पेशावर से लाहौर तक (कहानी) : सआदत हसन मंटो
Peshawar Se Lahore Tak (Hindi Story) : Saadat Hasan Manto
वो इंटर क्लास के ज़नाना डिब्बे से निकली उस के हाथ में छोटा सा अटैची केस था। जावेद पेशावर से उसे देखता चला आ रहा था। रावलपिंडी के स्टेशन पर गाड़ी काफ़ी देर ठहरी तो वो साथ वाले ज़नाना डिब्बे के पास से कई मर्तबा गुज़रा।
लड़की हसीन थी जावेद उस की मुहब्बत में गिरफ़्तार हो गया उस की नाक की फ़िनिंग पर छूटा सा तिल था गालों में नन्हे नन्हे गढ़े थे जो उस के चेहरे पर बहुत भले लगते थे।
रावलपिंडी स्टेशन पर उस लड़की ने खाना मंगवाया बड़े इत्मिनान से एक एक निवाला उठा कर अपने मुँह में डालती रही। जावेद दूर खड़ा ये सब कुछ देखता रहा उस का जी चाहता था कि वो भी उस के साथ बैठ जाये और दोनों मिल कर खाना खाएँ।
वो यक़ीनन उस के पास पहुंच जाता मगर मुसीबत ये थी कि डिब्बा ज़नाना था। औरतों से भरा हुआ यही वजह है कि जुर्रत न कर सका।
लड़की ने खाना खाने के बाद हाथ धोए जो बहुत नाज़ुक थे। लंबी लंबी मख़रूती उंगलियां जिन को उस ने अच्छी तरह साफ़ किया और अटैची केस से तौलिया निकाल कर अपने हाथ पोंछे फिर इत्मिनान से अपनी सीट पर बैठ गई।
जावेद गाड़ी चलने तक उस की तरफ़ देखता रहा। आख़िर अपने डिब्बे में सवार हो गया और उसी लड़की के ख़यालों में ग़र्क़ हो गया।
मालूम तो ये होता है कि बड़े अच्छे घराने की है।
दोनों कलाइयों में क़रीब क़रीब बारह बारह सोने की चूड़ियां होंगी। कानों में टॉप्स भी थे दो उंगलियों में अगर मेरा अंदाज़ा ग़लत नहीं हीरे की अँगूठियां हैं लिबास बहुत उम्दा साटन की शलवार टफ़टिया की क़मीस शनोन का दुपट्टा।
हैरत है कि घटिया दर्जे में क्यों सफ़र कर रही है?
पेशावर से आई है वहां की औरतें तो सख़्त पर्दा करती हैं लेकिन ये बुर्के के बग़ैर वहां से गाड़ी में सवार हुई और उस के साथ कोई मर्द भी नहीं न कोई औरत अकेली सफ़र कर रही है आख़िर ये क़िस्सा किया है?
मेरा ख़याल है पेशावर की रहने वाली नहीं वहां किसी अज़ीज़ से मिलने गई होगी मगर अकेली क्यों? क्या उसे डर नहीं लगा कि उठा कर ले जाएगा कोई ऐसे तन्हा हुस्न पर तो हर मर्द झपटा मारना चाहता है।
फिर जावेद को एक अंदेशा हुआ कि शादीशुदा तो नहीं?
वो दरअसल दिल में तहय्या कर चुका था कि उस लड़की का पीछा करेगा और रोमान लड़ा कर उस से शादी करेगा वो हराम-कारी का बिलकुल क़ाइल नहीं था।
कई स्टेशन आए और गुज़र गए उसे सिर्फ़ रावलपिंडी तक जाना था कि वहां ही उस का घर था मगर वो बहुत आगे निकल गया।
एक स्टेशन पर चैकिंग हुई जिस के बाइस उसे जुर्माना अदा करना पड़ा मगर उस ने उस की कोई पर्वा न की।
टिकट चैकर ने पूछा “आप को कहाँ तक जाना है”
जावेद मुस्कुराया “जी अभी तक मालूम नहीं आप लाहौर का टिकट बना दीजिए कि वही आख़िरी स्टेशन है”
टिकट चैकर ने उसे लाहौर का टिकट बना दिया रुपय वसूल किए और दूसरे स्टेशन पर उतर गया जावेद भी उतरा कि ट्रेन को टाइम टेबल के मुताबिक़ पाँच मिनट ठहरना था।
