो नहीं हो गया?” एकीमोव्ना ने उसकी बात काटते हुए कहा, “या फिर तू अंधा है? स्लेज तो सम्राट की है — सम्राट आए हैं।”
गावरीला अफानास्येविच तुरंत मेज़ से उठ पड़ा; सभी खिड़कियों की ओर दौड़े; और सचमुच उन्होंने देखा सम्राट को, जो ड्योढ़ी चढ़ रहा था, अपने ख़ास सैनिक के कंधे पर झुकते हुए। भगदड़ मच गई। मेज़बान पीटर का स्वागत करने भागा; नौकर बेवकूफ़ों की तरह इधर-उधर दौड़े, मेहमान घबरा गए, कुछ तो सोचने लगे कि किसी तरह जल्दी से घर चले जाएँ। अचानक हॉल में पीटर की ज़ोरदार आवाज़ गूँजी — सब कुछ शांत हो गया और सम्राट गृहस्वामी के साथ अंदर आए, जो कोशिशों के बावजूद ख़ुशी से झेंप रहा था।
“नमस्ते, महानुभावों,” पीटर ने प्रसन्नतापूर्वक कहा। सभी ने झुककर अभिवादन किया। सम्राट की चालाक नज़रें भीड़ में गृहस्वामी की युवा बेटी को खोज रही थीं; उन्होंने उसे बुलाया। नतालिया गावरीलोव्ना काफ़ी निर्भीकता से निकट आई, मगर न केवल कानों तक, बल्कि कंधे तक वह लाल हो गई।
“तुम प्रतिक्षण अधिकाधिक सुंदर हो रही हो,” सम्राट ने उससे कहा, और अपनी आदत के मुताबिक़ उसके सिर को चूमा; फिर मेहमानों से मुख़ातिब होकर बोले, “तो? मैंने आप लोगों को परेशान किया। आप खाना खा रहे थे; कृपया फिर से बैठ जाइए — और मुझे, गावरीला अफानास्येविच, सौंफ की वोद्का दो।”
गृहस्वामी मोटे कारिंदे की ओर दौड़ा, उसके हाथ से तश्तरी छीन ली, स्वयं सोने का जाम भरा और झुककर अभिवादन करते हुए सम्राट को पेश किया। पीटर ने जाम ख़त्म करके क्रेंडेल मुँह में डाली और दुबारा मेहमानों को भोजन जारी रखने की दावत दी। सभी अपनी पहले वाली जगहों पर बैठ गए, सिवाय बौनी के और सामंत के घर की महिलाओं के, जो सम्राट के साथ मेज़ पर बैठने का साहस न कर सकीं। पीटर गृहस्वामी की बग़ल में बैठा और उसने अपने लिए बंद गोभी का शोरबा माँगा। सम्राट के निजी शस्त्रधारी सेवक ने उसे हाथीदांत की मूठवाली लकड़ी की चम्मच, हरी हड्डियों की मूठवाले छुरी और काँटे दिए, क्योंकि पीटर कभी भी किसी और का सामान इस्तेमाल न करता था। भोज, जो सिर्फ़ एक मिनट पूर्व प्रसन्नता एवं बातचीत के शोरगुल से सजीव था, अब ख़ामोशी और विवशता से चल रहा था। गृहस्वामी आदर एवं प्रसन्नता के मारे कुछ भी नहीं खा रहा था; मेहमान भी शिष्टाचार के मारे मरे जा रहे थे और बड़े आदरभाव से सम्राट की स्वीडिश गुलाम से जर्मन में हो रही बातचीत सुन रहे थे, जो सन् 1701 के युद्ध के बारे में थी। पगली एकीमोव्ना, जिससे सम्राट कई बार प्रश्न कर रहे थे, एक बेरूखेपन और विनय के साथ उत्तर दे रही थी, जो (मैं आपको बता दूँ) ज़रा भी उसके स्वाभाविक पागलपन को सिद्ध नहीं कर रहा था। आखिरकार भोज समाप्त हो गया। सम्राट उठे, उनके साथ ही सभी मेहमान भी उठ गए।
“गावरीला अफानास्येविच!” उन्होंने गृहस्वामी से कहा, “मुझे तुमसे एकांत में बात करनी है।” और उसका हाथ पकड़कर उसे मेहमानख़ाने में ले गए तथा अपने पीछे द्वार बंद कर दिया। मेहमान भोजन कक्ष में ही रहे, फुसफुसाकर इस अप्रत्याशित आगमन के बारे में अंदाज़ लगाते रहे, और अविनयशील प्रतीत होने के डर से गृहस्वामी को उसके स्वागत-सत्कार के लिए धन्यवाद दिए बिना ही एक के बाद एक निकलते गए। उसके श्वसुर, पुत्री और बहन ख़ामोशी से उन्हें विदा करते रहे और भोजन कक्ष में सम्राट के निकलने की प्रतीक्षा करते हुए अकेले रह गए।
5 आधे घंटे बाद द्वार खुला और पीटर बाहर आया। रोबदार ढंग से सिर झुकाते हुए उसने राजकुमार लीकोव, तात्याना अफानास्येना और नताशा के तीन-तीन बार किए अभिवादनों का उत्तर दिया और सीधा बाहरी कक्ष में चला गया। गृहस्वामी ने उसे उसका भेड़ की खाल का लाल कोट दिया, स्लेज तक उसके साथ आया और ड्योढ़ी में फिर से इस सम्मान के लिए धन्यवाद दिया। पीटर चला गया।
भोजन कक्ष में लौटने पर गावरीला अफानास्येविच बहुत चिंतित दिखाई दिया। उसने ग़ुस्से से सेवकों को मेज़ साफ़ करने की आज्ञा दी, नताशा को उसके कमरे में भेजा और बहन व श्वसुर से यह कहकर कि उसे उनसे बात करनी है, उन्हें अपने शयनकक्ष में ले गया, जहाँ वह अक्सर दोपहर को भोजनोपरांत विश्राम किया करता था। बूढ़ा राजकुमार शाहबलूत के पलंग पर लेट गया। तात्याना अफानास्येव्ना पैरों के पास छोटी-सी चौकी सरकाकर पुरानी मखमल जड़ी कुर्सी पर बैठ गई। गावरीला अफानास्येविच ने सारे दरवाज़े बंद कर दिए, राजकुमार लीकोव के पैरों के पास पलंग पर बैठ गया और दबे स्वर में कहने लगा:
“सम्राट मेरे पास यूँही नहीं आये थे, बूझो तो उनहोंने मेरे साथ किस बारे में बात की होगी ?”
