पीपर बरोदिया : आदिवासी लोक-कथा
Peepar Barodiya : Adivasi Lok-Katha
गोंड राजा के छल-कपट से भरे आक्रमण के समय जो सहरिया बट (वटवृक्ष) की शरण में रह कर अपने प्राणों की रक्षा कर सके वे बरोदिया गोत्र के सहरिया कहलाए।
एक बार एक बरोदिया दूल्हे की बारात जा रही थी। रास्ते में एक पीपल के पेड़ के नीचे बारात विश्राम करने को रुकी। दूल्हा भी अपने सिर से मौढ़ (दूल्हे का मुकुट) उतारकर विश्राम करने लगा। इसी बीच किसी बाराती की असावधानी से दूल्हे के मौढ़ को पैर की ठोकर लगी और वह लुढ़कता हुआ बहुत दूर चला गया। कुछ बाराती मौढ़ उठाने पीछे-पीछे दौड़े। मौढ़ के पास जाकर देखा कि वह तो गंदगी में जा गिरा था। अब गंदगीयुक्त मौढ़ दूल्हे के सिर पर तो रखा नहीं जा सकता था और न मौढ़ के बिना दूल्हा विवाह के लिए जा सकता था। आस-पास कोई गाँव भी नहीं था कि वहाँ से नए मौढ़ की व्यवस्था हो पाती। फिर यदि दुल्हन के गाँव जाकर नया मौढ़ लेते तो उनकी हँसी होती कि दूल्हे के गाँव में मौढ़ नहीं मिलता है। अत: सभी चिंतित हो गए।
दूल्हे सहित सभी ने भगवान से प्रार्थना करना आरंभ किया। अभी वे प्रार्थना कर ही रहे थे कि पीपल का एक पत्ता टूट कर दूल्हे के सिर पर आ गिरा और वहीं अटक गया। बारातियों ने इसे भगवान का आशीर्वाद समझा और पीपल के पत्तों से मौढ़ बनाकर दूल्हे को पहना दिया। इसके बाद वे दूल्हा सहित विवाह स्थल पर पहुँचे और धूम-धाम से विवाह संपन्न हुआ।
इस घटना के बाद से बरोदियों में भी एक समूह पीपर बरोदिया कहलाया। इस समुदाय के बरोदिया सहरिया दूल्हों के मुकुट में पीपल का पत्ता अवश्य लगाया जाता है।
(साभार : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं, संपादक : शरद सिंह)