पहला कछुआ : आदिवासी लोक-कथा

Pehla Kchhua : Adivasi Lok-Katha

देवता पुलुगा ने अंडमान की पवित्र धरती और जल में अनेक जीवों की रचना की। उसने मनुष्य बनाए, तरह-तरह के थलचर और जलचर जीव बनाए, पेड़-पौधे बनाए। सभी जीव जोड़े में बनाए गए जिससे उनकी संतति हो सके और उनकी वंशवृद्धि हो। किंतु देवता पुलुगा ने कछुआ एक ही बनाया। वह अकेला कछुआ मनुष्यों के साथ घूमा करता। मनुष्य जंगलों में घूमते तो वह भी जंगलों में घूमता, मनुष्य मछली पकड़ने समुद्र में जाते तो वह भी समुद्र में तैरता। मनुष्य उसे अपने साथ खाने पर भी बुलाते। उसे मनुष्यों द्वारा पकाया गया खाना अच्छा लगता।

धीरे-धीरे कछुए को अपना अकेलापन अखरने लगा। उसे लगने लगा कि यदि अपनी प्रजाति के उसके भी साथी होते तो कितना अच्छा होता। उसने देवता पुलुगा से प्रार्थना की कि कुछ और कछुए बनाकर पृथ्वी पर भेज दे। देवता पुलुगा ने उससे कहा कि वह स्वयं अपने लिए साथी बनाए। यह सुनकर कछुआ चकराया। उसे पता ही नहीं था कि वह अपने लिए साथी कैसे बनाए? वह अपने साथी बनाने के उपाय दिन-रात सोचता रहता।

एक दिन मनुष्यों ने सुअर और मछली पकड़ी। सुअर और मछली को आग में भूनकर पत्तों पर परोसा। कछुआ भी उनके साथ भोजन करने बैठा था। कछुआ स्वादिष्ट भुना हुआ सुअर और मछली खाते हुए विचार करने लगा कि ये मनुष्य मुझे खिलाते-पिलाते रहते हैं किंतु मैं इन्हें कभी कुछ नहीं देता हूँ, यह ठीक नहीं है। तत्काल उसे एक विचित्र उपाय सूझा। उसे यह भी याद आया कि एक रात पुलुगा ने उसे सपने में आकर बताया था कि यदि वह अपने मनुष्य मित्रों को पानी में डुबा दे तो उसे अपनी प्रजाति के साथी मिल सकते हैं। अब यदि वह अपने मनुष्य मित्रों को पानी में डुबाता तो उसे स्वयं बहुत दुख होता। अत: उसने ऐसा उपाय सोचा जिससे उसके मनुष्य मित्रों की सहृदयता का ऋण भी उतर जाए और उन्हें डुबाकर अपनी प्रजाति के कछुए मिल सकें।

‘देखो, तुम लोग मुझे अच्छी-अच्छी वस्तुए खिलाते हो, मेरा भी दायित्व बनता है कि मैं तुम्हें कुछ खिलाऊँ। अत: मैं चाहता हूँ कि तुम लोग मेरा मांस खाओ। मेरा मांस सबसे स्वादिष्ट है।’ कछुए ने मनुष्यों से कहा।

‘नहीं, नहीं! यह कैसे हो सकता है? तुम हमारे मित्र हो।’ मनुष्यों ने स्पष्ट मना कर दिया।

‘तो फिर तुम ऐसा करो कि जब मैं समुद्र में गोता लगाऊँ तो तुम लोग मेरा शिकार कर लेना। यदि तुम शिकार करने में सफल हो गए तो मेरा मांस तुम खा लेना अन्यथा इस प्रयास के द्वारा मुझ पर तुम्हारा जो ऋण है वह तो उतर ही जाएगा।’ कछुए ने कहा।

कछुए की हठ के आगे मनुष्यों की एक न चली और उन्होंने कछुए का शिकार करना स्वीकार कर लिया। कछुए ने समुद्र के जल में गोता लगाया और वह गहराई में चला गया। मनुष्यों ने अपनी होड़ियाँ (नावें) खोलीं और उन पर सवार होकर कछुए का पीछा करने लगे। वे कछुए का पीछा कर ही रहे थे कि अचानक एक बड़ी लहर आई और उसने होड़ियों को पलट दिया। होड़ियों पर सवार मनुष्य समुद्र में गिर गए और उन्होंने तैरकर बच निकलने का प्रयास किया किंतु सफल नहीं हुए और डूब गए। तभी एक चमत्कार हुआ और समुद्र के जल में डूबे हुए मनुष्य कछुओं में परिवर्तित हो गए और जल में अठखेलियाँ करने लगे। मनुष्यों की होड़ियाँ पलट कर यहाँ-वहाँ बहती हुई जहाँ भी पहुँचीं वहीं चट्टानों में बदल गई।

इस प्रकार अंडमान के पहले कछुए ने अपनी प्रजाति के साथियों को पा लिया और अंडमान में कछुओं की संख्या बढ़ती चली गई। अंडमानी आदिवासी मानते हैं कि वहाँ पाए जाने वाले कछुए उनके पूर्वजों के वंशज हैं।

(साभार : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं, संपादक : शरद सिंह)

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