“हमें कैसे मालूम, भाई?” तात्याना अफानास्येव्ना ने कहा।
“कहीं सम्राट ने तुम्हें किसी सेना का नेतृत्व करने को तो नहीं कहा?” श्वसुर बोला, “कब से यह प्रत्याशित था। या फिर दूतावास में जाने का प्रस्ताव रखा है? तो क्या हुआ — पराए राज्यों में न केवल अफसरों को, बल्कि महत्वपूर्ण व्यक्तियों को भी भेजा जाता है।”
“नहीं,” दामाद ने नाक-भौं चढ़ाते हुए जवाब दिया, “मैं पुराने ढंग का आदमी हूँ। आजकल हमारी सेवाओं की ज़रूरत नहीं, हालाँकि हो सकता है कि दकियानूसी रूसी दरबारी आजकल के नौसिखियों, केक बेचनेवालों और मुसलमानों से कहीं बढ़कर हों — मगर यह ख़ास बात है।”
“तो फिर किस बारे में इतनी देर तक वह तुमसे बातें करते रहे, भाई? कहीं तुम पर कोई मुसीबत तो नहीं आने वाली? हे भगवान, रक्षा करो और दया करो!” तात्याना अफानास्येव्ना ने कहा।
“मुसीबत कहो तो मुसीबत नहीं, मगर मानता हूँ कि मैं सोचने पर मजबूर हो गया हूँ।”
“क्या बात है, भाई? किस बारे में है?”
“बात नताशा के बारे में है — सम्राट उसके लिए शादी का पैग़ाम लाए थे।”
“ख़ुदा ख़ैर करे!” तात्याना अफानास्येव्ना ने सलीब का निशान बनाते हुए कहा, “लड़की सयानी हो गई है, और जैसा पैग़ाम लानेवाला, वैसा ही दूल्हा — भगवान खुश रखे, ख़ूब इज़्ज़त दे। किसके लिए सम्राट उसका हाथ माँगने आए थे?”
“हम्...,” गावरीला अफानास्येविच टर्राया, “किसके लिए? वही तो... वही तो... किसके लिए।”
“आख़िर किसके लिए?” दुहराया राजकुमार लीकोव ने, जो अब तक ऊंघने लगा था।
“बूझिए,” गावरीला अफानास्येविच ने कहा।
“भाई साहब,” बूढ़ी ने जवाब दिया, “हम कैसे बूझें? महल में मंगेतरों की कोई कमी नहीं है; हर कोई तुम्हारी नताशा को पाकर खुश होगा। कहीं दोल्गोरुकी तो नहीं?”
“नहीं, दोल्गोरुकी नहीं।”
“भगवान बचाए, बहुत घमंडी है। शेइन? त्रोएकूरोव?”
“नहीं, ये भी नहीं, वो भी नहीं।”
“हाँ, मुझे भी वे अच्छे नहीं लगते — छिछोरे हैं, जर्मन तौर-तरीक़ों के कुछ ज़्यादा ही शौकीन हैं। तो फिर मीलोस्लाव्स्की?”
“नहीं, वह भी नहीं।”
“ख़ुदा ख़ैर करे! अमीर तो है, मगर बेवकूफ़ है। फिर कौन? एलेत्स्की? ल्वोव? नहीं? कहीं रागूजिन्स्की तो नहीं? तुम्हारी मर्ज़ी, मेरा तो दिमाग़ काम नहीं कर रहा — आखिर किसके लिए सम्राट नताशा को माँगने आए थे?”
“गुलाम इब्राहीम के लिए।”
बुढ़िया आहें भरने और हाथ नचाने लगी। राजकुमार लीकोव ने तकिये से सिर उठाकर विस्मय से दोहराया, “गुलाम इब्राहीम के लिए?”
“भाई साहब,” बुढ़िया आँसुओं से तर आवाज़ में बोली, “अपने जाए बच्चे को न मार — नताशेन्का को काले शैतान के चंगुल में न दे।”
“मगर कैसे इंकार करूँ सम्राट को, जो इसके बदले में हम पर और हमारे पूरे ख़ानदान पर कृपा-दृष्टि रखने का वादा कर रहे हैं?” गावरीला अफानास्येविच ने प्रतिवाद किया।
“कैसे?” बूढ़ा राजकुमार चहका, जिसकी आँखों से नींद उड़ चुकी थी, “नताशा को, मेरी पोती को, खरीदे हुए गुलाम को सौंप दें?”
“वह सामान्य कुल का नहीं है,” गावरीला अफानास्येविच ने कहा, “वह हब्शियों के सुल्तान का बेटा है। मुसलमानों ने उसे बंदी बनाकर त्सारेग्राद में बेच दिया, और हमारे दूत ने उसे क़ैद से छुड़ाकर सम्राट को भेंट कर दिया। हब्शी का बड़ा भाई काफ़ी धन-दौलत लेकर रूस आया था और...”