साथ वाले कम्पार्टमंट के पास गया वो लड़की खिड़की के साथ लगी दाँतों में ख़िलाल कर रही थी जावेद की तरफ़ जब उस ने देखा तो उस के दिल-ओ-दिमाग़ में च्यूंटियां दौड़ने लगीं उस ने महसूस किया कि वो उस की मौजूदगी से ग़ाफ़िल नहीं है समझ गई है कि वो बार बार सिर्फ़ उसे ही देखने आता है।
जावेद को देख कर वो मुस्कुराई उस का दिल बाग़ बाग़ हो गया मगर जावेद फ़र्त-ए-जज़्बात की वजह से फ़ौरन वहां से हिट कर अपने डिब्बे में चला गया और रूमानों की दुनिया की सैर करने लगा उस को ऐसा महसूस होता था कि इस के आस पास की तमाम चीज़ें मुस्कुरा रही हैं।
ट्रेन का पंखा मुस्कुरा रहा है खिड़की से बाहर तार के खंबे मुस्कुरा रहे हैं इंजन की सीटी मुस्कुरा रही है और वो बदसूरत मुसाफ़िर जो इस के साथ बैठा था उस के मोटे मोटे होंटों पर भी मुस्कुराहट है उस के अपने होंटों पर मुस्कुराहट नहीं थी लेकिन उस का दिल मुस्कुरा रहा था।
अगले स्टेशन पर जब वो साथ वाले कम्पार्टमंट के पास गया तो वो लड़की वहां नहीं थी। उस का दिल धक से रह गया कहाँ चली गई? कहीं पिछले स्टेशन पर तो नहीं उतर गई जहां उस ने एक मुस्कुराहट से मुझे नवाज़ा था? नहीं नहीं ग़ुसल-ख़ाने में होगी।
वो वाक़ई ग़ुसल-ख़ाने ही में थी। एक मिनट के बाद वो खिड़की में नमूदार हुई। जावेद को देख कर मुस्कुराई और हाथ के इशारे से उस को बुलाया।
जावेद काँपता लरज़ता खिड़की के पास पहुंचा उस लड़की ने बड़ी महीन और सुरीली आवाज़ में कहा “एक तकलीफ़ देना चाहती हूँ आप को मुझे दो सेब ला दीजिए ” ये कह कर उस ने अपना पर्स निकाला और एक रुपय का नोट जावेद की तरफ़ बढ़ा दिया।
जावेद ने जो इस ग़ैर-मुतवक़्क़े बुलावे से क़रीब क़रीब बर्क़-ज़दा था एक रुपय का नोट पकड़ लिया लेकिन फ़ौरन उस के होश-ओ-हवास बरक़रार हो गए। नोट वापिस दे कर उस ने उस लड़की से कहा “आप ये रखिए मैं सेब ले आता हूँ” और प्लेटफार्म पर उस रेड़ी की तरफ़ दौड़ा जिस में फल बेचे जाते थे उस ने जल्दी जल्दी छः सेब ख़रीदे क्योंकि वस्ल हो चुकी थी।
दौड़ा दौड़ा वो उस लड़की के पास आया उस को सेब दिए और कहा “माफ़ कीजिएगा वस्ल हो रही थी इस लिए मैं अच्छे सेब चुन न सका”
लड़की मुस्कुराई वही दिलफ़रेब मुस्कुराहट गाड़ी हरकत में आई। जावेद अपने कम्पार्टमंट में दाख़िल होते काँप रहा था लेकिन बहुत ख़ुश था उस को ऐसा महसूस हो रहा था कि उस को दोनों जहान मिल गए हैं उस ने अपनी ज़िंदगी में कभी किसी से मुहब्बत नहीं की थी लेकिन अब वो उस की लज़्ज़त से लुत्फ़-अंदोज़ हो रहा था।
उस की उम्र पच्चीस बरस के क़रीब थी उस ने सोचा कि इतनी देर में कितना ख़ुश्क रहा हूँ। आज मालूम हुआ है कि मुहब्बत इंसान को कितनी तर-ओ-ताज़ा बना देती है वो सेब खा रही होगी लेकिन उस के गाल तो ख़ुद सेब हैं मैंने जो सेब उस को दिए हैं क्या वो उन को देख कर शर्मिंदा नहीं होंगे।
वो मेरी मुहब्बत के इशारों को समझ गई जब ही तो वो मुस्कुराई और उस ने मुझे हाथ के इशारे से बुलाया और कहा कि मैं उसे सेब ला दूँ।
मुझ से अगर वो कहती कि गाड़ी का रुख़ पलट दूँ तो उस की ख़ातिर ये भी कर देता। गो मुझ में इतनी ताक़त नहीं लेकिन मुहब्बत में आदमी बहुत बड़े बड़े काम सरअंजाम दे सकता है फ़र्हाद ने शीरीं के लिए पहाड़ काट कर नहर नहीं खोदी थी?