“जनाब, गावरीला अफानास्येविच,” बुढ़िया बीच में टोकते हुए बोली, “हम सुन चुके हैं कहानियाँ बोवा राजकुमार और एरुस्लान लाजारेविच के बारे में। बेहतर होगा, अगर तुम हमें यह बताओ कि सम्राट के पैग़ाम का तुमने क्या जवाब दिया।”
“मैंने कहा कि उसका हम पर अधिकार है, और उसकी हर आज्ञा को शिरोधार्य करना हम गुलामों का फ़र्ज़ है।”
इसी समय दरवाज़े के पीछे शोर सुनाई दिया। गावरीला अफानास्येविच उसे खोलने के लिए गया, मगर कुछ प्रतिरोध महसूस करके उसने उसे ज़ोर से धक्का दिया। दरवाज़ा खुल गया — और उन्होंने देखा नताशा को, जो बेहोश होकर ख़ून से लथपथ फ़र्श पर चित पड़ी थी।
जब सम्राट उसके पिता के साथ कमरे में बंद हो गए थे तो उसका दिल बैठ गया। एक पूर्वाभास फुसफुसाकर उससे कह रहा था कि बात उसी के बारे में है। और जब गावरीला अफानास्येविच ने उसे यह कहकर भेज दिया कि उसकी बुआ और नाना से बात करनी है, तो वह अपनी स्त्री-सुलभ उत्सुकता पर काबू न रख पाई। बिना आहट किए अंदर के कमरों से होती हुई वह शयनकक्ष के दरवाज़े पर चुपके से खड़ी हो गई और उस पूरी डरावनी कहानी का एक-एक शब्द सुनती रही। पिता के अंतिम शब्दों को सुनते ही बेचारी लड़की बेहोश हो गई और गिरते-गिरते उस लोहे के संदूक से टकराकर सिर फोड़ बैठी, जिसमें उसका दहेज रखा हुआ था।
सभी लोग भागे-भागे आए; नताशा को उठाया गया, उसके कमरे में ले जाकर पलंग पर लिटाया गया। कुछ देर बाद उसे होश आया, उसने आँखें खोलीं, मगर न तो वह पिता को पहचान पाई, न ही बुआ को। उसे तेज़ बुखार हो गया। सरसाम की हालत में वह सम्राट के दास के बारे में, शादी के बारे में बड़बड़ाती रही। और अचानक दयनीय मगर कर्णभेदी आवाज़ में चीख़ उठी: “वालेरिआन, प्यारे वालेरिआन, मेरी ज़िंदगी! मुझे बचाओ; वो आ रहे हैं, वो आ गए!”
...तात्याना अफानास्येव्ना ने परेशानी से भाई की ओर देखा, जिसका चेहरा विवर्ण हो गया था, और जो होंठ काटते हुए चुपचाप कमरे से बाहर निकल गया। वह बूढ़े राजकुमार के पास लौटा, जो सीढ़ियाँ न चढ़ सकने के कारण नीचे ही रह गया था।
“कैसी है नताशा?” उसने पूछा।
“बदतर,” गुस्साए हुए पिता ने जवाब दिया, “उससे भी बुरी है, जितना मैंने सोचा था; बेहोशी में वह वालेरियान का नाम ही बड़बड़ा रही है।”
“यह वालेरियान कौन है?” उत्तेजित वृद्ध ने पूछा, “कहीं वही अनाथ, फ़ौजी का बेटा तो नहीं, जो तुम्हारे घर में पल रहा था?”
“वही है।” गावरीला अफानास्येविच ने जवाब दिया, “मेरे दुर्भाग्य से उसके पिता ने विद्रोह के समय मेरे जीवन की रक्षा की और शैतान ने मुझे इस घृणित भेड़िए के पिल्ले को घर में लाने की दुर्बुद्धि दी। जब दो साल पहले उसकी प्रार्थना पर उसे सेना में भर्ती किया गया, तो नताशा उससे जुदा होते समय जार-जार रो रही थी और वह बुत बना खड़ा था। मुझे यह सन्देहास्पद प्रतीत हुआ और मैंने इस बारे में बहन को बताया। मगर तब से नताशा ने उसे कभी याद नहीं किया और उसका भी कोई पता-ठिकाना न मिला। मैंने सोचा कि वह उसे भूल गयी है; मगर ज़ाहिर है कि नहीं भूली। बस, फ़ैसला हो गया: उसकी शादी ग़ुलाम से होगी।”
राजकुमार लीकोव ने विरोध नहीं किया; यह व्यर्थ था। वह घर चला गया; तात्याना अफानास्येव्ना नताशा के पलंग के पास रुक गयी; गावरीला अफानास्येविच, डॉक्टर के लिए सेवक को भेजकर, अपने कमरे में बन्द हो गया और उसके घर में छा गया ग़मगीन सन्नाटा।
विवाह के इस अप्रत्याशित प्रस्ताव ने इब्राहीम को भी उतना ही आश्चर्यचकित कर दिया, जितना गावरीला अफानास्येविच को। यह हुआ इस तरह: पीटर इब्राहीम के साथ काम करते हुए उससे बोला:
“मैं देख रहा हूँ भाई कि तुम उदास और निराश रहते हो; साफ़-साफ़ बताओ; तुम्हें किस चीज़ की कमी है?” इब्राहीम ने सम्राट को विश्वास दिलाया कि वह अपनी ज़िन्दगी से ख़ुश है और किसी बेहतरी की इच्छा नहीं करता।
“अच्छा,” सम्राट ने कहा, “अगर तुम बेवजह उकता रहे हो, तो मैं जानता हूँ, कि तुम्हें कैसे प्रसन्न किया जाए।”
काम समाप्त होने पर पीटर ने इब्राहीम से पूछा, “क्या तुम्हें वह लड़की पसन्द है, जिसके साथ तुमने पिछली सभा में नृत्य किया था?”
“सम्राट, वह बड़ी प्यारी है, और ऐसा लगता है कि बड़ी सरल और भली है।”
“तो मैं तुम्हारा उससे घनिष्ठ परिचय करवाऊँगा। तुम उससे शादी करना चाहते हो?”
“मैं, सम्राट...?”
“सुनो, इब्राहीम! तुम हो एक निपट अकेले इंसान, बिना किसी कुल और खानदान के; मुझे छोड़कर अन्य सभी के लिए अजनबी। अगर मैं आज मर जाऊँ, तो कल तुम्हारा क्या होगा, मेरे ग़रीब बच्चे? समय रहते तुम्हें कहीं स्थिर होना है; नये सम्बन्धों में सहारा तलाश करना है, रूसी सामन्तों के साथ रिश्ते बनाने हैं।”
“सम्राट, महामहिम, मैं आपकी कृपाओं और संरक्षण को पाकर स्वयं को भाग्यशाली समझता हूँ। भगवान न करे कि मुझे अपने सम्राट और अपने उपकारकर्ता के बाद जीना पड़े, अन्य किसी चीज़ की कामना नहीं करता। मगर यदि मैं शादी करने का विचार भी करूँ तो क्या वह युवा लड़की और उसके रिश्तेदार राज़ी हो जाएँगे? मेरा रूप...”
“तुम्हारा रूप! क्या बकवास है! क्या तुम सबसे बेहतरीन नहीं हो? युवा लड़की को माता-पिता की इच्छा का पालन करना चाहिए, और देखते हैं क्या कहेगा बूढ़ा गावरीला झेर्व्स्की, जब तुम्हारा पैग़ाम लेकर मैं खुद जाऊँगा।” इतना कहकर सम्राट ने स्लेज़ तैयार करने का हुक्म दिया और गहन विचारों में डूबे इब्राहीम को अकेला छोड़ दिया।
“शादी!” अफ्रीकी ने सोचा, “क्यों नहीं? अपना जीवन अकेले बिताना और मानव जीवन की सर्वोत्तम खुशियों और पवित्रतम कर्तव्यों से अनभिज्ञ रहना ही मेरे भाग्य में सिर्फ़ इसलिए तो नहीं बदा है, क्योंकि मेरा जन्म पन्द्रहवें अक्षांश पर हुआ है? प्रिय पात्र होने की उम्मीद मुझे करनी ही नहीं चाहिए; बच्चों जैसी ज़िद है ये! कहीं प्यार पर भी विश्वास किया जा सकता है? क्या औरत के मनचले दिल में उसका अस्तित्व है? इन प्यारे छलावों से मुँह मोड़कर मैंने दिल बहलाने के दूसरे साधन ढूँढ़ लिए हैं, कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण। सम्राट ठीक कहते हैं, मुझे अपने भविष्य को सुरक्षित करना है। युवा झेर्व्स्काया से विवाह मेरा गर्वीले रूसी सामन्तों से सम्बन्ध स्थापित कर देगा, और मैं अपनी इस नयी पितृभूमि में पराया न रह जाऊँगा। पत्नी से मैं प्यार की माँग न करूँगा, उसकी वफ़ादारी ही मेरे लिए काफ़ी होगी, और उसकी मित्रता जीतूँगा चिरन्तन प्रेम, विश्वास और कोमलता के बल पर।”
इब्राहीम ने अपने स्वभावानुसार काम में दिल लगाना चाहा, मगर उसकी कल्पना उसे कहीं दूर ले गयी थी। उसने काग़ज़ात रख दिये और नीवा के तट पर टहलने निकल गया। अचानक उसने पीटर की आवाज़ सुनी। उसने मुड़कर देखा तो पाया कि सम्राट, स्लेज़ छोड़कर, उसके पीछे-पीछे प्रसन्न मुद्रा में आ रहे हैं।
“भई, सब हो गया।” पीटर ने उसका हाथ थामते हुए कहा, “मैंने तुम्हारा ब्याह पक्का कर दिया। कल अपने श्वसुर के यहाँ जाओ, मगर देखो, उसकी सामंती गरिमा का सम्मान करना; स्लेज़ दरवाज़े पर ही रोकना; आँगन पैदल ही पार करना; उसके साथ उसकी योग्यताओं, सेवाओं, उसके सुप्रसिद्ध वंश के बारे में बातें करो और वह तुम्हारे इश्क़ में पागल हो जाएगा। और अब,” वह डंडा हिलाते हुए आगे बोला, “मुझे झूठे दानिलिच के पास ले चलो, जिससे मुझे उसकी नयी शरारतों के बारे में मिलना है।”
इब्राहीम, पीटर को उसका पिता समान ध्यान रखने के लिए हार्दिक धन्यवाद देकर, उसे राजकुमार मेन्शिकोव के विशाल महल तक छोड़कर वापस घर लौट आया।
6
काँच के पूजाघर के सम्मुख, जिसमें सोना तथा चाँदी जड़ी ईसा मसीह की पारिवारिक मूर्तियाँ जगमगा रही थीं, एक लैम्प ख़ामोशी से जल रहा था। उसकी थरथराती रोशनी परदे लगे हुए पलंग एवं लेबल लगी रेत की घड़ी से सजी मेज़ को हल्के से आलोकित कर रही थी। अँगीठी के पास नौकरानी स्वचालित चर्खे पर बैठी थी, जिसका हल्का-सा शोर ही कमरे के सन्नाटे को भंग कर रहा था।
“यहाँ कोई है?” एक कमज़ोर आवाज़ ने पुकारा। नौकरानी फ़ौरन उठ खड़ी हुई, पलंग के पास आयी और उसने ख़ामोशी से परदे को उठाया। “क्या जल्दी ही सबेरा होने वाला है?” नतालिया ने पूछा।
“दोपहर हो गई है।” नौकरानी ने जवाब दिया।
“आह, मेरे भगवान, इतना अँधेरा क्यों है?”