मैं भी कितना बेवक़ूफ़ हूँ उस से और कुछ नहीं तो कम अज़ कम यही पूछ लिया होता कि तुम्हें कहाँ तक जाना है ख़ैर मैं लाहौर तक का टिकट तो बनवा चुका हूँ हर स्टेशन पर देख लिया करूंगा।
वैसे वो अब मुझे बिन बताए जाएगी भी नहीं शरीफ़ ख़ानदान की लड़की है मेरे जज़्ब-ए-मुहब्बत ने उसे काफ़ी मुतअस्सिर किया है सेब खा रही है काश कि मैं इस के पास बैठा होता हम दोनों एक सेब को बैयक-वक़्त अपने दाँतों से काटते उस का मुँह मेरे मुँह से कितना क़रीब होता।
मैं इस के घर का पता लूँगा ज़रा और बातें कर लूं फिर रावलपिंडी पहुंच कर अम्मी से कहूंगा कि मैंने एक लड़की देख ली है उस से मेरी शादी कर दीजिए वो मेरी बात कभी नहीं टालेंगी बस एक दो महीने के अंदर अंदर शादी हो जाएगी।
अगले स्टेशन पर जब जावेद उसे देखने गया तो वो पानी पी रही थी वो जुर्रत कर के आगे बढ़ा और उस से मुख़ातब हुआ “आप को किसी और चीज़ की ज़रूरत हो तो फ़रमाईए”
लड़की मुस्कुराई दिलफ़रेब मुस्कुराहट “मुझे सिगरेट ला दीजिए”
जावेद ने बड़ी हैरत से पूछा “आप सिगरेट पीती हैं”
वो लड़की फिर मुस्कुराई “जी नहीं यहां एक औरत है पर्दादार उस को सिगरेट पीने की आदत है”
“ओह ! मैं अभी लाया किस ब्रांड के सिगरेट हों?”
“मेरा ख़याल है वो गोल्ड फ्लैग पीती है”
“मैं अभी हाज़िर किए देता हूँ” ये कह कर जावेद स्टाल की तरफ़ दौड़ा वहां से उस ने दो पैकेट लिए और उस लड़की के हवाले कर दिए इस ने शुक्रिया उस औरत की तरफ़ से अदा किया जो सिगरेट पीने की आदी थी।
जावेद अब और भी ख़ुश था कि उस लड़की से एक और मुलाक़ात हो गई मगर इस बात की बड़ी उलझन थी कि वो उस का नाम नहीं जानता था उस ने कई मर्तबा ख़ुद को कोसा कि उस ने नाम क्यों न पूछा इतनी बातें होती रहीं लेकिन वो उस से इतना भी न कह सका “आप का नाम?”
उस ने इरादा कर लिया कि अगले स्टेशन पर जब गाड़ी ठहरेगी तो वो उस से नाम ज़रूर पूछेगा उसे यक़ीन था कि वो फ़ौरन बता देगी क्योंकि इस में क़बाहत ही क्या थी।
उगला स्टेशन बहुत देर के बाद आया इस लिए कि फ़ासिला बहुत लंबा था। जावेद को बहुत कोफ़्त हो रही थी उस ने कई मर्तबा टाइम टेबल देखा घड़ी बार बार देखी उस का जी चाहता था कि इंजन को पर लग जाएं ताकि वो उड़ कर जल्दी अगले स्टेशन पर पहुंच जाये।
गाड़ी एक दम रुक गई मालूम हुआ कि इंजन के साथ एक भैंस टकरा गई है वो अपने कम्पार्टमंट से उतर कर साथ वाले डिब्बे के पास पहुंचा मगर लड़की अपनी सीट पर मौजूद नहीं थी।
मुसाफ़िरों ने मरी कटी हुई भैंस को पटड़ी से हटाने में काफ़ी देर लगा दी। इतने में वो लड़की जो ग़ालिबन दूसरी तरफ़ तमाशा देखने में मशग़ूल थी आई और अपनी सीट पर बैठ गई जावेद पर जब उस की नज़र पड़ी तो मुस्कुराई वही दिलफ़रेब मुस्कुराहट।
जावेद खिड़की के पास गया मगर उस का नाम पूछ न सका।
लड़की ने उस से कहा “ये भैंसें क्यों गाड़ी के नीचे आ जाती हैं?”
जावेद को कोई जवाब न सूझा गाड़ी चलने वाली थी इस लिए वो अपने कम्पार्टमंट में चला गया।
कई स्टेशन आए मगर वो न उतरा। आख़िर लाहौर आ गया प्लेटफार्म पर जब गाड़ी रुकी तो वो जल्दी जल्दी बाहर निकला लड़की मौजूद थी जावेद ने अपना सामान निकलवाया और उस से जिस ने हाथ में अटैची केस पकड़ा हुआ था कहा “लाईए! ये अटैची केस मुझे दे दीजिए”
उस लड़की ने अटैची केस जावेद के हवाले कर दिया। क़ुली ने जावेद का सामान उठाया और दोनों बाहर निकले ताँगा लिया। जावेद ने उस से पूछा “आप को कहाँ जाना है”
लड़की के होंटों पर वही दिलफ़रेब मुस्कुराहट पैदा हुई “जी हीरा मंडी”
जावेद बौखला सा गया “क्या आप वहां रहती हैं?”
लड़की ने बड़ी सादगी से जवाब दिया “जी हाँ मेरा मकान देख लें आज रात मेरा मुजरा सुनने ज़रूर आईएगा”
जावेद पेशावर से लेकर लाहौर तक अपना मुजरा सुन चुका था उस ने इस तवाइफ़ को उस के घर छोड़ा और उस तांगे में सीधा लारियों के अड्डे पहुंचा और रावलपिंडी रवाना हो गया।
(२६ मई ५४-ई.)