“खिड़कियाँ बन्द हैं, जनाब!”
“मुझे जल्दी से कपड़े पहनाओ।”
“नहीं, मेमसाहब, डॉक्टर ने मना किया है।”
“क्या मैं बीमार हूँ? बहुत दिनों से?”
“दो हफ़्ते हो चुके।”
“सच? और मुझे यूँ लगा जैसे मैं कल ही सोई थी।”
नताशा ख़ामोश हो गयी; उसने बिखरे हुए विचारों को समेटने की कोशिश की। उसके साथ कुछ हुआ तो था, मगर आखिर क्या हुआ था? याद न कर पायी। नौकरानी उसके सामने ही हुक्म का इंतज़ार करते हुए खड़ी रही। इसी समय नीचे कुछ दबा-दबा-सा शोर सुनाई दिया।
“क्या हुआ?” बीमार ने पूछा।
“साहब लोगों ने खाना खा लिया।” नौकरानी ने जवाब दिया, “मेज़ से उठ रहे हैं। अब तात्याना अफानास्येव्ना यहाँ आएँगी।”
नताशा, ऐसा लगा कि, खुश हो गयी। उसने अपना क्षीण हाथ हिलाया। नौकरानी ने परदा खींच दिया और फिर से चर्खे पर बैठ गयी।
कुछ क्षण बाद दरवाज़े के पीछे से काली रिबन वाली सफ़ेद चौड़ी टोपी दिखाई दी और धीमी आवाज़ में पूछा गया:
“कैसी है नताशा?”
“नमस्ते बुआ,” बीमार ने हौले से कहा और तात्याना अफानास्येव्ना फ़ौरन उसके पास आयीं।
“मेमसाब को होश आ गया।” नौकरानी ने सावधानी से कुर्सी खिसकाते हुए कहा।
वृद्धा ने आँसुओं के साथ भतीजी का विवर्ण, क्षीण मुख चूमा और उसके निकट बैठ गयी। उसके पीछे-पीछे जर्मन डॉक्टर काला चोगा और वैज्ञानिकों जैसा विग पहने आया। उसने नताशा की नब्ज़ देखी और पहले लैटिन में, फिर रूसी में घोषणा की कि ख़तरा टल गया है। उसने काग़ज़ और क़लम-दवात माँगी, नयी दवाएँ लिखीं और चला गया। वृद्धा उठी और दुबारा नतालिया को चूमकर गावरीला अफानास्येविच को यह शुभ समाचार सुनाने नीचे चली गयी।
मेहमानख़ाने में लम्बा कोट पहने, तलवार लटकाये, हाथों में टोपी लिये सम्राट का दास सम्मानपूर्वक गावरीला अफानास्येविच से बातें कर रहा था। कोर्साकोव, परोंवाले दीवान पर पसरकर, बेरुख़ी से उनकी बातें सुन रहा था और शिकारी कुत्ते को छेड़ रहा था। इस काम से उकताकर वह आईने के पास गया, जहाँ निठल्लेपन में अक्सर पनाह ढूँढ़ा करता था। उसमें उसने देखा तात्याना अफानास्येव्ना को, जो दरवाज़े के पीछे से भाई को बेमालूम-से इशारे कर रही थी।
“आपको बुला रहे हैं, गावरीला अफानास्येविच,” कोर्साकोव ने इब्राहीम की बात को बीच में ही तोड़ते हुए उसकी ओर मुड़कर कहा। गावरीला अफानास्येविच फ़ौरन बहन के पास गया और अपने पीछे दरवाज़ा उढ़काता गया।
“तुम्हारी सहनशक्ति पर अचरज होता है।” कोर्साकोव ने इब्राहीम से कहा, “घंटे भर से तुम बड़बड़ सुन रहे हो, लीकोव और झेर्व्स्की ख़ानदानों का इतिहास सुन रहे हो और साथ ही अपनी नैतिक टिप्पणियाँ भी जोड़ते जा रहे हो! तुम्हारी जगह मैं होता तो थूकता इस बूढ़े झूठे और उसके पूरे खानदान पर, नतालिया गावरीलोव्ना समेत, जो बहाने बना रही है, बीमारी का ढोंग कर रही है, तबीयत ख़राब होने का दिखावा कर रही है। सच-सच बताओ, क्या तुम्हें इस ढोंगी लड़की से प्यार हो गया है? सुनो, इब्राहीम, कम-से-कम एक बार मेरी सलाह मानो; मैं उससे कहीं ज़्यादा अक़्लमन्द हूँ, जितना दिखाई देता हूँ। ये ख़ुशनुमा ख़याल दिल से निकाल दो। शादी मत करो। मुझे लगता है कि तुम्हारी मंगेतर के दिल में तुम्हारे लिए कोई ख़ास भावना नहीं है। दुनिया में क्या-क्या नहीं होता! मिसाल के तौर पर: मैं, बेशक, बेवक़ूफ़ नहीं हूँ, मगर मुझे कई बार उन पतियों को धोखा देना पड़ा है, जो भगवान जानता है, मुझसे किसी बात में कम नहीं थे। तुम ख़ुद भी... याद है हमारे पेरिस के स्नेही काउंट डी. की? औरत की वफ़ादारी पर भरोसा नहीं करना चाहिए; वह खुशनसीब है, जो इस ओर से उदासीन रहता है। मगर तुम! ...तुम्हारे जोशीले, ख़्वाब देखनेवाले, शक़ी स्वभाव, चपटी नाक, मोटे-मोटे होंठ, इन ऊन जैसे घुँघराले बालों के होते हुए शादी का ख़तरा उठाना क्या ठीक होगा?...”
“दोस्ताना सलाह के लिए शुक्रिया।” इब्राहीम ने बेमन से उसकी बात काटते हुए कहा, “मगर तुम्हें वह कहावत तो मालूम ही है: दूसरों के फटे में पैर अड़ाना ठीक नहीं...”
“देखो इब्राहीम,” कोर्साकोव ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “कहीं तुम्हें वक़्त पर इस कहावत को सचमुच ही सिद्ध करने की नौबत न आ जाए।”
मगर दूसरे कमरे में चल रही बातचीत तेज़ हो गयी।
“तुम उसे मार डालोगे,” वृद्धा ने कहा, “वह उसकी सूरत भी बर्दाश्त नहीं कर सकती।”
“मगर तुम ख़ुद ही फ़ैसला करो।” ज़िद्दी भाई ने प्रतिवाद किया, “दो हफ़्तों से वह मंगेतर के रूप में आ रहा है, और अभी तक उसने दुल्हन को देखा तक नहीं। आखिरकार वह सोच लेगा कि इसकी बीमारी सिर्फ़ एक बहाना है, हम सिर्फ़ किसी-न-किसी तरह से समय बिता रहे हैं, ताकि किसी तरह उससे दूर हो जाएँ। और, सम्राट क्या कहेंगे? वह पहले ही तीन बार नतालिया के स्वास्थ्य के बारे में पूछवा चुके हैं। तुम्हारी मर्ज़ी, मगर मैं उनसे झगड़ा करना नहीं चाहता।”
“हे भगवान,” तात्याना अफानास्येव्ना ने कहा, “उस ग़रीब का क्या होगा? कम-से-कम मुझे उसे इस मुलाक़ात के लिए तैयार करने का मौक़ा तो दो।” गावरीला अफानास्येविच मान गया और मेहमानख़ाने में लौट आया।
“ख़ुदा का शुक्र है!” उसने इब्राहीम से कहा, “ख़तरा टल चुका है। नतालिया की तबीयत बेहतर है। अगर प्यारे मेहमान इवान एवग्राफ़ोविच को यहाँ अकेला छोड़ना बदतमीज़ी न होती, तो मैं तुम्हें अपनी मंगेतर को दिखाने ऊपर ले चलता।”
कोर्साकोव ने गावरीला अफानास्येविच को बधाई दी, परेशान न होने को कहा और यक़ीन दिलाया कि उसका जाना ज़रूरी है। मेज़बान को छोड़ने आने का मौक़ा दिये बगैर वह बाहरी हाल की ओर भागा।
इसी बीच तात्याना अफानास्येव्ना मरीज़ को ख़ौफ़नाक मेहमान के आगमन के लिए तैयार करने के लिये भागी। कमरे में आकर, गहरी साँस लेकर वह पलंग के पास बैठी, नताशा का हाथ अपने हाथों में लिया, मगर वह एक लफ़्ज़ भी न कह पायी थी कि दरवाज़ा खुल गया। नताशा ने पूछा: कौन आया है? वृद्धा मानों बर्फ़ बन गयी और गूँगी हो गयी। गावरीला अफानास्येविच ने परदा हटाया, ठंडेपन से बीमार की ओर देखा और पूछा कि वह कैसी है। बीमार बच्ची ने उसकी ओर देखकर मुस्कुराना चाहा, मगर मुस्कुरा न सकी। पिता की गम्भीर नज़र उसे चौंका गयी और परेशानी उस पर हावी हो गयी। इसी समय यूँ प्रतीत हुआ कि उसके सिरहाने कोई खड़ा है। उसने कोशिश करके सिर ऊपर उठाया और अचानक सम्राट के दास को पहचान लिया। अब उसे सब कुछ याद आ गया, भविष्य की भयानकता अपने रौद्र रूप में उसके सामने खड़ी हो गयी। मगर थके-हारे मन ने कोई परेशानी का लक्षण नहीं दिखाया। नताशा ने फिर से तकिये पर सिर रख दिया और आँखें बन्द कर लीं... उसका दिल असामान्य रूप से धड़क रहा था। तात्याना अफानास्येव्ना ने भाई को इशारे से बताया कि मरीज़ सोना चाहती है और सब ख़ामोशी से कमरे से बाहर निकल गये, सिवा नौकरानी के जो फिर से चर्खे पर बैठ गयी थी।
अभागी सुन्दरी ने आँखें खोलीं और अपने पलंग के पास किसी को न देखकर नौकरानी को बुलाया और उसे बौनी के पास भेजा। मगर तभी गोल-मटोल, बूढ़ी बौनी गेंद के समान लुढ़कती हुई उसके बिस्तर के निकट आयी। लास्तोच्का (बौनी को इसी नाम से पुकारा जाता था) अपने नन्हे-नन्हे पैरों से पूरी ताक़त से गावरीला अफानास्येविच और इब्राहीम के पीछे-पीछे सीढ़ियों से ऊपर आयी और स्त्रीसुलभ उत्सुकता से दरवाज़े के पीछे छिप गयी। नताशा ने उसे देखकर नौकरानी को बाहर भेज दिया। और बौनी पलंग के निकट पड़ी बेंच पर बैठ गयी।
इस छोटे से शरीर ने कभी भी दिल के भेदों को अपने भीतर इतना न समेटा था। वह हर चीज़ में नाक घुसेड़ती, हर चीज़ जानती, हर चीज़ की फ़िक्र करती। चपल और चालाक बुद्धि के कारण वह अपने मालिकों का प्यार पाया करती और पूरे घर की नफ़रत भी, जिस पर वह मनमाने तरीक़े से राज किया करती। गावरीला अफानास्येविच उसकी शिकायतें, फ़रियादें और छोटी-छोटी प्रार्थनाएँ सुना करते; तात्याना अफानास्येव्ना हर घड़ी उसके विचार सुना करती और उसकी नसीहतों के मुताबिक़ चलती; और नताशा को तो उससे बेपनाह लगाव था, वह उसे अपना हर ख़याल, सोलह बरस के दिल की हर धड़कन सुनाया करती।
“जानती हो लास्तोच्का?” उसने कहा, “पिताजी मेरा ब्याह ग़ुलाम से करने वाले हैं।”
बौनी ने गहरी साँस ली, और उसके झुर्रियोंवाले चेहरे की झुर्रियाँ और गहरी हो गयीं।
“क्या कोई उम्मीद नहीं है?” नताशा कहती रही, “क्या पिता को मुझ पर दया न आएगी?”
बौनी ने अपने सिर का रूमाल झटका।
“मेरे लिए क्या नाना और बुआ भी कुछ न करेंगे?”
“नहीं मालकिन, तुम्हारी बीमारी के दौरान गुलाम ने सब पर जादू कर दिया है। मालिक उसके पीछे पागल हैं, राजकुमार सिर्फ़ उसी का नाम लिया करते हैं, और तात्याना अफानास्येव्ना कहती है : अफ़सोस कि वह हब्शी है, मगर उससे अच्छे दूल्हे की कामना करना भी पाप है।”
“हे भगवान, हे भगवान!” ग़रीब बेचारी नताशा कराही।
“दुःखी न हो हमारी सुन्दरी,” बौनी ने उसका क्षीण हाथ चूमते हुए कहा, “अगर तुम्हारे नसीब में हब्शी से ब्याह करना लिखा है, तो तुम अपनी मर्ज़ी की मालिक ही होगी। आजकल वो बात नहीं है, जो पहले हुआ करती थी, ख़ाविन्द बीवियों को ताले में बन्द नहीं करते, हब्शी सुना है, अमीर है, आपका घर खुशहाल होगा, हँसते-गाते ज़िन्दगी बिताओगी...”
“बेचारा वालेरियान!” नताशा ने कहा, मगर इतने धीरे से कि बौनी सिर्फ़ अन्दाज़ लगा सकी, और इन शब्दों को सुन न सकी।
“यही तो...यही...तो है, मालकिन,” उसने आवाज़ नीची करते हुए भेदभरे अन्दाज़ में कहा, “अगर तुम फ़ौजी के यतीम छोकरे के बारे में कुछ कम सोचतीं, तो सरसाम की हालत में उसके बारे में न बड़बड़ातीं और मालिक को गुस्सा न आया होता।”
“क्या?” भयभीत नताशा ने कहा, “मैं वालेरियान के बारे में बड़बड़ाई, पिताजी ने सुन लिया, पिताजी नाराज़ हैं!”
“यही तो बदनसीबी है।” बौनी ने जवाब दिया, “अब अगर तुम उनसे विनती करती हो कि तुम्हारा ब्याह हब्शी से न करें, तो वह सोचेंगे कि वालेरियान ही इसकी वजह है। कुछ भी नहीं किया जा सकता : पिता की ख़्वाहिश के आगे सिर झुकाओ, और जो होगा सो होकर रहेगा।”
नताशा ने एक भी शब्द से प्रतिरोध नहीं किया। इस विचार ने, कि उसके दिल का भेद उसके पिता को मालूम हो गया है, उस पर गहरा असर किया। सिर्फ़ एक ही उम्मीद बची थी : इस घृणित विवाह के सम्पन्न होने से पहले जान दे दी जाए। इस विचार से उसे कुछ ढाढ़स बँधा। कमज़ोर और दुःखी हृदय से उसने अपने भाग्य के आगे सिर झुका दिया।
7
गावरीला अफानास्येविच के घर में ड्योढ़ी से बायीं ओर एक तंग, एक खिड़कीवाला कमरा था। उसमें एक साधारण-सी खटिया थी, मोटे सूती कंबल से ढँकी हुई, और खटिया के सामने थी सरो की लकड़ी की छोटी-सी मेज़, जिस पर चर्बीवाली मोमबत्ती जल रही थी और खुली हुई संगीत-रचनाएँ पड़ी थीं। दीवार पर पुराना नीला फ़ौजी कोट और उसकी हमउम्र तिकोनी टोपी टँगे थे, उसके ऊपर तीन कीलों से ठोंकी गयी थी एक रंगीन तस्वीर, जिसमें कार्ल बारहवें को घोड़े पर सवार दिखाया गया था।
इस शांत आवास से बाँसुरी की आवाज़ आ रही थी। बंदी नृत्य-शिक्षक, इस कमरे का इकलौता निवासी, नुकीला टोप और चीनी चोगा पहने, जाड़े की शाम की उकताहट को मिटा रहा था, पुरानी स्वीडिश फ़ौजी धुनें बजाते हुए, जो उसे अपनी जवानी के खुशनुमा दिनों की याद दिला रही थीं। पूरे दो घंटे इस रियाज़ को समर्पित करके स्वीड ने अपनी बाँसुरी ठीक-ठाक की, उसे पेटी में बंद किया और कपड़े बदलने लगा।
इसी समय उसके दरवाज़े का पट खुला और एक ख़ूबसूरत ऊँचा नौजवान, फ़ौजी कोट पहने, अंदर आया।
आश्चर्यचकित स्वीड घबराकर उठ गया।
“तुमने मुझे नहीं पहचाना, गुस्ताव अदामीच?” युवा अतिथि ने भाव-विह्वल होकर कहा, “तुम्हें उस बच्चे की याद नहीं है, जिसे तुमने स्वीडिश वर्णमाला सिखाई थी, जिसके साथ इसी कमरे में तुमने क़रीब-क़रीब आग ही लगा दी थी, छोटी-सी तोप से गोला बरसाकर?”
गुस्ताव अदामीच ने गौर से देखा…
“ऐ-ऐ-ऐ,” आखिरकार वह उसे गले से लगाते हुए चिल्लाया, “ख़ुश रहो, तू ही है यह! बैठ, मेरा प्यारा शैतान, बातें करेंगे।”
(इस रचना को पुश्किन पूरा नहीं कर सके।)
॥ परिशिष्ट ॥
पूश्किन ने इस उपन्यास का आरम्भ 1827 में किया था, जब वे मिखाइलोव्स्कोये में थे। पूश्किन के मित्र अ. वुल्फ़ ने लिखा है कि जब पूश्किन यह उपन्यास लिख रहे थे, उस समय उन्होंने : ....मुझे हाल ही में लिखे गये गद्य उपन्यास के दो अध्याय दिखाये, जहाँ प्रमुख पात्र हैं उनके परनाना गनिबाल, अबिसीनिया के अमीर के पुत्र, जिसे तुर्कों ने उठा लिया था, और कन्स्तान्तिनोपोल से रूसी राजदूत ने पीटर प्रथम को उपहार स्वरूप भेज दिया था, पीटर प्रथम ने स्वयं उसका पालन-पोषण किया और वे इस बालक को बहुत चाहते थे। उपन्यास का मुख्य विषय है, पूश्किन के अनुसार, “इस अफ्रीकी की पत्नी की बेवफ़ाई, जिसने एक गोरे बालक को जन्म दिया और इसकी सज़ा पायी। उसे मॉनेस्ट्री भेज दिया गया। यह है ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इस उपन्यास की ।”
वुल्फ़ के कथन की पूश्किन के अ. पी. गनिबाल के बारे में पारिवारिक संस्मरणों से भी पुष्टि होती है। गनिबाल पीटर प्रथम का प्रमुख सहायक था। पूश्किनों तथा गनिबालों की वंशावली के बारे में कवि कहते हैं, “पारिवारिक जीवन में मेरे परनाना गनिबाल भी उतने ही अभागे थे, जितने मेरे परदादा पूश्किन। उनकी पहली पत्नी ने, जो जन्म से ग्रीक थी, एक गोरी लड़की को जन्म दिया। उसने पत्नी से तलाक़ ले लिया और उसे केश कटवाकर तीख्वीन्सकी मॉनेस्ट्री में जाने पर मजबूर किया...”
गनिबाल की जीवन गाथा पर उपन्यास लिखने का विचार पूश्किन के मन में काफ़ी समय से था। गनिबाल ने पोल्तावा के युद्ध में काफ़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उपन्यास लिखते समय उन्होंने जर्मन भाषा में लिखी गयी अब्राहम पेत्रोविच गनिबाल की हस्तलिखित जीवनी का सहारा लिया। मगर उपन्यास यथार्थ से कुछ हट गया है। गनिबाल की शादी आन्ना ईवानोव्ना के सम्मुख, एक नाविक की बेटी, ग्रीक बाला एव्दोकिया दिओपेर से हुई थी, न कि रूसी सामन्त कन्या से, जैसा पूश्किन लिखते हैं। काउंटेस डी. के प्रति उसका प्यार, काल्पनिक घटना है।
पूश्किन ने अनेक दस्तावेज़ों का भी सहारा लिया था। सन् 1828 के वसन्त में पूश्किन ने अपने उपन्यास के कुछ अंश पढ़े। मार्च के अन्त में व्याजेम्स्की ने लिखा, “पूश्किन ने हमें अपने गद्यात्मक उपन्यास के कुछ अंश पढ़कर सुनाये। नायक है, उसके परनाना गनिबाल, अन्य अनेक पात्रों के बीच चित्रित है पीटर महान का वीरोचित व्यक्तित्व, बड़ी सजीवता एवं सच्चाई से खींची है उनकी तस्वीर ।” पहले कुछ अंशों से तो यही प्रतीत होता है। पीटर्सबुर्ग के बाल नृत्य का एवं भोज का वर्णन स्वाभाविक है। ज़ाहिर है कि जो अध्याय पूश्किन ने अपने मित्रों को पढ़कर सुनाये थे वे सन् 1820 में 'लितेरातूर्नाया गजेता' में प्रकाशित किये गये थे।
उपन्यास का कथानक पीटर महान के शासनकाल के अन्तिम वर्षों से संबंधित है।
पूश्किन ने किन्हीं कारणों से उपन्यास को पूरा नहीं किया, उन्होंने इसे कोई नाम भी नहीं दिया। “दास पीटर महान का”, यह नाम कवि की मृत्यु के बाद इसके 'सव्रेमेन्निक' में इसके प्रकाशित होते समय दिया गया।